‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी हिंदी के प्रसिद्ध लेखक ‘उपेंद्र नाथ अश्क’ द्वारा लिखा गया एक एकांकी है। इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य ऐसे अवसरवादी नेताओं के चरित्र दोहरे चरित्र को उजागर करना है, जो भोली-भाली जनता को झूठे लुभावने वादे करके मूर्ख बनाते हैं और चुनाव जीत जाते हैं।
चुनाव जीतकर इन नेताओं का रवैया बिल्कुल बदल जाता है और चुनाव से पूर्व जनता के हितों और अधिकारों का रक्षक होने की बात करने वाले नेता चुनाव के बाद केवल अपना ही हित सोचने रखते हैं, और जनता के अधिकारों के भक्षक बन जाते हैं। ये नेता लोग जनता को किए सारे वादे भूल जाते हैं और केवल अपने स्वार्थ तक सीमित हो जाते हैं। वह केवल स्वयं तथा स्वयं के रिश्तेदारों के उत्थान में ही लगे रहते हैं। जनता की समस्याओं और हितों से की उन्हें कोई परवाह नहीं रहती ऐसे नेताओं की कथनी और करनी में बड़ा अंतर होता है।
लेखक ने इस एकांकी के माध्यम से इन्ही दोहरे चरित्र वाले नेताओं के पाखंड को उजागर किया है। चुनाव जीतने के लिए बड़े-बड़े वादे करने वाले नेता चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र से ऐसे गायब हो जाते हैं कि फिर अगले चुनाव पर ही नजर आते हैं।
‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी आज के समय की स्वार्थ बड़ी राजनीति और नेताओं के दौरे चरित्र को उजागर करता है। एकांकी के माध्यम से यह बताया जाता है कि लोकतंत्र के नाम पर नेता किस प्रकार लोकतंत्र का मजाक उड़ाते हैं और वास्तव में लोकतंत्र नहीं नेता तंत्र बनकर रह गया है। यह नेता लोग जनता के अधिकार का रक्षक होने का दवा तो करते हैं, लेकिन वास्तव में वह जनता के अधिकार की रक्षा नहीं बल्कि अधिकारों का शोषण करते हैं।
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