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तताँरा वामीरो की पहली मुलाक़ात कहाँ हुई थी ? 1. नारियल के झुंड के पास 2. पेड़ के पास 3. समुद्र के पास 3. गाँव के बाहर टीले पर​

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सही विकल्प होगा…

समुद्र के पास

विस्तार से वर्णन

तताँरा वामीरो की मुलाकात समुद्र के पास हुई थी। एक दिन तताँरा दिन भर के अथक परिश्रम करने के बाद समुद्र के किनारे टहल रहा था। सूरज लगभग डूबने को ही था। समुद्र से ठंडी-ठंडी हवाएं आ रही थीं। तताँरा का मन एकदम शांत था। वह अपने विचारों में खोया हुआ समुद्र की रेत पर चला जा रहा था। तभी उसके कानों में गानों का एक मधुर स्वर पड़ा। वह स्वर की दिशा में बढ़ता चला गया, जहाँ उसे वामीरो मधुर गाना गाती हुई दिखाई दी। इस तरह का तताँरा की पहली मुलाकात वामीरो से समुद्र के किनारे हुई थी।

‘तताँरा-वामीरो की कथा’ एक प्रेमी युगल की कथा है, जिसके लेखक लीलाधर मंडलोई हैं। इस कथा में उन्होंने निकोबार द्वीप समूह में तताँरा और वामीरो नामक युवक-युवती के बीच की उपजे प्रेम तथा उनके मिलन ना होने के कारण दोनों के त्यागमयी बलिदान की कथा को प्रस्तुत किया है।


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तताँरा-वामीरो का चरित्र-चित्रण कीजिए। (तताँरा-वामीरो की कथा)

तताँरा और वामीरो की मृत्यु को त्यागमयी क्यों कहा गया है? उनकी मृत्यु के बाद समाज में कौन सा परिवर्तन आया?

अब्दुल फजल कौन था? अकबरनामा को उसके महत्वपूर्ण योगदान में से एक क्यों माना जाता है स्पष्ट कीजिए!

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अबुल फजल अकबर के दरबार का एक शाही इतिहासकार था, जिसने अकबर के जीवन पर आधारित ‘अकबरनामा’ नामक कृति का संयोजन किया था।

अबुल फजल का पूरा नाम ‘अबुल फजल इब्न मुबारक’ था, जिसका जन्म 24 जनवरी 1951 ईस्वी में आगरा में हुआ था। वह शीघ्र ही अकबर के दरबार में कर्मचारी बन गया और अपनी योग्यता के कारण जल्दी ही प्रधानमंत्री पद तक जा पहुंचा।

अबुल फजल ने अकबर के जीवन पर आधारित ‘अकबरनामा’ नामक कृति का सृजन किया। यह कृति तीन खंडों में इसी कृति का तीसरा खंड ‘आईने अकबरी’ के नाम से जाना जाता है। ‘आईने अकबरी’ को अकबर के समय का गजट भी कहा जा सकता है, क्योंकि आईने अकबरी में अबुल फजल ने तत्कालीन मुगल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था की बारीक जानकारी प्रस्तुत की है। उसने ‘आईने अकबरी’ में मुगल साम्राज्य का सांख्यिकी सर्वेक्षण को प्रस्तुत किया है तो राजस्व व्यवस्था तथा आर्थिक स्थिति का विवरण दिया है। इसके अलावा उसने खजाने और सिक्कों से संबंधित विवरण भी पेश किया है। आईने अकबरी भी 5 भागों में विभाजित है और उसने हर बात में अलग-अलग विषयों को केंद्र रखकर उनका विस्तृत विवेचन किया है।

अकबरनामा को अबुल फजल के सबसे महत्वपूर्ण योगदान में एक इसलिए माना जाता है क्योंकि यह कृति उसने तत्कालीन मुगल साम्राज्य का बारीकी से विश्लेषण प्रस्तुत किया है जो तत्कालीन मुगल साम्राज्य की दशा का स्पष्ट रूप से वर्णन करता है और हमें उस समय की आर्थिक राजनीतिक एवं सामाजिक जानकारियों का विवरण प्राप्त होता है। इसी कारण अकबरनामा को अबुल फजल के महत्वपूर्ण योगदान में से एक योगदान माना जाता है।


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‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ इस उक्ति का पल्लवन कीजिए।

