‘पूजा के लिए तो दान-दक्षिणा चाहिए’ किंतु किसी मरणासन्न व्यक्ति के जीवन की रक्षा करने में भी ‌हमारा समाज अपनी परंपराओं से नही हटता, क्या आप इसे उचित मानते हैं ? अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार/अभिमत

‘पूजा के लिए तो दान-दक्षिणा चाहिए’ लेकिन किसी मरणासन्न व्यक्ति की रक्षा करने के विषय में भी हमारा समाज अपनी परंपराओं से पीछे नहीं हटता है, हमारे विचार में यह बिल्कुल भी उचित नहीं है।

मानवता की सेवा ही सबसे सच्ची पूजा है। ईश्वर की पूजा करना अच्छी बात है, हमें हमेशा ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। लेकिन जहाँ मानवता की बात आती है, वहाँ पर मानवता को प्राथमिकता देनी चाहिए। ईश्वर यह कभी नहीं कहते कि मनुष्य अपनी मानवता को भूल कर केवल सदैव उसका ही ध्यान करें। यदि समाज कोई परंपरा निभा रहा है तो अच्छी बात है, लेकिन उस परंपरा के रास्ते में मानवता रूपी कोई कर्तव्य सामने आ जाता है तो उसे अपनी मानवता वाले कर्तव्य को पहले निभाना चाहिए।

अपनी परंपरा और ईश्वर की पूजा-पाठ के लिए दान-दक्षिणा आदि मानवता से ऊपर का विषय नहीं है। जहाँ पर परंपरा और मानवता को चुनने की बात आए, वहाँ पर सदैव मानवता को चुनना चाहिए। जहाँ पर ईश्वर पूजा और मानवता की सेवा की बात आए, वहाँ पर सदैव मानवता की सेवा को चलना चाहिए। जो लोग मानवता की सेवा को प्राथमिकता देते हैं, ईश्वर भी उनसे ही प्रसन्न होते हैं। वास्तव में दुखी दीन-दुखियों की सेवा करना ही सच्ची ईश्वर पूजा है।


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