यदि बस जीवित प्राणी होती और बोल सकती होती तो..
यदि बस जीवित प्राणी होती और वह बोल सकती होती तो वह अपनी पीड़ा बोलकर व्यक्त कर सकती थी। अक्सर बसों में उसकी क्षमता से अधिक यात्री भर दिए जाते हैं। इस तरह पर बस पर अतिरिक्त भार पड़ता है बस यदि बोल सकती होती तो वह कहती कि मेरी जितनी क्षमता नहीं है, उससे ज्यादा यात्री मेरे अंदर समा जाते हैं। तब मुझे चलते समय कितनी अधिक परिश्रम करना पड़ता है, कितना अतिरिक्त श्रम लगाना पड़ता है, उसकी पीड़ा मैं ही जानती हूँ।
बस यह भी बोलती कि कुछ ड्राइवर अक्सर मुझे अंधाधुंध स्पीड में दौड़ते हैं, जिस कारण मुझे बहुत अधिक तेज दौड़ना पड़ता है और मेरे कल-पुर्जों को नुकसान पहुंचने का भी खतरा रहता है और दुर्घटना होने की आशंका रहती है।
बस यह भी बोल सकती थी कि जब भी कहीं पर आंदोलन आदि होते हैं तो अक्सर उपद्रवी मुझको ही निशाना बनाते हैं और मेरे शीशे आदि को तोड़ते हैं। मुझ पर पत्थरबाजी करते हैं। इन सब के गुस्से का शिकार मैं ही बनती हूँ। यदि बस बोल सकती होती तो बस ड्राइवर और यात्रियों से कहती कि आप लोग मेरे अंदर उतने लोग ही सवारी करो, जितनी मेरी क्षमता है। मेरी क्षमता से अधिक मुझ पर भार लादने की कोशिश मत करो।
यदि बस बोलती होती तो वह आंदोलनकारियों से कहती की तुम अपना गुस्सा मुझ पर मत उतारा करो। जिनके खिलाफ आप लोग आंदोलन कर रहे हो उस पर अपना गुस्सा उतारो मेरा जिस बात से कोई संबंध नहीं उसके लिए अपना गुस्सा मुझ पर उतर कर मेरा नुकसान क्यों करते हो।
बस यदि बोल सकती होती तो वह कहती कि अक्सर बस के मालिक ड्राइवर आदि उमसें आवश्यकता से अधिक सवारी और समान लेकर चलते हैं और मेंटेनेंस नहीं करते, जिससे बस की हालत खराब होती जाती है और वह समय से पहले ही खराब हो जाती है।
यदि बस बोल सकती तो बस यह कहती कि मेरी भी बराबर देखभाल करो और मुझे उतना ही प्रयोग में लो जितना उचित हो। आवश्यकता से अधिक मुझे प्रयोग मिलकर मेरे कल-पुर्जों की हालत को खराब मत करो।
यदि बस बोल सकी होती तो सभी यात्रियों से कहती कि मैं आपको आपकी मंजिल तक पहुँचाती हूँ। मैं बारिश, धूप ,सर्दी-गर्मी का परवाह न करती हुई काम करती रहती हूँ। मेरे अंदर बैठकर आप सब आराम से सुरक्षित यात्रा करते हुए अपनी मंजिल तक पहुँचते हो। यदि आप अपनी सफलता यात्रा के लिए थोड़ी विनम्रता दिखाते हुए मुझे धन्यवाद दिया करो तो इससे मुझे काम करते रहने का उत्साह मिलता है।
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