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मंगोल सेना की सबसे बड़ी इकाई में कितने सैनिक शामिल थे?

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मंगोल सेना की बड़ी इकाई में लगभग 10000 सैनिक शामिल होते थे। मंगोल सेना की इस बड़ी इकाई को ‘तुमन’ कहा जाता था।

‘तुमन’ नाम की इस इकाई में सैनिकों की संख्या 10000 के आसपास होती थी। इन सैनिकों में मंगोलों के अनेक कुलों व कबीलों के सैनिक शामिल होते थे। यह मंगोल सेना की सबसे बड़ी इकाई होती थी। इसके नीचे मंगोल सेना की छोटी इकाइयां होती थीं। यह छोटी सैनिक टुकड़ियों चंगेज खान ने अपने पुत्रों को अलग-अलग क्षेत्रों का अधिकार देने के लिए बनाई थीं। इन्हें उनके ‘नोयान’ कहा जाता था।

मंगोल सेना में कठोर अनुशासन पर और अधिक जोर दिया जाता था। इतना कठोर अनुशासन था कि अपने अधिकारी की अनुमति के बिना सैनिक अपने समूह से बाहर भी नहीं जा सकते थे और यदि वे ऐसा करते भी तो उन्हें कठोर दंड दिया जाता था। मंगोल सेना की यह एकीकृत सेना तेरहवीं शताब्दी के आसपास चंगेज खान ने विकसित की थी।


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‘राष्ट्रभाषा’, ‘राजभाषा’ और ‘संपर्कभाषा’ भाषा के इन तीनों रूपों में अतंर स्पष्ट कीजिए।

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‘राष्ट्रभाषा’, ‘राजभाषा’ और संपर्क भाषा’ के तीनों रूपों में मुख्य अंतर यह है कि राष्ट्रभाषा वह भाषा होती है, जो देश की सबसे मुख्य भाषा होती है, उसे देश के अधिकांश व्यक्ति बोलते हैं। उस भाषा को किसी पूरे देश में सम्मान प्राप्त होता है और वह भाषा देश की भाषा के पहचान के तौर पर मानी जाती है। ऐसी भाषा को राष्ट्रभाषा कहा जाता है । ये भाषा आधिकारिक रूप से सरकार द्वारा राष्ट्रभाषा घोषित कर दी जाती है। राजभाषा वह भाषा होती है जो सरकार द्वारा सरकारी कामकाज का कार्य करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। किसी भी देश की सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से सरकारी कामकाज के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा ही राजभाषा कहलाती है। राजभाषा के लिए आवश्यक नही कि वह राष्ट्रभाषा हो। हालाँकि अधिकांश देशों की राष्ट्रभाषा ही राजभाषा होती है। संपर्क भाषा वह भाषा होती है, जिसे सामान्य वर्ग से संबंधित व्यक्ति एक दूसरे से बातचीत के लिए प्रयोग में लाते हैं। संपर्क भाषा एक भाषा वाले व्यक्ति का दूसरी भाषा वाले व्यक्ति से संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संपर्क भाषा भाषा अलग-अलग क्षेत्रों के बीच संपर्क का कार्य करती है।


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इतिहासकार से क्या अभिप्राय होता है? विस्तार से बताएं।

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इतिहासकार से अभिप्राय उस व्यक्ति से होता है, जो इतिहास के अध्ययन में विशेषज्ञता रखता है। अपनी विशेषज्ञता के आधार पर तथा इतिहास के संबंध में प्राप्त तथ्यों के आधार पर वह इतिहास संबंधी पुस्तकों और लेखों की रचना करता है। इतिहासकार बनने के लिए व्यक्ति को वर्षों तक इतिहास का अध्ययन करना पड़ता है तथा प्रमाणिक तथ्यों को खोजना पड़ता है। इन प्रमाणिक तथ्यों तथा अतीत के गहन अध्ययन के आधार पर इतिहासकार पिछले इतिहास के बारे में लिखता है। इतिहासकार बनने के लिए इतिहास के संबंध में रुचि होनी चाहिए तथा अतीत को समझने की बौद्धिक क्षमता होनी चाहिए। इसके अलावा तथ्यों की प्रमाणिकता की पुष्टि करने का कौशल भी एक इतिहासकार के लिए आवश्यक है। यह सब गुण के होने पर ही वह सही और सटीक इतिहास लिख सकता है। हम सबने अपनी पाठ्य पुस्तकों में जो इतिहास पढ़ा है, वह किसी ने किसी इतिहासकार द्वारा ही लिखा गया है। इतिहासकार कोई एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह हो सकता है।


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कबीर सुमिरन सार है, और सकल जंजाल। आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल।। अर्थ बताएं?

कबीर सुमिरन सार है, और सकल जंजाल।
आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल​।।

अर्थ : कबीरदास कहते हैं कि हरि यानि भगवान के नाम का स्मरण करना ही इस संसार में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य है। भगवान के नाम के स्मरण करने के अलावा अन्य सभी मार्ग कष्टों भरे हैं। यही संसारिक एक दुखों का कारण हैं। कवि ने भगवान के नाम के स्मरण के अतिरिक्त शुरू से लेकर आखिर तक चलकर सब जांच-परख लिया है और उन्होंने पाया है कि यह सभी रास्ते दुख भरे हैं। ये सभी सांसारिक रास्ते दुखों का कारण है, इसलिए ईश्वर के नाम के स्मरण करना ही सबसे श्रेष्ठ कार्य है। यही सभी दुखों से मुक्ति दिलाएगा। कबीर के कहने का तात्पर्य यह है कि साधना और भक्ति का मार्ग ही सर्वोत्तम उपाय है, जिससे संसार के दुखों से छुटकारा मिल सकता है। सांसारिक दुखों और कष्टों से छुटकारा पाने के लिए ईश्वर की भक्ति के पथ पर चलना ही सर्वोत्तम उपाय है, यह बात उन्होंने जांच परख कर कही है।


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कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।

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हमारा देश विकसित है या विकासशील?

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हमारा देश विकासशील देश है। हमारा देश भारत एक विकासशील देश है, क्योंकि यह विकसित देश के मानकों पर अभी खरा नहीं उतर पाया है। किसी भी विकसित देश के कुछ निश्चित पैमाने होते हैं। वहाँ पर जीवन प्रत्याशा कितनी है? प्रति व्यक्ति आय कितनी है? देश की अर्थव्यवस्था कैसी है? वहाँ के लोगों का जीवन स्तर कैसा है? देश की आधारभूत संरचना कैसी है? जन सुविधा की सारी प्रणाली कैसी है? इन सभी मानकों के आधार पर किसी देश को विकसित देश माना जाता है। हमारा देश इस विषय में अभी काफी पीछे है और विकासशील है यानी विकास की ओर अग्रसर है। वह अभी विकसित देशों की श्रेणी में नहीं है। भारत में प्रति व्यक्ति आय विकसित देशों की प्रति व्यक्ति आय के जितनी नहीं है। भले ही भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान समय में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत अभी भी विकसित देशों के संमकक्ष नहीं है। इसलिए हमारा देश विकसित देश नहीं बल्कि विकासशील देश है।


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अपने क्षेत्र के सरकारी अस्पताल की सुविधाओं को सुधारने के लिए अपने क्षेत्र के विधायक को पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

सरकारी अस्पताल की सुविधा सुधारने के लिए विधायक को पत्र

दिनाँक : 1 जून 2024

 

सेवा में,
श्रीमान विधायक महोदय,
रूपनगर विधानसभा क्षेत्र,
रूप नगर (उत्तम प्रदेश)

विषय : सरकारी अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं को सुधारने के संबंध में

 

माननीय विधायक महोदय,

मेरा नाम सुमित आहूजा है। मैं रूपनगर की जनता विहार कॉलोनी का निवासी हूँ। हमारी जनता विहार कॉलोनी के पास एक बड़ा सरकारी अस्पताल है, जो पूरे रूप नगर का एकमात्र सरकारी अस्पताल है। इस सरकारी अस्पताल में सुविधाओं के नाम पर बेहद कम सुविधाएं हैं। कहने को तो यह पूरे रूप नगर का सरकारी अस्पताल है, लेकिन यहां पर सुविधाओं की संख्या नाम मात्र की है। पूरे रुपनगर शहर से मरीज इसी अस्पताल में इलाज कराने के लिए आते हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव में उन्हें पर्याप्त इलाज नहीं मिल पाता। डॉक्टर और अस्पताल स्टाफ को शिकायत करने पर वह सुविधाओं के अभाव का हवाला देखकर हाथ खड़े कर लेते हैं।

पर्याप्त इलाज न मिल पाने के कारण हमारे रुपनगर शहर के लोगों को पास चंदनपुर शहर के सरकारी अस्पताल में जाना पड़ता है अथवा किसी निजी अस्पताल में महंगा इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

विधायक जी, आप हमारे क्षेत्र के विधायक हैं। हमारे क्षेत्र के विकास की आशा में ही हमने आपको वोट दिया  था। इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि हमारे रूपनगर के एकमात्र सरकारी अस्पताल में सुविधाओं को बढ़ाने के लिए प्रयास करें और स्वास्थ्य विभाग को इस संबंध में निर्देश दें ताकि हम सभी निवासी अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठा सके और हमें अपनी बीमारियों के उपचार के लिए दूर किसी अस्पताल में नहीं भटकना पड़े।

आशा है आप मेरे अनुरोध पत्र पर विचार करेंगे और सरकारी अस्पताल में सुविधाओं को बढ़ाने हेतु शीघ्र ही सार्थक कदम उठाएंगे।

धन्यवाद,

भवदीय,
सुमित आहूजा,
ए-54, जनता विहार कॉलोनी,
रूपनगर (उत्तम प्रदेश)


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आप अपने आपको कक्षा सात की छात्रा मानते हुए विद्यालय में छात्राओं के शौचालय की सफाई करवाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय को प्रार्थना पत्र लिखिए।

समाज में व्याप्त आपराधिक प्रवृत्तियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए जनसत्ता के सम्पादक को एक पत्र लिखिए।

इससे पहले अमित को मीनू कहाँ मिली थी? क्या उस दिन मीनू से उसकी बात हो सकी थी? यदि नहीं, तो क्यों?

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इससे पहले अमित को मीनू तब मिली थी जब अमित अपने माता-पिता के साथ मीनू को देखने आया था और विवाह की बात करने आया था। मीनू को देखते ही अमित ने उसे पहली नजर में ही पसंद कर लिया था। अमित को मीनू की सादगी और गुण बेहद पसंद आए। वह एक ऐसी ही लड़की चाहता था जो उसके माता-पिता के साथ ठीक प्रकार से रह सके और उनका सम्मान कर सके। उस दिन अमित से मीनू की बात नहीं हो सकी क्योंकि वे लोग विवाह का संबंध तय करने आए थे। अमित एवं मीनू के माता-पिता ही आपस में बात करते रहे थे। अमित के माता-पिता मीनू के देखकर विवाह के बारे में बाद में जवाब देने की बात कहकर वहाँ से चले आए। बाद में अमित के माता-पिता ने मीनू के साथ विवाह करने से मना कर दिया, क्योंकि उन्हें अधिक दहेज लाने वाली दूसरी लड़की मिल रही थी।

संदर्भ पाठ :

नया रास्ता – सुषमा अग्रवाल


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यदि अरुणा उन दोनों बच्चों की देखभाल नहीं करती, तो उन बच्चों के साथ क्या-क्या हो सकता था?

कैलाश गौतम की कविता ‘नौरंगिया’ की व्याख्या कीजिए।

आप पावनी है। आप छुट्टियों में गुजरात घूमने का कार्यक्रम बना रही हैं। सरदार पटेल की प्रतिमा भी देखना चाहती है। आपने जो कार्यक्रम बनाया है, उसमें क्या सुधार हो सकता है। अपने चचेरे भाई को लगभग 100 शब्दो में पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

चचेरे भाई को छुट्टियों में गुजरात यात्रा संबंधी कार्यक्रम के बारे में पत्र

 

दिनांक : 23 मई 2024

 

प्रिय भाई प्रवीन,
कैसे हो?

हम लोग अगले हफ्ते गुजरात घूमने जा रहे हैं और वहाँ पर संसार की सबसे ऊंची प्रतिमा सरदार पटेल की प्रतिमा भी देखेंगे। हमारे इस कार्यक्रम में अब हमें कुछ बदलाव करना होगा। इसी बारे में मैं तुम्हे यह पत्र लिख रही हूँ। अब कार्यक्रम में कुछ सुधार करने की आवश्यकता है ताकि हम छुट्टियों का पूरा आनंद ले सकें।

हम लोग अगले हफ्ते ही गुजरात घूमने जाने वाले हैं और वहाँ पर अहमदाबाद के प्रमुख स्थलों का दर्शन करेंगे तथा सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा भी देखेंगे। इसके अलावा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में भी जाएंगे। हमारे कार्यक्रम में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़ गई है। हमारी गुजरात के लिए ट्रेन का जो टिकट सुबह दिल्ली से अहमदाबाद का है, वह रात में अहमदाबाद पहुंचेगी। इस तरह अगले दिन ही हमें अहमदाबाद घूमने को मिल पाएगा।

मैंने एक दूसरी ट्रेन के बारे में पता किया है जो दिल्ली से रात में चलती है और सुबह अहमदाबाद पहुंचा देगी। उस ट्रेन में अभी टिकट उपलब्ध हैं। मैंने टिकट बुक करा दिए हैं। हम रात में ट्रेन में बैठकर अगले दिन सुबह अहमदाबाद पहुंच जाएंगे और सुबह ही फ्रेश होकर अहमदाबाद घूम सकते हैं। हम लोग रात में ट्रेन में सो लेंगे जिससे हमें आराम भी मिल जाएगा। ऐसा करने से हमे एक दिन अतिरिक्त मिल जाएगा और हमारे समय की बचत होगी। इस अतिरिक्त एक दिन का उपयोग हम घूमने में कर सकते हैं। इसीलिए मैं तुम्हें यह पत्र लिख रही हूँ।

मैंने इस टिकट बुक कर दिए हैं, जो पुराने टिकट हैं, वह तुम्हारे पास हैं। तुम उन्हें कैंसिल करवा देना। टिकट आज ही कैंसिल करवा देना ताकि पूरे पैसे रिटर्न मिल जाए।

अब यात्रा वाले दिन सुबह दिल्ली स्टेशन रेलवे स्टेशन पर मिलेंगे। ट्रेन का समय सुबह 6:30 बजे है। मैने टिकट की फोटोकापी पत्र के साथ लगा दी है।

तुम्हारी बहन
पावनी


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आने वाली वार्षिक परीक्षा की तैयारी के लिए अपनी छोटी बहन को प्रेरक पत्र लिखिए​।

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आजकल महँगाई बढ़ती ही जा रही है। इससे परेशान दो महिलाओं की बातचीत संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद

आजकल बढ़ती हुई महँगाई से परेशान दो महिलाओं की बातचीत

 

महिला 1 क्या हुआ रमा, इतनी परेशान होकर क्यों बैठी हो ?

महिला 2 ⦂ परेशानी की बात है, सोनू की मम्मी, आए दिन महँगाई बढ़ती ही जा रही है।​

महिला 1 ⦂ बात तो सही कह रही हो, आज के समय में सब कुछ महंगा हो रहा है।​ बचत तो कुछ हो नहीं पाती है।​

महिला 2 ⦂ आजकल तो कुछ नहीं बचा पाते है, सब रोज़ के घर खर्च में निकल जाता है।​

महिला 1 ⦂ सरकार ने बहुत महँगाई कर रखी है और नौकरियां दे नहीं रहे है।​

महिला 2 ⦂ मुझे तो समझ नहीं आता कि बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी आगे ? महंगाई का यही हाल चलता रहा तो, हम सब का भविष्य खराब है।​

महिला 1 ⦂ मुझे हर दिन बहुत चिन्ता होती है कि कैसे सब कुछ होगा ।​

महिला 2 ⦂ सब कुछ महंगा हो रहा है, सब्जी से लेकर कपड़े, घर, पेट्रोल सब के दम बढ़ते ही जा रहे है।​

महिला 1 ⦂ सरकार भी कुछ नहीं करने वाली है, अब ऐसे ही जीवन व्यतीत करना पड़ेगा।​


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पिकनिक की योजना बनाते हुए भाई-बहन के बीच संवाद लिखिए।

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अव्यय क्या हैं? अव्यय की परिभाषा, अव्यय के भेद जानें। (हिंदी व्याकरण)

अव्यय क्या हैं? अव्यय की परिभाषा, अव्यय के भेद

भूमिका

हिंदी व्याकरण में अव्यय का अलग महत्व है। अव्यय अविकारी शब्दों की श्रेणी में आते हैं, जिनका हिंदी व्याकरण में प्रयोग बहुत ही सामान्य है। अव्यय क्या होते हैं? अव्यय की क्या परिभाषा है? अव्यय को कैसे पहचाना जा सकता है? अव्यय के कितने भेद होते हैं? अव्यय के क्या उदाहरण हैं? आइए समझते हैं…

अव्यय की परिभाषा

अव्यय से तात्पर्य उन अविकारी शब्दों से होता है, जिनमें वचन, लिंग, कारक, काल आदि की दृष्टि से कोई भी परिवर्तन ना होता हो। अर्थात अविकारी शब्द वह शब्द कहलाते हैं, जो ना तो वचन की दृष्टि से बदलते हैं, ना ही कारक की दृष्टि से बदलते हैं, ना ही उनमें काल का परिवर्तन किया जा सकता है और ना ही उनमें में लिंग की दृष्टि से परिवर्तन किया जा सकता है। जैसे

अव्यय के भेद

अव्यय के पाँच भेद होते हैं, जोकि इस इस प्रकार हैं…

  • क्रिया-विशेषण अव्यय
  • संबंधबोधक अव्यय
  • समुच्चयबोधक अव्यय
  • विस्मयादिबोधक अव्यय
  • निपात अव्यय

अव्यय के भेदों की व्याख्या

अव्यय के इन पाँच भेदों की व्याख्या इस प्रकार हैं..

क्रिया-विशेषण अव्यय

क्रियाविशेषण अव्यय से तात्पर्य उन अव्यय से होता है, जो किसी क्रिया की विशेषता को प्रदर्शित करते हैं। जैसे वह बालक बड़ा तेज से दौड़ रहा है। तुम थोड़ा कम झूठ बोला करो। क्रिया-विशेषण अव्यय के चार भेद होते हैं।

  • कालवाचक क्रिया-विशेषण
  • स्थानवाचक क्रिया-विशेषण
  • रीतिवाचक क्रिया-विशेषण
  • परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण

कालवाचक क्रिया-विशेषण

कालवाचक क्रिया-विशेषण से तात्पर्य होते हैं, जो समय अथवा काल को प्रदर्शित करते हैं। कालवाचक क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।

जैसे… सुबह, शाम, कभी-कभी, प्रतिदिन, परसों, आज, कल, अब, कब आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

राधा प्रतिदिन सुबह पाँच बजे उठ जाती है।
राहुल कल घूमने जा रहा है।
तुम मेरे घर खाना खाने कब आओगे?
आजकल कम आयु में हृदयाघात मामले बहुत बढ़ते जा रहे हैं।

स्थानवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय

स्थानवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय से तात्पर्य उन अव्यय से होता है, जो किसी स्थान विशेष का बोध कराते हैं।

जैसे… यहाँ, वहाँ, कहाँ, इधर-उधर, ऊपर-नीचे, अंदर, बाहर आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

मोहन यहाँ पर रहता है।
इतनी भरी गर्मी में तुम कहाँ जा रहे हो?
अंदर जाकर मेरे लिए पानी ले आओ।
इधर-उधर मत घूमो।

रीतिवाचक क्रिया-विशेषण 

रीतिवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय से तात्पर्य उन क्रिया विशेषण से होता है, जो क्रिया करने की विधि का बोध कराते हैं। अर्थात क्रिया किस तरह से संपन्न की गई, इस बात का बोध रीतिवाचक क्रिया विशेषण अव्यय कराते हैं।

जैसे… धीरे-धीरे, ठीक-ठाक, ध्यानपूर्वक, तेज, हौले-हौले, जल्दी-जल्दी इत्यादि

उदाहरण हेतु वाक्य

धीरे-धीरे चलो नहीं तो गिर जाओगे।
रमेश ने अपने पिता के पास का बैठकर ध्यानपूर्वक रामायण सुनता है।
तुम यहाँ पर कैसे आए?

परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण

परिमाण क्रिया-विशेषण अव्यय से तात्पर्य उन अव्यय से होता है, जो कि किसी क्रिया करने की मात्रा, परिमाण या नाप-तोल आदि का बोध कराते हैं।

जैसे… ज्यादा. थोड़ा, जरा, अधिक, बिल्कुल, जरा सा,

उदाहरण हेतु वाक्य

झूठ कम बोला करो, नुकसानदायक होगा।
तुम बहुत खाना खाने लगे हो इसीलिए मोटे होते जा रहे हो।
बहुत अधिक नही बोलना चाहिए।
यदि तुम्हारे पास थोड़ा सा समय हो तो तुम्हे कुछ कहूँ।

संबंधबोधक अव्यय

संबंधबोधक अव्यय से तात्पर्य उन शब्दों से होता है, जो किसी संज्ञा व सर्वनाम के तुरंत बाद आकर उस संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द का संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से कराते हैं। ऐसे शब्दों को संबंधबोधक अव्यय कहते हैं।

जैसे… पीछे से, दूर से, सामने, की ओर, बाहर, तुल्य, सदृश आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

मेरे घर के पीछे एक विशाल मैदान है।
मुंबई यहाँ से दूर है।
इंडिया गेट के सामने कर्तव्य पथ है।
तुम जिसे ढूंढ रहे हो गए वह बाजार की ओर गया है।

समुच्चयबोधक अव्यय

समुच्चयबोधक अव्यय से तात्पर्य उन अव्यय से होता है, जो दो या दो से अधिक शब्दों, वाक्यांशों अथवा वाक्य को आपस में जोड़ने का कार्य करते हैं अथवा दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्य को अलग होने का कार्य करते हैं। ऐसे अव्यय को समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।

जैसे… और, एवं, तथा, या, तथा, किंतु, परंतु, इसलिए, लेकिन, वरना आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

माता और पिता दोनों पूजनीय होते हैं।
मैं जल्दी घर आ गया क्योंकि मेरे सर में दर्द हो रहा था।
तुम खूब मेहनत करो ताकि तुम अपनी कक्षा में प्रथम आ सको।
वह खूब तेज दौरा फिर भी दौड़ में चौथे स्थान पर ही रहा।

विस्मयादिबोधक अव्यय

विस्मयादिबोधक अव्यय से होता है, जो मन के उद्गारों को व्यक्त करने का कार्य करते हैं। ऐसे भाव जो हृदय के भावों से संबंधित हों, विस्मयादिबोधक अव्यय के माध्यम से व्यक्त किए जाते हैं। ये उद्गार आश्चर्य, हर्ष, विषाद, सुख, दुख, हैरानी, शोक, आदि भावों से संबंधित होते है। ऐसे शब्दों के साथ विस्मयादिबोधक चिन्ह (!) का भी प्रयोग किया जाता है।

जैसे… आह, वाह, ओह, हाय, हे भगवान, शाबास आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

वाह! कितनी सुंदर बिल्ली है।
वाह! खाना खाकर मजा आ गया।
शाबाश! तुमने अच्छा कार्य किया।
हाय! मेरे साथ यह क्या हो गया।

निपात अव्यय

निपात अव्यय से तात्पर्य ऐसे अव्यय से होता है, जो किसी शब्द के तुरंत बाद लग कर उस शब्द के अर्थ में एक विशेष प्रकार का बल या भाव पैदा करते हैं। निपात अव्यय किसी शब्द के अर्थ के वजन को बढ़ा देते हैं और उसके भाव उसके अर्थ को गहरा कर देते हैं। निपात शब्द के लिए सहायक का कार्य करते हैं।

जैसे भी… ही, तक, काश, जी, हाँजी आदि

उदाहरण हेतु वाक्य

तुम्हे मेरे घर आना ही पड़ेगा।
कल राजेश भी हमारे साथ घूमने जायेगा।
भगत सिंह को बच्चा तक जानता है।
आखिरकार राजू को बोलना ही पड़ा।


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यदि बस जीवित प्राणी होती और वह बोल सकती तो वह अपना कष्ट किन शब्दों में व्यक्त करती?​

यदि बस जीवित प्राणी होती और बोल सकती होती तो..

यदि बस जीवित प्राणी होती और वह बोल सकती होती तो वह अपनी पीड़ा बोलकर व्यक्त कर सकती थी। अक्सर बसों में उसकी क्षमता से अधिक यात्री भर दिए जाते हैं। इस तरह पर बस पर अतिरिक्त भार पड़ता है बस यदि बोल सकती होती तो वह कहती कि मेरी जितनी क्षमता नहीं है, उससे ज्यादा यात्री मेरे अंदर समा जाते हैं। तब मुझे चलते समय कितनी अधिक परिश्रम करना पड़ता है, कितना अतिरिक्त श्रम लगाना पड़ता है, उसकी पीड़ा मैं ही जानती हूँ।

बस यह भी बोलती कि कुछ ड्राइवर अक्सर मुझे अंधाधुंध स्पीड में दौड़ते हैं, जिस कारण मुझे बहुत अधिक तेज दौड़ना पड़ता है और मेरे कल-पुर्जों को नुकसान पहुंचने का भी खतरा रहता है और दुर्घटना होने की आशंका रहती है।

बस यह भी बोल सकती थी कि जब भी कहीं पर आंदोलन आदि होते हैं तो अक्सर उपद्रवी मुझको ही निशाना बनाते हैं और मेरे शीशे आदि को तोड़ते हैं। मुझ पर पत्थरबाजी करते हैं। इन सब के गुस्से का शिकार मैं ही बनती हूँ। यदि बस बोल सकती होती तो बस ड्राइवर और यात्रियों से कहती कि आप लोग मेरे अंदर उतने लोग ही सवारी करो, जितनी मेरी क्षमता है। मेरी क्षमता से अधिक मुझ पर भार लादने की कोशिश मत करो।

यदि बस बोलती होती तो वह आंदोलनकारियों से कहती की तुम अपना गुस्सा मुझ पर मत उतारा करो। जिनके खिलाफ आप लोग आंदोलन कर रहे हो उस पर अपना गुस्सा उतारो मेरा जिस बात से कोई संबंध नहीं उसके लिए अपना गुस्सा मुझ पर उतर कर मेरा नुकसान क्यों करते हो।

बस यदि बोल सकती होती तो वह कहती कि अक्सर बस के मालिक ड्राइवर आदि उमसें आवश्यकता से अधिक सवारी और समान लेकर चलते हैं और मेंटेनेंस नहीं करते, जिससे बस की हालत खराब होती जाती है और वह समय से पहले ही खराब हो जाती है।

यदि बस बोल सकती तो बस यह कहती कि मेरी भी बराबर देखभाल करो और मुझे उतना ही प्रयोग में लो जितना उचित हो। आवश्यकता से अधिक मुझे प्रयोग मिलकर मेरे कल-पुर्जों की हालत को खराब मत करो।

यदि बस बोल सकी होती तो सभी यात्रियों से कहती कि मैं आपको आपकी मंजिल तक पहुँचाती हूँ। मैं बारिश, धूप ,सर्दी-गर्मी का परवाह न करती हुई काम करती रहती हूँ। मेरे अंदर बैठकर आप सब आराम से सुरक्षित यात्रा करते हुए अपनी मंजिल तक पहुँचते हो। यदि आप अपनी सफलता यात्रा के लिए थोड़ी विनम्रता दिखाते हुए मुझे धन्यवाद दिया करो तो इससे मुझे काम करते रहने का उत्साह मिलता है।

 


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यदि बारिश न हो तो हमें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। सोचकर अपने मित्रों को बताइए।

क्या हमें अपने मित्रों से ईर्ष्या करनी चाहिए? यदि नहीं करनी चाहिए, तो क्यों?

यदि हम पशु-पक्षी होते तो? (हिंदी में निबंध) (Essay on Hindi​)

सब तुम्हें ‘स्वावलंबी’ कहें, इसके लिए तुम कौन-कौन से कार्य स्वयं करोगे?

कचरा बीनने वाले से हुए संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

कचरा बीनने वाले से संवाद

 

गृहिणी ⦂ भइया मैं एक स्वयंसेवी संस्था की सदस्य हूँ। मैं तुमसे कुछ पूछना चाहती हूँ।

कचरा बीनने वाला ⦂ पूछिए बहनजी।

गृहिणी ⦂ भइया, तुम्हारी आमदनी का मुख्य स्रोत क्या है?

कचरा बीनने वाला ⦂  बहनजी, आपके घर से और कॉलोनी से घरों से जो भी कचरा जमा होता है, वही मेरी आमदनी का जरिया बनता है।

गृहिणी ⦂ लेकिन इस कचरे से कैसे अपना पेट पालते हो?

कचरा बीनने वाला ⦂ बहनजी, हम इस कचरे के ढेर से प्लास्टिक, धातुएं तथा दूसरी तरह के सामान को छांटतें हैं और फिर उन्हें उन कारखानों में बेचते हैं जहां पर इन्हें रिसाइकल करके नई चीज़ें बनाई जाती हैं।

गृहिणी ⦂ तो इससे तुम्हें कितनी आमदनी होती है?

कचरा बीनने वाला ⦂ बहुत कम, मैं और मेरी बीवी मिलकर यह काम करते हैं और शाम तक 400 से 500 तक कमा लेते है।

गृहिणी ⦂ और कारखाने वाले इससे कितना कमाते है ।

कचरा बीनने वाला ⦂ एक दिन के हमारे दिये गए कचरे से तकरीबन 10000 से 15000 तक कमाते है।

गृहिणी ⦂ तो फिर तो यह बेइंसाफी हुई आपके साथ।

कचरा बीनने वाला ⦂ नहीं मैडम जी, हमारे पास तो इतना पैसा है नहीं कि हम खुद कारोबार शुरू करें, यह तो शुक्र है कि वह हमसे कचरा लेकर हमें कुछ पैसे दे देते हैं।

गृहिणी ⦂ लेकिन आप तो जगह-जगह से कचरा उठाते हो और उसमें जैविक कचरा भी होता है और क्या उससे आप के जीवन को खतरा नहीं है ?

कचरा बीनने वाला ⦂ वह हम जानते हैं मैडम, लेकिन क्या करें, नहीं काम करेंगे तो खाएँगे क्या ?

गृहिणी ⦂ लेकिन भाई, इससे कई लोगों की जान जा चुकी है अगर तुम्हें कुछ हो गया तो तुम्हारे बच्चे तो अनाथ हो जाएंगे, यह नहीं सोचा कभी।

कचरा बीनने वाला ⦂ बहुत बार सोचा मैडम, लेकिन उन्हें भूखा भी नहीं देखा जाता है।

गृहिणी ⦂ कुछ और काम भी तो कर सकते हो ।

कचरा बीनने वाला ⦂ कैसे मैडम, कुछ तो पैसा चाहिए किसी भी तरह का काम करने को।

गृहिणी ⦂ मैं एक स्वयं सेवी संस्था से जुड़ी हूँ, तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ ।

कचरा बीनने वाला ⦂ आपका जीवन भर आभारी रहूँगा, क्या करना होगा मुझे ।

गृहिणी ⦂ बस कल से शहर में स्थित रोजगार कार्यालय में आ जाना, मैं तुम्हें कुछ काम दिला दूंगी ।

कचरा बीनने वाला ⦂ ठीक है मैडम, लेकिन काम क्या करना होगा ।

गृहिणी ⦂ हथकरघा कारख़ाना में दरियाँ बनाने का काम है और दिन के तुम दोनों को 1000 से 1200 रुपए मिल जाएंगे और इस गंदगी और बीमारी से भी दूर हो जाओगे ।

कचरा बीनने वाला ⦂ ठीक है मैडम, मैं कल ही बीवी के साथ पहुँच जाऊँगा ।

गृहिणी ⦂ सही है, लेकिन इसके बदले मेरा एक काम करना होगा ।

कचरा बीनने वाला ⦂ (थोड़ा सहम कर) क्या काम मैडम जी ?

