‘पिटने का डर और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार उनके कलेजे पर फिर रही थी।’
संदर्भ : यह पंक्तियां ‘श्रीराम शर्मा’ द्वारा लिखित स्मृति नामक पाठ से ली गई है जो कि उनके बचपन का ही एक संस्मरण है। इन पंक्तियों में उस प्रसंग का वर्णन है, जब लेखक को बड़े भाई ने चिट्ठियां डाकखाने में डालने के लिए दी थीं। लेकिन लेखक की गलती से वे चिट्ठियां उस कुएं में गिर गई जिसमें सांप था। लेखक की उसी मनोस्थिति का वर्णन इन पंक्तियों के माध्यम से प्रकट हो रहा है।
व्याख्या : लेखक को लेखक के बड़े भाई ने थाने में चिट्ठियां डालकर लाने के लिए कहा था। लेखक के ऊपर ये एक जिम्मेदारी थी, लेकिन लेखक ने शरारतवश और लापरवाही के कारण वह चिट्ठियां गलती से उस कुएं में गिरा दी, जिसमें एक भयंकर साँप था।
कुएँ में साँप होने के कारण लेखक कुएं में उतर कर चिट्ठियों को वापस निकाल नहीं सकता था और यदि वह बिना चिट्ठियां डाले घर पहुंच कर भाई को बताता तो भाई से पिटाई होना निश्चित था। लेखक के भाई की ये चिट्ठियां बेहद महत्वपूर्ण थी। लेखक चाह कर भी भाई को चिट्ठियों के गिरने की बात नहीं कह सकता था।
भाई ने उस पर भरोसा करते हुए उसे एक जिम्मेदारी वाला कार्य दिया था। इसीलिए चिट्ठियां गिर जाने के कारण लेखक एक तरफ अपनी पिटाई का डर था तो वहीं दूसरी तरफ से उस जिम्मेदारी का एरसास भी था जो उसके भाई ने उस पर भरोसा करते हुए दी थी। इसलिए लेखक को समझ नहीं आ रहा था कि चिट्ठियों को वापस कुएं से कैसे निकाले ताकि भाई की पिटाई से भी बचे और अपने जिम्मेदारी भी पूरी कर दे।
संदर्भ पाठ
स्मृति, लेखक – श्रीराम शर्मा (कक्षा-9 पाठ-2, हिंदी संचयन)
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