अँखियाँ हरि दरसन की भूखी। कैसे रहैं रूपरसराची, ये बतियाँ सुनी रू।। अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब एती नहिं झूखी। अब इन जोग सँदेसन ऊधो, अति अकुलानी दूखी।। ‘बारक वह मुख फेरि दिखाओ, दुहि पय पिवत पतूखी। सूर सिकत हुठि नाव चलायो, ये सरिता है सूखी।। भावार्थ बताएं।

अँखियाँ हरि दरसन की भूखी।
कैसे रहैं रूपरसराची, ये बतियाँ सुनी रू।।
अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब एती नहिं झूखी।
अब इन जोग सँदेसन ऊधो, अति अकुलानी दूखी।।
‘बारक वह मुख फेरि दिखाओ, दुहि पय पिवत पतूखी।
सूर सिकत हुठि नाव चलायो, ये सरिता है सूखी।।

संदर्भ : यह पंक्तियां सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ नामक ग्रंथ के ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग से ली गई है। इन पंक्तियों में उस प्रसंग का वर्णन है, जब उद्धव और गोपियों के बीच संवाद स्थापित हो रहा है। उद्धव गोपियों को योग को अपनाने की शिक्षा दे रहे हैं, जबकि गोपियां श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के विरह में पागल हैं और वह उन्हें उद्धव की ज्ञान भरी बातें जरा भी पसंद नहीं आ रही।

भावार्थ : श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए योग-साधना अपनाने के संदेश को उद्धव के मुख से बार-बार सुनने पर गोपियां उन्हें ताने मारते हुए कहती हैं कि एकदम आप अभी तक हमारी बात को समझ क्यों नहीं पा रहे। आपके इस योग के ज्ञान की हमें आवश्यकता नहीं है। हमारी आँखें तो केवल अपने प्रिय आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए ही पीड़ित हैं। आपके योगशास्त्र की नीरस बातो से हम पर कुछ असर नहीं होने वाला। आपके इन योग एवं ज्ञान के उपदेशों से हमारी समस्या का हल नहीं होने वाला। जो आँखें श्रीकृष्ण के अद्भुत सौंदर्य के रस में डूबी रहती थीं, वह आँखें इन नीरस योग उपदेशों के सुनकर कैसे संतुष्ट हो सकती है। हमें तो केवल श्रीकृष्ण के मथुरा लौटने की प्रतीक्षा थी। हम केवल उनकी राह में ही अपनी पलके बिछाए बैठे उनके वापस आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

हमारी आँखें उनकी राह देखते-देखते भी इतनी नहीं थकी थीं जितनी आपके इन योग संदेशों को देखकर हमारी आँखें व्याकुल हो उठी हैं। आप अपने योग एवं ज्ञान के संदेशों को हमें मत सुनाइए। हमारी आपसे केवल इतनी विनती है कि आप हमें केवल हमारे प्रिय श्रीकृष्ण के दर्शन करा दीजिए। हमें उन पलों के दर्शन करा दीजिए जब वह वन में पत्तों के पात्र में गायों का दूध दुहकर पीते थे। आप हठ मत करो, हम तो सूखी नदियो के समान हैं। जिस तरह सूखी नदियों में बालू में नाव नही चलाई जा सकती उसी प्रकार आपकी ये योग-ज्ञान की बातें हम पर कोई असर नही करने वाली हैं। श्रीकृष्ण के प्रेम रस मे डूबी हम गोपियों को भला योग-ज्ञान की इन बातो के क्या मतलब?


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ये सुमन लो, यह चमन लो, नीड़ का तृण-तृण समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।​ भावार्थ बताएँ।

ज्ञान घटै कोई मूढ़ की संगत ध्यान घटै बिन धीरज लाये। प्रीत घटै परदेश बसै अरु भाव घटै नित ही नित जाये। सोच घटै कोइ साधु की संगत रोग घटै कुछ ओखद खाये। गंग कहै सुन शाह अकब्बर पाप कटै हरि के गुण गाये॥ भावार्थ बताइए।

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