भक्तिकालीन काव्य हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण काल है जिसमें भक्ति और श्रद्धा के भाव प्रमुख रूप से व्यक्त किए गए हैं। भक्तिकालीन काव्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं…
1. भक्ति भावना : इस काल के काव्य में ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम और श्रद्धा का भाव व्यक्त किया गया है। कवियों ने अपने आराध्य देव की स्तुति की है और भक्ति के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के मिलन की कामना की है।
उदाहरण के लिए, सूरदास ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया है:
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो।
मथुरा के मंगवाय मिठाई, माखन अरु मिश्री मुझको न भायो।।
2. सगुण और निर्गुण भक्ति : भक्तिकालीन काव्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति।
सगुण भक्ति में ईश्वर को मूर्ति, रूप, लीलाओं के माध्यम से व्यक्त किया गया है, जैसे तुलसीदास की रामचरितमानस।
निर्गुण भक्ति में निराकार ईश्वर की उपासना की गई है, कबीर, रैदास आदि कवि।
उदाहरण के लिए कबीर का एक दोहा…
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रोंदूंगी तोहे।।
3. साधना और आत्मानुभूति : भक्तिकालीन कवियों ने अपने काव्य में साधना और आत्मानुभूति का वर्णन किया है। वे आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की प्राप्ति के लिए भक्ति मार्ग को सर्वोत्तम मानते थे।
उदाहरण के लिए, मीराबाई के पद से उनके आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति अगाध भक्ति का प्रकटीकरण होता है…
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।
4. सरल भाषा और शैली : इस काल के कवियों ने अपनी रचनाओं में सरल, सहज और भावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने जन-जन तक अपने विचारों को पहुंचाने के लिए अवधी, ब्रजभाषा, राजस्थानी जैसी लोक भाषाओं का उपयोग किया।
उदाहरण के लिए, तुलसीदास की चौपाई से समझते हैं..
श्रीरामचरितमानस पवित्र गंगा, तुलसीदास के काव्य की बानी।
जो जन पढ़े अथवा सुन आवे, हर हर हर हर पाप हरामी।।
5. मानवता और सामाजिक समरसता : भक्तिकालीन काव्य में सामाजिक समरसता, समानता और मानवता के विचार भी व्यक्त किए गए हैं। कबीर, रैदास, और अन्य संत कवियों ने जाति-पाति, धर्म-भेद आदि को नकारते हुए मानवता की महत्ता को स्वीकार किया।
उदाहरण के लिए…
अवल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बंदे।
एक नूर से सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे।।
6. गुरु महिमा : इस काल के कवियों ने गुरु की महिमा का भी गान किया है। गुरु को ज्ञान का स्रोत और आत्मा को परमात्मा से मिलाने वाला मार्गदर्शक माना गया है।
उदाहरण के लिए कबीरदास के इस दोहे में गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
भक्तिकालीन काव्य की इन विशेषताओं से यह स्पष्ट होता है कि यह काल भक्ति, साधना, और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के भाव से ओत-प्रोत था।
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