‘चंपा काले अक्षर नहीं चीन्हती’ पाठ में चंपा का पढ़ाई के प्रति दृष्टिकोण उपेक्षा भरा हुआ है, वह पढ़ाई को बहुत अधिक उपयोगी नहीं मानती। जब लेखक दिन भर कुछ ना कुछ पढ़ाई लिखाई करता रहता है तो चंपा को बड़ा ही अचरज होता है। लेखक जब उसे पढ़ने-लिखने की सीख देता है तो वह लेखक को ही ताने-उलाहने देती है। उसे पढ़ना-लिखना पसंद नहीं। चंपा एक भोली-भाली मासूम ग्रामीण बालिका है, जो गाय चराने का काम करती है। वह एक ग्वालन है, उसने कभी भी बचपन में कभी भी पढ़ाई नहीं की, इसीलिए वह पढ़ाई का महत्व नहीं जानती थी। शुरू से पढ़ाई का महत्व पता न होने के कारण, उसकी पढ़ाई के प्रति उपेक्षा का भाव है। वह पढ़ाई को व्यर्थ का कार्य मानती है और उसे पढ़ने लिखने में जरा भी रुचि नहीं है।
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