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‘सिंहद्वार’ का समास विग्रह कीजिए।

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सिंहद्वार का समास विग्रह

सिंहद्वार : सिंह का द्वार

समास भेद : तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समास का उपभेद : संबंध तत्पुरुष समास


स्पष्टीकरण

सिंह का द्वार सिंहद्वार में तत्पुरुष समास होता है। यहाँ पर तत्पुरुष समास उपभेद ‘संबंध तत्पुरुष समास’ लागू होगा। संबंध में तत्पुरुष समास में पहले पद का दूसरे पद से योजक चिन्हों द्वारा संंबंध प्रकट किया जाता है। ये योजक चिन्ह ‘का’, ‘की’, ‘को’ हो सकते हैं।

‘तत्पुरुष समास’ की परिभाषा के अनुसार जब दोनों पदों में दूसरा पद प्रधान हो तो वहाँ तत्पुरुष समास होता है।

जैसे

  • मोहबंधन : मोह का बंधन
  • प्रसंगोचित : प्रसंग के अनुसार
  • राजकन्या : राजा की कन्या
  • देवालय : देव का आलय
समास की परिभाषा

समास से तात्पर्य शब्दों के संक्षिप्तीकरण से होता है। हिंदी व्याकरण की भाषा में समास उस प्रक्रिया को कहते हैं, जब दो या दो से अधिक पदों का संक्षिप्तीकरण करके एक नवीन पद की रचना की जाती है।


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गृहलक्ष्मी’ में कौन सा समास है?

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स्वच्छता के ऐसे काम की सूची बनाओ, जिन्हें आप हर रोज कर सकते हैं।

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स्वच्छता के ऐसे काम की सूची जो हम हर रोज़ करते है, वह इस प्रकार है…

  • मैं अपने घर की सफाई करती हूँ। अपने घर के बाहर की सफाई करती हूँ।
  • मैं अपने शरीर को साफ रखती हूँ, मैं रोज नहाती हूँ, रोज़ साफ कपड़े पहनती हूँ।
  • मैं अपने घर का कूड़ा घर से दूर कूड़ेदान में फेंकती हूँ।
  • मैं अपने घर में रसोईघर को साफ रखती हूँ, स्वच्छ खाना बनाती हूँ।
  • रसोईघर में खाने की चीजों को, पानी को साफ बर्तन में रखती हूँ।
  • मैं रास्ते में कभी कूड़ा नहीं फेंकती हूँ।
  • मैं नदियों के पानी को दूषित नहीं करती हूँ।

स्वच्छता के कार्यों को हम अपने दैनिक जीवन की आदत बना लें। इससे न केवल हमारा तन स्वस्थ बल्कि हमारा स्वास्थ्य भी उत्तर रहेगा। स्वस्थ तन ही स्वस्थ मन बनाता है। स्वस्थ तन और मन से स्वस्थ जीवन बनता है।


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हाइड्रोजन को क्यों लग रहा था कि मनुष्य अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मार रहा है?

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हाइड्रोजन को ऐसा इसलिए लग रहा था कि मनुष्य अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मार रहा है, क्योंकि वह यानि मनुष्य सिगरेट और बीड़ी के विषैले धुएँ से ना केवल स्वयं का नुकसान कर रहा है, बल्कि धरती पर रहने वाले अन्य लोगों को भी बीमार कर रहा है।

हाइड्रोजन नाइट्रोजन को संबोधित करते हुए कहती है कि हे बहन! सिगरेट और बीड़ी इन विषैले धुएँ से यह मनुष्य हमारा तो नुकसान कर ही रहा है तथा स्वयं का नुकसान कर रहा है और धरती पर रहने वाले अन्य प्राणियों का भी नुकसान कर रहा है, उनको भी बीमार बना रहा है। वह इस विषैले धुएँ से सारे वातावरण को प्रदूषित कर रहा है, जिसके कारण हम प्रदूषित हो रहे हैं और हमारा यही प्रदूषित रूप अन्य मनुष्यों के शरीर में जाकर दमा, साँस, फेफड़े, त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न कर रहा है। इस तरह मनुष्य अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा है यानी स्वयं का ही नुकसान कर रहा है।

संदर्भ पाठ :

‘मेरा दम घुटता है’ पाठ के माध्यम से लेखक ‘पंकज चतुर्वेदी’ ने वातावरण में बढ़ रहे प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने विचार व्यक्त किए हैं। पीएसईबी (PSEB), पंजाब स्टेट एजुकेशन बोर्ड, कक्षा – 7, पाठ – 17


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सब तुम्हें ‘स्वावलंबी’ कहें, इसके लिए तुम कौन-कौन से कार्य स्वयं करोगे?

सब मुझे स्वावलंबी कहें, इसके लिए मुझे निम्नलिखित कार्य स्वयं करने होंगे…

मुझे अपने निजी खर्चों के लिए आवश्यक पैसों का प्रबंध खुद करना होगा। एक विद्यार्थी होने के नाते मैं एक पूर्णकालिक कार्य (फुलटाइम जॉब) नहीं कर सकता/सकती लेकिन मैं अल्पकालिक कार्य (पार्ट टाइम जॉब) करके अपने निजी खर्चों का प्रबंध कर सकता/सकती हूँ। ऐसी पार्ट टाइम में सुबह अखबार या दूध बांटना, किसी इवेंट में वॉलिंटियर का काम करना, किसी स्वयंसेवी संस्था के साथ जुड़कर उससे संबंधित छोटे-मोटे कार्य करना, किसी कंपनी में ईवनिंग शिफ्ट में कोई जॉब करना, ऑनलाइन फ्रीलांसिंग वर्क करना आदि।

स्वावलंबी बनने के लिए मुझे अपने दैनिक जीवन में नित्य कर्म से संबंधित कार्य सारे स्वयं करने होंगे। जैसे अपने कपड़े स्वयं धोना, अपना खाना स्वयं बनाना, अपने खाने के बर्तन स्वयं धोना, अपना बिस्तर स्वयं लगाना-उठाना, अपने कमरे की साफ-सफाई स्वयं करना, कोई भी जरूरत का सामान बाजार जाकर स्वयं लाना।

यदि इस तरह के कार्य में स्वयं करने लगूंगा/लगूंगी तो लोग मुझे स्वावलंबी कहेंगे।


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पिकनिक की योजना बनाते हुए भाई-बहन के बीच संवाद लिखिए।

संवाद

पिकनिक की योजना पर भाई-बहन के बीच संवाद

 

(पिकनिक जाने की योजना बनाते हुए दो भाई-बहन वरुण और विनीता के बीच संवाद हो रहा है।)

वरुण ⦂ विनीता हमने अपने शहर के बाद जंगल में जो पिकनिक मनाने की योजना बनाई है, उसके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?

विनीता ⦂ तुमने बिलकुल सही सोचा है। जंगल में पिकनिक मनाकर एडवेंचर करने को मिलेगा।

वरुण ⦂ क्या हमारे सारे दोस्त राजी हो गए हैं?

विनीता ⦂ मैंने सब से बात कर ली है।सब पिकनिक पर जाने के लिए रोमांचित हैं और सब ने हामी भर दी है।

वरुण ⦂ अच्छा तो तुमने सारी पैकिंग कर ली ?

विनीता ⦂ मैंने सारे जरूरी सामान की पैकिंग कर ली है। हमें कैंपेनिंग का कुछ सामान लेने के लिए बाजार जाना है।

वरुण ⦂ ठीक है शाम को चलते हैं और बाकी सामान भी ले लेते है।

विनीता ⦂ हाँ शाम ये काम भी पूरा कर लेते हैं।

वरुण ⦂ कल सुबह छः बजे निकलना होगा। तुम सबको सूचना दे दी है क्या ?

विनीता ⦂ मैने सबको मैसेज कर दिया है, सब 6 बजे तक यहाँ आ जाएंगे।

वरुण ⦂ ठीक है, मैं हमारी गाड़ी को रेडी कर लूं और एक गाड़ी रोहन लेकर आएगा।

विनीता ⦂ हाँ दो गाड़ियां हम आठ लोगों के लिए बहुत हैं।


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यदि अरुणा उन दोनों बच्चों की देखभाल नहीं करती, तो उन बच्चों के साथ क्या-क्या हो सकता था?

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यदि अरुणा उन बच्चों की देखभाल नहीं करती तो वह बच्चे अपनी माँ के अभाव में बेघर हो जाते और उनका जीवन संकट में पड़ जाता। बच्चों की भिखारिन माँ मर गई थी। ऐसी स्थिति में बच्चे अनाथ हो गए थे। अनाथ बच्चों का कोई सहारा ना होने के कारण उन्हें या तो फुटपाथ पर रहना पड़ता अथवा किसी अनाथ आश्रम में जाना पड़ता। तब उनके भविष्य का कोई आधार नहीं बन पाता और उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता था।

अरुणा ने भिखारिन की मृत्यु के बाद उसके बच्चों को अपनाकर उनकी देखभाल करते अनोखी मानवीयता का परिचय दिया था। उसने उन बच्चों के भविष्य को संभाला था, इसलिए यदि अरुणा उन बच्चों की देखभाल नहीं करती तो उन बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता था। वह दर-दर भटक सकते थे। उन्हें फुटपाथ पर रहना पड़ सकता था। अथवा किसी अनाथ आश्रम में रहना पड़ता था, जहाँ पर उनका कोई भविष्य नहीं होता। यदि अरुणा उन बच्चों की देखभाल नही करती तो उन बच्चों के भविष्य का कोई आधार नही बन पाता।

संदर्भ पाठ
दो कलाकार, लेखिका – मन्नू भंडारी,


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‘बेटी बचाओ’ पर कुछ नारे लिखिए।

‘बेटी बचाओ’ पर कुछ नारे

नारा नं. 1

बेटी है अनमोल वरदान
बेटियों का करो सम्मान,
बेटियाँ है अनमोल वरदान,
बेटियों से बढ़ता मान,
बेटियाँ है सबकी शान,

नारा नं. 2

बेटियाँ शीतल हवाएँ है
बेटियाँ शीतल हवाएँ हैं,
ये दूर तक गूँजती सदाएँ हैं,
बेटियाँ महकती हुई फिजाएँ हैं,
बेटियाँ ईश्वर की दुआएँ हैं।

नारा नं. 3

बेटा-बेटी एक समान
बेटी को दो उसकी पहचान
बेटियों का महत्व जानों,
बेटियों का वजूद पहचानों,
बेटा-बेटी को एक समान मानो,
मन में आज यही बात ठानों।


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अपने शहर की विशेषताएँ और दर्शनीय स्थल बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए​।

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अपने शहर के दर्शनीय स्थलों की विशेषता बताते हुए मित्र को पत्र

 

दिनांक : 29 मई 2024

प्रिय मित्र मानवी,

तुम कैसी हो? आज मैं तुम्हें हमारे मुंबई शहर की विशेषता और उस के दर्शनीय स्थलों के बारे में बताना चाहता हूँ। तुम जानती ही हो कि मुंबई शहर भारत का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध शहर है। इसे मायानगरी और सपनों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का प्रमुख केंद्र है। मुंबई शहर में अनेक ऐतिहासिक स्थल हैं जो अंग्रेजों और पुर्तगालियों द्वारा बनाए गए हैं।

मुंबई शहर का सबसे प्रमुख ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल ‘गेट ऑफ इंडिया है’। ये मुंबई की पहचान है। इसका निर्माण अंग्रेजों ने 1911 में किया था, जब इंग्लैंड का राजा जार्ज पंचम और रानी मेरी पहली बार भारत आए थे।

गेटवे ऑफ इंडिया के सामने ही समुद्र में लगभग 10 किलोमीटर दूर एक टापू है, जिसे एलीफेंटा टापू कहा जाता है। यहाँ पर एलिफेंटा की गुफाएं हैं, जहाँ पर प्राचीन समय की अनेक पत्थर की मूर्तियां हैं। इस टापू को एलिफेंटा नाम पुर्तगालियो द्वारा 16 शताब्दी द्वारा दिया गया था।

मुंबई में प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम भी है जो दक्षिण मुंबई में स्थित है। इस म्यूजियम में अनेक तरह की पुरातात्विक सामग्री के दर्शन हो जाएंगे। मुंबई गिरगांव चौपाटी के पास मछली घर है, जिसे तारापोरवाला मछलीघर कहते हैं। यहां पर एक से एक सुंदर और रंग-बिरंगी मछलियों को देखा जा सकता है। जहाँगरी आर्ट गैलरी भी कलात्मक वस्तुओं के लिए एक प्रसिद्ध जगह है, जहाँ पर अनेक तरह की कलाकृतियों की प्रदर्शनियाँ लगती रहती हैं।

मुंबई का जुहू चौपाटी बेहद सुंदर और घूमने योग्य दर्शनीय स्थल है। यह मुंबई का सबसे बड़ा समुद्र बीच है जो पूरे दिन टूरिस्टों से गुलजार रहता है। मुंबई का जुहू अनेक प्रसिद्ध हस्तियों का निवास केंद्र है और यहां पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अनेक कलाकारों के घर हैं।

मुंबई से थोड़ी दूर पर ही गोराई नामक टापू पर एस्सेल वर्ल्ड एम्यूजमेंट पार्क है। मुंबई के बोरीवली में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है। ये एक प्रसिद्ध और बड़ा अभयारण्य है। यहाँ पर अनेक तरह के दुर्लभ प्रजाति के जीव-जंतु खुले में घूमते मिल जाएंगे। यहीं पर कान्हेरी की गुफाएं भी हैं।

मुंबई के भायखला में स्थित रानी बाग चिड़ियाघर अनेक तरह के जीव जंतुओं के लिए प्रसिद्ध है। मुंबई का छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस भारत का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन है, इससे पहले विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से जाना जाता था। गेटवे ऑफ इंडिया के सामने स्थित ताजमहल होटल भारत के प्राचीन होटलों में से एक है। इसके अलावा मुंबई में अनेक प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं जो मुंबई को एक घूमने योग्य शहर बनाते हैं।

आशा है, तुम्हें मेरे शहर मुंबई के बारे में यह जानकारी पसंद आई होगी। तुम भी अपने शहर के बारे में मुझे बताना।

तुम्हारा मित्र,
शशांक ।


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दिनाँक : 27 मार्च 2024

आदरणीय मामा जी,

सादर चरण स्पर्श, मामा जी आप का पत्र प्राप्त हुआ। आपने पिताजी के स्वास्थ्य के विषय में पूछा है कि उनकी तबीयत कैसी है? उन्हें अभी तक आराम मिला कि नहीं? मामा जी, मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पिताजी का स्वास्थ्य अब पहले काफी बेहतर और उनके स्वास्थ्य में निरंतर सुधार हो रहा है। अब उन्हें पहले से काफी आराम है। उन्हें डायबिटीज के कारण जिस तरह की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हुई थीं, उसके लिए डॉक्टर ने जो दवाइयां दी थी और जो उपाय बताए थे, उसका नियमित पालन करने से काफी लाभ प्राप्त हुआ है।

इन दिनों में एक आयुर्वेदिक उपचार ले रहे हैं, जिससे उन्हें काफी फायदा मिला है और मैं पहले से स्वस्थ महसूस कर रहे हैं। आशा है कि आने वाले दिनों में आने वाले दिनों में वह पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे। आप अपने बारे में बताएं। आपका स्वास्थ्य कैसा चल रहा है? और घर में सब लोग कैसे हैं? आप हम लोगों से मिलने कब आ रहे हैं? मुझे पता है कि काम की व्यस्तता के कारण आप नहीं आ पाते। जैसे ही काम से आपको थोड़ा सा समय मिले, यहाँ पर मिलने आइए। मेरी जब स्कूल की गर्मी की छुट्टियां पड़ेगी, तब मैं आपसे मिलने आऊंगा और कुछ दिन आपके पास रहूंगा। अब पत्र समाप्त करता हूँ। सभी बड़ों को चरणस्पर्श।

आप का भांजा,
वरुण।


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दिए गए मुहावरों का अर्थवरों का अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग करें- क) हृदय पर साँप लोटना ख) अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना​।

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मुहावरों का अर्थ और वाक्य प्रयोग

मुहावरा : हृदय पर साँप लोटना

अर्थ : किसी से ईर्ष्या करना, किसी की खुशी अथवा उन्नति देखकर उससे ईर्ष्या करना।

वाक्य प्रयोग-1 : सुरेश के पड़ोसी रमन के घर जैसे ही नई कार आई, नई कार देखकर सुरेश के हृदय पर साँप लोटने लगे।

वाक्य प्रयोग-2 : सचिन और विमल एक कक्षा में पढ़ते हैं। सचिन जब कक्षा में प्रथम आया तो यह खबर सुनकर विमल के हृदय पर साँप लोटने लगे।

 

मुहावरा : अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना

अर्थ : अपनी प्रशंसा खुद करना।

वाक्य प्रयोग-1 : हेमंत को इतना अधिक ज्ञान नहीं है, जितना वह अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना है।

वाक्य प्रयोग-2 : अब ज्यादा मत बोलो यदि तुम योग्य होगे तो अभी पता चल जाएगा। अपने मुंह मियां मिट्ठू मत बनो।


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बस्ते के बोझ तले सिसकता बचपन (निबंध)

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निबंध

बस्ते के बोझ तले सिसकता बचपन

 

बचपन बेहद मासूम होता है, वो बेहद कोमल होता है। मासूमियत भरे इस बचपन पर बस्ते का बोझ एक अत्याचार से कम नही है। शिक्षा पाना हर बच्चे के की अधिकार और आवश्यकता है, लेकिन शिक्षा देने के तरीके को इतना अधिक मुश्किल भी नही बना देना चाहिए के बच्चे का मासूम बचपन बस्ते के बोझ तले दब जाये। बस्ते के बोझ तले सिसकता बचपन पर निबंध इस प्रकार है…

प्रस्तावना

हम सभी जानते हैं कि शिक्षा जीवन की एक ऐसी महत्वपूर्ण कड़ी है जिसके सहारे मनुष्य ज्ञान के चक्षु खोलकर जीवन में उज्ज्वल मुकाम पाने के काबिल हो पाता है l कहते है बिन ज्ञान के मनुष्य जानवर के समान है l मनुष्य में यह ज्ञान उनके बचपन से ही प्रारंभ हो जाता है l कुछ शोध में देखा गया है कि बच्चों में ज्ञान का संचार माँ की कोख से ही प्रारंभ हो जाता है l

पौराणिक कथाओं में भी बहुत सी जगह इसका उल्लेख मिलता है l महाभारत में अभिमन्यु ने चक्रव्यूह युद्ध नीति माता के गर्भ में रहते हुए ही प्राप्त कर ली थीl माँ-पिता अपने बच्चों को ज्ञान एवं जीवन कौशल को सिखाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते है, उनसे जो बन पड़े वह करने से पीछे नहीं हटते है l बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए बच्चों को किसी नामी-ग्रामी निजी स्कूल में डाल देते है, और बस शुरू हो जाती है बच्चों की जिन्दगी की असली परीक्षा l यदि आपको किसी प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ना है तो जाहिर सी बात है वह हर किसी के घर के पास तो शायद होगा नहीं, उसके लिए बच्चों को मीलो दूर स्कूल तक जाना होगा। यदि स्कूल पास है तो मोटी-मोटी पुस्तकों से लबालब भरा बस्ते (बैग) कन्धों पर लाद कर निकलना पड़ता है या बसों में घंटो सफ़र करने के बाद, स्कूल के गेट से कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते बेचारा अधमरा सा हो जाता है l अपनी यह दशा बेचारा बच्चा किसे बताए ! अपने उन शिक्षकों को जिसने यह वजन लादकर लाने के लिए मजबूर किया है या उन शिक्षा के ठेकेदारों को जिन्होंने यह मोटी-मोटी पुस्तकों के लिए बाजार सजाकर रखा। बच्चे तो आखिर बच्चे है मजबूरी में बेचारे अपने बस्ते को टांगे, झुकाए कंधो के एक कुली नुमा मुद्रा में चले जाते है। कभी स्कूल से पास से गुजरकर देखिए, इन नन्ही-नन्ही जान के पीठ पर पुस्तकों का वजन देखकर आपको अहसास होगा कि पीठ पर टंगे बस्ते का बोझ उन्हें कितना दुःख देता होगा l

हाय! मासूम बचपन अभी से इतना बोझ ?

अभी तो उसे जिन्दगी के कई बड़े-बड़े बोझ उठाना है। यहाँ बच्चे का बचपन एवं उसके सेहत की बात को ध्यान में रखकर सोचे तो बच्चों का ये हनन किया जाने जैसा है l क्या बच्चा अपनी इस छोटी से उम्र से ही अपने आप को शारीरिक रूप से मजबूत बना रहा है या कमजोर ?

हड्डी रोग विशेषज्ञ भी मानते हैं कि बच्चों के लगातार बस्तों के बोझ को सहन करने से उनकी कमर की हड्डी टेढ़ी होने की आशंका रहती है। अगर बच्चे के स्कूल बैग का वजन बच्चे के वजन से 10 प्रतिशत से अधिक होता है तो काइफोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है। इससे सांस लेने की क्षमता प्रभावित होती है। भारी बैग के कंधे पर टांगने वाली पट्टी अगर पतली है तो कंधों की नसों पर असर पड़ता है। कंधे धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होते हैं और उनमें हर समय दर्द बना रहता है। हड्डी के जोड़ पर असर पड़ता है। प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञों की मानें तो, भारी स्कूल बस्ते (बैग) बच्चों की सेहत पर बुरा प्रभाव डाल सकता है | उन्होंने कहा कि भारी स्कूल बैग से बच्चों की पीठ पर बोझ पड़ता है जिससे उनको पीठ दर्द होना शुरू हो जाता है। इस कारण बच्चों को भविष्य में कई गंभीर बीमारियों का शिकार होना पड़ सकता है। भविष्य उज्ज्वल करने वाली पुस्तकें ही अगर स्कूली बच्चों पर सितम ढाने लगे तो बच्चे उन पर ध्यान कैसे लगा पाएंगे।

“भविष्य उज्ज्वल करने वाली पुस्तकें अगर स्कूली बच्चों पर सितम ढाने लगें तो उन पुस्तकों पर बच्चे का ध्यान कैसे लगेगा। निजी (प्राइवेट) स्कूलों की मनमानी जब से प्राइवेट स्कूलों को अपनी किताबें चुनने का हक मिला है,तभी से निजी स्कूल अधिक मुनाफा कमाने की फिराक में बच्चों का बस्ता भारी करते ही जा रहे हैं।

ध्यान देने योग्य बात है कि सरकारी स्कूल वालों के बस्ते निजी स्कूल वालों के बस्तों से काफी हल्के हैं तथा सरकारी स्कूलों में प्रारंभिक कक्षाओं में भाषा, गणित के अलावा एक या दो पुस्तकें हैं। लेकिन निजी स्कूलों के बस्तों का भार बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे ज्ञान वृद्धि का कोई कारण नहीं है, बल्कि व्यापारिक रुचि ही प्रमुख है।

पुस्तकों के बोझ को देखते हुए एक पैटर्न समझ में आता है कि बस्ता में जितनी पुस्तके, स्कूल की उतनी ही मोटी फीस l यानि मोटी फीस के चक्कर में स्कूल बच्चों के बस्ते (बैग) का बोझ बड़ रहा है | इनमें से अधिकांश सीबीएसई के साथ संबद्ध होने के कारण एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकें लागू तो करते हैं, मगर लगभग हर विषय में निजी प्रकाशकों की कम से कम दो-तीन पुस्तकें और भी खरीदते है। चूंकि अधिकांश माता-पिता आर्थिक रूप से संपन्न ही होते है इसलिए वे बच्चों का भविष्य बनाने के लिए इस बोझ को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। मध्यम या गरीब परिवार अपने आसूं को दबाए मजबूरी के कारण पुस्तकें खरीदने के लिए मजबूर है आखिर उन्हें अधिक से अधिक अंक चाहिए, लेकिन बच्चे पर क्या बीतती है इससे वे चिंतित नहीं होते है।

शिक्षा शास्त्रियों का मानना है कि 4 से 12 साल तक की उम्र के बच्चे के व्यक्तित्व के विकास का स्वर्णिम समय होता है इसलिए इस दौरान रटंत पढ़ाई का बोझ डालने के बजाय सारा जोर उसकी रचनात्मकता एवं सृजनात्मक विकसित करने के लिए दे तो इनकी मानसिक और बौद्धिक क्षमता का विकास हो सकता है और आज के परिपेक्ष में बात करें तो 12 साल की आयु के बच्चों को भारी स्कूली बस्ते की वजह से पीठ दर्द का खतरा पैदा हो गया है।

पहली कक्षा में ही बच्चों को छः पाठ्य पुस्तकें व छः कापियां दे दी जाती हैं | मतलब पांचवीं कक्षा तक के बस्ते का बोझ करीब आठ किलो हो जाता है। बस्ते के बढ़ते बोझ से निजी स्कूलों के बच्चे खेलना भी भूल रहे हैं। व्यक्तित्व की क्षमता के अनुसार पढ़ाई और पाठ्यक्रम का बोझ हो तो ये नित नए आयाम रचेंगे पर बस्ते के शिकंजे में एक बार इनका प्रदर्शन आप अपने मनोरूप करवा लेंगे पर जीने के लिए जी नहीं पाएंगे हमारे अपने नोनिहाल। हमें शैक्षिक मनोवैज्ञानिक नवाचारों के साथ चलना होगा और खुलकर इस विषय पर बात करनी होगी। आखिर ये हमारे अपने परिवार, अपने देश के भविष्य का सवाल है।

उपसंहार

सरकार एवं शिक्षा तंत्र को इस बात को अवश्य संज्ञान में लाना चाहिए कि बस्ते का बोझ कम कर बच्चों को कम संसाधन में बेहतर शिक्षा देकर उनके सर्वांगीण विकास के लिए सक्षम करें। ऐसे में सरकार की पहली प्राथमिकता बच्चों का स्वास्थ्य होना चाहिए, इसके लिए सरकार को निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए अब आगे आना होगा। हमें अपनी शिक्षा को व्यवहारिक बनाना होगा। शिक्षा को केवल किताबों तक सीमित नही रखना होगा तभी हम बच्चों को बचपन को बस्ते के बोझ से बच सकते हैं।


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भारत ने हमेशा शांति की पहल की है। विश्व में जब भी अशांति का वातावरण उत्पन्न हुआ है। भारत कभी भी किसी भी गुट का सदस्य नहीं बना और वह हमेशा निष्पक्ष रहा है। ना ही भारत में किसी ऐसे युद्ध में भाग लिया जो विश्व में अशांति फैलाने के लिए किया गया हो या दूसरे किसी देश या साम्राज्य पर अपना अधिपत्य स्थापित करने के लिए किया गया हो।

भारत ने केवल उन्हीं युद्धों का प्रतिकार किया है, जो भारत भूमि पर दुश्मन देशों ने किए थे। अपनी रक्षा के लिए युद्ध करना परम धर्म होता है। भारत विश्व में शांति स्थापित करने के लिए सभी तरह के प्रयास कर सकता है वह हथियारों की ओर से दूर जाकर विश्व के अनेक देशों को हत्यारों की ओर से दूर रहने के लिए मार्गदर्शन दे सकता है।

भारत का विश्व में जो महत्व है उस महत्व को आधार बनाकर भारत विश्व में शांति स्थापित करने के लिए युद्ध से दूर रहने के प्रयासों की पहल कर सकता है। भारत के जो भी नेता रहे हैं वह सदैव इस तरह के प्रयास करते रहे हैं और भारत की आजादी से लेकर अब तक या प्राचीन भारत के इतिहास से लेकर अब तक हमेशा भारत ने शांति का ही समर्थन किया है।

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सपने

सपने, सपने वे आशा है जो जीवन में कुछ करने के लिए एक प्रेरणा देने का कार्य करते हैं। सपने, वे सपने ही होते हैं, जो मनुष्य के अंदर स्पूर्ति और कर्म करने की शक्ति भरते हैं।

सपने कर्म करने के लिए प्रेरित होने का सबसे सरल उपाय हैं। आप सोच लीजिए यदि आप सपने नहीं देखेंगे तो आपके जीवन में क्या रहेगा, जब आप सपने नहीं देखेंगे तो आप कुछ भी नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि आपके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं होगा। सपने जीवन को एक लक्ष्य प्रदान करते हैं, हालांकि हर किसी के सपने पूरे नहीं हो पाते। ऐसा इसलिए क्योंकि सपने केवल देखने से ही पूरे नहीं होते हैं। सपने पूरे करने के लिए कर्म करना पड़ता है बहुत से व्यक्ति केवल सपने ही देखते रहते हैं कर्म करने के लिए प्रेरित नहीं होते। अगर कर्म करने के लिए प्रेरित होते भी हैं तो अपने मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से घबराकर पीछे हट जाते हैं। कोई भी कार्य आसानी से संभव नहीं होता। किसी भी कार्य को करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। उसी तरह सपनों को पूरा करने के लिए भी परिश्रम करना पड़ता है।

जो लोग परिश्रम एवं संघर्ष करने की सामर्थ रखते हैं, वह अपने सपनों को पूरा कर लेते हैं। जो लोग परिश्रम और संघर्ष करने की सामर्थ नहीं रखते वह केवल सपने ही देखते रह जाते हैं और उनके सपने, सपने ही रह जाते हैं।सपनों को सच्चाई में बदलने के लिए कर्म और परिश्रम की ताकत लगानी पड़ती है, तब जाकर सपने पूरे हो पाते हैं।

सरल अर्थों में संक्षेप में कहा जाए तो सपनों के बिना जिंदगी उदासीन है, सपनों के बिना जिंदगी नीरस है, जिसके जीवन में सपने नहीं, वह कुछ करने के लिए प्रेरित नहीं होगा। यह बात अलग है कि सपने अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही देखने चाहिए और उन्हें पूरा करने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए, लेकिन सपना देखना आवश्यक है। हम अपनी योग्यता एवं सामर्थ्य के अनुसार सपने देख कर उसके अनुसार अपने जीवन के लक्ष्य को पाने का प्रयत्न कर सकते हैं। यदि हम सपने देखेंगे ही नहीं तो अपने जीवन का क्या लक्ष्य निर्धारित करेंगे।

यहाँ सपनों से तात्पर्य सोते समय देखने वाली स्मृतियों से नहीं है, जो हम सोते समय देखते हैं। यहां पर सपने देखने का अर्थ अपने जीवन में भविष्य में कुछ करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करने से है। इसलिए सपने देखते रहना चाहिये क्योंकि यही हमारी आशा का प्रतीक हैं।


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‘हम सब में है मिट्टी’- कथन से कवि का क्या आशय है?