शामनाथ तथा उनकी पत्नी ने चीफ़ को दावत पर बुलाने के लिए कौन-कौन-सी तैयारियाँ की? (चीफ़ की दावत)

कविता किसे कहते हैं? विभिन्न विद्वानों के कथनों द्वारा पुष्टि कीजिए।

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कविता से तात्पर्य साहित्य की उस विधा से है, जिसमें लय एवं छंदों के माध्यम से गत्यात्मक रूप में रचना को प्रस्तुत किया जाता है। कविता में भाव तत्व की प्रधानता होती है और इसमें चिंतन अथवा विचारों की जटिलता नहीं होती अर्थात कविता के द्वारा किसी बात को भावात्मक रूप में स्पष्ट करने के साथ-साथ बिंब-विधान भी किया जाता है जो पाठक के मन में स्थायित्व पैदा करता है।
बिंब-विधान एक तरह का शब्द चित्र है जो केवल कविता के माध्यम से ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

सरल शब्दों में कविता की परिभाषा कहें तो ‘मन के भावों को शब्दों के माध्यम से गत्यात्मक रूप में प्रस्तुत करने की कला को कविता कहते हैं।’

विभिन्न विद्वानों द्वारा कविता की परिभाषाएं इस प्रकार हैं…

आचार्य रामचंद्र शुक्ल कविता की परिभाषा करते हुए कहते हैं कि “हृदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।”

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कविता की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि “कविता का लोक प्रचलित अर्थ वह वाक्य है, जिसमें भावावेश हो, कल्पना हो, पद-लालित्य हो तथा प्रयोजन की सीमा समाप्त हो चुकी हों।”

इस तरह अलग विद्वानों ने कविता की अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं, कविता के प्रमुख अवयवों में भाव -पक्ष, कला-पक्ष, भाषा-शैली, छंद, अलंकार तथा रस आदि प्रमुख होते हैं।


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बारहमासा कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है ?​ (नारायण लाल परमार)

‘प्रवाद-पर्व’ कविता की मूल संवेदना का रेखांकन कीजिए।

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‘जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी’ यह विज्ञापन आप रेडियो के लिए तैयार कीजिए।

तिमंजिला में कौन सा समास है?

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तिमंजिला में समास :

तिमंजिला : तीन मंजिल का समाहार

समास भेद : द्विगु समास

स्पष्टीकरण

तिमंजिला में द्विगु समास इसलिए होगा क्योंकि इसका समास विग्रह करने पर किसी संख्या अभास होता है और पहला किसी संख्या को प्रदर्शित करता है। द्विगु समास में पहला पद एक संख्यावाचक विशेषण की तरह कार्य करता है और दूसरे पद की संख्या को प्रकट करता है।

द्विगु समास

द्विगु समास की परिभाषा के अनुसार जिस समस्त पद का पहला पद अर्थात पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण की तरह कार्य करता हो। अर्थात किसी संख्या को प्रदर्शित करता हो, वहाँ दिगु समास होता है। द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण तथा दूसरा पद प्रधान पद होता है।

जैसे

  • नवरात्रि : नौ रात्रियों का समूह या समाहार
  • सप्ताह : सात दिनों का समूह या समाहार
  • चौराहा : चौराहों का समूह या समाहार
  • अष्टधातु : आठ धातुओं का समूह या समाहार

Other questions

निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह करके समास का नाम लिखिए- (क) हथकड़ी (ख) रोगग्रस्त (ग) शताब्दी (घ) त्रिवेणी (ङ) कमलनयन (च) लाभ-हानि (छ) नवग्रह (ज) तुलसीकृत (झ) राजीवलोचन (ञ) बैलगाड़ी (ट) यथासंभव (ठ) घुड़सवार (ड) लंबोदर

गुलाब जामुन कौन सा समास है?

