‘चाँदी का जूता’ कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

‘चाँदी का जूता’ कहानी के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम अपने जीवन में जो भी आदर्श स्थापित करें, हमें उन्हें स्वयं भी पालन करना चाहिए। आदर्श को केवल दूसरों की उपदेश देने तक ही सीमित नहीं करना चाहिए बल्कि हमें स्वयं भी उनका दृढ़ता से पालन करना चाहिए।

‘चाँदी का जूता’ कहानी दहेज प्रथा पर आधारित कहानी है। जिसमें लेखक के मित्र दहेज के विरोधी थे और उन्होंने अपने पुत्र के विवाह में दहेज ना लेने का संकल्प लिया था, लेकिन उनकी पत्नी को दहेज चाहिए था। इसलिए अपनी पत्नी की जिद के आगे उन्होंने अपने आदर्शों की तिलांजलि दे दी और वधू पक्ष से दहेज की मांग कर बैठे। इस तरह वह भले ही दूसरों को दहेज ना लेने का उपदेश देते रहे और उन्होंने स्वयं के लिए दहेज न लेने का जो आदर्श स्थापित किया था, लेकिन जब अपने पुत्र के विवाह के समय स्वयं उसका दृढ़ता से पालन करने की बात आई तो वह उसका पालन नहीं कर पाए । ‘चाँदी का जूता’ कहानी समाज के इसी पाखंड पर कठाक्ष करते के साथ-साथ दहेज प्रथा जैसी कुरीति पर भी कुठाराघात करती है।

लेखक के बारे में

‘चाँदी का जूता’ कहानी तेलुगु भाषा के लेखक ‘बालशौरि रेड्डी’ द्वारा लिखी गई एक हिंदी कहानी है। उन्होंने तेलुगु भाषा के अलावा हिंदी भाषा में भी कई कहानियां लिखी हैं

‘बालशौरि रेड्डी’ मूल रूप से तेलुगूभाषी लेखक हैं लेकिन उन्होंने हिंदी में भी लेखन कार्य किया है। वह दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (मद्रास) में लेखन कार्य और संपादन का कार्य करते थे, इसी कारण उन्होंने कई हिंदी कहानियां भी लिखीं। उन्होंने बच्चों की प्रसिद्ध पत्रिका ‘चंदा मामा’ का कई वर्षों तक संपादन कार्य भी किया था। वह भारतीय भाषा परिषद कोलकाता में भी कार्य कर चुके हैं। उन्होंने तेलुगु भाषा में कई रचनाओं के अलावा हिंदी में भी कई कहानियां लिखीं हैं और कई हिंदी कहानियों का हिंदी से तेलुगु भाषा में अथवा तेलुगु कहानियों का हिंदी भाषा में अनुवाद भी किया है।


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