गृहिणी ⦂ जितने भी और कचरा बीनने वाले हैं उनको भी इस बारे में बताओ और उनसे कहो कि इस गंदे काम के कारण आप लोगों की जान को बहुत खतरा है इसलिए यह काम छोड़ कर, हमारे यहाँ आओ और सुख से जीवन व्यतीत करो ।

कचरा बीनने वाला ⦂ जी मैडम, मैं अपने सब जानने वालों को इस बारे में बताऊंगा ताकि उनका जीवन भी इस संक्रमण से बच सके और वह एक स्वस्थ जीवन जी सके, बहुत-बहुत धन्यवाद ।


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कुब्जा’ नामक मोरनी आने से जालीघर का वातावरण क्षुब्ध हो उठा था। कुब्जा एक मोरनी थी, अपने नाम के अनुरूप ही कुब्जा थी। वह ईर्ष्यालु स्वभाव की थी। वह सभी से लड़ती रहती थी, इसी कारण उसकी जालीघर के अन्य पशु-पक्षियों से नहीं बनती थी। वह दूसरी मोjनी राधा से ईर्ष्या करती थी और हमेशा उसको चोंच मारकर घायल कर देती थी। वह नीलकंठ मोर से प्रेम करती थी और इसी कारण वह राधा मोरनी से ईर्ष्या करती थी क्योंकि नीलकंठ और राधा मोर-मोरनी में आपस में प्रेम था।

‘नीलकंठ’ कहानी जोकि महादेवी वर्मा द्वारा लिखी गई है, उसमें महादेवी वर्मा ने एक मोर नीलकंठ और राधा एवं कुब्जा नाम की दो मोरनियों को अपने घर में पाला था। नीलकंठ मोर की हो आधार बनाकर उन्होने ‘नीलकंठ’ कहानी की रचना की है। महादेवी वर्मा का पशु पक्षियों से बेहद लगाव रहा है। उन्होंने अपने घर में अनेक पशु पक्षी पाल रखे थे। अलग-अलग पशु पक्षियों के संदर्भ में उन्होंने अनेक संस्मरणात्मक कहानियाँ लिखी है, जिनमें नीलू, गिल्लू, गौरा आदि के नाम प्रमुख हैं।

संदर्भ पाठ

‘नीलकंठ’ लेखिका – महादेवी वर्मा (कक्षा – 7, पाठ -15)


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मेरी प्रिय ऋतु – वसंत (निबंध)

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निबंध

मेरी प्रिय ऋतु – वसंत

 

मेरी प्रिय ऋतु – वसंत : भारत ऋतुओं का देश है। यहाँ पर सबसे अधिक ऋतुएं पाईं जाती हैं। हर ऋतु का अपना अलग महत्व है। हर किसी को कोई न कोई ऋतु विशेष रूप से प्रिय होती है। मेरी प्रिय ऋतु वसंत है। इसलिए मेरी प्रिय ऋतु वसंत पर निबंध प्रस्तुत है।

प्रस्तावना

भारत भूमि पर विधाता की विशेष कृपा दृष्टि है , क्योंकि यहाँ पर समय की गति के साथ ऋतुओं का चक्र घूमता रहता है । इससे यहाँ प्राकृतिक परिवेश में निरंतर परिवर्तन एवं गतिशीलता दिखाई देती है । सामाजिक चेतना, भौगोलिक सुषमा एवं पर्यावरणीय विकास की दृष्टि से भारत में ऋतु परिवर्तन का अनेक तरह से काफी महत्व माना जाता है। इसमें भी वसंत ऋतु का अपना विशिष्ट सौन्दर्य सभी को आनन्द दायी लगता है। आइए जानते है वसंत ऋतु के बारे में।

भारत में ऋतुएँ

हमारे भारत में एक वर्ष में छः ऋतुएँ होती है वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत । प्रत्येक ऋतु का समय दो माह (महीने ) का होता है। जब सूर्य कर्क रेखा पर होता है, तब ग्रीष्म ऋतु पड़ती है। इस ऋतु में भयानक गर्मी और तपन रहती है । फिर सावन भादों में वर्षा ऋतु आती है और चारों ओर जल वर्षण होता रहता हैं। सूर्य विषुवत रेखा पर रहता है तब शरद् ऋतु आती है, दीपावली के बाद शिशिर ऋतु प्रारम्भ होती है। इसमें कड़ाके की ठंड पड़ती है तथा पर्वतीय स्थलों पर बर्फ व पाला गिरता है। इसके बाद हेमंत ऋतु आती है, इसमें वृक्षों लताओं के पत्ते सूखकर झड़ने लगते है। सूर्य वापिस विषुवत रेखा पर पहुँचते ही वसंत ऋतु का आगमन होता है। इस प्रकार भारत में वर्ष भर में छः ऋतुएँ बदल जाती हैं।

ऋतुराज कहलाने का कारण

वसंत ऋतु में वातावरण का तापमान सामान्य बना रहता है । न अधिक गर्मी और न अधिक ठंड होती हैं । प्रत्येक ऋतु का अपना अलग महत्व है परन्तु वसंत ऋतु का विशेष महत्व हैं । इस ऋतु में समस्त प्रकृति में सौन्दर्य एवं उन्माद छा जाता हैं । धरती का नया रूप सज जाता है , प्रकृति अपना श्रृंगार सा करती है तथा समस्त प्राणियों के ह्रदय में उमंग , उत्साह एवं मादकता से भर जाते हैं । इस ऋतु का आरम्भ माघ शुक्ल पंचमी से होता है , होली का त्यौहार इसी ऋतु में पड़ता है । नए संवत्सर का आरम्भ भी इसी से माना जाता हैं ।  इन सब कारणों से वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा जाता हैं । कवियों एवं साहित्यकारों ने इस ऋतु की अनेकश प्रशंसा की हैं ।

प्राकृतिक वातावरण

वसंत ऋतु में सभी पेड़ पौधे नयें पत्तों, कोपलों, कलियों एवं पुष्पों से लद जाते हैं । शीतल, मंद एवं सुगन्धित हवा चलती है । वसंत ऋतु में वातावरण का तापमान सामान्य बना रहता है । न अधिक गर्मी और न अधिक ठंड होती हैं ।  न गर्मी और न सर्दी रहती है । कोयल कूकने एवं भौरें गुंजार करने लगते है । होली, फाग एवं गणगौर का उत्सव किशोर किशोरियों को उमंगित करता है । सारा ही प्राकृतिक वातावरण अतीव सुंदर , मनमोहक एवं मादक बन जाता हैं | कवियों के कंठ से श्रृंगार रस झरने लगता है। दूर-दूर तक सौन्दर्य एवं पीताभ सुषमा फ़ैल जाती है । रात्रि का परिवेश भी अतीव मनोरम लगता हैं ।

भागवत गीता में वसंत

वसंत को ऋतुओं का राजा इसलिए कहा गया है क्योंकि इस ऋतु में धरती की उर्वरा शक्ति यानी उत्पादन क्षमता अन्य ऋतुओं की अपेक्षा बढ़ जाती है । यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं को ऋतुओं में वसंत कहा है । वे सारे देवताओं और परम शक्तियों में सबसे ऊपर हैं वैसे ही बसंत ऋतु भी सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है।

वसंत की उत्पत्ति के संबंध में कथा अंधकासुर नाम के राक्षस का वध सिर्फ भगवान शंकर के पुत्र से ही संभव था । तो शिवपुत्र कैसे उत्पन्न हो तब इसके लिए कामदेवम के कहने पर ब्रह्माजी की योजना के अनुसार वसंत को उत्पन्न किया गया था । ब्रह्मा जी ने शक्ति की स्तुति की उसके बाद देवी सरस्वती प्रकट हुई । ब्रह्मा और देवी सरस्वती ने सृष्टि सृजन किया । इसलिए वसंत में नए पेड़-पौधे उगते हैं । उनमें लगने वाले फूलों में कामदेव को स्थान दिया गया।

कालिका पुराण में वसंत का व्यक्तीकरण करते हुए इसे सुदर्शन, अति आकर्षक, सन्तुलित शरीर वाला , आकर्षक नैन – नक्श वाला, अनेक फूलों से सजा, आम की मंजरियों को हाथ में पकड़े रहने वाला , मतवाले हाथी जैसी चाल वाला आदि सारे ऐसे गुणों से भरपूर बताया है । फूलों का मौसम है वसंत वसंत ऋतु को फूलों का मौसम कहा गया है । इस मौसम के न तो अधिक गर्मी होती है और न ही अधिक ठण्ड लिहाजा फूल काफी दिनों तक बने रहते है । इन फूलों की अधिक देखभाल नहीं करनी पड़ती है रोपने के बाद समय – समय पर उसकी सिंचाई जरूरी है । गोबर की खाद इनके लिए काफी है।

उपसंहार

भारत में वैसे सभी ऋतुओं का महत्व है, सभी उपयोगी है और समय परिवर्तन के साथ प्राकृतिक परिवेश की शोभा बढ़ाती है । परन्तु सभी ऋतुओं में वसंत का सौन्दर्य सर्वोपरि रहता है । इसी से इसे ऋतुराज कहा जाता है । यह ऋतु कवियों , प्रकृति प्रेमियों एवं भावुकजनों को अतिशय प्रिय लगती है ।

वसंत ऋतु मानव को यह संदेश देती हैं कि दुःख के बाद एक दिन सुख का आगमन भी होता है । जिस तरह परिवर्तनशीलता प्रकृति का नियम है उसी प्रकार जीवन में भी परिवर्तनशीलता का नियम लागू होता है । जिस तरह शिशिर ऋतु के बाद वसंत की मादकता का अपना एक अलग ही आनन्द होता है , उसी प्रकार जीवन में भी दुखों के बाद सुख का आनन्द दुगुना हो जाता हैं ।


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राजनीति का अपराधीकरण (निबंध)

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निबंध

राजनीति का अपराधीकरण

 

राजनीति का अपराधीकरण : राजनीति में अपराधीकरण आज की एक ज्वलंत समस्या बन गई है। इस कारण राजनीति बेहद दूषित हो चली है। आज की राजनीति आज जनता की हितों में न होकर नेताओं द्वारा अपने स्वार्थों की पूर्ति का माध्यम बन कर रह गई है और अपराधियों का अखाड़ा बनकर रह गई है। राजनीति के अपराधीकरण पर निबंध प्रस्तुत है…

प्रस्तावना

राजनीति का अपराधीकरण आज के समय में एक सामान्य बात हो कर रह गई है। आज अपराधियों के लिए राजनीति सबसे सुरक्षित जगह बन गई है। राजनीति एक समय में राजनीति को सेवा का क्षेत्र माना जाता था और इस क्षेत्र में केवल वही लोग आते थे, जिनके मन में समाज के प्रति सेवा की भावना होती थी। जिनका चरित्र उज्जवल होता था और जो सच्चे मन से जनता की सेवा करना चाहते थे, वही लोग राजनीति में आते थे।

भारत की आजादी के बाद कुछ समय तक यही स्थिति रही उसके बाद राजनीति में अपराधी लोगों का प्रवेश होने लगा और राजनीति का स्वरूप बिगड़ता चला गया। बाहुबल, धनबल आदि का प्रयोग राजनीति में धड़ल्ले से होने लगा। इसी कारण राजनीति में ऐसे गलत लोगों का प्रवेश हो चुका है, जिससे देश की विकास प्रभावित हो रहा है। ये लोग ढेर सारा धन कमाने के लिए ही राजनीति में आते हैं। जनता की सेवा करने से उनका कोई लेना देना नहीं होता।

राजनीति का अपराधीकरण

राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या अब बेहद चिंतनीय विषय बनती जा रही है। आज ऐसे सांसदों या विधायकों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है, जिनके ऊपर किसी ना किसी रूप में कोई ना कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज होता है। आज ऐसा कोई भी राजनीतिक दल नहीं रह गया है, जिसमें अपराधी प्रवृत्ति के लोग नेता बन कर ना घूम रहे हों।

बड़ी-बड़ी स्वच्छता स्वच्छता आदि की दुहाई देने वाले सभी राजनीतिक दल अपराधियों को टिकट देने से नहीं चूकते।राजनीति अपराधियों का जमावड़ा बनती जा रही है। अपराधियों को अपने अपराधों को संरक्षित करने के लिए राजनीति एक सबसे सही मंच लग रहा है, जहाँ वह अपनी अपराधों के लिए ढाल बना लेते हैं।

अपराधी प्रवृत्ति के लोग रॉबिनहुड का दर्जा हासिल कर लेते हैं। वह गलत तरीकों से धन कमा कर थोड़ा बहुत धन गरीबों आदि में बांटकर उनकी सहानुभूति हासिल कर लेते हैं और इसी सहानुभूति के आधार पर वे राजनीति में प्रवेश कर चुनाव जीत जाते हैं। जब वह नेता बन जाते हैं तो अपना असली रंग दिखाने लगते हैं और धीरे-धीरे देश को खोखला करने में लग जाते हैं।

अपराधी अपराध करने से कभी नहीं बाज आते। यही बात राजनीति में प्रवेश करने वाले अपराधियों के संदर्भ में भी होती है। वे अपराथ करने की प्रवृत्ति से बाज नहीं आते और राजनीति में आने के बाद उन्हें और अधिक शक्ति प्राप्त हो जाती है और घोटाले करते हैं। इसका सीधा असर जनता पर पड़ता है क्योंकि वह देश को खोखला करते हैं और विकास के कार्य के लिए लगने वाला धन स्वयं डकार जाते हैं, जिससे देश का विकास नही हो पाता। जब राजनीति में अपराधियों का प्रवेश निरंतर बढ़ता जा रहा था, तभी बीच में कुछ सार्थक कदम उठाने का भी प्रयत्न किए गए थे।

अदालतों ने अपराधियों के राजनीतिक प्रवेश पर अंकुश लगाने के लिए कुछ सख्त कदम उठाये और सरकारों द्वारा भी कुछ ऐसे नए कानून बनाए गए हैं, जिससे राजनीति में अपराधियों के प्रवेश पर कुछ-कुछ लगे। एक कानून के अनुसार अब ऐसा व्यक्ति जो किसी अपराधिक मामले में सजा पा जाता है तो वो चुनाव के लड़ने योग्य नहीं रहता और उस पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग जाता है। ये एक सार्थक कदम है। इससे सजा पाने वाला अपराधी हमेशा के लिए चुनाव से वंचित हो जाएगा और ऐसे व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश कम हो पाएगा।

हालांकि सरकार और अदालत को ऐसा कानून भी बनाना चाहिए कि यदि किसी व्यक्ति पर अपराधिक मामला है, तो उसको उस समय ही चुनाव लड़ने पर रोक लग जानी चाहिए और यदि उस पर अपराध सिद्ध हो जाता है तो उसे हमेशा के लिए चुनाव से वंचित कर देना चाहिए। यदि अपराध सिद्ध नहीं होता है, तब ही वह चुनाव लड़ सकता है, क्योंकि भारत की न्याय प्रक्रिया बेहद धीमी गति से चलती है।

अपराधियों पर अपराध के मामले सालों साल तक चलते रहते हैं और इस पूरी अवधि में अपराधी व्यक्ति राजनीति में प्रवेश कर उसकी सुविधा का पूरा लाभ उठा लेते हैं। अमूमन उन्हें इतनी देर होने पर उन्हें सजा भी नही होती और अगर सजा होती भी है, तो सजा मिलने में बहुत देर हो चुकी होती है, और वह अपना पूरा जीवन चुके होते हैं। इससे अपराधी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के लिए राजनीति में रोकने के लिए कोई औचित्य नही रह जाता।

उपसंहार

आज ईमानदार एवं साफ-सुथरी वाले लोगों की इस देश की जरूरत है, जो इस देश की बागडोर को संभाले, तभी देश विकास के पथ पर आगे बढ़ सकेगा। आपराधिक प्रवृत्ति वाले नेता लोग देश का कभी भला नहीं कर सकते। वह देश को पूरी तरह बर्बाद कर देंगे, इसलिए हमें इस दिशा में और अधिक सख्त कदम उठाने की जरूरत है।

सरकार के स्तर पर सरकार और न्यायालय दोनों को सख्त कानून और अधिक सख्त कानून बनाने चाहिए। जनता के स्तर पर बात करें तो जनता को भी जागरूक होकर ऐसे व्यक्तियों को बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए जो ऐसे किसी भी अपराधिक छवि वाले व्यक्ति को बिल्कुल भी वोट न दें। इससे ऐसे लोगों का हौसला पस्त होगा।


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‘भारतीय किसान’

भारत मूलतः का एक कृषि प्रधान देश है और भारतीय किसान भारत की अर्थव्यवस्था की धुरी हैं। उसके बावजूद भारतीय किसानों की स्थिति शुरु से लेकर अभी तक जस की तस बनी है। भारतीय किसान अपने जीवन स्तर को अभी तक नहीं सुधार पाये। वह जिंदगी भर अनेक तरह की समस्याओं से जूझते रहते हैं।

जी-तोड़ मेहनत करने के बावजूद भारतीय किसान की व्यथा यही है कि वह जीवन भर संघर्ष करते रह जाते हैं। कुछ सरकारी नीतियां कुछ आधुनिकता और विकास की होड़ तथा कुछ पारंपरिक प्राचीन खेती पर अधिक निर्भरता भारतीय किसानों को आज भी पीछे किए हुए हैं। इन सब विषमताओं के बावजूद भारतीय किसान की जीवटता सराहनीय है कि वह इन सभी कष्टों से जूझता हुआ भी निरंतर खेती करता रहता है और लोगों के लिए अन्न उपजाता रहता है, जिससे सब का पेट भर सके।

हमें अक्सर समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं पढ़ने-सुनने को मिलती है कि किसान ने आत्महत्या कर ली। समाचारों में ये घटनाएं सामान्य हो गई है, क्योंकि अक्सर सुनने को मिलती है। इससे भारतीय किसान की दुर्दशा का पता चलता है। आज समय की आवश्यकता है कि भारतीय किसान की स्थिति सुधारने के लिए ऐसे सार्थक एवं ठोस प्रयास किए जाएं कि वह भी एक सम्मानित जीवन जी सके। उसे ना तो महाजनों के कर्ज के जाल में उलझना पड़े और ना कभी भी बीज और खाद के लिए भटकना पडे। ना उसे अपनी फसल के बेमौसम या प्राकृतिक आपदा के कारण हुए नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़े।

भारतीय किसान भी सम्मानित जीवन जी सके, उसे अपनी मेहनत का फल मिले और निर्भीक होकर खेती कर सके, इसके लिए एक युद्ध स्तर पर प्रयास की आवश्यकता है। सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को पूरी तरह नहीं मिल पाता। सरकारी योजनाएं पूरी तरह किसानों तक नही पहुंच पाती है और भी उसका बिचौलिए उठा लेते हैं।

किसानों की अशिक्षा और अज्ञानता के कारण किसान की अधिकतर मेहनत का लाभ बीच के बिचौलिए उठा लेते हैं, और किसान वहीं का वही रह जाता है। किसानों को महाजनों और बिचौलिओं के चंगुल से मुक्त करने के लिए उन्हे जागरुक करना होगा और उन्हे पर्याप्त सहायता उपलब्ध करानी होगी। सरकार ही इस काम को कर सकती है।


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शब्द और शब्द के भेद (हिंदी व्याकरण)

शब्द से तात्पर्य वर्णों के उस समूह से होता है, जो कोई सार्थक अर्थ प्रकट करते हों। अर्थात शब्द व्याकरण की सबसे छोटी इकाई वर्ण के वो समूह होता है, जिसका कोई सार्थक अर्थ निकलता हो। वर्णों से बनी सार्थक सरंचना को ही शब्द कहते हैं।

शब्द की परिभाषा

आइये हिंदी व्याकरण में शब्द और शब्द के भेद को समझते हैं। शब्द वर्णों का वो सार्थक समूह होता है, जो किसी अर्थ को प्रकट करता है। शब्द वर्णों से बनता है। वर्णों से मिलकर जब शब्द बनता है, तभी वर्ण का प्रयोजन पूरा होता है, नही तो वर्णों को कोई महत्व नही। शब्द ही भाषा को आधार प्रदान करते हैं। जब तक वर्णों से शब्द नहीं बनेगा तब तक भाषा कैसे बनेगी?

वर्ण से शब्द बनता है और शब्द से वाक्य, तब व्याकरण की प्रक्रिया पूरी होती है।

वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं। शब्द से वाक्य की रचना होती है। शब्द को जब वाक्य में प्रयुक्त किया जाता है, तो वो व्याकरणिक नियमों से बंध जाता है।

शब्द भेद चार प्रकार के होते है…

व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद

उत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद

प्रयोग के आधार पर शब्द भेद

अर्थ के आधार पर शब्द के भेद

व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद

व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद तीन प्रकार के होते हैं :

✫ रूढ़ शब्द

✫ यौगिक शब्द

✫ योगरूढ़ शब्द

रुढ़ शब्द : रूढ़ शब्द वे शब्द होते हैं, जो किसी अन्य शब्द के योग से ना बने हों और जिन का खंडन नहीं किया जा सकता हो।

यौगिक शब्द : यौगिक शब्द वे शब्द होते हैं, जो दो शब्दों के योग से बनते हैं।

योगरूढ़ शब्द : योगरूढ़ शब्द वे शब्द होते हैं, जो अपने सामान्य अर्थ को ना प्रकट करके कोई विशिष्ट अर्थ प्रकट करते हैं।

उत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के चार भेद होते हैं :

✫ तत्सम शब्द

✫ तद्भव शब्द

✫ देशज शब्द

✫ विदेशज शब्द

तत्सम शब्द : तत्सम शब्द शब्द होते हैं, जो संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा में सीधे ज्यों के त्यों ग्रहण किए गये हों।

तद्भव शब्द : तद्भव शब्द वे शब्द होते हैं, जो संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा में ग्रहण तो किए गए हैं लेकिन उनका रूप परिवर्तित हो चुका है।

देशज शब्द : देशज शब्द वे शब्द होते हैं, स्थानीय व क्षेत्रीय भाषाओं से हिंदी में ग्रहण किए गए हैं।

विदेश शब्द : विदेशज वे शब्द होते हैं, जो विदेशी भाषाओं से हिंदी भाषा में किए गए हैं।

अर्थ के आधार पर शब्द भेद

अर्थ के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं

✫ सार्थक शब्द

✫ निरर्थक शब्द

सार्थक शब्द : सार्थक शब्द का कोई ना कोई अर्थ होता है।

निरर्थक शब्द : निरर्थक शब्द का कोई अर्थ नहीं होता और यह सार्थक शब्दों के साथ पूरक जोड़ी के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।

प्रयोग के आधार पर शब्द भेद

प्रयोग के आधार पर शब्द के आठ भेद होते हैं :

✫ संज्ञा

✫ सर्वनाम

✫ विशेषण

✫ क्रिया

✫ क्रिया विशेषण

✫ संबंध बोधक

✫ समुच्चयबोधक

✫ विस्मयादिबोधक

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया यह चारों शब्द विकारी शब्द की श्रेणी में आते हैं।

क्रिया-विशेषण, संबंध बोधक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक ये चारों शब्द अविकारी शब्द की श्रेणी में आते हैं।


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मई महीने में आपके विद्यालय में हुई परीक्षा, इस बात को बताते हुए अपनी बुआजी को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

मई महीने में विद्यालय में हुई परीक्षा के बारे में बताते हुए बुआजी को पत्र

दिनाँक : 28 मई 2024

 

आदरणीय बुआजी,
चरण स्पर्श

बुआजी मेरी नौवीं कक्षा की परीक्षा में महीने में संपन्न हो गई है। मैंने पूरे साल परीक्षा अच्छी तैयारी की थी, इस कारण मेरे सारे पेपर अच्छे हुए। केवल गणित के विषय में मेरे दो प्रश्न छूट गए, क्योंकि मैं कुछ सवालों में उलझा गया और समय पर सारे सवालों को हल नहीं कर पाया। बाकी सभी विषयों पेपर बहुत अच्छे हुए।

मैंने पूरे साल परीक्षा के लिए अच्छे से तैयारी की थी और पूरे साल पढ़ाई की थी, इसलिए मुझे परीक्षा के विषय में कोई डर नहीं था। मुझे उम्मीद है कि परीक्षा परिणाम आने मेरे अच्छे अंक आएंगे।

बुआजी, आपको मेरी पढ़ाई की हमेशा चिंता रहती है और आप पिताजी को पत्र लिखते समय अक्सर मेरी पढ़ाई के लिए पूछती रहती हैं। पिताजी ने बताया था कि आप मेरी परीक्षा कैसी हुई इस बारे में पूछ रही थीं। इसीलिए मैंने आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। मेरी परीक्षा के परिणाम 25 जून को घोषित किए जाएंगे। जून महीने में संभव है कि मैं आपके घर आपसे मिलने आऊं। तब मैं 10-15 दिन आपके पास रहूंगा। मेरी तरफ से फूफा जी को प्रणाम और छोटी बहन को स्नेह है।

आपका भतीजा
गौरव


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अपने मामाजी को पत्र लिखकर पिताजी के स्वास्थ्य में सुधार की सूचना दीजिए l

अपने पिताजी को अपनी परीक्षा की तैयारी के विषय में पत्र लिखिए।

कौन से नेता ने किसी लोकसभा चुनाव में एक ही समय में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा? कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी सीटों पर चुनाव लड़ सकता है?

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एक ही लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर एक साथ चुनाव लड़ने के अवसर कई बार आए हैं। विभिन्न पार्टियों के नेता लोग अक्सर दो-दो सीटों पर चुनावों लड़ते रहे हैं, चाहे वह लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव हों, ऐसा होता रहा है। भारत का संविधान भी किसी भी प्रत्याशी को दो सीटों पर चुनाव लड़ने का अधिकार देता है।

भारत के संविधान के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के सेक्शन 33 के अंतर्गत किसी व्यक्ति को एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ने का अधिकार मिला हुआ है। इसी अधिनियम के सेक्शन 70 में ये भी उल्लेखित है कि कोई व्यक्ति लोकसभा अथवा विधानसभा का चुनाव एक से अधिक सीटों पर लड़ तो सकता है, लेकिन एक से अधिक सीटों पर चुनाव जीतने की स्थिति में उसे प्रतिनिधित्व केवल एक ही सीट का करना होगा और बाकी सीटों से इस्तीफा देना होगा।

1996 तक भारतीय संविधान में अधिकतम सीटों की कोई सीमा तय नहीं थी। एक व्यक्ति दो से अधिक सीटों पर भी चुनाव लड़ सकता था, लेकिन 1996 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और अधिकतम दो सीटों की सीमा तय की गई यानी कोई भी व्यक्ति लोकसभा अथवा विधानसभा का चुनाव अधिकतम दो सीटों पर ही लड़ सकता है। दोनों सीटों पर जीतने की स्थिति में उसे एक सीट से त्यागपत्र देना होगा।

अब बात करते हैं कि कौन से नेता हैं, जिन्होंने दो से अधिक सीटों पर भी चुनाव लड़ा। सभी को पता है कि दो से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के अनेक मामले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ौदा और वाराणसी की लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े थे। उससे पूर्व लालकृष्ण आडवाणी 1989 में नई दिल्ली और गांधीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। सोनिया गांधी भी रायबरेली और बेल्लारी लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ चुकी हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड सीट से चुनाव लड़े। 2014 में भी वह अमेठी और वायला़ से चुनाव लड़े थे।

इसी तरह राज्यों की विधानसभा सीटों पर कई नेता भी दो सीटों पर चुनाव लड़े हैं। इस तरह दो सीटों पर चुनाव लड़ने के अनेक मामले हैं, लेकिन दो से अधिक यानी तीन सीटों पर चुनाव लड़ने का लोकसभा चुनाव के संदर्भ में केवल एक ही मामला है।

लोकसभा चुनाव में एक ही समय  में तीन सीटों पर चुनाव लड़ने वाले नेता भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई हैं, जो 1957 के लोकसभा चुनाव में तीन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े थे। 

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई तीन सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़े थे। अटल बिहारी वाजपेई ने 1957 के आम लोकसभा चुनाव में तीन सीटों से चुनाव लड़ा था। वह उस समय जनसंघ में थे और जनसंघ के टिकट पर लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सीट से चुनाव लड़े थे। वह लखनऊ और मथुरा दोनों लोकसभा सीट से चुनाव हार गए लेकिन बलरामपुर सीट से चुनाव जीत गए।

लोकसभा चुनाव के संदर्भ में यह इकलौता मामला है, जब किसी नेता ने तीन सीटों पर एक ही समय में चुनाव लड़ा हो।

विधानसभा चुनाव में भी एक मामला ऐसा रहा है, जब आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक नेता एनटी रामा राव 1995 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में गुडीवडा, हिंदूपुर और नालगोंडा तीन विधानसभा सीटों से चुनाव लड़े और तीनों सीटों पर जीते। उन्होंने हिंदूपुर सीट को बरकरार रखा और बाकी दोनों सीटों से त्यागपत्र दे दिया।

इस तरह लोकसभा और विधानसभा चुनाव में यह दो इकलौते मामले हैं, जहाँ पर कोई नेता दो से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा है। फिलहाल अभी ये व्यवस्था खत्म हो चुकी है और कोई भी प्रत्याशी एक समय में अधिकतम दो सीटों पर ही चुनाव लड़ सकता है। हालांकि चुनाव आयोग आने वाले समय में ऐसी व्यवस्था भी कर सकता है कि कोई प्रत्याशी अधिकतम एक ही सीट पर चुनाव लड़े।


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स्वर संधि – स्वर संधि के भेद (हिंदी व्याकरण)

स्वर संधि

स्वर संधि से तात्पर्य दो स्वरों के आपस में मेल से बनी संधि से होता है। जब दो स्वरों का आपस में मेल होता है तो उन में जो परिवर्तन आता है, वह स्वर संधि’ कहलाती है। आइए आज हम संधि के तीन भेदों में एक भेद स्वर संधि’ और उसके पाँच उपभेदों के बारे में जानेंगे…

संधि-विच्छेद, संधि की परिभाषा

हिंदी व्याकरण में संधि और संधि-विच्छेद एक ऐसी युक्ति है, जिसके माध्यम से दो शब्दों का संयोजन कर के नए शब्द की उत्पत्ति की जाती है और उस नये शब्द को पुनः उसके मूल शब्दों में भी पृथक कर दिया जाता है। यह दोनों प्रक्रियाएं ‘संधि’ एवं ‘संधि-विच्छेद’ कहलाती हैं।

संधि से तात्पर्य दो शब्दों के मेल से है, जिसमें प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण तथा द्वितीय शब्द के प्रथम वर्ण का संयोजन होकर उनमें विकार उत्पन्न होता है और एक नए शब्द की उत्पत्ति होती है। इस प्रक्रिया के कारण परिवर्तित हुए नए शब्द को ‘संधि’ कहते हैं तथा उस शब्द को जब मूल शब्द में पृथक का दिया जाता है, तो वह ‘संधि-विच्छेद’ कहलाता है।

सरल शब्दों में कहें तो संधि का तात्पर्य है, मेल यानी दो शब्दों के परस्पर मेल से उत्पन्न तीसरे शब्द को संधि कहा जाता है। संधि की प्रक्रिया में पहले शब्द का अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण मुख्य भूमिका निभाते हैं। जैसे

  • विद्या + अर्थी : विद्यार्थी
  • गणेश : गण + ईश
  • दिगम्बर : दिक् + अम्बर
  • देव + इंद्र : देवेंद्र

संधि के भेद

संधि के तीन भेद होते हैं :

  • व्यंजन संधि
  • स्वर संधि
  • विसर्ग संधि

स्वर संधि

स्वर संधि से तात्पर्य दो स्वरों के आपस में मेल से बनी संधि से होता है। जब दो स्वरों का आपस में मेल होता है तो उन में जो परिवर्तन आता है, वह स्वर संधि’ कहलाती है। उदाहरण के लिए

  • पुस्तकालय : पुस्तक + आलय
  • महोत्सव : महा + उत्सव
  • महैश्वर्य : महा + ऐश्वर्य
  • अत्याधिक : अति + अधिक
  • पावक : पौ + अक

स्वर संधि के उपभेद

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं, जोकि इस प्रकार हैं :

  • दीर्घ स्वर संधि
  • गुण स्वर संधि
  • वृद्धि स्वर संधि
  • यण स्वर संधि
  • अयादि स्वर संधि

दीर्घ स्वर संधि

दीर्घ स्वर संधि के नियम इस प्रकार हैं : जब ‘अ’ और ‘अ’ अथवा ‘अ’ और ‘आ’ अथवा अथवा ‘आ’ और ‘अ’ अथवा ‘आ’ और ‘आ’  का मेल होता है तो ‘आ’ बनता है। जैसे

  • परमार्थ : परम + अर्थ
  • परमात्मा : परम + आत्मा
  • विद्यार्थी : विद्या + अर्थी
  • महात्मा : महा + आत्मा

जब ‘इ’ और ‘इ’ अथवा ‘इ’ और ‘ई’ अथवा ‘ई’ और ‘इ’ अथवा ‘ई’ और ‘ई’ का मेल होता है तो ‘ई’ बनता है।

  • रविन्द्र : रवि + इन्द्र
  • गिरीश्वर : गिरि + ईश्वर
  • योगीन्द्र : योगी + इन्द्र
  • महीश्वर : महीश्वर

जब ‘उ’ और ‘उ’ अथवा ‘उ’ और ‘ऊ’ अथवा ‘ऊ’ का ‘ऊ’  का मेल होता है तो ‘ऊ’ बनता है। जैसे

  • वधूत्सव : वधु + उत्सव
  • साधूर्जा : साधु + ऊर्जा
  • भूत्सर्ग : भू + उत्सर्ग
  • भूर्जा : भू + ऊर्जा

दीर्घ संधि को ह्रस्व संधि भी कहा जाता है।

गुण स्वर संधि

गुण स्वर संधि में जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘इ’ अथवा ‘ई’ का मेल होता है, तो ‘ए’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘उ’ अथवा ‘ऊ’ का मेल होता है तो ‘ओ’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ऋ’ का मेल होता है  तो ‘अर्’ बनता है। जैसे

  • शैलेन्द्र : शैल + इन्द्र
  • राजेन्द्र : राजा + इन्द्र
  • राजेश : राज + ईश
  • महेश : महा + ईश
  • पुरषोत्तम : पुरुष + उत्तम
  • महोत्सव : महा + उत्सव
  • महोर्मि : महा + ऊर्मि
  • महोर्जा : महा + ऊर्जा
  • राजर्षि : राज + ऋषि
  • महार्षि : महा + ऋषि

वृद्धि स्वर संधि

वृद्धि स्वर संधि के नियम के जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ए’ अथवा ‘ऐ’ का मेल होता है, तो ‘ऐ’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ओ’ अथवा ‘औ’ का मेल होता है तो ‘औ’ बनता है। जैसे

  • एकैक : एक + एक
  • मतैक्य : मत + ऐक्य
  • सदैव : सदा + एव
  • महैश्वर्य : महा + ऐश्वर्य
  • जलोघ : जल + ओघ
  • परमौषध : परम + औषध
  • महौजस्वी : महा + ओजस्वी
  • महौषधि : महा + औषधि

यण स्वर संधि

यण स्वर संधि के नियम के अनुसार जब ‘इ’ अथवा ‘ई’ के साथ दूसरे किसी विजातीय स्वर का मेल होता है तो वह ‘य’ बन जाता है और जब ‘उ’ अथवा ‘ऊ’ के साथ दूसरे किसी विजातीय स्वर का मेल होता है तो वह वह ‘व’ बन जाता है। जब ‘ऋ’ के साथ किसी दूसरे स्वर का मेल होता है, तो ‘र्’ बन जाता है । जैसे

  • अत्याधिक : अति + अधिक
  • इत्यादि : इति + आदि
  • अत्यन्त : अति + अंत
  • देव्यागमन : देवी + आगमन
  • अन्वय : अनु + अय
  • स्वागत : सु + आगत
  • अन्वेषण : अनु + एषण
  • प्रत्यक्ष : प्रति + अक्ष
  • पित्रानुमति : पितृ + अनुमति
  • पित्राज्ञा : पितृ + आज्ञा
  • मात्राज्ञा : मातृ + आज्ञा

अयादि स्वर संधि

अयादि स्वर संधि के नियम के अनुसार जब ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ के साथ अन्य कोई भी स्वर हो तो ‘ए’ का ‘अय’ बन जाता है, ‘ऐ’ का ‘आय’ बन जाता है, ‘ओ’ का ‘अव’ तथा ‘औ’ का ‘आव’ बन जाता है। जैसे

  • नयन : ने + अन
  • श्रवण : श्री + अन
  • पावन : पौ + अन
  • नायक : ने + अक
  • नाविक : नौ + इक
  • गायक : गै + अक

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उपसर्ग और प्रत्यय की परिभाषाएं। (हिंदी व्याकरण)

पतझड़ के आ जाने पर भी उपवन क्यों नहीं मरा करता?

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पतझड़ हो जाने पर भी उपवन मरा इसलिए नहीं करता क्योंकि पतझड़ थोड़े समय के लिए उपवन की सुंदरता को ही नष्ट कर पाता है। बहार आने पर उपवन फिर खिल जाता है और पतझड़ उपवन को नहीं मार पाता। इसलिए पतझड़ कितने भी आए, वह उपवन की सुंदरता को कुछ समय के लिए भले ही कम कर दें, लेकिन वह बहार आने पर और बसंत आने पर फिर हरा-भरा हो जाता है।

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन मरा नहीं करता है’ कविता के माध्यम से कवि नीरज कहते हैं कि छुप-छुप कर आँसू बहाने वालों के जीवन में कुछ दुखों के आ जाने से जीवन नष्ट नहीं हुआ करता। बिल्कुल उसी प्रकार, जिस तरह पतझड़ के आ जाने से कुछ समय के लिए उपवन की सुंदरता भले ही नष्ट हो जाती है। पर पतझड़ बीत जाने और बसंत आ जाने पर उपवन फिर हरा-भरा होता है।

कवि कहते हैं कि उसी तरह जीवन में छोटे-मोटे दुखों के आ जाने से जीवन समाप्त नहीं हो जाता। दुखों के बीत जाने पर सुख अवश्य आएंगे और जीवन फिर खुशहाल हो उठेगा। इसलिए जीवन में कभी भी निराश नही होना चाहिए।

‘कुछ सपनों के मर जाने से जीवन मरा नहीं करता’ कविता हिंदी के जाने-माने कवि ‘गोपालदास नीरज’ द्वारा लिखी गई प्रेरणादायी कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने जीवन की दुःख-तकलीफों से निराश लोगों के मन में आशा का संचार करने का प्रयत्न किया है।


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धरती स्वर्ग समान’ कविता में कवि ने धरती को स्वर्ग बनाने की संभावनाओं के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। – स्पष्ट कीजिए।

लाए कौन संदेश नए घन! दिशि का चंचल, परिमल-अंचल, छिन्न हार से बिखर पड़े सखि! जुगनू के लघु हीरक के कण! लाए कौन संदेश नए घन! सुख दुख से भर, आया लघु उर, मोती से उजले जलकण से छाए मेरे विस्मित लोचन! लाए कौन संदेश नए घन! भावार्थ बताएं।

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लाए कौन संदेश नए घन!
दिशि का चंचल,
परिमल-अंचल,
छिन्न हार से बिखर पड़े सखि!
जुगनू के लघु हीरक के कण!
लाए कौन संदेश नए घन!

सुख दु:ख से भर,
आया लघु उर,
मोती से उजले जलकण से
छाए मेरे विस्मि‍त लोचन!
लाए कौन संदेश नए घन!