दो मित्र प्रातः काल भ्रमण कर रहे हैं। उनके बीच पेड़-पौधों के बचाव हेतु हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद

पेड़-पौधों के बचाव के संबंध में दो मित्रों के बीच बातचीत

कमल ⦂ विमल! देखो हमारे आसपास हरियाली कितनी कम हो गई है। पेड़-पौधों की संख्या निरंतर घटती जा रही है।

विमल ⦂ हाँ, सही कह रहे हो। मैं पिछले 5 वर्षों से रोज प्रातः काल भ्रमण करने के लिए इस बगीचे और आसपास के क्षेत्र में आता रहता हूँ। पहले यहाँ पर पेड़-पौधों की भरमार थी। अब पेड़-पौधे काफी कम हो गए हैं।

कमल ⦂ यह एक चिंतनीय विषय है। इसी तरह हमारे आसपास की हरियाली कम होती गई तो हमारे पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।

विमल ⦂ हाँ, सही बात है। पेड़ पौधे वातावरण की वायु को शुद्ध करते हैं। यदि पेड़ पौधों की संख्या ऐसे ही कम होती रही तो हमें इस प्रदूषण वाले वातावरण में शुद्ध वायु मिलनी भी दूभर हो जाएगी।

कमल ⦂ हम सभी को इस बारे में तुरंत सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है। हमें अपने क्षेत्र में पेड़-पौधों की निरंतर घटती जा रही संख्या को रोकना होगा और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा ताकि हमारा क्षेत्र हरा-भरा रहे।

विमल ⦂ तुम्हारा यह सुझाव बिल्कुल अच्छा है। हम सबको इस बारे में जरूर कुछ करना चाहिए।

कमल  ⦂ इस रविवार को हम मोहल्ले के सभी गणमान्य  व्यक्तियों को एकत्रित करके इस बारे में एक मीटिंग करते हैं और अधिक से अधिक संख्या में पेड़-पौधे लगाने के लिए वृक्षारोपण का कार्यक्रम आयोजित करने के बारे में कोई निर्णय लेते हैं।

विमल ⦂ यह आइडिया बिल्कुल सही है। मैं आज ही अपने पहचान के कुछ लोगों से इस बारे में बात करता हूँ और रविवार को हम सभी कॉलोनीवासी एक मीटिंग करेंगे।

कमल ⦂ हाँ, मैं भी कुछ लोगों से बात करता हूँ। हमें व्हाट्स ग्रुप के द्वारा रविवार को मीटिंग रखने का प्रस्वाका मैसेज भेजना चाहिए। सब लोगों के रजामंदी मिलने के बाद हम लोग इस संबंध में मीटिंग करेंगे।

विमल ⦂ हाँ ये सही रहेगा। यदि मीटिंग न हो सकी या लोगों हमारे प्रस्ताव पर कोई रुचि नहीं दिखाई तो हम दोनों की पेड़-पौधों के संरक्षण के लिए अकेले जुट जाएंगे।

कमल ⦂ हाँ, बिल्कुल ऐसा ही करेंगे।


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दिन-प्रतिदिन बढ़ती गर्मी को लेकर रोहन और सोहन के बीच संवाद को लिखें।

क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

‘देवों की वाणी’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द क्या होगा?

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देवों की वाणी इस शब्द समूह के लिए एक शब्द इस प्रकार होगा…

देवों की वाणी : देव-वाणी

व्याख्या

‘देवों की वाणी’ इस शब्द समूह के लिए सटीक शब्द ‘देव-वाणी’ होगा देव अर्थात देवताओं द्वारा की जाने वाली वाणी।

प्राचीन काल में पौराणिक काल में देव वाणी बेहद आम थी, जब देवों द्वारा व्यक्त किए गए वचनों को देव-वाणी कहा जाता था। देव से तात्पर्य सभी तरह के देवी देवताओं से हैं। हिंदू धर्म देव-वाणी की अवधारण काफी प्राचीन काल से रही है। सभी तरह के देव-देवी, चाहें वह ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा, काली, इंद्र, वरुण, गणेश आदि के मुख से निकली वाणी ही देव वाणी है।

संबंधित अनेक शब्दों के लिए एक शब्द के कुछ और उदाहरण

आकाश से उत्पन्न होने वाली वाणी : आकाशवाणी
जिस वाणी में मधुरता यानि मिठास हो : मधुरवाणी
जिस वाणी में अमृत हो : अमृतवाणी

 


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इन शब्दों के लिए अनेक शब्दों के लिए एक शब्द बताइए। ‘जो विश्वास न करता हो’ ‘जो सब पर विश्वास करता हो’ जिसके पास बहुत साधन हो’

रैंचिंग खेती से क्या तात्पर्य है?

