संवाद लेखन
चिड़िया और शार्क के बीच संवाद
चिड़िया ⦂ शार्क बहन, सुनाओ, तुम्हारे क्या हाल-चाल हैं?
शार्क ⦂ मेरे हाल-चाल ठीक हैं। तुम सुनाओ, कहाँ से घूम कर आ रही हो?
चिड़िया ⦂ बहन मैं बच्चों के लिए दाना लेने गई थी। मेरे बच्चे छोटे-छोटे हैं। वह दाने इकट्ठा करने के लिए अभी उड़ नहीं सकते। वे घोंसले में ही रहते हैं।
शार्क ⦂ बहुत अच्छा। मेरे बच्चे भी छोटे थे, तो मुझे उन्हें भोजन का इंतजाम करना पड़ता था। धीरे-धीरे वह जब बड़े हुए तो अपना भोजन स्वयं करने लगे।
चिड़िया ⦂ बहन तुम तो मांसाहारी हो। तुम छोटी-छोटी मछलियों को खाती हो लेकिन मैं शाकाहारी हूँ। मैं केवल अनाज के दानों को ही खाती हूँ।
शार्क ⦂ हाँ, बहन, मैं मांसाहारी हूँ। लेकिन इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। प्रकृति ने मुझे ऐसा ही बनाया है। तुम्हें प्रकृति ने शाकाहारी होने के लिए बनाया है, इसलिए तुम अनाज के दाने खाती हो।
चिड़िया ⦂ हाँ, बहन तुम सही कह रही हो। मेरा कहने का वह मतलब नहीं है। शायद तुम्हें मेरी बात का बुरा लगा है।
शार्क ⦂ नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं। मुझे तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा। हम सब प्राणियों को जैसा प्रकृति ने बनाया है, हम वैसा ही व्यवहार करते हैं।
चिड़िया ⦂ इस बारे में मैं तुम्हारी राय से पूरी तरह सहमत हूँ।
शार्क ⦂ अब देखो तुम्हें लिए प्रकृति ने हवा में घूमने के लिए बनाया है, तो इसलिए तुम खुले आकाश में सीमाओं के बंधन के परे कहीं पर भी आ जा सकती हो। मुझे प्रकृति ने जल में रहने के लिए बनाया है, मैं इसलिए मैं जल की सीमा तक ही सीमित हूँ। मैं जल से बाहर कहीं पर भी नहीं जा सकती। तालाब, झील, समुद्र आदि में जहाँ पर भी मैं रहती हूँ, वह जिस क्षेत्र तक फैले हैं, मैं वहीं तक ही जा सकती हूँ। जब कि तुम एक देश से दूसरे देश, एक राज्य से दूसरे राज्य, एक शहर से दूसरे शहर आसानी से आ-जा सकती हो।
चिड़िया ⦂ यह बात सही है, लेकिन मैं जल में नहीं रह सकती। मैं जल में एक पल को भी नहीं रह सकती। जो खासियत मेरे अंदर हैं, वे तुम्हारे अंदर नहीं है और जो खासियत तुम्हारे अंदर है, वह मेरे अंदर नहीं है।
शार्क ⦂ काश ऐसा होता कि मैं जल में भी रह पाती और मेरे पास तुम्हारी तरह पंख भी होते। जब जब चाहती मैं आकाश में उड़कर, घूमकर वापस आ जाती। तुम्हें भी प्रकृति ने ऐसा बनाया होता कि तुम भी जल के अंदर जा पातीं तो कितना मजा आता।
चिड़िया ⦂ हाँ, प्रकृति ऐसा बना सकती थी, लेकिन प्रकृति ने किसी भी प्राणी को ऐसा नहीं बनाया है। हर प्राणी की एक सीमाएं हैं। प्रकृति सबको सारी विशेषताएं नहीं दी हैं। शायद प्रकृति ने कुछ सोचकर ही ऐसा किया होगा। जो भी किया है, वह ठीक है। किसी भी प्राणी को हर तरह की विशेषता और शक्ति मिलना ठीक नही होता। मैं तो जैसी हूँ उसमें ही खुश हूँ।
शार्क ⦂ तुम ठीक कह रही हो। प्रकृति ने जिसको जैसा बनाया है, वह ठीक है। मैं ही ज्यादा सोचने लगी थी। हमें अपने हाल में खुश रहना चाहिए।
चिड़िया ⦂ हाँ बहन, हमें अपने हाल में ही संतुष्ट रहना चाहिए। अच्छा चलो मैं चलती हूँ, अंधेरा होने को आया। मेरे छोटे-छोटे बच्चे घोंसले में मेरा इंतजार कर रहे होंगे।
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