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‘हम सब में है मिट्टी इस कथन’ से कवि का अभिप्राय यह है कि मनुष्य का यह शरीर नश्वर है। हम सभी का शरीर मिट्टी से बना है, जिसे एक दिन मिट्टी में ही मिल जाना है। यानी जो हमारा शरीर है, वह मिट्टी ही है यानी हमारी ये काया मिट्टी की काया है, जो अपना जीवन चक्र पूजा करके मिट्टी में ही मिल जाएगी। इसीलिए इस मिट्टी की काया पर इतना अभिमान नहीं करना चाहिए।

हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हमारा शरीर नश्वर है। हम सदैव इस धरती पर नहीं रहने वाले है। एक ना एक दिन सबको जाना है और मिट्टी में मिल जाना है। इसीलिए हमेशा ऐसे काम करके जाओ जो लोग याद रखें। शरीर को लोग भूल जाएंगे लेकिन उस शरीर द्वारा किए गए अनमोल कार्यों को लोग नहीं भूलेंगे। इसीलिए शरीर पर नहीं अपने कार्यों पर ध्यान दो।


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‘दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है’-आशय स्पष्ट कीजिए।

‘पिटने का डर और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार उनके कलेजे पर फिर रही थी।’ पंक्ति का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि लेखक ने किस का साथ दिया और क्यों? (पाठ-स्मृति)

‘रसीला और रमज़ान की दोस्ती सच्ची थी।’ सिद्ध कीजिए ।

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‘बात अठन्नी की’ कहानी में रसीला और रमज़ान की दोस्ती सच्ची थी ये इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि जब रसीला को अपने गाँव में अपने घर कुछ पैसों भेजने की जरूरत पड़ी तो उसने जब अपने मालिक से कुछ पैसे एडवांस मांगे। लेकिन रसीला के मालिक जगत सिंह ने मना कर दिया। ऐसी स्थिति में रमजान, जो कि उसका मित्र था, उसने रसीला को वह पैसे देकर उसकी मदद की ताकि वह अपने घर पर जरूरी काम हेतु वह पैसे भेज सकें। इस तरह एक सच्चे दोस्त का कर्तव्य निभाते हुए रमजान ने रसीला की मदद कर अपनी सच्ची दोस्ती का सबूत दिया।

एक सच्चा दोस्त ही मुसीबत के समय काम आता है, और रमजान रसीला के काम आया। जब रसीला के मालिक जगत सिंह ने मात्र अठन्नी के हेर-फेर के कारण रसीला को जेल भिजवा दिया, तब रमजान ही था, जिसने इस बात पर अपना दुख एवं विरोध प्रकट किया था। यह बात अलग है वह भी रसीला की तरह एक साधारण चौकीदार ही था। इस कारण वह कुछ कर नहीं सकता था। लेकिन उसने अपने दोस्त के प्रति सहानुभूति और दुख प्रकट कर अपनी सच्ची दोस्ती का सबूत दे दिया था। इन बातों से स्पष्ट होता है कि रसीला एवं रमजान की दोस्ती सच्ची दोस्ती थी।

संदर्भ पाठ
‘बात अठन्नी की’, लेखक – सुदर्शन, कक्षा-10 हिंदी


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वाणिज्य पत्र-व्यवहार क्या है ? वाणिज्य पत्रों की रूपरेखा समझाए ।

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वाणिज्य पत्र-व्यवहार सामान्य पत्र व्यवहार से अलग होता है। व्यापार के क्षेत्र में वाणिज्य से संबंधित कार्यों के लिए किए गए पत्र-व्यवहार को वाणिज्य पत्र-व्यवहार कहते हैं। वाणिज्य पत्र व्यवहार ग्राहक, व्यापारी और विक्रेता के बीच होता है, जो व्यापार के सिलसिले में व्यापार संबंधी किसी कार्य हेतु किया जाता है। वाणिज्य पत्र व्यवहार में ग्राहक द्वारा माल के मूल्य की पूछताछ करना, व्यापारी अथवा और विक्रेता द्वारा माल के मूल्य की जानकारी देना, ग्राहक द्वारा माल की मांग करना, उत्पादक अथवा विक्रेता द्वारा माल का एस्टीमेट बनाकर भेजना, ग्राहक द्वारा माल प्राप्ति की सूचना देना, उसके भुगतान संबंधी सूचना देना, व्यापारी अथवा विक्रेता द्वारा भुगतान प्राप्त संबंधी सूचना देना, माल प्राप्त होने के बाद किसी तरह की कोई समस्या उत्पन्न होने पर ग्राहक द्वारा उत्पादक या विक्रेता को शिकायत भेजना आदि प्रक्रियाएं शामिल हैं।

वाणिज्य पत्र-व्यवहार की सामान्य परिभाषा इस प्रकार है…

वाणिज्य पत्र-व्यवहार व्यापार तथा व्यवसाय के संबंध में ग्राहक और व्यापारी तथा विक्रेता-ग्राहक अथवा व्यापारी अथवा क्रेता और विक्रेता के बीच अथवा विक्रेता तथा व्यापारी के बीच जो पत्र व्यवहार किया जाता है, उसे वाणिज्य पत्र व्यवहार कहते हैं।

वाणिज्य पत्र-व्यवहार का स्वरूप इस प्रकार होता है…
  • यदि कोई व्यापारी विक्रेता पत्र-व्यवहार करता है तो वह अपने संस्थान के नाम से छपे हुए लेटर हेड पर पत्र शीर्ष का उपयोग करते हुए पत्र-व्यवहार करता है। उसके नीचे वह टाइपिंग द्वारा संबंधित विवरण लिखता है। वाणिज्य पत्र व्यवहार में संबोधन का प्रारंभ श्री अथवा सर्वश्री शब्दों से किया जाता है।
  • प्रतिष्ठान के नाम संकेत में व्यापारिक वस्तुओं का संकेत उल्लेखित होता है। उसके बाद प्रेषक का पता आरंभ होता है।
  • व्यवसाय के संकेत के बाद प्रेषक का पता दाहिनी और लिखा जाता है।
  • प्रेषक के पते के नीचे ईमेल, फोन नंबर अथवा फैक्स नंबर आदि जैसे विवरण लिखे होते हैं।
  • उसके नीचे पत्र क्रमांक पत्र संख्या उल्लेखित की जाती है।
  • उसके नीचे पत्र के ठीक सामने और नीचे दिनांक लिखा जाता है।
  • उसके बाद प्रेषित का पता लिखा जाता है। इसका आरंभ ‘सेवा में’ से शुरू किया जाता है और श्री अथवा श्रीमती जैसे आदर सूचक शब्दों के द्वारा प्रस्तुति को संबोधित किया जाता है।
  • उसके बाद प्रतिष्ठान का नाम लिखने के बाद उससे पहले सर्व श्री शब्द लगाया जाता है। उसके बाद प्रेषिती का पूरा पता लिखा जाता है।
  • उसके पश्चात उस विषय एवं संदर्भ लिखे जाते हैं और पत्र का मुख्य मजमून आरंभ किया जाता है।
  • पत्र का कलेवर सामान्यता तीन भागों में विभाजित होता है।
  • प्रथम भाग में सामान्य औपचारिकता वाले विवरण होते हैं।
  • दूसरे भाग में पत्र का मूल और मुख्य उद्देश्य बताया जाता है।
  • तीसरे भाग में पुनः औपचारिक संबोधन का प्रयोग करते हुए पत्र का उचित उत्तर अपेक्षित करने की कामना की जाती है।
  • पत्र की समाप्ति के बाद भवदीय आपका कृपा अभिलाषी, आपका कृपाकांक्षी जैसे जैसे आदर सूचक शब्दों के साथ अपना प्रेषक का नाम लिखा जाता है और प्रेषक के हस्ताक्षर किए जाते हैं।
  • यदि के पत्र के साथ यदि कुछ संलग्न है जैसे चेक, रसीद, सूची, बिल, बीजक आदि तो उसका उल्लेख संलग्न शीर्षक देकर किया जाता है।

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भीषण गर्मी से बेहाल जनजीवन

भीषण गर्मी से सारा जनजीवन बेहाल है। चारों तरफ भीषण गर्मी का प्रकोप है। क्या मनुष्य? क्या पशु-पक्षी? सभी प्राणी इस भीषण गर्मी से प्रकोप से त्रस्त हैं। सभी के हाल बेहाल हैं। सूरज देवता जब आसमान में चमकते हैं तो ऐसा लगता है कि वह बहुत गुस्से में हैं। इसी कारण वह आसमान में आग बरसा रहे हैं, जिसने सभी प्राणियों के तन को झुलसा दिया है।

भीषण गर्मी के इस प्रकोप में आइसक्रीम, शरबत आदि देखकर मन ललचा उठाता है। पानी से प्यार हो जाता है और ऐसा लगता है कि ठंडे पानी में ही दिन-भर मस्ती करते रहो।

भीषण गर्मी के प्रकोप से मानव का तन बिल्कुल त्रस्त हो जाता है। वह दिन में जरा भी कार्य नहीं कर पाता। कड़ी धूप में 5 मिनट चलना दूभर हो जाता है। पूरा शरीर चंद मिनटों में पसीने तर-बतर हो जाता है। भीषण गर्मी में उन श्रमिकों के ऊपर घनघोर अत्याचार हो जाता है, जिन्हें कड़ी धूप में काम करना पड़ता है, क्योंकि उनकी रोजी-रोटी का सवाल है।

झुलसा देने वाली गर्मी के प्रकोप से कब निजात मिलेगी? यह सवाल हर किसी के मन में उमड़ता रहता है। लोगों को बरसात का ही इंतजार होता है कि कब बरसात आए और इस भीषण गर्मी से राहत मिले और लोगों के तन-मन को वर्ष की फुहारें आनंदित कर दें।

सच में गर्मी का प्रकोप बेहद भयंकर होता है। गर्मी के कारण किसी भी कार्य में मन नहीं लगता मन उत्साहित नहीं होता। मानव मन का स्वभाव है कि आसपास के वातावरण का उसके तन और मन पर प्रभाव पड़ता है। जब इतनी भीषण झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती है तो इसका दुष्प्रभाव भी मानव के तन और मन पर पड़ता है, वह उत्साह से कार्य नहीं कर पाता। भीषण गर्मी से प्रकोप से लोगों की कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। सचमुच भीषण गर्मी के प्रकोप जनजीवन बेहाल हो जाता है।


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निबंध

मेरा प्रिय देश भारत

हर व्यक्ति के लिए उसका देश ही उसका प्रिय देश होता है, ठीक उसी प्रकार से भारत मेरा प्रिय देश है । आइए आज हम मेरा प्रिय देश भारत के बारे में विस्तार से जानेगे ।

प्रस्तावना

भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोग अलग-अलग भाषा बोलते हैं और विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय और संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं। इसी वजह से भारत में “विविधता में एकता” का ये आम कथन प्रसिद्ध है। प्राचीन समय से ही यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन और यहूदी एक साथ रहते हैं। यह देश अपने कृषि और खेती के लिये प्रसिद्ध है जो प्राचीन समय से ही इसका आधार रही है । भारत के राष्ट्रीय प्रतीक और उनसे जुड़ा इतिहास

भारत का राष्ट्रीय ध्वज – तिरंगा

22 जुलाई, 1947 को भारतीय संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को अपनाया था। तिरंगे में समान अनुपात में केसरिया, सफेद तथा हरे रंग की क्षैतिज पट्टियाँ होती हैं इसलिए भारत के राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा कहा जाता है । ध्वज की चौड़ाई और लम्बाई का अनुपात क्रमशः 2:3 होता है। इसमें सफेद रंग की पट्टी के बीचों-बीच गहरे नीले रंग का चक्र बना होता है जिसमें 24 तीलियाँ बनी होती हैं। क्या आप जानते हैं कि यह चक्र सारनाथ में स्थित अशोक स्तम्भ से लिया गया है। तिरंगे में केसरिया रंग त्याग और बलिदान का, सफेद रंग सत्य, शांति और पवित्रता का और हर रंग देश की सम्रद्धि का प्रतीक होता है।

भारत का राष्ट्रीय चिन्ह – अशोक स्तम्भ

अशोक स्तंभ भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में बनवाए गए स्तम्भ से लिया गया है। 26 जनवरी 1950 में इसे अंगीकृत किया गया था जब भारत गणराज्य बना । अशोक के स्तंभ शिखर पर देवनागरी लिपी में “सत्यमेव जयते” लिखा है (सच्चाई एकमात्र जीत) जो मुनडका उपनिषद (पवित्र हिन्दू वेद का भाग) से लिया गया है। इस स्तंभ के शिखर पर चार शेर खड़े है जिनका पिछला हिस्सा खंभों से जुड़ा हुआ है । संरचना के सामने इसमें धर्म चक्र (कानून का पहिया) भी है। भारत का प्रतीक शक्ति, हिम्मत, गर्व, और विश्वास को प्रदर्शित करता है। पहिए के हर एक तरफ पर एक अश्व और बैल बने हुए हैं। इसके उपयोग को नियंत्रित और प्रतिबंधित करने का कार्य राज्य प्रतीक की भारतीय धारा, 2005 के तहत किया जाता है।

भारत का राष्ट्रीय गान – जन गण मन

24 जनवरी 1950 में संवैधानिक सभा द्वारा भारत के राष्ट्र गान ‘जनगणमन’ को आधिकारिक रुप से अंगीकृत किया गया था । रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा ये गान लिखा गया था । इसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कलकत्ता सत्र में गाया गया था । सम्पूर्ण गीत या गान को गाने में लगभग 52 सेकंड का समय लगता है हालाँकि इसका लघु संस्करण (पहली और अंतिम पंक्ति) को पूरा करने में केवल 20 सेकंड का समय लगता है ।

भारत का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार – भारत रत्न

ये भारत का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार और सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। भारत रत्न असाधारण कार्य करने वाले व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है। इनमें विज्ञान, कला, साहित्य, खेल और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र सम्मिलित होते हैं। इस पुरस्कार की शुरुआत 2 जनवरी, 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा की गई थी। जो इस पुरस्कार को प्राप्त करता है उसको मैडल दिया जाता है ।

भारत का राष्ट्र गीत – वन्दे मातरम्

1950 में वास्तविक वन्दे मातरम् के शुरुआत के दो छंद को आधिकारिक रुप से भारत के राष्ट्रगीत के रुप में अंगीकृत किया गया था। वास्तविक वन्दे मातरम् में छ: छंद है। इसको बंकिमचन्द्र चैटर्जी द्वारा बंगाली और संस्कृत में 1882 में उनके अपने उपन्यास आनन्दमठ् में लिखा गया था। इस गीत को उन्होंने चिनसुरा में लिखा था । इसे पहली बार सन 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिक संदर्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा गाया गया था ।

भारत का राष्ट्रीय पशु – बाघ

भारत के राष्ट्रीय पशु के रुप में बाघ या रॉयल बंगाल टाइगर को अप्रैल 1973 में घोषित किया गया था । इसके शरीर पर चमकदार पीली पट्टी होती है । यह बड़े आराम से वायुशिफ के जंगलों में दौड़ सकता है और अत्यंत शक्तिशाली, मज़बूती और भारत के गर्व का प्रतीक है । बाघों की अधिकतम उम्र लगभग 20 साल होती है । तेज फुर्ती और शक्ति के कारण बाघ को भारत का राष्ट्रीय पशु माना गया है । इसका जन्तु वैज्ञानिक नाम पैन्थरा टाईग्रिस ।

भारत का राष्ट्रीय फूल – कमल

कमल का वैज्ञानिक नाम नील्यूम्बो न्यूसीफेरा है । इसे भारत के राष्ट्रीय फूल के रुप में अंगीकृत किया गया है |यह फूल भारत के पारंपरिक मूल्यों और सांस्कृतिक गर्व को प्रदर्शित करता है । यह उर्वरता, ज्ञान, समृद्धि, सम्मान, लंबी आयु, अच्छी किस्मत, दिल और दिमाग की सुंदरता को भी दिखाता है । इसका प्रयोग देश भर में धार्मिक अनुष्ठानों आदि के लिये भी किया जाता है ।

भारत का राष्ट्रीय फल – आम

आम का वैज्ञानिक नाम मैनजीफेरा इंडिका है । इसको सभी फलों में राजा का दर्जा प्राप्त है और यह भारत के राष्ट्रीय फल के रुप में अंगीकृत किया गया है ।

भारत का राष्ट्रीय पक्षी – मोर

भारतीय मोर को भारत के राष्ट्रीय पक्षी के तौर पर अंगीकृत किया गया है । यह पक्षी एकता के सजीव रंगों और भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करता है । ये सुन्दरता, गर्व और पवित्रता को भी दिखाता है । भारतीय वन्यजीव (सुरक्षा) की धारा 1972 के तहत संसदीय आदेश पर सुरक्षा प्रदान की गयी है ।

भारत का राष्ट्रीय खेल – हॉकी

हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल तब से माना जाता है जब से भारत ने ओलिंपिक में हॉकी के खेल में लगातार 6 स्वर्ण पदक जीते थे ।

भारत का राष्ट्रीय जलचर – डॉलफिन

गंगा की डॉलफिन को राष्ट्रीय जलचर पशु के रुप में अंगीकृत किया गया है । ये पावन गंगा की शुद्धता को प्रदर्शित करती है क्योंकि ये केवल साफ और शुद्ध पानी में ही जिंदा रह सकती है । इन्हें दुनिया के सबसे पुराने जीवों में से एक माना जाता है । इनको सुरक्षित करने के लिए अभयारण्य क्षेत्रों संरक्षण कार्य शुरु हो चुका है ।

भारत का राष्ट्रीय वृक्ष – वट वृक्ष या बरगद का पेड़

भारत का राष्ट्रीय वृक्ष बरगद का पेड़ को माना गया है । यह एकता और दृढ़ता का प्रतीक है । जिस प्रकार भारत के विभिन्न धर्म व जाति के लोग एक साथ निवास करते हैं उसी प्रकार बरगद के पेड़ की शाखाओं पर छोटे या बड़े जन्तु निवास करते हैं । इस वृक्ष का हिन्दू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व है और इसमें कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं ।

भारत की राष्ट्रीय मुद्रा – रुपया

आधिकारिक रुप से भारत के गणराज्य की करेंसी भारतीय रुपया (ISO code: INR) है । इसके संबंधित मुद्दों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नियंत्रित करता है । भारतीय रुपये को “र” देवनागरी व्यंजन और लेटिन अक्षर “R” से चिन्हित किया गया है । 15 जुलाई 2010 में भारत सरकार द्वारा इसको जारी किया गया था । 8 जुलाई 2011 को रुपये के चिन्हों के साथ भारत में सिक्कों की शुरुआत हुई थी।

भारत की राष्ट्रीय नदी – गंगा

गंगा नदी भारत की सबसे लम्बी और पवित्र नदी है जो कि 2510 कि.मी. के पहाड़ी, घाटी और मैदानी इलाकों तक फैली हुई है । प्राचीन समय से ही हिन्दुओं के लिये गंगा नदी का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व रहा है । इसके पवित्र जल को कई अवसरों पर इस्तेमाल किया जाता है । गंगा की उत्पत्ति, हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर के हिमक्षेत्र में भगीरथी नदी के रुप में हुई है ।

भारत के राष्ट्रपिता – महात्मा गांधी

महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रपिता माना जाता है । सबसे पहले 6 जुलाई 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रडियो स्टेशन से सन्देश प्रसारित करते हुए महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था । 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद, देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने रेडियो पर भारत के लोगों से कहा कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे तभी से महात्मा गाँधी को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है ।

भारत का राष्ट्रीय दिवस – स्वतंत्रता दिवस, गाँधी जयंती और गणतंत्र दिवस

भारत के राष्ट्रीय दिवस के रुप में स्वतंत्रता दिवस, गाँधी जयंती और गणतंत्र दिवस को घोषित किया गया है । 15 अगस्त को हर साल स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1947 में भारतीयों को ब्रिटीश शासन से आजादी मिली थी और 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना संविधान प्राप्त हुआ था इसलिए इस दिन को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाता है । हर साल 2 अक्तूबर को गाँधी जयंती मनायी जाती है क्योंकि इसी दिन गाँधी का जन्म हुआ था ।

भारत की राष्ट्रीय लिपि या आधिकारिक लिपि – देवनागरी

अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखी गई हिन्दी को आधिकारिक भाषा कहा गया है ।

भारत की राजभाषा – हिन्दी

हम आपको बता दें कि भारत की कोई भी राष्ट्रीय भाषा नहीं है । हिन्दी एक राजभाषा है यानी जो भाषा राजकाज अर्थात सरकारी कार्य के लिए उपयोग की जाती है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिन्दी भारत की राजभाषा है। राष्ट्रभाषा का भारतीय संविधान में कोई उल्लेख नहीं है । हालांकि 22 भाषाओं को आधिकारिक दर्जा दिया गया है।

राष्ट्रीय कैलेंडर – शक कैलेंडर

राष्ट्रीय कैलेंडर का दर्जा शक कैलेंडर को प्राप्त है। 1957 में इसे कैलेंडर कमिटी द्वारा बनाया गया था, जिसे भारतीय पंचाग की मदद से तैयार किया गया है । इसमें हिन्दू धार्मिक कैलेंडर के अलावा खगोल डाटा, समय भी लिखित है।

राष्ट्रीय शपथ

राष्ट्रीय शपथ को तेलगु में प्यिदीमर्री वेंकट सुब्बाराव द्वारा 1962 में लिखा गया था। इसे 26 जनवरी 1965 से सभी स्कूलों में निर्धारित रूप से गाये जाने का प्रावधान बनाया गया है।

विविधता में एकता

समाज के लगभग सभी पहलुओं में पूरे देश में मजबूती और संपन्नता का साधन बनता है। अपनी रीति- रिवाज़ और विश्वास का अनुसरण करने के द्वारा सभी धर्मों के लोग अलग तरीकों से पूजा-पाठ करते हैं। ये बुनियादी एकरुपता के अस्तित्व को प्रदर्शित करता है। “विविधता में एकता” विभिन्न असमानताओं की अपनी सोच से परे लोगों के बीच भाईचारे और समरसता की भावना को बढ़ावा देता है।

भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है जो कि विभिन्न धर्मों के लोगों के कारण है । अपने हित और विश्वास के आधार पर विभिन्न जीवन-शैली को अलग-अलग संस्कृति के लोग बढ़ावा देते हैं । यह दुबारा से विभिन्न पेशेवर क्षेत्रों में जैसे संगीत, कला, नाटक, नृत्य (शास्त्रिय, फोक आदि), नाट्यशाला, मूर्तिकला आदि में वृद्धि को बढ़ावा देते हैं । लोगों की आध्यात्मिक परंपरा उन्हें एक-दूसरे के लिये अधिक धर्मनिष्ठ बनाती है ।

सभी भारतीय धार्मिक लेख लोगों की आध्यात्मिक समझ का महान साधन है । लगभग सभी धर्मों में ऋषि, महर्षि, योगी, पुजारी, फादर आदि होते हैं जो अपने धर्मग्रंथों के अनुसार अपनी आध्यात्मिक परंपरा का अनुसरण करते हैं । भारत में हिन्दी मातृ-भाषा है, हालाँकि अलग-अलग धर्म और क्षेत्र (जैसे इंग्लिश, ऊर्दू, संस्कृत, पंजाबी, बंगाली, उड़िया आदि) के लोगों के द्वारा कई दूसरी बोली और भाषाएँ बोली जाती है । हालाँकि सभी महान भारत के नागरिक होने पर गर्व महसूस करते हैं।

भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिये भारत के सभी धर्मों के लोगों के द्वारा चलाए गए स्वतंत्रता आंदोलन को हम कभी नहीं भूल सकते है । भारत में “विविधता में एकता” का स्वतंत्रता के लिये संघर्ष बेहतरीन उदाहरण है । भारत में “विविधता में एकता” सभी को एक कड़ा संदेश देता है कि बिना एकता के कुछ भी नहीं है । प्यार और समरसता के साथ रहना जीवन के वास्तविक सार को उपलब्ध कराता है ।

भारत की “विविधता में एकता” खास है जिसके लिए ये पूरे विश्व में प्रसिद्ध है | ये भारत में बड़े स्तर पर पर्यटन को आकर्षित करता है । एक भारतीय होने के नाते, हम सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और किसी भी कीमत पर इसकी अनोखी विशेषता को कायम रखने की कोशिश करनी है । यहाँ “विविधता में एकता” वास्तविक खुशहाली होने के साथ ही वर्तमान तथा भविष्य की प्रगति के लिए रास्ता है ।

उपसंहार

इस देश पर मुझे और सभी देशवासी को नाज़ है। हम अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं और कई देवी – देवताओं की पूजा करते हैं। फिर भी हम सभी भारतीयों की संभावनाएं वही है। इतनी सादगी और अपनापन इस देश से बेहतर हमें और कहीं नहीं मिलेगा। इन विविधताओं के बावजूद हम सब एक है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक फूलों की माला में, कई प्रकार के फूल होते है, सब के अपने रंग और विशेष सुगंध है लेकिन एक साथ एकाकृत है । विविधता में, हमारे देश की महान एकता बसी हुई है। मेरा प्रिय देश भारत यह वह देश है जो अपनी विविधता, मजबूत एकता, और शांति के लिए विश्वभर में मशहूर है । सभी देशवासियों में देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी है और हमे फख्र है अपने हिन्दुस्तान पर।

मुझे अपने भारतीय होने पर गर्व है । जय हिन्द !


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पर्यावरण दिवस के अवसर पर पौधे लगाते हुए दो छात्रों के मध्य संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

पर्यावरण दिवस के अवसर पर पौधे लगाने के संबंध में दो छात्रों के बीच संवाद

 

मोहित ⦂ अजय, आज तुमने कितने पौधे लगाए?

अजय ⦂ मैंने आज 20 पौधे लगाए।

मोहित ⦂ अच्छा, क्या तुमने 20 पौधे एक ही जगह पर लगाए?

अजय ⦂ नहीं, मैंने हमारे विद्यालय में 10 पौधे लगाए। उसके अलावा मैंने अपनी कॉलोनी के पार्क में 5 पौधे लगाए और 5 पौधे अलग-अलग जगहों पर लगाए।

मोहित ⦂ मैंने भी 25 पौधे लगाए और शहर के अलग-अलग जगहों पर पौधे लगाए।

अजय ⦂ लेकिन हमें पौधे लगाने का यह कार्य केवल आज के दिन तक सीमित नहीं रखना है। आज पर्यावरण के दिवस के उपलक्ष्य में हम पौधे लगा रहे हैं, लेकिन हमें पौधे लगाने का यह कार्य पूरे वर्ष निरंतर करना होगा।

मोहित ⦂ तुम बिल्कुल सच कह रहे हो। हमें केवल आज के दिन खानापूरी के लिए वृक्षारोपण नहीं करना है बल्कि पूरे दिन अलग-अलग जगहों पर निरंतर वृक्षारोपण करते रहना है, तभी हम अपने पर्यावरण के संरक्षण में कुछ योगदान दे सकते हैं।

अजय ⦂ हमें वृक्ष लगाने की आदत बना लेना चाहिए ताकि हम जीवन भर वृक्ष लगाने का पुण्य कार्य कर सकें।

मोहित ⦂ तुम बिल्कुल सच कह रहे हो। जितने अधिक वृक्ष हम लगाएंगे, हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए उतना स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करके जाएंगे।

अजय ⦂ हम सबको वृक्ष लगाने का कार्य निरंतर करते रहना चाहिए।


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क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

मतदान जागरूकता एवं उसके महत्व को ध्यान में रखते हुए अपने मित्र के साथ हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

भीम ने राजा विराट के यहाँ किस नाम से क्या काम किया था?

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भीम ने राजा विराट के यहां ‘वल्लभ’ नाम से रसोईये के रूप में कार्य किया था।

जब पांडव कौरवों द्वारा द्यूत में क्रीड़ा में हार गए तो उन्हें कौरवों की शर्त के अनुसार 12 वर्ष का वनवास तथा 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला। 1 वर्ष के अज्ञातवास की यह शर्त थी कि पांडव इस तरह अज्ञात रूप में रहेंगे कि कोई उन्हें पहचान नहीं पाए। यदि किसी ने उन्हें पहचान लिया तो उन्हें फिर दोबारा से 12 वर्ष का वनवास बिताना पड़ेगा। इसी शर्त के अनुसार पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास बताने के पश्चात 1 वर्ष के अज्ञातवास के लिए अलग-अलग रूप धरे, ताकि कोई भी उन्हें पहचान ना पाए।

पाँचों पांडवों ने द्रौपदी सहित विराटनगर के राजा विराट के यहां शरण ली और अपना असली परिचय नहीं दिया। यहाँ पर भीम ने राजा विराट के यहाँ वल्लभ’ नामक रसोईया का रूप बनाया। भीम खाने-पीने के शौकीन थे और पाक कला में माहिर थे, इसलिए उन्होंने अपना नाम वल्लभ’ बता कर राजा विराट के यहाँ रसोइये की नौकरी कर ली।

युधिष्ठिर ने ब्राह्मण का रूप अपना नाम कंक’ कर लिया और राजा विराट के यहाँ नौकरी करने लगे।

उर्वशी अप्सरा द्वारा एक वर्ष तक नपुंसक होने के श्राप के कारण अर्जुन ने बृहन्नला’ नामक किन्नर रखकर राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य सिखाने लगे।

नकुल ने ग्रांथिक’ नाम रखा और राजा विराट के यहाँ घोड़ों के अस्तबल में नौकरी कर ली।

सहदेव ने तंत्रिपाल’ नाम रखा और राज विराट के यहाँ चरवाहे की नौकरी कर ली।

द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री’ रखा और राजा विराटी की पत्नी की सेविका के रूप में नौकरी कर ली।


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अर्जुन ने युद्ध के लिए शस्त्रहीन श्रीकृष्ण का चुनाव क्यों किया?

द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना क्यों की​?

रानी कर्णावती बाघसिंह से किस युद्ध की बात कर रही हैं?

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रानी कर्णावती बाघ सिंह से गुजरात के शासक बहादुरशाह के साथ युद्ध होने वाले युद्ध के बारे में बात कर रही हैं।

महारानी कर्णावती मेवाड़ की महारानी थी। वह मेवाड़ के राजा महाराणा सांगा की पत्नी थी। महाराणा सांगा की मृत्यु हो चुकी थी और उसके बाद गुजरात का शासक बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाने की फिराक में था, इसीलिए उसने 1533 ईस्वी में चित्तौड़ पर आक्रमण मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया।

महारानी कर्णावती उस समय मेवाड़ की महारानी थी, इसलिए महारानी अपनी सेना से बहादुरी से युद्ध लड़ा, लेकिन उसकी सेना कमजोर पड़ने लगी। तब ऐसी स्थिति में रानी कर्णावती ने उस समय के मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजकर उसे भाई बनाते हुए संधि करने का प्रस्ताव दिया और चित्तौड़ की रक्षा के लिए मदद मांगी। राखी का मूल्य’ कहानी में इसी घटना का वर्णन किया गया है।


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अर्जुन ने युद्ध के लिए शस्त्रहीन श्रीकृष्ण का चुनाव क्यों किया?

अस्पृश्यता को परिभाषित कीजिए? इसके आयाम भी लिखे।

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अस्पृश्यता की परिभाषा एवं अस्पृश्यता के आयाम

अस्पृश्यता से तात्पर्य किसी ऐसे व्यक्ति अथवा वस्तु के संदर्भ में लिया जाता है, जिसको स्पर्श करना वर्जित हो। अस्पृश्यता सामान्यतः उन व्यक्तियों और जातियों के संदर्भ में प्रयुक्त की जाती है, जिन्हें तथाकथित निचली जाति का दर्जा दे दिया गया है और ऐसी जाति से संबंध रखने वाले लोगों के शरीर को छूना अस्पृश्यता माना गया। तथाकथित निचली जातियां जिनका व्यवसाय कार्य मल-मैला उठाना, साफ-सफाई करना, कूड़ा-करकट उठाना, जूते-चप्पल आदि की मरम्मत करना आदि जैसे कार्य हैं।

इस तरह के कार्य करने वाले लोगों को एक विशेष जाति के दायरे में बांध दिया गया है और ऐसी जाति से संबंध रखने वाले लोगों को तथाकथित उच्च जाति वाले लोगों द्वारा न छूना ही अस्पृश्यता माना जाता है। तथाकथित ऊँची जाति वाले लोग इस तरह के काम करने वाले तथाकथित निचली जाति वाले लोगों को हेय दृष्टि से देखते थे। मध्यकालीन भारत में और स्वतंत्र भारत से पूर्व के भारत में अस्पृश्यता की समस्या बड़े विशाल स्तर पर थी। स्वतंत्र भारत के पहले भी यह एक सामाजिक समस्या थी।

भारत के स्वतंत्रता के बाद स्थिति कानून के तहत कुप्रथा को मिटाने के निरंतर प्रयास किए गए हैं और सभी को समान नागरिक दर्जा प्रदान कर जातिगत भेदभाव मिटाने का प्रयास किया गया है। अस्पृश्यता की कुप्रथा तथाकथित उच्च जाति वाले लोगों द्वारा तथाकथित नीची जाति वाले लोगों के साथ सामाजिक भेदभाव का मूल थी। तथाकथित निचली जाति वाले व्यक्ति ऐसा पेशेवर कार्य करते थे जो हेय दृष्टि से देखा जाता रहा। जैसे मैला ढोना, साफ-सफाई करना, कूड़ा-करकट उठाना, मल-मूत्र साफ करना, जूते-चप्पल मरम्मत करना, माँस आदि व्यवसाय करना आदि। इस तरह के व्यवसाय पेशेवर कार्य करने वाले लोगों को समाज में निकली जाति का दर्जा दे दिया गया और उच्च जाति वाले लोगों ने ऐसी कार्य करने वाले लोगों को स्पर्श करने से बचने लगे। इसी को अस्पृश्यता कहा जाता है। अस्पृश्यता के तीन के आयाम हैं…

  • अपवर्जन एवं बहिष्कार
  • अनादर एवं अपमान
  • अधीनता एवं शोषण

अपवर्जन एवं बहिष्कार : अपवर्जन एवं बहिष्काक के अंतर्गत तथाकथित उच्च जाति के लोगों द्वारा निचली जाति के लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया और उनकी बस्तियां आदि समाज से अलग कर दी गईं।

अनादर एवं अपमान : उच्च जाति वाले व्यक्तियों द्वारा तथाकथित निचली जाति के व्यक्तियों का अनादर किया जाता रहा। उच्च जाति के लोग निचली जाति लोगों को हे. दृष्टि से देखते थे और निरंतर उनका अनादर करते थे।

अधीनता एवं शोषण : तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने निचली जाति के लोगों का आस्था के नाम पर निरंतर शोषण किया। उच्च जाति को लोग निचली जाति के लोगों को स्वयं से निम्न मानकर उनको अपने अधीन बनाकर रखते थे और उनसे सेवा कार्य लेते


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अर्जुन ने युद्ध के लिए शस्त्रहीन श्रीकृष्ण का चुनाव क्यों किया?

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अर्जुन ने युद्ध के लिए शस्त्रहीन श्रीकृष्ण का चुनाव इसलिए किया क्योंकि अर्जुन जानते थे कि श्री कृष्ण साक्षात नारायण के अवतार हैं। श्रीकृष्ण अनेक दिव्य शक्तियों से युक्त हैं। अकेले श्रीकृष्ण की कई सेनाओं के बराबर हैं, वह भले ही शस्त्रहीन हैं, लेकिन उनका साथ ही अर्जुन के लिए एक नई ऊर्जा और शक्ति प्रदान करेगा। इसीलिए अर्जुन ने युद्ध के लिए शस्त्रहीन कृष्ण का चुनाव किया। अर्जुन श्रीकृष्ण की शक्तियों से भली-भांति परिचित थे।

यद्यपि श्री कृष्ण ने युद्ध भूमि में शस्त्र न उठाने का संकल्प लिया था। इसके बावजूद भी इसके बावजूद अर्जुन जानते थे कि श्री कृष्ण स्वयं में ही किसी शक्ति पुंज से कम नहीं है। वह शस्त्रहीन और अकेले होने के बावजूद कई सेनाओं के बराबर है। वह जिस पक्ष की तरफ होंगे, उधर विजयश्री निश्चित है। इसीलिए अर्जुन ने शस्त्रगीन श्री कृष्ण का चुनाव किया। श्री कृष्ण और श्री कृष्ण की नारायणी सेना दोनों में से एक चुनने पर अर्जुन ने श्री कृष्ण को चुना।


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1923 में स्वराज पार्टी बनाने के लिए मोतीलाल नेहरू के साथ मिलने वाला कांग्रेस का अन्य नेता कौन था? 1. बी. जी. तिलक 2. चित्तरंजन दास 3. एम. के. गाँधी 4. जी. के. गोखले

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सही विकल्प है

2. चित्तरंजन दास

विस्तृत विवरण :

1923 में स्वराज पार्टी बनाने के लिए मोतीलाल नेहरू के साथ पार्टी की स्थापना चितरंजन दास ने की थी, जो कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता थे। स्वराज पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1923 को मोतीलाल नेहरू और देशबंधु चितरंजन दास ने मिलकर की थी। इस दल की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत की स्वाधीनता पाने के लिए कार्य करना तथा अधिक से अधिक स्व-शासन वाला कार्य करना था। इस पार्टी की स्थापना में जनवरी 1923 में इलाहाबाद में चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू, नरसिंह चिंतामणि केलकर और विट्ठलभाई पटेल ने मिलकर की थी। उस समय इस पार्टी का नाम ‘कांग्रेस-खिलाफत स्वराज पार्टी’ रखा गया था। बाद में इसका नाम स्वराज पार्टी कर दिया गया।

पार्टी का पहला अधिवेशन मार्च 1923 में इलाहाबाद में ही हुआ था। अधिवेशन में अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अनेक तरह के लक्ष्य रखे गए थे। स्वराज पार्टी अधिक सफल नहीं हो पाई। 1925 में चित्तरंजन दास की मृत्यु हो गई और यह संगठन धीरे-धीरे कमजोर पड़ता गया।


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भारत सरकार की कमाई का स्रोत क्या है? ये कैसे होती है?

पुरुषोत्तम का समास विग्रह कीजिए।

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पुरुषोत्तम का समास विग्रह

पुरुषोत्तम : पुरुषों में उत्तम
समास का नाम : तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास का उपभेद : अधिकरण तत्पुरुष समास

स्पष्टीकरण

अधिकरण तत्पुरुष समास वहाँ पर प्रकट होता है, जब 2 पदों के बीच अधिकरण कारक छुपा होता है। यह अधिकरण कारक विभक्ति चिन्ह ‘में’ अथवा ‘पर’ होता है। ऐसे पदों में अधिकरण समास होता है। अधिकरण समास तत्पुरुष समास का एक उपभेद है। ये व्याधिकरण तत्पुरुष समास के 6 उपभेदों में से एक उपभेद है।

तत्पुरुष समास के भी 6 उपभेद होते हैं। अधिकरण तत्पुरुष समास उन्हीं उपभेदों में से एक उपभेद है। ये छः उपभेद इस प्रकार हैं…

  • कर्म तत्पुरुष समास
  • करण तत्पुरुष समास
  • सम्प्रदान तत्पुरुष समास
  • अपादान तत्पुरुष समास
  • सम्बन्ध तत्पुरुष समास
  • अधिकरण तत्पुरुष समास

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‘मारतहू पा परिअ तुम्हारे’-लक्ष्मण ने ऐसा किससे और क्यों कहा?

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‘मारतहू पा परिअ तुम्हारे’ ऐसा लक्ष्मण ने परशुराम से कहा था।

लक्ष्मण ने परशुराम से की बात क्षमा याचना करते हुए ये बात कही। जब सीता स्वयंवर के समय राजा जनक के दरबार में श्री राम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़ने पर परशुराम वहाँ आकर क्रोधित हो गए। तब लक्ष्मण के साथ हुए वाद-विवाद में लक्ष्मण ने परशुराम से क्षमा याचना करते हुए कहा कि देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त तथा गाय पर प्रहार करना या वीरता दिखाना हमारे कुल की मर्यादा नहीं है। इन लोगों पर किसी भी तरह का हिंसा करना पाप कर्म के समान है और इनसे हारना हमारे लिए अपयश के समान है। यदि हम आपके ऊपर किसी तरह का प्रहार करेंगे तो यह उचित नहीं होगा। हमें आपके पैर पड़ना चाहिए। इसलिए हे महामुनि! यदि मैंने कुछ अनुचित कहा हो तो आप धैर्य धारण करके क्षमा प्रदान करें। हम व्यर्थ के लड़ाई झगड़े में नहीं पड़ना चाहते। आप ब्राह्मण हैं, हमारे पूजनीय, सम्मानीय हैं। आपका आदर सत्कार करना हमारा परम धर्म है।

संदर्भ पाठ
(राम लक्ष्मण परशुराम संवाद, कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी क्षितिज)

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वास्कोडिगामा को भारत पहुंचने में किस भारतीय व्यापारी ने सहायता की थी​?

