वाद-विवाद
शिक्षा रोजगारपरक हो या ज्ञानपरक हो।
शिक्षा रोजगारपरक हो या ज्ञान पर अब इस विषय पर पक्ष और विपक्ष में विचार प्रस्तुत हैं।
पक्ष
शिक्षा ज्ञानपरक होनी चाहिए। शिक्षा का अर्थ ही है ज्ञान को प्राप्त करना। शिक्षा सीधे तौर पर ज्ञान से संबंधित होती है। काम धंधा रोजगार तो हर आदमी करता है, चाहे वह छोटा सा मजदूर क्यों ना हो, या बड़ा व्यापारी क्यों ना हो। लेकिन ज्ञानी हर कोई नहीं बन पाता। क्योंकि ज्ञानी बनने के लिए शिक्षित होना पड़ता है।
यदि शिक्षा में ज्ञान नहीं होगा तो शिक्षा का कोई अर्थ नहीं। शिक्षा की प्राथमिकता ज्ञान को प्राप्त करना होती है। शिक्षा ज्ञान प्राप्त करने का ही साधन है। एक शिक्षित व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है। अशिक्षित व्यक्ति को ज्ञानी नहीं कहते। शिक्षा मन में व्याप्त अज्ञानता के अंधकार को मिटाती है और ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित करती है। इसीलिए शिक्षा सदैव ज्ञानपरक होनी चाहिए।
विपक्ष
शिक्षा ज्ञानपरक होनी चाहिए इस बात में कोई संदेह नहीं। शिक्षा का सीधा संबंध ज्ञान से है, लेकिन ऐसे अभियान किस कार्य का जो जीवन में हमेशा हम ही नहीं बना सके। ऐसी शिक्षा भी किस काम की जो हमें हमारी आजीविका योग्य भी ना बना सके। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञानी बनाने के साथ-साथ समर्थ भी बनाना होता है।
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति को इतना समर्थ बना दे कि वह अपने जीवन को सम्मान पूर्वक जी सके। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के अंदर ऐसे गुण एवं कौशल विकसित होने चाहिए कि वह कोई ना कोई रोजगार परक कार्य करके स्वयं को सामर्थ्यनवान बना सके और अपने जीवन को सम्मान पूर्वक जी सके। जब शिक्षा इस तरह का माध्यम बन जाएगी तो शिक्षा की उपयोगिता बढ़ जाएगी। ज्ञानपरक शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित रह जाती है।
किताबी ज्ञान से जीवन की व्यवहारिक समस्याओं से नहीं निपटा जा सकता। जीवन में आ रही समस्याओं से निपटने के लिए व्यवहार कुशल होना आवश्यक है। शिक्षा का स्वरूप किताबी ज्ञान तक ना होकर व्यवहारिकता होना चाहिए। ताकि शिक्षा उपयोगी बन सके। इसलिए हमारे मत के अनुसार शिक्षा ज्ञान पर एक से अधिक रोजगारपरक होनी चाहिए तभी शिक्षा का उद्देश्य सार्थक होगा।