सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान कोऊ थहरानी कोऊ थानहि थिरानी हैं। कहैं ‘रतनाकर’ रिसानी, बररानी कोऊ कोऊ बिलखानी, बिकलानी, बिथकानी हैं। कोऊ सेद-सानी, कोऊ भरि दृग-पानी रहीं कोऊ घूमि-घूमि परीं भूमि मुरझानी हैं। कोऊ स्याम-स्याम कह बहकि बिललानी कोऊ कोमल करेजौ थामि सहमि सुखानी हैं। |
संदर्भ :
यह पंक्तियां रत्नाकर दास द्वारा रचित ‘उद्धव प्रसंग’ शीर्षक ग्रंथ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में उस प्रसंग का वर्णन किया है, जब कृष्ण के प्रेम में पागल गोपियां उद्धव से श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम त्यागने और योग साधना को अपनाने का संदेश सुनती है तो वह व्याकुल होती हैं। कवि ने गोपियों की इसी व्याकुलता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
उद्धव ब्रजभूमि में आकर गोपियों को योग साधना का संदेश देते हैं और कहते हैं कि वह श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को त्याग कर अपने मन को शांत करें और योग साधना को अपनाएं। इससे उन्हें परब्रह्म की प्राप्ति होगी। यह ज्ञान के उपदेश सुनकर गोपियों बेचैन हो जाती हैं। वह सब कुछ सुनकर अपने भौंचक्की हो जाती हैं। उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता। उद्धव के ये वचन सुनकर क्रोध से भर उठती है और क्रोध के कारण कांपने लगती हैं। कुछ गोपियां उद्धव की बातें सुनकर रोने लगती हैं तो कुछ व्याकुल होती हैं। कुछ निराश दिखाई देने लगती हैं। कुछ गोपियों का उत्तेजना के कारण पसीने से भीग गया तो कुछ गोपियां की आँखों से आँसू बह निकले थे। उन्हें उद्धव द्वारा कहे जाने वाली यह बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। उन्हें कृष्ण के प्रेम को त्यागना और योग साधना को अपनाना वाली बातें बिल्कुल भी पसंद नहीं थीं। सारी बातें सुनकर बहुत सी गोपिया बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़ीं। कुछ पागल सी होकर श्याम-श्याम रटने लगीं। कुछ गोपियां सहम गई और एक कोने में सिमट गई ।