संदर्भ : महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता लाए ‘लाए कौन संदेश नए घन’ इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है

भावार्थ : कवयित्री कहती हैं कि आकाश में चारों तरफ उमड़ रहे बादल ऐसे प्रतीत हो रहे हैं, जैसे मैं किसी का संदेश लेकर आ रहे हों। यह बादल चारों तरफ हर दिशा में घूमते रहते हैं। इसी कारण इन्हें चंचल भी कहा जाता है। यह बादल एक जगह पर टिक नहीं रहते और आकाश में चारों तरफ इस तरह छाए रहते हैं, जैसे मानो इन्हें किसी ने मल दिया हो। इसी कारण इन्हें परिमल भी कहा जाता है।

कवयित्री कहती है कि जिस तरह हार के टूटने पर उसके मोती चारों तरफ बिखर जाते हैं। उसी तरह आकाश में यह बादल छोटे-छोटे टुकड़ों में चारों तरफ उसी तरह बिखर जाते हैं। ऐसे लगता है कि आकाश में चारों तरफ हीरे-मोती बिखरे पड़े हो यानी कि रात के समय जिस तरह जुगनू धरती पर जगमगाते हैं और हीरे के समान दिखाई देते हैं, उसी तरह आकाश में यह बादल भी हीरे के समान दिखाई पड़ रहे हैं। यह बादल अपने छोटे से दिल में सुख-दुख का संदेश लेकर आए हैं। जब यह वर्षा करते हैं तो वर्षा की बूंदे मोती के समान व्यक्ति हैं और ऐसा लगता है कि इन बादलों से मोती बरस रहे हों। कवयित्री बादलों को देखकर आश्चर्यचकित हैं। वह मन में सोच रही हैं कि यह घने बादल अब कौन सा संदेश लेकर आए हैं।


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‘गिल्लू’ पाठ में लेखिका की मानवीय संवेदना अत्यंत प्रेरणादायक है । टिप्पणी लिखिए ।

लेखिका व गिल्लू के आत्मिक संबंधों पर प्रकाश डालिए।

‘विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के चुनावी उद्देश्य’ 2024 के आम लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए निबंध लिखिए।

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निबंध

विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के चुनावी उद्देश्य

 

राजनीतिक पार्टियाँ चाहे किसी भी विचारधारा की हों, चाहे कोई भी पार्टी हो, हर राजनैतिक पार्टी के कॉमन चुनावी उद्देश्य होता है, वह कॉमन चुनावी उद्देश्य है कि किसी भी तरह सत्ता को प्राप्त करना। सत्ता की कुर्सी प्राप्त करना उनका एक बड़ा उद्देश्य होता है, इसके लिए सारी राजनीतिक पार्टियां सभी तरह के साम-दाम-दंड-भेद अपनाती हैं।

सभी राजनीतिक पार्टियां घोषणा पत्र के नाम पर अपनी भविष्य की योजनाओं को पेश करती हैं कि वह सत्ता में आने पर क्या-क्या करने वाली हैं, लेकिन सामान्यतः यह देखा क्या है कि जितनी भी राजनीतिक पार्टियां हैं, उनके घोषणा पत्र में जो-जो वादे किए होते हैं, सत्ता में आने पर राजनीतिक पार्टियां उन वादों में से अधिकतर वादों को भूल जाती हैं और औपचारिकता के लिए इक्का-दुक्का वादे ही करती हैं।

किसी भी राजनीतिक पार्टी का यह इतिहास नहीं रहा है कि उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए सभी बातें शत-प्रतिशत ज्यों-के-त्यों पूरे किए हों। उनके द्वारा किए गए वादे मतदाता को अपनी तरफ वोट करने के लिए आकर्षित करने का एक हथियार होता है।

वर्तमान समय के लोकसभा चुनाव यानी 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में देखा जाए तो अलग-अलग पार्टियों के चुनावी उद्देश्य अलग-अलग हैं। इस समय देश में दो मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों हैं, एक वर्तमान सत्ता में सत्तारुढ़ पार्टी भारतीय जनता पार्टी है जो 10 साल से भारत की केंद्रीय सत्ता में काबिज पार्टी है। दूसरी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी है जो 10 साल पहले तक के 10 सालों तक सत्ता में रही और उससे पहले भी 1947 से 1995 तक उसने लगभग 43-44 साल तक भारत की सत्ता पर राज किया है।

वर्तमान समय में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है। संख्या बल की दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी बेहद मजबूत स्थिति में है और तो उसे स्पष्ट रूप से बहुमत प्राप्त है जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी अपने इतिहास के सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है, वह कांग्रेस पार्टी जिसने 55 सालों तक देश की सत्ता पर राज किया, वह इस समय अपने न्यूनतम स्तर पर है और उसके खाते में केवल 56 लोकसभा सीटें ही हैं।

चुनावी उद्देश्य

दोनों राजनीतिक दल के चुनावी उद्देश्यों को ध्यान में रखा जाए तो दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के चुनावी उद्देश्य अलग-अलग हैं। भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर का निर्माण, दुश्मन देश को घर में घुसकर जवाब देना, तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य, धारा 370 को हटाना, देश में सड़कों का निर्माण, देश की 80 करोड़ जनता को मुफ्त राशन आदि जैसी चुनावी मुद्दों पर टिकी हुई है।

भारतीय जनता पार्टी की मुख्य विचारधारा धर्म पर आधारित है और वह बहुसंख्यक हिंदू धर्म को केंद्र में रखकर अपनी राजनीति करती है और बहुसंख्यक समाज को अपनी ओर लुभाने का प्रयास करती है। भारतीय जनता पार्टी का चुनावी उद्देश्य यह है कि वह जातियों में बंटे बहुसंख्यक हिंदू समाज को हिंदू धर्म के नाम पर एकजुट करके उन्हें अपने पाले में खींचता चाहती है, ताकि वह तीसरी बार भी लोकसभा चुनाव में सत्ता प्राप्त कर सके।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सेकुलर विचारधारा वाली पार्टी है। वह अल्पसंख्यक समाज, विशेष कर मुस्लिम समाज पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है। वह मुस्लिम अल्पसंख्यक को अपने पाले में खींचना चाहती है और अल्पसंख्यक समाज ही उसका मुख्य कोर वोटर है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अहम मुद्दे बेरोजगारी, महंगाई तथा देश में हिंदू-मुस्लिम समुदाय में बढ़ती वैमनस्यता है। वह इन मुद्दों के लिए सत्तारुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी को दोषी मानती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इन मुद्दों को केंद्र में रखकर चुनाव में जीत हासिल करना चाहती है। वह उसका चुनावी उद्देश्य है कि वह यदि सत्ता में आई तो अपनी सेकुलर का विचारधारा को आगे बढ़ाएगी। हालांकि उसकी चुनावी उद्देश्यों में मुस्लिम पुष्टिकरण की नीति प्रभावी रही है और वह अक्सर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए जानी जाती है।

इस तरह दोनों मुख्य राष्ट्रीय दलों के चुनावी उद्देश्य अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग हैं। इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा कई अन्य राष्ट्रीय पार्टियां भी हैं, जिनका उतना व्यापक प्रभाव नहीं है, जिनमें आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस आदि के नाम प्रमुख हैं।

इसके अलावा ऐसी कई क्षेत्रीय पार्टियों हैं जो केवल अपने राज्यों तक ही सिमटी हुई है। इनमें कुछ पार्टियों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ है तो कुछ पार्टियों नए बने इंडिया एलायंस के साथ हैं, जिसका नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर रही है।

संक्षेप में कहा जाए तो 2024 के लोकसभा चुनाव ही नहीं कोई भी लोकसभा चुनाव हो, सभी राजनीतिक पार्टियों का मुख्य उद्देश्य किसी भी तरह सत्ता को हासिल करना होता है। इसके लिए वह अपने मुख्य विरोधी पर किसी भी तरह के झूठे आरोप लगाने से भी नहीं चूकतीं है।

राजनीतिक पार्टियों सत्ता हासिल करने के लिए बड़े-बड़े वादे करती हैं और बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन यदि उन्हें सत्ता प्राप्त हो जाती है तो वह उन सभी को भूलकर अपना हित साधने में लग जाती हैं।

भारत की राजनीति में यही सबसे बड़ी विडंबना है, जिस कारण देश विकास के पद पर उस तीव्र गति से नहीं चल पा रहा है जैसा कि उसे चलना चाहिए था।


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उपसर्ग और प्रत्यय की परिभाषाएं। (हिंदी व्याकरण)

हिंदी व्याकरण में उपसर्ग’ और प्रत्यय’ वे शब्दांश होते हैं, जो किसी शब्द के आगे अथवा पीछे लग कर उस शब्द का अर्थ परिवर्तित कर देते हैं अथवा उस शब्द के अर्थ को विस्तारित करते हैं। आइए हिंदी व्याकरण के अंतर्गत उपसर्ग और प्रत्यय को समझते हैं।

उपसर्ग और प्रत्यय

हिंदी भाषा में शब्दों की रचना करते समय अनेक तरह की विधियां अपनाई जाती हैं। उपसर्ग एवं प्रत्यय इन्हीं विधियों में से दो विधियां हैं, जिनकी सहायता से शब्दों के आरंभ अथवा अंत में कुछ नए शब्दांश जोड़कर नए शब्द गढ़े जाते हैं अथवा जो मूल शब्द होता है, उसको या तो विशेषण प्रदान किया जाता है अथवा उस शब्द के अर्थ को विस्तारित कर दिया जाता है।

उपसर्ग की परिभाषा

उपसर्ग’ वे शब्दांश होते हैं, जो किसी शब्द के आरंभ में लगाए जाते हैं। यह शब्दांश सार्थक एवं छोटे खंड के रूप में शब्द के आरंभ में लगकर उस शब्द से एक नए शब्द का निर्माण करते हैं और उस शब्द का अर्थ परिवर्तित हो जाता है। यह शब्दांश मूल शब्द के लिए एक विशेषण का भी कार्य करते हैं। अर्थात नया बना शब्द विशेषण युक्त शब्द होता है।

उपसर्ग का अर्थ है, समीप आकर जुड़ना। अर्थात जो शब्दांश किसी शब्द के समीप आरंभ में आकर जुड़ जाता है, वह उपसर्ग’ कहलाता है। हिंदी भाषा में 4 तरह के उपसर्ग प्रयुक्त किए जाते हैं।

  • संस्कृत आधारित उपसर्ग
  • हिंदी आधारित उपसर्ग
  • उर्दू आधारित उपसर्ग
  • अंग्रेजी आधारित उपसर्ग

उपसर्ग के कुछ उदाहरण

अति + क्रमण : अतिक्रमण
अति + श्योक्ति : अतिश्योक्ति
अति + अंत : अत्यन्त
अभि + मान : अभिमान
अभि + योग : अभियोग
अभि + वादन : अभिवादन
अभि + नय : अभिनय
अभि + भाषण : अभिभाषण
अव + गुण : अवगुण
अव + गति : अवगति
अव + शेष : अवशेष
अव + आज्ञा : अवज्ञा
अव + रोहण : अवरोहण
अप + यश : अपयश
अप + कार : अपकार
अप + कीर्ति : अपकीर्ति
अप + शकुन : अपशकुन
उप+ भोग : उपभोग
उप + हार : उपहार
उप + नाम : उपनाम
उप + योग : उपयोग
दुर् + दशा : दुर्दशा
दुर् + आग्रह : दुराग्रह
दुर् + गुण : दुर्गुण
दुर् + आचार : आचार
दुर् + आचार : दुराचार
दुर् + उपयोग : दुरुपयोग
दुर् + अवस्था : दुरावस्था

प्रत्यय की परिभाषा

‘प्रत्यय’ से तात्पर्य किसी शब्द के अंत में लगने वाले उन शब्दांशों से है, जो उस शब्द के अर्थ को विस्तारित करते हैं अथवा उस शब्द के अर्थ को बदल देते हैं। प्रत्यय शब्द के अंत में लगकर उस शब्द के अर्थ में विशेषता ला देते हैं अथवा उसमें परिवर्तन कर देते हैं।

प्रत्यय’ का शाब्दिक अर्थ है, साथ में किंतु बाद में चलने वाला’। प्रत्यय’ शब्द के बाद में लगते हैं और किसी संज्ञा के शब्द के अंत में जातिवाचक को भाववाचक या व्यक्तिवाचक संज्ञा को जातिवाचक या भाववाचक संज्ञा में बदल देते हैं।

प्रत्यय के कुछ उदाहरण

सांस्कृतिक : संस्कृति + इक
सामाजिक : समाज + इक
व्यक्तितव : व्यक्ति + तव
पहननावा : पहन + आवा
दिखावा : दिक + आवा
अच्छाई : अच्छा +
महंगाई : महंगा +
घबराहट : घबरा + आहट
दिखावट : दिखा + आवट
दुकानदार : दुकान + दार
ईमानदार : ईमान + दार
खटास : खट्टा + आस
चतुरता : चतुर + ता
पागलपन : पागल + पन
सुनार : सोना + आर
लडकपन : लड़क + पन
चिकनाहट : चिकना + आहट
ईमानदार : ईमान + दार
धोखेबाज : धोखा + बाज
नकली : नकल +
सरकारी : सरकार +
पढना : पढ़ + ना
लगाव : लग + आव
मेहरबानी : मेहर + बानी
मौलिक : मूल + इक
सामजिक : समाज + इक
जवानी : जवान +
चलना : चल + ना
नौकरी : नौकर +
लोकप्रियता : लोकप्रिय + ता
सफलता : सफल + ता


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दिए गए उपसर्ग से दो-दो शब्द बनाइए- (क) पुनर् (ख) हर (ग) सम् (घ) कु (च) अ (छ) बिन (ज) प (ङ) स्व

‘समाहार’ में कौन सा प्रत्यय होगा?

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे। भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी।। हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा। त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा। जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी। कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।। आँधी पीछे जो जल बुठा, प्रेम हरि जन भींनाँ। कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।। कबीर के इस दोहे का भावार्थ बताएं।

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी।।
हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।।
आँधी पीछे जो जल बुठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।।

कबीर की इन साखियों का भावार्थ इस प्रकार है…

भावार्थ :  कबीरदास कहते हैं कि जब गुरु के माध्यम से ज्ञान का प्रकाश होता है, तब मन में व्याप्त सारे विषय-विकार रूपी अंधेरा मिट जाता है। गुरु के ज्ञान के प्रकाश के तेज से शिष्य के मन में व्याप्त भ्रम, माया का आश्रय सब हवा में उड़ जाता है। गुरु की कृपा से भ्रम और अज्ञानता मन में नहीं रह पाता। तब मोह और लोभ के खंभे गिरने लगते हैं। मोह का बलिण्डा टूटने लगता है, जो माया रुपी खंबे तृष्णा को बांधे रखते हैं, वह भी टूटने लगते हैं और छत भरभरा कर टूट कर नीचे गिरने लगती है। तब मन में व्याप्त कुबुद्धि का सारा भांडा फूट जाता है।

इस सारी आंधी के पश्चात जो ज्ञान की बारिश होती है, उससे मन में जो भी अज्ञानता रूपी कूड़ा-करकट जमा हुआ होता है, वह सब साफ हो जाता है। ज्ञान रूपी इस बारिश में सभी ज्ञानी जन ज्ञान के रस से भीग जाते हैं। ज्ञान के प्रकाश के कारण मोहमाया भ्रम आदि सभी अंधकार दूर हो उठते हैं।

व्याख्या : कबीर ने यहाँ पर गुरु के ज्ञान की महिमा का बखान कर रहे हैं। उनके कहने का आशय यह है कि जो गुरु से सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लेता है। वह अपने मन के सारे अंधकारों को दूर कर लेता है। उसके अंदर से लोभ-मोह तृष्णा इच्छा कामनाएं माया सभी विकार समाप्त हो जाते हैं और वह परम तत्व को प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो जाता है।


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कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि। मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।। भावार्थ लिखिए।

‘हम जब होंगे बड़े’ कविता का भावार्थ लिखें।

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कविता का भावार्थ

हम जब होंगे बड़े

हम जब होंगे बड़े, देखना
ऐसा नहीं रहेगा देश।
अब भी कुछ लोगों के दिल में
नफरत अधिक, प्यार है कम.
हम जब होंगे बड़े, घृणा का
नाम मतकर लेंगे दम।

हिंसा के विषमय प्रवाह में
कब तक और बहेगा देश
भ्रष्टाचार जमाखोरी की,
आदत बड़ी पुरानी है
यह कुरीतियां मिटा हमें तो
नई चेतना लानी है।
एक घरौंदे जैसा आखिर
कितना और ढहेगा देश?

इसकी बागडोर हाथों में
जरा हमारे आने दो,
थोड़ा सा बस पांव हमारा
जीवन में टिक जाने दो।

हम खाते हैं शपथ, दुर्दशा
कोई नहीं सहेगा देश।
हम भारत का झंडा हिमगिरी
से ऊंचा फहरा देंगे,
रेगिस्तान, बंजरों तक में
हरियाली लहरा देंगे।

घोर अभावों की ज्वाला में
कल तक नहीं दहकेगा देश

संदर्भ : यह कविता कवि बालस्वरूप राही द्वारा रचित कविता है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने आने वाली पीढ़ी यानी बच्चों के मन के भावों को प्रकट किया है।

कविता में बच्चे अपने मन के भावों को प्रकट करते हुए कहते हैं कि जब वह बड़े होंगे तो देश में जो भी नकारात्मकता फैली हुई है, उसे सकारात्मक में बदलकर रख देंगे। कविता के माध्यम से कवि ने भाभी पीढ़ी के मन के विचारों को सकारात्मक रूप में प्रकट करने की चेष्टा की है।

भावार्थ : कवि कहते हैं कि बच्चों का कहना है, जब वह बड़े होंगे तो भारत देश ऐसा नहीं रहेगा, जैसा इस समय है। जहाँ पर लोगों के दिल में घृणा बहुत अधिक है। लोग एक दूसरे से घृणा करते हैं, लोगों के दिल में प्यार की कमी है। लोग घृणा की आग में जलते जा रहे हैं। वह जब बड़े होंगे तो इस घृणा को संसार से मिटा देंगे।

कवि कहते हैं कि बच्चों का कहना है कि वर्तमान समय में चारों तरफ हिंसा और मारकाट मची हुई है। लोग एक दूसरे का गला काटने से नहीं चूकते। चारों तरफ समाज में नकारात्मकता ही फैली हुई है। भ्रष्टाचार का चारों तरफ बोलबाला है। लोगों में जमाखोरी आदत बहुत गहराई तक फैली हुई है। ये आदत भारतवासियों में काफी समय से हैं। यह सारी बुरी आदतें समाज की कुरीति के समान है।

वह जब बड़े होंगे तो वह समाज की इन कुरीतियों को मिटाएंगे। वह समाज में जागृति लाएंगे ताकि भ्रष्टाचार और जमाखोरी का नाम और निशान मिट जाए और देश विकास के पथ पर आगे बढ़े।

बच्चे कहते हैं कि जब वह बड़े होंगे और जैसे ही इस देश की बागडोर यानि देश का संचालन उनके हाथों में आएगा वह अपने देश को उतार-चढ़ाव वाले इस वातावरण से बाहर निकलने में पूरा जोर लगा देंगे और देश को अधोगति में जाने से बचाएंगे। वह देश में पहली अव्यवस्था को मिटा कर देश की दुर्दशा को सुधारेंगे और पूरे संसार में भारत का सम्मान बढ़ाएंगे।

बच्चे कहते हैं कि वह भारत के ध्वज को हिमालय से भी ऊंचा फहराएंगे। वह अपने सार्थक प्रयासों द्वारा रेगिस्तान और बंजर धरती पर भी हरियाली ला देंगे यानी बच्चे कहते हैं कि वह देश के हर हिस्से को विकसित और समृद्ध बनाएंगे। वह देश में फैले हर तरह के अभाव को दूर करेंगे। उनका एकमात्र उद्देश्य यही है कि देश में संपन्नता और समृद्धि आए और हर हर भारतवासी खुश रहे।

कविता का मूल भाव

इस कविता के माध्यम से कवि ने छोटे नन्हे बच्चों के मन के भावों को व्यक्त किया है कि वह बड़े होकर अपने देश के लिए क्या करना चाहते हैं। वह देश में फैली नकारात्मकता और सभी तरह की बुराइयों को दूरकर देश में सकारात्मक लाने चाहते हैं तथा भारत की समृद्धि में अपना पूरा योगदान देना चाहते हैं। ये कविता आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देने का कार्य करती है, और नई पीढ़ी को देश का जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए प्रेरित करती है।


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‘भ्रष्टाचार जमाखोरी की आदत बड़ी पुरानी है, यह कुरीतियां मिटाने हमें तो नई चेतना लानी है।’ इस पंक्ति का सरल भावार्थ बताएं। (कविता – हम जब होंगे बड़े)

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देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है (निबंध)

‘भ्रष्टाचार जमाखोरी की आदत बड़ी पुरानी है, यह कुरीतियां मिटाने हमें तो नई चेतना लानी है।’ इस पंक्ति का सरल भावार्थ बताएं। (कविता – हम जब होंगे बड़े)

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भ्रष्टाचार जमाखोरी की आदत बड़ी पुरानी है, यह कुरीतियां मिटाने हमें तो नई चेतना लानी है।

संदर्भ : कवि बालस्वरूप राही द्वारा रचित कविता ‘हम जब होंगे बड़े’ की इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है…

सरल भावार्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि का कहने का आशय यह है कि हमारे समाज में भ्रष्टाचारी और जमाखोरी की प्रवृत्ति बहुत पुरानी है। यह प्रवृत्ति हमारे देश और समाज में गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुकी है। हमें इन कुरीतियों को मिटाना है। समाज को जागरूक करना है। समाज को ईमानदार बनाना है। तब ही हम आगे बढ़ सकेंगे।

विशेष व्याख्या : यहाँ पर कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि सरकारी विभागों तथा अन्य निजी विभागों में भ्रष्टाचार एक आम समस्या है। अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। कोई भी काम बिना रिश्वत दिए नही होता। भ्रष्टाचार की इस समस्या के अतिरिक्त अधिक मुनाफे के लालच में जमाखोरी करना तथा वस्तु की जमा करके बाद में उसकी काला बाजारी करना यह प्रवृत्ति भी बहुत पुरानी है। यह दोनों प्रवृत्तियां समाज के लिए कुरीति बन गई हैं। हमें इन कुरीतियों को मिटाना है। समाज के लोगों को इन बुराइयों से दूर रहने की लिए जागरूक करना है। ऐसा करने के बाद ही हमारा देश समाज आगे बढ़ सकता है।

हम जब होंगे बड़े’ कविता के माध्यम से कवि बालस्वरूप राही ने बच्चों को प्रेरणा देने का कार्य किया है। कवि बच्चों को संदेश देते हुए कहते हैं कि जब बच्चे बड़े होंगे तो देश की इस समय जो वर्तमान तस्वीर है, वैसे ही तस्वीर नहीं रहनी चाहिए। हमें देश में व्याप्त हर बुराई को मिटा देना चाहिए ताकि जब बच्चे बड़े हों तो उन्हें एक आदर्श देश मिले।


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इस संसार की रचना में किसकी चतुराई के दर्शन होते हैं ?

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इस संसार की रचना में ईश्वर की चतुराई के दर्शन होते हैं।

‘प्रकृति की शोभा’ कविता में कवि ‘श्रीधर पाठक’ कहते हैं कि ईश्वर ने कि संसार की रचना करते समय संसार ऐसी चतुराई दिखाई कि प्रकृति के हर तत्व का अपना महत्व और अपनी सुंदरता है। यहां पर भांति भांति के पक्षी, पशु हैं, रंग-बिरंगे फूल हैं। वनों में पेड़ों की लहराती लताए हैं, नव कणिकाएं हैं, नदियां, झील, सरोवर हैं, तो उनमें खिले कमल पर मंडराते भंवरों की गूंज सुनाई दे रही है। चारों तरफ पहाड़ों की सुंदर मनोहर इस चोटियां हैं, निर्मल जल से बहते हुए झरने हैं। अलग-अलग ऋतु का समय समय पर आना और जाना, सूर्य और चंद्र की अद्भुत शोभा, बारी बारी से दिन और रात का आना जाना, आसमान में बिखरे हुए तारे, समुद्र का असीम विस्तार यह सब देखकर इसमें स्पष्ट होता है कि संसार की रचना में ईश्वर की चतुराई के दर्शन होते हैं।


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छुट्टियों में दिन कैसे बिताए (एक विद्यार्थी की कलम से)

 

छुट्टियां किसको प्यारी नहीं होती। विद्यार्थियों को तो गर्मी की छुट्टियों का पूरे साल इंतजार रहता है। जब गर्मी की छुट्टियां आती हैं तो परीक्षा के तनाव से राहत मिलती है। परीक्षा खत्म होते ही गर्मी की छुट्टियां आरंभ हो जाती हैं। परीक्षा के कठिन परिश्रम के बाद छुट्टियां मिलना ऐसा लगता है कि जैसे गरम तपती धूप में अचानक वर्षा की शीतल तो फुहारे पड़ रही हों।

मेरी भी जब गर्मी की छुट्टियां पड़ी तब बड़ी खुशी का अनुभव हुआ। इस बार मैंने सोचा कि सारी छुट्टियां मौज-मस्ती करते बीत जाती हैं, इससे समय का सही उपयोग नहीं हो पाता। क्यों ना इस बार छुट्टियों में कुछ ऐसे उपयोगी काम किए जाएं जो आगे जीवन में काम आए और समय का सही उपयोग हो। यानि छुट्टियों का सही सार्थक उपयोग किया जा सके।

विद्यालय की परीक्षा समाप्त होने के बाद छुट्टियां पड़ते ही मैंने कुछ वोकेशनल कोर्स करने का विचार बना लिया। मैंने ड्राइंग एवं पेंटिंग का कोर्स किया। मैंने कोडिंग सीखी और कुछ एप बनाए। इसके अलावा मैंने तैराकी सीखी। मैंने ग्राफिक डिजाइनिंग से संबंधित कुछ कोर्स भी सीखे। बीच-बीच में चार-पांच दिन के लिए मैं इधर-उधर अपने दोस्तों के साथ घूमने भी चला जाता था।

10 दिन के लिए मैं अपनी नानी के घर भी गया। उनके गाँव में प्राकृतिक वातावरण में आनंद आ गया। चूँकि सारे कोर्स में ऑनलाइन सीख रहा था इसलिए मुझे कहीं आने-जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मेरे पापा ने मुझे लैपटॉप दिला दिया था। मेरा लैपटॉप मेरे साथ रहता था। इस तरह मैंने खूब मौज मस्ती भी की और कुछ हुनर भी सीखे और अपने भविष्य के लिए कुछ सार्थक ज्ञान भी अर्जित किया। अर्थात मैने छुट्टियों को पूरी तरह नहीं व्यर्थ नही जाने दिया और उनका सदुपयोग किया। सभी विद्यार्थियों छुट्टियों का ऐसा ही सार्थक उपयोग करना चाहिए। छुट्टियों को केवल घूमने-फिरने और मौज मस्ती करने में ही नहीं नष्ट नहीं कर देना चाहिए।


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नौरंगिया कविता की संदर्भ सहित व्याख्या

संदर्भ : ‘नौरंगिया’ कविता कवि कैलाश गौतम द्वारा रचित कविता है। इस कविता में उन्होंने एक ग्रामीण स्त्री ‘नौरंगिया’ की जीवन दशा का वर्णन किया है। नौरंगिया सभी ग्रामीण स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती है। वह उस कमजोर वर्ग का भी प्रतिनित्व करती है, जो समाज में सांमती वर्ग के लोगों द्वारा शोषण का शिकार है।

व्याख्या

देवी-देवता नहीं मानती, छक्का-पंजा नहीं जानती
ताकतवर से लोहा लेती, अपने बूते करती खेती,
मरद निखट्टू जनख़ा जोइला, लाल न होता ऐसा कोयला,
उसको भी वह शान से जीती, संग-संग खाती, संग-संग पीती
गाँव गली की चर्चा में वह सुर्ख़ी-सी अख़बार की है
नौरंगिया गंगा पार की है ।

व्याख्या : कवि कहते हैं कि नौरंगिया देवी-देवता अर्थात किसी भी भगवान को नहीं मानती। वह अपने कर्म में विश्वास रखने वाली एक कर्मठ स्त्री है। वह एक निष्कपट स्त्री है और किसी भी तरह के छल-कपट-षड्यंत्र से दूर रहती है। वह एक जुझारू और साहसी स्त्री है, जो ताकतवर सामंतवर्गी लोगों जैसे कि जमींदार, महाजन, ठेकेदार आदि से भी नहीं डरती और उनका डटकर सामना करती है।

नौरंगिया अपने बूते पर खेती करती है यानी वह एक परिश्रमी स्त्री है और अपने दम पर परिश्रम कर कर अपना पेट पालती है। नौरंगिया का पति एकदम कामचोर है। वह कोई कार्य नहीं करताष उसका रंग कोयले की तरह काला है। इस सबके बावजूद नौरंगिया उसके साथ हंसी-खुशी रहती है और उसके साथ अपना जीवन हंसी-खुशी निर्वाह कर रही है। नौरंगिया के कर्मठ, जीवट और परिश्रमी स्वभाव के कारण उसके गाँव की हर गली में उसकी चर्चा रहती है। सब लोग उसके बारे में बातें करते हैं। वह गंगा पार के एक गाँव में रहती है।

कसी देह औ’ भरी जवानी शीशे के साँचे में पानी
सिहरन पहने हुए अमोले काला भँवरा मुँह पर डोले
सौ-सौ पानी रंग धुले हैं, कहने को कुछ होठ खुले हैं
अद्भुत है ईश्वर की रचना, सबसे बड़ी चुनौती बचना
जैसी नीयत लेखपाल की वैसी ठेकेदार की है ।
नौरंगिया गंगा पार की है ।

व्याख्या : कवि नौरंगिया के शारीरिक बनावट के बारे में बताते हुए कहते हैं कि नौरंगिया एक जवान स्त्री है। उसका शरीर बेहद गठीला और सुंदर है। अपनी जवानी में उसका शरीर शीशे के सांचे में पानी के जैसा दिखाई देता है। उसकी सुंदर माथे पर उसके काले बालों की लटें ऐसी दिखाई देती है, जैसे काला भंवरा मुँह पर डोल रहा हो। उसके शरीर का रंग एकदम साफ है और ऐसे लग रहा है कि उसके शरीर को 100 बार धोया गया हो, जिसका कारण शरीर एकदम चमकता रहता है। उसको भगवान ने सुंदर शरीर दिया है। उसका यह सुंदर शरीर ही उसके लिए अभिशाप बन गया है। उसकी सुंदरता के कारण लिखा-पढ़ी करने वाला लेखपाल और गाँव का ठेकेदार भी उस पर बुरी नीयत रखते हैं।

जब देखो तब जाँगर पीटे, हार न माने काम घसीटे
जब तक जागे, तब तक भागे, काम के पीछे, काम के आगे
बिच्छू, गोंजर, साँप मारती, सुनती रहती विविध-भारती
बिल्कुल है लाठी सी सीधी, भोला चेहरा बोली मीठी
आँखों में जीवन के सपने तैय्यारी त्यौहार की है ।
नौरंगिया गंगा पार की है ।

व्याख्या : कवि कहते हैं कि नौरंगिया बेहद परिश्रमी स्त्री है और वह जब देखो हमेशा काम में मगन रहती है। वह कभी भी हार नहीं मानती और हर समय अपने काम में लगी रहती है। वह सुबह-सुबह उठते ही अपने खेतों की तरफ भागती है और अपने खेतों में जी-तोड़ मेहनत में लग जाती है। उसके खेतों में बिच्छू, गोंजर, सांप जैसे जीव जंतु अक्सर निकलते रहते हैं। वह उनसे भी नहीं डरती और उनको मार देती है या भगा देती है।

वह अपना काम करते-करते रेडियो पर विविध भारती सुनती रहती है, जिससे उसका काम में मन लगा रहता है। उसका शरीर लाठी के जैसा सीधा है। उसके चेहरे पर भोली-भाली मासूमियत है। उसकी वाणी भी बेहद मधुर है और वह सबसे मीठी बोली में बात करती है। उसकी आँखों में अपने सुंदर भविष्य के लिए सपने तैरते रहते हैं और वह अपने भविष्य और आने वाले तीज-त्योहारों की कल्पनाओं और तैयारियों में डूबी रहती है।

ढहती भीत पुरानी छाजन, पकी फ़सल तो खड़े महाजन
गिरवी गहना छुड़ा न पाती, मन मसोस फिर-फिर रह जाती
कब तक आख़िर कितना जूझे, कौन बताए किससे पूछे
जाने क्या-क्या टूटा-फूटा, लेकिन हँसना कभी न छूटा
पैरों में मंगनी की चप्पल, साड़ी नई उधार की है ।
नौरंगिया गंगा पार की है।

व्याख्या : कवि कहते हैं कि नौरंगिया जिस घर में रहती है, वह घर बेहद कमजोर हो चुका है। उस घर की दीवारें गिर चुकी हैं और पुराने छज्जे की हालत भी जर्जर है। नौरंगिया इस टूटे-फूटे घर में रहती है। वह अपने घर की मरम्मत तक नहीं कर पाती क्योंकि जब भी उसके खेतों की फसल पककर तैयार होती है तो महाजन उसके दरवाजे पर आकर खड़े हो जाते हैं और अपने पैसों की वसूली के नाम पर उसकी पकी हुई फसल को ले जाते हैं।

नौरंगिया ने संकट के समय अपने कुछ गहने गिरवी महाजनी के पास रख दिए थे, जिन्हें वह अभी तक छुड़वा नहीं पा रही है। वह अपना मन-मसोसकर रह जाती है। वह स्वयं से पूछती है कि वह आखिर कितना संघर्ष करे। वह अपने मन की बात किस से कहे। वह किसी से अपने मन की व्यथा को नहीं कह पाती। उसके वह सारे सपने टूट कर बिखर गए जो उसने अपने सुंदर भविष्य के लिए देखे थे।

इन सब विषम परिस्थितियों और दुखों के बावजूद भी नौरंगिया हमेशा खुश रहने का प्रयत्न है और वह निरंतर हँसती-मुस्कुराती रहती है। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर है कि उसके पास पहनने के लिए ढंग की चप्पलें तक नहीं है। वह मांगी हुई चप्पल को पहन कर अपना गुजारा करती है। उसके पास पहनने के लिए ढंग से कपड़े तक नहीं है। उसने जो साड़ी पहनी हुई है, वह भी उसने किसी से उधार लेकर पहनी है। इस तरह नौरंगिया की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है।

कैलाश गौतम

कैलाश गौतम हिंदी जनवादी कवि के रूप में मशहूर रहे हैं। अपनी कलम से वे भारत के ग्रामीण और आमजन से संबंधित कविताओं को उकेरने का कार्य करते रहे हैं। उन्होंने अपनी कलम के माध्यम से अनेक सामाजिक व्यथा से भरी कविताओं की रचना की है।

उनका जन्म 1 अगस्त 1944 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी नमक जिले के चंदौली नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने एमए और बीएड तक शिक्षा हासिल की।उन्होंने लंबे समय तक आकाशवाणी, इलाहाबाद में कार्य किया।

उनकी प्रसिद्ध रचना रचनाओं में सीली माचिस की तीलियां, कविता लौट, पड़ी, बिना कान का आदमी, सर पर आग, तीन चौथाई आन्हर, जोड़ा लाल जैसे काव्य संग्रहों के नाम प्रमुख हैं।

उनका निधन 9 अक्टूबर 2006 में हुआ।


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‘नौरंगिया’ कविता के आधार पर ‘नौरंगिया’ की दिनचर्या और चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

