लेखक ने गुल्ली–डंडा को सब खेलो का राजा इसलिए कहा क्योंकि गुल्ली–डंडा खेल एक ऐसा खेल है, जिसमें बहुत अधिक महंगे सामान की जरूरत नहीं पड़ती।
लेखक के अनुसार गुल्ली डंडा के खेल में ना तो लॉन की जरूरत पड़ती है और ना ही कोर्ट की। ना ही नेट की और ना ही थापी की। गुल्ली डंडा खेलने के लिए केवल एक डंडा और गुल्ली की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए किसी भी पेड़ से एक टहनी काटकर उसी से गुल्ली और डंडा दोनों बनाए जा सकते हैं।
गुल्ली-डंडा का खेल खेलने के लिए बहुत अधिक लोगों की जरूरत भी नहीं पड़ती। केवल दो लोगों के होने पर भी गुल्ली डंडा का खेल खेला जा सकता है।
लेखक के अनुसार विलायती यानी विदेशी खेलों में सबसे बड़ा ऐब यानी अवगुण यह है कि विलायती खेलों के समान बड़े महंगे होते हैं और इन खेल के समान को खरीदने के लिए कम से कम एक सैकड़ा की जरूरत पड़ती है। इन खेलों को खेलने के लिए बहुत अधिक खिलाड़ियों की भी जरूरत पड़ती है।
लेखक के अनुसार जबकि गुल्ली डंडा का खेल ऐसा है कि बिना हर्र-फिटकरी के रंग चोखा हो जाता है। लेखक के अनुसार हम भारतीय अंग्रेजी चीजे कैसे दीवाने हो गए हैं उनकी हर तरह की जीवन शैली और खेल अपना लिए हैं कि हमें अपनी देसी चीजों और खेलों से अरुचि हो गई है
‘गुल्ली–डंडा‘ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानी है, जिसमें उन्होंने गुल्ली-डंडा जैसे देसी खेल की विशेषताओं को वर्णन किया है।
Other questions
प्रेमचंद की कहानियों का विषय समयानुकूल बदलता रहा, कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
‘हिंसा परमो धर्म:’ कहानी में कहानीकार कौन सा संदेश देते हैं? (हिंसा परमो धर्मः – मुंशी प्रेमचंद)
लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने के गुण नहीं है? (प्रेमचंद के फटे जूते)