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वास्कोडिगामा को भारत पहुंचने में मदद करने वाले व्यापारी का नाम ‘कानजी भाई’ था।

कानजी भाई एक गुजराती व्यापारी थे, जिन्होंने भारत वास्कोडिगामा को भारत पहुंचने में मदद की थी।

कानजी भाई उस समय एक प्रसिद्ध व्यापारी थे और अक्सर समुद्री यात्राएं करते रहते थे। वह नियमित रूप से समुद्री मार्ग से अफ्रीका की ओर जाते रहते थे। इसी क्रम में उनकी मुलाकात वास्कोडिगामा से हो गई और उन्होंने ही 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा को कालीकट बंदरगाह तक पहुंचने में मदद की थी।

वास्कोडिगामा एक पुर्तगाली नागरिक था वह प्रथम यूरोपियन व्यक्ति था, जिसने भारत की भूमि पर कदम रखा।

वास्कोडिगामा 15वीं शताब्दी में भारत आया था। उसके बाद भारत आता जाता रहा। कानजी भाई ने जिस तरह वास्कोडिगामा की भारत पहुंचने में मदद की, उससे वास्कोडिगामा बेहद खुश हुआ और उसने कानजीभाई को पुर्तगाल आने का निमंत्रण भी दिया था।


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युधिष्ठिर के अनुसार मनुष्य का साथ कौन देता है ?

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युधिष्ठिर के अनुसार ‘धैर्य’ ही मनुष्य का साथ देता है।

युधिष्ठिर के अनुसार धैर्य वह गुण है, जो हर घड़ी में मनुष्य का साथ देता है। धैर्य से तात्पर्य अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करके संयम धारण करना ही धैर्य है। जो लोग बिना सोचे समझे बोल देते हैं, बिना सोचे समझे कुछ भी व्यवहार करते हैं, हर बात में उतावली दिखाते हैं, वह धैर्यवान नहीं होते। ऐसे लोग हमेशा जीवन में कुछ ना कुछ नुकसान उठाते ही रहते हैं। यदि मनुष्य धैर्यवान होता है, तो वह हर विपत्ति संकट का सामना करने में सक्षम होता है और उस पर कोई भी विपत्ति संकट हावी नहीं हो पाता।

जब वनवास के समय पाँचो पांडव वन में भटक रहे थे तो एक जगह प्यास लगने पर पानी की तलाश में एक-एक करके सभी पांडव एक तालाब के किनारे गए और तालाब के यक्ष द्वारा प्रश्न पूछे जाने और उसका उत्तर ना दे पाने के कारण दंड का शिकार होते गए। अंत में जब युधिष्ठिर पहुंचे तो अपने चारों भाइयों को वहां निर्जीव देखकर व्याकुल हो उठे। तब यक्ष ने प्रकट होकर उनसे कहा कि यदि तुम मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर दे दोगे तो तुम्हारे सभी भाई जीवित हो जाएंगे। तब यक्ष ने युधिष्ठिर से ज्ञान संबंधित प्रश्न पूछे थे, उन्हीं प्रश्नों में से एक प्रश्न यह था कि मनुष्य का साथ कौन देता है। तब युधिष्ठिर ने कहा था कि मनुष्य का साथ का धैर्य देता है। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी प्रश्नों का सही उत्तर देकर यक्ष को प्रसन्न कर दिया और यक्ष ने प्रसन्न होकर यक्ष ने चारों पांडवों को जीवित कर दिया।


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कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं’, कवि ने पंक्तियाँ किस भाव में कही हैं?

‘प्रेमाश्रम’ किस प्रकार असहयोग आंदोलन का अंग बन गया?

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‘प्रेमाश्रम’ उपन्यास असहयोग आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया था। यह उपन्यास मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित प्रथम हिंदी उपन्यास था, जिसने अपने प्रकाशित होते ही धूम मचा दी थी। प्रेमाश्रम का प्रकाशन 1922 में हुआ था। उस समय असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था। प्रेमाश्रम में की पृष्ठभूमि भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित थी। इसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम झांकी तथा राम राज्य की स्थापना अधिक जैसी बातें का वर्णन किया गया था। उपन्यास का जो मूल भाव था वह है भारत की स्वतंत्रता पर प्राप्ति पर आधारित था और असहयोग आंदोलन भी अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए किया गया आंदोलन था। इसलिए प्रेमश्रम ने अहयोग आंदोलन में एक प्रेरणा भरने का कार्य किया। उपन्यास के प्रकाशित होते ही उपन्यास की सारी प्रतिया शीघ्र बिक गई और जल्दी ही दूसरी भाषाओं में इसका अनुवाद आ गया था। इस तरह प्रेमाश्रम उपन्यास अपनी कथा-वस्तु के कारण असहयोग आंदोलन का अभिन्न अंग बन गया था।


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प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा क्या है? प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा किससे जुड़ी है?

गांधी जी हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादी क्यों बनना चाहते थे?

‘पूजा के लिए तो दान-दक्षिणा चाहिए’ किंतु किसी मरणासन्न व्यक्ति के जीवन की रक्षा करने में भी ‌हमारा समाज अपनी परंपराओं से नही हटता, क्या आप इसे उचित मानते हैं ? अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार/अभिमत

‘पूजा के लिए तो दान-दक्षिणा चाहिए’ लेकिन किसी मरणासन्न व्यक्ति की रक्षा करने के विषय में भी हमारा समाज अपनी परंपराओं से पीछे नहीं हटता है, हमारे विचार में यह बिल्कुल भी उचित नहीं है।

मानवता की सेवा ही सबसे सच्ची पूजा है। ईश्वर की पूजा करना अच्छी बात है, हमें हमेशा ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। लेकिन जहाँ मानवता की बात आती है, वहाँ पर मानवता को प्राथमिकता देनी चाहिए। ईश्वर यह कभी नहीं कहते कि मनुष्य अपनी मानवता को भूल कर केवल सदैव उसका ही ध्यान करें। यदि समाज कोई परंपरा निभा रहा है तो अच्छी बात है, लेकिन उस परंपरा के रास्ते में मानवता रूपी कोई कर्तव्य सामने आ जाता है तो उसे अपनी मानवता वाले कर्तव्य को पहले निभाना चाहिए।

अपनी परंपरा और ईश्वर की पूजा-पाठ के लिए दान-दक्षिणा आदि मानवता से ऊपर का विषय नहीं है। जहाँ पर परंपरा और मानवता को चुनने की बात आए, वहाँ पर सदैव मानवता को चुनना चाहिए। जहाँ पर ईश्वर पूजा और मानवता की सेवा की बात आए, वहाँ पर सदैव मानवता की सेवा को चलना चाहिए। जो लोग मानवता की सेवा को प्राथमिकता देते हैं, ईश्वर भी उनसे ही प्रसन्न होते हैं। वास्तव में दुखी दीन-दुखियों की सेवा करना ही सच्ची ईश्वर पूजा है।


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पक्षियों को पालना उचित है अथवा नहीं? अपने विचार लिखिए।

नम्रता’ इस गुण के बारे में अपने विचार लिखिए।

प्रतिवेदन किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं?

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प्रतिवेदन की परिभाषा

प्रतिवेदन से तात्पर्य किसी घटना अथवा किसी गतिविधि की क्रमिक जानकारी या विवरण से होता है। जब किसी घटना या गतिविधि के संबंध में एक व्यवस्थित जानकारी प्रस्तुत की जाती है, तो उसे ‘प्रतिवेदन’ कहते हैं।

प्रतिवेदन को अंग्रेजी में ‘रिपोर्ट’ कहा जाता है।

प्रतिवेदन के लिए उस घटना की गहन जांच आवश्यक होती है। यह जांच तथ्यों पर आधारित होती है। प्रतिवेदन को प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति को प्रतिवेदक कहते हैं। प्रतिवेदन लिखते समय तथ्यों और उस घटना की पूरी जानकारी और लेखा-जोखा प्रस्तुत करने के साथ यदि आवश्यक हो तो संबंधित सुझाव भी दिए जाते हैं। यदि प्रतिवेदन किसी प्रश्न के समाधान के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है, तो उन प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर भी दिया जाता है। प्रतिवेदन किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है अथवा व्यक्ति के समूह द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।

प्रतिवेदन तीन प्रकार के होते हैं :

  • व्यक्तिगत प्रतिवेदन
  • संगठनात्मक प्रतिवेदन
  • विवरणात्मक प्रतिवेदन

व्यक्तिगत प्रतिवेदन : जब प्रतिवेदन व्यक्तिगत रूप से लिखा जाता है जो किसी व्यक्ति विशेष के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाता है या किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन पर आधारित होता है तो वह प्रतिवेदन व्यक्तिगत प्रतिवेदन कहलाता है। कोई व्यक्ति जब स्वयं के विषय में प्रतिवेदन लिखता है तो वह प्रतिवेदन डायरी भी बन जाता है।

संगठनात्मक प्रतिवेदन : जो प्रतिवेदन संस्था या संगठन की गतिविधियों के विषय में प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे संगठनात्मक प्रतिवेदन कहते हैं।

विवरणात्मक प्रतिवेदन : जब प्रतिवेदन किसी घटना, समारोह, मेला, इवेंट, रैली आदि के संबंध में लिखा जाता है, तो उस विवरणात्मक प्रतिवेदन कहते हैं।

प्रतिवेदन लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें
  • प्रतिवेदन लिखते समय प्रतिवेदन का शीर्षक प्रतिवेदन के विषय से मेल खाता हो।
  • प्रतिवेदन हमेशा स्पष्ट तथा सरल भाषा में लिखना चाहिए।
  • प्रतिवेदन बहुत अधिक लंबा नहीं लिखना चाहिए और उसमें मुख्य आवश्यक बिंदुओं का उल्लेख करते हुए संक्षिप्त रूप में लिखना चाहिए। प्रतिवेदन को बेवजह लंबा नहीं करना चाहिए।
  • प्रतिवेदन में जो भी तथ्य प्रस्तुत किए जाएं, वह प्रमाणिक हों। प्रतिवेदन लिखते समय संबंधित घटना और तथ्यों की पूरी तरह जांच कर लेनी चाहिए।
  • प्रतिवेदन लिखने के समय यदि उसमें कोई सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं तो उचित सुझाव प्रतिवेदन के अंत में अवश्य देना चाहिए जो कि निष्कर्ष के रूप में हो सकते हैं।
  • प्रतिवेदन प्रथम पुरुष के रूप में प्रयुक्त करते हुए नहीं लिखा जाता है।

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‘दो विद्यालयों के मध्य क्रिकेट मैच हुआ’ इस विषय पर एक प्रतिवेदन तैयार कीजिए​।

विद्यालय में आयोजित खेल कूद प्रतियोगिता पर एक प्रतिवेदन लिखिए।

पीत पत्रकारिता का संबंध किस प्रकार के समाचारों से हैं? A. सनसनीखेज समाचारों से C. अर्थ जगत के समाचारों से B. वैश्विक दैनिक समाचारों से D. फिल्मी दुनिया से संबंधित समाचारों से।

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सही उत्तर है…

A. सनसनीखेज समाचारों से

स्पष्टीकरण

पीत पत्रकारिता से तात्पर्य सनसनीखेज पत्रकारिता से होता है। पीत पत्रकारिता के अंतर्गत सनसनी फैलाने वाले समाचारों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। समाचार पत्रों और न्यूज़ टीवी चैनलों की द्वारा ऐसे समाचारों की प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे समाचारों को बढ़ा चढ़ाकर मसालेदार समाचार के रूप में प्रयोग किया जाता है ताकि जनता अधिक से अधिक उन समाचारों की ओर आकर्षित हो और अखबार की बिक्री बड़े तथा टीवी चैनलों की व्यूवरशिप बढ़े। इस तरह की पत्रकारिता के द्वारा समाचार पत्रों की बिक्री बढ़ाने की प्रवृत्ति सही प्रवृत्ति नहीं माना जाता। एक आदर्श पत्रकारिता में पीत पत्रकारिता को सही नही माना जाता ना ही ये आदर्श पत्रकारिता है।


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प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा क्या है? प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा किससे जुड़ी है?

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प्राकृतिक स्वतंत्रता से तात्पर्य स्वतंत्रता के उस प्रकार से है, जो लोगों को प्राकृतिक रूप से प्रकृति से प्राप्त होती है अर्थात किसी राज्य की स्थापना से पूर्व यानी जब राज्यों की अवधारणा स्थापित हुई, उसकी स्थापना से पूर्व लोगों को जो प्राकृतिक स्वतंत्रता प्राप्त थी, वह ही प्राकृतिक स्वतंत्रता है। सरल शब्दों में नैसर्गिक रूप से आदिम जीवन जीने को प्राकृतिक सुंदरता का दूसरा नाम है। प्राकृतिक स्वतंत्रता यानि स्वतंत्रता की वो अवधारणा जिसमें मानव के कार्यों पर किसी का कोई नियंत्रण स्थापित नहीं हो। वह स्वतंत्र रूप से कुछ भी कार्य करने के लिए स्वतंत्र हो। उस तरह की स्वतंत्रा जो जंगली जानवरों को प्राप्त होती है। अपनी इच्छानुसार वे जो चाहे करते हैं।प्राकृतिक स्वतंत्रता एक तरह के जंगलराज का ही दूसरा नाम है।

प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा ‘जाँ जाक रूसो’ से जुड़ी हुई है। ‘जाँ जाक रूसो’ एक प्रसिद्ध दार्शनिक, लेखक और संगीतकार था। उसने राजनीतिक दर्शन से संबंधित अनेक सिद्धांत तत्कालीन यूरोप में प्रतिपादित किए थे। प्राकृतिक स्वतंत्रता की अवधारणा भी रूसो ने ही प्रतिपादित की थी। जाँ जाक रूसो का जन्म 28 जून 1712 को जिनेवा में हुआ था और उसका निधन 2 जुलाई 1778 को हुआ।


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विचार/अभिमत

पक्षियों को पालना उचित है या नहीं

 

हमारी दृष्टि में पक्षियों को पालना बिल्कुल भी उचित नहीं है। पक्षी स्वच्छंद गगन में विचरण करने के लिए होते हैं। विशाल गगन में उन्मुक्त होकर विचरण करना ही उनका मूल स्वभाव होता है। उन्हें पिंजरे में कैद करके पक्षियों की स्वभाविकता इनकी स्वच्छंदता छीन लेते हैं। पक्षी जब तक स्वतंत्र हैं, उनमें चंचलता है। उनमें उनकी स्वभाविक वृत्ति है। जब वे पिंजरे में कैद हो जाते हैं तो उनकी स्वभाविक चंचलता खत्म हो जाती है।

कैद में रहना कोई भी पसंद नहीं करता। कोई भी प्राणी चाहे वे पशु हो, मनुष्य हो या पक्षी हो कोई कैद में रहना पसंद नही करता। पक्षियों का तो स्वभाव ही दूर-दूर तक विचरण करने का होता है। इसलिए पक्षियों को पालना बिल्कुल भी उचित नहीं है। यदि पक्षियों को पालना भी है तो इस तरह पालना चाहिए के वह स्वतंत्र रह सकें। उन्हें पिंजरे में कैद करते पक्षियों को पालना बिल्कुल भी उचित नहीं है।


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कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं’, कवि ने पंक्तियाँ किस भाव में कही हैं?

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‘कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं।’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि का भाव यह है कि हमें जो आजादी मिली है वह अभी पूर्ण रूप से नहीं मिल पाई है। अभी हमें गुलामी की कुछ जंजीरों को और तोड़ना है। अंग्रेज भले ही हमारे देश से चले गए हों, हम आजाद हो गए हों, लेकिन अभी भी हम द्वारा किए गए उत्पीड़न और अत्याचार के बाद जो दुष्प्रभाव उत्पन्न हुए, उनका प्रभाव बाकी है। अभी हमें उन सब से पार पाना है।

‘वीरेंद्र मिश्र’ द्वारा लिखित कविता ‘हम को आगे आना है’ की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं..

कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं,
अब भी भारत माँ के बिखरे केश हैं,
जिधर नजर जाती, आँसू की भीड़ है-
हम पर तुम पर आँख लगाए देश है!
हम न रुकेंगे आगे गया जमाना है!
हमको, तुमको, सबको आगे आना है!

अर्थात कवि कहते हैं, हमें आजादी तो मिल गई है, लेकिन अभी पूरी तरह आजादी नही मिली है। अंग्रेजों ने भारत माता को जो नुकसान पहुँचाया है, अभी हमें उस नुकसान को भरना है। अंग्रेजों के अत्याचार और अन्याय त्रस्त भारतीयों के आँसुओं को पूछना है। हमारे देश के कर्णधारों पर अभी सारा उत्तरदायित्व है। सारा देश उनकी ओर ही देख रहा है। अभी तो हमें मिलकर अपने देश को आगे ले जाना है। अब हम भारतीय रुकने वाले नही हैं, हमे निरंतर आगे बढ़ते ही जाना है।


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पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “लक्ष्य सिद्धि का मानी कोमल कठिन कहानी।”

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नाना की अचानक तबीयत खराब होने पर मामा को पत्र लिखिए​।

अनौपचारिक पत्र

मामा को पत्र

 

दिनांक : 24 मई 2024

 

आदरणीय मामा जी
सादर चरण स्पर्श

आपने पिताजी को जो पत्र लिखा था, मैंने पढ़ा। पत्र के माध्यम से मुझे नाना जी की खराब तबीयत के बारे में पता चला। नाना जी के खराब स्वास्थ्य के बारे में जानकर बड़ा दुख हुआ।

मामा जी, आप हौसला रखिए और नानाजी की निरंतर देखभाल करते रहिए। मुझे विश्वास है। शीघ्र ही नाना जी की तबीयत अच्छी हो जाएगी। मेरी इस समय परीक्षाएं चल रही है, इसलिए मैं तुरंत मैंने मामा को देखने नहीं आ सकता। इसी कारण पिताजी भी नहीं आ पा रहे हैं। कुछ दिनों बाद मेरी परीक्षाएं समाप्त हो जाएंगी। फिर मैं, माँ-पिताजी सभी लोग नाना जी को देखने आएंगे। जब तक आप मामा जी का ध्यान रखिए।

ईश्वर हम सबके साथ है और नाना जी का स्वास्थ्य शीघ्र अच्छा हो जाएगा। भगवान नाना जी को दीर्घायु प्रदान करें। नाना जी का ध्यान रखने के साथ-साथ आपको नानी जी का भी हौसला बढ़ाते रहना है ताकि वह नाना जी की तबीयत के कारण व्यर्थ का की चिंता ना करें। मैं समझ सकता हूँ, इस कठिन घड़ी में आप पर बेहद दबाव है। ईश्वर हम सबके साथ साथ है। आप हौसला रखो। सब कुछ ठीक हो जाएगा। अब पत्र समाप्त करता हूँ। सभी बड़ों को मेरी तरफ से चरण स्पर्श।

आपका भाँजा
‘अनिमेष’


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गांधी जी हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादी क्यों बनना चाहते थे?

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गांधी जी राजा हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादी इसलिए बनना चाहते थे क्योंकि बचपन में जब उन्होंने राजा हरिश्चंद्र नाटक देखा था तो वह राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता से बेहद प्रभावित हुए थे। उन्होंने राजा हरिश्चंद्र का नाटक अपने बचपन में कई बार देखा। उनके मन पर इस नाटक का गहरा प्रभाव पड़ा। यह नाटक उन्होंने कई बार देखा और राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता से प्रेरित होकर गांधी जी ने सत्य एवं अहिंसा का व्रत करने का पालन करने का प्रण ले लिया। इसीलिए वह राजा हरिश्चंद्र की तरह बनना चाहते थे। राजा हरिश्चंद्र ने सत्य के मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन में जिस तरह की विपत्तियां झेलीं, लेकिन सत्य का साथ नहीं छोड़ा। गांधीजी को उनकी यह सत्यवादिता बेहद प्रेरणादायक लगी। इसीलिए उन्होंने हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादिता का व्रत का पालन करने का प्रण ले लिया और स्वंय को राजा हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादी बनाने की ठानी।


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विचार

नम्रता एक गुण

 

मनुष्य के लिए नम्रता का गुण एक बेहद महत्वपूर्ण गुण है। नम्रता का गुण मनुष्य के चरित्र के लिए एक सकारात्मक कार्य करता है। यह मनुष्य के चरित्र को सकारात्मक रूप में विकसित होने में मदद करता है। जिस मनुष्य के अंदर नम्रता है, उसका कभी किसी से झगड़ा नहीं होता। वो किसी के विषय में बुरा नहीं सोचता और ना ही बुरा कहता है।

ऐसे व्यक्ति को सभी पसंद करते हैं। नम्रता का गुण धारण करने वाले व्यक्ति के मित्रों का दायरा बेहद विशाल होता है। विनम्र व्यक्ति से सब लोग मिलना जुलना पसंद मित्रता करना चाहते हैं। इसलिए नम्रता का गुण व्यक्ति के लिए सकारात्मक पक्ष है। व्यक्ति को स्वभाव से विनम्र होना चाहिए। विनम्रता एक आभूषण है। यह सज्जन पुरुषों का आभूषण है जो व्यक्ति विनम्र है वह सज्जन अवश्य होगा, इस बात में कोई संदेह नहीं। इसलिए नम्रता का गुण सज्जनता की भी पहचान होता है।


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देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है (निबंध)

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निबंध

देशप्रेम दिखावे की वस्तु नहीं है

 

देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है, यदि हम आधुनिक पीढ़ी में देशप्रेम की बात करे तो बड़े ही अफ़सोस की बात हैं कि अपनी फल-फूली राष्ट्रभक्ति की विरासत लिए हमारी पीढ़ी राष्ट्र के नाम पर उदासीन प्रतीत होती है। देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है, पर आज की पीढ़ी इसे एक वस्तु ही समझने लगी है । मात्र कुछ दिनों पन्द्रह अगस्त या छब्बीस जनवरी को ही उनका देश प्रेम जगता है कुछ कार्यक्रमों की आहुति के बाद वह अगले सीजन तक के लिए सुप्त हो जाता है। क्या है यह देशप्रेम ? आइए जानते हैं । 

आधुनिक पीढ़ी का देशप्रेम

आज के समय में धीरे-धीरे खत्म होती जा रही देश प्रेम की यह भावना राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य की अच्छी निशानी नहीं हैं । हमारे युवकों छात्र छात्राओं में वतन पर मर मिटने का जज्बा हमें उत्पन्न करना होगा, तथा इस कार्य में शिक्षण संस्थान एवं हमारे गुरुजन अहम भूमिका निभा सकते हैं।

देशप्रेम का अर्थ

अपने देश, अपनी जन्मभूमि से लगाव रखना देश – प्रेम हैं। मनुष्य जिस भूमि पर जन्म लेता है अपना पेट उसके अन्न से भरकर शारीरिक व मानसिक विकास करता हैं उससे प्रेम करना स्वाभाविक है । जो लोग देश से प्रेम करते हैं वे उन सारे कामों से दूर रहते हैं जो देश की बुनियाद को कमजोर करते हैं चाहे वह जात-पात, ऊँच-नीच, गरीब–अमीर, भाषा, क्षेत्र और दूसरे सारे मामलों में पक्षपात की बात हो या फिर किसी भी देशवासी के स्वाभिमान को चोट अथवा नुकसान पहुंचाने की बात हो ।

देशभक्ति का मतलब केवल दिखावा नहीं है बल्कि हम जहाँ हैं, वहाँ कोई काम ऐसा नहीं करें जो देश के लिए घातक हो । देशभक्त वही कहा जा सकता है जो कि मानवीय मूल्यों और मातृभूमि की सेवा के प्रति समर्पित हो । ऐसा नहीं है तो हम देशभक्त नहीं कहे जा सकते देशभक्ति का सीधा सा मतलब यही है कि जहाँ हम रहते हैं, काम करते हैं वहाँ अपना काम ईमानदारी से पूरा करें, देश को सामने रखें और इस प्रकार गुणवत्ता से काम करें कि देश के लिए काम आए ।

देश-प्रेम में त्याग

अपने देश से प्रेम करने वाला राष्ट्र भक्त अपना सर्वोच्च त्याग करने के लिए तैयार रहता हैं । एक देशभक्त अपने देश के हित के प्रति निःस्वार्थ भाव महसूस करता है । वह अपने देश के हित और कल्याण को सबसे पहले रखता रखते है । देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है, यह हमारा अपना घर है, जिसकी रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। वह बिना सोचे समझे अपने देश के प्रति त्याग करने के लिए तैयार भी हो जाता है । हमें यह विचार करना चाहिए कि हमें देश ने क्या नहीं दिया, जबकि बदलें में हम उसे क्या दे पाए है हमारा योगदान भारत के लिए क्या रहा हैं, अपना पेट भरना और शाम को सोकर अगले दिन कोल्हू के बैल की भांति अपने स्वार्थों में लग जाना तो पशुत्व की निशानी हैं।

एक पवित्र भावना

देश प्रेम एवं भक्ति राष्ट्र पर कीजिए, आपके जाने के बाद दुनिया याद रखेगी । अपने वतन की दीवानगी क्या-क्या नहीं करवाती वतन की खातिर जेल, यातनाएं, फांसी, गोली,यह सब कुछ तो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने किया और आज भी हम उनके सम्मान एवं राष्ट्र प्रेम में सिर झुकाकर नमन करते हैं। एक व्यक्ति के लिए राष्ट्र ही उसका गौरव होता है इसलिए अपने भारतीय होने पर गर्व करिए और इसके लिए कुछ करने का जज्बा व दीवानगी को जीवित रखिए।

देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है बहुत झंडे फहरा लिए, भाषण दे दिए, अब वक्त आ गया है कुछ करने का । देशभक्ति का राग अलापना और दिखावा करना छोड़ें, पाखण्ड और प्रपंचों को तिलांजलि दें और देश के भीतर हमारी अस्मिता को कमजोर करने वाले देशद्रोहियों और भ्रष्ट तत्वों को बेनकाब करें। यही असली देशभक्ति है जो देश को सुरक्षित, संरक्षित और विकसित करने के लिए जरूरी है।

देशभक्ति का मतलब केवल दिखावा नहीं है बल्कि हम जहाँ हैं, वहाँ कोई काम ऐसा नहीं करें जो देश के लिए घातक हो।
देशभक्त वही कहा जा सकता है जो कि मानवीय मूल्यों और मातृभूमि की सेवा के प्रति समर्पित हो । ऐसा नहीं है तो हम देशभक्त नहीं कहे जा सकते। हम अपनी ड्यूटी के प्रति पाबंद रहें, पूरे समय काम करें और हर दिन इतना काम करें कि हमारे जिम्मे काकोई सा काम लम्बित न रहे ।

हमारे संपर्क में आने वाला प्रत्येक देशवासी हमारा अपना है, उसका कामकरना, उसे सुकून देना हमारा फर्ज है। यह हर देशवासी का नैसर्गिक स्वभाव होना चाहिए कि हम अपनेदेश के प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी बनें, उसके काम करें और उसे अहसास दिलाएं कि हर देशवासी आपस में भाई-भाई हैं।

देशप्रेम का दिखावा

एक तरफ हम देशभक्ति और देश के लिए काम करने की बातें करते हैं और दूसरी तरफ हम भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कमीशनबाजी के फेर में लोगों को तंग करते हैं, पैसा न मिलने तक काम लटकाते या बिगाड़ देते हैं, अपना-पराया करते हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद फैलाते हैं। पैसों, जेवरों और हराम के भोग-विलास के संसाधनों और लचीली देहों से शारीरिक सुख पाने के लालच में आतंकवादियों को पनाह देते हैं, ड्रग माफियाओं के एजेंट की तरह काम करते हैं। देश के विभाजन का ताना-बाना बुनते हैं, संस्कृति और सभ्यता का चीरहरण करते हैं, अपने ही आस-पास रहने वाले और अपने पेशे से संबंधित लोगों से ही कुछ पाने की उम्मीद रखते हैं, बेवजह तंग करते हैं, शोषण करते हुए तनाव देते हैं और अपने आपको अधीश्वर मानकर आसुरी भावों का नंगा खेल रचते हैं।

यह सब कुछ हम करते हैं तब हम देशभक्त नहीं बल्कि देशद्रोही हैं जो अपनी देश की जड़ों को ही कमजोर कर रहे हैं । लानत है ऐसा करने वाले उन लोगों को जो मातृभूमि को बेचने के षड़यंत्र लगे हुए हैं । जो भ्रष्ट, कमीशन बाज और रिश्वतखोर है वह देश को भी बेचने में पीछे नहीं रहता ।यह ही लोग हैं जो देश के शत्रु हैं । अरे भाई देश नहीं रहेगा तो हम लोग कहाँ रहेंगे, एक बार फिर किसी के गुलाम हो जाएंगे । इसकी फिक्र। इन बिकाऊ लोगों को नहीं है । वर्तमान समय में देश को आतंकवादियों और हमारे देश के भीतर बैठे भ्रष्ट, बेईमान और कामचोरों को ठिकाने लगाना हर सच्चे देश भक्त का सबसे बड़ा फर्ज है ।

उपसंहार

हम सब को समझना होगा कि देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है, किसी का उसके मूल भूमि के प्रति प्यार उसके देश के प्रति उसका सबसे शुद्धतम रूप है । एक व्यक्ति जो अपने देश के लिए अपने हितों का त्याग करने के लिए तैयार रहता है, हमें उसे सलाम करना चाहिए है । दुनिया के प्रत्येक देश को ऐसी भावना रखने वाले लोगों की अत्यधिक आवश्यकता है । देश के सुधार और विकास के लिए देशभक्ति की भावना आवश्यक है क्योंकि ये देश के लोगों को एक साथ लाने तथा उन्हें प्रेम, हर्ष, के साथ-साथ एक दूसरे की देखभाल करने की खुशी का अनुभव करने में भी मदद करता है ।


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धरती चिर उर्वर कैसे है ?

धरती चिर उर्वर इस प्रकार है कि धरती में सदैव फसलें उगाई जा सकती हैं। धरती पर खेती करके बार-बार फसलें उगाई जाती हैं, काटी जाती हैं फिर उनमें नए बीज बजे बोए जाते हैं, फिर फसल उगाई जाती है यह क्रम सदियों से चलता आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा। इस तरह धरती चिर उर्वर है। अर्थात वह हमेशा के लिए उर्वर है। वह हमेशा हमें फसल के रूप में अपनी उर्वरता देती रहती है, इसीलिए धरती चिर उर्वर है।

धरती के साथ ऐसा नहीं कि उसमें एक बार फसल लगा दी जाए उसके बाद उस की उर्वरता नष्ट हो गई यानी उसमें केवल एक ही बार फसल उगाई जा सके, ऐसा नहीं है। धरती पर अनगिनत बार फसलें उगाई जा सकती हैं, इसीलिए धरती चिर उर्वर है।

कवि ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ अपनी कविता “मिट्टी की महिमा” में धरती और मिट्टी की महिमा का गुणगान करते हैं, वह कह रहे हैं…

भोली मिट्टी की हस्ती क्या आँधी आये तो उड़ जाए,
पानी बरसे तो गल जाए! फसलें उगतीं,
फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है,
सौ बार बने सौ बर मिटे लेकिन धरती अविनश्वर है।

अर्थात इस मिट्टी की महिमा यह है कि आंधी के साथ उड़ जाती है और पानी बरसने के साथ बह जाती है, लेकिन फिर भी धरती में फसलें उगती हैं, कटती हैं। फिर दोबारा उगती हैं, फिर कटती हैं। यानी धरती की उर्वरता बनी रहती है, वह 100 बार बनती है 100 बार मिटती है लेकिन धरती की उर्वरता नष्ट नही होती, वह अनिवश्वर है।


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नारी शिक्षा का महत्व

 

जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारा देश पुरुष प्रधान देश है, और इस पुरुष प्रधान समाज में नारियों को हमेशा से ही नीची नजर से देखा गया है। और केवल पुरुष ही नहीं बल्कि कुछ रूढ़िवादी सोच वाली औरतें भी नारियों को नीची नजर से देखती हैं। समाज की मानसिकता है कि लड़कियों का काम सिर्फ शादी करना, फिर बच्चे पैदा करना, और बच्चों और परिवार की देखभाल करना है।

प्राचीन समय में लड़कियों को शिक्षा सहित हर चीज से वंचित रखा जाता था । आज के आधुनिक युग में भी ग्रामीण क्षेत्रों और दुनिया के बहुत से हिस्सों में लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी है। आज भी बहुत सी बच्चियों की दुनिया सिर्फ शादी, बाल बच्चे और घर के कामों तक ही सीमित है । शिक्षा हमारे जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है । शिक्षा सब के लिए प्राथमिक होनी चाहिए ।

महिलाएं भी हमारे समाज का हिस्सा है, इसलिए शिक्षा पर सब का बराबर का हक है, चाहे फिर वह लड़का हो या लड़की ।स्वतंत्रता के बाद हमारे देश की साक्षरता दर में काफी सुधार आया है, लेकिन फिर भी कुछ क्षेत्रों में अभी भी लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता है। महिला और पुरुष दोनों ही समाज के लिए समान रूप से आवश्यक हैं, वह दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। इसलिए महिलाओं को भी हर क्षेत्र में समान अवसर मिलने चाहिए, चाहे फिर वह शिक्षा हो, नौकरी हो या अन्य कार्य।

शिक्षा मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है। यह हमारी मानसिक, सामाजिक व आर्थिक विकास में मदद करती है, शिक्षा हमारे व्यक्तित्व को ही नहीं बल्कि हमारा चरित्र निर्माण और हमारे विभिन्न कौशलों को भी निखारती हैं, जो कि समाज में रहने के लिए आवश्यक है। इसलिए महिलाओं की शिक्षा पर भी उतना ही जोर देना चाहिए जितना कि पुरुषों की शिक्षा पर दिया जाता है ।

एक माँ को बच्चे की पहली शिक्षक माना जाता है । एक निरक्षर महिला अपने बच्चे की अच्छी देखभाल और उसे अच्छा वातावरण नहीं दे सकती। वह स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं होती है, अर्थात बच्चों को अच्छी परवरिश देने में असफल रहती है। शिक्षा महिलाओं को परिवार प्रबंधन, बच्चों की अच्छी देखभाल उनको अच्छी परवरिश देने में सक्षम बनाती है।

अगर एक महिला शिक्षित होगी तो एक पूरा परिवार शिक्षित कर देती हैं। एक शिक्षित महिला हमें एक बेहतर समाज का निर्माण करने में मदद करेगी। महिलाओं को शिक्षित करना मतलब हमारे देश की आधी आबादी को शिक्षित करना है। शिक्षित महिला जीवन के किसी भी पड़ाव पर किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहती है।

शिक्षा महिलाओं को सशक्त बनाकर उनके आत्मविश्वास को बढ़ाती है और उन्हें आत्मनिर्भर बना कर एक खुशहाल और आरामदायक जीवन जीने में मदद करती है। एक शिक्षित महिला समाज से सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज प्रथा, बाल विवाह, बाल श्रम, लैंगिक पक्षपात, भेदभाव आदि को खत्म करने में भी मदद करेगी । शिक्षित महिलाएं परिवार ही नहीं बल्कि देश के आर्थिक विकास में भी पुरुषों के समान योगदान दे सकती हैं ।

सरकार ने लड़कियों की शिक्षा के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” उनमें से एक है, जिसने बेटियों की शिक्षा प्रोत्साहन में महत्वपूर्ण कार्य किया है। किसी भी देश का विकास महिलाओं की साक्षरता दर पर निर्भर करता है। जिस देश की महिलाएं शिक्षित होती हैं, वह देश अधिक मजबूत और खुशहाल होता है।

बदलते समय के साथ अब लोगों की सोच भी बदल रही है। अब लोग अपनी लड़कियों को भी लड़कों के समान उच्च से उच्च शिक्षा दिला रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अब लड़कियां भी हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं । लेकिन दुःख का विषय है कि कुछ पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लड़कियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता, क्योंकि वे लोग लड़कियों को बोझ समझते हैं । लोगों को जागरूक होना पड़ेगा और अगर वे चाहते हैं के उनकी बेटियां बोझ न बने तो उन्हें अपनी बेटियों को शिक्षित करना चाहिए ताकि वह आत्मनिर्भर बन सकें ।

लड़कियों को शिक्षित करने से ही हमारे देश की साक्षरता दर बढ़ेगी। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा के लिए अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, और यह केवल सरकार की ही नहीं बल्कि हम सब की व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी है कि हम अपनी बच्चियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उनकी शिक्षा पर जोर दे क्योंकि नारियाँ हमारा सम्मान हैं, हमारा भविष्य हैं।


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इंद्रधनुष पर निबंध लिखें।

जल और धरती के बीच संवाद लिखिए।

संवाद

जल और धरती के बीच संवाद

 

धरती ⦂ जल भाई! क्या हाल-चाल हैं कहाँ बहे जा रहे हो?

