वाणिज्य पत्र-व्यवहार क्या है ? वाणिज्य पत्रों की रूपरेखा समझाए ।

वाणिज्य पत्र-व्यवहार सामान्य पत्र व्यवहार से अलग होता है। व्यापार के क्षेत्र में वाणिज्य से संबंधित कार्यों के लिए किए गए पत्र-व्यवहार को वाणिज्य पत्र-व्यवहार कहते हैं। वाणिज्य पत्र व्यवहार ग्राहक, व्यापारी और विक्रेता के बीच होता है, जो व्यापार के सिलसिले में व्यापार संबंधी किसी कार्य हेतु किया जाता है। वाणिज्य पत्र व्यवहार में ग्राहक द्वारा माल के मूल्य की पूछताछ करना, व्यापारी अथवा और विक्रेता द्वारा माल के मूल्य की जानकारी देना, ग्राहक द्वारा माल की मांग करना, उत्पादक अथवा विक्रेता द्वारा माल का एस्टीमेट बनाकर भेजना, ग्राहक द्वारा माल प्राप्ति की सूचना देना, उसके भुगतान संबंधी सूचना देना, व्यापारी अथवा विक्रेता द्वारा भुगतान प्राप्त संबंधी सूचना देना, माल प्राप्त होने के बाद किसी तरह की कोई समस्या उत्पन्न होने पर ग्राहक द्वारा उत्पादक या विक्रेता को शिकायत भेजना आदि प्रक्रियाएं शामिल हैं।

वाणिज्य पत्र-व्यवहार की सामान्य परिभाषा इस प्रकार है…

वाणिज्य पत्र-व्यवहार व्यापार तथा व्यवसाय के संबंध में ग्राहक और व्यापारी तथा विक्रेता-ग्राहक अथवा व्यापारी अथवा क्रेता और विक्रेता के बीच अथवा विक्रेता तथा व्यापारी के बीच जो पत्र व्यवहार किया जाता है, उसे वाणिज्य पत्र व्यवहार कहते हैं।

वाणिज्य पत्र-व्यवहार का स्वरूप इस प्रकार होता है…
  • यदि कोई व्यापारी विक्रेता पत्र-व्यवहार करता है तो वह अपने संस्थान के नाम से छपे हुए लेटर हेड पर पत्र शीर्ष का उपयोग करते हुए पत्र-व्यवहार करता है। उसके नीचे वह टाइपिंग द्वारा संबंधित विवरण लिखता है। वाणिज्य पत्र व्यवहार में संबोधन का प्रारंभ श्री अथवा सर्वश्री शब्दों से किया जाता है।
  • प्रतिष्ठान के नाम संकेत में व्यापारिक वस्तुओं का संकेत उल्लेखित होता है। उसके बाद प्रेषक का पता आरंभ होता है।
  • व्यवसाय के संकेत के बाद प्रेषक का पता दाहिनी और लिखा जाता है।
  • प्रेषक के पते के नीचे ईमेल, फोन नंबर अथवा फैक्स नंबर आदि जैसे विवरण लिखे होते हैं।
  • उसके नीचे पत्र क्रमांक पत्र संख्या उल्लेखित की जाती है।
  • उसके नीचे पत्र के ठीक सामने और नीचे दिनांक लिखा जाता है।
  • उसके बाद प्रेषित का पता लिखा जाता है। इसका आरंभ ‘सेवा में’ से शुरू किया जाता है और श्री अथवा श्रीमती जैसे आदर सूचक शब्दों के द्वारा प्रस्तुति को संबोधित किया जाता है।
  • उसके बाद प्रतिष्ठान का नाम लिखने के बाद उससे पहले सर्व श्री शब्द लगाया जाता है। उसके बाद प्रेषिती का पूरा पता लिखा जाता है।
  • उसके पश्चात उस विषय एवं संदर्भ लिखे जाते हैं और पत्र का मुख्य मजमून आरंभ किया जाता है।
  • पत्र का कलेवर सामान्यता तीन भागों में विभाजित होता है।
  • प्रथम भाग में सामान्य औपचारिकता वाले विवरण होते हैं।
  • दूसरे भाग में पत्र का मूल और मुख्य उद्देश्य बताया जाता है।
  • तीसरे भाग में पुनः औपचारिक संबोधन का प्रयोग करते हुए पत्र का उचित उत्तर अपेक्षित करने की कामना की जाती है।
  • पत्र की समाप्ति के बाद भवदीय आपका कृपा अभिलाषी, आपका कृपाकांक्षी जैसे जैसे आदर सूचक शब्दों के साथ अपना प्रेषक का नाम लिखा जाता है और प्रेषक के हस्ताक्षर किए जाते हैं।
  • यदि के पत्र के साथ यदि कुछ संलग्न है जैसे चेक, रसीद, सूची, बिल, बीजक आदि तो उसका उल्लेख संलग्न शीर्षक देकर किया जाता है।

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