काले बादल जाति द्वेष के,
काले बादल विश्व क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नव स्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा,
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!
संदर्भ : ये काव्य पंक्तियां ‘सुमित्रा नंदन पंत’ द्वारा रचित कविता ‘काले बादल’ नामक कविता से ली गई हैं। इन काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि पंत जी ने प्रकृति के तत्वों को प्रतीक बनाकर देश की तात्कालीन परिस्थितियों का विवेचन किया है।
व्याख्या : कवि सुमित्रानंदन पंत देश की हालत पर और जातिगत भेदभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि देश में जाति पर आधारित भेदभाव की भावना कब तक रहेगी? कब तक इस संसार के लोग एक दूसरे के प्रति राग और द्वेष का भाव मन में पाले रहेंगे। देश अभी-अभी स्वतंत्र हुआ है, इस नई नवेले स्वतंत्र देश की आजादी की राह में जातिगत भेदभाव और आपसी राग-द्वेष की भावनाएं बाधा बनकर खड़ी हैं। इन बाधाओं के पार किए बिना देश आगे नही बढ़ पाएगा।
कवि ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। वह कहते हैं कि जिस तरह काले बादलों के बीच एक चाँदी सी पतली रेखा दिखाई देती है, और मन में आशा का संचार करती है। इस तरह उन्हें भी इन विभिन्न समस्याओं रूपी काले बादल के बीच उम्मीद की एक किरण भी दिखाई दे रही है और उन्हें लगता है कि भारतवासी इन सभी आपसी भेदभाव की भावना को मिटाकर देश को आगे बढ़ाएंगे।
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