अपनी किसी यादगार यात्रा के विषय में लगभग 200 शब्दों में लिखिए।

मेरी यादगार यात्रा

 

यूँ तो अधिकतर यात्राएं यादगार ही होती हैं। यात्रा में कुछ ना कुछ ऐसा अवश्य घटित हो जाता है जो हमें याद रहता है। लेकिन कुछ यादें ऐसी होती हैं, जो बेहद यादगार यात्रा बन जाती हैं। उनमें कुछ ऐसी विशेष घटना घट जाती है जो हमारे मन पर एक अमिट छाप छोड़ छोड़ देती है, और हमें जीवन भर उसकी स्मृति रहती है। ऐसी ही एक यादगार यात्रा मेरे जीवन में भी हुई।

एक बार मुझे अपने ऑफिस के किसी कार्य से अचानक दिल्ली से नैनीताल जाना पड़ गया। कार्यक्रम एकदम अचानक ही बना था। मैंने सुबह दिल्ली से नैनीताल की बस पकड़ी और बस में सवार हो गया। कड़ाके की सर्दी का मौसम चल रहा था और मुझे नैनीताल की सर्दी के विषय में काफी कुछ सुन रखा था। इस कड़ाके की ठंड में होने वाली परेशानियों से मैं परिचित था। मुझे चिंता हो रही थी कि नैनीताल में कहाँ ठहरूंगा।

बस में मेरी बगल वाली सीट पर एक परिवार यात्रा कर रहा था। वह पति-पत्नी और उनके दो बच्चे थे। वह परिवार काफी मिलनसार और हंसमुख स्वभाव का था। बस में यात्रा के दौरान उनसे मेरी पहचान हो गई। बातचीत में मैंने उन्हें नैनीताल के बारे में बताया कि मैं दिल्ली से नैनीताल किसी कार्य से जा रहा हूँ। उन सज्जन ने कहा कि वे नैनीताल के ही रहने वाले हैं और दिल्ली घूमने आए थे। अब वापस जा रहे हैं।

मैंने उन्हें किसी होटल के विषय में पूछा तो उन्होंने कहा कि नैनीताल में इस समय टूरिस्ट सीजन चल रहा है। इस समय होटल में जगह मिलना मुश्किल है। आप चाहे तो हमारे घर ठहर सकते हैं। मुझे जैसे अनजान व्यक्ति को अपने घर रहने का आमंत्रण देकर उन्होंने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। मैंने उनके अनुरोध को विनम्रता पूर्वक मना करते हुए कहा कि होटल में कहीं ना कहीं जगह मिल ही जाएगी। उन्होंने कहा, आप कोशिश कर लो, यदि आपको जगह नहीं मिले तो आप हमसे संपर्क कर लेना।

नैनीताल पहुंच कर मैंने कई होटलों में ठहरने के लिए पता किया, लेकिन उन सज्जन की बात सच निकली। मुझे कहीं पर भी जगह नहीं मिली। मुझे उनकी याद आई। मैंने उनको फोन किया उन्होंने कहा तुरंत आप हमारे घर चले आओ। उनके घर पहुंच कर उन्होंने मेरा अद्भुत आतिथ्य सत्कार किया। जिस कार्य हेतु मैं आया था, उन्होंने अगले दिन वह कार्य के लिए संबंधित जगह तक पहुंचने में न केवल मदद की बल्कि नैनीताल के कई दर्शनीय स्थलों पर भी घुमाया। दो दिन उनके घर जाकर उन्होंने मुझे एक पल भी यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं किसी अनजान व्यक्ति के घर पर हूँ।

नैनीताल में मेरा कार्य हो गया था और मै नैनीताल भी घूम लिया। मैंने उन्हे दिल्ली आने और दिल्ली आने पर मेरे घर ठहरने का निमंत्रण देकर उनसे विदा ली। उस सज्जन परिवार के अतिथि सत्कार से मै अनुगृहित हो गया था। वास्तव में वह यात्रा एक यादगार यात्रा के रूप में जीवन की स्मृतियों में अंकित हो गई।


Related questions

‘स्वयं अनुभव किया हुआ आतिथ्य’ इस विषय पर अपने विचार 100 शब्दों में लिखिए।

व्यक्ति का व्यवहार ही उसे सबका प्रिय या अप्रिय बनाता है। इस विषय पर 200 शब्दों में एक निबंध लिखें।

Chapter & Author Related Questions

Subject Related Questions

Recent Questions

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here