युद्ध से पीछे हटना कायरता है, क्षमाशीलता नहीं-अपने विचार बताइए।

विचार लेखन

युद्ध से पीछे हटना  कायरता है

 

कोई नहीं चाहता कि युद्ध हो और उसमें किसी की जान जाए, लेकिन इस सच्चाई से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि अगर सही कारण और अपने हक़ के लिए अगर युद्ध करना पड़े तो उससे भी पीछे नहीं हटना चाहिए। युद्ध तभी होता है जब किसी धैर्य की इंतेहा हो जाती है या फिर जब किसी की इज्ज़त पर बन आती है। लेकिन अगर युद्ध में हमारी सहभागिता जरूरी है तो हमें कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि जब बात अपने मान-सम्मान बचाने की आती है तो कुछ और उससे उपर नहीं है, चाहे वो जीवन ही क्यों न हो।

जब युद्ध क्षेत्र में कूद गए तो फिर सिर पर कफन बांधना ही पड़ता है और उस समय अगर कोई पीछे हटता है तो उसे समस्त बिरादरी से तिरस्कार झेलना पड़ सकता है और उसे ताउम्र कायर कह कर ही बुलाया जाता है। माना कि युद्ध में कई निर्दोष भी मारे जाते हैं और साथ में बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं भी इसका शिकार होती हैं, लेकिन एक योद्धा जब शस्त्र लेकर निकलता है तो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर मैदान में उतरता है। अगर कोई योद्धा यह सोच कर युद्ध से पीछे हटता है कि उसके कारण बहुत से निर्दोष लोग मारे जाएंगे, तो उस योद्धा को कोई बहादुर या महान नहीं कहता, वो यह सोच रखने के बावजूद कायरता ही कहलता है।

इसलिए, अगर युद्ध की ठान ली है और युद्ध क्षेत्र में कदम रख दिया है तो कदम पीछे कभी भी नहीं हटना चाहिए, चाहे वो अच्छाई के लिए हो या बुराई के लिए क्योंकि युद्ध का निर्णय भी तो आपका ही है और अगर आप पीछे हटते है तो आप सदा के लिए कायर की उपाधि से अपमानित होते ही रहेंगे।


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