जल संरक्षण का उपयोग
जल संरक्षण आज के समय की मांग है। जल संरक्षण के उपाय अपनाकर हम पृथ्वी पर सीमित मात्रा में उपलब्ध पीने योग्य जल को आने वाली पीढियां के लिए भी सुरक्षित कर सकते हैं। यूँ तो पृथ्वी के पूरे क्षेत्रफल में दो तिहाई से अधिक क्षेत्रफल में जल ही जल है, लेकिन यह जल पीने योग्य नहीं है। पृथ्वी पर जितना भी जल मौजूद है उसका केवल तीन प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। इसी सीमित जल संसाधन पर ही पृथ्वी की पूरी जनसंख्या निर्भर है। जनसंख्या के अनुपात में साफ पीने योग्य जल की बेहद कमी है, इसीलिए जल संरक्षण ऐसी पद्धति है जिसके माध्यम से पीने योग्य साफ जल को संरक्षित करके जमा किया जाता है ताकि भविष्य में उसे उपयोग में लाया जा सके और हर जगह जल उपलब्ध कराया जा सके।
- जल संरक्षण करके वर्षा ऋतु का जल संरक्षित किया जाता है और इस जल का पूरे वर्ष उपयोग किया जाता है, इससे वर्षा ऋतु के न होने पर जल की कमी नहीं हो पाती।
- जल संरक्षण के अन्तर्गत बांध, जलाशय, नहरों आदि का निर्माण करके अत्यधिक जल होने पर बाढ़ को नियंत्रित किया जाता है।
- जल संरक्षण का उपयोग करके सिंचाई योग्य जल को उन क्षेत्रों में पहुंचाया जाता है, जहाँ पर जल की बेहद कमी है, इससे ऐसे क्षेत्रों में भी कृषि की संभावना बढ़ती है, जहाँ पर जल की कमी के कारण कृषि कार्य संभव नहीं हो पाता।
- जल संरक्षण करके भूमिगत जल स्तर को भी बढ़ाया जाता है, जिससे भूमि में नमी बनी रहती है और उस भूमि की कृषि उत्पादकता भी बढ़ती है।
- जल संरक्षण पद्धति के कारण ऐसे क्षेत्रों में भी जनसंख्या बसाई जा सकती है जहाँ पर जल का प्राकृतिक स्रोत न होने के कारण जनसंख्या बेहद कम या न के बराबर होती है, इससे किसी एक क्षेत्र में जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सकता है।
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