क्या हमें अपने मित्रों से ईर्ष्या करनी चाहिए? यदि नहीं करनी चाहिए, तो क्यों?

हमें अपने मित्रों  से ईर्ष्या कभी भी नही करनी चाहिए।

हमें अपने मित्रों से ईर्ष्या कभी नहीं करनी चाहिए। हमें केवल अपने मित्रों से ही नहीं किसी से भी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। मित्रों की बात करें तो मित्र ईर्ष्या करने के लिए नहीं होते। मित्र सदैव प्रेम करने के लिए होते हैं।

मित्रता प्रेम का ही दूसरा नाम है। एक दूसरे के प्रति प्रेम-स्नेह होने पर ही मित्रता होती है। इस तरह मित्रता प्रेम का एक रूप है। यदि हम किसी को अपना मित्र मानते हैं और उससे ईर्ष्या भी करते हैं तो दोनों बाते सत्य नही हो सकती है। या तो हम उसे अपना सच्चा मित्र नही मानते, इसी कारण उसके प्रति हमारे मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। अगर हम उसे अपना सच्चा मित्र मानते होते तो हमारे मन में ईर्ष्या उत्पन्न ही नही हो सकती थी।

मित्रता ईर्ष्या का नाम नही है। मित्रता प्रेम का नाम है। मित्र ईर्ष्या करने के लिए नही होते। अच्छे और सच्चे मित्र से एक अच्छा और सच्चा मित्र ईर्ष्या नही कर सकता। इसलिए हमें अपने मित्र से ईर्ष्या नही करनी चाहिए। बल्कि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हम अपने मित्र से ईर्ष्या कर ही नहीं सकते।


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