विचार लेखन
स्वयं अनुभव किया हुआ आतिथ्य’
अतिथि सत्कार करना हमारे भारत की परंपरा रही है और हमारे भारत में ‘अतिथि देवो भव:’ मानने की परंपरा रही है, लेकिन कभी-कभी अतिथि देव नहीं जाना भी बन जाते हैं। अब चूँकि अतिथि का अर्थ है, जो किसी भी तिथि को आ जाए यानि जिसके आने की कोई तिथि ना हो। ऐसा ही हमारे साथ हुआ।
हमारे एक दूर के मौसा जी बिना किसी सूचना के हमारे घर आ धमके। हमने सोचा तो दो-चार दिन रहेंगे और चले जाएंगे, कोई बात नहीं, अतिथि सत्कार हो जाएगा। लेकिन मौसा जी लगता है पूरा लंबा प्रोग्राम बना कर आए थे। जब 4 दिन बाद जब हमने बातों-बातों में ही उनके वापस जाने का इरादे जानने हेतु इनसे उनके मन की बात जाननी चाही तो पता चला कि वह कम से कम एक महीना यहां से हिलने वाले नही हैं। फिर हमने 1 महीने की जगह पौने दो महीने तक उनको जो झेला, तब से अतिथि शब्द से ही डर लगने लगा है। महानगरों के इस व्यस्त जीवन में अतिथि का आवभगत करना किसी भी पहाड़ पर चढ़ने से दुष्कर कार्य है।
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