वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे,
झलमलकर हिम बिन्दु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे,
लहराता था पानी।
लहराता था पानी। ‘हाँ, हाँ यही कहानी।╞
संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रचित कविता “माँ कह एक कहानी” से ली गई हैं। इन पंक्तियों में उस प्रसंग का वर्णन है, जब यशोधरा अपने पुत्र राहुल को उसके पिता सिद्धार्थ के बारे में बताना चाह रही हैं। इस पंक्ति के माध्यम से उस बगीचे की सुंदरता का वर्णन किया जा रहा है।
व्याख्या : बाग बगीचे का सौंदर्य अद्भुत था। बगीचे में चारों तरफ तरह-तरह के रंगों के फूल खिले हुए थे। बगीचे के पौधों की पत्तियों तथा घास पर झिलमिल ओस की बूँदें झिलमिला अद्भुत सौंदर्य दृश्य उत्पन्न कर रही थी। हवा के शीतलझोंकों से वह उसकी बूंदे हिल रही थीं, जिससे सुंदर दृश्य उत्पन्न हो रहा था। हवा के झोंकों से तालाब का पानी मंद मंद रूप से लहरा रहा था। इस लहराते हुए पानी की बात सुनकर राहुल अपनी माँ से बोला, हाँ, मुझे यही कहानी कहो।
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