इस प्रश्न का सही उत्तर है….
(2) अरस्तु
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व्याख्या
नागरिकता की अवधारणा में अरस्तु ने गुलाम को बाहर रखा था अरस्तु के अनुसार नागरिकता संबंधी अवधारणा में गुलामी का कोई स्थान नहीं है अरस्तु गुलाम को राज्य का नागरिक नहीं मानता था
अरस्तु (384-322 ईसा पूर्व), प्राचीन यूनानी दार्शनिक और राजनीतिक चिंतक, ने नागरिकता की अवधारणा में गुलामों को बाहर रखा। यह उनके राजनीतिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण पहलू था, जो उस समय के यूनानी समाज की संरचना को प्रतिबिंबित करता था।
अरस्तु के विचार में…
- नागरिकता का अर्थ : उन्होंने नागरिक को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जो राज्य के शासन में भाग लेने का अधिकार रखता है।
- गुलामों की स्थिति : अरस्तु ने गुलामों को ‘जीवित उपकरण’ माना और उन्हें नागरिकता के अधिकार से वंचित रखा।
- समाज का वर्गीकरण : अरस्तू ने समाज को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा – स्वतंत्र नागरिक और गुलाम।
- प्राकृतिक दासता का सिद्धांत : अरस्तु ने तर्क दिया कि कुछ लोग स्वभाव से ही गुलाम होते हैं और उनका शासित होना उचित है।
- राजनीतिक भागीदारी : अरस्तू के अनुसार, केवल स्वतंत्र पुरुष ही राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के योग्य थे।
यह दृष्टिकोण आज के मानवाधिकारों और समानता के सिद्धांतों के विपरीत है, लेकिन यह प्राचीन यूनानी समाज की वास्तविकता को दर्शाता था। अरस्तु के इस विचार ने पश्चिमी राजनीतिक चिंतन को लंबे समय तक प्रभावित किया, हालांकि आधुनिक समय में इसे व्यापक रूप से अस्वीकार कर दिया गया है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि अरस्तु के विचार उनके समय के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में थे, और आज के नैतिक मानकों से इनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
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