पिंजरे मे बंद पक्षी इसलिए खुश नहीं है क्योंकि पक्षी को परतंत्रता पसंद नहीं है, उन्हें स्वतंत्रता पसंद है। उनका मूल स्वभाव स्वच्छंद होकर आकाश में विचरण करना है, ना कि पिंजरे में एक जगह कैद हो जाना है। पक्षियों के पंख ऊँची उड़ान के लिए होते हैं। वह खुले आकाश में स्वतंत्र भाव से स्वच्छंद होकर उड़ाना चाहते हैं। उनकी स्वच्छंद उड़ान उनके अंदर एक नई उमंग और ऊर्जा भरती है।
भले ही उन्हें दाने-दाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़े। नीम की कच्ची और कड़वी निंबौरियां खानी पड़ें, लेकिन वह भी उन्हें मंजूर है। लेकिन उन्हें अपनी स्वतंत्रता नहीं खोनी है। उन्हें सोने के पिंजरे में कैद नहीं होना है।
सोने के पिंजरे में रहकर हर तरह की सुख-सुविधा भी उन्हें अपनी आजादी की कीमत पर मंजूर नही है। पक्षी सुख-सुविधा युक्त परतंत्र जीवन से ज्यादा संघर्ष वाले स्वतंत्र जीवन को जीना पसंद करते हैं। इसलिए पिंजरे में बंद पक्षी खुश नहीं है, क्योंकि पक्षियों को परतंत्रता नहीं स्वतंत्रता पसंद है।
पिंजरे ने उन्हें कैद करके रखा है, उनकी स्वतंत्रता को छीन लिया है, इसलिए पिंजरे में कैद होकर पक्षी खुश नहीं है।
‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता कवि शिमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित एक कविता है। इस कविता में कवि ने पिंजरे में बंद पक्षियों की दशा और उनकी व्यथा का वर्णन किया है।
कविता के अनुसार पक्षियों का मूल स्वभाव स्वच्छंद भाव से स्वतंत्र होकर आकाश में उड़ने का है। उनको पिंजरे में कैद करना उनके लिए अत्याचार के समान है। उनके मूल स्वभाव से उन्हें अलग नहीं किया जा सकता।
पक्षियों की उड़ान का दायरा असीमित होता है, वह अपने नन्हें पंखों से आकाश को नाप लेना चाहते हैं, लेकिन उनके मूल प्रकृति से उन्हे अलग करके पिंजरे में कैद कर दिया जाता है।
पक्षी अपनी व्यथा को कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा है। हमें आसमान में उड़ने से मत रोको। वह हमारा मूल स्वभाव है। भले ही हमें रहने के लिए ऐसे घर मत दो, हमारे घोंसले उजाड़ डालो लेकिन हमारे पंखों को मत नोंचो। हमें पंखों की उड़ान को सीमित मत करो। हमें पिंजरे में कैद मत करो। हमें स्वच्छंद रहने दो।
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