‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’ – हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्रियों के प्रति प्रेमचंद के सम्मानजनक दृष्टिकोण की भावना स्पष्ट होती है।
प्रेमचंद के तात्कालीन समय में स्त्रियों की स्थिति समाज में जैसी रही हो, लेकिन उनके इस कथन से यह तो अवश्य स्पष्ट हो रहा है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों को सम्मान देने की भावना भी प्रचलित थी। स्त्रियों पर हाथ उठाना बुरा-माना जाता था।
हमारे भारतीय समाज में भी स्त्रियों को देवी तुल्य दर्जा दिया गया है। संस्कृत की उक्ति ‘यत्र नार्येस्तु पूजयन्ते, तत्र रमन्ते देवता’ के माध्यम से भी स्त्रियों के प्रति सम्मान प्रकट किया किया गया है।
कालांतर में स्त्रियों की स्थिति भले ही खराब होती गई हो लेकिन समाज में यह प्रयास भी निरंतर जारी रहे कि स्त्रियों को सम्मानजनक दर्जा मिलता रहे। प्रेमचंद के तत्कालीन समाज में भी स्त्रियों के प्रति सम्मान देने की भावना जरूर बलवती रही होगी इसीलिए स्त्रियों के ऊपर हाथ उठाना बुरा माना जाता होगा। यही प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘दो बैलों की कथा’ के एक पात्र हीरा बैल के कथन के माध्यम से भी स्पष्ट किया है।
इससे पता चलता है कि प्रेमचंद स्त्रियों के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण रखते थे और स्त्रियों के प्रति किसी भी तरह की हिंसा जैसे हाथ उठाना आदि को बुरा मानते थे। इस कथन के माध्यम से प्रेमचंद का स्त्रियों के प्रति सम्मानजनक द़ष्टिकोण प्रकट हो रहा है।
संदर्भ पाठ : दो बैलों की कथा (लेखक मुंशी प्रेमचंद)
Other questions
प्रेमचंद की कहानियों का विषय समयानुकूल बदलता रहा, कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
‘हिंसा परमो धर्म:’ कहानी में कहानीकार कौन सा संदेश देते हैं? (हिंसा परमो धर्मः – मुंशी प्रेमचंद)