लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने के गुण नहीं है? (प्रेमचंद के फटे जूते)

लेखक ने ऐसा इसलिए कहा कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने के गुण नहीं है, क्योंकि लेखक के अनुसार प्रेमचंद में दिखावे  की भावना नहीं थी।

यहाँ पर लेखक का पोशाक में बदलने से तात्पर्य दिखावे की भावना से था। लोग दिखावा करने के लिए ही तरह की पोशाकें बदलते हैं और स्वयं को सुंदर एवं संपन्न दिखाने का प्रयास करते हैं। प्रेमचंद के अंदर यह गुण नहीं था। वह सरल एवं सहज स्वभाव वाले व्यक्ति थे। वह जिस तरह रहते थे, उसी तरह स्वयं को प्रदर्शित करते थे। उनमें व्यर्थ का दिखावा करने की प्रवृत्ति नहीं थी।

अपने फोटो खिंचवाते समय भी उन्होंने जैसी वेशभूषा पहने थी, उसी वेशभूषा में सरल एवं सहज भाव से फोटो खिंचवा लिया। फोटो खींचने के लिए उन्होंने कोई विशेष पोशाक नहीं धारण की, यानी उनमें दिखावा करने की भावना नहीं थी। इसीलिए लेखक ने ऐसा कहा है कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने के गुण नहीं थे।

प्रेमचंद के फटे जूते एक व्यंग्यात्मक निबंध है, जिसकी रचना हरिशंकर परसाई ने की है। इस निबंध के माध्यम से उन्होंने हिंदी साहित्य के महान उपन्यासकार कथाकार प्रेमचंद के अंतिम दिनों की व्यथा का वर्णन किया है।

इस निबंध में उन्होंने बताया है कि अपने अंतिम दिनों में प्रेमचंद किस तरह की आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। उन्होंने व्यंग्य एवं कटाक्ष के माध्यम से समाज के लोगों पर प्रहार करते हुए कहा है कि भले ही प्रेमचंद के नाम पर आज लोग लाखों रुपए कमाते हों, उनकी कहानी उपन्यासों के बल पर स्वयं को संपन्न बना बैठे हो, लेकिन वही प्रेमचंद अपने अंतिम दिनों में अनेक तरह की आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे, लेकिन उन्होंने इस बात की कोई शिकायत नहीं की और ना ही कोई दिखावा किया। वह अपने सादा जीवन को यूं ही जीते रहे।


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