सरदारी और बादशाहत में महत्वपूर्ण अंतर इस प्रकार हैं:
शासन प्रणाली
सरदारी : यह एक प्रकार की नेतृत्व व्यवस्था होती थी, जो अक्सर कबीलाई या स्थानीय स्तर पर होती थी। सरदारों का चुनाव समुदाय के लोगों चुनकर किया जाता था। संबंधित कबीले में कोई भी व्यक्ति सरदार हो सकता था। यहाँ पर न तो वंश व्यवस्था होती थी और न ही जाति व्यवस्था होती थी।
बादशाहत : यह एक राजतंत्रीय शासन प्रणाली होती थी, जहाँ एक राजा या बादशाह पूरे राज्य पर शासन करता था। बादशाहत प्रायः वंशानुगत होती थी। इस शासन व्यवस्था में राजा या बादशाह का पुत्र ही राजा या बादशाह बनता था। जनता या प्रजा में से कोई भी सामान्य व्यक्ति बादशाहत पाने का हकदार नहीं होता था।
शासन का क्षेत्र
सरदारी : आमतौर पर छोटे क्षेत्र या समुदाय तक सीमित होती थी। इनका शासन क्षेत्र एक विशेष कबीले या समुदाय तक ही सीमित रहता था जो किसी गाँव आदि तक ही सीमित रहता था। अथवा उस कबीले के भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रहता था।
बादशाहत : बड़े राज्य या साम्राज्य पर शासन करती थी। बादशाहत का दायरा बेहद बड़ा होता था। राजा या बादशाह किसी बड़े राज्य का होता था। इस राज्य में अनेक नगर और गाँव शामिल होते थे।
निर्णय और अधिकार
सरदारी : सरदार का अधिकार अक्सर समुदाय के सदस्यों की सहमति या परंपरा से आता था। वह अपने समुदाय के लोगों पर किसी तरह का कर आदि नहीं लगाता था। जो भी कार्य होते थे, वह समुदाय के लोगों की आपसी सहमति से होते थे। वह अपने कार्य संचालन के लिये समुदाय के लोगों द्वारा मिलने वाले उपहारों पर निर्भर रहता था।
बादशाहत : बादशाह के पास निर्णय लेने की अंतिम शक्ति होती थी। उसका अधिकार वंशानुगत होता था। उसके निर्णण को दैवीय निर्णय माना जाता था। उसका ही निर्णय अंतिम निर्णय होता था। वह अपने निर्णय के लिए अपने मंत्रियो से परामर्श ले भी सकता था लेकिन उस पर इसकी कोई बाध्यता नहीं थी। वह अपने राज्य के संचालन के लिए अपनी प्रजा पर तरह-तरह के कर लगाता था। जो समय-समय पर राज्य के प्रत्येक नागरिक को देने होते थे।
शक्ति का अधिकार
सरदारी : सरदारी व्यवस्था मे कोई सेना नही होती थी। सरदार लोग किसी भी विवाद, युद्ध या संघर्ष से निपटने के लिए अपने समुदाय के लोगों पर ही निर्भर रहता था। ऐसी किसी भी स्थिति में समुदाय के सामान्य जन ही ये कार्य करते थे। वह इसके लिए कोई वेतन आदि भी नहीं देता था।
बादशाहत : बादशाहत में बादशाह एक स्थायी सेना रखता था। इस सेना का उपयोग वह अपने राज्य की प्रजा को नियंत्रित करने और दूसरे राज्यो से होने वाले संघर्षो में करता था। वह सेना को बाकयदा वेतन देता था। सैनिकों की नियमित भर्ती की जाती थी। वह राज्य की रक्षा के कार्य के लिए ही निश्चित होते थे।
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