लेखक ने नग्न व सजीव मौत किसे कहा था? (पाठ – स्मृति)

लेखक ने नग्न व सजीव मौत साँप को कहा था।

‘स्मृति’ पाठ ‘श्रीराम शर्मा’ द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक निबंध है। इस निबंध के माध्यम से लेखक ने गाँव में बिताए गए बचपन के दिनों का वर्णन किया है।

एक बार लेखक के बड़े भाई ने लेखक को कुछ चिट्टियां मक्खनपुर डाकखाने में डालकर आने के लिए दी जो कि लेखक के घर से थोड़ी दूर पर था। लेखक के भाई ने लेखक को सख्त हिदायत दी कि वह जल्दी से जाए और चिट्ठियाँ डाल आए ताकि शाम की डाक से ही चिट्टियाँ निकल जाएं। उस समय ठंड का मौसम था। लेखक अपने छोटे भाई के साथ और हाथ में एक-एक डंडा लेकर चल पड़ा। लेखक के हाथ में बबूल का डंडा था। क्योंकि लेखक के कुर्ते में जेब नहीं थी इसीलिए लेखक ने वह चिट्ठियाँ अपनी टोपी में रखी और टोपी सर पर पहन ली। लेखक ने रास्ते में पड़ने वाले एक सुनसान सूखे कुएं में लेखक ने एक साँप को देखा। लेखक के अंदर बाल सुलभ चंचलता थी इसी कारण लेखक ने शरारतवश उस साँप को कुएं के पास पड़ा ढेला उठाकर मारने की कोशिश की। इसी कोशिश में जब उसने अपनी टोपी उतारी तो चिट्ठियाँ कुएं में गिर पड़ीं।

भयंकर जहरीले साँप के पास पड़ी चिट्ठियाँ देखकर ही लेखक ने साँप को नग्न व सजीव मौत कहा था। उसके सामने यह समस्या उत्पन्न हो गई थी कि वह उन चिट्ठियों को साँप के पास से कैसे उठाएं यदि वह चिट्ठियों को नहीं उठाएगा तो भाई से बहुत मार पड़ेगी। इसी घटनाक्रम का वर्णन लेखक ने पाठ में किया है।


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