जल ⦂ मुझे बहुत दूर जाना है। बहना मेरा काम है। मुझे लोगों की प्यास बुझानी है।

धरती ⦂ वह बात तो ठीक है। बहना तुम्हारा काम है और स्थिर रहना मेरा काम। इसीलिए तुम चल हो और मैं अचल। तुम्हारे मजे हैं तुम हर जगह घूमते रहते हो, चंचल बनकर सारे जग में विचरण करते हो। मैं तो बस एक जगह पड़ी रहती हूँ।

जल ⦂ ऐसा ना बोलो। सबका अपना महत्व होता है। मैं भी तुम्हारे अंदर ही आश्रय पाता हूँ। मैं तालाब के रूप में तुम्हारे गोद में ही आश्रय पाता हूँष मैं नदी के रूप में तुम्हारी गोद में ही आश्रय पाता हूँ। भले ही समुंदर के रूप में मैं तुमसे बहुत विशाल हूँ, लेकिन तुम्हारे बिना मेरा कोई महत्व नहीं।

धरती ⦂ यह तुम मेरे मन को बहलाने के लिए बात कह रहे हो।

जल ⦂ यह मन को बहलाने वाली बात नहीं है। ये सत्य है, यही यथार्थ है। तुम नहीं हो तो मेरा भी कोई महत्व नहीं। तुम्हारी गोद में ही प्राणी जन्मते हैं, पलते बढ़ते है। जब प्राणी ही नहीं होंगे तो मुझ जल का क्या महत्व?

धरती ⦂ बात तो तुमने ठीक कही। चलो दर्शन की बातें बहुत हो गईं। यह बताओ तुम कहाँ जा रहे हो?

जल ⦂ मुझे बहते हुए बहुत दूर जाना है। मेरा कोई ठौर-ठिकाना नहीं। कहाँ मैं जाकर रुकूंगा, मुझे खुद पता नहीं होता। मैं तो बस निरंतर बहता रहता हूँ और लोगों की प्यास बुझाता हूँ। खेती में काम आता हूँ, जिससे अन्न उपजता है।अरे हाँ, खेती से ध्यान आया। खेती तो तुम्हारी गोद में ही होती है। तुम ना हो तो खेती कैसे होगी, तब मेरा क्या महत्व, मेरा क्या काम?

धरती ⦂ धन्यवाद शुक्रिया मुझे मेरा महत्व बताने के लिए। यह तुम्हारी दरियादिली है, जो मेरी इतनी तारीफ किए जा रहे हो। महत्व तो तुम्हारा भी कम नहीं। तुम्हारे बिना इस जग में जीवन संभव नहीं है।

जल ⦂ हाँ, हम दोनों का महत्व है और हम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। चलो अब मैं चलता हूँ, फिर कभी मिलेंगे।

धरती ⦂ ठीक है।


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ईमानदारी – एक जीवन शैली

 

ईमानदारी एक जीवन शैली यह आज के समय की सबसे जरूरी आवश्यकता है, क्योंकि ईमानदारी एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए बेहद जरूरी है। ईमानदारी ही एक उत्तम नागरिक बनने के प्रमुख गुणों में से एक गुण है, जो किसी भी देश के नागरिक में होना आवश्यक है ताकि वह देश विकास के पथ पर निरंतर आगे चल सके।

भूमिका

हम सब ने एक कहावत तो हमेशा सुनी होगी कि ईमानदारी एक सर्वश्रेष्ठ नीति है अर्थात ईमानदारी से चलने वाला व्यक्ति जीवन में अवश्य सफल होता है, क्योंकि यह सर्वश्रेष्ठ नीति उसे कोई भी गलत कार्य करने से रोकती है और गलत कार्य करने वाले व्यक्ति के मन में जीवन में कुछ भी गलत नहीं होता। यदि हम सब ईमानदारी को अपनी जीवनशैली बना ले तो फिर हमारा जीवन उन्नति के पथ पर निरंतर अग्रसर हो सकता है। ईमानदारी केवल एक गुण नहीं बल्कि यह मानव का स्वभाव है, मानव का आचरण है। ईमानदारी से ही मानव के व्यक्तित्व का निर्धारण होता है और ईमानदारी से ही व्यक्ति का चरित्र बनता है ।

ईमानदारी क्या है?

ईमानदारी का अगर हम दूसरा नाम ले तो वह है, विश्वास। जो ईमानदार होता है, वह विश्वास करने योग्य जरूर होता है। क्योंकि वह कोई ऐसा कार्य नहीं करता जो किसी के विश्वास को ठेस पहुँचाता हो। ईमानदारी और विश्वास दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। ईमानदार व्यक्ति पर लोग सहज रूप से विश्वास कर लेते हैं, क्योंकि लोगों को मालूम रहता है कि यह व्यक्ति ईमानदार है। इसलिए यह हमारे नुकसान वाला कोई भी कार्य नहीं करेगा और अपने स्वार्थ के लिए जो कार्य अनैतिक हो वह नहीं करेगा, इसीलिए लोग उस पर विश्वास कर लेते हैं।

ईमानदारी की राह में कांटे भी होते हैं, क्योंकि ईमानदार व्यक्ति को जीवन में अनेक तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जो व्यक्ति ईमानदारी का पालन करता है वह भले ही ईमानदारी के पथ पर हमेशा चलता रहता है। ईमानदारी को अपनी आदत बना लेता है तो उसे उसका अच्छा फल अवश्य मिलता है। वो सुकून से अपना जीवन जीता है क्योंकि उसके अंदर कोई अपराध बोध नही होता। ईमानदार व्यक्ति के मन में किसी भी तरह का अपराध नहीं होता। वह किसी का अहित नहीं करता। किसी का नुकसान नहीं करता इसलिए उसके अंदर कोई भी अपराध नहीं होता और वह सकारात्मक जीवन जीता है।

इसके विपरीत बेईमान व्यक्ति के मन में हमेशा एक अपराधबोध रहता है। वह स्वयं से ही कटने लगता लगता है। भले ही बेईमानी से वह अनेक सुख-सुविधायें जुटा ले लेकिन उसकी अंतरात्मा हमेशा धिक्कारती रहती है कि उसने कुछ न कुछ गलत अवश्य किया है। यही अपराधबोध उसे पूरी जीवन मानसिक शांति प्रदान नही करता।

बेईमान व्यक्ति बेईमानी के तरीकों से भौतिक सुख-सुविधा के साधन भले ही जुटा लें, वे सुख में जीवन व्यतीत भले ही कर लें, लेकिन वह अपने शरीर को ही सुख दे पाता है। वह अपने मन को शांति नहीं दे पाता क्योंकि उसके मन में हमेशा ग्लानि रहती है कि उसने कुछ ना कुछ गलत किया है, किसी के अधिकारों का हनन किया है और यही ग्लानि उसे मानसिक शांति नहीं प्रदान करती। जबकि ईमानदार व्यक्ति कभी किसी के साथ गलत नहीं करता। वह केवल उतना ही लेता है जो उसके अधिकार का है, जो नैतिक दृष्टि से सही है। इसलिए वह अपराध मुक्त भाव से जीता है और यही भाव उसे मानसिक शांति प्रदान करता है। ईमानदार व्यक्ति भले ही बहुत अधिक भौतिक सुख-सुविधाएं नहीं जुटा पाता हो, लेकिन मानसिक शांति की उसके पास कोई कमी नहीं होती।

जीवन में मानसिक शांति अधिक महत्वपूर्ण है। बहुत ज्यादा ढेर सारे भौतिक सुख साधन हों, लेकिन मानसिक शांति नहीं हो तो उनका कोई महत्व नहीं होता। जबकि भौतिक सुख-साधनों की कमी हो लेकिन मानसिक शांति हो, संतोष हो तो जीवन अच्छा तरह से जिया जा सकता है। ईमानदार व्यक्ति उत्तम नागरिक बनता है और देश के विकास में अपना योगदान दे सकता है। कोई भी भ्रष्टाचार वाला कार्य नहीं करता। इसी कारण वह देश को नुकसान पहुंचाने वाला भी कोई कार्य नहीं करता। इसलिए जिस देश के नागरिक ईमानदार हो उस देश के विकास को करने से कोई नहीं रोक सकता।

बेईमानी और भ्रष्टाचार ही सारी समस्याओं की मूल जड़ है। यह दोनों कारण किसी के अधिकार का हनन करके दूसरे को आवश्यकता से अधिक प्रदान करने वाले कार्य हैं। इसलिए ईमानदारी का महत्व ऐसी स्थिति में बढ़ जाता है।


इंद्रधनुष पर निबंध लिखें।

निबंध

इंद्रधनुष

इंद्रधनुष, इंद्रधनुष का नाम सुनते ही मन में रंगीन धारियों वाली एक आकृति का ख्याल आ जाता है जो कि हमें आकाश में दिखाई देती है। इंद्रधनुष प्राकृतिक सुंदरता का दूसरा नाम है। यह प्रकृति द्वारा प्रदत्त मन को मोह लेने वाली एक प्राकृतिक सुंदरता है। हम सभी ने अक्सर इंद्रधनुष को अपने जीवन में जरूर देखा होगा। बचपन में आकाश में इंद्रधनुष को देखकर हम सब कितने रोमांचित हो जाते थे।
सात रंगों के इस इंद्रधनुष के बारे में हमने अनेक तरह की कहानियां भी अपनी दादी-नानी से सुनी हैं। कोई इसे भगवान सूरज का धनुष कहता था तो कोई इंद्र का धनुष। क्योंकि इंद्र ही वर्षा के देवता हैं और इंद्रधनुष वर्षा के मौसम मे ही दिखाई देता है। हम बड़े हुए तो हमें इंद्रधनुष बनने के वैज्ञानिक कारणों का भी पता चला। तब हमें पता चला कि इंद्रधनुष वैज्ञानिक रूप से घटी हुई एक प्रकृति घटना के कारण आकाश में बनता है।

यह सात रंगों का एक विशालकाय वृत्तचक्र है, जिसमें 7 रंग होते हैं। हमें यह पता चला कि सूरज की किरणों में ही यह सातों रंग छिपे होते हैं और सूरज की किरणों के पृथ्वी पर आते समय वर्षा और बादलों के कारण ये सातों रंग विभक्त हो जाते हैं और अलग-अलग दिखाई देने लगते हैं, जिसे हम सभी इंद्रधनुष कहते हैं। इंद्रधनुष के सात रंग हैं, लाल, पीला, नारंगी, हरा, नीला, भूरा और जामुनी। सूरज की किरणों में जो हमें सुनहरे रंग की दिखाई देती हैं, तब हमें पता नहीं होता कि इस सुनहरे रंग में सात रंग छुपे हुए हैं। वर्षा की बूंदों, बादलों और सूरज की किरणों की अठखेलियों के कारण हमें सूरज का प्रकाश सात अलग-अलग  रंगों की पट्टी के रूप में दिखाई देते हैं तो आसमान में एक बेहद भव्य एवं सुंदर नजारा दिखाई पड़ता है।

विज्ञान की दृष्टि से ये प्रकाश के परावर्तन के कारण होता है। आसमान में यह सतरंग पट्टी देखकर हम सभी बेहद रोमांचित हो जाते हैं। बारिश के समय इंद्रधनुष के दर्शन अक्सर होते रहते हैं और इसी कारण हम सभी बच्चे बचपन में इंद्रधनुष देखने के लिए बारिश का इंतजार करते थे और जब बारिश के मौसम में हमें इंद्रधनुष दिखाई देता था तो हम बेहद रोमांचित जाते थे और तरह-तरह की कल्पना करने लगते थे।

इंद्रधनुष के इन सात रंगो का अपना महत्व है। इन सात रंगों में जीवन के अनेक रहस्य छुपे हुए हैं। यह मानव के स्वास्थ्य संतुलन के लिए भी अत्यन्त उपयोगी हैं। इंद्रधनुष के यह सातों रंग अलग-अलग बातों के प्रतीक हैं, जो जीवन में हमें एक नई आशा धारण करने की प्रेरणा देते हैं। इंद्रधनुष के रंग इस बात का संदेश देते है कि हमारा जीवन भी नीरस नहीं है बल्कि रंगबिरंगा है। हमें अपने जीवन सूरज की किरणों की तरह एक रंगा दिखाई देता है। लेकिन हमें यह नहीं पता होता इसलिए हमारे जीवन के इसी एक रंग में अनेक छुपे हुए हैं, जैसे कि सूरज की किरण में ही अनेक रंग के होते हैं और समय उचित समय आने पर वह रंग चारों तरफ बिखर जाते हैं। उसी तरह हमारे जीवन में भी मात्र उचित समय आने पर हमारे जीवन के सभी रंग बिखर जाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते रहना चाहिए।

 

 

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आप अपने आपको कक्षा सात की छात्रा मानते हुए विद्यालय में छात्राओं के शौचालय की सफाई करवाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय को प्रार्थना पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

विद्यालय में छात्राओं के शौचालय की सफाई करवाने हेतु प्रधानाचार्य महोदय को प्रार्थना पत्र

दिनांक : 4 फरवरी 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
कलावती बालिका विद्यालय,
आदर्श नगर, भोपाल, मध्य प्रदेश

विषय : शौचालय की सफाई संबंधी प्रार्थना पत्र

 

आदरणीय प्रधानाचार्य सर,

मेरा नाम सविता राणा है। मैं कक्षा 7 में पढ़ती हूँ। मैं विद्यालय हम छात्राओं के लिए बने शौचालय से संबंधित समस्या की ओर आपका ध्यान अवगत कराना चाहती हूँ। हमारे विद्यालय की छात्राओं के शौचालय में बहुत गंदगी है, जिसके कारण हम सभी छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। शौचालय की पर्याप्त सफाई नहीं होती। या तो सफाई कर्मचारी मिलते ही नहीं हैं और कभी मिलते हैं तो वह सुनते नहीं हैं। ना तो शौचालय में पानी आता है और ना ही उसकी नियमित सफाई होती है।

इसलिए मैं सभी छात्राओं की तरफ से आपसे अनुरोध करती हूँ कि आप छात्राओं को होने वाली असुविधा को ध्यान में रखते हुए शौचालय की सफाई के लिए उचित निर्देश देने की कृपा करें, ताकि हम छात्रों को होने वाली असुविधा से हम मुक्ति पा सकें।
आशा है आप छात्रों की परेशानी को ध्यान में रखते हुए तुरंत ही उचित कार्रवाई करेंगे।

धन्यवाद,

आपकी आज्ञाकारी शिष्या,

सविता राणा
अनुक्रमांक – 42 कक्षा – 7
कलावती बालिका विद्यालय
जनता नगर, भोपाल


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अपने पिताजी को अपनी परीक्षा की तैयारी के विषय में पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

परीक्षा के तैयारी के विषय में पिताजी को पत्र

 

दिनांक : 5 मई 2024

आदरणीय पिताजी
चरण स्पर्श

पिताजी, मैं यहाँ पर कुशल पूर्वक हूँ। आपका पत्र प्राप्त हुआ। घर में सब की कुशलता जानकर प्रसन्नता हुई। पिता जी आपने मेरी पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी के विषय में पूछा है। पिताजी, मेरी परीक्षा की पूरी तैयारी हो चुकी है और मैं निरंतर अभ्यास कर रहा हूँ।

मुझे आशा है कि मेरे सारे पेपर अच्छे होंगे। पिताजी, मैंने आपसे वादा किया है कि मैं कम से कम 80% अंक लेकर आऊंगा तो मुझे पूरा विश्वास है कि मैं आपके विश्वास और अपने वादे पर खरा उतरूंगा। परीक्षा खत्म होते ही मैं आपको सूचित कर दूंगा। आप मुझे लेने आ जाना और छुट्टियों में हम सब कहीं बाहर घूमने चलेंगे। शेष बातें अगले पत्र में। आपके पत्र के इंतजार में…

आपका पुत्र
मनीष


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आपने अपना जन्मदिन कैसे मनाया उसके बारे में अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अपने मित्र को “प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना” के लाभ और इस लाभ को कैसे प्राप्त करें? इसकी जानकारी देते हुए एक पत्र हिंदी में लिखें।

औंधाई सीसी सु लखि बिरह-बरनि बिललात । बिचहीं सूखि गुलाब गौ छींटौ छुई न गात ।। अर्थ बताएं।

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औंधाई सीसी सु लखि बिरह-बरनि बिललात ।
बिचहीं सूखि गुलाब गौ छींटौ छुई न गात ।।

अर्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि नायिका के विरह में जल रही नायिका के विरह को शांत करने के लिए उसकी सखियों ने नायिका के शरीर पर गुलाब जल की पूरी शीशी उलट दी, लेकिन नायिका के विरह की आँच इतनी तीव्र थी कि उसकी आँच से गुलाब जल नायिका के शरीर को स्पर्श करने से पहले ही बीच में सूख गया और गुलाब जल का एक छोटा सा छींटा भी विरहिणी यानी नायिका के शरीर को स्पर्श नहीं कर सका।


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‘कलम का सिपाही’ हिंदी साहित्य में  ‘जीवनी विधा’ की एक रचना है।

‘कलम का सिपाही’ मुंशी प्रेमचंद के पुत्र अमृत राय द्वारा रचित मुंशी प्रेमचंद के जीवन पर आधारित जीवनी है।

इस रचना का पूरा नाम है, ‘प्रेमचंद : कलम का सिपाही’।

कलम का सिपाही की रचना अमृत राय ने 1963 में की थी। 1963 में ही उन्हें उनकी इस रचना के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें इस रचना के लिए 1971 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार भी मिला। अमृतराय मुंशी प्रेमचंद के पुत्र थे, जिन्होंने हिंदी में अनेक साहित्य रचनाओं के अलावा अपने पिता मुंशी प्रेमचंद के जीवन पर आधारित ‘प्रेमचंद : कलम का सिपाही’ नामक जीवनी भी लिखी। कलम का सिपाही का प्रकाशन 1963 में हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।


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‘गबन’ उपन्यास मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया सामाजिक पृष्ठभूमि का एक उपन्यास है। ‘गबन’ उपन्यास का नायक ‘रमानाथ’ है। वह इस उपन्यास का सबसे प्रमुख पात्र है। ‘गबन’ उपन्यास के आधार पर रमाकांत का चरित्र-चित्रण इस प्रकार होगा :

  • रमानाथ मुंशी दयानाथ के तीन पुत्रों में सबसे बड़ा है और उसका व्यक्तित्व आकर्षक है। उसका विवाह जालपा नामक युवती से हुआ है। उसकी पत्नी जालपा भी रमानाथ के आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित है।
  • रमानाथ उपन्यास में युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है और लेखक ने उस के माध्यम से युवा वर्ग का ही चरित्र चित्रण किया है। रमानाथ अच्छाई और बुराई के मिश्रण वाला युवा है, जिसमें वह सारी कमजोरियां भी है, जो मानव रूप में सहज रूप से पाई जाती हैं।
  • रमानाथ का व्यक्तित्व व स्वभाव कमजोर है। वह आडंबर में यकीन रखता है तथा कभी-कभी झूठ का भी सहारा ले लेता है। उसे दिखावा तथा फैशन पसंद है। उसके मन में अहंकार भी है। रमानाथ का स्वभाव दुर्बल है और अपनी जिम्मेदारियों को भी समझता नहीं है। उसका अधिक ध्यान घूमने-फिरने में लगा रहता है। वह विलासिता का जीवन जीने का आदी है। नौकरी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होने के बावजूद विलासिता का जीवन जीने की चाह रखता है। अपने दोस्तों से कपड़े लेकर पहनना, उनकी गाड़ियों पर घूमना, अपनी विलासिता की वस्तुओं का दूसरों पर रौब दिखाना, फैशन करना, खेलकूद में रुचि रखना, खर्चा करना आदि गतिविधियों उसे बेहद पसंद हैं।
  • रमानाथ स्वभाव का संकोची व्यक्ति भी है। कोई भी बात स्पष्ट रूप से नहीं कर पाता और अपने मन की बात मन में ही रखता है। अपने घर के बिगड़ते आर्थिक हालत को वह अपनी पत्नी जालपा तक को नहीं बता पाता। इस कारण उसे अपने कार्यालय में गबन जैसे गलत कार्य को करने के लिए विवश होना पड़ता है।
  • रमानाथ एक संकोची स्वभाव का व्यक्ति भी है। वह हालातों से सामना करने की जगह उनके आगे घुटने टेकते का है। वह मुसीबतों से घबराकर भाग जाता है। अपने घर के बिगड़ते हालातों को अपनी पत्नी तक को नहीं बताता और फिर गबन करने के बाद उत्पन्न हुए विषम परिस्थितियों से घबराकर घर से भाग जाता है।
  • रमानाथ शुरु से आलसी स्वभाव का व्यक्ति है, जिसे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने करना भी नही आता है। उसे विलासिता युक्त जीवन जीवन अधिक पसंद है। वह एक आवारा प्रवृत्ति का युवा है, जो अपनी जिम्मेदारियों को भूलकर मौज-मस्ती में लगा रहता है। उसके पिता उसकी इस आदत को पसंद नही करते हैं।
  • रमानाथ में एक अच्छाई ये है कि वह अपनी पत्नी से बेहद प्रेम करता है। वह अपनी अपनी पत्नी की हर इच्छा पूरी करना चाहता है और अपनी पत्नी को हर दृष्टि से खुश रखना चाहता है। इसके लिए वह हर संभव प्रयत्न भी करता है।

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बदलती ऋतुएं जीवन और प्रकृति चक्र में सहायक

 

बदलती ऋतु में हमारे जीवन और प्रकृति चक्र को पूरी तरह प्रभावित करती हैं। यह हमारे जीवन को में व्यवस्था को एक यह हमारे जीवन में एक संतुलन स्थापित करती हैं और हमारे जीवन को व्यवस्थित करती हैं। मनुष्य की आवश्यकताएं और जीवन शैली पूरे वर्ष एक समान नहीं रहती, वह समय-समय पर बदलती रहती हैं। मनुष्य के शरीर और स्वास्थ्य के लिए गर्म और ठंडे दोनों तरह के वातावरण की समय-समय पर आवश्यकता पड़ती है। उसकी इसी आवश्यकता को गर्मी और सर्दी की ऋतुएं पूरा करती हैं। मनुष्य को पानी भी चाहिए उसकी इस आवश्कता को वर्षा ऋतु पूरा करती है।

मनुष्य अपने भोजन के लिए मुख्यतः फसलों पर आश्रित होता है। सभी फसलों की अलग-अलग प्रकृति होती है। कोई फसल किसी एक ऋतु में तैयार होती है तो दूसरी फसल दूसरी ऋतु में तैयार होती है। इस तरह बदलती ऋतुओं के साथ मनुष्य को अनेक प्रकार की फसलें प्राप्त होती है, जिससे वह अपने भोजन में विविधता ला पाता है।

यदि कोई ऋतु पूरे वर्ष भर एक समान रहेगी तो मनुष्य न केवल उसे ऋतु से उकता जाएगा बल्कि यह उसके स्वास्थ्य और जीवन चक्र के लिए भी ठीक नहीं रहेगा। पूरे वर्ष पर यदि वर्षा होती रहे तो सभी का जीवन पूरी तरह अवस्थित हो जाएगा। सारे काम-काज ठप्प हो जाएंगे और खेती भी नहीं हो सकेगी। इसीलिए वर्ष में वर्षा का एक निश्चित समय निर्धारित हुआ है, जिसमें पूरे वर्ष के लिए मनुष्य की आवश्यकता लायक पानी संग्रहित हो जाता है।

इसी प्रकार पूरे वर्ष भर गर्मी पड़ने या पूरे वर्ष भर सर्दी पड़ने से भी असुविधा का ही सामना करना पड़ेगा। यदि पूरे वर्ष भर गर्मी पड़े और बिल्कुल भी वर्षा ना हो तो सूखे और आकाल की ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। यदि पूरे वर्ष पर सर्दी पड़े और ना ही बरसात हो और ना ही गर्मी पड़े तो भी खेती करना कठिन हो जाएगा। गरीबों को भी सर्दी में जीना मुश्किल हो जाएगा।

इस तरह अलग-अलग ऋतु के लिए अलग-अलग समय निर्धारित किया गया है, जिससे प्रकृति अपने चक्र को चलाती रहती है। अलग-अलग ऋतु में अलग-अलग फसले पकती हैं मनुष्य को भी अलग-अलग ऋतुओं में अपने उत्सव और अपनी भावनाओं को प्रकट करने का अवसर मिलता है। यदि ऋतुएं ना बदलती होतीं तो मनुष्य जीवन में तरह-तरह के त्यौहार भी नहीं होते। अधिकतर त्यौहार ऋतुओं से ही संबंधित है, जो मानव जीवन में रस घोलते हैं, और मनुष्य के अपने हर्षोल्लास को प्रकट करने का अवसर प्रदान करते हैं।

अतः ये स्पष्ट कहा जा सकता है कि बदलती ऋतुओं का जीवन और प्रकृति चक्र में बेहद गहरता प्रभाव पड़ता है।


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पर्यावरण पर निबंध

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निबंध

पर्यावरण

 

प्रस्तावना

पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होगा तो मानव जीवन भी सुरक्षित होगा यह संदेश घर–घर पहुंचाया जाता है । पर्यावरण और मनुष्य एक दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात पर्यावरण पर ही मनुष्य पूरी तरह से निर्भर है । विश्व में पर्यावरण की बिगड़ती हालत की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ और इससे जुड़ी संस्थाएं प्रति वर्ष 5 जून को ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाती है । इस दिन पर्यावरण पर पूरे विश्व में गोष्ठियाँ आयोजित की जाती है, जन-जागरण के कार्यक्रम किए जाते हैं और पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के प्रति चिंता व्यक्त की जाती है ।

पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण को विकृत और दूषित करने वाली समस्त विपदाएं हमारे द्वारा ही लाई गई हैं । हम स्वयं प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे हैं, इसी असंतुलन से पर्यावरण की रक्षा हेतु, इसका संरक्षण आवश्यक है । पर्यावरण संरक्षण, कोई आज का मुद्दा नहीं है, वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक आंदोलन चलाए जा रहे हैं-

विश्नोई आंदोलन

यह प्रकृति पूजकों का अहिंसात्मक आंदोलन था । आज से 286 साल पहले सन 1730 में राजस्थान के खेजड़ली गांव में 263 बिश्नोई समुदाय की स्त्री-पुरुषों ने पेड़ों की रक्षा हेतु अपना बलिदान दिया था ।

चिपको आंदोलन

उत्तराखंड के चमोली जिले में सुंदरलाल बहुगुणा चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में यह आंदोलन चलाया गया था । उत्तराखंड सरकार के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों का कटाई की जा रही थी । उनके खिलाफ लोगों ने पेड़ों से चिपककर विरोध जताया था ।

साइलेंट वैली

केरल की साइलेंट वैली या शांति घाटी जो अपनी सघन जैव विविधता हेतु प्रसिद्ध है । सन 1980 में कुंतीपूंझ नदी पर 200 मेगावाट बिजली निर्माण हेतु बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था । लेकिन इस परियोजना से वहां स्थित कई विशिष्ट पेड़-पौधों की प्रजातियां नष्ट हो जाती है । अतः कई समाजसेवी व वैज्ञानिकों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया और अंततः सन‌ 1985 में केरल सरकार ने साइलेंट वैली को राष्ट्रीय आरक्षित वन घोषित कर दिया गया।

जंगल बचाओ आंदोलन

जंगल बचाओ आंदोलन इसकी शुरुआत सन 1980 में बिहार में हुई थी, बाद में उड़ीसा झारखंड तक फैल गया । सन् 1980 में सरकार ने बिहार के जंगलों को, सागोन के पेड़ों में बदलने की योजना पेश की थी । इसी के विरोध में बिहार के आदिवासी कबीले एकजुट हुए और उन्होंने अपने जंगलों को बचाने के लिए आंदोलन चलाया।

पर्यावरण सम्बन्धी जागरूकता

विकासशील देशों की जनसंख्या नीति में परिवर्तन ताकि और नियंत्रित जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सके । घटते प्राकृतिक संसाधनों की समस्या से निपटने के लिए समाज के सभी स्तर पर पर्यावरण संबंधी जागरूकता अनिवार्य है । वैज्ञानिकों ,राजनीतिज्ञों, नियोजकों तथा लोगों को सम्मिलित रूप से पर्यावरण की स्थिति सुधारने के लिए काम करना होगा । जिसके लिए संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है । इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं-

  • विकसित देशों में नियंत्रित उपभोक्तावाद ।
  • ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाना ।
  • विकास की नीतियों का मुख्य ध्यान देसी वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित हो ।
  • विश्व के सभी विकास कार्यक्रमों का सख्त पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन होना चाहिए ।
  • सभी स्तर के शिक्षा में पर्यावरण की शिक्षा एक अनिवार्य विषय होना चाहिए ।
  • व्यापक शिक्षा तथा पर्यावरण जागरूकता के कार्यक्रमों में निवेश के द्वारा निजी क्षेत्र की सहभागिता जरूरी ।
  • सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों की मदद से लोगों को पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में शिक्षित करना ।
  • देश के विभिन्न भागों में पर्यावरण जागरूकता विकसित करने के लिए नियमित सम्मेलनों, संगोष्ठी, टेलीविजन एवं रेडियो पर वार्ताओं का आयोजन करना ।
  • पर्यावरण अनुसंधान के लिए अतिरिक्त फंड की आवश्यकता ।
  • पर्यावरण संरक्षण में मीडिया की भूमिका ।

पर्यावरण की सुरक्षा के उपाय

पर्यावरण संरक्षण मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों को सुधारने की एक प्रक्रिया होती है । जिसके उद्देश्य उन क्रियाकलापों का प्रबंधन होता है जिनकी वजह से पर्यावरण को हानि होती है तथा मानव की जीवन शैली को पर्यावरण की प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप आचरणपरक बनाते है जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता बनी रह सके। कारखानों से निकलने वाले धुएं और पदार्थों का उचित प्रकार से निस्तारण किया जाना चाहिए ।

सभी मिलों, कारखानों तथा व्यावसायिक इलाकों में अभिलंब प्रदूषण नियंत्रण के लिए संयंत्र लगाए जाने चाहिए । प्रदूषण और गंदगी की समस्या का निदान बहुत अधिक आवश्यक है ताकि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा हो सके। कई संयंत्रों के द्वारा धुएं और विषैली गैसों को सीधे आकाश में ही निष्कासित किया जाना चाहिए ।

बड़े नगरों में बसों, कारों, ट्रकों, स्कूटरों के रखरखाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और उनकी नियमित रूप से चेकिंग होना चाहिए। शांतिपूर्ण जीवन के लिए शोरगुल वाली ध्वनि को सीमित और नियंत्रित किया जाना चाहिए । पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकार के साथ-साथ सभी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को अपना पूरा सहयोग देना चाहिए । विषैले और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के निपटने के लिए सख्त कानूनों का प्रावधान होना चाहिए।

कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का कम प्रयोग करना चाहिए। वन प्रबंधन से वनों के क्षेत्रों में विकास करनी चाहिए। विकास योजनाओं को आरंभ करने से पहले पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आंकलन करना चाहिए। मनुष्य को अपने प्रयासों से पर्यावरण की समस्या अधिकतर से घट सकती है।

पर्यावरण का महत्व

पर्यावरण के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है, भले ही आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हो । लेकिन प्रकृति ने जो हमें दिया है, उसकी कोई तुलना नहीं है । इसीलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन नहीं चाहिए । पर्यावरण से हमें स्वच्छ हवा मिलती है। पर्यावरण हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है। पर्यावरण में जैविक, अजैविक, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वस्तु का समावेश होता है।

प्राकृतिक पर्यावरण में पेड़, झाड़ियां, नदी, जल, सूर्य प्रकाश, पशु, हवा आदि शामिल है। जो हवा हम हर पल सांस लेते हैं, पानी जिस के सिवा हम जी नहीं सकते और जो हम अपनी दिनचर्या में इस्तेमाल करते हैं, पेड़ पौधे उनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है । यह सब प्राकृतिक चीजें हैं जो पृथ्वी पर जीवन संभव बनाती हैं । वह पर्यावरण के अंतर्गत ही आती हैं । पेड़-पौधों की हरियाली से मन का तनाव दूर होता है, और दिमाग को शांति मिलती है। पर्यावरण से ही हमारे अनेक प्रकार की बीमारी भी दूर होती है।

पर्यावरण मनुष्य, पशुओं और अन्य जीव चीजों को बढ़ाने और विकास होने में मदद करती है । मनुष्य भी पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है । पर्यावरण का एक घटक होने के कारण हमें भी पर्यावरण का एक संवर्धन करना चाहिए । पर्यावरण पर हमारा यह जीवन बनाए रखने के लिए हमें पर्यावरण की वास्तविकता को बनाए रखना होगा ।

उपसंहार
पर्यावरण के प्रति हम सब को जागरूक होने की आवश्यकता है। पेड़ों की हो रही है अंधाधुंध कटाई पर सरकार द्वारा सख्त कानून बनाना चाहिए। इसके साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ रखना और हमारा कर्तव्य समझना चाहिए, क्योंकि स्वच्छ पर्यावरण में ही रहकर स्वास्थ्य मनुष्य का निर्माण हो सकता है और उसका विकास हो सकता है।

यदि हम शुद्ध वातावरण में जीने की आकांक्षा रखते हैं तो पृथ्वी तथा पर्यावरण को शुद्ध तथा स्वच्छ बनाना होगा, तभी स्वस्थ नागरिक बन सकेंगे और सुखी, शान्त तथा आनंदमय जीवन बिता सकने में समर्थ होंगे।