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रैंचिंग खेती (Ranching Farming)

रैंचिंग खेती से तात्पर्य उस खेती से होता है, जिसमें भूमि की जुताई, भूमि की बुवाई अथवा गुड़ाई इत्यादि नहीं की जाती है। इस तरह की खेती के अंतर्गत फसलों का उत्पादन नहीं किया जाता। रैंचिग खेती में प्राकृतिक वनस्पति उगायी जाती है, जो कि स्वभाविक रूप से अपने-आप उगती है। इस खेती में उगी गई वनस्पति को तरह-तरह के पालतू पशुओं जैसे भेड़, बकरी, गाय, भैंस आदि को चराया जाता है। इस तरह की खेती उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ पर पशुपालन अधिक होता है, और बड़ी मात्रा में पशुओं के लिए चारे की आवश्यकता होती है।

इस खेती का मुख्य उद्देश्य पशुओं के लिए चारागाह बनाना है अर्थात शाकाहारी पशुओं के लिए खाने योग्य पर्याप्त वनस्पति उपलब्ध रहे, इसलिए ‘रैंचिंग खेती’ की जाती है। इस खेती के अंतर्गत भूखंड को प्राकृतिक वनस्पतियों को उगने के लिए छोड़ दिया जाता है, जो पशुओं के चारे के काम आती है।

इस तरह की खेती भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के अलावा तिब्बत के पर्वतीय और पठारी क्षेत्रों में की जाती है, तथा विश्व के अन्य पर्वतीय और पठारीय क्षेत्रों में की जाती है।


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वर्षा जल संग्रहण के तीन लाभ लिखिए।

‘यात्रा जिसे मैं भूल नहीं सकता’ विषय पर अनुच्छेद लिखिए।​

अनुच्छेद

यात्रा जिसे मैं भूल नहीं सकता (संस्मरण)

 

वह यात्रा जो मैं कभी भूल नहीं सकता। यह यात्रा मेरे मन मस्तिष्क पर पूरी तरह अंकित हो गई थी। हुआ यूं कि गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने नाना नानी के घर जा रहा था। मेरे साथ मेरे माता-पिता और छोटी बहन भी थी। हमारे नाना-नानी का घर हमारे शहर से 500 किलोमीटर दूर दूसरे शहर में था।

हम चारों बस से नाना नानी के घर जाने के लिए सवार हुए क्योंकि नाना नानी के घर तक कोई ट्रेन नहीं जाती थी। 500 किलोमीटर दूर बस की यात्रा का सफर 7-8 घंटे में पूरा होना था। हम लोग सुबह 10 बजे बस में सवार हो गए। सात आठ घंटे का सफर काटना काफी उबाऊ होना था लेकिन बस में हमारा 7-8 घंटे का सफर यूं कट गया कि हमें पता ही नहीं चला। इसका मुख्य कारण हमारे साथ बस में सवार हुए वह सज्जन थे, जो पूरी बस में हमारा मनोरंजन करते रहे।

वह सज्जन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने न केवल तरह-तरह के चुटकुले सुनाए बल्कि कई प्रसिद्ध व्यक्तियों की मिमिक्री भी की। उन्होंने हम सब बस यात्रियों का पूरे यात्रा के दौरान अच्छा खासा मनोरंजन किया। उनके द्वारा किए गए मनोरंजन के कारण हमें बस की लंबी यात्रा बेहद छोटी लगी। उनकी बातें इतनी मनमोहक थीं कि हमारा मन कर रहा था कि बस का सफर कभी खत्म नहीं हो और हम उनकी बातें सुनते रहे। जब हमारा स्टॉप आ गया तो हमने उनसे विदा ली। उन्हें आगे जाना था। हमनें हमारा सफर आसान बनाने के लिए उन्हें धन्यवाद किया। सच में बस की वह यात्रा बेहद अविस्मरणीय रही। बस की वह यात्रा मैं भूल नहीं सकता।


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अगर मेरे मामा का घर चाँद पर होता। (अनुच्छेद)

कक्षा में मेरा पहला दिन (अनुच्छेद लेखन)

किस फल या फल के बीज में ज़हर पाया जाता है?

