विचार/अभिमत
विश्व नागरिक होने की भावना मनुष्य के अंदर मानवता संचार करती है, यह बात बिल्कुल सही और सत्य है। विश्व नागरिक होने का अर्थ है कि मनुष्य पूरी पृथ्वी को अपना घर समझे। उसके अंदर ‘वसुधैव कुटम्बकम्’ की भावना हो। वह पृथ्वी के कल्याण और पृथ्वी के सभी मानवों के प्रति प्रेम भाव से रहे। एक विश्व नागरिक वह होता है जो पूरी पृथ्वी को एक समान समझना है। जो देशों और देशों की सीमाओं के बंधन से परे होकर, जाति-धर्म-नस्ल से परे होकर पृथ्वी के समस्त मनुष्यों को एक समान समझे वह पृथ्वी के हर प्राणी को अपने परिवार का सदस्य ही समझे।
जब कोई व्यक्ति विश्व नागरिक बनता है तो उसके अंदर देश, धर्म, जाति, नस्ल, लिंग आदि के आधार होने भेद मिट जाते हैं। वह संपूर्ण पृथ्वी के सभी नागरिकों को एक समान समझना है और फिर जब उसके अंदर इस तरह के भाव जागृत हो जाते हैं तो वह सच्ची मानवता के गुणों से युक्त व्यक्ति बन जाता है, उसके अंदर सच्ची मानवता का संचार होने लगता है।
अपनी पूरी पृथ्वी के कल्याण के लिए आवश्यक है कि हमें सच्चे विश्व नागरिक बनाने होंगे पृथ्वी के किसी एक क्षेत्र के विकास की नहीं बल्कि संपूर्ण पृथ्वी के कल्याण और संरक्षण की बात करें। जाति-धर्म-नस्ल-भाषा-संस्कृति के आधार पर जो पृथ्वी के जो नागरिक आपस में लड़ रहे हैं, वह लड़ाई बंद करनी होगी।
पृथ्वी के संसाधनों के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाकर पृथ्वी के हर हिस्से के हर संसाधन के संरक्षण का प्रयास करना होगा, पूरी पृथ्वी और पूरी पृथ्वी के मानवों का कल्याण सोचना होगा तभी हम विश्व-नागरिक बन सकेंगे। यही सच्ची मानवता का परिचायक होगा।
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