इस प्रकार शुद्ध पर्यावरण का जीवन में विशेष महत्व है। मानव क्रियाकलापों के कारण पर्यावरण में तेजी से बदलाव आ रहा है । इस बदलाव के अनेक रूप है जैसे – ओजोन क्षरण, वनों की कटाई, अम्ल वर्षा, वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता, फलस्वरूप भू मंडलीय तापमान में वृद्धि ।

पर्यावरण को बचाना हमारा ध्येय हो,
सबके पास इसके लिए समय हो,
पर्यावरण अगर नहीं रहेगा सुरक्षित,
हो जायेगा सब कुछ दूषित।


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प्रदूषण

 

प्रस्तावना

प्रदूषण आज के विश्व की सबसे बड़ी समस्या है। ये केवल भारत या किसी एक देश की समस्य नही बल्कि पूरे विश्व की समस्या है, जो दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। विज्ञान के क्षेत्र में आज हम बहुत ही तेजी से तरक्की कर रहे हैं, आधुनिक विज्ञान ने जहाँ हमारी जीवनशैली को सुविधाओं से युक्त बना दिया है, वहीं इससे हमें पर्यावरण प्रदूषण जैसा भयानक अभिशाप भी मिला है।आज हम मनुष्य ने अपने लाभ के लिए पृथ्वी की प्रदूषित कर दिया है । आज पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, खतरनाक रसायनों के उपयोग ने प्रकृति में असंतुलन पैदा कर दिया है। आज पेड़ों, जंगलों को काट कर पशु-पक्षियों के घरों को नष्ट कर दिया है। समय रहते हुए हमें प्रदूषण को रोकने की ओर यदि ध्यान न दिया गया तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार

वायु प्रदूषण

वातावरण में वायु को प्रदूषित करना वायु प्रदूषण कहलाता है । जहरीली गैस और धुआँ हवा में मिल जाता है और वायु प्रदूषण को जन्म देती है। कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी विभिन्न गैस सांस लेने के लिए अत्यधिक जहरीली होती हैं ।

जल प्रदूषण

जल में अशुद्धता, अपशिष्ट, विषाक्त पदार्थ आदि का निर्वहन जल प्रदूषण कहलाता है। लोग जल निकायों में कचरा, प्लास्टिक आदि फेंकते हैं। परिणामस्वरूप पानी उपयोग के लिए हानिकारक हो जाता है ।

भूमि/मृदा प्रदूषण

अपशिष्ट और अजैव निम्न करणीय सामग्री को मिट्टी में जमा करने से मिट्टी या भूमि प्रदूषण होता है । अजैव निम्नीकरणीय कचरा मिट्टी को अनुपजाऊ बना देता है । मिट्टी में जहरीले पदार्थ की उच्च सांद्रता इसे पौधों और मनुष्यों दोनों के लिए अपर्याप्त बनाती है ।

ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण को प्रदूषित करने में काफी हद तक जिम्मेदार है । हद से ज्यादा शोर किसी को भी पसंद नहीं होता लेकिन कई बार बहुत से लोग अपने मनोरंजन के लिए इस बात की परवाह नहीं करते कि कोई दूसरा व्यक्ति इससे परेशान हो सकता है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि हद से ज्यादा तेज आवाज व्यक्ति की सुनने की क्षमता को धीरे – धीरे बहुत ज्यादा कम कर देता है। इतना ही नहीं एक समय ऐसा भी आता है जब व्यक्ति की सुनने की शक्ति पूरी तरह से खत्म हो जाती है। शोर की वजह से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर तो कोई बुरा असर नहीं होता लेकिन तेज आवाज सहन कर पाना अत्यधिक मुश्किल होता है। ध्वनि प्रदूषण की वजह से इंसान किसी भी काम पर ध्यान नहीं कर पाता और बहुत से कामों में उसे असफलता का मुंह देखना पड़ता है।

पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के उपाय
जिस प्रकार से पर्यावरण में प्रदूषण फैलाने का कार्य मनुष्य कर रहे हैं तो पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए भी इंसान को ही आगे आना होगा। यह हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए प्रयास किए जाएं । पर्यावरण प्रदूषण इस समस्या को कम करने के कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं।

जैसे
 पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोक देना चाहिए । इसके अलावा अपने आसपास वृक्ष जरूर लगाएं।
★ कार पूलिंग करें।
★ जितना ज्यादा हो सके कपड़े और जूट के बने हुए थैलों का इस्तेमाल करें और प्लास्टिक बैगों को ना कहें।
★ पर्यावरण प्रदूषण को लेकर युवाओं में जागरूकता फैलानी चाहिए।
★ अपने आसपास गंदगी और कूड़े के ढेर को इकट्ठा ना होने दें।
★ पेट्रोलियम के साथ-साथ कोयला जैसे उत्पादों का भी इस्तेमाल कम से कम करें ।
★ कारखाने शहर से दूर बनाएं जाने चाहिए जिससे कि उनमें से निकलने वाला धुआं वायु में घुल कर लोगों में बीमारी ना फैला सके ।
★ यातायात के लिए ऐसे वाहनों का इस्तेमाल करना चाहिए जो कम धुआं छोड़ते हों ।
★ नदियों में कचरा ना फेंके ।
★ अपने आस-पास की जगहों को साफ-सुथरा रखें।
★ कीटनाशकों और उर्वरकों का सीमित मात्रा में ही उपयोग करें।
★ काम्पोस्ट का उपयोग कीजिए।
★ प्रकाश का अत्यधिक और जरूरत से ज्यादा उपयोग ना करके।
★ रेडियोएक्टिव पदार्थों के उपयोग को लेकर कठोर नियम बनाएँ।
★ कड़े औद्योगिक नियम-कानून बनाकर प्रदूषण पर रोक लगा सकते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण का भविष्य पर प्रभाव

पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव में भविष्य की कल्पना करना हृदय विदारक है । अगर पर्यावरण काफी हद तक प्रदूषित होगा तो हमें सांस लेने के लिए आक्सीजन किट अपने साथ रखनी होगी । शुद्ध पानी पीने के लिए हमें एक-एक बूंद की भी कीमत चुकानी पड़ेगी । इसके अलावा, मनुष्यों का जीवन काल कम हो जाएगा और वे कई खतरनाक बीमारियों के शिकार हों जाएंगे । पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाएगा और हमें जीने के लिए संघर्ष करना होगा । ग्लोबल वार्मिंग और एसिड रेन का बढ़ता असर इस धरती पर हर जीवन को खत्म कर देगा ।

सबसे अधिक प्रदूषण वाले शहर

एक तरफ जहां विश्व के कई शहरों ने प्रदूषण के स्तर को कम करने में सफलता प्राप्त कर ली है, वही कुछ शहरों में यह स्तर काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। विश्व के सबसे अधिक प्रदूषण वाले शहरों की सूची में कानपुर, दिल्ली, वाराणसी, पटना, पेशावर, कराची, सिजीज़हुआन्ग, हेजे, चेर्नोबिल, बेमेन्डा, बीजिंग और मास्को जैसे शहर शामिल है । इन शहरों में वायु की गुणवत्ता का स्तर काफी खराबहै और इसके साथ ही इन शहरों में जल और भूमि प्रदूषण की समस्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिससे इन शहरों में जीवन स्तर काफी दयनीय हो गया है । यह वह समय है जब लोगों को शहरों का विकास करने के साथ ही प्रदूषण स्तर को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है ।

उपसंहार

बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण किसी देश विशेष की समस्या नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व की समस्या है । आधुनिकरण हमें आरामदायक और आनंददायक जीवन दे रहा है, लेकिन दूसरी ओर, इसका प्रभाव हमारे जीवन के दिनों को सीमित कर रहा है। इसलिए, एक साथ लड़ने और इस समस्या से बाहर निकलने का समय आ गया है। पहले का जीवन आज की तुलना में बहुत बेहतर था। पहले लोगों के पास उन्नत तकनीक नहीं थी, लेकिन उनके पास सांस लेने के लिए शुद्ध हवा और पीने के लिए पानी था । इससे उन्हें लंबे समय तक स्वस्थ रहने में मदद मिलती थी। लेकिन आज एक छोटा बच्चा भी बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण कई बीमारियों की चपेट में है। अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो वह समय दूर नहीं जब हमें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और हमारा जीवन थम जाएगा ।


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निम्नलिखित में से कौन सा शब्द पुर्तगाली शब्द नहीं है— 1. कमीशन 2. कप्तान 3. गिर्जा 4. पादरी

सही विकल्प है

कमीशन

जानें कैसे?

चारों शब्दों में से ‘कमीशन’ शब्द ‘पुर्तगाली’ शब्द नहीं है। ‘कमीशन’ शब्द अंग्रेजी भाषा का मूल शब्द है। बाकी तीनों शब्द कप्तान, गिर्जा, पादरी पुर्तगाली शब्द है। यह शब्द पुर्तगाली भाषा से अंग्रेजी भाषा और फिर अंग्रेजी भाषा से हिंदी भाषा में आए हैं। यह सारे शब्द विदेशज शब्दों की श्रेणी में आते हैं।

पुर्तगाली भाषा के कई प्रमुख शब्दों में गिर्जा, पादरी, चाबी, बिस्कुट, तौलिया हैं। यह सारे शब्द मूल रूप से पुर्तगाली भाषा के शब्द हैं, जो कि अंग्रेजी भाषा में लिए गए और अंग्रेजी भाषा या अन्य दूसरी विदेशी भाषाओं के माध्यम से हिंदी भाषा में आ गए।

विदेशज शब्द वे शब्द होते हैं, जो हिंदी भाषा में भारत की बाहर की विदेशी भाषाओं से ग्रहण किए गए हैं। इन विदेशी भाषाओं में अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी, पुर्तगाली, फ्रांसीसी, जापानी, रूसी आदि भाषाएं हैं।


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पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे, झलमलकर हिम बिन्दु झिले थे, हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।” “लहराता था पानी। ‘हाँ, हाँ यही कहानी।”

वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे,
झलमलकर हिम बिन्दु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे,
लहराता था पानी।
लहराता था पानी। ‘हाँ, हाँ यही कहानी।╞

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रचित कविता “माँ कह एक कहानी” से ली गई हैं। इन पंक्तियों में उस प्रसंग का वर्णन है, जब यशोधरा अपने पुत्र राहुल को उसके पिता सिद्धार्थ के बारे में बताना चाह रही हैं। इस पंक्ति के माध्यम से उस बगीचे की सुंदरता का वर्णन किया जा रहा है।

व्याख्या : बाग बगीचे का सौंदर्य अद्भुत था। बगीचे में चारों तरफ तरह-तरह के रंगों के फूल खिले हुए थे। बगीचे के पौधों की पत्तियों तथा घास पर झिलमिल ओस की बूँदें झिलमिला अद्भुत सौंदर्य दृश्य उत्पन्न कर रही थी। हवा के शीतलझोंकों से वह उसकी बूंदे हिल रही थीं, जिससे सुंदर दृश्य उत्पन्न हो रहा था। हवा के झोंकों से तालाब का पानी मंद मंद रूप से लहरा रहा था। इस लहराते हुए पानी की बात सुनकर राहुल अपनी माँ से बोला, हाँ, मुझे यही कहानी कहो।


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पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “लक्ष्य सिद्धि का मानी कोमल कठिन कहानी।”

पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से, गिरा बिद्ध होकर खर-शर से, हुई पक्ष की हानी।” “हुई पक्ष की हानी। करुणा भरी कहानी।”

पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “लक्ष्य सिद्धि का मानी कोमल कठिन कहानी।”

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लक्ष्य सिद्धि का मानी कोमल कठिन कहानी।

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रचित कविता “माँ, कह एक कहानी” से ली गई हैं। यह पंक्तियां उस समय की हैं, जब यशोधरा अपने पुत्र राहुल को उसके पिता सिद्धार्थ द्वारा घायल राजहंस की रक्षा करने के प्रसंग का वर्णन कर रही हैं।

व्याख्या : राहुल यशोधरा से कहता है कि उसे यानी शिकारी को अपने लक्ष्य सिद्धि यानी अचूक निशाना लगने की सफलता पर इतना अभिमान था। निश्चित यह कहानी कोमल भी है और कठोर भी है।

पूरा पद्यांश इस प्रकार है…

चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया, लक्ष्य सिद्धि का मानी।
लक्ष्य सिद्धि का मानी। कोमल कठिन कहानी।

व्याख्या : सिद्धार्थ ने अचंभित होकर घायल हुए हंस को अपनी गोद में उठा लिया। हंस को ऐसा लगा जैसे उसे कोई नया जन्म प्राप्त हुआ हो। उसी समय उसको घायल करने वाला शिकारी भी वहाँ आ गया। शिकारी को अपने अचूक निशाने पर बेहद घमंड था। वह घमंडपूर्वक सिद्धार्थ से हंस को मांगने लगा। राहुल ने अपनी माँ से यह कहानी सुनी तो राहुल कहने लगा कि जहाँ एक तरफ शिकारी को अपने लक्ष्य सिद्धि अर्थात अचूक निशाने का अभिमान था, वहीं दूसरी तरफ उसके पिता में घायल हंस की रक्षा करने की कोमल संवेदना थी। निश्चित ही ये कहानी कोमलता और कठोरता का समन्वय है।


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गाते थे खग कल-कल स्वर से,
सहसा एक हंस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खर-शर से,
हुई पक्ष की हानी।
हुई पक्ष की हानी। करुणा भरी कहानी।

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा रचित कविता “माँ, कह एक कहानी” से ली गई है। इस कविता में यशोधरा अपने पुत्र राहुल को उनके पिता सिद्धार्थ की कहानी के बारे में बता रही है। यह प्रसंग उस समय का है, जब यशोधरा पुत्र राहुल को उस घटना का वर्णन कर रही हैं जब राहुल के पिता सिद्धार्थ बगीचे में घूम रहे थे, तभी एक घायल उनके पास आकर नीचे गिरा।

व्याख्या : उस सुबह में आकाश में चारों तरफ मधुर-मधुर स्वर में यह चहचहाते हुए पक्षी विचरण कर रहे थे और आकाश का दृश्य बड़ा ही मनमोहक था। तभी अचानक एक हंस घायल अवस्था में ऊपर से नीचे आकर गिरा। हंस का शरीर तीरों से घायल था। एक तीर से उसका एक पंख भी कट गया था। बालक राहुल इस इस घटना को सुनकर बोला, कि हंस का एक पंख कट गया, निश्चय ही ये कहानी करुणा से भरी हुई है।


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आपने अपना जन्मदिन कैसे मनाया उसके बारे में अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र लेखन

मित्र को जन्मदिन मनाने के बारे में लिखते हुए पत्र

 

28 मार्च 2024

 

प्रिय मित्र राज

कल मेरा जन्मदिन था और मैंने अपना जन्मदिन कैसे मनाया, मैं इस बारे में तुम्हें बताना चाहता हूँ। मुझे मालूम है कि तुम जरूरी काम के लिए शहर से बाहर होने के कारण मेरे जन्मदिन पर नहीं आ पाए थे। मैंने तुमको बहुत मिस किया। कल 8 बजे मैंने जन्मदिन के लिए छोटी सी पार्टी रखी थी। तुम्हे छोड़कर लगभग सभी दोस्त जन्मदिन पर आए थे।

8 बजे से सभी दोस्त आना शुरू हो गए। 9 मैंने केक काटा और फिर केक काटने के बाद हम लोग 11 बजे तक हम लोग डीजे पर डांस करते रहे। हम लोगों ने खूब इंजॉय किया। 11 बजे खानपान हुआ और उसके बाद सभी दोस्त मुझे विश करके चले गए। मेरे सभी दोस्त कोई ना कोई उपहार लाए थे। सब के उपहार एक से एक सुंदर थे। तुम्हारा भेजा हुआ उपहार भी मुझे बहुत पसंद आया। मुझे तुम्हारी कमी मुझे खली, लेकिन मुझे उम्मीद थी कि मेरे जन्मदिन पर तुम अवश्य आओगे।

कुछ दिनों बाद तुम्हारा जन्मदिन भी आने वाला है। मैं तुम्हारे जन्मदिन पर जरूर आऊंगा। तुम्हारे जन्मदिन पर हम लोग खूब मस्ती करेंगे और मेरे जन्मदिन पर तुम्हारे न आ पाने की कसर निकाल लेंगे।

तुम्हारा मित्र,
प्रेम


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अपने मित्र को “प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना” के लाभ और इस लाभ को कैसे प्राप्त करें? इसकी जानकारी देते हुए एक पत्र हिंदी में लिखें।

इम्तिहान का बोझ टलने पर होने वाली खुशी के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार लेखन

इम्तिहान का बोझ टलने पर विचार

 

इम्तिहान का बोझ एक विद्यार्थी के लिए कितना बड़ा होता है, यह एक विद्यार्थी ही समझ सकता है। विद्यार्थी का पूरा वर्ष इम्तिहान का बोझ ढोते ही बीता है। उसकी पढ़ाई का मुख्य लक्ष्य इम्तिहान को पास करके उसमें अच्छे अंक प्राप्त करना होता है। इम्तिहान को केंद्र में रखकर ही विद्यार्थी पूरे वर्ष भर अपनी पढ़ाई की तैयारी करता है।

जब इम्तिहान नजदीक होते हैं, उससे कुछ दिनों पहले विद्यार्थी को इतना अधिक मानसिक तनाव और बोझ हो जाता है कि वह इस बोझ के तले दबा हुआ पाता है। जब इम्तिहान खत्म हो जाते हैं, तब उसे जो खुशी मिलती है, जो राहत मिलती है, उसका अनुभव केवल एक विद्यार्थी ही समझ सकता है। मैं पूरे साल भर एक समान पढ़ाई करता हूँ, न कि केवल इम्तिहान के दिनों में ज्यादा पढ़ाई। मेरी सारी तैयारी भी पूरी थी, लेकिन इम्तिहान से एक महीना पहले ही मन पर एक तरह का तनाव और बोझ हो गया था। जैसे-तैसे मैंने अपने सारे पेपर दिए। मेरे सारे पेपर लगभग अच्छे ही हो गए और जिस दिन अंतिम पेपर देकर मैं परीक्षा हॉल से बाहर आया।

ऐसा लग रहा था कि मन से कोई बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। उस समय एक अजीब सी राहत और खुशी का एहसास हो रहा था। अब लग रहा था कुछ दिनों तक मैं बेफिक्र होकर कहीं पर भी घूम सकता हूँ। कॉमिक्स पढ़ सकता हूँ। मूवी देख सकता हूँ। टीवी पर मनपसंद कार्यक्रम देख सकता हूँ। गेम खेल सकता हूँ। पिकनिक पर जा सकता हूँ। किसी घूमने वाली जगह पर जा सकता हूँ। अब सब कुछ करने की आजादी थी, क्योंकि परीक्षा का बोझ अपने सर पर से उतर गया था। हालांकि यही बोझ अगले एक साल बाद फिर सर पर चढ़ जाना है लेकिन तब तक के लिए फिलहाल जो राहत मिली है, उसका आनंद अलग ही था।


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‘गरजा मर्कट काल समाना’ में कौन सा अलंकार है?

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गरजा मर्कट काल समाना

अलंकार : उपमा अलंकार

स्पष्टीकरण

‘गरजा मर्कट काल समाना’ इस पंक्ति में उपमा अलंकार है, क्योंकि इस पंक्ति में मर्कट यानि वानर की तुलना काल से की गई है। उपमा अलंकार में दो व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के बीच आपस तुलना करके उनमें समानता दर्शाई जाती है।

उपमा अलंकार क्या है?

उपमा अलंकार किसी अलंकार का वह भेद है, जहाँ पर किसी काव्य में किसी एक व्यक्ति अथवा वस्तु की तुलना किसी दूसरी व्यक्ति अथवा वस्तु के साथ की जाए अर्थात उपमेय और उपमान के बीच के भेद को मिटाकर वहाँ पर समानता का भाव दर्शाया जाए तो उस पंक्ति में ‘उपमा अलंकार’ प्रकट होता है।


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‘गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है’ पंक्ति में अलंकार है।

तताँरा वामीरो की पहली मुलाक़ात कहाँ हुई थी ? 1. नारियल के झुंड के पास 2. पेड़ के पास 3. समुद्र के पास 3. गाँव के बाहर टीले पर​

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सही विकल्प होगा…

समुद्र के पास

विस्तार से वर्णन

तताँरा वामीरो की मुलाकात समुद्र के पास हुई थी। एक दिन तताँरा दिन भर के अथक परिश्रम करने के बाद समुद्र के किनारे टहल रहा था। सूरज लगभग डूबने को ही था। समुद्र से ठंडी-ठंडी हवाएं आ रही थीं। तताँरा का मन एकदम शांत था। वह अपने विचारों में खोया हुआ समुद्र की रेत पर चला जा रहा था। तभी उसके कानों में गानों का एक मधुर स्वर पड़ा। वह स्वर की दिशा में बढ़ता चला गया, जहाँ उसे वामीरो मधुर गाना गाती हुई दिखाई दी। इस तरह का तताँरा की पहली मुलाकात वामीरो से समुद्र के किनारे हुई थी।

‘तताँरा-वामीरो की कथा’ एक प्रेमी युगल की कथा है, जिसके लेखक लीलाधर मंडलोई हैं। इस कथा में उन्होंने निकोबार द्वीप समूह में तताँरा और वामीरो नामक युवक-युवती के बीच की उपजे प्रेम तथा उनके मिलन ना होने के कारण दोनों के त्यागमयी बलिदान की कथा को प्रस्तुत किया है।


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अब्दुल फजल कौन था? अकबरनामा को उसके महत्वपूर्ण योगदान में से एक क्यों माना जाता है स्पष्ट कीजिए!

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अबुल फजल अकबर के दरबार का एक शाही इतिहासकार था, जिसने अकबर के जीवन पर आधारित ‘अकबरनामा’ नामक कृति का संयोजन किया था।

अबुल फजल का पूरा नाम ‘अबुल फजल इब्न मुबारक’ था, जिसका जन्म 24 जनवरी 1951 ईस्वी में आगरा में हुआ था। वह शीघ्र ही अकबर के दरबार में कर्मचारी बन गया और अपनी योग्यता के कारण जल्दी ही प्रधानमंत्री पद तक जा पहुंचा।

अबुल फजल ने अकबर के जीवन पर आधारित ‘अकबरनामा’ नामक कृति का सृजन किया। यह कृति तीन खंडों में इसी कृति का तीसरा खंड ‘आईने अकबरी’ के नाम से जाना जाता है। ‘आईने अकबरी’ को अकबर के समय का गजट भी कहा जा सकता है, क्योंकि आईने अकबरी में अबुल फजल ने तत्कालीन मुगल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था की बारीक जानकारी प्रस्तुत की है। उसने ‘आईने अकबरी’ में मुगल साम्राज्य का सांख्यिकी सर्वेक्षण को प्रस्तुत किया है तो राजस्व व्यवस्था तथा आर्थिक स्थिति का विवरण दिया है। इसके अलावा उसने खजाने और सिक्कों से संबंधित विवरण भी पेश किया है। आईने अकबरी भी 5 भागों में विभाजित है और उसने हर बात में अलग-अलग विषयों को केंद्र रखकर उनका विस्तृत विवेचन किया है।

अकबरनामा को अबुल फजल के सबसे महत्वपूर्ण योगदान में एक इसलिए माना जाता है क्योंकि यह कृति उसने तत्कालीन मुगल साम्राज्य का बारीकी से विश्लेषण प्रस्तुत किया है जो तत्कालीन मुगल साम्राज्य की दशा का स्पष्ट रूप से वर्णन करता है और हमें उस समय की आर्थिक राजनीतिक एवं सामाजिक जानकारियों का विवरण प्राप्त होता है। इसी कारण अकबरनामा को अबुल फजल के महत्वपूर्ण योगदान में से एक योगदान माना जाता है।


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कविता किसे कहते हैं? विभिन्न विद्वानों के कथनों द्वारा पुष्टि कीजिए।

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कविता से तात्पर्य साहित्य की उस विधा से है, जिसमें लय एवं छंदों के माध्यम से गत्यात्मक रूप में रचना को प्रस्तुत किया जाता है। कविता में भाव तत्व की प्रधानता होती है और इसमें चिंतन अथवा विचारों की जटिलता नहीं होती अर्थात कविता के द्वारा किसी बात को भावात्मक रूप में स्पष्ट करने के साथ-साथ बिंब-विधान भी किया जाता है जो पाठक के मन में स्थायित्व पैदा करता है।
बिंब-विधान एक तरह का शब्द चित्र है जो केवल कविता के माध्यम से ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

सरल शब्दों में कविता की परिभाषा कहें तो ‘मन के भावों को शब्दों के माध्यम से गत्यात्मक रूप में प्रस्तुत करने की कला को कविता कहते हैं।’

विभिन्न विद्वानों द्वारा कविता की परिभाषाएं इस प्रकार हैं…

आचार्य रामचंद्र शुक्ल कविता की परिभाषा करते हुए कहते हैं कि “हृदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।”

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कविता की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि “कविता का लोक प्रचलित अर्थ वह वाक्य है, जिसमें भावावेश हो, कल्पना हो, पद-लालित्य हो तथा प्रयोजन की सीमा समाप्त हो चुकी हों।”

इस तरह अलग विद्वानों ने कविता की अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं, कविता के प्रमुख अवयवों में भाव -पक्ष, कला-पक्ष, भाषा-शैली, छंद, अलंकार तथा रस आदि प्रमुख होते हैं।


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कपड़े धोने का साबुन का विज्ञापन तैयार की कीजिए।

‘जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी’ यह विज्ञापन आप रेडियो के लिए तैयार कीजिए।

तिमंजिला में कौन सा समास है?

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तिमंजिला में समास :

तिमंजिला : तीन मंजिल का समाहार

समास भेद : द्विगु समास

स्पष्टीकरण

तिमंजिला में द्विगु समास इसलिए होगा क्योंकि इसका समास विग्रह करने पर किसी संख्या अभास होता है और पहला किसी संख्या को प्रदर्शित करता है। द्विगु समास में पहला पद एक संख्यावाचक विशेषण की तरह कार्य करता है और दूसरे पद की संख्या को प्रकट करता है।

द्विगु समास

द्विगु समास की परिभाषा के अनुसार जिस समस्त पद का पहला पद अर्थात पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण की तरह कार्य करता हो। अर्थात किसी संख्या को प्रदर्शित करता हो, वहाँ दिगु समास होता है। द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण तथा दूसरा पद प्रधान पद होता है।

जैसे

  • नवरात्रि : नौ रात्रियों का समूह या समाहार
  • सप्ताह : सात दिनों का समूह या समाहार
  • चौराहा : चौराहों का समूह या समाहार
  • अष्टधातु : आठ धातुओं का समूह या समाहार

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निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह करके समास का नाम लिखिए- (क) हथकड़ी (ख) रोगग्रस्त (ग) शताब्दी (घ) त्रिवेणी (ङ) कमलनयन (च) लाभ-हानि (छ) नवग्रह (ज) तुलसीकृत (झ) राजीवलोचन (ञ) बैलगाड़ी (ट) यथासंभव (ठ) घुड़सवार (ड) लंबोदर

गुलाब जामुन कौन सा समास है?

दो मित्र प्रातः काल भ्रमण कर रहे हैं। उनके बीच पेड़-पौधों के बचाव हेतु हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद

पेड़-पौधों के बचाव के संबंध में दो मित्रों के बीच बातचीत

कमल ⦂ विमल! देखो हमारे आसपास हरियाली कितनी कम हो गई है। पेड़-पौधों की संख्या निरंतर घटती जा रही है।

विमल ⦂ हाँ, सही कह रहे हो। मैं पिछले 5 वर्षों से रोज प्रातः काल भ्रमण करने के लिए इस बगीचे और आसपास के क्षेत्र में आता रहता हूँ। पहले यहाँ पर पेड़-पौधों की भरमार थी। अब पेड़-पौधे काफी कम हो गए हैं।

कमल ⦂ यह एक चिंतनीय विषय है। इसी तरह हमारे आसपास की हरियाली कम होती गई तो हमारे पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।

विमल ⦂ हाँ, सही बात है। पेड़ पौधे वातावरण की वायु को शुद्ध करते हैं। यदि पेड़ पौधों की संख्या ऐसे ही कम होती रही तो हमें इस प्रदूषण वाले वातावरण में शुद्ध वायु मिलनी भी दूभर हो जाएगी।

कमल ⦂ हम सभी को इस बारे में तुरंत सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है। हमें अपने क्षेत्र में पेड़-पौधों की निरंतर घटती जा रही संख्या को रोकना होगा और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा ताकि हमारा क्षेत्र हरा-भरा रहे।

विमल ⦂ तुम्हारा यह सुझाव बिल्कुल अच्छा है। हम सबको इस बारे में जरूर कुछ करना चाहिए।

कमल  ⦂ इस रविवार को हम मोहल्ले के सभी गणमान्य  व्यक्तियों को एकत्रित करके इस बारे में एक मीटिंग करते हैं और अधिक से अधिक संख्या में पेड़-पौधे लगाने के लिए वृक्षारोपण का कार्यक्रम आयोजित करने के बारे में कोई निर्णय लेते हैं।

विमल ⦂ यह आइडिया बिल्कुल सही है। मैं आज ही अपने पहचान के कुछ लोगों से इस बारे में बात करता हूँ और रविवार को हम सभी कॉलोनीवासी एक मीटिंग करेंगे।

कमल ⦂ हाँ, मैं भी कुछ लोगों से बात करता हूँ। हमें व्हाट्स ग्रुप के द्वारा रविवार को मीटिंग रखने का प्रस्वाका मैसेज भेजना चाहिए। सब लोगों के रजामंदी मिलने के बाद हम लोग इस संबंध में मीटिंग करेंगे।

विमल ⦂ हाँ ये सही रहेगा। यदि मीटिंग न हो सकी या लोगों हमारे प्रस्ताव पर कोई रुचि नहीं दिखाई तो हम दोनों की पेड़-पौधों के संरक्षण के लिए अकेले जुट जाएंगे।

कमल ⦂ हाँ, बिल्कुल ऐसा ही करेंगे।


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दिन-प्रतिदिन बढ़ती गर्मी को लेकर रोहन और सोहन के बीच संवाद को लिखें।

क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

‘देवों की वाणी’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द क्या होगा?

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देवों की वाणी इस शब्द समूह के लिए एक शब्द इस प्रकार होगा…

देवों की वाणी : देव-वाणी

व्याख्या

‘देवों की वाणी’ इस शब्द समूह के लिए सटीक शब्द ‘देव-वाणी’ होगा देव अर्थात देवताओं द्वारा की जाने वाली वाणी।

प्राचीन काल में पौराणिक काल में देव वाणी बेहद आम थी, जब देवों द्वारा व्यक्त किए गए वचनों को देव-वाणी कहा जाता था। देव से तात्पर्य सभी तरह के देवी देवताओं से हैं। हिंदू धर्म देव-वाणी की अवधारण काफी प्राचीन काल से रही है। सभी तरह के देव-देवी, चाहें वह ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा, काली, इंद्र, वरुण, गणेश आदि के मुख से निकली वाणी ही देव वाणी है।

संबंधित अनेक शब्दों के लिए एक शब्द के कुछ और उदाहरण

आकाश से उत्पन्न होने वाली वाणी : आकाशवाणी
जिस वाणी में मधुरता यानि मिठास हो : मधुरवाणी
जिस वाणी में अमृत हो : अमृतवाणी

 


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इन शब्दों के लिए अनेक शब्दों के लिए एक शब्द बताइए। ‘जो विश्वास न करता हो’ ‘जो सब पर विश्वास करता हो’ जिसके पास बहुत साधन हो’

रैंचिंग खेती से क्या तात्पर्य है?

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रैंचिंग खेती (Ranching Farming)

रैंचिंग खेती से तात्पर्य उस खेती से होता है, जिसमें भूमि की जुताई, भूमि की बुवाई अथवा गुड़ाई इत्यादि नहीं की जाती है। इस तरह की खेती के अंतर्गत फसलों का उत्पादन नहीं किया जाता। रैंचिग खेती में प्राकृतिक वनस्पति उगायी जाती है, जो कि स्वभाविक रूप से अपने-आप उगती है। इस खेती में उगी गई वनस्पति को तरह-तरह के पालतू पशुओं जैसे भेड़, बकरी, गाय, भैंस आदि को चराया जाता है। इस तरह की खेती उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ पर पशुपालन अधिक होता है, और बड़ी मात्रा में पशुओं के लिए चारे की आवश्यकता होती है।

इस खेती का मुख्य उद्देश्य पशुओं के लिए चारागाह बनाना है अर्थात शाकाहारी पशुओं के लिए खाने योग्य पर्याप्त वनस्पति उपलब्ध रहे, इसलिए ‘रैंचिंग खेती’ की जाती है। इस खेती के अंतर्गत भूखंड को प्राकृतिक वनस्पतियों को उगने के लिए छोड़ दिया जाता है, जो पशुओं के चारे के काम आती है।

इस तरह की खेती भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के अलावा तिब्बत के पर्वतीय और पठारी क्षेत्रों में की जाती है, तथा विश्व के अन्य पर्वतीय और पठारीय क्षेत्रों में की जाती है।


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वर्षा जल संग्रहण के तीन लाभ लिखिए।

‘यात्रा जिसे मैं भूल नहीं सकता’ विषय पर अनुच्छेद लिखिए।​

अनुच्छेद

यात्रा जिसे मैं भूल नहीं सकता (संस्मरण)

 

वह यात्रा जो मैं कभी भूल नहीं सकता। यह यात्रा मेरे मन मस्तिष्क पर पूरी तरह अंकित हो गई थी। हुआ यूं कि गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने नाना नानी के घर जा रहा था। मेरे साथ मेरे माता-पिता और छोटी बहन भी थी। हमारे नाना-नानी का घर हमारे शहर से 500 किलोमीटर दूर दूसरे शहर में था।

हम चारों बस से नाना नानी के घर जाने के लिए सवार हुए क्योंकि नाना नानी के घर तक कोई ट्रेन नहीं जाती थी। 500 किलोमीटर दूर बस की यात्रा का सफर 7-8 घंटे में पूरा होना था। हम लोग सुबह 10 बजे बस में सवार हो गए। सात आठ घंटे का सफर काटना काफी उबाऊ होना था लेकिन बस में हमारा 7-8 घंटे का सफर यूं कट गया कि हमें पता ही नहीं चला। इसका मुख्य कारण हमारे साथ बस में सवार हुए वह सज्जन थे, जो पूरी बस में हमारा मनोरंजन करते रहे।

वह सज्जन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने न केवल तरह-तरह के चुटकुले सुनाए बल्कि कई प्रसिद्ध व्यक्तियों की मिमिक्री भी की। उन्होंने हम सब बस यात्रियों का पूरे यात्रा के दौरान अच्छा खासा मनोरंजन किया। उनके द्वारा किए गए मनोरंजन के कारण हमें बस की लंबी यात्रा बेहद छोटी लगी। उनकी बातें इतनी मनमोहक थीं कि हमारा मन कर रहा था कि बस का सफर कभी खत्म नहीं हो और हम उनकी बातें सुनते रहे। जब हमारा स्टॉप आ गया तो हमने उनसे विदा ली। उन्हें आगे जाना था। हमनें हमारा सफर आसान बनाने के लिए उन्हें धन्यवाद किया। सच में बस की वह यात्रा बेहद अविस्मरणीय रही। बस की वह यात्रा मैं भूल नहीं सकता।


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अगर मेरे मामा का घर चाँद पर होता। (अनुच्छेद)

कक्षा में मेरा पहला दिन (अनुच्छेद लेखन)

किस फल या फल के बीज में ज़हर पाया जाता है?

