“बदलें अपनी सोच” पाठ के आधार पर अगर हम कहें तो युगरत्ना की जगह अगर हम होते तो हम ये भाषण देते। युगरत्ना की जगह अगर मैं होता/होती तो मेरा भाषण इस प्रकार होता…
“प्रिय संसार वासियों हमारी पृथ्वी हमारा घर है। यह हमारा आश्रय स्थल है। यह हमारे जीने का सहारा है। पृथ्वी हमें जीवन में सब कुछ प्रदान करती है। लेकिन जरा सोचिए! हम अपनी पृथ्वी को बदले में क्या दे रहे हैं। पृथ्वी ने हमें क्या नहीं दिया। वह हमें अपनी हर चीज दिल खोल कर देती है। पृथ्वी से ही हमें अनाज, फल-फूल, भोजन, वस्त्र, आवास आदि प्राप्त होता है। लेकिन हम बदले में पृथ्वी को क्या देते हैं। बल्कि हम तो इसी पृथ्वी का विनाश करने पर तुले हुए हैं।
पहले हमारी जो पृथ्वी हर जगह हरी-भरी नजर आती थी। अब वह कंक्रीट के जंगलों से ढक गई है। अब हमारे पृथ्वी से हरियाली गायब होती जा रही है ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं। पृथ्वी पर पानी की कमी होती जा रही है तो समुद्रों का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही है।
आप लोग जरा सोचिए! क्या इसके लिए हम सब मानव जिम्मेदार नहीं हैं? हम सब मानव के अंधाधुंध विकास कार्यों के कारण ही पृथ्वी की यह दशा हुई है। यदि हम समय रहते नहीं चेते और हमने अपनी पृथ्वी को बचाने के प्रयास आज से ही आराम नहीं किए तो एक दिन हमारा विनाश निश्चित है। तब सोचिए! हमारे द्वारा किए गए विकास कार्यों का क्या औचित्य रहेगा। जब तक हमारी पृथ्वी सुरक्षित है, तभी तक हम सुरक्षित हैं। इसीलिए हमें आज से ही अपनी पृथ्वी और उसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रयास आरंभ कर देनी चाहिए। धन्यवाद”
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