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सेब एक ऐसा फल है जिसके फल के बीज में ज़हर पाया जाता है, सेब के बीजों में साइनाइड नाम का तत्व पाया जाता है। सायनाइड एक जहरीला तत्व होता है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से सेब एक बेहद पोषक तत्वों से युक्त फल होता है और अक्सर कहा जाता है कि रोज एक सेब का सेवन हर तरह की बीमारियों से दूर रखता है। लेकिन सेब के बीज बिल्कुल भी खाने योग्य नहीं होते।

सेब के बीजों में एमिडगलिन नाम का तत्व पाया जाता है, जो सायनाइड नामक विषाक्त तत्व को उत्पन्न करता है। सेब के बीज खाने योग्य नहीं होते है,  इसलिए इन्हे खाना नहीं चाहिए। हालाँकि सेब के बीज बेहद सख्त होते हैं और इन्हें तोड़ पाना आसान नहीं होता।

सेब के एक बीज से 0.06% से लेकर 0.24% मिलीग्राम सायनाइड प्राप्त होता है और यदि सेब के बीज खा लिए जाएं तो यह शरीर में जाकर प्रतिक्रिया करते हैं और साइनाइड नाम का तत्व विकसित होता हैं। खाने वाले की तबीयत खराब हो सकती है। उसे तो सिर दर्द, उल्टी, पेट दर्द जैसी समस्या हो सकती है।

वैसे तो सेब के बीज खाने योग्य नहीं होते और उन्हें भूल कर भी नहीं खाना चाहिए। यदि  गलती से सेब के बीज खा भी लें तो तुरंत उपचार के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए।


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ऐसा कौन सा फल है जो फ्रिज में रखने पर ज़हर बन जाता है?

ऐसा कौन सा फल है जो फ्रिज में रखने पर ज़हर बन जाता है?

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ऐसा कोई फल नहीं होता, जिसे फ्रिज में रख दें और वह तुरंत ज़हर बन जाए। हाँ, ऐसे अनेक फल अवश्य होते हैं, जिन्हें फ्रिज में रखने से उनके अंदर के पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं और वह खाने योग्य खाने की दृष्टि से नुकसानदायक होते हैं। तरबूज एक ऐसा फल है, जिसे फ्रिज में रख देने से उसके अंदर जहरीले तत्व बन जाते हैं।

तरबूज को फ्रिज में रख देने से उसके स्वाद और प्रकृति में परिवर्तन हो जाता है, इस कारण फ्रिज में रखा हुआ तरबूज खाने की दृष्टि से नुकसानदायक होता है। फ्रिज में लंबे समय तक रखा तरबूज को खाने से खाद्य विषाक्तता यानि फूड प्वाजनिंग हो सकती है। इसलिए तरबूज को कभी भी फ्रिज में रख नहीं रखना चाहिए और कटा हुआ तरबूज तो किसी भी हालत में फ्रिज में नहीं रखना चाहिए।

तरबूज की तासीर पहले से ही ठंडी होती है और अधिक ठंडी जगह पर रखने से उसके अंदर प्रतिक्रिया होती है और वह उसके अंदर जहरीले नुकसानदायक तत्व विकसित हो जाते हैं। कटा हुआ तरबूज फ्रिज में रखना और अधिक खतरनाक है। ये कहना ठीक नही होगा कि तरबूज या अन्य कोई फल फ्रिज में रखने से वह सीधा जहर बन जाता है। ये कहना ठीक होगा कि तरबूज को फ्रिज में रखने से उसके पोषक तत्व लगभग समाप्त हो जाते है, और उसमें हानिकारक तत्व बन जाते है। फ्रिज में रखा तरबूज खाने आप बीमार पड़ सकते हैं। आपको फूड प्वाइजनिंग हो सकती है।


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हमारे देश को भारत या भारतवर्ष क्यों कहा जाता है?

निम्न में से कौन सा रोग बैक्टीरिया द्वारा होता है? A. टोबैको मोजेक B. क्रूसीफर्स का ब्लैक रॉट C. गन्ने का रेड रॉट D. आलू की लेट ब्लाइट

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सही उत्तर होगा…

B. क्रूसीफर्स का ब्लैक रॉट

विस्तृत विवरण

क्रूसीफर्स का ब्लैक रॉट बैक्टीरिया द्वारा होने वाला रोग है। ये रोग जैंथोमोनस कैम्पेस्ट्र पी. वी. (Xanthomonas campestris pv) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। ये जीवाणु सामान्यतः गोभी, बंदगोभी, ब्रोकोली, केल आदि जैसे क्रूसिफेरस सब्जियों को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