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सेब एक ऐसा फल है जिसके फल के बीज में ज़हर पाया जाता है, सेब के बीजों में साइनाइड नाम का तत्व पाया जाता है। सायनाइड एक जहरीला तत्व होता है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से सेब एक बेहद पोषक तत्वों से युक्त फल होता है और अक्सर कहा जाता है कि रोज एक सेब का सेवन हर तरह की बीमारियों से दूर रखता है। लेकिन सेब के बीज बिल्कुल भी खाने योग्य नहीं होते।

सेब के बीजों में एमिडगलिन नाम का तत्व पाया जाता है, जो सायनाइड नामक विषाक्त तत्व को उत्पन्न करता है। सेब के बीज खाने योग्य नहीं होते है,  इसलिए इन्हे खाना नहीं चाहिए। हालाँकि सेब के बीज बेहद सख्त होते हैं और इन्हें तोड़ पाना आसान नहीं होता।

सेब के एक बीज से 0.06% से लेकर 0.24% मिलीग्राम सायनाइड प्राप्त होता है और यदि सेब के बीज खा लिए जाएं तो यह शरीर में जाकर प्रतिक्रिया करते हैं और साइनाइड नाम का तत्व विकसित होता हैं। खाने वाले की तबीयत खराब हो सकती है। उसे तो सिर दर्द, उल्टी, पेट दर्द जैसी समस्या हो सकती है।

वैसे तो सेब के बीज खाने योग्य नहीं होते और उन्हें भूल कर भी नहीं खाना चाहिए। यदि  गलती से सेब के बीज खा भी लें तो तुरंत उपचार के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए।


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ऐसा कौन सा फल है जो फ्रिज में रखने पर ज़हर बन जाता है?

ऐसा कौन सा फल है जो फ्रिज में रखने पर ज़हर बन जाता है?

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ऐसा कोई फल नहीं होता, जिसे फ्रिज में रख दें और वह तुरंत ज़हर बन जाए। हाँ, ऐसे अनेक फल अवश्य होते हैं, जिन्हें फ्रिज में रखने से उनके अंदर के पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं और वह खाने योग्य खाने की दृष्टि से नुकसानदायक होते हैं। तरबूज एक ऐसा फल है, जिसे फ्रिज में रख देने से उसके अंदर जहरीले तत्व बन जाते हैं।

तरबूज को फ्रिज में रख देने से उसके स्वाद और प्रकृति में परिवर्तन हो जाता है, इस कारण फ्रिज में रखा हुआ तरबूज खाने की दृष्टि से नुकसानदायक होता है। फ्रिज में लंबे समय तक रखा तरबूज को खाने से खाद्य विषाक्तता यानि फूड प्वाजनिंग हो सकती है। इसलिए तरबूज को कभी भी फ्रिज में रख नहीं रखना चाहिए और कटा हुआ तरबूज तो किसी भी हालत में फ्रिज में नहीं रखना चाहिए।

तरबूज की तासीर पहले से ही ठंडी होती है और अधिक ठंडी जगह पर रखने से उसके अंदर प्रतिक्रिया होती है और वह उसके अंदर जहरीले नुकसानदायक तत्व विकसित हो जाते हैं। कटा हुआ तरबूज फ्रिज में रखना और अधिक खतरनाक है। ये कहना ठीक नही होगा कि तरबूज या अन्य कोई फल फ्रिज में रखने से वह सीधा जहर बन जाता है। ये कहना ठीक होगा कि तरबूज को फ्रिज में रखने से उसके पोषक तत्व लगभग समाप्त हो जाते है, और उसमें हानिकारक तत्व बन जाते है। फ्रिज में रखा तरबूज खाने आप बीमार पड़ सकते हैं। आपको फूड प्वाइजनिंग हो सकती है।


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हमारे देश को भारत या भारतवर्ष क्यों कहा जाता है?

निम्न में से कौन सा रोग बैक्टीरिया द्वारा होता है? A. टोबैको मोजेक B. क्रूसीफर्स का ब्लैक रॉट C. गन्ने का रेड रॉट D. आलू की लेट ब्लाइट

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सही उत्तर होगा…

B. क्रूसीफर्स का ब्लैक रॉट

विस्तृत विवरण

क्रूसीफर्स का ब्लैक रॉट बैक्टीरिया द्वारा होने वाला रोग है। ये रोग जैंथोमोनस कैम्पेस्ट्र पी. वी. (Xanthomonas campestris pv) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। ये जीवाणु सामान्यतः गोभी, बंदगोभी, ब्रोकोली, केल आदि जैसे क्रूसिफेरस सब्जियों को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

  • टोबैको मोजेक एक विषाणुजनिता रोग है। ये लोग तंबाकू को पौधो को प्रभावित करता है।
  • गन्ने का रेड रॉट फंगल के कारण होने वाला रोग है, ये गन्ने को मुख्य रूप से प्रभावित करता है।
  • आलू की लेट ब्लाइट भी एक फंगल रोग है, जो मुख्यतः आलू के पौधों को प्रभावित करता है।

क्रूसीफर्स ब्लैक रॉट एक आम और विनाशकारी बीमारी है जो किसी भी विकास चरण में क्रूसिफ़र परिवार (कोल फ़सल) के पौधों को प्रभावित करती है। ब्लैक रॉट को बैक्टीरियल ब्लाइट, ब्लैक स्टेम, ब्लैक वेन, स्टेम रोट या स्टंप रोट के नाम से भी जाना जाता है।


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टीकाकरण क्या है? टीकाकरण क्यों किया जाता है?

वृजलाल गोयनका कैसे गिरफ्तार हुआ? (डायरी का एक पन्ना)

बृजलाल गोयनका लाल बाजार पर 200 लोगों के जुलूस के साथ गिरफ्तार हुआ था। बृजलाल गोयनका कई दिनों से जुलूस की तैयारी के लिए कार्य कर रहा था। वह इससे पहले लेखक के साथ दमदम जेल भी जा चुका था और कई दिनों तक जेल में रहा था। जब 26 जनवरी 1931 को जुलूस निकाला जा रहा था तो वह डंडा लेकर वंदे मातरम बोलता हुआ मॉन्यूमेंट की ओर तेजी से दौड़ा। वहां पहुंचते-पहुंचते वह रास्ते में ही अपने आप गिर पड़ा। उसे एक अंग्रेज घुड़सवार ने लाठी मारी और उसे पकड़ लिया, फिर उसे दूर ले जाकर छोड़ दिया।

उसके बाद बृजलाल गोयनका स्त्रियों के जुलूस में शामिल हो गया, वहां पर भी अंग्रेजों ने पहले उसे पकड़ फिर छोड़ दिया। तब भी बृजलाल गोयनका नहीं माना और इस बार वह 200 आदमियों का जुलूस बनाकर लाल बाजार पहुंच गया और वहां पर अंग्रेजों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।  इस तरह वृजलाल गोयनका लाल बाजार पर 200 आदमियों के जुलूस के साथ गिरफ्तार हुआ।

‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ एक संस्मरणात्मक कहानी है जो 26 जनवरी 1931 नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कोलकाता में निकाले स्वाधीनता जुलूस के घटनाक्रम पर आधारित है। 26 जनवरी 1931 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हिंदुस्तान में दूसरा स्वतंत्रता दिवस मनाया था। उससे पहले 26 जनवरी 1930 को उन्होंने हिंदुस्तान का पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया।


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चंडीगढ़ के रॉक गार्डन का अनुभव डायरी में लिखिए।

सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति और इंटरनेट का महत्व (निबंध)

निबंध

सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति और इंटरनेट का महत्व (निबंध)

 

सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट का महत्व आज किसी से छुपा नहीं है। आज का युग डिजिटल युग है, जो कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आई क्रांति के कारण संभव हुआ है। आज इंटरनेट के बिना जीवन संभव नहीं है। इंटरनेट ने जीवन को कितना सुविधाजनक बना दिया है, ये बात किसी से नही छिपी है। सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के महत्व के बारे में जानते हैं।

प्रस्तावना

आज का युग डिजिटल युग है। सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के क्षेत्र में अभूतपूर्व आई है। इंटरनेट ने पूरे विश्व को वैश्विक गाँव में बदल कर रख दिया है और हर काम को आसान बना दिया है। हजारों मील दूर बैठकर भी कोई भी कार्य पलक झपकते संपन्न किया जा सकता है, चाहे वह हजारों किलोमीटर दूर बैठे अपने किसी प्रिय मित्र से बात करना हो, अपने किसी प्रिय मित्र को संदेश भेजना हो, किसी से वीडियो कॉल के माध्यम से बात करना हो, अपने किसी प्रिय मित्र को कोई संदेश भेजना हो अथवा घर बैठे हजारों मीटर दूर से संवाद स्थापित करना हो, शॉपिंग करना हो यह सारे कार्य इंटरनेट और सूचना क्रांति संभव हो पाए हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के लाभ

सूचना प्रौद्योगिकी में हुए विकास उन्नति के कारण आज हम कठिन से कठिन कार्य को सरल बना चुके हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के कारण आज हम किसी भी प्राकृतिक आपदा का पहले से ही सटीक अनुमान लगाकर उससे निपटने के लिए पूर्व तैयारी कर लेते हैं, जिससे हम प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान को कम से कम कर सकते हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी के कारण आज कृषि के क्षेत्र में एक से एक उन्नत तकनीक का विकास हुआ है। किसान भाई टेलीविजन और इंटरनेट के माध्यम से कृषि से संबंधित उच्च तकनीकों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और उसी के अनुसार कृषि करके और आधुनिक उपाय अपनाकर अपनी पैदावार को बढ़ाने में सक्षम हो रहे हैं। इंटरनेट के कारण हजारों किलोमीटर दूर बैठे अपने किसी प्रिय मित्र से संवाद स्थापित करना हो, चाहे वह वॉइस कॉल के रूप में हो अथवा आमने सामने एक-दूसरे को देख कर वीडियो कॉल के रूप में बात करना हो, यह सब संभव हो सका है।

आज ऐसे अनेक मैसेजिंग प्लेटफार्म के माध्यम से चंद सेकेंड में अपना कैसा भी संदेश अपने मित्र-सबंधी आदि तक पहुंचाया जा सकता है। इस तरह हमने समय पर भी विजय प्राप्त कर ली है और अपने जीवन के बहुत से बहुमूल्य समय को नष्ट होने से बचा लिया है यह सब सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के कारण ही संभव हो पाया है। शिक्षा के क्षेत्र में इंटरनेट के कारण अभूतपूर्व क्रांति आई है। आज ऑनलाइन शिक्षा आम हो चली है। अब ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी घर बैठे ही अपने ज्ञान को परिमार्जित कर रहे हैं। वह हर तरह की अपनी समस्या का समाधान इंटरनेट पर चंद मिनटों में पा लेते हैं।

आज इंटरनेट पर एक से एक बढ़कर ऐसी वेबसाइट और एप्स मौजूद हैं, जो हर तरह की शिक्षा को उपलब्ध कराते हैं। बहुत सी वेबसाइट या एप्स थोड़ा सा शुल्क लेकर समाधान दान करते हैं और बहुत से निःशुल्क रूप से शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं, इससे दूरदराज के ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थी भी लाभान्वित हो रहे हैं। इंटरनेट विद्यार्थियों के लिए सूचनाओं का खजाना बनकर उभरा है और उनके ज्ञान भंडार में निरंतर वृद्धि होती जा रही है।

इंटरनेट पर मौजूद सोशल मीडिया की सहायता से आज नए-नए लोगों से परिचय हो रहा है और एक दूसरे के साथ अपने विचार को साझा करते अपने विचारों का दायरा बढ़ा रहे हैं, जिससे लोग एक दूसरे के विचार से लाभान्वित हो रहे हैं। यह सब सूचना प्रौद्योगिकी एवं इंटरनेट के कारण ही संभव हुआ है।

निष्कर्ष

इस तरह हम कह सकते हैं सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट मानव के जीवन में एक क्रांति ला दी है। इस कारण जीवन इतना अधिक सुगम हो गया है और मानव इसका इतना आदी हो गया है कि इसके बिना जीवन सरल नही होने वाला है।


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“शिक्षा में राजनीति का बढ़ता दवाब ” विषय के पक्ष और विपक्ष पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार/अभिमत

शिक्षा में राजनीति का बढ़ता दवाब

 

पक्ष

शिक्षा में राजनीति का बढ़ता जवाब एक चिंतनीय विषय है। विद्यार्थी स्कूल कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते हैं ताकि उनका आगे का भविष्य सुदृढ़ हो सके। लेकिन आजकल यह देखने में आ रहा है कि शिक्षा में राजनीति का दखल निरंतर बढ़ता जा रहा है। कॉलेज में छात्र राजनीति निरंतर बढ़ती जा रही है। इस छात्र राजनीति को देश के अलग-अलग राजनीतिक दल प्रश्रय दे रहे हैं। इससे छात्रों के भविष्य की हानि हो रही है। उनका मूल्य ध्यान अपनी शिक्षा से हटकर राजनीति पर केंद्रित हो जाता है। राजनीति एक ऐसा आकर्षण जाल है जो हर किसी को आकर्षित करता है।

राजनीति शक्ति प्राप्त करने का माध्यम है और हर व्यक्ति शक्ति अपने हाथ में लेने का आनंंद लेना चाहता है। कॉलेज आदि के छात्र भी इस आकर्षण से बच नहीं पा रहे हैं। जिस आयु में उन्हें अपना पूरा ध्यान शिक्षा पर केंद्रित करना चाहिए ताकि वह अपने भविष्य को संवार सकें, उस आयु में वह छात्र राजनीति में पड़कर अपने भविष्य को चौपट कर लेते हैं। आरंभ में छात्र राजनीति में उन्हें बड़ा मजा आता है, लेकिन आगे इसके दुष्परिणाम भी होते हैं। राजनीति कभी भी प्रेम एवं सद्भाव का विषय नहीं है।

राजनीति में हमेशा विरोध एवं घृणा की प्रधानता रही है। राजनीति अलग-अलग गुटों में बांटने को प्रेरित करती है छात्र भी इसी कारण अलग-अलग गुटों में बंट जाते हैं और वे आपसी भाईचारे को भूल कर वैमनस्यता पाल लेते हैं। किसी युवा के जीवन के आरंभिक चरण में उसके मन में यदि वैमनस्यता आ जाए तो यह उसके आगे के जीवन में उसे एक विनम्र और अच्छा नागरिक बनने से रोकती है। इसलिए शिक्षा में राजनीति का दबाव एक चिंतनीय विषय है। हमारे विचार में कॉलेज में छात्र राजनीति बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए और राजनीतिक दलों का कॉलेज कैंपस में प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना चाहिए। विद्यार्थी को केवल अपनी शिक्षा ग्रहण करने पर ध्यान लगाना चाहिए। पूरी तरह शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने करियर चुनने की स्थिति में वह राजनीति को अपने करियर चुन सकते हैं, लेकिन छात्र जीवन में राजनीति का प्रवेश नहीं होना चाहिए।

विपक्ष

राजनीति भी हमारे समाज का ही एक अंग है। यदि विद्यार्थी अपने युवा जीवन से ही राजनीति का वातावरण पाता है, तो उसे देश के हालातों को जानने का अवसर मिलता है जो उसके लिए आगे एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनने में सहयोग कर सकता है । शिक्षा में राजनीति के बढ़ते दबाव में आवश्यक नहीं कि हर विद्यार्थी छात्र राजनीति में रुचि ले। जो विद्यार्थी राजनीति में अपना बनाना चाहते हैं, वह छात्र राजनीति में रुचि ले सकते हैं। जिन्हें किसी दूसरे क्षेत्र में अपना करियर बनाना है, वे इससे दूर रह सकते हैं। इसीलिए हमारे विचार के अनुसार शिक्षा में राजनीति का दवाब उचित है। यह विद्यार्थियों को देश की राजनीति को समझने का अवसर प्रदान करता है।

विद्यार्थी देश का भविष्य हैं और भविष्य में देश की बागडोर उनके हाथों में ही जाने वाली है, तो यदि अपने देश की राजनीति को जान लेंगे तो आगे ये अनुभव उनके काम आ सकता है। देश के बहुत से ऐसे नेता है, जो छात्र राजनीति से उभरकर आए और एक सफल नेता बने। इसलिए शिक्षा में राजनीति का दवाब एक निश्चित मर्यादा में उचित है।

टिप्पणी :

यहाँ पर ‘शिक्षा में राजनीति का बढ़ता दवाब’ विषय पर पक्ष और विपक्ष दोनो तरह के विचार प्रस्तुत है। आप अपनी सुविधा अनुसार किसी एक पक्ष से सहमत-असहमत हो सकते हैं।


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भारत में ग़रीबी के कारण (निबंध)

निबंध

भारत में ग़रीबी  के कारण

 

प्रस्तावना

आज के अनुमान से भारत में आज भी 27 करोड़ लोग ग़रीबी  रेखा से नीचे रहते हैं । आजादी के समय देश की 80 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी । आज 22 फीसदी लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन संख्या के तौर पर इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है गरीबी एक अभिशाप है ।

शिक्षा का अभाव

आज के आधुनिक समय में भी गरीब लोगों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए सरकारें अपने विभिन्न प्रकार के विद्यालय चलाती हैं । सभी लोग शिक्षा की इस सरकारी व्यवस्था के बारे में नहीं जानते हैं । इसी कारण से उचित प्रकार की शिक्षा गरीबों को मिल नहीं पाती है । शिक्षा के अभाव में गरीब लोग जिन्दगी में मिलने वाले मौके नहीं पाते हैं और न ही कोई नया मौका खुद बना पाते हैं । उनको ये पता ही नहीं चलता कि किस तरह से एक या दो पीढ़ी में गरीब अपनी ग़रीबी के कुचक्र को तोड़ सकते हैं ।

कुछ गरीब शिक्षा को महत्वहीन मानते हैं । वह अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाए उनसे काम करवा कर परिवार की आमदनी बढ़ाना पसंद करते हैं । ये बात कुछ हद तक कम गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों के लिए भी लागू होती है । ये लोग प्रारम्भिक और आगे की शिक्षा तो पा जाते हैं लेकिन विशेषज्ञता वाली शिक्षा जो कि या तो सरकारी सरकारी क्षेत्र में सीमित है या फिर बहुत ही महंगी है । कई प्रकार के आगे बढ़ने के अवसर उचित शिक्षा के अभाव में लोगों के हाथ से निकल जाते हैं ।

भारत की बढ़ती जनसंख्या

देखा जाए तो जनसंख्या हमारे देश में गरीबी की जड़ है । इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य सुविधाएं और वित्तीय संसाधनों की कमी भी बढ़ती जाती है। इसके अलावा उच्च जनसंख्या दर से प्रति व्यक्ति आय भी प्रभावित होती है और प्रति व्यक्ति आय घटती है । एक अनुमान के अनुसार के भारत पूरी दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की ओर अग्रसर है । भारत की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है उस रफ्तार से भारत की अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ रही है ।

अब तो भारत की सड़कों पर बढ़ती हुई जनसंख्या महसूस होने लगी है । भारत में जनसंख्या इस गति से बढ़ रही है कि कुल उत्पादन बढ़ने पर प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में अधिक धन नहीं हो पाता, जिससे जीवन-स्तर ऊंचा नहीं हो पाता । इसी वजह से बेरोजगारी बढ़ती है । बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाने के लिये कठोर कदम उठाने का समय आ गया है ताकि गरीबी को भी काबू में किया जा सके ।

सामाजिक परिस्थितियाँ

भारत में गरीबी का एक और बहुत बड़ा कारण है सामाजिक परिस्थितियां और सामाजिक रूप से विभेद भी है । सामाजिक विभेद को तो राजनैतिक रूप से भारत में विभिन्न स्वरूपों में के आरक्षण और गरीबी हटाओ योजनाओं के द्वारा दूर किया गया है । लेकिन सामाजिक स्थितियों पर अभी भी कुछ नहीं किया गया है ।

भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल सामाजिक आधार आज तक भी पुरानी सामाजिक संस्थाएं तथा रूढ़ियां हैं । यह वर्तमान समय के अनुकूल नहीं है । ये संस्थाएं हैं – जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा और उत्तराधिकार के नियम आदि । ये सभी भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से होने वाले परिवर्तनों में बाधा उपस्थित करते हैं । चाहे तड़क भड़क भरी शादी में होने वाला खर्चा हो, शादी में दिये जाना वाला दहेज हो, मृत्यु भोज हो या फिर आये दिन आने वाले तीज-त्यौहार हों, सब पर समाज में अपना मुंह दिखाने और अपनी हैसियत बताने के नाम पर बहुत खर्चा होता है । बहुत से लोगों को तो हमने इन सब खर्चो के लिये लोन लेते हुए देखा है ।

गरीबी का कुचक्र इसी प्रकार के खर्चो के कारण बना रहता है । इन खर्चो में मध्यम आय वर्ग भी शामिल है । मध्यम आय वर्ग में तो आजकल अपनी सामाजिक हैसियत में दिखावा करने के लिये अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च करके बच्चों को महंगी शिक्षा, कार खरीदना, विदेश यात्रा करना इत्यादि भी शामिल हो गये हैं । उधार चुकाते- चुकाते अपनी मेहनत की कमाई लोग ऐसे ही कामों में लगा देते हैं और गरीबी में आ जाते हैं ।

भारत में गरीबी का मुख्य कारण आर्थिक विषमता एवं राष्ट्रीय आय का असमान वितरण है करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है । ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों का सर्वा था अभाव है । अधिकांश मजदूर खेतों में काम करते है । उनके पास अपनी भूमि का अभाव है । भूमिहीन मजदूरों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर है । भू स्वामी उन्हें काम के बदले उचित मजदूरी भी नहीं देते है ।

महानगरों में कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के पास रहने के लिए अपना घर नहीं है । मजदूरों के बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा एवम् शिक्षा की कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है । उन्हें रोजगार से किसी भी समय निकाला जा सकता है । असंगठित क्षेत्र के 37 करोड़ों मजदूरों कि स्थिति अत्यंत ही सोचनीय है। दैनिक मजदूरी के द्वारा उनके परिवार का भरण पोषण होता है । सरकार ने स्वतंत्रता के बाद योजना आयोग का गठन किया। जिसके द्वारा योजना बुद्ध तरीके से योजना बनाकर देश से गरीबी दूर करने का प्रयास प्रारंभ किया । लेकिन अभी तक सरकार को वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई है ।

मोदी सरकार ने योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग का गठन किया है। नीति आयोग देश से गरीबी दूर करने के लिए नई योजनाएं बना रही है। इसके अंतर्गत मुद्रा बैंक के द्वारा गरीबों एवं बेरोजगारों को अपना रोजगार शुरू करने के लिए लोन दिया जा रहा है। इसमें महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है।

सरकारी योजनाएं भी लोगों को गरीब बना रही हैं ।

भारत की केन्द्रीय सरकार हो या फिर राज्यों की सरकारें, सब गरीबों के लिए दम भरते हैं और गरीबों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं को चलाते रहते हैं । इन सब योजनाओं से थोड़ा बहुत लाभ गरीबों का होता है और बहुत सारा फायदा बीच के दलालों, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और नेताओं को होता है ।

इन योजनाओं को चलाने के लिए अनेक कंपनियां, स्वयं सेवी संस्थाएं और कर्मचारी लगते हैं और वे ही इसके वास्तविक लाभार्थी बनते हैं । दूसरी तरफ गरीब लोगों के लिए जो ये कल्याणकारी योजनाएं चलती हैं इनमें गरीबों को गरीब ही रहने का पुरस्कार मिलता है । अधिकांश सरकारी गरीबी को योजनाओं में गरीब के किसी न किसी पैमाने के अन्दर होने के कारण लाभार्थियों को तरह-तरह की राशन, घर, पढ़ाई इत्यादि की सुविधाएं मिलती हैं । अगर कोई गरीब अपनी मेहनत से गरीबी के पैमाने से ऊपर आ गया तो उसको मिलने वाली सारी सुविधाएँ बंद हो जाती हैं ।

गरीबी के पैमाने से ऊपर आने पर भी गरीब आदमी कोई अमीर व्यक्ति नहीं बन जाता है । लेकिन सरकार उसकी फ्री मिलने वाली सुविधाएं बन्द कर देती है । इसलिए भी गरीब अपने आप को गरीब बनाये रखने में ठीक महसूस करता है । दूसरी बात ये कि जब सब कुछ सरकार दे ही रही है तो गरीब लोग सोचते हैं फिर गरीबी से ऊपर उठ कर मेहनत कर के कमाने की व्यवस्था करने से क्या फायदा ? क्या आपने कोई ऐसी सरकारी योजना देखी है जो लोगों से कहती हो कि यदि आप अपनी मेहनत और सरकारी सहायता से अपनी गरीबी से निकल कर कम से कम अल्प आय वर्ग में आ जाओगे तो आपको कई प्रकार की विशेष सुविधाएं मिलेंगी ? नहीं न ।

सरकार द्वारा बनाई गई गलत नीतियां

भारत की धरती जिस पर भगवान ने इतने प्राकृतिक संसाधन जिसमें लंबे मैदानी क्षेत्र, नदियां, जिनमें एक अच्छी जलवायु और ढेर सारे प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं, दिए हैं कि अगर ढंग से सरकारी नीतियां रहें तो ये देश वापस प्राचीन काल की तरह सोने की चिड़िया बन सकता है । फिर भी सवाल यह है कि आज़ादी के इतने साल बाद भी भारत एक बेहद गरीब देश क्यों है ? दरअसल भारत में मेहनत करके गरीबी से ऊपर आने को कभी प्रोत्साहित नहीं किया गया । लोगों को उत्पादकता के कामों में लगने के बजाय केवल नौकरी करने को ही रोजगार का माध्यम बना दिया ।

सरकारों ने सोशलिस्ट समाजवादी नीतियां बना कर ऐसे श्रम कानून और नीतियां बनाईं कि लोगों के लिये मेहनत करके अपना काम करना मुश्किल हो गया । इस दौरान अच्छे पढ़े लिखे लोग उचित अवसरों की तलाश में भारत से बाहर जाते रहे । मानव संपदा जो कि भारत को आगे लो जाती वह दूसरे देशों के विकास में काम आती रही ।

भारत में अधिकांश लोगों खास कर व्यवसायियों पर इतने प्रकार के टैक्स (कर) लगा दिए गए हैं कि लोग कर बचाने के लिए बड़े पैमाने पर काला धन बनाने लगे । और इस प्रकार जो धन भारत में लगता और देश को आगे ले जाता वह विदेशी बैंकों में जमा होने लगा । इस प्रकार भारत की सरकारी नीतियों के कारण भी लोग गरीब होते जाते हैं।

कीमतों में वृद्धि और विकास की धीमी गति

उत्पादन में कमी तथा जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण भारत जैसे अल्प विकसित देशों में कीमतों में वृद्धि हो जाती है। जिसके कारण गरीब व्यक्ति और गरीब हो जाता है । पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि में औसत वार्षिक दर में वृद्धि बहुत कम रही GDP की विकास दर 4 प्रतिशत होने पर भी यह लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि करने में असफल रही।

जनसंख्या में 2 प्रतिशत की वृद्धि होने पर प्रति व्यक्ति आय मात्र 2.4 प्रतिशत रही । प्रति व्यक्ति आय में कमी गरीबी का मुख्य कारण है। बुनियादी वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतें भी गरीबी का एक प्रमुख कारण हैं । गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति के लिए जीवित रहना ही एक चुनौती है । भारत में गरीबी का एक अन्य कारण जाति व्यवस्था और आय के संसाधनों का असमान वितरण भी है।

औद्योगीकरण और कृषि का पिछड़ापन

उत्पादन के परंपरागत साधनों का स्थान मशीनों ने लिया तो फैक्ट्री प्रणाली अस्तित्व में आई। बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हुए, ग्रामीण कुटीर उद्योग प्रायः नष्ट हो गए हैं। परिणामस्वरूप जो लोग कार्य करके आर्थिक उत्पादन कर रहे थे, उनके सामने संकट खड़ा हो गया। भारत में कृषि मोटे तौर पर मानसून पर आधारित है। कभी मानसून अति सक्रिय तो अभी अति निष्क्रिय होने पर कृषि उत्पादन पर असर पड़ता है। कृषि की गिरी हुई दशा, संसाधनों की कमी, उन्नत खाद, बीजों तथा सिंचाई सुविधाओं के अभाव भी ग़रीबी को बढ़ाते हैं।

राष्ट्रीय उत्पादन की धीमी वृद्धि

भारत का कुल राष्ट्रीय उत्पाद जनसंख्या की तुलना में काफी कम है। इस कारण भी प्रति व्यक्ति आय में कमी के कारण ग़रीबी बढ़ी है।

प्राकृतिक आपदाएँ

भारत में ग़रीबी के अनेक कारणों में से एक भारत के विभिन्न भागों में किसी न किसी समय आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ भी कहीं न कहीं दोषी हैं। कहीं अत्यधिक ठंड का मौसम रहता और वर्ष के अधिकांश समय बर्फ़ रहती है, कहीं ज्यादा बारिश से बाढ़ रहती है, कहीं सूखा रहता, कहीं जमीन रेगिस्तानी है, कहीं जंगल हैं । कभी-कभी भूकंप भी आ जाता है । इन सब प्राकृतिक कारणों से बड़ी जनसंख्या प्रभावित होती है । जब काम करने का मौका प्राकृतिक आपदाओं की वजह से चला जाता है तो लोगों की आय भी गिर जाती हैं अतः ग़रीबी बनी रहती है ।

उपसंहार

भारत में गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है । गरीब बहुत गरीब होते जा रहे है, और अमीर और अमीर बनते जा रहे है । जनसंख्या बढ़ने के कारण गरीबी बढ़ती ही जा रही है । लोगों के पास रहने के लिए जगह नहीं रही है । हम सब को भारत की ग़रीबी को हटाने के लिए एक साथ जुट होकर प्रयत्न करना चाहिए ।


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स्वावलंबन का महत्व (निबंध)

निबंध

स्वावलंबन का महत्व

 

प्रस्तावना

स्वावलंबन की एक झलक पर न्योछावर कुबेर कोष है। स्वावलंबन से मनुष्य को उज्ज्वल जीवन मिलता है । यदि कोई मुझसे सुखी और सफल जीवन का एक मात्र आधार पूछे तो मैं निःसंदेह ही स्वावलंबन की ओर इशारा करूंगी । स्वावलंबन का सीधा सा अर्थ है – अपनी क्षमता पर, अपने प्रयत्नों पर आश्रित रहते हुए जीवन के संघर्ष में कूदना ।स्वावलंबन जीवन में सीखना पड़ता है । इसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति, कठोर परिश्रम, और निर्भीकता की आवश्यकता होती है । स्वावलंबन ना तो पुस्तकों को पढ़ कर सीखा जाता है और ना ही किसी के उपदेश सुनकर आता है।

स्वावलंबन का महत्व

स्वावलंबन तो जीवन की अन्य आवश्यकताओं की तरह धीरे–धीरे विकसित किया जाता है। स्वावलंबन की ही तरह दूसरों पर आश्रित रहना भी अभ्यास से ही आता है। जिस बच्चे को बचपन से ही काम करने की आदत नहीं डाली गई, जिसका बस्ता तक नौकर स्कूल तक छोड़ कर आते है, जिसका गृह कार्य भी उसके भाई–बहन या फिर माता- पिता करते हैं , जो बच्चा ट्यूशन पढ़ कर पास होता रहा, ऐसे बच्चे से आत्मनिर्भर होने की उम्मीद करना बेकार है । जिस व्यक्ति को अपना काम स्वयं करने की आदत नहीं होती है वह व्यक्ति सदा ही परेशान रहता है । उसमें ना तो आत्मसम्मान विकसित हो पाता है और ना ही आत्म विश्वास । दूसरों के सहारे अपने जीवन में उन्नति की आशा करने वाला व्यक्ति बैसाखियों के सहारे चलने वाला अपाहिज ही होता है जोकि विश्व चैम्पीयन बनने का सपना देख रहा है । यदि कभी सौभाग्य से वह उन्नति कर भी लेता है तो वह अधिक देर तक स्थिर नहीं रह पाता है । उसका पतन अवश्य ही होता है । पराश्रित या परावलम्बी होने का अर्थ होता है गुलाम होना, हीनता को स्वीकार करना ।

स्वावलंबन के फायदे

स्वाबलंबी होने के बहुत से फायदे है, इससे आत्मविश्वास बढ़ता है : स्वावलंबन से हमारे अंदर कई गुना आत्मविश्वास बढ़ता है । दुनिया के सामने खड़े होने की हिम्मत बढ़ती है, किसी भी परेशानी को देख मन घबराता नहीं है, बल्कि गहरे विश्वास के सहारे हम हर मुसीबत का डट कर सामना कर कर सकते हैं।

जीवन के फैसले खुद ले सकता है : सच ही कहा है, जीवन किसी जंग से कम नहीं है । हर रोज यहाँ हमें मानसिक व शारीरिक तनाव वाले युद्ध का सामना करना पड़ता है । हमारे सामने कई बार ऐसी बातें सामने आ जाती है, कि हमें बड़े से बड़े फैसले खुद लेने पड़ते है, वह भी कम समय पर । अगर हम स्वावलंबी नहीं होंगे तो हर बार हम जीवन के इन फैसलों को लेने के लिए दूसरों का दरवाजा खटखटाएंगे । जीवन में हमें दोस्त, जीवनसाथी, भाई-बहन, माँ बाप तो मिलते है, जिनसे हम जब चाहें मदद ले सकते है, लेकिन जीवन का कोई भरोसा नहीं होता है, ये कब तक आपके साथ है, आप नहीं जानते है । तो इससे बेहतर है, आपको इस काबिल होना चाहिए कि खुद फैसले ले सकें । हम अपना अच्छा बुरा खुद समझेंगे, साथ ही अपने परिवारों की भलाई को समझ कर काम करेंगे । स्वावलंबी इनसान अपने कर्तव्य को भली भांति जानता है, जीवन के किसी भी मोड़ पर वह अपने कर्तव्य से नहीं भागेगा । अपने कर्तव्य को वह रिश्तों से भी ज्यादा अहमियत देता है ।

मन प्रसन्न रहता है : स्वावलंबी के जीवन में सुख सुविधा हो न हो, लेकिन उसके मन में शांति जरूर रहती है. उसे पता होता है, उसके जीवन में जो कुछ भी है, वह उसी की मेहनत का फल है, अपने जीवन के लिए वह किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराता है । स्वावलंबी अपने जीवन के दुखों में भी सुख का एहसास करता है. वह हमेशा समझदारी से काम करता है ।

समाज व देश का विकास होता है : देश व समाज के विकास के लिए, स्वावलंबी होना मुख्य बात है । स्वावलंबी न होने पर हम किसी के पराधीन होते है, हम स्वतंत्र होकर कोई भी काम नहीं पाते है । देश की आजादी के पहले ऐसा ही था, भारत देश ब्रिटिश सरकार के अधीन था, वह उन्हें स्वावलंबी बनने ही देना चाहती थी ।क्योंकि ब्रिटिश सरकार को पता था, अगर देश की जनता स्वावलंबी हो जाएगी तो उनकी कोई नहीं सुनेगा । आज भारत देश की जनता स्वावलंबी है, इसलिए देश तेजी से विकास कर रहा है । हमारा समूचे दुनिया में नाम है । स्वावलंबी मनुष्य को ही आज के समय में सम्मान दिया जाता है । मनुष्य को सिर्फ अपनी आत्मनिर्भरता के बारे में नहीं सोचना चाहिए । हम सब इस देश, समाज के अभिन्न अंग है, हमें इसे आगे बढ़ाने के लिए साथ में काम करना होगा । स्वावलंबन को अपने तक सीमित न रखें, इसे समूचे देश के विकास का हिस्सा बनायें।

