रैयतवाड़ी व्यवस्था 18वीं शताब्दी में तत्कालीन ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रांत के गवर्नर जनरल सर थॉमस मुनरो द्वारा लागू किया गया था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था 1820 में सर थॉमस मुनरो ने मद्रास और बांबे प्रांत के कई क्षेत्रों के साथ-साथ असम और कूर्ग प्रांतों में लागू की थी।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत किसानों को भूमि का स्वामी माना जाता था और उनके पास भूमि के स्वामित्व अधिकार होते थे यानी कि वह भूमि को बेच सकते थे, उसे गिरवी रख सकते थे अथवा उसे किसी को उपहार में दे सकते थे। तत्कालीन सरकार सीधे किसानों से ही कर की वसूली करती थी और बीच में कोई बिचौलिया नही होता था, जैसाकि पहले की जमींदारी व्यवस्था में होता था। किसानों से वसूल किए गए कर की दर शुष्क भूमि में 50% और आर्द्र भूमि में 60% होती थी। यदि किसानों का भुगतान करने में जो सरकार किसान को जमीन से बेदखल कर देती थी।
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी?
रैयतवाड़ी व्यवस्था किसान यह जमीदारी व्यवस्था से अलग एक तरह की व्यवस्था थी, जिसमें भूमि का स्वामी सीधे किसानों को बना दिया जाता था। पहले की जमींदारी व्यवस्था की तरह कोई बिचौलिया नहीं होता था, लेकिन जिन किसानों को भूमि का स्वामी बनाया जाता थास उन्हें उच्च दर पर कर का भुगतान करना पड़ता था और यह भुगतान नकद रूप में करना पड़ता था ना कि किसी वस्तु के रूप में। जैसा कि किसान पहले भारत की प्राचीन कृषि व्यवस्था में किसान पहले करते थे और राजा को फसल के अंश के रूप में कर का भुगतान करते थे।
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