  • टोबैको मोजेक एक विषाणुजनिता रोग है। ये लोग तंबाकू को पौधो को प्रभावित करता है।
  • गन्ने का रेड रॉट फंगल के कारण होने वाला रोग है, ये गन्ने को मुख्य रूप से प्रभावित करता है।
  • आलू की लेट ब्लाइट भी एक फंगल रोग है, जो मुख्यतः आलू के पौधों को प्रभावित करता है।

क्रूसीफर्स ब्लैक रॉट एक आम और विनाशकारी बीमारी है जो किसी भी विकास चरण में क्रूसिफ़र परिवार (कोल फ़सल) के पौधों को प्रभावित करती है। ब्लैक रॉट को बैक्टीरियल ब्लाइट, ब्लैक स्टेम, ब्लैक वेन, स्टेम रोट या स्टंप रोट के नाम से भी जाना जाता है।


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टीकाकरण क्या है? टीकाकरण क्यों किया जाता है?

वृजलाल गोयनका कैसे गिरफ्तार हुआ? (डायरी का एक पन्ना)

बृजलाल गोयनका लाल बाजार पर 200 लोगों के जुलूस के साथ गिरफ्तार हुआ था। बृजलाल गोयनका कई दिनों से जुलूस की तैयारी के लिए कार्य कर रहा था। वह इससे पहले लेखक के साथ दमदम जेल भी जा चुका था और कई दिनों तक जेल में रहा था। जब 26 जनवरी 1931 को जुलूस निकाला जा रहा था तो वह डंडा लेकर वंदे मातरम बोलता हुआ मॉन्यूमेंट की ओर तेजी से दौड़ा। वहां पहुंचते-पहुंचते वह रास्ते में ही अपने आप गिर पड़ा। उसे एक अंग्रेज घुड़सवार ने लाठी मारी और उसे पकड़ लिया, फिर उसे दूर ले जाकर छोड़ दिया।

उसके बाद बृजलाल गोयनका स्त्रियों के जुलूस में शामिल हो गया, वहां पर भी अंग्रेजों ने पहले उसे पकड़ फिर छोड़ दिया। तब भी बृजलाल गोयनका नहीं माना और इस बार वह 200 आदमियों का जुलूस बनाकर लाल बाजार पहुंच गया और वहां पर अंग्रेजों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।  इस तरह वृजलाल गोयनका लाल बाजार पर 200 आदमियों के जुलूस के साथ गिरफ्तार हुआ।

‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ एक संस्मरणात्मक कहानी है जो 26 जनवरी 1931 नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कोलकाता में निकाले स्वाधीनता जुलूस के घटनाक्रम पर आधारित है। 26 जनवरी 1931 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हिंदुस्तान में दूसरा स्वतंत्रता दिवस मनाया था। उससे पहले 26 जनवरी 1930 को उन्होंने हिंदुस्तान का पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया।


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चंडीगढ़ के रॉक गार्डन का अनुभव डायरी में लिखिए।

सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति और इंटरनेट का महत्व (निबंध)

निबंध

सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति और इंटरनेट का महत्व (निबंध)

 

सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट का महत्व आज किसी से छुपा नहीं है। आज का युग डिजिटल युग है, जो कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आई क्रांति के कारण संभव हुआ है। आज इंटरनेट के बिना जीवन संभव नहीं है। इंटरनेट ने जीवन को कितना सुविधाजनक बना दिया है, ये बात किसी से नही छिपी है। सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के महत्व के बारे में जानते हैं।

प्रस्तावना

आज का युग डिजिटल युग है। सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के क्षेत्र में अभूतपूर्व आई है। इंटरनेट ने पूरे विश्व को वैश्विक गाँव में बदल कर रख दिया है और हर काम को आसान बना दिया है। हजारों मील दूर बैठकर भी कोई भी कार्य पलक झपकते संपन्न किया जा सकता है, चाहे वह हजारों किलोमीटर दूर बैठे अपने किसी प्रिय मित्र से बात करना हो, अपने किसी प्रिय मित्र को संदेश भेजना हो, किसी से वीडियो कॉल के माध्यम से बात करना हो, अपने किसी प्रिय मित्र को कोई संदेश भेजना हो अथवा घर बैठे हजारों मीटर दूर से संवाद स्थापित करना हो, शॉपिंग करना हो यह सारे कार्य इंटरनेट और सूचना क्रांति संभव हो पाए हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के लाभ