बड़ा आदमी बनाता है : आज जो देश विदेश के बड़े-बड़े अमीर, कामयाब इनसान है, उन्होंने ने भी स्वावलंबन का हाथ थामा। जब इन लोगों ने अपने काम की शुरुआत की, तब इनके पास अपनी मेहनत, लगन थी, जिसके सहारे ये लोग अपने आप को कामयाब बना पाये है। यह बड़े बड़े आदमी आज हजारों को स्वावलंबी बना रहें है । इनकी सफलता की पहली सीढ़ी परिश्रम होती है।

औरतें आत्मनिर्भर होती है : आज के समय में महिलाओं को सशक्त बनाने की बात कही जाती है। अब पहले जैसा नहीं रह गया है कि घर के लड़कों को ही शिक्षा दी जाये, उन्हें ही घर से बाहर काम करने की इजाजत है। आज समय बदल चूका है, लड़कियां, महिलाएं बाकी लोगों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रही है। ऐसा कोई काम या क्षेत्र नहीं है, जहाँ लड़कियों से अपना लोहा नहीं मनवाया है। महिलाएं शादी के बाद अपने घर, बच्चे व ऑफिस का काम बखूबी संभाल लेती है। महिलाओं के स्वावलंबी होने से उनमें आत्मविश्वास तो आता ही है, इसके साथ ही वे जीवन की हर लड़ाई से लड़ने के लिए तैयार भी होती है। कब कैसी समस्याएं आ जाये, हम नहीं जानते । महिलाओं पर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी होती है, धन संबंधी समस्या आने पर स्वावलंबी औरतें अपने दम पर इसे हल कर लेती है ।

अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि “God helps those who help them अर्थात भगवान उनकी सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करता है । स्वावलंबी व्यक्ति अवसर का गुलाम नहीं होता है । अपने जीवन में आने वाले हर अवसर को पकड़ लेता है। राष्ट्रीय स्तर पर जो राष्ट्र अपनी सहायता स्वयं नहीं कर सकता, स्वावलंबी नहीं बनते । अन्ततः उनकी आजादी समाप्त हो जाती है ।

नन्हा सा जापान अमेरिका के औद्योगिक साम्राज्य को चुनौती दे रहा है क्योंकि उन्होंने स्वावलम्बन का पाठ पढ़ लिया है। भारत ने खाद्यान्नों में स्वावलंबन होने में सफलता प्राप्त कर ली है। 2004 में सुनामी समुद्री तूफान से भारत में भयंकर विनाश हुआ, परंतु भारत सरकार ने अमरीकी सहायता लेने से इनकार करके स्वावलम्बन का परिचय दिया है। विश्व इतिहास के पन्नों पर जिन महापुरुषों के चरणों की छाप लगी है, वे सभी स्वावलंबी थे। अब्राहम लिंकन एक झोंपड़ी से निकलकर व्हाइट हाऊस मे जा पहुंचे। नेपोलियन एक निर्धन परिवार से निकलकर फ्रांस का ही नहीं, आधे विश्व का सम्राट बन गया ।

उपसंहार

इस तरह स्वावलंबन के महत्व को हमने जाना। स्वाबलंबी होकर जीने से जो अपार सुख और संतोष मिलता है, वो परालंबी होकर अर्थात दूसरों पर निर्भर रहने से नही मिलता है। स्वालंबन से व्यक्ति के जीवन में जो आत्म विश्वास आता है, वो उसके जीवन को उच्चता की ओर ले जाता है, और उसके चरित्र को उज्जवल बनाता है। इसलिए स्वावलंबी बनकर जीना सीखें।


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समाज में फैली बुराइयों का उल्लेख करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए​।

अनुच्छेद लेखन

समाज में फैलती जा रही बुराई

 

आज हमारा समाज निरंतर पतन की ओर अग्रसर होता जा रहा है। समाज में अनेक बुराइयां फैलती जा रही हैं, जोकि चिंता का विषय है। समाज में भाईचारा खत्म होता जा रहा है। धर्म जाति के आधार पर लोग एक दूसरे से लड़ने लगे हैं। इसके अलावा आज समाज में दिखावा और प्रदर्शन का बहुत अधिक जोर हो गया है। लोग अधिक स्वार्थी हो गए हैं। समाज के लोग आत्मकेंद्रित हो गए हैं, और स्वयं के स्वार्थ तक सिमट कर रह गए हैं। हमारे समाज में भ्रष्टाचार भी एक प्रमुख समस्या बन गई है। लोग अपने लाभ के लिए कोई भी गलत कार्य करने से भी नही चूकते। जिसको मौका मिल जाता है वह सब कुछ हासिल कर लेना चाहता है। रिश्तो की अहमियत खत्म होती जा रही है। नई पीढ़ी तो रिश्तों की अहमियत बिल्कुल भी नही समझती। नई पीढ़ी को न तो अपने पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों की परवाह है और न ही अपनी संस्कृति पर गर्व है। नई पीढ़ी बस पश्चिम सभ्यता का अंधानुकरण करने में ही लगी है। समाज में नैतिक मूल्यों को पतन की से समाज गलत दिशा मे जाता जा रहा है। स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के नाम लोग कुछ भी उल्टे सीधे आचरण को करने लगे हैं, उनके अंदर सदाचरण और नैतिकता का बिल्कुल अभाव हो गया है। इसलिए समाज में फैलती ये बुराइयां समाज के लिए एक चिंता का विषय हैं।


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‘हास्य का जीवन में महत्व’ पर 100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

मोबाइल का बच्चों द्वारा अधिक प्रयोग ना किया जाए इसके बढ़ते प्रयोग पर रोकथाम के लिए संपादक के नाम जन-जागृति पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

मोबाइल के उपयोग के संबंध में संपादक के नाम जन-जागृति पत्र

 

दिनांक : 30 अप्रेल 2024

सेवा में,
श्रीमान संपादक महोदय,
प्रभात खबर, दिल्ली

माननीय संपादक महोदय,

आजकल बच्चों द्वारा मोबाइल के उपयोग की प्रवृत्ति दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। बच्चों द्वारा निरंतर मोबाइल का उपयोग करने की यह प्रवृत्ति बेहद नुकसानदायक है, और एक चिंतनीय समस्या है। आज मोबाइल की पैठ हर व्यक्ति के जीवन में हो चुकी है। हर व्यक्ति को मोबाइल की आवश्यकता महसूस होने लगी है और लगभग हर किसी व्यक्ति के पास मोबाइल है। बच्चे भी इससे अछूते नहीं रहे हैं।

बच्चे थोड़ा सा बड़ा होते ही माँ-बाप से अपनी मोबाइल दिलाने के लिए जिद करते हैं और मोबाइल लेकर ही मानते हैं। मोबाइल लेकर वे इसका दुरुपयोग करने लगते हैं। बच्चे लोग दिनभर या तो मोबाइल में सोशल मीडिया पर बिजी रहते हैं या मोबाइल पर गेम खेलते रहते हैं, इससे उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। मोबाइल पर गेम खेलने अथवा मोबाइल पर सोशल मीडिया पर व्यस्त रहने के कारण वह अपनी पढ़ाई से विमुख होते जा रहे हैं और जीवन में उन्हें उनकी जो प्राथमिकता शिक्षा हासिल करने की है, वह उससे ध्यान भटका कर मोबाइल पर व्यर्थ की बातों में अपना समय गवां रहे हैं।

मेरे विचार के अनुसार सरकार को तथा समाज के जागरूक नागरिकों को इस संबंध में कोई पहल करनी आवश्यक है। मेरे सुझाव के अनुसार एक निश्चित उम्र सीमा तक बच्चों द्वारा मोबाइल को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। किसी भी जगह पर बच्चों द्वारा मोबाइल का प्रयोग पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। माँ-बाप को भी इस संबंध में निर्देश करना चाहिए अपने बच्चों को मोबाइल देने की जल्दी ना करें। बच्चे के पूरी तरह समझदार होने तक शिक्षा अच्छी तरह हासिल करने के बाद ही मोबाइल दें।

बच्चों द्वारा मोबाइल का अत्याधिक उपयोग करने बढ़ रही प्रवृत्ति पर से शीघ्र ही अंकुश लगाना होगा नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ी मोबाइल के भंवर जाल में फंसकर अपने भविष्य को चौपट कर लेगी।

एक पाठक,
राकेश सैनी,
राजेंद्र नगर, दिल्ली ।


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नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन की जाँच मशीन पर एक यात्री के भूलवश छूटे एक लाख रुपए के बैग को पुलिस ने उसे लौटा दिया। इस समाचार को पढ़ कर जो विचार आपके मन में आते हैं, उन्हें किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र के रूप में लिखिए।

समाज में व्याप्त आपराधिक प्रवृत्तियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए जनसत्ता के सम्पादक को एक पत्र लिखिए।

नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन की जाँच मशीन पर एक यात्री के भूलवश छूटे एक लाख रुपए के बैग को पुलिस ने उसे लौटा दिया। इस समाचार को पढ़ कर जो विचार आपके मन में आते हैं, उन्हें किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र के रूप में लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

समाचार पत्र के संपादक को पत्र

 

दिनांक : 15 मई 2024

सेवा में,
श्रीमान संपादक महोदय,
प्रभात दर्शन,
नई दिल्ली

माननीय संपादक महोदय,

पिछले दिनों समाचार पत्र में मैंने एक समाचार पढ़ा, जिसमें यह बताया गया था कि दिल्ली के कनॉट प्लेस मेट्रो स्टेशन पर एक यात्री जांच मशीन के पास भूलवश अपना एक बैग छोड़ गया था, जिसमें लगभग एक लाख रुपए नकद थे। पुलिस को वह बैग मिला। यात्री जब बैग को ढूंढते हुए वापस उस जगह पर आया तो पुलिसवालों ने वह वह उसे वापस कर दिया। यह समाचार पढ़कर बड़े ही हर्ष का अनुभव हुआ।

हम अक्सर पुलिस और सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की बातें करते रहते हैं, लेकिन आज भी पुलिस तथा अन्य सरकारी विभागों में ईमानदार कर्मचारी भी काम करते हैं, यह घटना उस बात का सबूत है। पुलिस ने जिस तरह ईमानदारी का परिचय देते हुए यात्री को उसका बैग वापस लौटाया, वह एक सराहनीय कार्य है।

आजकल नकद पैसे देकर हर किसी की नियत खराब हो जाती है। पुलिस वाले चाहे तो वो बैग रख लेते और यात्री को गोलमोल बातें बना सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और अपने कर्तव्य परायणता सिद्ध करते हुए ईमानदारी का परिचय दिया।

ऐसे अच्छे कार्यों के कारण ही समाज में अभी तक अच्छाइयां जीवित है। काश सभी सरकारी विभागों के कर्मचारी ऐसे ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ बन जाए तो हमारे देश को एक आदर्श देश बनते देर नहीं लगेगी।

धन्यवाद,

एक पाठक,
सुभाष मेहता,
करावल नगर, नई दिल्ली ।


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सुमित बजाज, सिद्धार्थ नगर गोरे गाँव (पश्चिम) से बरसात के दिनों में सड़कों की दुर्दशा के बारे में शिकायत करते हुए महानगरपालिका के अध्यक्ष को शिकायती पत्र लिखता है।

सार्वजनिक गणेशोत्सव के समय 24 घंटे ऊँची आवाज में लाउडस्पीकर बजने के कारण पुणे में रहने वाले अजय/अनीता के अध्ययन में बाधा पड़ती है। इस संदर्भ में वह शहर कोतवाल, शहर विभाग, पुणे को एक शिकायत पत्र लिखता/लिखती है।

व्याकरण क्या है? व्याकरण की परिभाषा और व्याकरण के क्या कार्य हैं?

व्याकरण की परिभाषा

व्याकरण से तात्पर्य किसी भाषा को नियमों समुच्चय में बांध कर उसे एक सुव्यवस्थित और मानक रूप देने की व्यवस्था से होता है। व्याकरण किसी भाषा को एक मानक रूप प्रदान करने की एक व्यवस्था है। व्याकरण के अंतर्गत नियमों का एक समुच्चय तैयार किया जाता है। जिसमें शब्दों के आधार पर नियमों का एक समुच्चय तैयार किया जाता है और व्याकरण के अलग-अलग अंग बनाए जाते हैं। व्याकरण में कर्ता, कर्म, क्रिया, लिंग, वचन आदि का महत्व होता है, जिनके आधार पर शब्द एवं वाक्यों की संरचना की जाती है।

किसी भाषा में नियमों का समुच्चय जो भाषा को व्यवस्थित रूप प्रदान करता हो, व्याकरण कहलाता है।’

व्याकरण का कार्य

व्याकरण का मुख्य कार्य भाषा को सुव्यवस्थित और मानक रूप प्रदान करना होता है। व्याकरण के द्वारा भाषा को एक मान्य रूप प्रदान किया जाता है, जिससे भाषा एक मानक भाषा बन पाती है। भाषा के विकास के चरण में जब कोई बोली भाषा का रूप धारण कर रही होती है तो भाषा लिखित रूप में कागजों पर उतारी जाती है तो सबसे पहले व्याकरण की ही आवश्यकता पड़ती है। बिना व्याकरण के किसी भी भाषा को लिखित रूप में नहीं लिखा जा सकता। भाषा को लिखित रूप में सुव्यवस्थित रूप से लिखने के लिए व्याकरण के नियमों की आवश्यकता पड़ती है। जब कोई भी बोली व्याकरण के नियमों से बंध जाती है तो वह एक मानक भाषा बन जाती है और लिखित रूप आसानी से उपयोग में लाई जा सकती है। सरल अर्थों में कहें तो व्याकरण का मुख्य कार्य भाषा को एक ढांचागत संरचना प्रदान करना और भाषा को एक आधार देना है।

 


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भाषा किसे कहते हैं? भाषा के कितने रूप है? लिखित भाषा किसे कहते हैं? मौखिक भाषा किसे कहते हैं?

मुहावरे का भाषा पर क्या प्रभाव पड़ता है​?

दिन-प्रतिदिन बढ़ती गर्मी को लेकर रोहन और सोहन के बीच संवाद को लिखें।

संवाद

बढ़ती गर्मी को लेकर रोहन और सोहन के बीच संवाद

 

रोहन ⦂ सोहन, गर्मी देखो कितनी बढ़ गई है।

सोहन ⦂ सही कह रहे हो। गर्मी के कारण, बहुत हालत खराब है। इस बार सच में बहुत गर्मी पड़ रही है।

रोहन ⦂ यह सब बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है। हम मनुष्य लोगों ने विकास के नाम पर जिस तरह प्रकृति से छेड़छाड़ की है, उसका नतीजा अब बढ़ती गर्मी और बढ़ती सर्दी के रूप में मिलने लगा है।

सोहन ⦂ ऐसी गर्मी मैंने पहले कभी नहीं देखी। इस बार सच में बहुत अधिक गर्मी पड़ रही है। मुझे तो गर्मी के कारण रात भर नींद नहीं आती। हमारे घर में एसी भी नहीं लगा है।

रोहन ⦂ ए.सी. तो अमीर लोगों की विलासिता है। हम मध्यमवर्गीय लोग तो ए.सी. का खर्चा वहन नहीं कर सकते।

सोहन ⦂ मैं तो गर्मी से बचने के लिए अपने घर की छत पर सोता हूँ। ठंडी हवा में सोने का मजा ही अलग है।

रोहन ⦂ मेरे साथ यह समस्या है कि मेरा घर एक बड़ी बिल्डिंग में है, जहाँ पर छत पर सोना मना है, हमें तो अपने फ्लैट में ही गर्मी में दिन बिताना पड़ता है।

सोहन ⦂ भगवान करे, बारिश जल्दी से आ जाए और गर्मी से राहत मिले।

रोहन ⦂ उम्मीद तो यही है।


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समाचार पत्र का महत्व समझाते हुए अनुज तथा अग्रज में हुआ संवाद लिखो।

वर्षा ऋतु और ग्रीष्म ऋतु को मानव-रूप देकर उनके बीच कल्पित वार्तालाप को संवाद रूप में ​लिखिए।

यशोधर बाबू और उनके बच्चों के सोच-विचार और व्यवहार की तुलना कीजिए और बताइए कि कौन सही था और कौन गलत?

यशोधर बाबू और उनके बच्चों के सोच-विचार और व्यवहार की तुलना की जाए जो हमें कुछ बिंदुओं पर दोनों का व्यवहार आधा सही और आधा गलत लगा तो कुछ बिंदुओं पर उनके बच्चों का व्यवहार गलत लगा।

पुरानी पीढ़ी अपने पुरानी सोच विचार के हिसाब से चलती है और नई पूरी अपने नए विचारों के हिसाब से जीना चाहती है। इस बिंदु पर अगर गौर किया जाए तो दोनों पीढ़ियां अर्थात यशोधर बाबू और उनके बच्चे अपनी अपनी जगह सही हैं। लेकिन अगर सामाजिक मूल्य और पारिवारिक मूल्यों को ध्यान में रखा जाए और उसकी कसौटी पर कसा जाए तो उनके यशोधर बाबू के बच्चे कुछ बिंदुओं पर गलत सिद्ध होते हैं।

यशोधर बाबू अगर अपनी सोच विचार के हिसाब से जीना चाहते हैं और फिजूलखर्ची उन्हें पसंद नहीं है तो इसमें वह गलत नहीं ।है वहीं उनकी नई पीढ़ी अपने नए विचारों और नए फैशन के हिसाब से जीना चाहती है तो वह भी गलत नहीं है। लेकिन पारिवारिक मूल्य और सामाजिक मूल्य का अपना अलग महत्व होता है। नए विचारों और नई सोच का मतलब यह नहीं होता कि पारिवारिक मूल्य और सामाजिक मूल्य बदल गए हैं।

पाश्चात्य संस्कृति और आधुनिकता का अनुकरण करने का मतलब यह नहीं होता कि हम अपने बुजुर्गों, अपने बड़े की भावनाओं का सम्मान करना छोड़ दें। यहाँ पर यशोधर बाबू के बच्चे गलत सिद्ध होते है। उन्हें अपने सामाजिक स्टेटस और दिखावे की अधिक चिंता है ना कि अपने पिता के भावनाओं की नही। इसी कारण उन्हें अपने पिता का साइकिल पर जाना अथवा बिना गाऊन पहने दूध लाने जाना पसंद नहीं है। यह उनके पारिवारिक मूल्यों के पतन को दर्शाता है।

माता-पिता का अपना महत्व होता है चाहे पीढ़ी का समय कितना भी बदल जाए। यशोधर बाबू को भी समय के अनुसार थोड़ा को बदलना चाहिए था और ये बात को स्वीकार करना चाहिए कि हर बार उनके अनुरूप नहीं हो सकती। कुल मिलाकर सभी बिंदुओं पर गौर किया जाए तो यशोधर बाबू के बच्चे अधिक गलत हैं।

संदर्भ पाठ

सिल्वर वेडिंग, लेखक – मनोहर श्याम जोशी (कक्षा-12 पाठ-1 हिंदी वितान)


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हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को क्यों कहा जाता है? निम्न की ओर क्यों नहीं?

यदि बारिश न हो तो हमें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। सोचकर अपने मित्रों को बताइए।

हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को क्यों कहा जाता है? निम्न की ओर क्यों नहीं?

हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उच्च शिखर की ओर बढ़ना विकास का प्रतीक होता है, वह उत्थान का प्रतीक है। जबकि निम्न की ओर जाना पतन का प्रतीक है, वह असफलता का प्रतीक है। इसीलिए हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को कहा जाता है।

उच्च शिखर यानी नीचे से ऊपर की ओर जाना अर्थात अपने कमजोरियों और कमियों को दूर कर अपना विकास करना, निरंतर प्रगति करते जाना, अपने जीवन में उच्चता हासिल करना और सफलता अर्जित करना। यदि हम निम्न की ओर जाने को कहेंगे तो इसका मतलब है कि हम ऊँचाई से नीचे की ओर जा रहे हैं अर्थात हमारा पतन हो रहा है, हम असफलता की ओर जा हो रहे हैं, हमारे जीवन में न्यूनता आ गई है। जीवन में न्यूनता नहीं उच्चता होनी चाहिए।

इसीलिए हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को कहा जाता है, निम्न की ओर नहीं। उच्च शिखर उत्थान एवं विकास का प्रतीक है, सफलता का मापदंड है। वही निम्न पतन और असफलता का प्रतीक है, इसीलिए हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को कहा जाता है निम्न की ओर नहीं।


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हमारे देश को भारत या भारतवर्ष क्यों कहा जाता है?

भारत सरकार की कमाई का स्रोत क्या है? ये कैसे होती है?

यदि बारिश न हो तो हमें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। सोचकर अपने मित्रों को बताइए।

मित्रों, आज मैं तुम्हे बारिश न होने का होने के नुकसान बताता हूँ।

यदि बारिश न हो तो हमें अपने जीवन में अनेक तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। यदि बारिश ना हो तो हमें सबसे पहले जिस परेशानी का सामना करना पड़ेगा वह है, पीने के पानी की समस्या।

मित्रों, हम जानते हैं कि भूमि पर उपलब्ध मीठा पानी ही पीने योग्य होता है। समुद्र का खारा जल पीने योग्य नहीं होता और समुद्र हर जगह पाया भी नहीं जाता केवल तटीय इलाकों क्षेत्रों के निवासी ही समुद्र का जल का उपयोग कर सकते हैं। तालाब, झील, नदी आदि मीठे पानी के स्रोत हैं। यह सभी जल स्रोत बारिश के कारण ही जल से समृद्ध हो पाते हैं। यदि बारिश ना हो तो तालाब, झीलें, नदियां सूख जाएंगीं। इस तरह पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच जाएगी और पीने के पानी की विकट समस्या का सामना करना पड़ेगा।

यदि हम भूमिगत जल की बात करें तो वह पीने के पानी का एक स्रोत है। लेकिन भूमिगत जलभी बारिश के पानी से ही समृद्ध होता है। जब बारिश होती है तो वह बारिश का जल भूमि में समा जाता है और भूमिगत जल का स्तर बना रहता है। यदि बारिश नहीं होगी तो भूमिगत जल का स्तर बेहद कम हो जाएगा और हमें भूमि से पानी नहीं प्राप्त होगा।

यदि बारिश ना हो तो हम कृषि कार्य भी नहीं कर पाएंगे। ऐसी स्थिति में जब कृषि नही होगी तो खाने-पीने की वस्तुएं कहाँ से आएगी?तब खाद्य पदार्थों का संकट हो जाएगा। बारिश होने से गर्मी से राहत मिलती है। यदि बारिश नहीं होगी तो गर्मी से लोग त्राहि-त्राहि कर उठेंगे।

संक्षेप में कहा जाए तो बारिश ना होने से इस पृथ्वी पर हम सभी का जीवन संकट में पड़ जाएगा। बारिश हमारे जीवन का आधार है हमारे जीवन का आधार है और बारिश जल की आपूर्ति का एक सबसे बड़ा स्रोत है। बारिश ना होने पर हमें जल नहीं मिलेगा और हम सभी प्राणियों का जीवन संकट में पड़ सकता है।


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समय का ध्यान रखना जरूरी क्यों होता है, अपने विचार लिखिए |

जूलिया का अपने गृहस्वामी की हाँ में हाँ मिलाना सही था क्या? इस पर अपने विचार प्रकट कीजिए ।

हमारे देश को भारत या भारतवर्ष क्यों कहा जाता है?

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हमारे देश को भारत या भारतवर्ष क्यों कहा जाता है, इसके संबंध में अनेक मत प्रचलित है। कुछ मतों के अनुसार हस्तिनापुर के प्राचीन राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भरत पड़ा, जबकि एक अन्य मत के अनुसार ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।

हमारे देश भारत के अनेक नाम प्रचलित हैं, इन प्राचीन नामों में अजनाभवर्ष, जम्बूद्वीप, भारतखंड, आर्यावर्त आदि कहा जाता है। इसके अलावा भारत को  हिंद, हिंदुस्तान या हिंदुस्थान तथा इंडिया भी कहा जाता है।

हमारे देश भारत का नाम भारत या भारतवर्ष पड़ने का सबसे सटीक मान्यता यह है कि ऋषभदेव के जेष्ठ यानी बड़े पुत्र ‘भरत’ के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष’ पड़ा। भरत का पूरा नाम ‘भरत चक्रवर्ती’ था, जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र थे। वह एक चक्रवर्ती सम्राट थे। उन्होंने  वर्तमान भारत के समस्त भूखंड पर राज किया था। इसी कारण उनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।

एक अन्य मान्यता इस बात की पुष्टि करती है कि द्वापर युग में राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। भरत महाभारत काल में कौरव और पांडवों के पूर्वज थे। वे भी एक चक्रवर्ती सम्राट थे।

हमारे देश भारत को भारत के अलावा जम्बूद्वीप, अजनाभवर्ष, आर्यावर्त भी कहा जाता है। अजनाभवर्ष भारत का प्राचीन नाम है, जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में लिया जाता है। ये नाम भारतवर्ष नाम प्रचलित होने से पहले प्रचलन में था। इसका वर्णन भी अनेक प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

भारत का आर्यावर्त नाम यहाँ पर आर्य लोगों द्वारा शासन करने के कारण पड़ा।

जम्बूद्वीप नाम भी भारत का एक प्राचीन नाम है जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में लिया जात है। जम्बूद्वीप नाम का उल्लेख अनेक धर्मग्रंथों में उल्लेखित है।

अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में मंत्रोच्चारण करते समय जम्बूद्वीप का उल्लेख भारतीय क्षेत्र के संदर्भ लिया जाता है। आधुनिक संदर्भ में विदेशी शक्तियों के आगमन के बाद भारत को दो नये नाम मिले। हिंदुस्तान (हिंदुस्थान) और इंडिया। भारत को हिंद, हिंदुस्तान और इंडिया कहा जाने लगा।  पर्शिया से आई विदेशी शक्तियों ने भारत को सिंधु नदी के कारण सिंधु देश कहती थी जो सिंधु से हिंदू में बदल गया।

यूनानी लोगों ने सिंधु नदी को इंडो या इंडस नदी कहना शुरू किया और इंडो या इंडस से कालान्तर भारत का नाम इंडिया नाम पड़ा। इस तरह सिंधु नदी के पार का क्षेत्र हिंदुस्तान और इंडिया कहलाने लगा। विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश है, जिसके प्राचीन काल से अब तक इतने नाम हों। आज भी भारत, हिंदुस्तान और इंडिया ये तीन नाम काफी प्रचलन में हैं।


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भारत सरकार की कमाई का स्रोत

हर वर्ष फरवरी के महीने में भारत सरकार का वार्षिक बजट प्रस्तुत किया जाता है। सरकार द्वारा हर वर्ष पेश किया जाने वाला वार्षिक बजट भारत सरकार के खर्चों का वित्तीय विवरण होता है। भारत सरकार देश के विकास तथा अन्य कार्यों पर कितना खर्च करती है तथा भारत सरकार को कितनी आय हुई यह सब बजट से पता चलता है। ऐसी स्थिति में यह जानने की उत्सुकता होती है कि भारत सरकार की आय कैसे होती है उसकी आय के प्रमुख स्रोत क्या हैं, आइए जानते हैं।

मान लेते हैं कि ₹1 को मानक मानकर भारत सरकार की आय का आकलन करते हैं।

माना कि भारत की वार्षिक आय ₹1 है तो भारत की कुल ₹1 रुपए की आय में अलग-अलग स्रोतों से उसकी आय होती है, जिसमें उधार और अन्य देनदारियां, गुड्स एवं सर्विस (GST), कारपोरेट टैक्स, आयकर (Income Tax), एक्साइज ड्यूटी (Excise duty), कस्टम ड्यूटी (Custom duty),  गैर कर राजस्व (Non-tax revenue), गैर ऋण पूंजी (Non-debt revenue) यह सभी स्रोतों से भारत को कुल आय ₹1 प्राप्त होती है।

भारत सरकार को अलग-अलग स्रोतों से होने वाली आय की हिस्सेदारी इस प्रकार है…

उधार और अन्य देनदारियों से प्राप्त आय :  35 पैसे

गुड एवं सर्विस टैक्स (GST) से आय : 16 पैसे

व्यापार कर टैक्स से प्राप्त आय : 15 पैसे

आयकर (Income tax) : 15 पैसे

एक्साइज ड्यूटी (Union excise duty) : 7 पैसे

कस्टम (Custom) : 5 पैसे

गैर-कर राजस्व (Non-tax revenue) : 5 पैसे

वहीं गैर-ऋण पूंजी (Non-debt capital receipt) : 2 पैसे

कुल पैसे                                                       = 100 पैसे (₹1)

इस तरह भारत सरकार की कुल 1 रुपये की कमाई ऊपर दिए गए स्रोतों से होती है।

 


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भारत में करेंसी नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई कहाँ होती है?

भारत में करेंसी नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई कहाँ होती है?

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भारत में करेंसी नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई भारत सरकार प्रिंटिंग प्रेसों और मिंटों द्वारा किया जाता है।

नोट की छपाई

भारत में नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई की बात की जाए तो भारत में नोटों की छपाई की चार प्रिंटिंग प्रेस हैं, जो भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से नोटों की छपाई करती हैं। यह चार प्रेस इस प्रकार हैं…

  1. नासिक प्रेस (महाराष्ट्र)
  2. देवास (मध्य प्रदेश)
  3. मैसूर (कर्नाटक)
  4. सलबोनी (पश्चिम बंगाल)

यह चारों प्रिंटिंग प्रेस भारत में नोटों की छपाई का कार्य करती है।

  • जब भारत 1947 में आजाद हुआ था, तब भारत में नोटों की छपाई की केवल एक प्रेस की थी जो कि नासिक में स्थित थी।
  • 1975 में भारत में नोटों की छपाई के लिए दूसरी मध्यप्रदेश के देवास नामक स्थान पर शुरू की गई।
  • 1997 तक नासिक प्रेस तथा देवास प्रेस यह दोनों प्रेस ही भारत में सारे नोटों की छपाई करती थीं।
  • 1999 में कर्नाटक के मैसूर में और सन 2000 में पश्चिम बंगाल के सलबोनी नामक स्थान पर भी नोट प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई। जिसमें नोटों की छपाई की जाने लगी।
  • इस तरह भारत में नोटों की छपाई की चार प्रेसें हैं, जो आधिकारिक तौर पर भारत में नोटों की छपाई का कार्य करती हैं।
  • नासिक प्रेस (महाराष्ट्र) की करेंसी नोट प्रेस और देवास (मध्यप्रदेश) की करेंसी नोट प्रेस भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया’ के नेतृत्व में कार्य करती है।
  • मैसूर (कर्नाटक) की करेंसी नोट प्रेस और सलबोनी (पश्चिम बंगाल) भारतीय रिजर्व बैंक की सब्सिडियरी कंपनी ‘भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड’ के अंतर्गत कार्य करती है।

सिक्कों की ढलाई

भारत में सिक्कों की ढलाई 4 मिंटों के द्वारा की जाती है। यह 4 मिंट इस प्रकार हैं…

  1. बांबे मिंट
  2. हैदराबाद मिंट
  3. कोलकाता मिंट
  4. नोएडा मिंट
  • इन चारों मिंटों में भारत में जारी होने वाले सभी मुद्रा सिक्कों की ढलाई की जाती है। इसके अलावा भारत सरकार के कई सरकारी मेडल तथा अवार्ड आदि भी इन मिंटों में बनाए जाते हैं।
  • यह मिंटें भारत सरकार के अंतर्गत काम करती हैं। यह चारों मिंटे मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता और नोएडा में स्थित है।
  • भारत में जारी होने वाले सारे सिक्के और कई तरह के सरकारी मेडल और अवार्ड आदि भी इन मिंटों में ही ढाले जाते हैं।
  • भारत में नोटों की छपाई के लिए पेपर की बात की जाए तो भारत में नोटों की छपाई की एक पेपर मिल है, जो मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित है।
  • यह पेपर मिल भारत सरकार के लिए नोट और कई तरह सरकारी स्टॉम्प के लिए पेपर बनाती है।
  • इसके अलावा भारत सरकार विदेश से भी पेपर आयात करती है, जिनमें इंग्लैंड, जर्मनी और जापान जैसे देश प्रमुख हैं।
  • भारत अभी तक अधिक संख्या में नोटों के लिए पेपर विदेश से ही आयात करती है।
  • भारत में नोटों पर प्रिटिंग के लिए लगने वाली स्याही स्विट्जरलैंड से आयात की जाती है।

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देश के लिए हमारे मन में प्यार का भाव क्यों आता है?

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विचार/अभिमत

देश के लिए हमारे मन में प्यार का भाव

देश के लिए हमारे मन में प्यार का भाव इसलिए आता है, क्योंकि हम इसी देश में जन्म लेते हैं। इसी देश की मिट्टी में पलते हैं और बड़े होते हैं। देश ने हमें बहुत कुछ दिया होता है, इसीलिए हमारे मन में देश के प्रति एक प्रेम एवं स्नेह का भाव उत्पन्न हो जाता है। कोई भी सच्चा नागरिक अपनी मातृभूमि से प्रेम अवश्य करेगा। देश हमारी मातृभूमि है और अपनी मातृभूमि से प्रेम करना हर मनुष्य का कर्तव्य है। देश के प्रति हमारे मन में प्यार का भाव हमारी अपने देश के प्रति देशभक्ति के कारण आता है। एक सच्चा नागरिक अपने देश से सदैव प्रेम करता है और वह सदैव अपने देश का हित सोचता है। हम अपने देश से प्यार करते हैं तो कभी अपने देश के साथ गलत नहीं कर सकते और सदैव देश को आगे बढ़ाने का ही कार्य करेंगे। देश के लिए हमारे मन में प्यार का भाव लिए भी आता है, क्योंकि देश हमारी माँ के समान है। जिस तरह हमें अपनी माँ के प्रति प्रेम का भाव उत्पन्न होता है, उसी तरह हमें अपने देश के लिए भी प्यार का भाव आता है क्योंकि देश हमारी मातृभूमि होती है।


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पशु-प्रेम मानवता का प्रतीक (लघु निबंध)

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लघु निबंध

पशु-प्रेम मानवता का प्रतीक

 

पशु प्रेम पूरी तरह मानवता का प्रतीक है। इस बात में कोई भी संदेह वाली बात नहीं है। पशु भी प्राणी है, वह भी मनुष्य की तरह ही प्राणी होते हैं। उनके अंदर भी रक्त, मांस, मज्जा आदि होती है। उन्हे भी दर्द, कष्ट, संवेदना इत्यादि होती है। उन्हें भी चोट लगने पर दर्द होता है। पशुओं के प्रति प्रेम भाव अपनाना पूरी तरह मानवता है। सच्ची मानवता वही है जहां पर दया का भाव हो। दूसरों के प्रति करुणा एवं दया का भाव मानवता का सबसे सर्वोत्तम गुण है। यदि हम पशुओं के प्रति दया एवं करुणा का भाव रखते हैं तो हम मानवता के सर्वोत्तम गुण का ही पालन करते हैं।

पशुओं के प्रति हिंसा करना उन्हें मारना तथा उन्हें मार कर खाना यह सभी अमानवीय कृत्य हैं। प्रकृति ने हमें अनेक तरह के फल, सब्जियां, अनाज आदि खाद्य पदार्थों के रूप में प्रदान किए हैं, फिर भी हम इन सुंदर खाद्य पदार्थों को छोड़कर पशुओं को मारते हैं, उन्हें खाते हैं अथवा उनके प्रति हिंसा का भाव अपनाते हैं। यह पूरी अमानवीय है।

आजकल पशु के द्वारा मनोरंजन के नाम पर अनेक तरह के खेल एवं प्रतिस्पर्धायें आयोजित की जाती है, जिनमें पशुओं को बेहद निर्दयी परिस्थितियों में रखा जाता है और उनसे अनेक तरह की अमानवीय क्रियाएं कराया जाती है। इससे उन्हें भले ही तकलीफ होती है लेकिन मानव को बड़ा आनंद आता है। यह मानवता का परिचायक नहीं है।

हमें पशु को भी अपने जैसा भी प्राणी मान कर और यह मानकर कि उन्हें भी हमारी तरह ही दर्द होता है, उन्हें भी चोट लगने पर तकलीफ होती है, पशुओं के प्रति प्रेम भाव अपनाना चाहिए, तभी हम मानवता के सच्चे रूप को प्रदर्शित कर सकते हैं।


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तानाशाही और राजशाही (राजतंत्र) में क्या अंतर है?