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‘नौरंगिया’ नामक कविता जनवादी कवि ‘कैलाश गौतम’ द्वारा लिखी गई कविता है। इस कविता में उन्होंने ‘नौरंगिया’ नाम एक ग्रामीण स्त्री की जीवन दशा का वर्णन किया है।

‘नौरंगिया’ कविता आधार के आधार पर कहें तो नौरंगिया कविता में नौरंगिया की दिनचर्या नियमित है। वह सुबह-सुबह उठकर अपने खेतों पर चली जाती है और अपने खेत में जी-तोड़ मेहनत करती है। वह दिनभर अपने खेतों में परिश्रम में लगी रहती है। वह अपने खेतों से शाम को ही वापस आ पाती है।

नौरंगिया कविता के आधार पर नौरंगिया की विशेषताएं

नौरंगिया कविता के आधार पर नौरंंगिया कविता की विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  • नौरंगिया देवी देवताओं अर्थात भगवान में विश्वास नहीं करती। वह किसी भी देवी देवता को नहीं मानती नहीं।
  • नौरंगयि एक कर्मठ स्त्री है। वह केवल कर्म में विश्वास रखती है। कर्म और परिश्रम ही उसके देवी-देवता हैं।
  • नौरंगिया किसी भी तरह के छल-कपट की नहीं जानती है। वह एकदम सीधी-सादी है और किसी भी तरह के छल-कपट-षड्यंत्र से दूर रहती है।
  • नौरंगिया एक परिश्रमी स्त्री है, जो अपने खेतों में जी तोड़ मेहनत करती है। वह दिन भर अपने खेतों में परिश्रम करती रहती है।
  • नौरंगिया एक साहसी और जुझारू स्त्री है। वह किसी भी तरह की मुसीबत से नहीं घबराती और हर संकट का सामना साहस से करती है।
  • नौरंगिया का पति एकदम कामचोर है और वह कोई कार्य नहीं करता, उसके बावजूद नौरंगिया उसके साथ अपना जीवन निर्वाह कर रही है, वह कोई शिकायत नहीं करती।
  • नौरंगिया एक साहसी स्त्री है, जो जमींदार और सामंतों से भिड़ने में भी संकोच नही करती है। अपने हक के लिए लड़ना जानती है।
  • नौरंगिया गंगा पार रहती है। उसके मेहनती और स्वावलंबी स्वभाव के कारण गाँव गली में सब लोग उसकी चर्चा करते हैं।
  • नौरंगिया एक युवती है। शारीरिक दृष्टि से नौरंगिया एक सुंदर स्त्री है और देखने में वह आकर्षक व्यक्तित्व की स्त्री है। उसका रंग साफ है। वह गठीले शहर की सुंदर स्त्री है। जिस कारण उसके सुंदर शरीर पर ठेकेदार और लेखपाल जैसे दबंग लोग अपनी बुरी नीयत रखते हैं।
  • नौरंगिया दिन भर काम के पीछे भागने वाली स्त्री है वह हर समय  अपने काम में लगी रहती है।
  • दिन भर जी-तोड़ परिश्रम के बाद भी नौरंगिया की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इतनी सारी मेहनत करने के बावजूद नौरंगिया अपने लिए पर्याप्त धन नहीं जुटा पाती। जब उसकी खेतों की फसल पक जाती है तो महाजन आदि उसकी फसलों को ब्याज आदि के नाम पर हड़प कर जाते हैं।
  • उसके पास पहनने के लिए ढंग की चप्पल और ढंग के कपड़े तक तक नहीं है। वह मांगी हुई चप्पल पहनती है और साड़ी भी उसने किसी से उधार लेकर पहनी है।
  • वह अपने गिरवी रखे हुए गहने तक नहीं छुड़ा पाती और मन-मसोसकर रह जाती है। अपनी मन की व्यथा को किसी से कह भी नहीं पाती।
  • उसका स्वभाव विनम्र और वाणी मधुर है अर्थात वह सबसे मीठी बोली में बात करती है।
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‘तत्पुरुष समास’ की परिभाषा के अनुसार जब दोनों पदों में दूसरा पद प्रधान हो तो वहाँ तत्पुरुष समास होता है।

जैसे

  • मोहबंधन : मोह का बंधन
  • प्रसंगोचित : प्रसंग के अनुसार
  • राजकन्या : राजा की कन्या
  • देवालय : देव का आलय
समास की परिभाषा

समास से तात्पर्य शब्दों के संक्षिप्तीकरण से होता है। हिंदी व्याकरण की भाषा में समास उस प्रक्रिया को कहते हैं, जब दो या दो से अधिक पदों का संक्षिप्तीकरण करके एक नवीन पद की रचना की जाती है।


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स्वच्छता के ऐसे काम की सूची जो हम हर रोज़ करते है, वह इस प्रकार है…

  • मैं अपने घर की सफाई करती हूँ। अपने घर के बाहर की सफाई करती हूँ।
  • मैं अपने शरीर को साफ रखती हूँ, मैं रोज नहाती हूँ, रोज़ साफ कपड़े पहनती हूँ।
  • मैं अपने घर का कूड़ा घर से दूर कूड़ेदान में फेंकती हूँ।
  • मैं अपने घर में रसोईघर को साफ रखती हूँ, स्वच्छ खाना बनाती हूँ।
  • रसोईघर में खाने की चीजों को, पानी को साफ बर्तन में रखती हूँ।
  • मैं रास्ते में कभी कूड़ा नहीं फेंकती हूँ।
  • मैं नदियों के पानी को दूषित नहीं करती हूँ।

स्वच्छता के कार्यों को हम अपने दैनिक जीवन की आदत बना लें। इससे न केवल हमारा तन स्वस्थ बल्कि हमारा स्वास्थ्य भी उत्तर रहेगा। स्वस्थ तन ही स्वस्थ मन बनाता है। स्वस्थ तन और मन से स्वस्थ जीवन बनता है।


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हाइड्रोजन को क्यों लग रहा था कि मनुष्य अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मार रहा है?

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संदर्भ पाठ :

‘मेरा दम घुटता है’ पाठ के माध्यम से लेखक ‘पंकज चतुर्वेदी’ ने वातावरण में बढ़ रहे प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने विचार व्यक्त किए हैं। पीएसईबी (PSEB), पंजाब स्टेट एजुकेशन बोर्ड, कक्षा – 7, पाठ – 17


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सब मुझे स्वावलंबी कहें, इसके लिए मुझे निम्नलिखित कार्य स्वयं करने होंगे…

मुझे अपने निजी खर्चों के लिए आवश्यक पैसों का प्रबंध खुद करना होगा। एक विद्यार्थी होने के नाते मैं एक पूर्णकालिक कार्य (फुलटाइम जॉब) नहीं कर सकता/सकती लेकिन मैं अल्पकालिक कार्य (पार्ट टाइम जॉब) करके अपने निजी खर्चों का प्रबंध कर सकता/सकती हूँ। ऐसी पार्ट टाइम में सुबह अखबार या दूध बांटना, किसी इवेंट में वॉलिंटियर का काम करना, किसी स्वयंसेवी संस्था के साथ जुड़कर उससे संबंधित छोटे-मोटे कार्य करना, किसी कंपनी में ईवनिंग शिफ्ट में कोई जॉब करना, ऑनलाइन फ्रीलांसिंग वर्क करना आदि।

स्वावलंबी बनने के लिए मुझे अपने दैनिक जीवन में नित्य कर्म से संबंधित कार्य सारे स्वयं करने होंगे। जैसे अपने कपड़े स्वयं धोना, अपना खाना स्वयं बनाना, अपने खाने के बर्तन स्वयं धोना, अपना बिस्तर स्वयं लगाना-उठाना, अपने कमरे की साफ-सफाई स्वयं करना, कोई भी जरूरत का सामान बाजार जाकर स्वयं लाना।

यदि इस तरह के कार्य में स्वयं करने लगूंगा/लगूंगी तो लोग मुझे स्वावलंबी कहेंगे।


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स्वावलंबन का महत्व (निबंध)

‘नम्रता’ इस गुण के बारे में अपने विचार लिखिए।

पिकनिक की योजना बनाते हुए भाई-बहन के बीच संवाद लिखिए।

संवाद

पिकनिक की योजना पर भाई-बहन के बीच संवाद

 

(पिकनिक जाने की योजना बनाते हुए दो भाई-बहन वरुण और विनीता के बीच संवाद हो रहा है।)

वरुण ⦂ विनीता हमने अपने शहर के बाद जंगल में जो पिकनिक मनाने की योजना बनाई है, उसके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?

विनीता ⦂ तुमने बिलकुल सही सोचा है। जंगल में पिकनिक मनाकर एडवेंचर करने को मिलेगा।

वरुण ⦂ क्या हमारे सारे दोस्त राजी हो गए हैं?

विनीता ⦂ मैंने सब से बात कर ली है।सब पिकनिक पर जाने के लिए रोमांचित हैं और सब ने हामी भर दी है।

वरुण ⦂ अच्छा तो तुमने सारी पैकिंग कर ली ?

विनीता ⦂ मैंने सारे जरूरी सामान की पैकिंग कर ली है। हमें कैंपेनिंग का कुछ सामान लेने के लिए बाजार जाना है।

वरुण ⦂ ठीक है शाम को चलते हैं और बाकी सामान भी ले लेते है।

विनीता ⦂ हाँ शाम ये काम भी पूरा कर लेते हैं।

वरुण ⦂ कल सुबह छः बजे निकलना होगा। तुम सबको सूचना दे दी है क्या ?

विनीता ⦂ मैने सबको मैसेज कर दिया है, सब 6 बजे तक यहाँ आ जाएंगे।

वरुण ⦂ ठीक है, मैं हमारी गाड़ी को रेडी कर लूं और एक गाड़ी रोहन लेकर आएगा।

विनीता ⦂ हाँ दो गाड़ियां हम आठ लोगों के लिए बहुत हैं।


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यदि अरुणा उन दोनों बच्चों की देखभाल नहीं करती, तो उन बच्चों के साथ क्या-क्या हो सकता था?

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यदि अरुणा उन बच्चों की देखभाल नहीं करती तो वह बच्चे अपनी माँ के अभाव में बेघर हो जाते और उनका जीवन संकट में पड़ जाता। बच्चों की भिखारिन माँ मर गई थी। ऐसी स्थिति में बच्चे अनाथ हो गए थे। अनाथ बच्चों का कोई सहारा ना होने के कारण उन्हें या तो फुटपाथ पर रहना पड़ता अथवा किसी अनाथ आश्रम में जाना पड़ता। तब उनके भविष्य का कोई आधार नहीं बन पाता और उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता था।

अरुणा ने भिखारिन की मृत्यु के बाद उसके बच्चों को अपनाकर उनकी देखभाल करते अनोखी मानवीयता का परिचय दिया था। उसने उन बच्चों के भविष्य को संभाला था, इसलिए यदि अरुणा उन बच्चों की देखभाल नहीं करती तो उन बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता था। वह दर-दर भटक सकते थे। उन्हें फुटपाथ पर रहना पड़ सकता था। अथवा किसी अनाथ आश्रम में रहना पड़ता था, जहाँ पर उनका कोई भविष्य नहीं होता। यदि अरुणा उन बच्चों की देखभाल नही करती तो उन बच्चों के भविष्य का कोई आधार नही बन पाता।

संदर्भ पाठ
दो कलाकार, लेखिका – मन्नू भंडारी,


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‘बेटी बचाओ’ पर कुछ नारे लिखिए।

‘बेटी बचाओ’ पर कुछ नारे

नारा नं. 1

बेटी है अनमोल वरदान
बेटियों का करो सम्मान,
बेटियाँ है अनमोल वरदान,
बेटियों से बढ़ता मान,
बेटियाँ है सबकी शान,

नारा नं. 2

बेटियाँ शीतल हवाएँ है
बेटियाँ शीतल हवाएँ हैं,
ये दूर तक गूँजती सदाएँ हैं,
बेटियाँ महकती हुई फिजाएँ हैं,
बेटियाँ ईश्वर की दुआएँ हैं।

नारा नं. 3

बेटा-बेटी एक समान
बेटी को दो उसकी पहचान
बेटियों का महत्व जानों,
बेटियों का वजूद पहचानों,
बेटा-बेटी को एक समान मानो,
मन में आज यही बात ठानों।


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अपने शहर की विशेषताएँ और दर्शनीय स्थल बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए​।

अनौपचारिक पत्र

अपने शहर के दर्शनीय स्थलों की विशेषता बताते हुए मित्र को पत्र

 

दिनांक : 29 मई 2024

प्रिय मित्र मानवी,

तुम कैसी हो? आज मैं तुम्हें हमारे मुंबई शहर की विशेषता और उस के दर्शनीय स्थलों के बारे में बताना चाहता हूँ। तुम जानती ही हो कि मुंबई शहर भारत का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध शहर है। इसे मायानगरी और सपनों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का प्रमुख केंद्र है। मुंबई शहर में अनेक ऐतिहासिक स्थल हैं जो अंग्रेजों और पुर्तगालियों द्वारा बनाए गए हैं।

मुंबई शहर का सबसे प्रमुख ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल ‘गेट ऑफ इंडिया है’। ये मुंबई की पहचान है। इसका निर्माण अंग्रेजों ने 1911 में किया था, जब इंग्लैंड का राजा जार्ज पंचम और रानी मेरी पहली बार भारत आए थे।

गेटवे ऑफ इंडिया के सामने ही समुद्र में लगभग 10 किलोमीटर दूर एक टापू है, जिसे एलीफेंटा टापू कहा जाता है। यहाँ पर एलिफेंटा की गुफाएं हैं, जहाँ पर प्राचीन समय की अनेक पत्थर की मूर्तियां हैं। इस टापू को एलिफेंटा नाम पुर्तगालियो द्वारा 16 शताब्दी द्वारा दिया गया था।

मुंबई में प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम भी है जो दक्षिण मुंबई में स्थित है। इस म्यूजियम में अनेक तरह की पुरातात्विक सामग्री के दर्शन हो जाएंगे। मुंबई गिरगांव चौपाटी के पास मछली घर है, जिसे तारापोरवाला मछलीघर कहते हैं। यहां पर एक से एक सुंदर और रंग-बिरंगी मछलियों को देखा जा सकता है। जहाँगरी आर्ट गैलरी भी कलात्मक वस्तुओं के लिए एक प्रसिद्ध जगह है, जहाँ पर अनेक तरह की कलाकृतियों की प्रदर्शनियाँ लगती रहती हैं।

मुंबई का जुहू चौपाटी बेहद सुंदर और घूमने योग्य दर्शनीय स्थल है। यह मुंबई का सबसे बड़ा समुद्र बीच है जो पूरे दिन टूरिस्टों से गुलजार रहता है। मुंबई का जुहू अनेक प्रसिद्ध हस्तियों का निवास केंद्र है और यहां पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अनेक कलाकारों के घर हैं।

मुंबई से थोड़ी दूर पर ही गोराई नामक टापू पर एस्सेल वर्ल्ड एम्यूजमेंट पार्क है। मुंबई के बोरीवली में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है। ये एक प्रसिद्ध और बड़ा अभयारण्य है। यहाँ पर अनेक तरह के दुर्लभ प्रजाति के जीव-जंतु खुले में घूमते मिल जाएंगे। यहीं पर कान्हेरी की गुफाएं भी हैं।

मुंबई के भायखला में स्थित रानी बाग चिड़ियाघर अनेक तरह के जीव जंतुओं के लिए प्रसिद्ध है। मुंबई का छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस भारत का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन है, इससे पहले विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से जाना जाता था। गेटवे ऑफ इंडिया के सामने स्थित ताजमहल होटल भारत के प्राचीन होटलों में से एक है। इसके अलावा मुंबई में अनेक प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं जो मुंबई को एक घूमने योग्य शहर बनाते हैं।

आशा है, तुम्हें मेरे शहर मुंबई के बारे में यह जानकारी पसंद आई होगी। तुम भी अपने शहर के बारे में मुझे बताना।

तुम्हारा मित्र,
शशांक ।


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अपने मामा जी को पत्र लिखकर पिता जी के स्वास्थ्य में सुधार की सूचना दीजिए l

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पिता के स्वास्थ्य संबंधी सुधार के बारे में मामाजी को पत्र

 

दिनाँक : 27 मार्च 2024

आदरणीय मामा जी,

सादर चरण स्पर्श, मामा जी आप का पत्र प्राप्त हुआ। आपने पिताजी के स्वास्थ्य के विषय में पूछा है कि उनकी तबीयत कैसी है? उन्हें अभी तक आराम मिला कि नहीं? मामा जी, मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पिताजी का स्वास्थ्य अब पहले काफी बेहतर और उनके स्वास्थ्य में निरंतर सुधार हो रहा है। अब उन्हें पहले से काफी आराम है। उन्हें डायबिटीज के कारण जिस तरह की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हुई थीं, उसके लिए डॉक्टर ने जो दवाइयां दी थी और जो उपाय बताए थे, उसका नियमित पालन करने से काफी लाभ प्राप्त हुआ है।

इन दिनों में एक आयुर्वेदिक उपचार ले रहे हैं, जिससे उन्हें काफी फायदा मिला है और मैं पहले से स्वस्थ महसूस कर रहे हैं। आशा है कि आने वाले दिनों में आने वाले दिनों में वह पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे। आप अपने बारे में बताएं। आपका स्वास्थ्य कैसा चल रहा है? और घर में सब लोग कैसे हैं? आप हम लोगों से मिलने कब आ रहे हैं? मुझे पता है कि काम की व्यस्तता के कारण आप नहीं आ पाते। जैसे ही काम से आपको थोड़ा सा समय मिले, यहाँ पर मिलने आइए। मेरी जब स्कूल की गर्मी की छुट्टियां पड़ेगी, तब मैं आपसे मिलने आऊंगा और कुछ दिन आपके पास रहूंगा। अब पत्र समाप्त करता हूँ। सभी बड़ों को चरणस्पर्श।

आप का भांजा,
वरुण।


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दिए गए मुहावरों का अर्थवरों का अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग करें- क) हृदय पर साँप लोटना ख) अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना​।

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मुहावरों का अर्थ और वाक्य प्रयोग

मुहावरा : हृदय पर साँप लोटना

अर्थ : किसी से ईर्ष्या करना, किसी की खुशी अथवा उन्नति देखकर उससे ईर्ष्या करना।

वाक्य प्रयोग-1 : सुरेश के पड़ोसी रमन के घर जैसे ही नई कार आई, नई कार देखकर सुरेश के हृदय पर साँप लोटने लगे।

वाक्य प्रयोग-2 : सचिन और विमल एक कक्षा में पढ़ते हैं। सचिन जब कक्षा में प्रथम आया तो यह खबर सुनकर विमल के हृदय पर साँप लोटने लगे।

 

मुहावरा : अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना

अर्थ : अपनी प्रशंसा खुद करना।

वाक्य प्रयोग-1 : हेमंत को इतना अधिक ज्ञान नहीं है, जितना वह अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना है।

वाक्य प्रयोग-2 : अब ज्यादा मत बोलो यदि तुम योग्य होगे तो अभी पता चल जाएगा। अपने मुंह मियां मिट्ठू मत बनो।


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‘ मर्म को छूना’ इस मुहावरे का अर्थ पहचानकर लिखिए। (क) हँसी उडाना (ख) हृदय को छूना (ग) दुखित होना

बस्ते के बोझ तले सिसकता बचपन (निबंध)

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निबंध

बस्ते के बोझ तले सिसकता बचपन

 

बचपन बेहद मासूम होता है, वो बेहद कोमल होता है। मासूमियत भरे इस बचपन पर बस्ते का बोझ एक अत्याचार से कम नही है। शिक्षा पाना हर बच्चे के की अधिकार और आवश्यकता है, लेकिन शिक्षा देने के तरीके को इतना अधिक मुश्किल भी नही बना देना चाहिए के बच्चे का मासूम बचपन बस्ते के बोझ तले दब जाये। बस्ते के बोझ तले सिसकता बचपन पर निबंध इस प्रकार है…

प्रस्तावना

हम सभी जानते हैं कि शिक्षा जीवन की एक ऐसी महत्वपूर्ण कड़ी है जिसके सहारे मनुष्य ज्ञान के चक्षु खोलकर जीवन में उज्ज्वल मुकाम पाने के काबिल हो पाता है l कहते है बिन ज्ञान के मनुष्य जानवर के समान है l मनुष्य में यह ज्ञान उनके बचपन से ही प्रारंभ हो जाता है l कुछ शोध में देखा गया है कि बच्चों में ज्ञान का संचार माँ की कोख से ही प्रारंभ हो जाता है l

पौराणिक कथाओं में भी बहुत सी जगह इसका उल्लेख मिलता है l महाभारत में अभिमन्यु ने चक्रव्यूह युद्ध नीति माता के गर्भ में रहते हुए ही प्राप्त कर ली थीl माँ-पिता अपने बच्चों को ज्ञान एवं जीवन कौशल को सिखाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते है, उनसे जो बन पड़े वह करने से पीछे नहीं हटते है l बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए बच्चों को किसी नामी-ग्रामी निजी स्कूल में डाल देते है, और बस शुरू हो जाती है बच्चों की जिन्दगी की असली परीक्षा l यदि आपको किसी प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ना है तो जाहिर सी बात है वह हर किसी के घर के पास तो शायद होगा नहीं, उसके लिए बच्चों को मीलो दूर स्कूल तक जाना होगा। यदि स्कूल पास है तो मोटी-मोटी पुस्तकों से लबालब भरा बस्ते (बैग) कन्धों पर लाद कर निकलना पड़ता है या बसों में घंटो सफ़र करने के बाद, स्कूल के गेट से कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते बेचारा अधमरा सा हो जाता है l अपनी यह दशा बेचारा बच्चा किसे बताए ! अपने उन शिक्षकों को जिसने यह वजन लादकर लाने के लिए मजबूर किया है या उन शिक्षा के ठेकेदारों को जिन्होंने यह मोटी-मोटी पुस्तकों के लिए बाजार सजाकर रखा। बच्चे तो आखिर बच्चे है मजबूरी में बेचारे अपने बस्ते को टांगे, झुकाए कंधो के एक कुली नुमा मुद्रा में चले जाते है। कभी स्कूल से पास से गुजरकर देखिए, इन नन्ही-नन्ही जान के पीठ पर पुस्तकों का वजन देखकर आपको अहसास होगा कि पीठ पर टंगे बस्ते का बोझ उन्हें कितना दुःख देता होगा l

हाय! मासूम बचपन अभी से इतना बोझ ?

अभी तो उसे जिन्दगी के कई बड़े-बड़े बोझ उठाना है। यहाँ बच्चे का बचपन एवं उसके सेहत की बात को ध्यान में रखकर सोचे तो बच्चों का ये हनन किया जाने जैसा है l क्या बच्चा अपनी इस छोटी से उम्र से ही अपने आप को शारीरिक रूप से मजबूत बना रहा है या कमजोर ?

हड्डी रोग विशेषज्ञ भी मानते हैं कि बच्चों के लगातार बस्तों के बोझ को सहन करने से उनकी कमर की हड्डी टेढ़ी होने की आशंका रहती है। अगर बच्चे के स्कूल बैग का वजन बच्चे के वजन से 10 प्रतिशत से अधिक होता है तो काइफोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है। इससे सांस लेने की क्षमता प्रभावित होती है। भारी बैग के कंधे पर टांगने वाली पट्टी अगर पतली है तो कंधों की नसों पर असर पड़ता है। कंधे धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होते हैं और उनमें हर समय दर्द बना रहता है। हड्डी के जोड़ पर असर पड़ता है। प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञों की मानें तो, भारी स्कूल बस्ते (बैग) बच्चों की सेहत पर बुरा प्रभाव डाल सकता है | उन्होंने कहा कि भारी स्कूल बैग से बच्चों की पीठ पर बोझ पड़ता है जिससे उनको पीठ दर्द होना शुरू हो जाता है। इस कारण बच्चों को भविष्य में कई गंभीर बीमारियों का शिकार होना पड़ सकता है। भविष्य उज्ज्वल करने वाली पुस्तकें ही अगर स्कूली बच्चों पर सितम ढाने लगे तो बच्चे उन पर ध्यान कैसे लगा पाएंगे।

“भविष्य उज्ज्वल करने वाली पुस्तकें अगर स्कूली बच्चों पर सितम ढाने लगें तो उन पुस्तकों पर बच्चे का ध्यान कैसे लगेगा। निजी (प्राइवेट) स्कूलों की मनमानी जब से प्राइवेट स्कूलों को अपनी किताबें चुनने का हक मिला है,तभी से निजी स्कूल अधिक मुनाफा कमाने की फिराक में बच्चों का बस्ता भारी करते ही जा रहे हैं।

ध्यान देने योग्य बात है कि सरकारी स्कूल वालों के बस्ते निजी स्कूल वालों के बस्तों से काफी हल्के हैं तथा सरकारी स्कूलों में प्रारंभिक कक्षाओं में भाषा, गणित के अलावा एक या दो पुस्तकें हैं। लेकिन निजी स्कूलों के बस्तों का भार बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे ज्ञान वृद्धि का कोई कारण नहीं है, बल्कि व्यापारिक रुचि ही प्रमुख है।

पुस्तकों के बोझ को देखते हुए एक पैटर्न समझ में आता है कि बस्ता में जितनी पुस्तके, स्कूल की उतनी ही मोटी फीस l यानि मोटी फीस के चक्कर में स्कूल बच्चों के बस्ते (बैग) का बोझ बड़ रहा है | इनमें से अधिकांश सीबीएसई के साथ संबद्ध होने के कारण एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकें लागू तो करते हैं, मगर लगभग हर विषय में निजी प्रकाशकों की कम से कम दो-तीन पुस्तकें और भी खरीदते है। चूंकि अधिकांश माता-पिता आर्थिक रूप से संपन्न ही होते है इसलिए वे बच्चों का भविष्य बनाने के लिए इस बोझ को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। मध्यम या गरीब परिवार अपने आसूं को दबाए मजबूरी के कारण पुस्तकें खरीदने के लिए मजबूर है आखिर उन्हें अधिक से अधिक अंक चाहिए, लेकिन बच्चे पर क्या बीतती है इससे वे चिंतित नहीं होते है।

शिक्षा शास्त्रियों का मानना है कि 4 से 12 साल तक की उम्र के बच्चे के व्यक्तित्व के विकास का स्वर्णिम समय होता है इसलिए इस दौरान रटंत पढ़ाई का बोझ डालने के बजाय सारा जोर उसकी रचनात्मकता एवं सृजनात्मक विकसित करने के लिए दे तो इनकी मानसिक और बौद्धिक क्षमता का विकास हो सकता है और आज के परिपेक्ष में बात करें तो 12 साल की आयु के बच्चों को भारी स्कूली बस्ते की वजह से पीठ दर्द का खतरा पैदा हो गया है।

पहली कक्षा में ही बच्चों को छः पाठ्य पुस्तकें व छः कापियां दे दी जाती हैं | मतलब पांचवीं कक्षा तक के बस्ते का बोझ करीब आठ किलो हो जाता है। बस्ते के बढ़ते बोझ से निजी स्कूलों के बच्चे खेलना भी भूल रहे हैं। व्यक्तित्व की क्षमता के अनुसार पढ़ाई और पाठ्यक्रम का बोझ हो तो ये नित नए आयाम रचेंगे पर बस्ते के शिकंजे में एक बार इनका प्रदर्शन आप अपने मनोरूप करवा लेंगे पर जीने के लिए जी नहीं पाएंगे हमारे अपने नोनिहाल। हमें शैक्षिक मनोवैज्ञानिक नवाचारों के साथ चलना होगा और खुलकर इस विषय पर बात करनी होगी। आखिर ये हमारे अपने परिवार, अपने देश के भविष्य का सवाल है।

उपसंहार

सरकार एवं शिक्षा तंत्र को इस बात को अवश्य संज्ञान में लाना चाहिए कि बस्ते का बोझ कम कर बच्चों को कम संसाधन में बेहतर शिक्षा देकर उनके सर्वांगीण विकास के लिए सक्षम करें। ऐसे में सरकार की पहली प्राथमिकता बच्चों का स्वास्थ्य होना चाहिए, इसके लिए सरकार को निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए अब आगे आना होगा। हमें अपनी शिक्षा को व्यवहारिक बनाना होगा। शिक्षा को केवल किताबों तक सीमित नही रखना होगा तभी हम बच्चों को बचपन को बस्ते के बोझ से बच सकते हैं।


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भारत विश्व में शांति कैसे स्थापित कर सकता है?

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विश्व में शांति स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत एक ऐसा देश रहा है जो सदैव शांति का दूत रहा है। भारत एक ऐसा देश है जिसने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया।

भारत ने हमेशा शांति की पहल की है। विश्व में जब भी अशांति का वातावरण उत्पन्न हुआ है। भारत कभी भी किसी भी गुट का सदस्य नहीं बना और वह हमेशा निष्पक्ष रहा है। ना ही भारत में किसी ऐसे युद्ध में भाग लिया जो विश्व में अशांति फैलाने के लिए किया गया हो या दूसरे किसी देश या साम्राज्य पर अपना अधिपत्य स्थापित करने के लिए किया गया हो।

भारत ने केवल उन्हीं युद्धों का प्रतिकार किया है, जो भारत भूमि पर दुश्मन देशों ने किए थे। अपनी रक्षा के लिए युद्ध करना परम धर्म होता है। भारत विश्व में शांति स्थापित करने के लिए सभी तरह के प्रयास कर सकता है वह हथियारों की ओर से दूर जाकर विश्व के अनेक देशों को हत्यारों की ओर से दूर रहने के लिए मार्गदर्शन दे सकता है।

भारत का विश्व में जो महत्व है उस महत्व को आधार बनाकर भारत विश्व में शांति स्थापित करने के लिए युद्ध से दूर रहने के प्रयासों की पहल कर सकता है। भारत के जो भी नेता रहे हैं वह सदैव इस तरह के प्रयास करते रहे हैं और भारत की आजादी से लेकर अब तक या प्राचीन भारत के इतिहास से लेकर अब तक हमेशा भारत ने शांति का ही समर्थन किया है।

यही भारत की मूल भावना और चरित्र है, इसलिए भारत विश्व को सही मार्गदर्शन देकर विश्व में शांति स्थापित करने में अपनी भूमिका निभा सकता है।


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सपने

सपने, सपने वे आशा है जो जीवन में कुछ करने के लिए एक प्रेरणा देने का कार्य करते हैं। सपने, वे सपने ही होते हैं, जो मनुष्य के अंदर स्पूर्ति और कर्म करने की शक्ति भरते हैं।

सपने कर्म करने के लिए प्रेरित होने का सबसे सरल उपाय हैं। आप सोच लीजिए यदि आप सपने नहीं देखेंगे तो आपके जीवन में क्या रहेगा, जब आप सपने नहीं देखेंगे तो आप कुछ भी नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि आपके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं होगा। सपने जीवन को एक लक्ष्य प्रदान करते हैं, हालांकि हर किसी के सपने पूरे नहीं हो पाते। ऐसा इसलिए क्योंकि सपने केवल देखने से ही पूरे नहीं होते हैं। सपने पूरे करने के लिए कर्म करना पड़ता है बहुत से व्यक्ति केवल सपने ही देखते रहते हैं कर्म करने के लिए प्रेरित नहीं होते। अगर कर्म करने के लिए प्रेरित होते भी हैं तो अपने मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से घबराकर पीछे हट जाते हैं। कोई भी कार्य आसानी से संभव नहीं होता। किसी भी कार्य को करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। उसी तरह सपनों को पूरा करने के लिए भी परिश्रम करना पड़ता है।

जो लोग परिश्रम एवं संघर्ष करने की सामर्थ रखते हैं, वह अपने सपनों को पूरा कर लेते हैं। जो लोग परिश्रम और संघर्ष करने की सामर्थ नहीं रखते वह केवल सपने ही देखते रह जाते हैं और उनके सपने, सपने ही रह जाते हैं।सपनों को सच्चाई में बदलने के लिए कर्म और परिश्रम की ताकत लगानी पड़ती है, तब जाकर सपने पूरे हो पाते हैं।

सरल अर्थों में संक्षेप में कहा जाए तो सपनों के बिना जिंदगी उदासीन है, सपनों के बिना जिंदगी नीरस है, जिसके जीवन में सपने नहीं, वह कुछ करने के लिए प्रेरित नहीं होगा। यह बात अलग है कि सपने अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही देखने चाहिए और उन्हें पूरा करने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए, लेकिन सपना देखना आवश्यक है। हम अपनी योग्यता एवं सामर्थ्य के अनुसार सपने देख कर उसके अनुसार अपने जीवन के लक्ष्य को पाने का प्रयत्न कर सकते हैं। यदि हम सपने देखेंगे ही नहीं तो अपने जीवन का क्या लक्ष्य निर्धारित करेंगे।

यहाँ सपनों से तात्पर्य सोते समय देखने वाली स्मृतियों से नहीं है, जो हम सोते समय देखते हैं। यहां पर सपने देखने का अर्थ अपने जीवन में भविष्य में कुछ करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करने से है। इसलिए सपने देखते रहना चाहिये क्योंकि यही हमारी आशा का प्रतीक हैं।


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‘हम सब में है मिट्टी’- कथन से कवि का क्या आशय है?

