‘मारतहू पा परिअ तुम्हारे’-लक्ष्मण ने ऐसा किससे और क्यों कहा?

‘मारतहू पा परिअ तुम्हारे’ ऐसा लक्ष्मण ने परशुराम से कहा था।

लक्ष्मण ने परशुराम से की बात क्षमा याचना करते हुए ये बात कही। जब सीता स्वयंवर के समय राजा जनक के दरबार में श्री राम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़ने पर परशुराम वहाँ आकर क्रोधित हो गए। तब लक्ष्मण के साथ हुए वाद-विवाद में लक्ष्मण ने परशुराम से क्षमा याचना करते हुए कहा कि देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त तथा गाय पर प्रहार करना या वीरता दिखाना हमारे कुल की मर्यादा नहीं है। इन लोगों पर किसी भी तरह का हिंसा करना पाप कर्म के समान है और इनसे हारना हमारे लिए अपयश के समान है। यदि हम आपके ऊपर किसी तरह का प्रहार करेंगे तो यह उचित नहीं होगा। हमें आपके पैर पड़ना चाहिए। इसलिए हे महामुनि! यदि मैंने कुछ अनुचित कहा हो तो आप धैर्य धारण करके क्षमा प्रदान करें। हम व्यर्थ के लड़ाई झगड़े में नहीं पड़ना चाहते। आप ब्राह्मण हैं, हमारे पूजनीय, सम्मानीय हैं। आपका आदर सत्कार करना हमारा परम धर्म है।

संदर्भ पाठ
(राम लक्ष्मण परशुराम संवाद, कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी क्षितिज)

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