हीरा-मोती के मन में औरत जाति के प्रति सम्मान था। इस बात का पता यह बात उस प्रसंग से स्पष्ट होती है, जब झूरी का साला गया हीरा मोती दोनों बैलों को अपने घर ले गया और वहां पर उन दोनों बैलों पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। वह बैलों को ठीक से चारा-भोजन आदि नहीं देता था और बैल भूखे रह जाते थे। लड़की के मन में बैलों के प्रति दया थी, इसलिए वह बैलों को चुपचाप रोटी दे जाती थी और उस लड़की से बैलों की आत्मीयता हो गई थी।
लड़की की एक सौतेली माँ की जो लड़की पर बहुत मारती थी और उस पर अत्याचार करती थी। यह देख कर मोती ने एक बार मूक भाषा में हीरा से कहा कि अब और नहीं सहा जाता। इस लड़की को उसकी सौतेली माँ इतना मारती है कि मन करता है कि एक सींग को उठा कर फेंक दूं। हीरा बोला जानते थे कि वह लड़की जो हमें रोटियां खिलाती है, यह औरत उसी लड़की की माँ है, वह लड़की बेचारी अनाथ हो जाएगी। मोती बोला तो उसको उठा कर फेंक देता हूँ, जो इस लड़की को मारती है। तब हीरा बोला कि लेकिन औरत पर सींग चलाना मना है, यह तुम भूल जाते हो इससे पता चलता है कि हीरा-मोती के मन में औरत जाति के प्रति सम्मान था।
‘दो बैलों की कथा’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक कथा है, जिसमें उन्होंने हीरा-मोती नाम के दो बैलों के बीच आपसी भाईचारे उनकी स्वामिभक्ति आदि की कथा का वर्णन किया गया है।
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