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‘हम सब में है मिट्टी इस कथन’ से कवि का अभिप्राय यह है कि मनुष्य का यह शरीर नश्वर है। हम सभी का शरीर मिट्टी से बना है, जिसे एक दिन मिट्टी में ही मिल जाना है। यानी जो हमारा शरीर है, वह मिट्टी ही है यानी हमारी ये काया मिट्टी की काया है, जो अपना जीवन चक्र पूजा करके मिट्टी में ही मिल जाएगी। इसीलिए इस मिट्टी की काया पर इतना अभिमान नहीं करना चाहिए।

हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हमारा शरीर नश्वर है। हम सदैव इस धरती पर नहीं रहने वाले है। एक ना एक दिन सबको जाना है और मिट्टी में मिल जाना है। इसीलिए हमेशा ऐसे काम करके जाओ जो लोग याद रखें। शरीर को लोग भूल जाएंगे लेकिन उस शरीर द्वारा किए गए अनमोल कार्यों को लोग नहीं भूलेंगे। इसीलिए शरीर पर नहीं अपने कार्यों पर ध्यान दो।


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‘रसीला और रमज़ान की दोस्ती सच्ची थी।’ सिद्ध कीजिए ।

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‘बात अठन्नी की’ कहानी में रसीला और रमज़ान की दोस्ती सच्ची थी ये इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि जब रसीला को अपने गाँव में अपने घर कुछ पैसों भेजने की जरूरत पड़ी तो उसने जब अपने मालिक से कुछ पैसे एडवांस मांगे। लेकिन रसीला के मालिक जगत सिंह ने मना कर दिया। ऐसी स्थिति में रमजान, जो कि उसका मित्र था, उसने रसीला को वह पैसे देकर उसकी मदद की ताकि वह अपने घर पर जरूरी काम हेतु वह पैसे भेज सकें। इस तरह एक सच्चे दोस्त का कर्तव्य निभाते हुए रमजान ने रसीला की मदद कर अपनी सच्ची दोस्ती का सबूत दिया।

एक सच्चा दोस्त ही मुसीबत के समय काम आता है, और रमजान रसीला के काम आया। जब रसीला के मालिक जगत सिंह ने मात्र अठन्नी के हेर-फेर के कारण रसीला को जेल भिजवा दिया, तब रमजान ही था, जिसने इस बात पर अपना दुख एवं विरोध प्रकट किया था। यह बात अलग है वह भी रसीला की तरह एक साधारण चौकीदार ही था। इस कारण वह कुछ कर नहीं सकता था। लेकिन उसने अपने दोस्त के प्रति सहानुभूति और दुख प्रकट कर अपनी सच्ची दोस्ती का सबूत दे दिया था। इन बातों से स्पष्ट होता है कि रसीला एवं रमजान की दोस्ती सच्ची दोस्ती थी।

संदर्भ पाठ
‘बात अठन्नी की’, लेखक – सुदर्शन, कक्षा-10 हिंदी


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वाणिज्य पत्र-व्यवहार क्या है ? वाणिज्य पत्रों की रूपरेखा समझाए ।

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वाणिज्य पत्र-व्यवहार सामान्य पत्र व्यवहार से अलग होता है। व्यापार के क्षेत्र में वाणिज्य से संबंधित कार्यों के लिए किए गए पत्र-व्यवहार को वाणिज्य पत्र-व्यवहार कहते हैं। वाणिज्य पत्र व्यवहार ग्राहक, व्यापारी और विक्रेता के बीच होता है, जो व्यापार के सिलसिले में व्यापार संबंधी किसी कार्य हेतु किया जाता है। वाणिज्य पत्र व्यवहार में ग्राहक द्वारा माल के मूल्य की पूछताछ करना, व्यापारी अथवा और विक्रेता द्वारा माल के मूल्य की जानकारी देना, ग्राहक द्वारा माल की मांग करना, उत्पादक अथवा विक्रेता द्वारा माल का एस्टीमेट बनाकर भेजना, ग्राहक द्वारा माल प्राप्ति की सूचना देना, उसके भुगतान संबंधी सूचना देना, व्यापारी अथवा विक्रेता द्वारा भुगतान प्राप्त संबंधी सूचना देना, माल प्राप्त होने के बाद किसी तरह की कोई समस्या उत्पन्न होने पर ग्राहक द्वारा उत्पादक या विक्रेता को शिकायत भेजना आदि प्रक्रियाएं शामिल हैं।

वाणिज्य पत्र-व्यवहार की सामान्य परिभाषा इस प्रकार है…

वाणिज्य पत्र-व्यवहार व्यापार तथा व्यवसाय के संबंध में ग्राहक और व्यापारी तथा विक्रेता-ग्राहक अथवा व्यापारी अथवा क्रेता और विक्रेता के बीच अथवा विक्रेता तथा व्यापारी के बीच जो पत्र व्यवहार किया जाता है, उसे वाणिज्य पत्र व्यवहार कहते हैं।

वाणिज्य पत्र-व्यवहार का स्वरूप इस प्रकार होता है…
  • यदि कोई व्यापारी विक्रेता पत्र-व्यवहार करता है तो वह अपने संस्थान के नाम से छपे हुए लेटर हेड पर पत्र शीर्ष का उपयोग करते हुए पत्र-व्यवहार करता है। उसके नीचे वह टाइपिंग द्वारा संबंधित विवरण लिखता है। वाणिज्य पत्र व्यवहार में संबोधन का प्रारंभ श्री अथवा सर्वश्री शब्दों से किया जाता है।
  • प्रतिष्ठान के नाम संकेत में व्यापारिक वस्तुओं का संकेत उल्लेखित होता है। उसके बाद प्रेषक का पता आरंभ होता है।
  • व्यवसाय के संकेत के बाद प्रेषक का पता दाहिनी और लिखा जाता है।
  • प्रेषक के पते के नीचे ईमेल, फोन नंबर अथवा फैक्स नंबर आदि जैसे विवरण लिखे होते हैं।
  • उसके नीचे पत्र क्रमांक पत्र संख्या उल्लेखित की जाती है।
  • उसके नीचे पत्र के ठीक सामने और नीचे दिनांक लिखा जाता है।
  • उसके बाद प्रेषित का पता लिखा जाता है। इसका आरंभ ‘सेवा में’ से शुरू किया जाता है और श्री अथवा श्रीमती जैसे आदर सूचक शब्दों के द्वारा प्रस्तुति को संबोधित किया जाता है।
  • उसके बाद प्रतिष्ठान का नाम लिखने के बाद उससे पहले सर्व श्री शब्द लगाया जाता है। उसके बाद प्रेषिती का पूरा पता लिखा जाता है।
  • उसके पश्चात उस विषय एवं संदर्भ लिखे जाते हैं और पत्र का मुख्य मजमून आरंभ किया जाता है।
  • पत्र का कलेवर सामान्यता तीन भागों में विभाजित होता है।
  • प्रथम भाग में सामान्य औपचारिकता वाले विवरण होते हैं।
  • दूसरे भाग में पत्र का मूल और मुख्य उद्देश्य बताया जाता है।
  • तीसरे भाग में पुनः औपचारिक संबोधन का प्रयोग करते हुए पत्र का उचित उत्तर अपेक्षित करने की कामना की जाती है।
  • पत्र की समाप्ति के बाद भवदीय आपका कृपा अभिलाषी, आपका कृपाकांक्षी जैसे जैसे आदर सूचक शब्दों के साथ अपना प्रेषक का नाम लिखा जाता है और प्रेषक के हस्ताक्षर किए जाते हैं।
  • यदि के पत्र के साथ यदि कुछ संलग्न है जैसे चेक, रसीद, सूची, बिल, बीजक आदि तो उसका उल्लेख संलग्न शीर्षक देकर किया जाता है।

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भीषण गर्मी से बेहाल जनजीवन पर एक लघु निबंध लिखें।

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लघु निबंध

भीषण गर्मी से बेहाल जनजीवन

भीषण गर्मी से सारा जनजीवन बेहाल है। चारों तरफ भीषण गर्मी का प्रकोप है। क्या मनुष्य? क्या पशु-पक्षी? सभी प्राणी इस भीषण गर्मी से प्रकोप से त्रस्त हैं। सभी के हाल बेहाल हैं। सूरज देवता जब आसमान में चमकते हैं तो ऐसा लगता है कि वह बहुत गुस्से में हैं। इसी कारण वह आसमान में आग बरसा रहे हैं, जिसने सभी प्राणियों के तन को झुलसा दिया है।

भीषण गर्मी के इस प्रकोप में आइसक्रीम, शरबत आदि देखकर मन ललचा उठाता है। पानी से प्यार हो जाता है और ऐसा लगता है कि ठंडे पानी में ही दिन-भर मस्ती करते रहो।

भीषण गर्मी के प्रकोप से मानव का तन बिल्कुल त्रस्त हो जाता है। वह दिन में जरा भी कार्य नहीं कर पाता। कड़ी धूप में 5 मिनट चलना दूभर हो जाता है। पूरा शरीर चंद मिनटों में पसीने तर-बतर हो जाता है। भीषण गर्मी में उन श्रमिकों के ऊपर घनघोर अत्याचार हो जाता है, जिन्हें कड़ी धूप में काम करना पड़ता है, क्योंकि उनकी रोजी-रोटी का सवाल है।

झुलसा देने वाली गर्मी के प्रकोप से कब निजात मिलेगी? यह सवाल हर किसी के मन में उमड़ता रहता है। लोगों को बरसात का ही इंतजार होता है कि कब बरसात आए और इस भीषण गर्मी से राहत मिले और लोगों के तन-मन को वर्ष की फुहारें आनंदित कर दें।

सच में गर्मी का प्रकोप बेहद भयंकर होता है। गर्मी के कारण किसी भी कार्य में मन नहीं लगता मन उत्साहित नहीं होता। मानव मन का स्वभाव है कि आसपास के वातावरण का उसके तन और मन पर प्रभाव पड़ता है। जब इतनी भीषण झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती है तो इसका दुष्प्रभाव भी मानव के तन और मन पर पड़ता है, वह उत्साह से कार्य नहीं कर पाता। भीषण गर्मी से प्रकोप से लोगों की कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। सचमुच भीषण गर्मी के प्रकोप जनजीवन बेहाल हो जाता है।


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दिन-प्रतिदिन बढ़ती गर्मी को लेकर रोहन और सोहन के बीच संवाद को लिखें।

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मेरा प्रिय देश भारत (निबंध)

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निबंध

मेरा प्रिय देश भारत

हर व्यक्ति के लिए उसका देश ही उसका प्रिय देश होता है, ठीक उसी प्रकार से भारत मेरा प्रिय देश है । आइए आज हम मेरा प्रिय देश भारत के बारे में विस्तार से जानेगे ।

प्रस्तावना

भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोग अलग-अलग भाषा बोलते हैं और विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय और संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं। इसी वजह से भारत में “विविधता में एकता” का ये आम कथन प्रसिद्ध है। प्राचीन समय से ही यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन और यहूदी एक साथ रहते हैं। यह देश अपने कृषि और खेती के लिये प्रसिद्ध है जो प्राचीन समय से ही इसका आधार रही है । भारत के राष्ट्रीय प्रतीक और उनसे जुड़ा इतिहास

भारत का राष्ट्रीय ध्वज – तिरंगा

22 जुलाई, 1947 को भारतीय संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को अपनाया था। तिरंगे में समान अनुपात में केसरिया, सफेद तथा हरे रंग की क्षैतिज पट्टियाँ होती हैं इसलिए भारत के राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा कहा जाता है । ध्वज की चौड़ाई और लम्बाई का अनुपात क्रमशः 2:3 होता है। इसमें सफेद रंग की पट्टी के बीचों-बीच गहरे नीले रंग का चक्र बना होता है जिसमें 24 तीलियाँ बनी होती हैं। क्या आप जानते हैं कि यह चक्र सारनाथ में स्थित अशोक स्तम्भ से लिया गया है। तिरंगे में केसरिया रंग त्याग और बलिदान का, सफेद रंग सत्य, शांति और पवित्रता का और हर रंग देश की सम्रद्धि का प्रतीक होता है।

भारत का राष्ट्रीय चिन्ह – अशोक स्तम्भ

अशोक स्तंभ भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में बनवाए गए स्तम्भ से लिया गया है। 26 जनवरी 1950 में इसे अंगीकृत किया गया था जब भारत गणराज्य बना । अशोक के स्तंभ शिखर पर देवनागरी लिपी में “सत्यमेव जयते” लिखा है (सच्चाई एकमात्र जीत) जो मुनडका उपनिषद (पवित्र हिन्दू वेद का भाग) से लिया गया है। इस स्तंभ के शिखर पर चार शेर खड़े है जिनका पिछला हिस्सा खंभों से जुड़ा हुआ है । संरचना के सामने इसमें धर्म चक्र (कानून का पहिया) भी है। भारत का प्रतीक शक्ति, हिम्मत, गर्व, और विश्वास को प्रदर्शित करता है। पहिए के हर एक तरफ पर एक अश्व और बैल बने हुए हैं। इसके उपयोग को नियंत्रित और प्रतिबंधित करने का कार्य राज्य प्रतीक की भारतीय धारा, 2005 के तहत किया जाता है।

भारत का राष्ट्रीय गान – जन गण मन

24 जनवरी 1950 में संवैधानिक सभा द्वारा भारत के राष्ट्र गान ‘जनगणमन’ को आधिकारिक रुप से अंगीकृत किया गया था । रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा ये गान लिखा गया था । इसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कलकत्ता सत्र में गाया गया था । सम्पूर्ण गीत या गान को गाने में लगभग 52 सेकंड का समय लगता है हालाँकि इसका लघु संस्करण (पहली और अंतिम पंक्ति) को पूरा करने में केवल 20 सेकंड का समय लगता है ।

भारत का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार – भारत रत्न

ये भारत का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार और सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। भारत रत्न असाधारण कार्य करने वाले व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है। इनमें विज्ञान, कला, साहित्य, खेल और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र सम्मिलित होते हैं। इस पुरस्कार की शुरुआत 2 जनवरी, 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा की गई थी। जो इस पुरस्कार को प्राप्त करता है उसको मैडल दिया जाता है ।

भारत का राष्ट्र गीत – वन्दे मातरम्

1950 में वास्तविक वन्दे मातरम् के शुरुआत के दो छंद को आधिकारिक रुप से भारत के राष्ट्रगीत के रुप में अंगीकृत किया गया था। वास्तविक वन्दे मातरम् में छ: छंद है। इसको बंकिमचन्द्र चैटर्जी द्वारा बंगाली और संस्कृत में 1882 में उनके अपने उपन्यास आनन्दमठ् में लिखा गया था। इस गीत को उन्होंने चिनसुरा में लिखा था । इसे पहली बार सन 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिक संदर्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा गाया गया था ।

भारत का राष्ट्रीय पशु – बाघ

भारत के राष्ट्रीय पशु के रुप में बाघ या रॉयल बंगाल टाइगर को अप्रैल 1973 में घोषित किया गया था । इसके शरीर पर चमकदार पीली पट्टी होती है । यह बड़े आराम से वायुशिफ के जंगलों में दौड़ सकता है और अत्यंत शक्तिशाली, मज़बूती और भारत के गर्व का प्रतीक है । बाघों की अधिकतम उम्र लगभग 20 साल होती है । तेज फुर्ती और शक्ति के कारण बाघ को भारत का राष्ट्रीय पशु माना गया है । इसका जन्तु वैज्ञानिक नाम पैन्थरा टाईग्रिस ।

भारत का राष्ट्रीय फूल – कमल

कमल का वैज्ञानिक नाम नील्यूम्बो न्यूसीफेरा है । इसे भारत के राष्ट्रीय फूल के रुप में अंगीकृत किया गया है |यह फूल भारत के पारंपरिक मूल्यों और सांस्कृतिक गर्व को प्रदर्शित करता है । यह उर्वरता, ज्ञान, समृद्धि, सम्मान, लंबी आयु, अच्छी किस्मत, दिल और दिमाग की सुंदरता को भी दिखाता है । इसका प्रयोग देश भर में धार्मिक अनुष्ठानों आदि के लिये भी किया जाता है ।

भारत का राष्ट्रीय फल – आम

आम का वैज्ञानिक नाम मैनजीफेरा इंडिका है । इसको सभी फलों में राजा का दर्जा प्राप्त है और यह भारत के राष्ट्रीय फल के रुप में अंगीकृत किया गया है ।

भारत का राष्ट्रीय पक्षी – मोर

भारतीय मोर को भारत के राष्ट्रीय पक्षी के तौर पर अंगीकृत किया गया है । यह पक्षी एकता के सजीव रंगों और भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करता है । ये सुन्दरता, गर्व और पवित्रता को भी दिखाता है । भारतीय वन्यजीव (सुरक्षा) की धारा 1972 के तहत संसदीय आदेश पर सुरक्षा प्रदान की गयी है ।

भारत का राष्ट्रीय खेल – हॉकी

हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल तब से माना जाता है जब से भारत ने ओलिंपिक में हॉकी के खेल में लगातार 6 स्वर्ण पदक जीते थे ।

भारत का राष्ट्रीय जलचर – डॉलफिन

गंगा की डॉलफिन को राष्ट्रीय जलचर पशु के रुप में अंगीकृत किया गया है । ये पावन गंगा की शुद्धता को प्रदर्शित करती है क्योंकि ये केवल साफ और शुद्ध पानी में ही जिंदा रह सकती है । इन्हें दुनिया के सबसे पुराने जीवों में से एक माना जाता है । इनको सुरक्षित करने के लिए अभयारण्य क्षेत्रों संरक्षण कार्य शुरु हो चुका है ।

भारत का राष्ट्रीय वृक्ष – वट वृक्ष या बरगद का पेड़

भारत का राष्ट्रीय वृक्ष बरगद का पेड़ को माना गया है । यह एकता और दृढ़ता का प्रतीक है । जिस प्रकार भारत के विभिन्न धर्म व जाति के लोग एक साथ निवास करते हैं उसी प्रकार बरगद के पेड़ की शाखाओं पर छोटे या बड़े जन्तु निवास करते हैं । इस वृक्ष का हिन्दू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व है और इसमें कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं ।

भारत की राष्ट्रीय मुद्रा – रुपया

आधिकारिक रुप से भारत के गणराज्य की करेंसी भारतीय रुपया (ISO code: INR) है । इसके संबंधित मुद्दों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नियंत्रित करता है । भारतीय रुपये को “र” देवनागरी व्यंजन और लेटिन अक्षर “R” से चिन्हित किया गया है । 15 जुलाई 2010 में भारत सरकार द्वारा इसको जारी किया गया था । 8 जुलाई 2011 को रुपये के चिन्हों के साथ भारत में सिक्कों की शुरुआत हुई थी।

भारत की राष्ट्रीय नदी – गंगा

गंगा नदी भारत की सबसे लम्बी और पवित्र नदी है जो कि 2510 कि.मी. के पहाड़ी, घाटी और मैदानी इलाकों तक फैली हुई है । प्राचीन समय से ही हिन्दुओं के लिये गंगा नदी का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व रहा है । इसके पवित्र जल को कई अवसरों पर इस्तेमाल किया जाता है । गंगा की उत्पत्ति, हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर के हिमक्षेत्र में भगीरथी नदी के रुप में हुई है ।

भारत के राष्ट्रपिता – महात्मा गांधी

महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रपिता माना जाता है । सबसे पहले 6 जुलाई 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रडियो स्टेशन से सन्देश प्रसारित करते हुए महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था । 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद, देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने रेडियो पर भारत के लोगों से कहा कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे तभी से महात्मा गाँधी को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है ।

भारत का राष्ट्रीय दिवस – स्वतंत्रता दिवस, गाँधी जयंती और गणतंत्र दिवस

भारत के राष्ट्रीय दिवस के रुप में स्वतंत्रता दिवस, गाँधी जयंती और गणतंत्र दिवस को घोषित किया गया है । 15 अगस्त को हर साल स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1947 में भारतीयों को ब्रिटीश शासन से आजादी मिली थी और 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना संविधान प्राप्त हुआ था इसलिए इस दिन को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाता है । हर साल 2 अक्तूबर को गाँधी जयंती मनायी जाती है क्योंकि इसी दिन गाँधी का जन्म हुआ था ।

भारत की राष्ट्रीय लिपि या आधिकारिक लिपि – देवनागरी

अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखी गई हिन्दी को आधिकारिक भाषा कहा गया है ।

भारत की राजभाषा – हिन्दी

हम आपको बता दें कि भारत की कोई भी राष्ट्रीय भाषा नहीं है । हिन्दी एक राजभाषा है यानी जो भाषा राजकाज अर्थात सरकारी कार्य के लिए उपयोग की जाती है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिन्दी भारत की राजभाषा है। राष्ट्रभाषा का भारतीय संविधान में कोई उल्लेख नहीं है । हालांकि 22 भाषाओं को आधिकारिक दर्जा दिया गया है।

राष्ट्रीय कैलेंडर – शक कैलेंडर

राष्ट्रीय कैलेंडर का दर्जा शक कैलेंडर को प्राप्त है। 1957 में इसे कैलेंडर कमिटी द्वारा बनाया गया था, जिसे भारतीय पंचाग की मदद से तैयार किया गया है । इसमें हिन्दू धार्मिक कैलेंडर के अलावा खगोल डाटा, समय भी लिखित है।

राष्ट्रीय शपथ

राष्ट्रीय शपथ को तेलगु में प्यिदीमर्री वेंकट सुब्बाराव द्वारा 1962 में लिखा गया था। इसे 26 जनवरी 1965 से सभी स्कूलों में निर्धारित रूप से गाये जाने का प्रावधान बनाया गया है।

विविधता में एकता

समाज के लगभग सभी पहलुओं में पूरे देश में मजबूती और संपन्नता का साधन बनता है। अपनी रीति- रिवाज़ और विश्वास का अनुसरण करने के द्वारा सभी धर्मों के लोग अलग तरीकों से पूजा-पाठ करते हैं। ये बुनियादी एकरुपता के अस्तित्व को प्रदर्शित करता है। “विविधता में एकता” विभिन्न असमानताओं की अपनी सोच से परे लोगों के बीच भाईचारे और समरसता की भावना को बढ़ावा देता है।

भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है जो कि विभिन्न धर्मों के लोगों के कारण है । अपने हित और विश्वास के आधार पर विभिन्न जीवन-शैली को अलग-अलग संस्कृति के लोग बढ़ावा देते हैं । यह दुबारा से विभिन्न पेशेवर क्षेत्रों में जैसे संगीत, कला, नाटक, नृत्य (शास्त्रिय, फोक आदि), नाट्यशाला, मूर्तिकला आदि में वृद्धि को बढ़ावा देते हैं । लोगों की आध्यात्मिक परंपरा उन्हें एक-दूसरे के लिये अधिक धर्मनिष्ठ बनाती है ।

सभी भारतीय धार्मिक लेख लोगों की आध्यात्मिक समझ का महान साधन है । लगभग सभी धर्मों में ऋषि, महर्षि, योगी, पुजारी, फादर आदि होते हैं जो अपने धर्मग्रंथों के अनुसार अपनी आध्यात्मिक परंपरा का अनुसरण करते हैं । भारत में हिन्दी मातृ-भाषा है, हालाँकि अलग-अलग धर्म और क्षेत्र (जैसे इंग्लिश, ऊर्दू, संस्कृत, पंजाबी, बंगाली, उड़िया आदि) के लोगों के द्वारा कई दूसरी बोली और भाषाएँ बोली जाती है । हालाँकि सभी महान भारत के नागरिक होने पर गर्व महसूस करते हैं।

भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिये भारत के सभी धर्मों के लोगों के द्वारा चलाए गए स्वतंत्रता आंदोलन को हम कभी नहीं भूल सकते है । भारत में “विविधता में एकता” का स्वतंत्रता के लिये संघर्ष बेहतरीन उदाहरण है । भारत में “विविधता में एकता” सभी को एक कड़ा संदेश देता है कि बिना एकता के कुछ भी नहीं है । प्यार और समरसता के साथ रहना जीवन के वास्तविक सार को उपलब्ध कराता है ।

भारत की “विविधता में एकता” खास है जिसके लिए ये पूरे विश्व में प्रसिद्ध है | ये भारत में बड़े स्तर पर पर्यटन को आकर्षित करता है । एक भारतीय होने के नाते, हम सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और किसी भी कीमत पर इसकी अनोखी विशेषता को कायम रखने की कोशिश करनी है । यहाँ “विविधता में एकता” वास्तविक खुशहाली होने के साथ ही वर्तमान तथा भविष्य की प्रगति के लिए रास्ता है ।

उपसंहार

इस देश पर मुझे और सभी देशवासी को नाज़ है। हम अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं और कई देवी – देवताओं की पूजा करते हैं। फिर भी हम सभी भारतीयों की संभावनाएं वही है। इतनी सादगी और अपनापन इस देश से बेहतर हमें और कहीं नहीं मिलेगा। इन विविधताओं के बावजूद हम सब एक है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक फूलों की माला में, कई प्रकार के फूल होते है, सब के अपने रंग और विशेष सुगंध है लेकिन एक साथ एकाकृत है । विविधता में, हमारे देश की महान एकता बसी हुई है। मेरा प्रिय देश भारत यह वह देश है जो अपनी विविधता, मजबूत एकता, और शांति के लिए विश्वभर में मशहूर है । सभी देशवासियों में देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी है और हमे फख्र है अपने हिन्दुस्तान पर।

मुझे अपने भारतीय होने पर गर्व है । जय हिन्द !


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पर्यावरण दिवस के अवसर पर पौधे लगाते हुए दो छात्रों के मध्य संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

पर्यावरण दिवस के अवसर पर पौधे लगाने के संबंध में दो छात्रों के बीच संवाद

 

मोहित ⦂ अजय, आज तुमने कितने पौधे लगाए?

अजय ⦂ मैंने आज 20 पौधे लगाए।

मोहित ⦂ अच्छा, क्या तुमने 20 पौधे एक ही जगह पर लगाए?

अजय ⦂ नहीं, मैंने हमारे विद्यालय में 10 पौधे लगाए। उसके अलावा मैंने अपनी कॉलोनी के पार्क में 5 पौधे लगाए और 5 पौधे अलग-अलग जगहों पर लगाए।

मोहित ⦂ मैंने भी 25 पौधे लगाए और शहर के अलग-अलग जगहों पर पौधे लगाए।

अजय ⦂ लेकिन हमें पौधे लगाने का यह कार्य केवल आज के दिन तक सीमित नहीं रखना है। आज पर्यावरण के दिवस के उपलक्ष्य में हम पौधे लगा रहे हैं, लेकिन हमें पौधे लगाने का यह कार्य पूरे वर्ष निरंतर करना होगा।

मोहित ⦂ तुम बिल्कुल सच कह रहे हो। हमें केवल आज के दिन खानापूरी के लिए वृक्षारोपण नहीं करना है बल्कि पूरे दिन अलग-अलग जगहों पर निरंतर वृक्षारोपण करते रहना है, तभी हम अपने पर्यावरण के संरक्षण में कुछ योगदान दे सकते हैं।

अजय ⦂ हमें वृक्ष लगाने की आदत बना लेना चाहिए ताकि हम जीवन भर वृक्ष लगाने का पुण्य कार्य कर सकें।

मोहित ⦂ तुम बिल्कुल सच कह रहे हो। जितने अधिक वृक्ष हम लगाएंगे, हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए उतना स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करके जाएंगे।

अजय ⦂ हम सबको वृक्ष लगाने का कार्य निरंतर करते रहना चाहिए।


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क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

मतदान जागरूकता एवं उसके महत्व को ध्यान में रखते हुए अपने मित्र के साथ हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

भीम ने राजा विराट के यहाँ किस नाम से क्या काम किया था?

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भीम ने राजा विराट के यहां ‘वल्लभ’ नाम से रसोईये के रूप में कार्य किया था।

जब पांडव कौरवों द्वारा द्यूत में क्रीड़ा में हार गए तो उन्हें कौरवों की शर्त के अनुसार 12 वर्ष का वनवास तथा 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला। 1 वर्ष के अज्ञातवास की यह शर्त थी कि पांडव इस तरह अज्ञात रूप में रहेंगे कि कोई उन्हें पहचान नहीं पाए। यदि किसी ने उन्हें पहचान लिया तो उन्हें फिर दोबारा से 12 वर्ष का वनवास बिताना पड़ेगा। इसी शर्त के अनुसार पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास बताने के पश्चात 1 वर्ष के अज्ञातवास के लिए अलग-अलग रूप धरे, ताकि कोई भी उन्हें पहचान ना पाए।

पाँचों पांडवों ने द्रौपदी सहित विराटनगर के राजा विराट के यहां शरण ली और अपना असली परिचय नहीं दिया। यहाँ पर भीम ने राजा विराट के यहाँ वल्लभ’ नामक रसोईया का रूप बनाया। भीम खाने-पीने के शौकीन थे और पाक कला में माहिर थे, इसलिए उन्होंने अपना नाम वल्लभ’ बता कर राजा विराट के यहाँ रसोइये की नौकरी कर ली।

युधिष्ठिर ने ब्राह्मण का रूप अपना नाम कंक’ कर लिया और राजा विराट के यहाँ नौकरी करने लगे।

उर्वशी अप्सरा द्वारा एक वर्ष तक नपुंसक होने के श्राप के कारण अर्जुन ने बृहन्नला’ नामक किन्नर रखकर राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य सिखाने लगे।

नकुल ने ग्रांथिक’ नाम रखा और राजा विराट के यहाँ घोड़ों के अस्तबल में नौकरी कर ली।

सहदेव ने तंत्रिपाल’ नाम रखा और राज विराट के यहाँ चरवाहे की नौकरी कर ली।

द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री’ रखा और राजा विराटी की पत्नी की सेविका के रूप में नौकरी कर ली।


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रानी कर्णावती बाघसिंह से किस युद्ध की बात कर रही हैं?

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रानी कर्णावती बाघ सिंह से गुजरात के शासक बहादुरशाह के साथ युद्ध होने वाले युद्ध के बारे में बात कर रही हैं।

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महारानी कर्णावती उस समय मेवाड़ की महारानी थी, इसलिए महारानी अपनी सेना से बहादुरी से युद्ध लड़ा, लेकिन उसकी सेना कमजोर पड़ने लगी। तब ऐसी स्थिति में रानी कर्णावती ने उस समय के मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजकर उसे भाई बनाते हुए संधि करने का प्रस्ताव दिया और चित्तौड़ की रक्षा के लिए मदद मांगी। राखी का मूल्य’ कहानी में इसी घटना का वर्णन किया गया है।


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अस्पृश्यता को परिभाषित कीजिए? इसके आयाम भी लिखे।

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अस्पृश्यता की परिभाषा एवं अस्पृश्यता के आयाम

अस्पृश्यता से तात्पर्य किसी ऐसे व्यक्ति अथवा वस्तु के संदर्भ में लिया जाता है, जिसको स्पर्श करना वर्जित हो। अस्पृश्यता सामान्यतः उन व्यक्तियों और जातियों के संदर्भ में प्रयुक्त की जाती है, जिन्हें तथाकथित निचली जाति का दर्जा दे दिया गया है और ऐसी जाति से संबंध रखने वाले लोगों के शरीर को छूना अस्पृश्यता माना गया। तथाकथित निचली जातियां जिनका व्यवसाय कार्य मल-मैला उठाना, साफ-सफाई करना, कूड़ा-करकट उठाना, जूते-चप्पल आदि की मरम्मत करना आदि जैसे कार्य हैं।

इस तरह के कार्य करने वाले लोगों को एक विशेष जाति के दायरे में बांध दिया गया है और ऐसी जाति से संबंध रखने वाले लोगों को तथाकथित उच्च जाति वाले लोगों द्वारा न छूना ही अस्पृश्यता माना जाता है। तथाकथित ऊँची जाति वाले लोग इस तरह के काम करने वाले तथाकथित निचली जाति वाले लोगों को हेय दृष्टि से देखते थे। मध्यकालीन भारत में और स्वतंत्र भारत से पूर्व के भारत में अस्पृश्यता की समस्या बड़े विशाल स्तर पर थी। स्वतंत्र भारत के पहले भी यह एक सामाजिक समस्या थी।

भारत के स्वतंत्रता के बाद स्थिति कानून के तहत कुप्रथा को मिटाने के निरंतर प्रयास किए गए हैं और सभी को समान नागरिक दर्जा प्रदान कर जातिगत भेदभाव मिटाने का प्रयास किया गया है। अस्पृश्यता की कुप्रथा तथाकथित उच्च जाति वाले लोगों द्वारा तथाकथित नीची जाति वाले लोगों के साथ सामाजिक भेदभाव का मूल थी। तथाकथित निचली जाति वाले व्यक्ति ऐसा पेशेवर कार्य करते थे जो हेय दृष्टि से देखा जाता रहा। जैसे मैला ढोना, साफ-सफाई करना, कूड़ा-करकट उठाना, मल-मूत्र साफ करना, जूते-चप्पल मरम्मत करना, माँस आदि व्यवसाय करना आदि। इस तरह के व्यवसाय पेशेवर कार्य करने वाले लोगों को समाज में निकली जाति का दर्जा दे दिया गया और उच्च जाति वाले लोगों ने ऐसी कार्य करने वाले लोगों को स्पर्श करने से बचने लगे। इसी को अस्पृश्यता कहा जाता है। अस्पृश्यता के तीन के आयाम हैं…

  • अपवर्जन एवं बहिष्कार
  • अनादर एवं अपमान
  • अधीनता एवं शोषण

अपवर्जन एवं बहिष्कार : अपवर्जन एवं बहिष्काक के अंतर्गत तथाकथित उच्च जाति के लोगों द्वारा निचली जाति के लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया और उनकी बस्तियां आदि समाज से अलग कर दी गईं।

अनादर एवं अपमान : उच्च जाति वाले व्यक्तियों द्वारा तथाकथित निचली जाति के व्यक्तियों का अनादर किया जाता रहा। उच्च जाति के लोग निचली जाति लोगों को हे. दृष्टि से देखते थे और निरंतर उनका अनादर करते थे।

अधीनता एवं शोषण : तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने निचली जाति के लोगों का आस्था के नाम पर निरंतर शोषण किया। उच्च जाति को लोग निचली जाति के लोगों को स्वयं से निम्न मानकर उनको अपने अधीन बनाकर रखते थे और उनसे सेवा कार्य लेते


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अर्जुन ने युद्ध के लिए शस्त्रहीन श्रीकृष्ण का चुनाव इसलिए किया क्योंकि अर्जुन जानते थे कि श्री कृष्ण साक्षात नारायण के अवतार हैं। श्रीकृष्ण अनेक दिव्य शक्तियों से युक्त हैं। अकेले श्रीकृष्ण की कई सेनाओं के बराबर हैं, वह भले ही शस्त्रहीन हैं, लेकिन उनका साथ ही अर्जुन के लिए एक नई ऊर्जा और शक्ति प्रदान करेगा। इसीलिए अर्जुन ने युद्ध के लिए शस्त्रहीन कृष्ण का चुनाव किया। अर्जुन श्रीकृष्ण की शक्तियों से भली-भांति परिचित थे।

यद्यपि श्री कृष्ण ने युद्ध भूमि में शस्त्र न उठाने का संकल्प लिया था। इसके बावजूद भी इसके बावजूद अर्जुन जानते थे कि श्री कृष्ण स्वयं में ही किसी शक्ति पुंज से कम नहीं है। वह शस्त्रहीन और अकेले होने के बावजूद कई सेनाओं के बराबर है। वह जिस पक्ष की तरफ होंगे, उधर विजयश्री निश्चित है। इसीलिए अर्जुन ने शस्त्रगीन श्री कृष्ण का चुनाव किया। श्री कृष्ण और श्री कृष्ण की नारायणी सेना दोनों में से एक चुनने पर अर्जुन ने श्री कृष्ण को चुना।


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सही विकल्प है

2. चित्तरंजन दास

विस्तृत विवरण :

1923 में स्वराज पार्टी बनाने के लिए मोतीलाल नेहरू के साथ पार्टी की स्थापना चितरंजन दास ने की थी, जो कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता थे। स्वराज पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1923 को मोतीलाल नेहरू और देशबंधु चितरंजन दास ने मिलकर की थी। इस दल की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत की स्वाधीनता पाने के लिए कार्य करना तथा अधिक से अधिक स्व-शासन वाला कार्य करना था। इस पार्टी की स्थापना में जनवरी 1923 में इलाहाबाद में चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू, नरसिंह चिंतामणि केलकर और विट्ठलभाई पटेल ने मिलकर की थी। उस समय इस पार्टी का नाम ‘कांग्रेस-खिलाफत स्वराज पार्टी’ रखा गया था। बाद में इसका नाम स्वराज पार्टी कर दिया गया।

पार्टी का पहला अधिवेशन मार्च 1923 में इलाहाबाद में ही हुआ था। अधिवेशन में अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अनेक तरह के लक्ष्य रखे गए थे। स्वराज पार्टी अधिक सफल नहीं हो पाई। 1925 में चित्तरंजन दास की मृत्यु हो गई और यह संगठन धीरे-धीरे कमजोर पड़ता गया।


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पुरुषोत्तम का समास विग्रह कीजिए।

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पुरुषोत्तम का समास विग्रह

पुरुषोत्तम : पुरुषों में उत्तम
समास का नाम : तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास का उपभेद : अधिकरण तत्पुरुष समास

स्पष्टीकरण

अधिकरण तत्पुरुष समास वहाँ पर प्रकट होता है, जब 2 पदों के बीच अधिकरण कारक छुपा होता है। यह अधिकरण कारक विभक्ति चिन्ह ‘में’ अथवा ‘पर’ होता है। ऐसे पदों में अधिकरण समास होता है। अधिकरण समास तत्पुरुष समास का एक उपभेद है। ये व्याधिकरण तत्पुरुष समास के 6 उपभेदों में से एक उपभेद है।

तत्पुरुष समास के भी 6 उपभेद होते हैं। अधिकरण तत्पुरुष समास उन्हीं उपभेदों में से एक उपभेद है। ये छः उपभेद इस प्रकार हैं…

  • कर्म तत्पुरुष समास
  • करण तत्पुरुष समास
  • सम्प्रदान तत्पुरुष समास
  • अपादान तत्पुरुष समास
  • सम्बन्ध तत्पुरुष समास
  • अधिकरण तत्पुरुष समास

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‘मारतहू पा परिअ तुम्हारे’-लक्ष्मण ने ऐसा किससे और क्यों कहा?

