ज्ञान घटै कोई मूढ़ की संगत ध्यान घटै बिन धीरज लाये। प्रीत घटै परदेश बसै अरु भाव घटै नित ही नित जाये। सोच घटै कोइ साधु की संगत रोग घटै कुछ ओखद खाये। गंग कहै सुन शाह अकब्बर पाप कटै हरि के गुण गाये॥ भावार्थ बताइए।

ज्ञान घटै कोई मूढ़ की संगत ध्यान घटै बिन धीरज लाये।
प्रीत घटै परदेश बसै अरु भाव घटै नित ही नित जाये।
सोच घटै कोइ साधु की संगत रोग घटै कुछ ओखद खाये।
गंग कहै सुन शाह अकब्बर पाप कटै हरि के गुण गाये॥

संदर्भ : ये पंक्तियां कवि रीतिकाल के कवि ‘गंग’ के दोहे की हैं। इस दोहे के माध्यम से कवि ने ये स्पष्ट करने का प्रयत्न करना चाहिए कि व्यक्ति की संगत करनी चाहिए और किनकी नही करनी चाहिए। इस दोहे का भावार्थ इस प्रकार है…

भावार्थ : कवि का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति ज्ञानी व्यक्ति मूर्ख व्यक्ति की संगत में पड़ जाता है, तो उसके ज्ञान में कमी आना स्वाभाविक है, उसका ज्ञान घटता जाता है। इसी तरह ध्यानी व्यक्ति अर्थात जो ध्यान-साधना में लीन व्यक्ति है, वह किसी ऐसे व्यक्ति की संगत में पड़ जाता है, जो अधैर्यवान हैं चंचल स्वभाव का है, जिसमे धीरज धारण करने की क्षमता नहीं है, तो ऐसे व्यक्ति की संगत करने से ध्यान भी भटकेगा और वह अपनी एकाग्रता को खो सकता है।

इस प्रकार जो व्यक्ति अपने घर से दूर सदैव परदेश में निवास करता है, उसकी अपने प्रियजनों के साथ प्रेम कम होता जाता है। जो व्यक्ति किसी व्यक्ति के घर रोज-रोज तो उसका मान-सम्मान घटता जाता है, अर्थात किसी के घर रोज नहीं जाना चाहिए।

अब कवि सार्थक बात भी कहते है। कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति निरंतर साधु की संगत में रहता है, उसके दूषित विचारों में कमी आती है। साधु की संगत से उसके विचार शुद्ध होते हैं। जो व्यक्ति अपने भोजन पर नियंत्रण रखता है, संतुलित भोजन करता है उसे किसी भी तरह की दवाई खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती और उसका रोग भी घटता जाता है। कवि गंग कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रभु के गुणगान को हमेशा गाता रहता है, हमेशा प्रभु का चिंतन करता रहता है, उसके पाप निरंतर घटते जाते हैं।

विशेष व्याख्या

यहाँ पर कभी गंग ने सकारात्मक और नकारात्मक दोनों बातों को स्पष्ट किया है। कवि ने यह बात कहने का प्रयास किया है कि ज्ञानी व्यक्ति को मूर्ख की संगत नहीं करनी चाहिए नही तो ज्ञानी व्यक्ति भी अपने ज्ञान को हानि पहुँचा सकता है। ध्यान व्यक्ति यानी ध्यान साधना में लीन जाने वाले व्यक्तियों को चंचल व्यक्तियों की संगत नहीं करनी चाहिए नही तो ध्यानी व्यक्ति का मन भी भटक सकता है। हमेशा अपने घर से दूर परदेस में ही नहीं रहना चाहिए नही तो अपने परिवार जनो के प्रति प्रेम कम हो सकता है। किसी के भी घर रोज नहीं जाना चाहिए नहीं तो रोज-रोज किसी के घर जाने से वहाँ पर मान सम्मान होता है।

कवि ये भी कहते हैं कि हमेशा साधु की संगत करनी चाहिए, इससे विचार शुद्ध होते हैं। संतुलित भोजन करना चाहिए। अपनी जिह्वा पर नियंत्रण रखना चाहिए। इससे किसी औषधि को खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती और सारे रोग मिटाते जाते हैं। अंत में कवि कहते हैं कि हमेशा भगवान का ध्यान मनन करते रहना चाहिए इससे व्यक्ति के विचार शुद्ध होते हैं और उसके सारे पापों का क्षय होता है।


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