सूचना प्रौद्योगिकी में हुए विकास उन्नति के कारण आज हम कठिन से कठिन कार्य को सरल बना चुके हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के कारण आज हम किसी भी प्राकृतिक आपदा का पहले से ही सटीक अनुमान लगाकर उससे निपटने के लिए पूर्व तैयारी कर लेते हैं, जिससे हम प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान को कम से कम कर सकते हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी के कारण आज कृषि के क्षेत्र में एक से एक उन्नत तकनीक का विकास हुआ है। किसान भाई टेलीविजन और इंटरनेट के माध्यम से कृषि से संबंधित उच्च तकनीकों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और उसी के अनुसार कृषि करके और आधुनिक उपाय अपनाकर अपनी पैदावार को बढ़ाने में सक्षम हो रहे हैं। इंटरनेट के कारण हजारों किलोमीटर दूर बैठे अपने किसी प्रिय मित्र से संवाद स्थापित करना हो, चाहे वह वॉइस कॉल के रूप में हो अथवा आमने सामने एक-दूसरे को देख कर वीडियो कॉल के रूप में बात करना हो, यह सब संभव हो सका है।

आज ऐसे अनेक मैसेजिंग प्लेटफार्म के माध्यम से चंद सेकेंड में अपना कैसा भी संदेश अपने मित्र-सबंधी आदि तक पहुंचाया जा सकता है। इस तरह हमने समय पर भी विजय प्राप्त कर ली है और अपने जीवन के बहुत से बहुमूल्य समय को नष्ट होने से बचा लिया है यह सब सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के कारण ही संभव हो पाया है। शिक्षा के क्षेत्र में इंटरनेट के कारण अभूतपूर्व क्रांति आई है। आज ऑनलाइन शिक्षा आम हो चली है। अब ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी घर बैठे ही अपने ज्ञान को परिमार्जित कर रहे हैं। वह हर तरह की अपनी समस्या का समाधान इंटरनेट पर चंद मिनटों में पा लेते हैं।

आज इंटरनेट पर एक से एक बढ़कर ऐसी वेबसाइट और एप्स मौजूद हैं, जो हर तरह की शिक्षा को उपलब्ध कराते हैं। बहुत सी वेबसाइट या एप्स थोड़ा सा शुल्क लेकर समाधान दान करते हैं और बहुत से निःशुल्क रूप से शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं, इससे दूरदराज के ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थी भी लाभान्वित हो रहे हैं। इंटरनेट विद्यार्थियों के लिए सूचनाओं का खजाना बनकर उभरा है और उनके ज्ञान भंडार में निरंतर वृद्धि होती जा रही है।

इंटरनेट पर मौजूद सोशल मीडिया की सहायता से आज नए-नए लोगों से परिचय हो रहा है और एक दूसरे के साथ अपने विचार को साझा करते अपने विचारों का दायरा बढ़ा रहे हैं, जिससे लोग एक दूसरे के विचार से लाभान्वित हो रहे हैं। यह सब सूचना प्रौद्योगिकी एवं इंटरनेट के कारण ही संभव हुआ है।

निष्कर्ष

इस तरह हम कह सकते हैं सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट मानव के जीवन में एक क्रांति ला दी है। इस कारण जीवन इतना अधिक सुगम हो गया है और मानव इसका इतना आदी हो गया है कि इसके बिना जीवन सरल नही होने वाला है।


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“शिक्षा में राजनीति का बढ़ता दवाब ” विषय के पक्ष और विपक्ष पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

विचार/अभिमत

शिक्षा में राजनीति का बढ़ता दवाब

 

पक्ष

शिक्षा में राजनीति का बढ़ता जवाब एक चिंतनीय विषय है। विद्यार्थी स्कूल कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते हैं ताकि उनका आगे का भविष्य सुदृढ़ हो सके। लेकिन आजकल यह देखने में आ रहा है कि शिक्षा में राजनीति का दखल निरंतर बढ़ता जा रहा है। कॉलेज में छात्र राजनीति निरंतर बढ़ती जा रही है। इस छात्र राजनीति को देश के अलग-अलग राजनीतिक दल प्रश्रय दे रहे हैं। इससे छात्रों के भविष्य की हानि हो रही है। उनका मूल्य ध्यान अपनी शिक्षा से हटकर राजनीति पर केंद्रित हो जाता है। राजनीति एक ऐसा आकर्षण जाल है जो हर किसी को आकर्षित करता है।

