वीणापाणि का समास विग्रह इस प्रकार होगा…
वीणापाणि : वीणा है जिसके पाणि (हाथ) में अर्थात देवी सरस्वती
समास भेद : बहुव्रीहि समास
स्पष्टीकरण
वीणापाणि मे बहुव्रीहि समास होता है। बहुव्रीहि समास में कोई पद प्रधान नही होता। अर्थात इसमें न तो प्रथम पद प्रधान होता है, और न उत्तर पद प्रधान होता है। इस समास मे दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद का निर्माण करते हैं, जो दोनों पदों के मूल अर्थ से भिन्न अर्थ प्रकट करता है।
बहुव्रीहि समास में दोनों पद किसी तीसरे पद के लिए रूढ़ हो जाते हैं। ऊपर दिए पद ‘वीणापाणि’ में भी वीणा का अर्थ एक वाद्ययंत्र और पाणि का अर्थ हाथ है। लेकिन दोनो पद अपने मूल अर्थ को प्रकट न करके तीसरे पद के रूप में विद्या की देवी सरस्वती के एक नाम के लिए रूढ़ हो गए हैं।
बहुव्रीहि समास के कुछ अन्य उदाहरण..
गजानन – गज के समान आनन है जिनके अर्थात भगवान गणेश
गिरिधर – गिरि (पर्वत) को धारण करने वाले अर्थात भगवान श्रीकृष्ण
नीलकंठ – नीला है जिनका कंठ अर्थात भगवान शिव