ये सुमन लो, यह चमन लो, नीड़ का तृण-तृण समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।​ भावार्थ बताएँ।

ये सुमन लो, यह चमन लो, नीड़ का तृण-तृण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘रामावतार त्यागी’ द्वारा रचित कविता ‘और भी दूं’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने देश के प्रति अपना सर्वस्व त्याग देखने की भावना को प्रकट किया है। इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार होगा…

भावार्थ :  कवि कहते हैं कि वह अपने देश के प्रति वे सभी फूल, वे सभी बगीचे, मेरे घर रूपी घोंसला का तिनका-तिनका अपने देश की सेवा में अर्पित कर देना चाहता हूँ। मेरे पास जो कुछ भी है, वह सब मेरे देश के लिए है। मेरी तो यही आकांक्षा है कि जितना से अधिक से अधिक अपने हो सके अपने देश के लिए अर्पण कर सकूं।

विशेष टिप्पणी : कवि ने इस कविता इन पंक्तियों के माध्यम से देश के प्रति अपना सर्वस्व समर्पित करने की बात कही है। यहाँ पर नीड़ यानि घोंसला से तात्पर्य है, उसके घर से है। घर से तात्पर्य मकान से नहीं बल्कि उसकी पूरी सामाजिक संरचना से है। कवि अपना सब कुछ अपने देश के लिए समर्पित कर देना चाहता है।


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