ढीले-ढाले कुर्ते के अंदर से रहमत ने कागज का एक टुकड़ा निकाल कर लेखक को दिखाया था। उस कागज के टुकड़े पर रहमत की बेटी के हाथों की छाप बनी हुई थी। रहमत के बेटी काबुल में रहती थी। जब रहमत वहाँ से भारत आया था तो वह कागज के टुकड़े पर अपनी लड़की के हाथों की छाप ले आया था। काली स्याही की सहायता से अपनी बेटी नन्हें हाथ की छा वाले कागज को रहमत अपने कुर्ते की जेब में हमेशा संभाल कर रखता था।
जब रहमत लेखक से मिलने आया तो उसने अपने कुर्ते की जेब से वही कागज निकालकर लेखक को दिखाया था। लेखक ने देखा था कि उस कागज पर किसी बच्ची के नन्हे हाथों की छाप थी।
रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित कहानी ‘काबुलीवाला’ कहानी मूल रूप से बंगाली में लिखी हुई कहानी है। इस कहानी में लेखक ने अफगानिस्तान के काबुल शहर से कलकत्ता आए हुए एक अफगानी व्यक्ति रहमत के बारे में वर्णन किया है। सब लोग उसे काबुलीवाला कह कर बुलाते थे। वह काबुल से भारत के कलकत्ता (कोलकाता) शहर में रोजगार की तलाश में आया था। वह काजू, बादाम, किशमिश जैसे सूखे मेवे आदि बेचकर अपना व्यवसाय करता था।
लेखक की लड़की मिनी से काबुलीवाला का अच्छा मेलमिलाप हो गया था और वह लेखक की लड़की को अक्सर मुफ्त में ही काजू बादाम दे जाया करता था। एक बार किसी विवाद के कारण काबुलीवाला को जेल की सजा हो गई और वह कई वर्षों जेल में बिताने के बाद लेखक से मिलने उसके घर पर आया था।