देश जातियों का कब होगा,
नव मानवता में रे एका,
काले बादल में कल की,
सोने की रेखा!
संदर्भ : ये पंक्तिया कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ द्वारा रचित कविता काले बादल से ली गई है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह उम्मीद ही आशा जताने का भाव प्रकट किया है कि देश कब जातिगत भेदभाव की भावना से मुक्त हो सकेगा।
व्याख्या : कवि सुमित्रानंदन पंत स्वयं से सवाल करते हुए कहते हैं कि इस देश में जातियों के आधार पर उपजी भेदभावना कब मिटेगी? कब लोग जातिगत सोच से ऊपर उठकर मानवता के सुर में एक दूसरे को बाँध पाएंगे। कब देश के लोग एक ही जाति यानी मानव जाति को अपनी जाति बना लेंगे और एकता के सूत्र में बंध पाएंगे। वह समय कब आएगा जब जब देश ऊँच-नीच की भावना से मुक्त हो पाएगा और देश के सभी वासी एक समान भाव से रहेंगे।
कवि कहते हैं जिस तरह काले बादल में सूर्य की किरणों की एक सुनहरी सी रेखा दिखाई देती है, जो मन में आशा का संचार करती है। इसी तरह उन्हें भी भविष्य में एक आशा की किरण दिखाई दे रही है। उन्हें लगता है कि देश भविष्य जातिगद भेद से ऊपर उठकर एक दिन एकजुट होगा और सभी केव मानवता को महत्व देंगे।