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‘मारतहू पा परिअ तुम्हारे’ ऐसा लक्ष्मण ने परशुराम से कहा था।

लक्ष्मण ने परशुराम से की बात क्षमा याचना करते हुए ये बात कही। जब सीता स्वयंवर के समय राजा जनक के दरबार में श्री राम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़ने पर परशुराम वहाँ आकर क्रोधित हो गए। तब लक्ष्मण के साथ हुए वाद-विवाद में लक्ष्मण ने परशुराम से क्षमा याचना करते हुए कहा कि देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त तथा गाय पर प्रहार करना या वीरता दिखाना हमारे कुल की मर्यादा नहीं है। इन लोगों पर किसी भी तरह का हिंसा करना पाप कर्म के समान है और इनसे हारना हमारे लिए अपयश के समान है। यदि हम आपके ऊपर किसी तरह का प्रहार करेंगे तो यह उचित नहीं होगा। हमें आपके पैर पड़ना चाहिए। इसलिए हे महामुनि! यदि मैंने कुछ अनुचित कहा हो तो आप धैर्य धारण करके क्षमा प्रदान करें। हम व्यर्थ के लड़ाई झगड़े में नहीं पड़ना चाहते। आप ब्राह्मण हैं, हमारे पूजनीय, सम्मानीय हैं। आपका आदर सत्कार करना हमारा परम धर्म है।

संदर्भ पाठ
(राम लक्ष्मण परशुराम संवाद, कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी क्षितिज)

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वास्कोडिगामा को भारत पहुंचने में किस भारतीय व्यापारी ने सहायता की थी​?

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वास्कोडिगामा को भारत पहुंचने में मदद करने वाले व्यापारी का नाम ‘कानजी भाई’ था।

कानजी भाई एक गुजराती व्यापारी थे, जिन्होंने भारत वास्कोडिगामा को भारत पहुंचने में मदद की थी।

कानजी भाई उस समय एक प्रसिद्ध व्यापारी थे और अक्सर समुद्री यात्राएं करते रहते थे। वह नियमित रूप से समुद्री मार्ग से अफ्रीका की ओर जाते रहते थे। इसी क्रम में उनकी मुलाकात वास्कोडिगामा से हो गई और उन्होंने ही 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा को कालीकट बंदरगाह तक पहुंचने में मदद की थी।

वास्कोडिगामा एक पुर्तगाली नागरिक था वह प्रथम यूरोपियन व्यक्ति था, जिसने भारत की भूमि पर कदम रखा।

वास्कोडिगामा 15वीं शताब्दी में भारत आया था। उसके बाद भारत आता जाता रहा। कानजी भाई ने जिस तरह वास्कोडिगामा की भारत पहुंचने में मदद की, उससे वास्कोडिगामा बेहद खुश हुआ और उसने कानजीभाई को पुर्तगाल आने का निमंत्रण भी दिया था।


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युधिष्ठिर के अनुसार मनुष्य का साथ कौन देता है ?

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युधिष्ठिर के अनुसार ‘धैर्य’ ही मनुष्य का साथ देता है।

युधिष्ठिर के अनुसार धैर्य वह गुण है, जो हर घड़ी में मनुष्य का साथ देता है। धैर्य से तात्पर्य अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करके संयम धारण करना ही धैर्य है। जो लोग बिना सोचे समझे बोल देते हैं, बिना सोचे समझे कुछ भी व्यवहार करते हैं, हर बात में उतावली दिखाते हैं, वह धैर्यवान नहीं होते। ऐसे लोग हमेशा जीवन में कुछ ना कुछ नुकसान उठाते ही रहते हैं। यदि मनुष्य धैर्यवान होता है, तो वह हर विपत्ति संकट का सामना करने में सक्षम होता है और उस पर कोई भी विपत्ति संकट हावी नहीं हो पाता।

जब वनवास के समय पाँचो पांडव वन में भटक रहे थे तो एक जगह प्यास लगने पर पानी की तलाश में एक-एक करके सभी पांडव एक तालाब के किनारे गए और तालाब के यक्ष द्वारा प्रश्न पूछे जाने और उसका उत्तर ना दे पाने के कारण दंड का शिकार होते गए। अंत में जब युधिष्ठिर पहुंचे तो अपने चारों भाइयों को वहां निर्जीव देखकर व्याकुल हो उठे। तब यक्ष ने प्रकट होकर उनसे कहा कि यदि तुम मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर दे दोगे तो तुम्हारे सभी भाई जीवित हो जाएंगे। तब यक्ष ने युधिष्ठिर से ज्ञान संबंधित प्रश्न पूछे थे, उन्हीं प्रश्नों में से एक प्रश्न यह था कि मनुष्य का साथ कौन देता है। तब युधिष्ठिर ने कहा था कि मनुष्य का साथ का धैर्य देता है। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी प्रश्नों का सही उत्तर देकर यक्ष को प्रसन्न कर दिया और यक्ष ने प्रसन्न होकर यक्ष ने चारों पांडवों को जीवित कर दिया।


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‘प्रेमाश्रम’ उपन्यास असहयोग आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया था। यह उपन्यास मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित प्रथम हिंदी उपन्यास था, जिसने अपने प्रकाशित होते ही धूम मचा दी थी। प्रेमाश्रम का प्रकाशन 1922 में हुआ था। उस समय असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था। प्रेमाश्रम में की पृष्ठभूमि भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित थी। इसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम झांकी तथा राम राज्य की स्थापना अधिक जैसी बातें का वर्णन किया गया था। उपन्यास का जो मूल भाव था वह है भारत की स्वतंत्रता पर प्राप्ति पर आधारित था और असहयोग आंदोलन भी अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए किया गया आंदोलन था। इसलिए प्रेमश्रम ने अहयोग आंदोलन में एक प्रेरणा भरने का कार्य किया। उपन्यास के प्रकाशित होते ही उपन्यास की सारी प्रतिया शीघ्र बिक गई और जल्दी ही दूसरी भाषाओं में इसका अनुवाद आ गया था। इस तरह प्रेमाश्रम उपन्यास अपनी कथा-वस्तु के कारण असहयोग आंदोलन का अभिन्न अंग बन गया था।


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‘पूजा के लिए तो दान-दक्षिणा चाहिए’ किंतु किसी मरणासन्न व्यक्ति के जीवन की रक्षा करने में भी ‌हमारा समाज अपनी परंपराओं से नही हटता, क्या आप इसे उचित मानते हैं ? अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार/अभिमत

‘पूजा के लिए तो दान-दक्षिणा चाहिए’ लेकिन किसी मरणासन्न व्यक्ति की रक्षा करने के विषय में भी हमारा समाज अपनी परंपराओं से पीछे नहीं हटता है, हमारे विचार में यह बिल्कुल भी उचित नहीं है।

मानवता की सेवा ही सबसे सच्ची पूजा है। ईश्वर की पूजा करना अच्छी बात है, हमें हमेशा ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। लेकिन जहाँ मानवता की बात आती है, वहाँ पर मानवता को प्राथमिकता देनी चाहिए। ईश्वर यह कभी नहीं कहते कि मनुष्य अपनी मानवता को भूल कर केवल सदैव उसका ही ध्यान करें। यदि समाज कोई परंपरा निभा रहा है तो अच्छी बात है, लेकिन उस परंपरा के रास्ते में मानवता रूपी कोई कर्तव्य सामने आ जाता है तो उसे अपनी मानवता वाले कर्तव्य को पहले निभाना चाहिए।

अपनी परंपरा और ईश्वर की पूजा-पाठ के लिए दान-दक्षिणा आदि मानवता से ऊपर का विषय नहीं है। जहाँ पर परंपरा और मानवता को चुनने की बात आए, वहाँ पर सदैव मानवता को चुनना चाहिए। जहाँ पर ईश्वर पूजा और मानवता की सेवा की बात आए, वहाँ पर सदैव मानवता की सेवा को चलना चाहिए। जो लोग मानवता की सेवा को प्राथमिकता देते हैं, ईश्वर भी उनसे ही प्रसन्न होते हैं। वास्तव में दुखी दीन-दुखियों की सेवा करना ही सच्ची ईश्वर पूजा है।


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प्रतिवेदन किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं?

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प्रतिवेदन की परिभाषा

प्रतिवेदन से तात्पर्य किसी घटना अथवा किसी गतिविधि की क्रमिक जानकारी या विवरण से होता है। जब किसी घटना या गतिविधि के संबंध में एक व्यवस्थित जानकारी प्रस्तुत की जाती है, तो उसे ‘प्रतिवेदन’ कहते हैं।

प्रतिवेदन को अंग्रेजी में ‘रिपोर्ट’ कहा जाता है।

प्रतिवेदन के लिए उस घटना की गहन जांच आवश्यक होती है। यह जांच तथ्यों पर आधारित होती है। प्रतिवेदन को प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति को प्रतिवेदक कहते हैं। प्रतिवेदन लिखते समय तथ्यों और उस घटना की पूरी जानकारी और लेखा-जोखा प्रस्तुत करने के साथ यदि आवश्यक हो तो संबंधित सुझाव भी दिए जाते हैं। यदि प्रतिवेदन किसी प्रश्न के समाधान के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है, तो उन प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर भी दिया जाता है। प्रतिवेदन किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है अथवा व्यक्ति के समूह द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।

प्रतिवेदन तीन प्रकार के होते हैं :

  • व्यक्तिगत प्रतिवेदन
  • संगठनात्मक प्रतिवेदन
  • विवरणात्मक प्रतिवेदन

व्यक्तिगत प्रतिवेदन : जब प्रतिवेदन व्यक्तिगत रूप से लिखा जाता है जो किसी व्यक्ति विशेष के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाता है या किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन पर आधारित होता है तो वह प्रतिवेदन व्यक्तिगत प्रतिवेदन कहलाता है। कोई व्यक्ति जब स्वयं के विषय में प्रतिवेदन लिखता है तो वह प्रतिवेदन डायरी भी बन जाता है।

संगठनात्मक प्रतिवेदन : जो प्रतिवेदन संस्था या संगठन की गतिविधियों के विषय में प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे संगठनात्मक प्रतिवेदन कहते हैं।

विवरणात्मक प्रतिवेदन : जब प्रतिवेदन किसी घटना, समारोह, मेला, इवेंट, रैली आदि के संबंध में लिखा जाता है, तो उस विवरणात्मक प्रतिवेदन कहते हैं।

प्रतिवेदन लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें
  • प्रतिवेदन लिखते समय प्रतिवेदन का शीर्षक प्रतिवेदन के विषय से मेल खाता हो।
  • प्रतिवेदन हमेशा स्पष्ट तथा सरल भाषा में लिखना चाहिए।
  • प्रतिवेदन बहुत अधिक लंबा नहीं लिखना चाहिए और उसमें मुख्य आवश्यक बिंदुओं का उल्लेख करते हुए संक्षिप्त रूप में लिखना चाहिए। प्रतिवेदन को बेवजह लंबा नहीं करना चाहिए।
  • प्रतिवेदन में जो भी तथ्य प्रस्तुत किए जाएं, वह प्रमाणिक हों। प्रतिवेदन लिखते समय संबंधित घटना और तथ्यों की पूरी तरह जांच कर लेनी चाहिए।
  • प्रतिवेदन लिखने के समय यदि उसमें कोई सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं तो उचित सुझाव प्रतिवेदन के अंत में अवश्य देना चाहिए जो कि निष्कर्ष के रूप में हो सकते हैं।
  • प्रतिवेदन प्रथम पुरुष के रूप में प्रयुक्त करते हुए नहीं लिखा जाता है।

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पीत पत्रकारिता का संबंध किस प्रकार के समाचारों से हैं? A. सनसनीखेज समाचारों से C. अर्थ जगत के समाचारों से B. वैश्विक दैनिक समाचारों से D. फिल्मी दुनिया से संबंधित समाचारों से।

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सही उत्तर है…

A. सनसनीखेज समाचारों से

स्पष्टीकरण

पीत पत्रकारिता से तात्पर्य सनसनीखेज पत्रकारिता से होता है। पीत पत्रकारिता के अंतर्गत सनसनी फैलाने वाले समाचारों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। समाचार पत्रों और न्यूज़ टीवी चैनलों की द्वारा ऐसे समाचारों की प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे समाचारों को बढ़ा चढ़ाकर मसालेदार समाचार के रूप में प्रयोग किया जाता है ताकि जनता अधिक से अधिक उन समाचारों की ओर आकर्षित हो और अखबार की बिक्री बड़े तथा टीवी चैनलों की व्यूवरशिप बढ़े। इस तरह की पत्रकारिता के द्वारा समाचार पत्रों की बिक्री बढ़ाने की प्रवृत्ति सही प्रवृत्ति नहीं माना जाता। एक आदर्श पत्रकारिता में पीत पत्रकारिता को सही नही माना जाता ना ही ये आदर्श पत्रकारिता है।


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प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा क्या है? प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा किससे जुड़ी है?

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प्राकृतिक स्वतंत्रता से तात्पर्य स्वतंत्रता के उस प्रकार से है, जो लोगों को प्राकृतिक रूप से प्रकृति से प्राप्त होती है अर्थात किसी राज्य की स्थापना से पूर्व यानी जब राज्यों की अवधारणा स्थापित हुई, उसकी स्थापना से पूर्व लोगों को जो प्राकृतिक स्वतंत्रता प्राप्त थी, वह ही प्राकृतिक स्वतंत्रता है। सरल शब्दों में नैसर्गिक रूप से आदिम जीवन जीने को प्राकृतिक सुंदरता का दूसरा नाम है। प्राकृतिक स्वतंत्रता यानि स्वतंत्रता की वो अवधारणा जिसमें मानव के कार्यों पर किसी का कोई नियंत्रण स्थापित नहीं हो। वह स्वतंत्र रूप से कुछ भी कार्य करने के लिए स्वतंत्र हो। उस तरह की स्वतंत्रा जो जंगली जानवरों को प्राप्त होती है। अपनी इच्छानुसार वे जो चाहे करते हैं।प्राकृतिक स्वतंत्रता एक तरह के जंगलराज का ही दूसरा नाम है।

प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा ‘जाँ जाक रूसो’ से जुड़ी हुई है। ‘जाँ जाक रूसो’ एक प्रसिद्ध दार्शनिक, लेखक और संगीतकार था। उसने राजनीतिक दर्शन से संबंधित अनेक सिद्धांत तत्कालीन यूरोप में प्रतिपादित किए थे। प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा भी रूसो ने ही प्रतिपादित की थी। जाँ जाक रूसो का जन्म 28 जून 1712 को जिनेवा में हुआ था और उसका निधन 2 जुलाई 1778 को हुआ।


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विचार/अभिमत

पक्षियों को पालना उचित है या नहीं

 

हमारी दृष्टि में पक्षियों को पालना बिल्कुल भी उचित नहीं है। पक्षी स्वच्छंद गगन में विचरण करने के लिए होते हैं। विशाल गगन में उन्मुक्त होकर विचरण करना ही उनका मूल स्वभाव होता है। उन्हें पिंजरे में कैद करके पक्षियों की स्वभाविकता इनकी स्वच्छंदता छीन लेते हैं। पक्षी जब तक स्वतंत्र हैं, उनमें चंचलता है। उनमें उनकी स्वभाविक वृत्ति है। जब वे पिंजरे में कैद हो जाते हैं तो उनकी स्वभाविक चंचलता खत्म हो जाती है।

कैद में रहना कोई भी पसंद नहीं करता। कोई भी प्राणी चाहे वे पशु हो, मनुष्य हो या पक्षी हो कोई कैद में रहना पसंद नही करता। पक्षियों का तो स्वभाव ही दूर-दूर तक विचरण करने का होता है। इसलिए पक्षियों को पालना बिल्कुल भी उचित नहीं है। यदि पक्षियों को पालना भी है तो इस तरह पालना चाहिए के वह स्वतंत्र रह सकें। उन्हें पिंजरे में कैद करते पक्षियों को पालना बिल्कुल भी उचित नहीं है।


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कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं’, कवि ने पंक्तियाँ किस भाव में कही हैं?

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‘कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं।’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि का भाव यह है कि हमें जो आजादी मिली है वह अभी पूर्ण रूप से नहीं मिल पाई है। अभी हमें गुलामी की कुछ जंजीरों को और तोड़ना है। अंग्रेज भले ही हमारे देश से चले गए हों, हम आजाद हो गए हों, लेकिन अभी भी हम द्वारा किए गए उत्पीड़न और अत्याचार के बाद जो दुष्प्रभाव उत्पन्न हुए, उनका प्रभाव बाकी है। अभी हमें उन सब से पार पाना है।

‘वीरेंद्र मिश्र’ द्वारा लिखित कविता ‘हम को आगे आना है’ की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं..

कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं,
अब भी भारत माँ के बिखरे केश हैं,
जिधर नजर जाती, आँसू की भीड़ है-
हम पर तुम पर आँख लगाए देश है!
हम न रुकेंगे आगे गया जमाना है!
हमको, तुमको, सबको आगे आना है!

अर्थात कवि कहते हैं, हमें आजादी तो मिल गई है, लेकिन अभी पूरी तरह आजादी नही मिली है। अंग्रेजों ने भारत माता को जो नुकसान पहुँचाया है, अभी हमें उस नुकसान को भरना है। अंग्रेजों के अत्याचार और अन्याय त्रस्त भारतीयों के आँसुओं को पूछना है। हमारे देश के कर्णधारों पर अभी सारा उत्तरदायित्व है। सारा देश उनकी ओर ही देख रहा है। अभी तो हमें मिलकर अपने देश को आगे ले जाना है। अब हम भारतीय रुकने वाले नही हैं, हमे निरंतर आगे बढ़ते ही जाना है।


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नाना की अचानक तबीयत खराब होने पर मामा को पत्र लिखिए​।

अनौपचारिक पत्र

मामा को पत्र

 

दिनांक : 24 मई 2024

 

आदरणीय मामा जी
सादर चरण स्पर्श

आपने पिताजी को जो पत्र लिखा था, मैंने पढ़ा। पत्र के माध्यम से मुझे नाना जी की खराब तबीयत के बारे में पता चला। नाना जी के खराब स्वास्थ्य के बारे में जानकर बड़ा दुख हुआ।

मामा जी, आप हौसला रखिए और नानाजी की निरंतर देखभाल करते रहिए। मुझे विश्वास है। शीघ्र ही नाना जी की तबीयत अच्छी हो जाएगी। मेरी इस समय परीक्षाएं चल रही है, इसलिए मैं तुरंत मैंने मामा को देखने नहीं आ सकता। इसी कारण पिताजी भी नहीं आ पा रहे हैं। कुछ दिनों बाद मेरी परीक्षाएं समाप्त हो जाएंगी। फिर मैं, माँ-पिताजी सभी लोग नाना जी को देखने आएंगे। जब तक आप मामा जी का ध्यान रखिए।

ईश्वर हम सबके साथ है और नाना जी का स्वास्थ्य शीघ्र अच्छा हो जाएगा। भगवान नाना जी को दीर्घायु प्रदान करें। नाना जी का ध्यान रखने के साथ-साथ आपको नानी जी का भी हौसला बढ़ाते रहना है ताकि वह नाना जी की तबीयत के कारण व्यर्थ का की चिंता ना करें। मैं समझ सकता हूँ, इस कठिन घड़ी में आप पर बेहद दबाव है। ईश्वर हम सबके साथ साथ है। आप हौसला रखो। सब कुछ ठीक हो जाएगा। अब पत्र समाप्त करता हूँ। सभी बड़ों को मेरी तरफ से चरण स्पर्श।

आपका भाँजा
‘अनिमेष’


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गांधी जी हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादी क्यों बनना चाहते थे?

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गांधी जी राजा हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादी इसलिए बनना चाहते थे क्योंकि बचपन में जब उन्होंने राजा हरिश्चंद्र नाटक देखा था तो वह राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता से बेहद प्रभावित हुए थे। उन्होंने राजा हरिश्चंद्र का नाटक अपने बचपन में कई बार देखा। उनके मन पर इस नाटक का गहरा प्रभाव पड़ा। यह नाटक उन्होंने कई बार देखा और राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता से प्रेरित होकर गांधी जी ने सत्य एवं अहिंसा का व्रत करने का पालन करने का प्रण ले लिया। इसीलिए वह राजा हरिश्चंद्र की तरह बनना चाहते थे। राजा हरिश्चंद्र ने सत्य के मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन में जिस तरह की विपत्तियां झेलीं, लेकिन सत्य का साथ नहीं छोड़ा। गांधीजी को उनकी यह सत्यवादिता बेहद प्रेरणादायक लगी। इसीलिए उन्होंने हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादिता का व्रत का पालन करने का प्रण ले लिया और स्वंय को राजा हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादी बनाने की ठानी।


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नम्रता एक गुण

 

मनुष्य के लिए नम्रता का गुण एक बेहद महत्वपूर्ण गुण है। नम्रता का गुण मनुष्य के चरित्र के लिए एक सकारात्मक कार्य करता है। यह मनुष्य के चरित्र को सकारात्मक रूप में विकसित होने में मदद करता है। जिस मनुष्य के अंदर नम्रता है, उसका कभी किसी से झगड़ा नहीं होता। वो किसी के विषय में बुरा नहीं सोचता और ना ही बुरा कहता है।

ऐसे व्यक्ति को सभी पसंद करते हैं। नम्रता का गुण धारण करने वाले व्यक्ति के मित्रों का दायरा बेहद विशाल होता है। विनम्र व्यक्ति से सब लोग मिलना जुलना पसंद मित्रता करना चाहते हैं। इसलिए नम्रता का गुण व्यक्ति के लिए सकारात्मक पक्ष है। व्यक्ति को स्वभाव से विनम्र होना चाहिए। विनम्रता एक आभूषण है। यह सज्जन पुरुषों का आभूषण है जो व्यक्ति विनम्र है वह सज्जन अवश्य होगा, इस बात में कोई संदेह नहीं। इसलिए नम्रता का गुण सज्जनता की भी पहचान होता है।


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देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है (निबंध)

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निबंध

देशप्रेम दिखावे की वस्तु नहीं है

 

देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है, यदि हम आधुनिक पीढ़ी में देशप्रेम की बात करे तो बड़े ही अफ़सोस की बात हैं कि अपनी फल-फूली राष्ट्रभक्ति की विरासत लिए हमारी पीढ़ी राष्ट्र के नाम पर उदासीन प्रतीत होती है। देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है, पर आज की पीढ़ी इसे एक वस्तु ही समझने लगी है । मात्र कुछ दिनों पन्द्रह अगस्त या छब्बीस जनवरी को ही उनका देश प्रेम जगता है कुछ कार्यक्रमों की आहुति के बाद वह अगले सीजन तक के लिए सुप्त हो जाता है। क्या है यह देशप्रेम ? आइए जानते हैं । 

आधुनिक पीढ़ी का देशप्रेम

आज के समय में धीरे-धीरे खत्म होती जा रही देश प्रेम की यह भावना राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य की अच्छी निशानी नहीं हैं । हमारे युवकों छात्र छात्राओं में वतन पर मर मिटने का जज्बा हमें उत्पन्न करना होगा, तथा इस कार्य में शिक्षण संस्थान एवं हमारे गुरुजन अहम भूमिका निभा सकते हैं।

देशप्रेम का अर्थ

अपने देश, अपनी जन्मभूमि से लगाव रखना देश – प्रेम हैं। मनुष्य जिस भूमि पर जन्म लेता है अपना पेट उसके अन्न से भरकर शारीरिक व मानसिक विकास करता हैं उससे प्रेम करना स्वाभाविक है । जो लोग देश से प्रेम करते हैं वे उन सारे कामों से दूर रहते हैं जो देश की बुनियाद को कमजोर करते हैं चाहे वह जात-पात, ऊँच-नीच, गरीब–अमीर, भाषा, क्षेत्र और दूसरे सारे मामलों में पक्षपात की बात हो या फिर किसी भी देशवासी के स्वाभिमान को चोट अथवा नुकसान पहुंचाने की बात हो ।

देशभक्ति का मतलब केवल दिखावा नहीं है बल्कि हम जहाँ हैं, वहाँ कोई काम ऐसा नहीं करें जो देश के लिए घातक हो । देशभक्त वही कहा जा सकता है जो कि मानवीय मूल्यों और मातृभूमि की सेवा के प्रति समर्पित हो । ऐसा नहीं है तो हम देशभक्त नहीं कहे जा सकते देशभक्ति का सीधा सा मतलब यही है कि जहाँ हम रहते हैं, काम करते हैं वहाँ अपना काम ईमानदारी से पूरा करें, देश को सामने रखें और इस प्रकार गुणवत्ता से काम करें कि देश के लिए काम आए ।

देश-प्रेम में त्याग

अपने देश से प्रेम करने वाला राष्ट्र भक्त अपना सर्वोच्च त्याग करने के लिए तैयार रहता हैं । एक देशभक्त अपने देश के हित के प्रति निःस्वार्थ भाव महसूस करता है । वह अपने देश के हित और कल्याण को सबसे पहले रखता रखते है । देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है, यह हमारा अपना घर है, जिसकी रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। वह बिना सोचे समझे अपने देश के प्रति त्याग करने के लिए तैयार भी हो जाता है । हमें यह विचार करना चाहिए कि हमें देश ने क्या नहीं दिया, जबकि बदलें में हम उसे क्या दे पाए है हमारा योगदान भारत के लिए क्या रहा हैं, अपना पेट भरना और शाम को सोकर अगले दिन कोल्हू के बैल की भांति अपने स्वार्थों में लग जाना तो पशुत्व की निशानी हैं।

एक पवित्र भावना

देश प्रेम एवं भक्ति राष्ट्र पर कीजिए, आपके जाने के बाद दुनिया याद रखेगी । अपने वतन की दीवानगी क्या-क्या नहीं करवाती वतन की खातिर जेल, यातनाएं, फांसी, गोली,यह सब कुछ तो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने किया और आज भी हम उनके सम्मान एवं राष्ट्र प्रेम में सिर झुकाकर नमन करते हैं। एक व्यक्ति के लिए राष्ट्र ही उसका गौरव होता है इसलिए अपने भारतीय होने पर गर्व करिए और इसके लिए कुछ करने का जज्बा व दीवानगी को जीवित रखिए।

देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है बहुत झंडे फहरा लिए, भाषण दे दिए, अब वक्त आ गया है कुछ करने का । देशभक्ति का राग अलापना और दिखावा करना छोड़ें, पाखण्ड और प्रपंचों को तिलांजलि दें और देश के भीतर हमारी अस्मिता को कमजोर करने वाले देशद्रोहियों और भ्रष्ट तत्वों को बेनकाब करें। यही असली देशभक्ति है जो देश को सुरक्षित, संरक्षित और विकसित करने के लिए जरूरी है।

देशभक्ति का मतलब केवल दिखावा नहीं है बल्कि हम जहाँ हैं, वहाँ कोई काम ऐसा नहीं करें जो देश के लिए घातक हो।
देशभक्त वही कहा जा सकता है जो कि मानवीय मूल्यों और मातृभूमि की सेवा के प्रति समर्पित हो । ऐसा नहीं है तो हम देशभक्त नहीं कहे जा सकते। हम अपनी ड्यूटी के प्रति पाबंद रहें, पूरे समय काम करें और हर दिन इतना काम करें कि हमारे जिम्मे काकोई सा काम लम्बित न रहे ।

हमारे संपर्क में आने वाला प्रत्येक देशवासी हमारा अपना है, उसका कामकरना, उसे सुकून देना हमारा फर्ज है। यह हर देशवासी का नैसर्गिक स्वभाव होना चाहिए कि हम अपनेदेश के प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी बनें, उसके काम करें और उसे अहसास दिलाएं कि हर देशवासी आपस में भाई-भाई हैं।

देशप्रेम का दिखावा

एक तरफ हम देशभक्ति और देश के लिए काम करने की बातें करते हैं और दूसरी तरफ हम भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कमीशनबाजी के फेर में लोगों को तंग करते हैं, पैसा न मिलने तक काम लटकाते या बिगाड़ देते हैं, अपना-पराया करते हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद फैलाते हैं। पैसों, जेवरों और हराम के भोग-विलास के संसाधनों और लचीली देहों से शारीरिक सुख पाने के लालच में आतंकवादियों को पनाह देते हैं, ड्रग माफियाओं के एजेंट की तरह काम करते हैं। देश के विभाजन का ताना-बाना बुनते हैं, संस्कृति और सभ्यता का चीरहरण करते हैं, अपने ही आस-पास रहने वाले और अपने पेशे से संबंधित लोगों से ही कुछ पाने की उम्मीद रखते हैं, बेवजह तंग करते हैं, शोषण करते हुए तनाव देते हैं और अपने आपको अधीश्वर मानकर आसुरी भावों का नंगा खेल रचते हैं।

यह सब कुछ हम करते हैं तब हम देशभक्त नहीं बल्कि देशद्रोही हैं जो अपनी देश की जड़ों को ही कमजोर कर रहे हैं । लानत है ऐसा करने वाले उन लोगों को जो मातृभूमि को बेचने के षड़यंत्र लगे हुए हैं । जो भ्रष्ट, कमीशन बाज और रिश्वतखोर है वह देश को भी बेचने में पीछे नहीं रहता ।यह ही लोग हैं जो देश के शत्रु हैं । अरे भाई देश नहीं रहेगा तो हम लोग कहाँ रहेंगे, एक बार फिर किसी के गुलाम हो जाएंगे । इसकी फिक्र। इन बिकाऊ लोगों को नहीं है । वर्तमान समय में देश को आतंकवादियों और हमारे देश के भीतर बैठे भ्रष्ट, बेईमान और कामचोरों को ठिकाने लगाना हर सच्चे देश भक्त का सबसे बड़ा फर्ज है ।

उपसंहार

हम सब को समझना होगा कि देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है, किसी का उसके मूल भूमि के प्रति प्यार उसके देश के प्रति उसका सबसे शुद्धतम रूप है । एक व्यक्ति जो अपने देश के लिए अपने हितों का त्याग करने के लिए तैयार रहता है, हमें उसे सलाम करना चाहिए है । दुनिया के प्रत्येक देश को ऐसी भावना रखने वाले लोगों की अत्यधिक आवश्यकता है । देश के सुधार और विकास के लिए देशभक्ति की भावना आवश्यक है क्योंकि ये देश के लोगों को एक साथ लाने तथा उन्हें प्रेम, हर्ष, के साथ-साथ एक दूसरे की देखभाल करने की खुशी का अनुभव करने में भी मदद करता है ।


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धरती चिर उर्वर कैसे है ?

धरती चिर उर्वर इस प्रकार है कि धरती में सदैव फसलें उगाई जा सकती हैं। धरती पर खेती करके बार-बार फसलें उगाई जाती हैं, काटी जाती हैं फिर उनमें नए बीज बजे बोए जाते हैं, फिर फसल उगाई जाती है यह क्रम सदियों से चलता आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा। इस तरह धरती चिर उर्वर है। अर्थात वह हमेशा के लिए उर्वर है। वह हमेशा हमें फसल के रूप में अपनी उर्वरता देती रहती है, इसीलिए धरती चिर उर्वर है।

धरती के साथ ऐसा नहीं कि उसमें एक बार फसल लगा दी जाए उसके बाद उस की उर्वरता नष्ट हो गई यानी उसमें केवल एक ही बार फसल उगाई जा सके, ऐसा नहीं है। धरती पर अनगिनत बार फसलें उगाई जा सकती हैं, इसीलिए धरती चिर उर्वर है।

कवि ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ अपनी कविता “मिट्टी की महिमा” में धरती और मिट्टी की महिमा का गुणगान करते हैं, वह कह रहे हैं…

भोली मिट्टी की हस्ती क्या आँधी आये तो उड़ जाए,
पानी बरसे तो गल जाए! फसलें उगतीं,
फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है,
सौ बार बने सौ बर मिटे लेकिन धरती अविनश्वर है।

अर्थात इस मिट्टी की महिमा यह है कि आंधी के साथ उड़ जाती है और पानी बरसने के साथ बह जाती है, लेकिन फिर भी धरती में फसलें उगती हैं, कटती हैं। फिर दोबारा उगती हैं, फिर कटती हैं। यानी धरती की उर्वरता बनी रहती है, वह 100 बार बनती है 100 बार मिटती है लेकिन धरती की उर्वरता नष्ट नही होती, वह अनिवश्वर है।


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नारी शिक्षा का महत्व (निबंध)

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निबंध

नारी शिक्षा का महत्व

 

जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारा देश पुरुष प्रधान देश है, और इस पुरुष प्रधान समाज में नारियों को हमेशा से ही नीची नजर से देखा गया है। और केवल पुरुष ही नहीं बल्कि कुछ रूढ़िवादी सोच वाली औरतें भी नारियों को नीची नजर से देखती हैं। समाज की मानसिकता है कि लड़कियों का काम सिर्फ शादी करना, फिर बच्चे पैदा करना, और बच्चों और परिवार की देखभाल करना है।

प्राचीन समय में लड़कियों को शिक्षा सहित हर चीज से वंचित रखा जाता था । आज के आधुनिक युग में भी ग्रामीण क्षेत्रों और दुनिया के बहुत से हिस्सों में लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी है। आज भी बहुत सी बच्चियों की दुनिया सिर्फ शादी, बाल बच्चे और घर के कामों तक ही सीमित है । शिक्षा हमारे जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है । शिक्षा सब के लिए प्राथमिक होनी चाहिए ।

महिलाएं भी हमारे समाज का हिस्सा है, इसलिए शिक्षा पर सब का बराबर का हक है, चाहे फिर वह लड़का हो या लड़की ।स्वतंत्रता के बाद हमारे देश की साक्षरता दर में काफी सुधार आया है, लेकिन फिर भी कुछ क्षेत्रों में अभी भी लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता है। महिला और पुरुष दोनों ही समाज के लिए समान रूप से आवश्यक हैं, वह दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। इसलिए महिलाओं को भी हर क्षेत्र में समान अवसर मिलने चाहिए, चाहे फिर वह शिक्षा हो, नौकरी हो या अन्य कार्य।

शिक्षा मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है। यह हमारी मानसिक, सामाजिक व आर्थिक विकास में मदद करती है, शिक्षा हमारे व्यक्तित्व को ही नहीं बल्कि हमारा चरित्र निर्माण और हमारे विभिन्न कौशलों को भी निखारती हैं, जो कि समाज में रहने के लिए आवश्यक है। इसलिए महिलाओं की शिक्षा पर भी उतना ही जोर देना चाहिए जितना कि पुरुषों की शिक्षा पर दिया जाता है ।

एक माँ को बच्चे की पहली शिक्षक माना जाता है । एक निरक्षर महिला अपने बच्चे की अच्छी देखभाल और उसे अच्छा वातावरण नहीं दे सकती। वह स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं होती है, अर्थात बच्चों को अच्छी परवरिश देने में असफल रहती है। शिक्षा महिलाओं को परिवार प्रबंधन, बच्चों की अच्छी देखभाल उनको अच्छी परवरिश देने में सक्षम बनाती है।

अगर एक महिला शिक्षित होगी तो एक पूरा परिवार शिक्षित कर देती हैं। एक शिक्षित महिला हमें एक बेहतर समाज का निर्माण करने में मदद करेगी। महिलाओं को शिक्षित करना मतलब हमारे देश की आधी आबादी को शिक्षित करना है। शिक्षित महिला जीवन के किसी भी पड़ाव पर किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहती है।

शिक्षा महिलाओं को सशक्त बनाकर उनके आत्मविश्वास को बढ़ाती है और उन्हें आत्मनिर्भर बना कर एक खुशहाल और आरामदायक जीवन जीने में मदद करती है। एक शिक्षित महिला समाज से सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज प्रथा, बाल विवाह, बाल श्रम, लैंगिक पक्षपात, भेदभाव आदि को खत्म करने में भी मदद करेगी । शिक्षित महिलाएं परिवार ही नहीं बल्कि देश के आर्थिक विकास में भी पुरुषों के समान योगदान दे सकती हैं ।

सरकार ने लड़कियों की शिक्षा के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” उनमें से एक है, जिसने बेटियों की शिक्षा प्रोत्साहन में महत्वपूर्ण कार्य किया है। किसी भी देश का विकास महिलाओं की साक्षरता दर पर निर्भर करता है। जिस देश की महिलाएं शिक्षित होती हैं, वह देश अधिक मजबूत और खुशहाल होता है।

बदलते समय के साथ अब लोगों की सोच भी बदल रही है। अब लोग अपनी लड़कियों को भी लड़कों के समान उच्च से उच्च शिक्षा दिला रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अब लड़कियां भी हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं । लेकिन दुःख का विषय है कि कुछ पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लड़कियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता, क्योंकि वे लोग लड़कियों को बोझ समझते हैं । लोगों को जागरूक होना पड़ेगा और अगर वे चाहते हैं के उनकी बेटियां बोझ न बने तो उन्हें अपनी बेटियों को शिक्षित करना चाहिए ताकि वह आत्मनिर्भर बन सकें ।

लड़कियों को शिक्षित करने से ही हमारे देश की साक्षरता दर बढ़ेगी। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा के लिए अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, और यह केवल सरकार की ही नहीं बल्कि हम सब की व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी है कि हम अपनी बच्चियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उनकी शिक्षा पर जोर दे क्योंकि नारियाँ हमारा सम्मान हैं, हमारा भविष्य हैं।


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इंद्रधनुष पर निबंध लिखें।

जल और धरती के बीच संवाद लिखिए।

संवाद

जल और धरती के बीच संवाद

 

धरती ⦂ जल भाई! क्या हाल-चाल हैं कहाँ बहे जा रहे हो?

