चाँद को घटते रहने और बढ़ते रहने का मरज़ (रोग) है।
चाँद जब घटता जाता है तो घटता ही चला जाता है और जब बढ़ता जाता है तो फिर बढ़ता ही चला जाता है, जब तक वह बिल्कुल गोल ना हो जाए। यहाँ पर बिल्कुल ही गोल ना हो जाए से तात्पर्य चाँद के आकार के गोल हो जाने से है। चाँद की प्रगति होती है कि महीने में वह एक बार करता है, कि वो एक बार बढ़ता है, तो अर्धचंद्राकार से धीरे-धीरे गोल रूप धारण कर लेता है, जब वह घटता जाता है तो गोल रूप से अर्धचंद्राकार होता जाता है। यहाँ पर बिल्कुल ही गोल ना हो जाने से तात्पर्य चंद्रमा के एकदम गोल रूप धारण करने से है।
शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘चाँद से थोड़ी-सी गप्पे’ में एक दस साल की लड़की चाँद से बातें करते हुए उसे उसके आकार के घटने बढ़ने का ताना-उलाहना दे रही है।
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‘चरणों में सागर रहा डोल’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?