‘लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धांत’ की अवधारणा का विकास लोकतंत्र के विकास के साथ ही आरंभ हो गया था। लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत का प्रतिपादन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद होने लगा था, जब विश्व में लोकतंत्र अपने विस्तार की ओर बढ़ रहा था। लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत के समर्थकों में अनेक राजनीतिक विद्वान थे। जिनमें विल्फ्रेडो परेटो, रॉबर्ट मिशेल्स, जेम्स बर्नहाम, सी राइट मिल्स, ग्रेटामोनोस्का आदि के नाम प्रमुख हैं।
लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत के अनुसार समाज में दो तरह की श्रेणी के लोग पाए जाते हैं। पहली श्रेणी के लोग वह लोग होते हैं, जो संख्या में गिने-चुने होते हैं और विशिष्ट लोगों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे लोग शिक्षित होते हैं, बुद्धिजीवी होते हैं अपने विषय से संबंधित विद्वान होते हैं। ऐसे लोग महान विचारक भी होते हैं तथा यह लोग प्रबुद्ध वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन लोगों की बुद्धि और चेतना का स्तर समाज के अन्य लोगों से काफी ऊपर होता है। इन लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा भी सामान्य लोगों से अधिक होती है।
इसी कारण ऐसे लोगों को ‘अभिजन’ यानि ‘विशिष्ट जन’ कहा जाता है। लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत में दूसरी श्रेणी के लोग वह लोग होते हैं जो आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस श्रेणी में विशिष्ट लोगों को छोड़कर लगभग सभी लोग समाहित हो जाते हैं। यह बहुसंख्यक समूह है, जिसमें आम जनता होती है। विशाल जनसमूह की यह श्रेणी कुल जनसंख्या का 90 से 95% तक हो सकती है।
लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत की मूल धारणा यह है कि विशिष्ट श्रेणी यानी गिने-चुने लोगों का समूह समूह यानी द्वितीय श्रेणी वाले आम जनसमूह पर शासन करता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अभिजन यानि विशिष्ट लोग विशिष्ट गुणों से युक्त होते हैं। ऐसे लोग सत्ता पर एकाधिकार भी स्थापित करते हैं और सत्ता से जुड़े सारे लाभ भी उठा लेते हैं। इस धारणा का एक पहलू यह भी है कि संगठन अल्पसंख्यक सदैव असंगठित बहुसंख्यक पर शासन करता अथवा उन्हें निर्देशित करता है। लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत की मुख्य विशेषताएं यह है :
- लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत के अनुसार सामान्य लोग योग्य नहीं होते। उनमें गुणों का अभाव पाया जाता है।
- इस सिद्धांत के अनुसार विशिष्ट लोग ही योग्य होते हैं। विशिष्ट लोग अपनी योग्यताओं के बलबूते एकाधिकार स्थापित करते हैं और शक्ति को नियंत्रित करते हैं।
- विशिष्ट लोगों का यह समूह सदैव एक सा नहीं रहता बल्कि इसमें लोग आते जाते रहते हैं।
- बहुत संख्यक जनसमुदाय कम गुणों से युक्त होता है। इनमें नेतृत्व की क्षमता नहीं होती। यह प्रायः अनुसरण करने वाले, आलसी और उदासीन होते हैं।
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