हड़प्पा सभ्यता में अनेक तरह की मोहरी मिली है। इन मोहरों छोटे-छोटे को पत्थरों पर उकेरा जाता था तथा उन्हें टिकाऊ बनाने के लिए जला दिया जाता था, जिससे वह लंबे समय तक स्थाई रहती थीं।
हड़प्पा सभ्यता अधिकतर मोहरों स्टीटाइट नमक नामक पत्थर से बनी होती थीं। स्टीटाइट पत्थर जल में पाया जाने वाला एक नरम पत्थर होता था। इसके अलावा बहुत सी मोहरें तांबा, टेराकोटा, एगेट, चर्ट, फाइनास जैसी सामग्रियों से भी बनी होती थीं। सोने तथा हाथी दांत की बनी मोहरे भी हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त हुई है।
हड़प्पा सभ्यता में कुछ मोहरे ऐसी भी मिली है, जिनमें में एक छेद होता था। इस छेद में धागा डाला जा सकता था। संभवतः ऐसी मोहरें ताबीज अथवा हार आदि बनाने के लिए उकेरी जाती थीं।
हड़प्पा सभ्यता में जितने भी मोहरे प्राप्त हुई है, उनमें अधिकतर मोहरों में प्रतीक के रूप में कोई चित्र वगैरह उकेरा हुआ होता था अथवा चित्रात्मक लिपि होती थी। यह लिपि दाएं से बाएं अथवा बाएं से दाएं लिखी जाती थी। कुछ मोहरें प्राप्त हुई है जिनमें बाएं से दाएं और दाएं से बाएं दोनों तरह की उकेरी हुई लिपि भी मिली है।
हड़प्पा सभ्यता की मोहरों में अधिकतर मोहरों पर जानवरों के चित्र उकेरे हुए होते थे। इन जानवरों में बाघ, बैल, गैंडे, बकरी, भैंसा, कूबड़ वाला बैल, मगरमच्छ, बाइसन, आईबैक्स जैसे पशुओं के चित्र उकेरे हुए होते थे।
हड़प्पा सभ्यता की मोहरों की विशेषता यह थी की अधिकतम मोहरें चौकोर आकार की होती थी। इन मोहरों में ऊपर की तरफ प्रतीको का समूह अंकित होथा। केंद्र में किसी पशु का चित्र वगैरह उकेरा हुआ होता था और नीचे की तरफ एक या दो से अधिक प्रतीक चिन्ह उकेर गए होते थे।
हड़प्पा सभ्यता में जो सबसे उल्लेखनीय मोहर प्राप्त हुई है, वह ‘पशुपति’ मोहर कहलाती है। यह मोहर स्टीटाइट पत्थर से बनी हुई होती थी। इस मोहर में एक तरफ मानव आकृति थी, जो पालथी मारे हुए किसी देवता की आकृति थी। इतिहासकारों ने माना है कि ये मोहर देवता पशुपति है। ये देवता तीन सींग वाली टोपी पहने हुए हैं। उनके और चारों तरफ जानवर है। एक तरफ हाथी और बाघ तथा दूसरी तरफ गैंडा और भैंसे का चित्र अंकित है। देवता की आकृति के नीचे दो मृग के चित्र भी अंकित हैं। पशुपति नाम की ये मोहर हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रसिद्ध मोहर है।
हड़प्पा काल की इन मोहरों को व्यापारिक कार्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता था। इसके अवाला कुछ अन्य गतिविधियां भी शामिल थीं, जैसे – जैसे किसी माल की कोई एक स्थान से दूसरे स्थान लाने ले जाने या भेजने में मोरों को सील के रूप में या टैग के रूप में प्रयोग किया जाता था।
माल की बोरी को रस्सी से बांध कर गांठ में गीली मिट्टी की सहायता से मोहरों का अंकन कर दिया जाता था, जिससे गीली मिट्टी पर मोहर की छाप पड़ जाती थी। यह कुछ सामान पर टैग अथवा सील का काम करती थी।
मोहरों को जार आदि जैसे बर्तनों को सील करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता था।