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तानाशाही और राजशाही यानी राजतंत्र में मुख्य अंतर केवल निरंकुशता का है। जब कोई राजा निरंकुश बन जाता है तो वह तानाशाह कहलाता है। यदि राजा विधि सम्मत नियमों का पालन करते हुए जनता हितैषी शासन स्थापित करता है तो वह तानाशाह नहीं है।

तानाशाही हमेशा बुरी ही होती है और वह नकारात्मकता को लिए होती है, जबकि राजा जरूरी नहीं कि निरंकुश हो, वह नकारात्मक हो, या बुरा ही हो। इतिहास में ऐसे अनेक अच्छे राजाओं का भी उदाहरण है, जिन्होंने अपनी उत्तम और जनहितैषी शासन व्यवस्था से उदाहरण प्रस्तुत किया।

इसके विपरीत तानाशाहों का इतिहास हमेशा रक्तरंजित और खराब ही रहा है। इसलिए तानाशाही और राजशाही में केवल अंतर निरंकुशता का ही होता है। तानाशाह हमेशा निरंकुश होता है वह केवल अपने बने-बनाए नियमों को ही थोपना चाहता है।

तानाशाह को सत्ता जरूरी नहीं विरासत में ही मिली हो। तानाशाह अपनी शक्ति के बल पर भी सत्ता हासिल कर लेता है। तानाशाह एक व्यक्ति नहीं कल बल्कि कई व्यक्तियों का समूह भी हो सकता है, जबकि राजा के संदर्भ में यह बातें पूरी तरह सच लागू नहीं होतीं। राजा को सत्ता विरासत में मिलती है, क्योंकि उसके पिता या दादा आदि राजा थे। राजा शक्ति के बल पर नहीं बल्कि वंशानुगत व्यवस्था के आधार पर सत्ता प्राप्त करता है। राजा सहृदय और विनम्र भी हो सकता है। वह अपनी प्रजा का हितैषी भी हो सकता है, लेकिन तानाशाह केवल स्वहितैषी ही होता है।

लेकिन इतिहास में अनेक राजा हुए हैं, जो अत्याचार, शोषण और दमन का प्रतीक थे, वे सभी राजा एक प्रकार के तानाशाह ही थे। राजा कभी भी तानाशाह बन सकता है। तानाशाह बनने के लिए उसे निरंकुश होना होगा।

हालाँकि वर्तमान समय में राजतंत्र यानि राजशाही विश्व से लगभग समाप्त हो चुकी है। अब पहले जैसे राजा नहीं रहे जिन्हें वंश के आधार पर सत्ता प्राप्त होती थी। कुछ देशों में राजशाही (जैसे ब्रिटेन, जापान) आदि में है भी तो भी ये नाममात्र का राजतंत्र है। इनके हाथ में नाममात्र की शक्ति है।

जबकि तानाशाही आज के समय में कई देशों में धड़ल्ले से चल रही है, जैसे चीन, उत्तरी कोरिया, अफगानिस्तान आदि।


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‘तानाशाह’ को हिंदी में क्या कहते हैं?

‘तानाशाह’ को हिंदी में क्या कहते हैं?

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‘तानाशाह’ को हिंदी में ‘अधिनायक’ कहते हैं।

तानाशाह शब्द मूलतः विदेशज शब्द है, जो हिंदी में अरबी-फारसी जैसी भाषाओं से आया है। शुद्ध हिंदी में तानाशाह को ‘अधिनायक’ कहा जाएगा।

तानाशाह या अधिनायक अंग्रेजी के डिक्टेटर (Dictator) शब्द का रूपांतरण  है। तानाशाह जिस शासन व्यवस्था को चलाता है उसे तानाशाही कहा जाता है। हिंदी में से ‘तानाशाही’ को ‘अधिनायकवाद’ कहते हैं।

तानाशाह या अधिनायक से तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है जो प्रचलित शासन के सिद्धांतों से ऊपर जाकर अपनी मनमर्जी के मुताबिक शासन करना चाहता है या करता है। इसके लिए वह शक्ति अर्थात डंडे के आधार पर शासन चलने का प्रयास करता है।

तानाशाह केवल अपनी इच्छा और अपने बनाए नियम कानून ही अपनी प्रजा यानी जनता पर थोपना चाहता है। यदि संबंधित राज्य में पहले से संविधान और कानून हैं और तानाशाह के सत्ता में आने के बाद उसे वह कानून अपने अनुरूप नही लगते तो वह उन कानूनों को नहीं मानता है और उन्हें बदलकर अपने नियम-कानून स्थापित करता है।

तानाशाह जरूरी नहीं कि केवल विशेष व्यक्ति ही हो। थोड़े सा लोगों का समूह भी अपना इतना वर्चस्व स्थापित कर लेता है कि वह अपने बनाए नियम-कानूनों के अनुसार ही शासन चलाना चाहता है।

अफगानिस्तान में तालिबान का शासन इसी तरह का एक उदाहरण है। तालिबान में केवल एक व्यक्ति ही सर्वेसर्वा नही है बल्कि कई लोगों को समूह अफगानिस्तान पर तानाशाह के रूप में कार्य  कर रहा है।

तानाशाही का इतिहास काफी पुराना है। तानाशाही राजतंत्र से लेकर लोकतंत्र दोनों व्यवस्थाओं में प्रचलित रही है। पुराने समय में राजतंत्र में कई ऐसे राजा होते थे जो केवल अपनी मनमर्जी के मुताबिक ही शासन करते थे। वह अपनी प्रजा पर अत्याचार करते थे। अपनी मर्जी के मुताबिक नियम-कानून बनाते थे।  इस तरह की शासन प्रणाली भी एक तरह की तानाशाही ही। थी।

वर्तमान समय में कई देशों में लोकतंत्र होने के बावजूद और लोकतांत्रिक व्यवस्था के द्वारा चुने गए शासक कभी-कभी अपना इतना अधिक वर्चस्व स्थापित कर लेते हैं कि वह इस स्वयं को सर्वे-सर्वा समझने लगते हैं और अपनी मनमर्जी के मुताबिक शासन स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं, तब वह तानाशाह बन जाते हैं


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सोवियत संघ का उत्तराधिकारी किसे बनाया गया ?

गीतिनाट्य से क्या तात्पर्य है? इसके कितने भाग होते हैं? विस्तार से बताएं।

गीतिनाट्य से तात्पर्य नाट्य की विधा से है, जिसके अंतर्गत किसी नाटक को गीत गाकर गीतात्मक अर्थात काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। गीत एक ऐसा नाटक होता है, जिसमें काव्य की प्रधानता होती है। ऐसे नाटक में गीतों को गाकर अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। गीतिनाट्य नाटक का संगीतात्मक संस्करण है अर्थात किसी नाटक की संगीतमय प्रस्तुति ही गीतनाट्य कहलाती है। गीतात्मक काव्य एक प्राचीन विधा है और यह विधा सैकड़ों सालों से प्रचलन में रही है। गीतकाव्य को प्रस्तुत करने के 5 अंग होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं…

1.   प्रस्तावना
2.   कथा
3.   संवाद एवं अभिनय
4.   गीत
5.   नृत्य

प्रस्तावना : प्रस्तावना के अंतर्गत नाटक की भूमिका तैयार की जाती है, जो नाटक की प्रस्तुतिकरण की आधारशिला होती है।

कथा : इसके अंतर्गत नाटक को प्रस्तुत करने के लिए किसी कथा को आधार बनाया जाता है। उसी कथा के आधार पर पूरे नाटक की संरचना की जाती है।

संवाद एवं अभिनय : संवाद एवं अभिनय के अंतर्गत नाटक को प्रस्तुत करते समय पात्रों के बीच होने वाले संवाद तथा उनका अभिनय गी गीतनाट्य के प्रमुख अंग है।

गीत : जब नाटक प्रस्तुत किया जा रहा होता है तो नाटक प्रस्तुत करते समय गीत गाया जाना ही गीत गीत नाट्य की एक विशेष विधा है।

नृत्य : नृत्य भी गीतनाट्य की एक प्रमुख प्रस्तुति है। गीत नाट्य की दो शैली होती हैं।

मूक एवं अभिनयात्कम शैली : इस शैली के अंतर्गत पात्र स्वयं गाते नही बल्कि मूक रूप से अभिनय के द्वारा प्रस्तुति करते हैं और अपने हाव-भाव द्वारा करते हुए किसी कथा को कहने का प्रयास करते हैं। नेपथ्य में गीत-संगीत बज रहा होता है। इसमें पात्र के द्वारा गीत गाकर प्रस्तुत नही किया जाता बल्कि नेपथ्य में गीत-संंगीत होता है और पात्र केवल मूक अभिनय करता है।

संवादात्मक शैली : इस शैली के अंतर्गत पात्र स्वयं गीत गाते हैं और अभिनय करते हैं। वे आपस में संवाद भी करते हैं। इस शैली में संवाद एवं काव्य का मिश्रण होता है। जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ती जाती है, पात्र गीत गाते हैं फिर अगला गीत गाने से संवाद करते है जोकि कथा को प्रवाहमय बनाये रखता है, फिर गीत गाते है। संवाद एवं गीत का ये क्रम चलता रहता है।


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कवि को खुले आकाश की तलाश है, वह पक्षी की तरह उड़ना चाहते हैं। दुनिया देखना चाहते हैं। आपको किस चीज की तलाश है और क्यों ? स्पष्ट करें। ‘

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कवि को खुले आकाश की तलाश है, वह पक्षी की तरह उड़ना चाहते हैं और दुनिया देखना चाहते हैं। हमें भी खुले आकाश की तलाश है, लेकिन हमें पक्षी की तरह नहीं उड़ना है। हमें अपने विचारों का खुला आकाश चाहिए। स्वतंत्रता का खुला आकाश चाहिए। अपनी अभिव्यक्ति का खुला आकाश चाहिए। हमें मन की स्वतंत्रता चाहिए, ताकि हम अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकें। जिस समाज में विचारों को अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है, वह समाज अधिक प्रगतिशील बनता है। हमें वह सामाजिक बंधन नहीं चाहिए, जो बात बात पर हम पर सामाजिक नियमों और सामाजिक रीति-रिवाजों के नाम पर हम पर अंकुश लगाएं। हमें अच्छे विचारों को बिना किसी रोक-टोक प्रसारित करना है। हमें अपने विचारों का पंख लगा कर मन की गति से उड़ना है।


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कबीर निराकार ईश्वर के उपासक थे। निराकार ईश्वर की उपासना से क्या तात्पर्य है​?

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निराकार ईश्वर के उपासक थे। वह ईश्वर के निराकार रूप को मानते थे। निराकार ईश्वर की उपासना से तात्पर्य यह है कि जब हम ईश्वर का कोई स्वरूप ना माने और उसे निराकर मानें। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है। वह कण-कण में व्याप्त है, उसको मूर्ति अथवा विग्रह के रूप में ना पूज कर उसे एक आलौकिक मानसिक रूप से उसकी आराधना करें तो ऐसी उपासना निराकार ईश्वर की उपासना कहलाती है।

निराकार ईश्वर की उपासना में ईश्वर का कोई भी भौतिक स्वरूप नहीं माना जाता। ईश्वर अलौकिक शक्ति माना जाता है, जिसका कोई आकार नहीं होता। ईश्वर एक भाव है, ईश्वर एक चिंतन है और इसी निराकार स्वरूप को आराध्य मानकर उसकी उपासना की जाती है। इसके विपरीत साकार ईश्वर की उपासना में ईश्वर का एक निश्चित भौतिक स्वरूप बना लिया जाता है और उस भौतिक स्वरूप की विग्रह के रूप में की जाती है। उस भौतिक स्वरूप के साथ कोई कथा, आख्यान आदि जुड़ जाते हैं।

जैसे हिंदू धर्म में ईश्वर के निराकार व साकार दोनो रूप से पूजा की जाती है। वैदिक धर्म में ईश्वर के साकार रूप में भगवान शिव का शिवलिंग अथवा उनके विग्रह की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु, भगवान गणेश, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, राम, कृष्ण, हनुमान आदि ये सभी देवी देवताओं के साकार रूप हैं। यह आराधना ईश्वर की सरकार ईश्वर की उपासना की जाती है।

निराकार ईश्वरकी उपासना में ईश्वर ऐसा कोई भी भौतिक स्वरूप नही माना जाता है। बल्कि ईश्वर को एक चिंतन, एक आलौकिक शक्ति मानकर उसकी आराधना की जाती है।


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कक्षा में मेरा पहला दिन (अनुच्छेद लेखन)

अनुच्छेद

कक्षा में मेरा पहला दिन

कक्षा में पहला दिन हर किसी छात्र के जीवन में एक बेहद रोमांचक दिन होता है। मेरे पिताजी का ट्रांसफर दूसरे शहर में हुआ था और मेरा नए विद्यालय में एडमिशन हुआ था। विद्यालय जिस दिन से आरंभ हुआ, वह दिन कक्षा में मेरा पहला दिन था। नई कक्षा नए विद्यालय की अनुभूति अलग ही थी।

नए वातावरण में मुझे कुछ घबराहट सी हो रही थी। मेरे मन में तरह-तरह के विचार कर रहे थे कि पता नहीं कक्षा में कैसे विद्यार्थी होंगे। कोई मेरा अच्छा दोस्त बन पाएगा या नहीं। सही समय पर मैं विद्यालय पहुंच गया। जैसे ही मैं अपनी कक्षा में घुसा, सभी विद्यार्थियों ने मेरा तेज आवाज में स्वागतम कहकर स्वागत किया। मैं कक्षा का सबसे नया विद्यार्थी था। मुझे सबसे आगे की ही बेंच मिली। मेरी बगल वाली सीट पर एक और विद्यार्थी बैठा था जो उस विद्यालय में कई साल से पढ़ रहा था।

पहला पीरियड आरंभ हुआ और हमारे कक्षा अध्यापक का प्रवेश हुआ। उन्होंने सबसे पहले मेरा नाम पूछा और कहां से आए हो? यह पूछा मैंने अपने सारा विवरण बता दिया उन्होंने बेहद प्यार भरे विनम्र और स्वर में मुझसे बातें की जिससे मेरी घबराहट कम हुई। मेरे साथ जो विद्यार्थी बैठा था, उसने मध्यांतर में उससे मेरी बहुत अधिक बातें हुई। पहले दिन ही वह मेरा अच्छा दोस्त बन गया था।

उसकी काफी रुचियां मेरी ओर से मिलती जुलती थीं। कक्षा में अन्य चार पांच विद्यार्थियों से भी मेरी बातचीत हुई और उन सब से बातचीत करके मेरे मन की झिझक खत्म हो गई और मुझे ऐसा महसूस ही नहीं हो रहा था कि यह कक्षा में मेरा पहला दिन है। सारे विद्यार्थी हंसमुख स्वभाव के थे। शाम को जब विद्यालय समाप्त होने के बाद मैं अपनी कक्षा से बाहर निकला तो मेरे मुझको ऐसा अनुभव ही नहीं हो रहा था कि आज इस कक्षा में मेरा पहला दिन था। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं बहुत समय से यहाँ पर पढ़ रहा हूँ। कुल मिलाकर कक्षा में पहले दिन का मेरा अनुभव बेहद अच्छा रहा।


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‘एकता में बल’ इस बात पर एक लघु कथा लिखिए।

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लघु कथा

एकता में बल

 

एकता में बड़ा ही बल होता है, इस बात में कोई संदेह नहीं है। इस संबंध में एक लघु कथा इस प्रकार है…

सेठ राम लाल के 3 पुत्र थे, रमेश, महेश और सुरेश। तीनों अपने पिता के साथ व्यापार में सहयोग करते थे और सारा परिवार मिलजुल कर रहता था। जब तक सेठ रामलाल जिंदा रहे, उनके पुत्र मिलजुल कर रहे। लेकिन सेठ रामलाल की मृत्यु के बाद तीनों पुत्रों में मनमुटाव होने लगा। आपसी झगड़ों और मनमुटाव के कारण तीनों भाइयों ने अपना व्यापार अलग-अलग कर लिया।

तीनों एक ही घर में रहते थे लेकिन तीनों ने अब घर का बंटवारा कर लिया और घर के बीच दीवारें लग गईं। नौबत यहाँ तक आ गई कि तीनों में बातचीत तक बंद हो गई। तीनों ने व्यापार अलग-अलग कर लिया। इस कारण व्यापार भी कमजोर पड़ गया और बाजार पर उनकी पकड़ ढीली पड़ गई क्योंकि तीनो भाई एक-दूसरे के प्रति होड़ रखने लगे इसी का फायदा उठाते हुए प्रतिद्वंदी व्यापारियों ने बाजार पर अधिकार स्थापित करना शुरू कर दिया।’

तीनो भाई व्यापार पर अपनी पकड़ ढीली करती चले गए और उनके प्रतिद्वंदी बाजार पर छा गए। एक बार बड़े पुत्र रमेश का किन्ही दबंग लोगों विवाद हो गया और उसके घर पर दबंगों ने हमला कर दिया। दबंग रमेश और उसके परिवार को मार-पीटकर चले गए और उसके धन आदि लूट ले गए। दोनों छोटे भाई महेश और सुरेश देखते रहे, लेकिन अपने बड़े भाई की मदद करने नहीं आए। यह देख कर दबंगों का हौसला और बढ़ गया।

अगली बार उन्होंने महेश के घर पर हमला कर दिया और वहाँ से सब लूट कर ले जाए। रमेश और सुरेश भी उनकी मदद करने नहीं आए। दबंग लोग सुरेश को भी मारपीट कर और लूट कर चले गए। रामलाल के छोटे भाई श्यामलाल के यह सब पता चला तो उन्होंने तीनों भतीजों को बुलाकर कहा, तुम तीनों आपसी झगड़े के कारण अपनी एकता खो चुके हो। यदि तुम तीनों मिलकर रहो, तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मेरी सलाह मानो अपना मनमुटाव भुलाकर मिलकर रहो और मिलकर काम करो, तब देखना कोई भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, मेरी बात आजमा कर देखो।

तीनों भाइयों ने श्यामलाल की बात को ध्यान से सुना। वह भी रोज-रोज के झगड़ों से तंग आ गए थे। कुछ दिनों बाद इस बार दबंगों ने इस बार सुरेश के घर को निशाना बनाया। वे सबसे छोटे भाई सुरेश के अंदर घुसे तो रमेश और महेश को पता चल गया। रमेश और महेश सहित सभी लोगों ने मिलकर दबंगों का मुकाबला किया। यह देखकर बदमाश घबरा गए। कुछ भाग खड़े हुए और कुछ पकड़ लिए गए।

इस तरह जब तक तीनों भाई अलग-अलग थे तब तक दबंग उनकी फूट का फायदा उठाते रहे, लेकिन जब तीनों मिल गए तो बदमाश कुछ नहीं कर पाए। अब तीनों भाइयों को एकता का मतलब समझ में आ गया था। तीनों भाइयों ने अपने मकान की दीवारें गिरा कर पूरा मकान पुनः एक कर लिया और व्यापार भी एक कर लिया। अब वे वापस अपनी पुरानी स्थिति पा चुके थे। अब कोई भी बदमाश उनके घर पर हमला करने की हिम्मत नहीं कर पाता था, इसीलिए एकता में बल होता है। हमेशा मिल जुल कर रहना चाहिए।


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संदर्भ पाठ
मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2)


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निबंध

आज का भारत-डिजिटल इंडिया

 

डिजिटल इंडिया बदलते वैश्विक एवं सामाजिक परिवेश तथा समय की माँग को देखते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में डिजिटल इंडिया अभियान का शुरू किया गया।

डिजिटल इंडिया का उद्देश्य

डिजिटल इंडिया का उद्देश्य भारत के नागरिकों को आसान ऑनलाइन सरकारी सेवाएँ प्रदान करना तथा देश में इण्टरनेट को सशक्त करके भारत के तकनीकी पहलू में सुधार करना है । डिजिटल बुनियादी ढांचे में सुधार, डिजिटल रूप में सेवाएँ प्रदान करना और डिजिटल साक्षरता, इस अभियान के तीन प्रमुख पहलू हैं। यद्यपि ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता का अभाव, इण्टरनेट कनेक्टिविटी तथा डिजिटल अवसंरचना के रूप में इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं तथापि सरकार द्वारा इस क्षेत्र में राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन, भारत नेट आदि कार्यक्रम के द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाया जा सके ।

डिजिटल इंडिया की शुरुआत

इस कार्यक्रम का शुरुआत दिल्ली के इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम टाटा ग्रुप के चेयरमैन साइरस मिस्त्री और आर आई एल के चेयरमैन तथा मुकेश अंबानी, आदि जैसे उद्योगपतियों की उपस्थिति में 1 जुलाई सन 2015 को डिजिटल इंडिया अभियान का शुरू किया गया था । भारत देश को डिजिटल रूप में विकास करने के लिए और देश की आईडी संस्थान में सुधार करने के लिए, डिजिटल इंडिया महत्वपूर्ण शुरुआत है, डिजिटल इंडिया अभियान के विभिन्न योजनाएं हैं जैसे डिजिटल लॉकर, ई स्वास्थ्य, ई शिक्षा, राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल खाद्य को शुरू करके इस कार्यक्रम का अनावरण किया गया ।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का विजन

भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था को परिवर्तित करने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत तीन प्रमुख क्षेत्र केन्द्रित हैं
1.   प्रत्येक नागरिक तक एक मूल सुविधा के रूप में डिजिटल अवसरचना की पहुँच अर्थात् उच्च गति की इण्टरनेट सुविधा, सुरक्षित साइबर स्पेस इत्यादि की सुविधा प्रदान करना ।
2.   प्रशासन एवं उसकी सेवाओं को जनता की माँग पर उसके घर तक पहुँचाना अर्थात् डिजिटल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराकर लोगों को नकद-रहित वित्तीय लेन-देन आदि सेवाओं को उपलब्ध कराना ।
3.   नागरिकों का डिजिटल सशक्तिकरण अर्थात् सभी नागरिकों को डिजिटल साक्षरता प्रदान करना, नागरिकों को सरकारी दस्तावेजों को डिजिटल माध्यम से जमा करवाने की सुविधा उपलब्ध कराना ।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की प्रमुख पहल

प्रत्यक्ष लाभ अन्तरण : इसके अंतर्गत सरकार की ओर से मिलने वाले लाभों/सहायता को सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में अन्तरित किया जाता है । इसमें लगभग 440 कार्यक्रमों को शामिल किया गया है, जिससे आज करोड़ों की बचत होती है ।
डिजिलॉकर : यह नागरिकों को उनके सार्वजनिक और निजी दस्तावेज को पब्लिक क्लाउड में सुरक्षित रखने के लिए निजी जगह उपलब्ध कराकर कागजविहीन अभिशासन उपलब्ध कराता है । उमंग : यह अनेक सरकारी सेवाओं को उपलब्ध कराने वाला सम्पूर्ण मोबाइल एप्प है ।

मेरी सरकार (MY GOV) : यह साझा डिजिटल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराता है, जिसमें नागरिक सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में अपने विचार साझा करते हैं । यह विदेशों में भी लोगों को विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने को प्रोत्साहित करता है ।

डिजिटल भुगतान : इस कार्यक्रम के अन्तर्गत डिजिटल भुगतान केन्द्र; जैसे – भीम एप्प, भीम आधार, भारत क्यू.आर कोड आदि शुरू किए गए हैं, जिससे समय की भी बचत होती है ।

जीवन प्रमाण : इसमें पेन्शन भोगियों को अपना जीवन प्रमाण-पत्र किसी भी समय और किसी भी स्थान पर डिजिटल तरीके से भेजने या प्रस्तुत करने में मदद मिलती है ।

जीईएम : यह आम प्रयोग की वस्तुओं और सेवाओं की सरकारी खरीद का ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म है ।

राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल : इस एकल ऑनलाइन पोर्टल के द्वारा अनेक छात्रवृत्ति योजनाओं की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है ।

ई-कोर्ट्स मिशन मोड परियोजना : इसके अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय में केस स्टेट्स, कोर्ट ऑर्डर आदि कई सेवाएँ शामिल हैं । इसके अंतर्गत नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड भी प्रारम्भ किया गया है, जिसमें कई अदालतों से एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है और डैशबोर्ड के माध्यम से अखिल भारतीय आँकड़ों को प्रदर्शित किया जाता है ।

ई-मेल सेवाएँ : डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम के अन्तर्गत सरकार सभी आधिकारिक संवाद के लिए सुरक्षित ई-मेल सेवा उपलब्ध कराती है ।

ई-हॉस्पिटल : यह ऑनलाइन पंजीकरण फ्रेमवर्क मरीजों को सरकारी अस्पतालों के साथ ऑनलाइन ओपीडी जाँच कराने की सुविधा प्रदान करने की एक पहल है ।

ई-साइन : ई-केवाईसी सेवा के माध्यम से आधार धारक के प्रमाणीकरण का उपयोग करके ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर सेवा की सुविधा प्रदान करता है ।

डिजिटल शिक्षा : इसके अन्तर्गत स्वयं (SWAYAM), स्वयंप्रभा तथा राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी प्रमुख हैं, जो शिक्षा के प्रमुख पाठ्यक्रम उपलब्ध कराते हैं । डिजिटल इण्डिया के अन्तर्गत ई – पुलिस, वर्चुअल लैब, ई-यन्त्र, ई-गवर्नेस जैसे प्रमुख कार्यक्रम संचालित हैं ।

कोविड-19 के दौरान भी सरकार द्वारा कई डिजिटल प्रोग्राम अपनाए गए हैं 

जैसे-
आरोग्य सेतु ऐप :- यह एक कोरोना वायरस ट्रैकिंग ऐप है, जो जीपीएस एवं ब्लूटूथ के माध्यम से ट्रैक करता है ।

चैटबॉट :- प्रधानमंत्री ने लोगों के कोरोना सम्बन्धी प्रश्नों के समाधान हेतु व्हाट्सएप चैटबोट से जुड़ने की घोषणा की थी ।

GOK Direct: – यह ऐप केरल सरकार द्वारा लोगों को कोरोना वायरस महामारी से जागरूक करने हेतु लॉन्च किया गया था ।

आपूर्ति सुविधा ऐप :- नोएडा प्राधिकरण ने लोगों तक आवश्यक वस्तुओं को पहुंचाने के लिए आपूर्ति सुविधा ऐप लॉन्च किया था ।

लोकेटर  COVA :- गोवा सरकार ने कोविड-19 लोकेटर ऐप तथा पंजाब सरकार ने COVA ऐप लॉन्च किया था । कोरोना वायरस में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में लोगों को जागरूक करने हेतु कोरोना महामारी के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में नवीन क्रांति आई। बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित किया गया । वीडियो क्लासेज, प्री रिकॉर्डेड वीडियो क्लासेज, स्लाइड्स, ऑनलाइन टेस्ट, पीडीएफ आधारित ऑनलाइन शिक्षा का बहुत स्तर पर प्रयोग किया जाने लगा । कोरोना के दौरान इस रोग के प्रसार को रोकने तथा इससे बचने हेतु तरह-तरह के उपाय डिजिटल माध्यमों की मदद से लोगों तक पहुँचाए गए । देश भर से डाटा एकत्रीकरण में डिजिटलाइजेशन का बखूबी उपयोग किया गया । कोरोना के दौर में लेन-देन एवं क्रय-विक्रय में नकदी के प्रयोग पर रोक लगी तथा लोगों द्वारा ऑनलाइन पेमेंट को व्यापक पैमाने पर अपनाया गया ।

डिजिटल इंडिया का परिणाम

डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम के माध्यम से आज डिजिटली तरीके से सेवाएँ उपलब्ध हो रही हैं । आज भारत नवाचार का केन्द्र बन चुका है । डिजिटल लॉकर, ई-साइन, डिजिटल भुगतान आदि के कारण लोगों को सरकारी सेवा घर बैठे अपने फोन पर उपलब्ध हो रही है, जिस कारण इन्हें विभिन्न सरकारी कार्यालयों का चक्कर नहीं काटना पड़ता है अर्थात समय व ऊर्जा दोनों की बचत हो रही है । डिजिटल अर्थव्यवस्था से आम लोगों का जीवन सरल हो रहा है, साथ ही इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिल रहा है, क्योंकि डिजिटल अर्थव्यवस्था अपनाने से रोजगार सृजन को बढ़ावा मिला है ।

डिजिटल इंडिया में आने वाली चुनौतियाँ

विश्व बैंक के अनुसार, यदि डिजिटल तकनीक का लाभ विश्व भर के लोगों तक पहुँचाना है, तो जहाँ कहीं भी डिजिटल डिवाइड है, उसे समाप्त करना होगा अर्थात जिन लोगों के पास यह तकनीक उपलब्ध नहीं है, उन्हें भी इसका लाभ पहुँचाना होगा । यह कथन भारत पर भी लागू होता है, क्योंकि भारत में भी डिजिटल डिवाइड काफी ज्यादा है, जिस कारण इसका पूर्ण अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा है। संक्षेप में, भारत में डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम के मार्ग में निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं । डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की सफलता के मार्ग में आज सबसे बड़ी चुनौती आवश्यक अवसंरचना का अभाव है । आज भी भारत में बिजली, इण्टरनेट आदि बुनियादी सुविधाओं का अभाव है ।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को बेहतर इण्टरनेट कनेक्टिविटी के लिए 80 लाख से अधिक बाई-फाई, हॉट-स्पॉट की जरूरत है, जबकि वर्तमान में इसकी उपलब्धता काफी कम है । डिजिटल इण्डिया का मूल आधार सूचना-संचार एवं प्रौद्योगिकी है, लेकिन सूचना-संचार प्रौद्योगिकी क्रान्ति का प्रभाव मुख्यतः भारत के शहरों में पड़ा, जबकि भारत के ग्रामीण निर्धन परिवार पर इसका व्यापक प्रभाव नहीं देखा जा सकता है । फिर शैक्षणिक पिछड़ापन व जागरूकता में कमी भी इस मार्ग में बाधा है । इन सब कारणों से भारत में डिजिटल विभाजन की उपस्थिति बनी हुई है, जोकि एक प्रमुख चुनौती है । नीतिगत बाधाएँ भी डिजिटल इण्डिया को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं । कर सम्बन्धी व अन्य नियामकीय दिशा-निर्देश, एफडीआई नीतियों में अस्पष्टता आदि इसके मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है ।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इण्टरनेट की गति अन्य प्रमुख देशों की तुलना में काफी कम है । यहाँ तक कि श्रीलंका एवं पाकिस्तान में भी 4G की औसत स्पीड भारत से ज्यादा है । डिजिटल इण्डिया की सफलता में साइबर सुरक्षा व डेटा सुरक्षा का मुद्दा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, लेकिन भारत में साइबर खतरा व डेटा लीक की समस्या ज्यादा देखी जा रही है तथा इस सन्दर्भ में अभी कोई कानून नहीं है, जिस कारण डिजिटल इण्डिया को अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है ।

चुनौतियों से निपटने हेतु सरकारी प्रयास

भारत सरकार डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की चुनौतियों से निपटने हेतु निम्न प्रयास कर रही हैं । राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन इसके माध्यम से पूरे देश में 52.5 लाख लोगों को डिजिटल प्रशिक्षण देने के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके अन्तर्गत सभी राज्यों / केन्द्रशासित क्षेत्रों में अधिकृत राशन डीलरों सहित आँगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को सामान्य सूचना प्रौद्योगिकी का ज्ञान और प्रशिक्षण दिया जाता है । इससे ये लोग सरकार की ई-सेवाओं से जुड़कर स्वयं लाभ उठाते हैं, साथ ही अन्य लोगों को इससे जोड़ते हैं । प्रधानमन्त्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता मिशन इस मिशन का मुख्य उद्देश्य वर्ष 2019 तक समस्त राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में 6 करोड़ व्यक्तियों को डिजिटल साक्षर बनाना तथा प्रत्येक उपयुक्त परिवार के एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर कर 40% ग्रामीण परिवारों को इस योजना से जोड़ना था, जो वर्तमान में भी जारी है । भारतनेट इस योजना में वर्ष 2018 तक देश में 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को 100 Mbps की स्पीड पर ब्रॉडबैण्ड कनेक्टिविटी कराने का लक्ष्य रखा गया था । यह विश्व की सबसे बड़ी डिजिटल कनेक्टिविटी परियोजना है, जो वर्तमान में भी जारी है । इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेण्ट फण्ड वर्ष 2020 तक नेट जीरो आयात प्राप्त करने के उद्देश्य से फण्ड ऑफ फण्ड के रूप में इस फण्ड की स्थापना की गई है । डिजिटाइज इण्डिया प्लेटफार्म यह किसी भी संगठन के लिए स्केन किए गए दस्तावेज छवियों के लिए डिजिटलीकरण की सेवाएं प्रदान करता है ।

निष्कर्ष

इस प्रकार, सरकार के सफल प्रयास से डिजिटल क्षेत्र की चुनौतियों के विद्यमान होते हुए भी कार्यों में पारदर्शिता, सरलता, गुणवत्ता में सुधार हुआ है । इससे दूर-दराज के गाँव में भी विभिन्न सेवाओं से लोग लाभान्वित हुए हैं । साथ ही सरकार अब छोटे शहरों में बीपीओ उद्योग स्थापित करने पर बल दे रही है । इससे एक तरफ रोजगार के अवसर सृजित होंगे, दूसरी तरफ सूचना प्रौद्योगिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवा उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा । डिजिटल इंडिया की सफलता के लिए देश की बड़े-बड़े कंपनियों ने काफी खर्च किया है अब तक इसमें तो 4.5 लाख करोड़ खर्च कर चुके हैं । इससे 18 लाख लोगों को नौकरी मिलेगी यह भारत सरकार की बहुत ही अच्छी योजना है इसे भारत की एक अलग पहचान होगी । डिजिटल इंडिया गांव से लेकर शहर तक हर क्षेत्र में जुड़ेगा और हमारे देश का नाम रोशन करेगा । हमारा देश दूसरे देशों से मदद लेता था और अब मदद देने वाला देश बनेगा । इसे भारत की एक अलग ही पहचान होगी ।


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