स्वर संधि
स्वर संधि से तात्पर्य दो स्वरों के आपस में मेल से बनी संधि से होता है। जब दो स्वरों का आपस में मेल होता है तो उन में जो परिवर्तन आता है, वह ‘स्वर संधि’ कहलाती है। आइए आज हम संधि के तीन भेदों में एक भेद ‘स्वर संधि’ और उसके पाँच उपभेदों के बारे में जानेंगे…
संधि-विच्छेद, संधि की परिभाषा
हिंदी व्याकरण में संधि और संधि-विच्छेद एक ऐसी युक्ति है, जिसके माध्यम से दो शब्दों का संयोजन कर के नए शब्द की उत्पत्ति की जाती है और उस नये शब्द को पुनः उसके मूल शब्दों में भी पृथक कर दिया जाता है। यह दोनों प्रक्रियाएं ‘संधि’ एवं ‘संधि-विच्छेद’ कहलाती हैं।
संधि से तात्पर्य दो शब्दों के मेल से है, जिसमें प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण तथा द्वितीय शब्द के प्रथम वर्ण का संयोजन होकर उनमें विकार उत्पन्न होता है और एक नए शब्द की उत्पत्ति होती है। इस प्रक्रिया के कारण परिवर्तित हुए नए शब्द को ‘संधि’ कहते हैं तथा उस शब्द को जब मूल शब्द में पृथक का दिया जाता है, तो वह ‘संधि-विच्छेद’ कहलाता है।
सरल शब्दों में कहें तो संधि का तात्पर्य है, मेल यानी दो शब्दों के परस्पर मेल से उत्पन्न तीसरे शब्द को संधि कहा जाता है। संधि की प्रक्रिया में पहले शब्द का अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण मुख्य भूमिका निभाते हैं। जैसे
- विद्या + अर्थी : विद्यार्थी
- गणेश : गण + ईश
- दिगम्बर : दिक् + अम्बर
- देव + इंद्र : देवेंद्र
संधि के भेद
संधि के तीन भेद होते हैं :
- व्यंजन संधि
- स्वर संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि
स्वर संधि से तात्पर्य दो स्वरों के आपस में मेल से बनी संधि से होता है। जब दो स्वरों का आपस में मेल होता है तो उन में जो परिवर्तन आता है, वह ‘स्वर संधि’ कहलाती है। उदाहरण के लिए
- पुस्तकालय : पुस्तक + आलय
- महोत्सव : महा + उत्सव
- महैश्वर्य : महा + ऐश्वर्य
- अत्याधिक : अति + अधिक
- पावक : पौ + अक
स्वर संधि के उपभेद
स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं, जोकि इस प्रकार हैं :
- दीर्घ स्वर संधि
- गुण स्वर संधि
- वृद्धि स्वर संधि
- यण स्वर संधि
- अयादि स्वर संधि
दीर्घ स्वर संधि
दीर्घ स्वर संधि के नियम इस प्रकार हैं : जब ‘अ’ और ‘अ’ अथवा ‘अ’ और ‘आ’ अथवा अथवा ‘आ’ और ‘अ’ अथवा ‘आ’ और ‘आ’ का मेल होता है तो ‘आ’ बनता है। जैसे
- परमार्थ : परम + अर्थ
- परमात्मा : परम + आत्मा
- विद्यार्थी : विद्या + अर्थी
- महात्मा : महा + आत्मा
जब ‘इ’ और ‘इ’ अथवा ‘इ’ और ‘ई’ अथवा ‘ई’ और ‘इ’ अथवा ‘ई’ और ‘ई’ का मेल होता है तो ‘ई’ बनता है।
- रविन्द्र : रवि + इन्द्र
- गिरीश्वर : गिरि + ईश्वर
- योगीन्द्र : योगी + इन्द्र
- महीश्वर : महीश्वर
जब ‘उ’ और ‘उ’ अथवा ‘उ’ और ‘ऊ’ अथवा ‘ऊ’ का ‘ऊ’ का मेल होता है तो ‘ऊ’ बनता है। जैसे
- वधूत्सव : वधु + उत्सव
- साधूर्जा : साधु + ऊर्जा
- भूत्सर्ग : भू + उत्सर्ग
- भूर्जा : भू + ऊर्जा
दीर्घ संधि को ह्रस्व संधि भी कहा जाता है।
गुण स्वर संधि
गुण स्वर संधि में जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘इ’ अथवा ‘ई’ का मेल होता है, तो ‘ए’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘उ’ अथवा ‘ऊ’ का मेल होता है तो ‘ओ’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ऋ’ का मेल होता है तो ‘अर्’ बनता है। जैसे
- शैलेन्द्र : शैल + इन्द्र
- राजेन्द्र : राजा + इन्द्र
- राजेश : राज + ईश
- महेश : महा + ईश
- पुरषोत्तम : पुरुष + उत्तम
- महोत्सव : महा + उत्सव
- महोर्मि : महा + ऊर्मि
- महोर्जा : महा + ऊर्जा
- राजर्षि : राज + ऋषि
- महार्षि : महा + ऋषि
वृद्धि स्वर संधि
वृद्धि स्वर संधि के नियम के जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ए’ अथवा ‘ऐ’ का मेल होता है, तो ‘ऐ’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ओ’ अथवा ‘औ’ का मेल होता है तो ‘औ’ बनता है। जैसे
- एकैक : एक + एक
- मतैक्य : मत + ऐक्य
- सदैव : सदा + एव
- महैश्वर्य : महा + ऐश्वर्य
- जलोघ : जल + ओघ
- परमौषध : परम + औषध
- महौजस्वी : महा + ओजस्वी
- महौषधि : महा + औषधि
यण स्वर संधि
यण स्वर संधि के नियम के अनुसार जब ‘इ’ अथवा ‘ई’ के साथ दूसरे किसी विजातीय स्वर का मेल होता है तो वह ‘य’ बन जाता है और जब ‘उ’ अथवा ‘ऊ’ के साथ दूसरे किसी विजातीय स्वर का मेल होता है तो वह वह ‘व’ बन जाता है। जब ‘ऋ’ के साथ किसी दूसरे स्वर का मेल होता है, तो ‘र्’ बन जाता है । जैसे
- अत्याधिक : अति + अधिक
- इत्यादि : इति + आदि
- अत्यन्त : अति + अंत
- देव्यागमन : देवी + आगमन
- अन्वय : अनु + अय
- स्वागत : सु + आगत
- अन्वेषण : अनु + एषण
- प्रत्यक्ष : प्रति + अक्ष
- पित्रानुमति : पितृ + अनुमति
- पित्राज्ञा : पितृ + आज्ञा
- मात्राज्ञा : मातृ + आज्ञा
अयादि स्वर संधि
अयादि स्वर संधि के नियम के अनुसार जब ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ के साथ अन्य कोई भी स्वर हो तो ‘ए’ का ‘अय’ बन जाता है, ‘ऐ’ का ‘आय’ बन जाता है, ‘ओ’ का ‘अव’ तथा ‘औ’ का ‘आव’ बन जाता है। जैसे
- नयन : ने + अन
- श्रवण : श्री + अन
- पावन : पौ + अन
- नायक : ने + अक
- नाविक : नौ + इक
- गायक : गै + अक