सामान्य तथा निकृष्ट वस्तुओं में अन्तर
अर्थशास्त्र के संदर्भ में सामान्य वस्तुएं अथवा श्रेष्ठ वस्तुएं वह वस्तुएं होती हैं, जो उपभोक्ता की दृष्टि में उपभोग की दृष्टि से श्रेष्ठ होती है और जिन्हें उपभोक्ता आय में वृद्धि होने पर प्राथमिकता देता है। ऐसी वस्तुओं की गुणवत्ता उत्तम होती है। सामान्य वस्तुओं के मूल्य और उनकी मांग के वक्र में धनात्मक संबंध होता है। ऐसी वस्तुओं की आय-मांग का वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है, अर्थात ये वक्र बाएं से दाएं ऊपर की ओर चढ़ता चला जाता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, ऐसी वस्तुओं की उसकी मांग में भी वृद्धि होती है और यदि उपभोक्ता की आय में कमी होती है तो मांग में भी कमी होती है। ऐसी वस्तुएं उपभोक्ता अच्छी आय होने पर खरीदते हैं और उनके लिए ऐसी वस्तुएं महत्व रखती हैं, जिससे उन्हें पूर्ण संतुष्टि का अनुभव होता है।
जैसे देसी घी, रेशमी कपड़े, बासमती चावल, उच्च स्तरीय ब्रांड की वस्तुएं आदि ।
निकृष्ट अथवा निम्न वस्तुओं से तात्पर्य उन वस्तुओं से है जो उपभोक्ता की दृष्टि में कमतर अर्थात हीन होती हैं। ऐसी वस्तुओं को उपभोक्ता केवल आय और खरीदारी सामर्थ्य कम होने पर ही खरीदता है अथवा श्रेष्ठ वस्तुओं की अनुलब्धता में और कोई विकल्प न होने पर ही खरीदता है। निकृष्ट वस्तुओं की आय-मांग वक्र में ऋणात्मक संबंध होता है। अर्थात ये वक्र बायें से दायें ऊपर से नीचे की ओर गिरता जाता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय में कमी होती है वह निकृष्ट वस्तुओं की खरीदने को विवश होता है। जैसे ही उपभोक्ता आय बढ़ने लगती है, वह निकृष्ट वस्तुओं का उपभोग छोड़कर श्रेष्ठ वस्तुओं को खरीदने लगता है।
जैसे देसी घी के स्थान पर वनस्पति घी, रेशमी कपड़े के स्थान पर सूती या खादी कपडे, बासमती चावल के स्थान पर मोटा अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, साधारण चावल आदि।
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