जल ⦂ मुझे बहुत दूर जाना है। बहना मेरा काम है। मुझे लोगों की प्यास बुझानी है।

धरती ⦂ वह बात तो ठीक है। बहना तुम्हारा काम है और स्थिर रहना मेरा काम। इसीलिए तुम चल हो और मैं अचल। तुम्हारे मजे हैं तुम हर जगह घूमते रहते हो, चंचल बनकर सारे जग में विचरण करते हो। मैं तो बस एक जगह पड़ी रहती हूँ।

जल ⦂ ऐसा ना बोलो। सबका अपना महत्व होता है। मैं भी तुम्हारे अंदर ही आश्रय पाता हूँ। मैं तालाब के रूप में तुम्हारे गोद में ही आश्रय पाता हूँष मैं नदी के रूप में तुम्हारी गोद में ही आश्रय पाता हूँ। भले ही समुंदर के रूप में मैं तुमसे बहुत विशाल हूँ, लेकिन तुम्हारे बिना मेरा कोई महत्व नहीं।

धरती ⦂ यह तुम मेरे मन को बहलाने के लिए बात कह रहे हो।

जल ⦂ यह मन को बहलाने वाली बात नहीं है। ये सत्य है, यही यथार्थ है। तुम नहीं हो तो मेरा भी कोई महत्व नहीं। तुम्हारी गोद में ही प्राणी जन्मते हैं, पलते बढ़ते है। जब प्राणी ही नहीं होंगे तो मुझ जल का क्या महत्व?

धरती ⦂ बात तो तुमने ठीक कही। चलो दर्शन की बातें बहुत हो गईं। यह बताओ तुम कहाँ जा रहे हो?

जल ⦂ मुझे बहते हुए बहुत दूर जाना है। मेरा कोई ठौर-ठिकाना नहीं। कहाँ मैं जाकर रुकूंगा, मुझे खुद पता नहीं होता। मैं तो बस निरंतर बहता रहता हूँ और लोगों की प्यास बुझाता हूँ। खेती में काम आता हूँ, जिससे अन्न उपजता है।अरे हाँ, खेती से ध्यान आया। खेती तो तुम्हारी गोद में ही होती है। तुम ना हो तो खेती कैसे होगी, तब मेरा क्या महत्व, मेरा क्या काम?

धरती ⦂ धन्यवाद शुक्रिया मुझे मेरा महत्व बताने के लिए। यह तुम्हारी दरियादिली है, जो मेरी इतनी तारीफ किए जा रहे हो। महत्व तो तुम्हारा भी कम नहीं। तुम्हारे बिना इस जग में जीवन संभव नहीं है।

जल ⦂ हाँ, हम दोनों का महत्व है और हम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। चलो अब मैं चलता हूँ, फिर कभी मिलेंगे।

धरती ⦂ ठीक है।


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‘चरणों में सागर रहा डोल’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?

‘चरणों में सागर रहा डोल’ से तात्पर्य यह है कि भारत माता के सिर पर जहां हिमालय रूपी मुकुट है, वहीं भारत माता के चरणों में विशाल सागर लहरा रहा है। भारत माता अपने सिर पर हिमालय रूपी मुकुट लिए खड़ी है, जोकि भारत की उत्तरी दिशा में है। वहीं भारत की दक्षिण दिशा में अथाह विशाल सागर लहरा रहा है अर्थात भारत माता के चरणों में सागर डोल रहा है। कवि ने भारत माता के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा है कि भारत के नक्शे पर भारत माता के चित्र को उकेरा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारत माता के सिर पर हिमालय रूपी मुकुट है और उनके चरणों में भारत की दक्षिण दिशा में भारत माता के चरणों में सादर डोल रहा है। भारत के नक्शे में भारत के दक्षिण में अथाह विशाल सागर है। कवि ने इसी को प्रतीक बनाकर भारत के स्वरूप का वर्णन करते हुए भारत माता के चरणों में सागर डोलने की बात कही है।


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ईमानदारी – एक जीवन शैली (निबंध)

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निबंध

ईमानदारी – एक जीवन शैली

 

ईमानदारी एक जीवन शैली यह आज के समय की सबसे जरूरी आवश्यकता है, क्योंकि ईमानदारी एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए बेहद जरूरी है। ईमानदारी ही एक उत्तम नागरिक बनने के प्रमुख गुणों में से एक गुण है, जो किसी भी देश के नागरिक में होना आवश्यक है ताकि वह देश विकास के पथ पर निरंतर आगे चल सके।

भूमिका

हम सब ने एक कहावत तो हमेशा सुनी होगी कि ईमानदारी एक सर्वश्रेष्ठ नीति है अर्थात ईमानदारी से चलने वाला व्यक्ति जीवन में अवश्य सफल होता है, क्योंकि यह सर्वश्रेष्ठ नीति उसे कोई भी गलत कार्य करने से रोकती है और गलत कार्य करने वाले व्यक्ति के मन में जीवन में कुछ भी गलत नहीं होता। यदि हम सब ईमानदारी को अपनी जीवनशैली बना ले तो फिर हमारा जीवन उन्नति के पथ पर निरंतर अग्रसर हो सकता है। ईमानदारी केवल एक गुण नहीं बल्कि यह मानव का स्वभाव है, मानव का आचरण है। ईमानदारी से ही मानव के व्यक्तित्व का निर्धारण होता है और ईमानदारी से ही व्यक्ति का चरित्र बनता है ।

ईमानदारी क्या है?

ईमानदारी का अगर हम दूसरा नाम ले तो वह है, विश्वास। जो ईमानदार होता है, वह विश्वास करने योग्य जरूर होता है। क्योंकि वह कोई ऐसा कार्य नहीं करता जो किसी के विश्वास को ठेस पहुँचाता हो। ईमानदारी और विश्वास दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। ईमानदार व्यक्ति पर लोग सहज रूप से विश्वास कर लेते हैं, क्योंकि लोगों को मालूम रहता है कि यह व्यक्ति ईमानदार है। इसलिए यह हमारे नुकसान वाला कोई भी कार्य नहीं करेगा और अपने स्वार्थ के लिए जो कार्य अनैतिक हो वह नहीं करेगा, इसीलिए लोग उस पर विश्वास कर लेते हैं।

ईमानदारी की राह में कांटे भी होते हैं, क्योंकि ईमानदार व्यक्ति को जीवन में अनेक तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जो व्यक्ति ईमानदारी का पालन करता है वह भले ही ईमानदारी के पथ पर हमेशा चलता रहता है। ईमानदारी को अपनी आदत बना लेता है तो उसे उसका अच्छा फल अवश्य मिलता है। वो सुकून से अपना जीवन जीता है क्योंकि उसके अंदर कोई अपराध बोध नही होता। ईमानदार व्यक्ति के मन में किसी भी तरह का अपराध नहीं होता। वह किसी का अहित नहीं करता। किसी का नुकसान नहीं करता इसलिए उसके अंदर कोई भी अपराध नहीं होता और वह सकारात्मक जीवन जीता है।

इसके विपरीत बेईमान व्यक्ति के मन में हमेशा एक अपराधबोध रहता है। वह स्वयं से ही कटने लगता लगता है। भले ही बेईमानी से वह अनेक सुख-सुविधायें जुटा ले लेकिन उसकी अंतरात्मा हमेशा धिक्कारती रहती है कि उसने कुछ न कुछ गलत अवश्य किया है। यही अपराधबोध उसे पूरी जीवन मानसिक शांति प्रदान नही करता।

बेईमान व्यक्ति बेईमानी के तरीकों से भौतिक सुख-सुविधा के साधन भले ही जुटा लें, वे सुख में जीवन व्यतीत भले ही कर लें, लेकिन वह अपने शरीर को ही सुख दे पाता है। वह अपने मन को शांति नहीं दे पाता क्योंकि उसके मन में हमेशा ग्लानि रहती है कि उसने कुछ ना कुछ गलत किया है, किसी के अधिकारों का हनन किया है और यही ग्लानि उसे मानसिक शांति नहीं प्रदान करती। जबकि ईमानदार व्यक्ति कभी किसी के साथ गलत नहीं करता। वह केवल उतना ही लेता है जो उसके अधिकार का है, जो नैतिक दृष्टि से सही है। इसलिए वह अपराध मुक्त भाव से जीता है और यही भाव उसे मानसिक शांति प्रदान करता है। ईमानदार व्यक्ति भले ही बहुत अधिक भौतिक सुख-सुविधाएं नहीं जुटा पाता हो, लेकिन मानसिक शांति की उसके पास कोई कमी नहीं होती।

जीवन में मानसिक शांति अधिक महत्वपूर्ण है। बहुत ज्यादा ढेर सारे भौतिक सुख साधन हों, लेकिन मानसिक शांति नहीं हो तो उनका कोई महत्व नहीं होता। जबकि भौतिक सुख-साधनों की कमी हो लेकिन मानसिक शांति हो, संतोष हो तो जीवन अच्छा तरह से जिया जा सकता है। ईमानदार व्यक्ति उत्तम नागरिक बनता है और देश के विकास में अपना योगदान दे सकता है। कोई भी भ्रष्टाचार वाला कार्य नहीं करता। इसी कारण वह देश को नुकसान पहुंचाने वाला भी कोई कार्य नहीं करता। इसलिए जिस देश के नागरिक ईमानदार हो उस देश के विकास को करने से कोई नहीं रोक सकता।

बेईमानी और भ्रष्टाचार ही सारी समस्याओं की मूल जड़ है। यह दोनों कारण किसी के अधिकार का हनन करके दूसरे को आवश्यकता से अधिक प्रदान करने वाले कार्य हैं। इसलिए ईमानदारी का महत्व ऐसी स्थिति में बढ़ जाता है।


इंद्रधनुष पर निबंध लिखें।

निबंध

इंद्रधनुष

इंद्रधनुष, इंद्रधनुष का नाम सुनते ही मन में रंगीन धारियों वाली एक आकृति का ख्याल आ जाता है जो कि हमें आकाश में दिखाई देती है। इंद्रधनुष प्राकृतिक सुंदरता का दूसरा नाम है। यह प्रकृति द्वारा प्रदत्त मन को मोह लेने वाली एक प्राकृतिक सुंदरता है। हम सभी ने अक्सर इंद्रधनुष को अपने जीवन में जरूर देखा होगा। बचपन में आकाश में इंद्रधनुष को देखकर हम सब कितने रोमांचित हो जाते थे।
सात रंगों के इस इंद्रधनुष के बारे में हमने अनेक तरह की कहानियां भी अपनी दादी-नानी से सुनी हैं। कोई इसे भगवान सूरज का धनुष कहता था तो कोई इंद्र का धनुष। क्योंकि इंद्र ही वर्षा के देवता हैं और इंद्रधनुष वर्षा के मौसम मे ही दिखाई देता है। हम बड़े हुए तो हमें इंद्रधनुष बनने के वैज्ञानिक कारणों का भी पता चला। तब हमें पता चला कि इंद्रधनुष वैज्ञानिक रूप से घटी हुई एक प्रकृति घटना के कारण आकाश में बनता है।

यह सात रंगों का एक विशालकाय वृत्तचक्र है, जिसमें 7 रंग होते हैं। हमें यह पता चला कि सूरज की किरणों में ही यह सातों रंग छिपे होते हैं और सूरज की किरणों के पृथ्वी पर आते समय वर्षा और बादलों के कारण ये सातों रंग विभक्त हो जाते हैं और अलग-अलग दिखाई देने लगते हैं, जिसे हम सभी इंद्रधनुष कहते हैं। इंद्रधनुष के सात रंग हैं, लाल, पीला, नारंगी, हरा, नीला, भूरा और जामुनी। सूरज की किरणों में जो हमें सुनहरे रंग की दिखाई देती हैं, तब हमें पता नहीं होता कि इस सुनहरे रंग में सात रंग छुपे हुए हैं। वर्षा की बूंदों, बादलों और सूरज की किरणों की अठखेलियों के कारण हमें सूरज का प्रकाश सात अलग-अलग  रंगों की पट्टी के रूप में दिखाई देते हैं तो आसमान में एक बेहद भव्य एवं सुंदर नजारा दिखाई पड़ता है।

विज्ञान की दृष्टि से ये प्रकाश के परावर्तन के कारण होता है। आसमान में यह सतरंग पट्टी देखकर हम सभी बेहद रोमांचित हो जाते हैं। बारिश के समय इंद्रधनुष के दर्शन अक्सर होते रहते हैं और इसी कारण हम सभी बच्चे बचपन में इंद्रधनुष देखने के लिए बारिश का इंतजार करते थे और जब बारिश के मौसम में हमें इंद्रधनुष दिखाई देता था तो हम बेहद रोमांचित जाते थे और तरह-तरह की कल्पना करने लगते थे।

इंद्रधनुष के इन सात रंगो का अपना महत्व है। इन सात रंगों में जीवन के अनेक रहस्य छुपे हुए हैं। यह मानव के स्वास्थ्य संतुलन के लिए भी अत्यन्त उपयोगी हैं। इंद्रधनुष के यह सातों रंग अलग-अलग बातों के प्रतीक हैं, जो जीवन में हमें एक नई आशा धारण करने की प्रेरणा देते हैं। इंद्रधनुष के रंग इस बात का संदेश देते है कि हमारा जीवन भी नीरस नहीं है बल्कि रंगबिरंगा है। हमें अपने जीवन सूरज की किरणों की तरह एक रंगा दिखाई देता है। लेकिन हमें यह नहीं पता होता इसलिए हमारे जीवन के इसी एक रंग में अनेक छुपे हुए हैं, जैसे कि सूरज की किरण में ही अनेक रंग के होते हैं और समय उचित समय आने पर वह रंग चारों तरफ बिखर जाते हैं। उसी तरह हमारे जीवन में भी मात्र उचित समय आने पर हमारे जीवन के सभी रंग बिखर जाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते रहना चाहिए।

 

 

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आप अपने आपको कक्षा सात की छात्रा मानते हुए विद्यालय में छात्राओं के शौचालय की सफाई करवाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय को प्रार्थना पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

विद्यालय में छात्राओं के शौचालय की सफाई करवाने हेतु प्रधानाचार्य महोदय को प्रार्थना पत्र

दिनांक : 4 फरवरी 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
कलावती बालिका विद्यालय,
आदर्श नगर, भोपाल, मध्य प्रदेश

विषय : शौचालय की सफाई संबंधी प्रार्थना पत्र

 

आदरणीय प्रधानाचार्य सर,

मेरा नाम सविता राणा है। मैं कक्षा 7 में पढ़ती हूँ। मैं विद्यालय हम छात्राओं के लिए बने शौचालय से संबंधित समस्या की ओर आपका ध्यान अवगत कराना चाहती हूँ। हमारे विद्यालय की छात्राओं के शौचालय में बहुत गंदगी है, जिसके कारण हम सभी छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। शौचालय की पर्याप्त सफाई नहीं होती। या तो सफाई कर्मचारी मिलते ही नहीं हैं और कभी मिलते हैं तो वह सुनते नहीं हैं। ना तो शौचालय में पानी आता है और ना ही उसकी नियमित सफाई होती है।

इसलिए मैं सभी छात्राओं की तरफ से आपसे अनुरोध करती हूँ कि आप छात्राओं को होने वाली असुविधा को ध्यान में रखते हुए शौचालय की सफाई के लिए उचित निर्देश देने की कृपा करें, ताकि हम छात्रों को होने वाली असुविधा से हम मुक्ति पा सकें।
आशा है आप छात्रों की परेशानी को ध्यान में रखते हुए तुरंत ही उचित कार्रवाई करेंगे।

धन्यवाद,

आपकी आज्ञाकारी शिष्या,

सविता राणा
अनुक्रमांक – 42 कक्षा – 7
कलावती बालिका विद्यालय
जनता नगर, भोपाल


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बहन के विवाह में शामिल होने को जाने हेतु पाँच दिन की छुट्टी लेने के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए

आपके आसपास में गंदगी होने पर सफाई के लिए नगरपालिका अध्यक्ष को प्रार्थना पत्र लिखिए।

 

अपने पिताजी को अपनी परीक्षा की तैयारी के विषय में पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

परीक्षा के तैयारी के विषय में पिताजी को पत्र

 

दिनांक : 5 मई 2024

आदरणीय पिताजी
चरण स्पर्श

पिताजी, मैं यहाँ पर कुशल पूर्वक हूँ। आपका पत्र प्राप्त हुआ। घर में सब की कुशलता जानकर प्रसन्नता हुई। पिता जी आपने मेरी पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी के विषय में पूछा है। पिताजी, मेरी परीक्षा की पूरी तैयारी हो चुकी है और मैं निरंतर अभ्यास कर रहा हूँ।

मुझे आशा है कि मेरे सारे पेपर अच्छे होंगे। पिताजी, मैंने आपसे वादा किया है कि मैं कम से कम 80% अंक लेकर आऊंगा तो मुझे पूरा विश्वास है कि मैं आपके विश्वास और अपने वादे पर खरा उतरूंगा। परीक्षा खत्म होते ही मैं आपको सूचित कर दूंगा। आप मुझे लेने आ जाना और छुट्टियों में हम सब कहीं बाहर घूमने चलेंगे। शेष बातें अगले पत्र में। आपके पत्र के इंतजार में…

आपका पुत्र
मनीष


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आपने अपना जन्मदिन कैसे मनाया उसके बारे में अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अपने मित्र को “प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना” के लाभ और इस लाभ को कैसे प्राप्त करें? इसकी जानकारी देते हुए एक पत्र हिंदी में लिखें।

औंधाई सीसी सु लखि बिरह-बरनि बिललात । बिचहीं सूखि गुलाब गौ छींटौ छुई न गात ।। अर्थ बताएं।

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औंधाई सीसी सु लखि बिरह-बरनि बिललात ।
बिचहीं सूखि गुलाब गौ छींटौ छुई न गात ।।

अर्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि नायिका के विरह में जल रही नायिका के विरह को शांत करने के लिए उसकी सखियों ने नायिका के शरीर पर गुलाब जल की पूरी शीशी उलट दी, लेकिन नायिका के विरह की आँच इतनी तीव्र थी कि उसकी आँच से गुलाब जल नायिका के शरीर को स्पर्श करने से पहले ही बीच में सूख गया और गुलाब जल का एक छोटा सा छींटा भी विरहिणी यानी नायिका के शरीर को स्पर्श नहीं कर सका।


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‘कलम का सिपाही’ हिंदी साहित्य में  ‘जीवनी विधा’ की एक रचना है।

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कलम का सिपाही की रचना अमृत राय ने 1963 में की थी। 1963 में ही उन्हें उनकी इस रचना के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें इस रचना के लिए 1971 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार भी मिला। अमृतराय मुंशी प्रेमचंद के पुत्र थे, जिन्होंने हिंदी में अनेक साहित्य रचनाओं के अलावा अपने पिता मुंशी प्रेमचंद के जीवन पर आधारित ‘प्रेमचंद : कलम का सिपाही’ नामक जीवनी भी लिखी। कलम का सिपाही का प्रकाशन 1963 में हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।


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‘गबन’ उपन्यास मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया सामाजिक पृष्ठभूमि का एक उपन्यास है। ‘गबन’ उपन्यास का नायक ‘रमानाथ’ है। वह इस उपन्यास का सबसे प्रमुख पात्र है। ‘गबन’ उपन्यास के आधार पर रमाकांत का चरित्र-चित्रण इस प्रकार होगा :

  • रमानाथ मुंशी दयानाथ के तीन पुत्रों में सबसे बड़ा है और उसका व्यक्तित्व आकर्षक है। उसका विवाह जालपा नामक युवती से हुआ है। उसकी पत्नी जालपा भी रमानाथ के आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित है।
  • रमानाथ उपन्यास में युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है और लेखक ने उस के माध्यम से युवा वर्ग का ही चरित्र चित्रण किया है। रमानाथ अच्छाई और बुराई के मिश्रण वाला युवा है, जिसमें वह सारी कमजोरियां भी है, जो मानव रूप में सहज रूप से पाई जाती हैं।
  • रमानाथ का व्यक्तित्व व स्वभाव कमजोर है। वह आडंबर में यकीन रखता है तथा कभी-कभी झूठ का भी सहारा ले लेता है। उसे दिखावा तथा फैशन पसंद है। उसके मन में अहंकार भी है। रमानाथ का स्वभाव दुर्बल है और अपनी जिम्मेदारियों को भी समझता नहीं है। उसका अधिक ध्यान घूमने-फिरने में लगा रहता है। वह विलासिता का जीवन जीने का आदी है। नौकरी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होने के बावजूद विलासिता का जीवन जीने की चाह रखता है। अपने दोस्तों से कपड़े लेकर पहनना, उनकी गाड़ियों पर घूमना, अपनी विलासिता की वस्तुओं का दूसरों पर रौब दिखाना, फैशन करना, खेलकूद में रुचि रखना, खर्चा करना आदि गतिविधियों उसे बेहद पसंद हैं।
  • रमानाथ स्वभाव का संकोची व्यक्ति भी है। कोई भी बात स्पष्ट रूप से नहीं कर पाता और अपने मन की बात मन में ही रखता है। अपने घर के बिगड़ते आर्थिक हालत को वह अपनी पत्नी जालपा तक को नहीं बता पाता। इस कारण उसे अपने कार्यालय में गबन जैसे गलत कार्य को करने के लिए विवश होना पड़ता है।
  • रमानाथ एक संकोची स्वभाव का व्यक्ति भी है। वह हालातों से सामना करने की जगह उनके आगे घुटने टेकते का है। वह मुसीबतों से घबराकर भाग जाता है। अपने घर के बिगड़ते हालातों को अपनी पत्नी तक को नहीं बताता और फिर गबन करने के बाद उत्पन्न हुए विषम परिस्थितियों से घबराकर घर से भाग जाता है।
  • रमानाथ शुरु से आलसी स्वभाव का व्यक्ति है, जिसे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने करना भी नही आता है। उसे विलासिता युक्त जीवन जीवन अधिक पसंद है। वह एक आवारा प्रवृत्ति का युवा है, जो अपनी जिम्मेदारियों को भूलकर मौज-मस्ती में लगा रहता है। उसके पिता उसकी इस आदत को पसंद नही करते हैं।
  • रमानाथ में एक अच्छाई ये है कि वह अपनी पत्नी से बेहद प्रेम करता है। वह अपनी अपनी पत्नी की हर इच्छा पूरी करना चाहता है और अपनी पत्नी को हर दृष्टि से खुश रखना चाहता है। इसके लिए वह हर संभव प्रयत्न भी करता है।

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बदलती ऋतुएं किस प्रकार जीवन और प्रकृति चक्र में सहायक है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार लेखन

बदलती ऋतुएं जीवन और प्रकृति चक्र में सहायक

 

बदलती ऋतु में हमारे जीवन और प्रकृति चक्र को पूरी तरह प्रभावित करती हैं। यह हमारे जीवन को में व्यवस्था को एक यह हमारे जीवन में एक संतुलन स्थापित करती हैं और हमारे जीवन को व्यवस्थित करती हैं। मनुष्य की आवश्यकताएं और जीवन शैली पूरे वर्ष एक समान नहीं रहती, वह समय-समय पर बदलती रहती हैं। मनुष्य के शरीर और स्वास्थ्य के लिए गर्म और ठंडे दोनों तरह के वातावरण की समय-समय पर आवश्यकता पड़ती है। उसकी इसी आवश्यकता को गर्मी और सर्दी की ऋतुएं पूरा करती हैं। मनुष्य को पानी भी चाहिए उसकी इस आवश्कता को वर्षा ऋतु पूरा करती है।

मनुष्य अपने भोजन के लिए मुख्यतः फसलों पर आश्रित होता है। सभी फसलों की अलग-अलग प्रकृति होती है। कोई फसल किसी एक ऋतु में तैयार होती है तो दूसरी फसल दूसरी ऋतु में तैयार होती है। इस तरह बदलती ऋतुओं के साथ मनुष्य को अनेक प्रकार की फसलें प्राप्त होती है, जिससे वह अपने भोजन में विविधता ला पाता है।

यदि कोई ऋतु पूरे वर्ष भर एक समान रहेगी तो मनुष्य न केवल उसे ऋतु से उकता जाएगा बल्कि यह उसके स्वास्थ्य और जीवन चक्र के लिए भी ठीक नहीं रहेगा। पूरे वर्ष पर यदि वर्षा होती रहे तो सभी का जीवन पूरी तरह अवस्थित हो जाएगा। सारे काम-काज ठप्प हो जाएंगे और खेती भी नहीं हो सकेगी। इसीलिए वर्ष में वर्षा का एक निश्चित समय निर्धारित हुआ है, जिसमें पूरे वर्ष के लिए मनुष्य की आवश्यकता लायक पानी संग्रहित हो जाता है।

इसी प्रकार पूरे वर्ष भर गर्मी पड़ने या पूरे वर्ष भर सर्दी पड़ने से भी असुविधा का ही सामना करना पड़ेगा। यदि पूरे वर्ष भर गर्मी पड़े और बिल्कुल भी वर्षा ना हो तो सूखे और आकाल की ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। यदि पूरे वर्ष पर सर्दी पड़े और ना ही बरसात हो और ना ही गर्मी पड़े तो भी खेती करना कठिन हो जाएगा। गरीबों को भी सर्दी में जीना मुश्किल हो जाएगा।

इस तरह अलग-अलग ऋतु के लिए अलग-अलग समय निर्धारित किया गया है, जिससे प्रकृति अपने चक्र को चलाती रहती है। अलग-अलग ऋतु में अलग-अलग फसले पकती हैं मनुष्य को भी अलग-अलग ऋतुओं में अपने उत्सव और अपनी भावनाओं को प्रकट करने का अवसर मिलता है। यदि ऋतुएं ना बदलती होतीं तो मनुष्य जीवन में तरह-तरह के त्यौहार भी नहीं होते। अधिकतर त्यौहार ऋतुओं से ही संबंधित है, जो मानव जीवन में रस घोलते हैं, और मनुष्य के अपने हर्षोल्लास को प्रकट करने का अवसर प्रदान करते हैं।

अतः ये स्पष्ट कहा जा सकता है कि बदलती ऋतुओं का जीवन और प्रकृति चक्र में बेहद गहरता प्रभाव पड़ता है।


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पर्यावरण पर निबंध

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निबंध

पर्यावरण

 

प्रस्तावना

पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होगा तो मानव जीवन भी सुरक्षित होगा यह संदेश घर–घर पहुंचाया जाता है । पर्यावरण और मनुष्य एक दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात पर्यावरण पर ही मनुष्य पूरी तरह से निर्भर है । विश्व में पर्यावरण की बिगड़ती हालत की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ और इससे जुड़ी संस्थाएं प्रति वर्ष 5 जून को ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाती है । इस दिन पर्यावरण पर पूरे विश्व में गोष्ठियाँ आयोजित की जाती है, जन-जागरण के कार्यक्रम किए जाते हैं और पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के प्रति चिंता व्यक्त की जाती है ।

पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण को विकृत और दूषित करने वाली समस्त विपदाएं हमारे द्वारा ही लाई गई हैं । हम स्वयं प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे हैं, इसी असंतुलन से पर्यावरण की रक्षा हेतु, इसका संरक्षण आवश्यक है । पर्यावरण संरक्षण, कोई आज का मुद्दा नहीं है, वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक आंदोलन चलाए जा रहे हैं-

विश्नोई आंदोलन

यह प्रकृति पूजकों का अहिंसात्मक आंदोलन था । आज से 286 साल पहले सन 1730 में राजस्थान के खेजड़ली गांव में 263 बिश्नोई समुदाय की स्त्री-पुरुषों ने पेड़ों की रक्षा हेतु अपना बलिदान दिया था ।

चिपको आंदोलन

उत्तराखंड के चमोली जिले में सुंदरलाल बहुगुणा चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में यह आंदोलन चलाया गया था । उत्तराखंड सरकार के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों का कटाई की जा रही थी । उनके खिलाफ लोगों ने पेड़ों से चिपककर विरोध जताया था ।

साइलेंट वैली

केरल की साइलेंट वैली या शांति घाटी जो अपनी सघन जैव विविधता हेतु प्रसिद्ध है । सन 1980 में कुंतीपूंझ नदी पर 200 मेगावाट बिजली निर्माण हेतु बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था । लेकिन इस परियोजना से वहां स्थित कई विशिष्ट पेड़-पौधों की प्रजातियां नष्ट हो जाती है । अतः कई समाजसेवी व वैज्ञानिकों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया और अंततः सन‌ 1985 में केरल सरकार ने साइलेंट वैली को राष्ट्रीय आरक्षित वन घोषित कर दिया गया।

जंगल बचाओ आंदोलन

जंगल बचाओ आंदोलन इसकी शुरुआत सन 1980 में बिहार में हुई थी, बाद में उड़ीसा झारखंड तक फैल गया । सन् 1980 में सरकार ने बिहार के जंगलों को, सागोन के पेड़ों में बदलने की योजना पेश की थी । इसी के विरोध में बिहार के आदिवासी कबीले एकजुट हुए और उन्होंने अपने जंगलों को बचाने के लिए आंदोलन चलाया।

पर्यावरण सम्बन्धी जागरूकता

विकासशील देशों की जनसंख्या नीति में परिवर्तन ताकि और नियंत्रित जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सके । घटते प्राकृतिक संसाधनों की समस्या से निपटने के लिए समाज के सभी स्तर पर पर्यावरण संबंधी जागरूकता अनिवार्य है । वैज्ञानिकों ,राजनीतिज्ञों, नियोजकों तथा लोगों को सम्मिलित रूप से पर्यावरण की स्थिति सुधारने के लिए काम करना होगा । जिसके लिए संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है । इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं-

  • विकसित देशों में नियंत्रित उपभोक्तावाद ।
  • ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाना ।
  • विकास की नीतियों का मुख्य ध्यान देसी वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित हो ।
  • विश्व के सभी विकास कार्यक्रमों का सख्त पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन होना चाहिए ।
  • सभी स्तर के शिक्षा में पर्यावरण की शिक्षा एक अनिवार्य विषय होना चाहिए ।
  • व्यापक शिक्षा तथा पर्यावरण जागरूकता के कार्यक्रमों में निवेश के द्वारा निजी क्षेत्र की सहभागिता जरूरी ।
  • सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों की मदद से लोगों को पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में शिक्षित करना ।
  • देश के विभिन्न भागों में पर्यावरण जागरूकता विकसित करने के लिए नियमित सम्मेलनों, संगोष्ठी, टेलीविजन एवं रेडियो पर वार्ताओं का आयोजन करना ।
  • पर्यावरण अनुसंधान के लिए अतिरिक्त फंड की आवश्यकता ।
  • पर्यावरण संरक्षण में मीडिया की भूमिका ।

पर्यावरण की सुरक्षा के उपाय

पर्यावरण संरक्षण मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों को सुधारने की एक प्रक्रिया होती है । जिसके उद्देश्य उन क्रियाकलापों का प्रबंधन होता है जिनकी वजह से पर्यावरण को हानि होती है तथा मानव की जीवन शैली को पर्यावरण की प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप आचरणपरक बनाते है जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता बनी रह सके। कारखानों से निकलने वाले धुएं और पदार्थों का उचित प्रकार से निस्तारण किया जाना चाहिए ।

सभी मिलों, कारखानों तथा व्यावसायिक इलाकों में अभिलंब प्रदूषण नियंत्रण के लिए संयंत्र लगाए जाने चाहिए । प्रदूषण और गंदगी की समस्या का निदान बहुत अधिक आवश्यक है ताकि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा हो सके। कई संयंत्रों के द्वारा धुएं और विषैली गैसों को सीधे आकाश में ही निष्कासित किया जाना चाहिए ।

बड़े नगरों में बसों, कारों, ट्रकों, स्कूटरों के रखरखाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और उनकी नियमित रूप से चेकिंग होना चाहिए। शांतिपूर्ण जीवन के लिए शोरगुल वाली ध्वनि को सीमित और नियंत्रित किया जाना चाहिए । पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकार के साथ-साथ सभी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को अपना पूरा सहयोग देना चाहिए । विषैले और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के निपटने के लिए सख्त कानूनों का प्रावधान होना चाहिए।

कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का कम प्रयोग करना चाहिए। वन प्रबंधन से वनों के क्षेत्रों में विकास करनी चाहिए। विकास योजनाओं को आरंभ करने से पहले पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आंकलन करना चाहिए। मनुष्य को अपने प्रयासों से पर्यावरण की समस्या अधिकतर से घट सकती है।

पर्यावरण का महत्व

पर्यावरण के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है, भले ही आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हो । लेकिन प्रकृति ने जो हमें दिया है, उसकी कोई तुलना नहीं है । इसीलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन नहीं चाहिए । पर्यावरण से हमें स्वच्छ हवा मिलती है। पर्यावरण हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है। पर्यावरण में जैविक, अजैविक, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वस्तु का समावेश होता है।

प्राकृतिक पर्यावरण में पेड़, झाड़ियां, नदी, जल, सूर्य प्रकाश, पशु, हवा आदि शामिल है। जो हवा हम हर पल सांस लेते हैं, पानी जिस के सिवा हम जी नहीं सकते और जो हम अपनी दिनचर्या में इस्तेमाल करते हैं, पेड़ पौधे उनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है । यह सब प्राकृतिक चीजें हैं जो पृथ्वी पर जीवन संभव बनाती हैं । वह पर्यावरण के अंतर्गत ही आती हैं । पेड़-पौधों की हरियाली से मन का तनाव दूर होता है, और दिमाग को शांति मिलती है। पर्यावरण से ही हमारे अनेक प्रकार की बीमारी भी दूर होती है।

पर्यावरण मनुष्य, पशुओं और अन्य जीव चीजों को बढ़ाने और विकास होने में मदद करती है । मनुष्य भी पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है । पर्यावरण का एक घटक होने के कारण हमें भी पर्यावरण का एक संवर्धन करना चाहिए । पर्यावरण पर हमारा यह जीवन बनाए रखने के लिए हमें पर्यावरण की वास्तविकता को बनाए रखना होगा ।

उपसंहार
पर्यावरण के प्रति हम सब को जागरूक होने की आवश्यकता है। पेड़ों की हो रही है अंधाधुंध कटाई पर सरकार द्वारा सख्त कानून बनाना चाहिए। इसके साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ रखना और हमारा कर्तव्य समझना चाहिए, क्योंकि स्वच्छ पर्यावरण में ही रहकर स्वास्थ्य मनुष्य का निर्माण हो सकता है और उसका विकास हो सकता है।

