विचार/अभिमत
स्वार्थ के लिए सब प्रीति करते हैं
इस विचार से सहमत हुआ जा सकता है कि स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति करते हैं। इस संसार में सब स्वार्थ की डोर से ही जुड़े हुए हैं। हर प्राणी का कोई ना कोई स्वार्थ ही है। प्रीति यानी प्रेम की भावना के पीछे भी स्वार्थ ही होता है। लेकिन हर किसी का प्रेम केवल स्वार्थ पर ही आधारित हो यह भी आवश्यक नहीं। माता-पिता का अपने संतान के प्रति प्रेम केवल स्वार्थ पर नहीं होता।
अक्सर हमें सुनने में आता है कि फलां व्यक्ति के बेटे बुढ़ापे में उनका साथ नहीं दे रहे। फलां दंपत्ति को अपने घर से दर-दर भटकना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण संतानों का एकदम स्वार्थी हो जाना होता है। लेकिन वही माता-पिता अपनी संतान का कभी बुरा नहीं सोचते। संतान भले कितनी भी स्वार्थी हो जाए, लेकिन माता-पिता कभी स्वार्थी नहीं होते। संतान कितना भी उनके साथ खराब व्यवहार करें लेकिन माता पिता अपनी संतान के लिए अहित कभी नहीं सोचते। यह उनका निस्वार्थ प्रेम है।
इस संसार में बहुत से प्रेम इसने वाले संबंध ऐसे हैं, जो किसी न किसी स्वार्थ बस एक दूसरे से जुड़े होते हैं, लेकिन हर किसी का प्रेम स्वार्थ पर आधारित हो ऐसा आवश्यक नहीं होता। निस्वार्थ प्रेम बहुत कम संख्या में भले ही पाए जाते हैं, लेकिन निस्वार्थ प्रीति भी होती है। इस कथन से आंशिक रूप से अवश्य सहमत हुआ जा सकता है कि स्वार्थ के लिए ही अधिकतर लोग प्रीति करते हैं।
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