यदि हम शुद्ध वातावरण में जीने की आकांक्षा रखते हैं तो पृथ्वी तथा पर्यावरण को शुद्ध तथा स्वच्छ बनाना होगा, तभी स्वस्थ नागरिक बन सकेंगे और सुखी, शान्त तथा आनंदमय जीवन बिता सकने में समर्थ होंगे।

इस प्रकार शुद्ध पर्यावरण का जीवन में विशेष महत्व है। मानव क्रियाकलापों के कारण पर्यावरण में तेजी से बदलाव आ रहा है । इस बदलाव के अनेक रूप है जैसे – ओजोन क्षरण, वनों की कटाई, अम्ल वर्षा, वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता, फलस्वरूप भू मंडलीय तापमान में वृद्धि ।

पर्यावरण को बचाना हमारा ध्येय हो,
सबके पास इसके लिए समय हो,
पर्यावरण अगर नहीं रहेगा सुरक्षित,
हो जायेगा सब कुछ दूषित।


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प्रदूषण

 

प्रस्तावना

प्रदूषण आज के विश्व की सबसे बड़ी समस्या है। ये केवल भारत या किसी एक देश की समस्य नही बल्कि पूरे विश्व की समस्या है, जो दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। विज्ञान के क्षेत्र में आज हम बहुत ही तेजी से तरक्की कर रहे हैं, आधुनिक विज्ञान ने जहाँ हमारी जीवनशैली को सुविधाओं से युक्त बना दिया है, वहीं इससे हमें पर्यावरण प्रदूषण जैसा भयानक अभिशाप भी मिला है।आज हम मनुष्य ने अपने लाभ के लिए पृथ्वी की प्रदूषित कर दिया है । आज पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, खतरनाक रसायनों के उपयोग ने प्रकृति में असंतुलन पैदा कर दिया है। आज पेड़ों, जंगलों को काट कर पशु-पक्षियों के घरों को नष्ट कर दिया है। समय रहते हुए हमें प्रदूषण को रोकने की ओर यदि ध्यान न दिया गया तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार

वायु प्रदूषण

वातावरण में वायु को प्रदूषित करना वायु प्रदूषण कहलाता है । जहरीली गैस और धुआँ हवा में मिल जाता है और वायु प्रदूषण को जन्म देती है। कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी विभिन्न गैस सांस लेने के लिए अत्यधिक जहरीली होती हैं ।

जल प्रदूषण

जल में अशुद्धता, अपशिष्ट, विषाक्त पदार्थ आदि का निर्वहन जल प्रदूषण कहलाता है। लोग जल निकायों में कचरा, प्लास्टिक आदि फेंकते हैं। परिणामस्वरूप पानी उपयोग के लिए हानिकारक हो जाता है ।

भूमि/मृदा प्रदूषण

अपशिष्ट और अजैव निम्न करणीय सामग्री को मिट्टी में जमा करने से मिट्टी या भूमि प्रदूषण होता है । अजैव निम्नीकरणीय कचरा मिट्टी को अनुपजाऊ बना देता है । मिट्टी में जहरीले पदार्थ की उच्च सांद्रता इसे पौधों और मनुष्यों दोनों के लिए अपर्याप्त बनाती है ।

ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण को प्रदूषित करने में काफी हद तक जिम्मेदार है । हद से ज्यादा शोर किसी को भी पसंद नहीं होता लेकिन कई बार बहुत से लोग अपने मनोरंजन के लिए इस बात की परवाह नहीं करते कि कोई दूसरा व्यक्ति इससे परेशान हो सकता है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि हद से ज्यादा तेज आवाज व्यक्ति की सुनने की क्षमता को धीरे – धीरे बहुत ज्यादा कम कर देता है। इतना ही नहीं एक समय ऐसा भी आता है जब व्यक्ति की सुनने की शक्ति पूरी तरह से खत्म हो जाती है। शोर की वजह से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर तो कोई बुरा असर नहीं होता लेकिन तेज आवाज सहन कर पाना अत्यधिक मुश्किल होता है। ध्वनि प्रदूषण की वजह से इंसान किसी भी काम पर ध्यान नहीं कर पाता और बहुत से कामों में उसे असफलता का मुंह देखना पड़ता है।

पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के उपाय
जिस प्रकार से पर्यावरण में प्रदूषण फैलाने का कार्य मनुष्य कर रहे हैं तो पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए भी इंसान को ही आगे आना होगा। यह हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए प्रयास किए जाएं । पर्यावरण प्रदूषण इस समस्या को कम करने के कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं।

जैसे
 पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोक देना चाहिए । इसके अलावा अपने आसपास वृक्ष जरूर लगाएं।
★ कार पूलिंग करें।
★ जितना ज्यादा हो सके कपड़े और जूट के बने हुए थैलों का इस्तेमाल करें और प्लास्टिक बैगों को ना कहें।
★ पर्यावरण प्रदूषण को लेकर युवाओं में जागरूकता फैलानी चाहिए।
★ अपने आसपास गंदगी और कूड़े के ढेर को इकट्ठा ना होने दें।
★ पेट्रोलियम के साथ-साथ कोयला जैसे उत्पादों का भी इस्तेमाल कम से कम करें ।
★ कारखाने शहर से दूर बनाएं जाने चाहिए जिससे कि उनमें से निकलने वाला धुआं वायु में घुल कर लोगों में बीमारी ना फैला सके ।
★ यातायात के लिए ऐसे वाहनों का इस्तेमाल करना चाहिए जो कम धुआं छोड़ते हों ।
★ नदियों में कचरा ना फेंके ।
★ अपने आस-पास की जगहों को साफ-सुथरा रखें।
★ कीटनाशकों और उर्वरकों का सीमित मात्रा में ही उपयोग करें।
★ काम्पोस्ट का उपयोग कीजिए।
★ प्रकाश का अत्यधिक और जरूरत से ज्यादा उपयोग ना करके।
★ रेडियोएक्टिव पदार्थों के उपयोग को लेकर कठोर नियम बनाएँ।
★ कड़े औद्योगिक नियम-कानून बनाकर प्रदूषण पर रोक लगा सकते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण का भविष्य पर प्रभाव

पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव में भविष्य की कल्पना करना हृदय विदारक है । अगर पर्यावरण काफी हद तक प्रदूषित होगा तो हमें सांस लेने के लिए आक्सीजन किट अपने साथ रखनी होगी । शुद्ध पानी पीने के लिए हमें एक-एक बूंद की भी कीमत चुकानी पड़ेगी । इसके अलावा, मनुष्यों का जीवन काल कम हो जाएगा और वे कई खतरनाक बीमारियों के शिकार हों जाएंगे । पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाएगा और हमें जीने के लिए संघर्ष करना होगा । ग्लोबल वार्मिंग और एसिड रेन का बढ़ता असर इस धरती पर हर जीवन को खत्म कर देगा ।

सबसे अधिक प्रदूषण वाले शहर

एक तरफ जहां विश्व के कई शहरों ने प्रदूषण के स्तर को कम करने में सफलता प्राप्त कर ली है, वही कुछ शहरों में यह स्तर काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। विश्व के सबसे अधिक प्रदूषण वाले शहरों की सूची में कानपुर, दिल्ली, वाराणसी, पटना, पेशावर, कराची, सिजीज़हुआन्ग, हेजे, चेर्नोबिल, बेमेन्डा, बीजिंग और मास्को जैसे शहर शामिल है । इन शहरों में वायु की गुणवत्ता का स्तर काफी खराबहै और इसके साथ ही इन शहरों में जल और भूमि प्रदूषण की समस्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिससे इन शहरों में जीवन स्तर काफी दयनीय हो गया है । यह वह समय है जब लोगों को शहरों का विकास करने के साथ ही प्रदूषण स्तर को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है ।

उपसंहार

बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण किसी देश विशेष की समस्या नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व की समस्या है । आधुनिकरण हमें आरामदायक और आनंददायक जीवन दे रहा है, लेकिन दूसरी ओर, इसका प्रभाव हमारे जीवन के दिनों को सीमित कर रहा है। इसलिए, एक साथ लड़ने और इस समस्या से बाहर निकलने का समय आ गया है। पहले का जीवन आज की तुलना में बहुत बेहतर था। पहले लोगों के पास उन्नत तकनीक नहीं थी, लेकिन उनके पास सांस लेने के लिए शुद्ध हवा और पीने के लिए पानी था । इससे उन्हें लंबे समय तक स्वस्थ रहने में मदद मिलती थी। लेकिन आज एक छोटा बच्चा भी बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण कई बीमारियों की चपेट में है। अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो वह समय दूर नहीं जब हमें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और हमारा जीवन थम जाएगा ।


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निम्नलिखित में से कौन सा शब्द पुर्तगाली शब्द नहीं है— 1. कमीशन 2. कप्तान 3. गिर्जा 4. पादरी

सही विकल्प है

कमीशन

जानें कैसे?

चारों शब्दों में से ‘कमीशन’ शब्द ‘पुर्तगाली’ शब्द नहीं है। ‘कमीशन’ शब्द अंग्रेजी भाषा का मूल शब्द है। बाकी तीनों शब्द कप्तान, गिर्जा, पादरी पुर्तगाली शब्द है। यह शब्द पुर्तगाली भाषा से अंग्रेजी भाषा और फिर अंग्रेजी भाषा से हिंदी भाषा में आए हैं। यह सारे शब्द विदेशज शब्दों की श्रेणी में आते हैं।

पुर्तगाली भाषा के कई प्रमुख शब्दों में गिर्जा, पादरी, चाबी, बिस्कुट, तौलिया हैं। यह सारे शब्द मूल रूप से पुर्तगाली भाषा के शब्द हैं, जो कि अंग्रेजी भाषा में लिए गए और अंग्रेजी भाषा या अन्य दूसरी विदेशी भाषाओं के माध्यम से हिंदी भाषा में आ गए।

विदेशज शब्द वे शब्द होते हैं, जो हिंदी भाषा में भारत की बाहर की विदेशी भाषाओं से ग्रहण किए गए हैं। इन विदेशी भाषाओं में अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी, पुर्तगाली, फ्रांसीसी, जापानी, रूसी आदि भाषाएं हैं।


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कविता किसे कहते हैं? विभिन्न विद्वानों के कथनों द्वारा पुष्टि कीजिए।

‘गरजा मर्कट काल समाना’ में कौन सा अलंकार है?

पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे, झलमलकर हिम बिन्दु झिले थे, हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।” “लहराता था पानी। ‘हाँ, हाँ यही कहानी।”

वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे,
झलमलकर हिम बिन्दु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे,
लहराता था पानी।
लहराता था पानी। ‘हाँ, हाँ यही कहानी।╞

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रचित कविता “माँ कह एक कहानी” से ली गई हैं। इन पंक्तियों में उस प्रसंग का वर्णन है, जब यशोधरा अपने पुत्र राहुल को उसके पिता सिद्धार्थ के बारे में बताना चाह रही हैं। इस पंक्ति के माध्यम से उस बगीचे की सुंदरता का वर्णन किया जा रहा है।

व्याख्या : बाग बगीचे का सौंदर्य अद्भुत था। बगीचे में चारों तरफ तरह-तरह के रंगों के फूल खिले हुए थे। बगीचे के पौधों की पत्तियों तथा घास पर झिलमिल ओस की बूँदें झिलमिला अद्भुत सौंदर्य दृश्य उत्पन्न कर रही थी। हवा के शीतलझोंकों से वह उसकी बूंदे हिल रही थीं, जिससे सुंदर दृश्य उत्पन्न हो रहा था। हवा के झोंकों से तालाब का पानी मंद मंद रूप से लहरा रहा था। इस लहराते हुए पानी की बात सुनकर राहुल अपनी माँ से बोला, हाँ, मुझे यही कहानी कहो।


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पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “लक्ष्य सिद्धि का मानी कोमल कठिन कहानी।”

पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से, गिरा बिद्ध होकर खर-शर से, हुई पक्ष की हानी।” “हुई पक्ष की हानी। करुणा भरी कहानी।”

पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “लक्ष्य सिद्धि का मानी कोमल कठिन कहानी।”

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लक्ष्य सिद्धि का मानी कोमल कठिन कहानी।

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रचित कविता “माँ, कह एक कहानी” से ली गई हैं। यह पंक्तियां उस समय की हैं, जब यशोधरा अपने पुत्र राहुल को उसके पिता सिद्धार्थ द्वारा घायल राजहंस की रक्षा करने के प्रसंग का वर्णन कर रही हैं।

व्याख्या : राहुल यशोधरा से कहता है कि उसे यानी शिकारी को अपने लक्ष्य सिद्धि यानी अचूक निशाना लगने की सफलता पर इतना अभिमान था। निश्चित यह कहानी कोमल भी है और कठोर भी है।

पूरा पद्यांश इस प्रकार है…

चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया, लक्ष्य सिद्धि का मानी।
लक्ष्य सिद्धि का मानी। कोमल कठिन कहानी।

व्याख्या : सिद्धार्थ ने अचंभित होकर घायल हुए हंस को अपनी गोद में उठा लिया। हंस को ऐसा लगा जैसे उसे कोई नया जन्म प्राप्त हुआ हो। उसी समय उसको घायल करने वाला शिकारी भी वहाँ आ गया। शिकारी को अपने अचूक निशाने पर बेहद घमंड था। वह घमंडपूर्वक सिद्धार्थ से हंस को मांगने लगा। राहुल ने अपनी माँ से यह कहानी सुनी तो राहुल कहने लगा कि जहाँ एक तरफ शिकारी को अपने लक्ष्य सिद्धि अर्थात अचूक निशाने का अभिमान था, वहीं दूसरी तरफ उसके पिता में घायल हंस की रक्षा करने की कोमल संवेदना थी। निश्चित ही ये कहानी कोमलता और कठोरता का समन्वय है।


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सहसा एक हंस ऊपर से,
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हुई पक्ष की हानी। करुणा भरी कहानी।

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रचित कविता “माँ, कह एक कहानी” से ली गई है। इस कविता में यशोधरा अपने पुत्र राहुल को उनके पिता सिद्धार्थ की कहानी के बारे में बता रही है। यह प्रसंग उस समय का है, जब यशोधरा पुत्र राहुल को उस घटना का वर्णन कर रही हैं जब राहुल के पिता सिद्धार्थ बगीचे में घूम रहे थे, तभी एक घायल उनके पास आकर नीचे गिरा।

व्याख्या : उस सुबह में आकाश में चारों तरफ मधुर-मधुर स्वर में यह चहचहाते हुए पक्षी विचरण कर रहे थे और आकाश का दृश्य बड़ा ही मनमोहक था। तभी अचानक एक हंस घायल अवस्था में ऊपर से नीचे आकर गिरा। हंस का शरीर तीरों से घायल था। एक तीर से उसका एक पंख भी कट गया था। बालक राहुल इस इस घटना को सुनकर बोला, कि हंस का एक पंख कट गया, निश्चय ही ये कहानी करुणा से भरी हुई है।


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आपने अपना जन्मदिन कैसे मनाया उसके बारे में अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र लेखन

मित्र को जन्मदिन मनाने के बारे में लिखते हुए पत्र

 

28 मार्च 2024

 

प्रिय मित्र राज

कल मेरा जन्मदिन था और मैंने अपना जन्मदिन कैसे मनाया, मैं इस बारे में तुम्हें बताना चाहता हूँ। मुझे मालूम है कि तुम जरूरी काम के लिए शहर से बाहर होने के कारण मेरे जन्मदिन पर नहीं आ पाए थे। मैंने तुमको बहुत मिस किया। कल 8 बजे मैंने जन्मदिन के लिए छोटी सी पार्टी रखी थी। तुम्हे छोड़कर लगभग सभी दोस्त जन्मदिन पर आए थे।

8 बजे से सभी दोस्त आना शुरू हो गए। 9 मैंने केक काटा और फिर केक काटने के बाद हम लोग 11 बजे तक हम लोग डीजे पर डांस करते रहे। हम लोगों ने खूब इंजॉय किया। 11 बजे खानपान हुआ और उसके बाद सभी दोस्त मुझे विश करके चले गए। मेरे सभी दोस्त कोई ना कोई उपहार लाए थे। सब के उपहार एक से एक सुंदर थे। तुम्हारा भेजा हुआ उपहार भी मुझे बहुत पसंद आया। मुझे तुम्हारी कमी मुझे खली, लेकिन मुझे उम्मीद थी कि मेरे जन्मदिन पर तुम अवश्य आओगे।

कुछ दिनों बाद तुम्हारा जन्मदिन भी आने वाला है। मैं तुम्हारे जन्मदिन पर जरूर आऊंगा। तुम्हारे जन्मदिन पर हम लोग खूब मस्ती करेंगे और मेरे जन्मदिन पर तुम्हारे न आ पाने की कसर निकाल लेंगे।

तुम्हारा मित्र,
प्रेम


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इम्तिहान का बोझ टलने पर होने वाली खुशी के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार लेखन

इम्तिहान का बोझ टलने पर विचार

 

इम्तिहान का बोझ एक विद्यार्थी के लिए कितना बड़ा होता है, यह एक विद्यार्थी ही समझ सकता है। विद्यार्थी का पूरा वर्ष इम्तिहान का बोझ ढोते ही बीता है। उसकी पढ़ाई का मुख्य लक्ष्य इम्तिहान को पास करके उसमें अच्छे अंक प्राप्त करना होता है। इम्तिहान को केंद्र में रखकर ही विद्यार्थी पूरे वर्ष भर अपनी पढ़ाई की तैयारी करता है।

जब इम्तिहान नजदीक होते हैं, उससे कुछ दिनों पहले विद्यार्थी को इतना अधिक मानसिक तनाव और बोझ हो जाता है कि वह इस बोझ के तले दबा हुआ पाता है। जब इम्तिहान खत्म हो जाते हैं, तब उसे जो खुशी मिलती है, जो राहत मिलती है, उसका अनुभव केवल एक विद्यार्थी ही समझ सकता है। मैं पूरे साल भर एक समान पढ़ाई करता हूँ, न कि केवल इम्तिहान के दिनों में ज्यादा पढ़ाई। मेरी सारी तैयारी भी पूरी थी, लेकिन इम्तिहान से एक महीना पहले ही मन पर एक तरह का तनाव और बोझ हो गया था। जैसे-तैसे मैंने अपने सारे पेपर दिए। मेरे सारे पेपर लगभग अच्छे ही हो गए और जिस दिन अंतिम पेपर देकर मैं परीक्षा हॉल से बाहर आया।

ऐसा लग रहा था कि मन से कोई बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। उस समय एक अजीब सी राहत और खुशी का एहसास हो रहा था। अब लग रहा था कुछ दिनों तक मैं बेफिक्र होकर कहीं पर भी घूम सकता हूँ। कॉमिक्स पढ़ सकता हूँ। मूवी देख सकता हूँ। टीवी पर मनपसंद कार्यक्रम देख सकता हूँ। गेम खेल सकता हूँ। पिकनिक पर जा सकता हूँ। किसी घूमने वाली जगह पर जा सकता हूँ। अब सब कुछ करने की आजादी थी, क्योंकि परीक्षा का बोझ अपने सर पर से उतर गया था। हालांकि यही बोझ अगले एक साल बाद फिर सर पर चढ़ जाना है लेकिन तब तक के लिए फिलहाल जो राहत मिली है, उसका आनंद अलग ही था।


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‘गरजा मर्कट काल समाना’ में कौन सा अलंकार है?

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गरजा मर्कट काल समाना

अलंकार : उपमा अलंकार

स्पष्टीकरण

‘गरजा मर्कट काल समाना’ इस पंक्ति में उपमा अलंकार है, क्योंकि इस पंक्ति में मर्कट यानि वानर की तुलना काल से की गई है। उपमा अलंकार में दो व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के बीच आपस तुलना करके उनमें समानता दर्शाई जाती है।

उपमा अलंकार क्या है?

उपमा अलंकार किसी अलंकार का वह भेद है, जहाँ पर किसी काव्य में किसी एक व्यक्ति अथवा वस्तु की तुलना किसी दूसरी व्यक्ति अथवा वस्तु के साथ की जाए अर्थात उपमेय और उपमान के बीच के भेद को मिटाकर वहाँ पर समानता का भाव दर्शाया जाए तो उस पंक्ति में ‘उपमा अलंकार’ प्रकट होता है।


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‘गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है’ पंक्ति में अलंकार है।

तताँरा वामीरो की पहली मुलाक़ात कहाँ हुई थी ? 1. नारियल के झुंड के पास 2. पेड़ के पास 3. समुद्र के पास 3. गाँव के बाहर टीले पर​

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सही विकल्प होगा…

समुद्र के पास

विस्तार से वर्णन

तताँरा वामीरो की मुलाकात समुद्र के पास हुई थी। एक दिन तताँरा दिन भर के अथक परिश्रम करने के बाद समुद्र के किनारे टहल रहा था। सूरज लगभग डूबने को ही था। समुद्र से ठंडी-ठंडी हवाएं आ रही थीं। तताँरा का मन एकदम शांत था। वह अपने विचारों में खोया हुआ समुद्र की रेत पर चला जा रहा था। तभी उसके कानों में गानों का एक मधुर स्वर पड़ा। वह स्वर की दिशा में बढ़ता चला गया, जहाँ उसे वामीरो मधुर गाना गाती हुई दिखाई दी। इस तरह का तताँरा की पहली मुलाकात वामीरो से समुद्र के किनारे हुई थी।

‘तताँरा-वामीरो की कथा’ एक प्रेमी युगल की कथा है, जिसके लेखक लीलाधर मंडलोई हैं। इस कथा में उन्होंने निकोबार द्वीप समूह में तताँरा और वामीरो नामक युवक-युवती के बीच की उपजे प्रेम तथा उनके मिलन ना होने के कारण दोनों के त्यागमयी बलिदान की कथा को प्रस्तुत किया है।


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अब्दुल फजल कौन था? अकबरनामा को उसके महत्वपूर्ण योगदान में से एक क्यों माना जाता है स्पष्ट कीजिए!

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अबुल फजल अकबर के दरबार का एक शाही इतिहासकार था, जिसने अकबर के जीवन पर आधारित ‘अकबरनामा’ नामक कृति का संयोजन किया था।

अबुल फजल का पूरा नाम ‘अबुल फजल इब्न मुबारक’ था, जिसका जन्म 24 जनवरी 1951 ईस्वी में आगरा में हुआ था। वह शीघ्र ही अकबर के दरबार में कर्मचारी बन गया और अपनी योग्यता के कारण जल्दी ही प्रधानमंत्री पद तक जा पहुंचा।

अबुल फजल ने अकबर के जीवन पर आधारित ‘अकबरनामा’ नामक कृति का सृजन किया। यह कृति तीन खंडों में इसी कृति का तीसरा खंड ‘आईने अकबरी’ के नाम से जाना जाता है। ‘आईने अकबरी’ को अकबर के समय का गजट भी कहा जा सकता है, क्योंकि आईने अकबरी में अबुल फजल ने तत्कालीन मुगल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था की बारीक जानकारी प्रस्तुत की है। उसने ‘आईने अकबरी’ में मुगल साम्राज्य का सांख्यिकी सर्वेक्षण को प्रस्तुत किया है तो राजस्व व्यवस्था तथा आर्थिक स्थिति का विवरण दिया है। इसके अलावा उसने खजाने और सिक्कों से संबंधित विवरण भी पेश किया है। आईने अकबरी भी 5 भागों में विभाजित है और उसने हर बात में अलग-अलग विषयों को केंद्र रखकर उनका विस्तृत विवेचन किया है।

अकबरनामा को अबुल फजल के सबसे महत्वपूर्ण योगदान में एक इसलिए माना जाता है क्योंकि यह कृति उसने तत्कालीन मुगल साम्राज्य का बारीकी से विश्लेषण प्रस्तुत किया है जो तत्कालीन मुगल साम्राज्य की दशा का स्पष्ट रूप से वर्णन करता है और हमें उस समय की आर्थिक राजनीतिक एवं सामाजिक जानकारियों का विवरण प्राप्त होता है। इसी कारण अकबरनामा को अबुल फजल के महत्वपूर्ण योगदान में से एक योगदान माना जाता है।


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कविता किसे कहते हैं? विभिन्न विद्वानों के कथनों द्वारा पुष्टि कीजिए।

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कविता से तात्पर्य साहित्य की उस विधा से है, जिसमें लय एवं छंदों के माध्यम से गत्यात्मक रूप में रचना को प्रस्तुत किया जाता है। कविता में भाव तत्व की प्रधानता होती है और इसमें चिंतन अथवा विचारों की जटिलता नहीं होती अर्थात कविता के द्वारा किसी बात को भावात्मक रूप में स्पष्ट करने के साथ-साथ बिंब-विधान भी किया जाता है जो पाठक के मन में स्थायित्व पैदा करता है।
बिंब-विधान एक तरह का शब्द चित्र है जो केवल कविता के माध्यम से ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

सरल शब्दों में कविता की परिभाषा कहें तो ‘मन के भावों को शब्दों के माध्यम से गत्यात्मक रूप में प्रस्तुत करने की कला को कविता कहते हैं।’

विभिन्न विद्वानों द्वारा कविता की परिभाषाएं इस प्रकार हैं…

आचार्य रामचंद्र शुक्ल कविता की परिभाषा करते हुए कहते हैं कि “हृदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।”

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कविता की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि “कविता का लोक प्रचलित अर्थ वह वाक्य है, जिसमें भावावेश हो, कल्पना हो, पद-लालित्य हो तथा प्रयोजन की सीमा समाप्त हो चुकी हों।”

इस तरह अलग विद्वानों ने कविता की अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं, कविता के प्रमुख अवयवों में भाव -पक्ष, कला-पक्ष, भाषा-शैली, छंद, अलंकार तथा रस आदि प्रमुख होते हैं।


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‘जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी’ यह विज्ञापन आप रेडियो के लिए तैयार कीजिए।

तिमंजिला में कौन सा समास है?

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तिमंजिला में समास :

तिमंजिला : तीन मंजिल का समाहार

समास भेद : द्विगु समास

स्पष्टीकरण

तिमंजिला में द्विगु समास इसलिए होगा क्योंकि इसका समास विग्रह करने पर किसी संख्या अभास होता है और पहला किसी संख्या को प्रदर्शित करता है। द्विगु समास में पहला पद एक संख्यावाचक विशेषण की तरह कार्य करता है और दूसरे पद की संख्या को प्रकट करता है।

द्विगु समास

द्विगु समास की परिभाषा के अनुसार जिस समस्त पद का पहला पद अर्थात पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण की तरह कार्य करता हो। अर्थात किसी संख्या को प्रदर्शित करता हो, वहाँ दिगु समास होता है। द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण तथा दूसरा पद प्रधान पद होता है।

जैसे

  • नवरात्रि : नौ रात्रियों का समूह या समाहार
  • सप्ताह : सात दिनों का समूह या समाहार
  • चौराहा : चौराहों का समूह या समाहार
  • अष्टधातु : आठ धातुओं का समूह या समाहार

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निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह करके समास का नाम लिखिए- (क) हथकड़ी (ख) रोगग्रस्त (ग) शताब्दी (घ) त्रिवेणी (ङ) कमलनयन (च) लाभ-हानि (छ) नवग्रह (ज) तुलसीकृत (झ) राजीवलोचन (ञ) बैलगाड़ी (ट) यथासंभव (ठ) घुड़सवार (ड) लंबोदर

गुलाब जामुन कौन सा समास है?

दो मित्र प्रातः काल भ्रमण कर रहे हैं। उनके बीच पेड़-पौधों के बचाव हेतु हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद

पेड़-पौधों के बचाव के संबंध में दो मित्रों के बीच बातचीत

कमल ⦂ विमल! देखो हमारे आसपास हरियाली कितनी कम हो गई है। पेड़-पौधों की संख्या निरंतर घटती जा रही है।

विमल ⦂ हाँ, सही कह रहे हो। मैं पिछले 5 वर्षों से रोज प्रातः काल भ्रमण करने के लिए इस बगीचे और आसपास के क्षेत्र में आता रहता हूँ। पहले यहाँ पर पेड़-पौधों की भरमार थी। अब पेड़-पौधे काफी कम हो गए हैं।

कमल ⦂ यह एक चिंतनीय विषय है। इसी तरह हमारे आसपास की हरियाली कम होती गई तो हमारे पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।

विमल ⦂ हाँ, सही बात है। पेड़ पौधे वातावरण की वायु को शुद्ध करते हैं। यदि पेड़ पौधों की संख्या ऐसे ही कम होती रही तो हमें इस प्रदूषण वाले वातावरण में शुद्ध वायु मिलनी भी दूभर हो जाएगी।

कमल ⦂ हम सभी को इस बारे में तुरंत सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है। हमें अपने क्षेत्र में पेड़-पौधों की निरंतर घटती जा रही संख्या को रोकना होगा और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा ताकि हमारा क्षेत्र हरा-भरा रहे।

विमल ⦂ तुम्हारा यह सुझाव बिल्कुल अच्छा है। हम सबको इस बारे में जरूर कुछ करना चाहिए।

कमल  ⦂ इस रविवार को हम मोहल्ले के सभी गणमान्य  व्यक्तियों को एकत्रित करके इस बारे में एक मीटिंग करते हैं और अधिक से अधिक संख्या में पेड़-पौधे लगाने के लिए वृक्षारोपण का कार्यक्रम आयोजित करने के बारे में कोई निर्णय लेते हैं।

विमल ⦂ यह आइडिया बिल्कुल सही है। मैं आज ही अपने पहचान के कुछ लोगों से इस बारे में बात करता हूँ और रविवार को हम सभी कॉलोनीवासी एक मीटिंग करेंगे।

कमल ⦂ हाँ, मैं भी कुछ लोगों से बात करता हूँ। हमें व्हाट्स ग्रुप के द्वारा रविवार को मीटिंग रखने का प्रस्वाका मैसेज भेजना चाहिए। सब लोगों के रजामंदी मिलने के बाद हम लोग इस संबंध में मीटिंग करेंगे।

विमल ⦂ हाँ ये सही रहेगा। यदि मीटिंग न हो सकी या लोगों हमारे प्रस्ताव पर कोई रुचि नहीं दिखाई तो हम दोनों की पेड़-पौधों के संरक्षण के लिए अकेले जुट जाएंगे।

कमल ⦂ हाँ, बिल्कुल ऐसा ही करेंगे।


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दिन-प्रतिदिन बढ़ती गर्मी को लेकर रोहन और सोहन के बीच संवाद को लिखें।

क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

‘देवों की वाणी’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द क्या होगा?

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देवों की वाणी इस शब्द समूह के लिए एक शब्द इस प्रकार होगा…

देवों की वाणी : देव-वाणी

व्याख्या

‘देवों की वाणी’ इस शब्द समूह के लिए सटीक शब्द ‘देव-वाणी’ होगा देव अर्थात देवताओं द्वारा की जाने वाली वाणी।

प्राचीन काल में पौराणिक काल में देव वाणी बेहद आम थी, जब देवों द्वारा व्यक्त किए गए वचनों को देव-वाणी कहा जाता था। देव से तात्पर्य सभी तरह के देवी देवताओं से हैं। हिंदू धर्म देव-वाणी की अवधारण काफी प्राचीन काल से रही है। सभी तरह के देव-देवी, चाहें वह ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा, काली, इंद्र, वरुण, गणेश आदि के मुख से निकली वाणी ही देव वाणी है।

संबंधित अनेक शब्दों के लिए एक शब्द के कुछ और उदाहरण

आकाश से उत्पन्न होने वाली वाणी : आकाशवाणी
जिस वाणी में मधुरता यानि मिठास हो : मधुरवाणी
जिस वाणी में अमृत हो : अमृतवाणी

 


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इन शब्दों के लिए अनेक शब्दों के लिए एक शब्द बताइए। ‘जो विश्वास न करता हो’ ‘जो सब पर विश्वास करता हो’ जिसके पास बहुत साधन हो’

रैंचिंग खेती से क्या तात्पर्य है?

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रैंचिंग खेती (Ranching Farming)

रैंचिंग खेती से तात्पर्य उस खेती से होता है, जिसमें भूमि की जुताई, भूमि की बुवाई अथवा गुड़ाई इत्यादि नहीं की जाती है। इस तरह की खेती के अंतर्गत फसलों का उत्पादन नहीं किया जाता। रैंचिग खेती में प्राकृतिक वनस्पति उगायी जाती है, जो कि स्वभाविक रूप से अपने-आप उगती है। इस खेती में उगी गई वनस्पति को तरह-तरह के पालतू पशुओं जैसे भेड़, बकरी, गाय, भैंस आदि को चराया जाता है। इस तरह की खेती उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ पर पशुपालन अधिक होता है, और बड़ी मात्रा में पशुओं के लिए चारे की आवश्यकता होती है।

इस खेती का मुख्य उद्देश्य पशुओं के लिए चारागाह बनाना है अर्थात शाकाहारी पशुओं के लिए खाने योग्य पर्याप्त वनस्पति उपलब्ध रहे, इसलिए ‘रैंचिंग खेती’ की जाती है। इस खेती के अंतर्गत भूखंड को प्राकृतिक वनस्पतियों को उगने के लिए छोड़ दिया जाता है, जो पशुओं के चारे के काम आती है।

इस तरह की खेती भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के अलावा तिब्बत के पर्वतीय और पठारी क्षेत्रों में की जाती है, तथा विश्व के अन्य पर्वतीय और पठारीय क्षेत्रों में की जाती है।


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वर्षा जल संग्रहण के तीन लाभ लिखिए।

‘यात्रा जिसे मैं भूल नहीं सकता’ विषय पर अनुच्छेद लिखिए।​

अनुच्छेद

यात्रा जिसे मैं भूल नहीं सकता (संस्मरण)

 

वह यात्रा जो मैं कभी भूल नहीं सकता। यह यात्रा मेरे मन मस्तिष्क पर पूरी तरह अंकित हो गई थी। हुआ यूं कि गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने नाना नानी के घर जा रहा था। मेरे साथ मेरे माता-पिता और छोटी बहन भी थी। हमारे नाना-नानी का घर हमारे शहर से 500 किलोमीटर दूर दूसरे शहर में था।

हम चारों बस से नाना नानी के घर जाने के लिए सवार हुए क्योंकि नाना नानी के घर तक कोई ट्रेन नहीं जाती थी। 500 किलोमीटर दूर बस की यात्रा का सफर 7-8 घंटे में पूरा होना था। हम लोग सुबह 10 बजे बस में सवार हो गए। सात आठ घंटे का सफर काटना काफी उबाऊ होना था लेकिन बस में हमारा 7-8 घंटे का सफर यूं कट गया कि हमें पता ही नहीं चला। इसका मुख्य कारण हमारे साथ बस में सवार हुए वह सज्जन थे, जो पूरी बस में हमारा मनोरंजन करते रहे।

वह सज्जन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने न केवल तरह-तरह के चुटकुले सुनाए बल्कि कई प्रसिद्ध व्यक्तियों की मिमिक्री भी की। उन्होंने हम सब बस यात्रियों का पूरे यात्रा के दौरान अच्छा खासा मनोरंजन किया। उनके द्वारा किए गए मनोरंजन के कारण हमें बस की लंबी यात्रा बेहद छोटी लगी। उनकी बातें इतनी मनमोहक थीं कि हमारा मन कर रहा था कि बस का सफर कभी खत्म नहीं हो और हम उनकी बातें सुनते रहे। जब हमारा स्टॉप आ गया तो हमने उनसे विदा ली। उन्हें आगे जाना था। हमनें हमारा सफर आसान बनाने के लिए उन्हें धन्यवाद किया। सच में बस की वह यात्रा बेहद अविस्मरणीय रही। बस की वह यात्रा मैं भूल नहीं सकता।


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