राजनीति शक्ति प्राप्त करने का माध्यम है और हर व्यक्ति शक्ति अपने हाथ में लेने का आनंंद लेना चाहता है। कॉलेज आदि के छात्र भी इस आकर्षण से बच नहीं पा रहे हैं। जिस आयु में उन्हें अपना पूरा ध्यान शिक्षा पर केंद्रित करना चाहिए ताकि वह अपने भविष्य को संवार सकें, उस आयु में वह छात्र राजनीति में पड़कर अपने भविष्य को चौपट कर लेते हैं। आरंभ में छात्र राजनीति में उन्हें बड़ा मजा आता है, लेकिन आगे इसके दुष्परिणाम भी होते हैं। राजनीति कभी भी प्रेम एवं सद्भाव का विषय नहीं है।

राजनीति में हमेशा विरोध एवं घृणा की प्रधानता रही है। राजनीति अलग-अलग गुटों में बांटने को प्रेरित करती है छात्र भी इसी कारण अलग-अलग गुटों में बंट जाते हैं और वे आपसी भाईचारे को भूल कर वैमनस्यता पाल लेते हैं। किसी युवा के जीवन के आरंभिक चरण में उसके मन में यदि वैमनस्यता आ जाए तो यह उसके आगे के जीवन में उसे एक विनम्र और अच्छा नागरिक बनने से रोकती है। इसलिए शिक्षा में राजनीति का दबाव एक चिंतनीय विषय है। हमारे विचार में कॉलेज में छात्र राजनीति बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए और राजनीतिक दलों का कॉलेज कैंपस में प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना चाहिए। विद्यार्थी को केवल अपनी शिक्षा ग्रहण करने पर ध्यान लगाना चाहिए। पूरी तरह शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने करियर चुनने की स्थिति में वह राजनीति को अपने करियर चुन सकते हैं, लेकिन छात्र जीवन में राजनीति का प्रवेश नहीं होना चाहिए।

विपक्ष

राजनीति भी हमारे समाज का ही एक अंग है। यदि विद्यार्थी अपने युवा जीवन से ही राजनीति का वातावरण पाता है, तो उसे देश के हालातों को जानने का अवसर मिलता है जो उसके लिए आगे एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनने में सहयोग कर सकता है । शिक्षा में राजनीति के बढ़ते दबाव में आवश्यक नहीं कि हर विद्यार्थी छात्र राजनीति में रुचि ले। जो विद्यार्थी राजनीति में अपना बनाना चाहते हैं, वह छात्र राजनीति में रुचि ले सकते हैं। जिन्हें किसी दूसरे क्षेत्र में अपना करियर बनाना है, वे इससे दूर रह सकते हैं। इसीलिए हमारे विचार के अनुसार शिक्षा में राजनीति का दवाब उचित है। यह विद्यार्थियों को देश की राजनीति को समझने का अवसर प्रदान करता है।

विद्यार्थी देश का भविष्य हैं और भविष्य में देश की बागडोर उनके हाथों में ही जाने वाली है, तो यदि अपने देश की राजनीति को जान लेंगे तो आगे ये अनुभव उनके काम आ सकता है। देश के बहुत से ऐसे नेता है, जो छात्र राजनीति से उभरकर आए और एक सफल नेता बने। इसलिए शिक्षा में राजनीति का दवाब एक निश्चित मर्यादा में उचित है।

टिप्पणी :

यहाँ पर ‘शिक्षा में राजनीति का बढ़ता दवाब’ विषय पर पक्ष और विपक्ष दोनो तरह के विचार प्रस्तुत है। आप अपनी सुविधा अनुसार किसी एक पक्ष से सहमत-असहमत हो सकते हैं।


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भारत में ग़रीबी के कारण (निबंध)

निबंध

भारत में ग़रीबी  के कारण

 

प्रस्तावना

आज के अनुमान से भारत में आज भी 27 करोड़ लोग ग़रीबी  रेखा से नीचे रहते हैं । आजादी के समय देश की 80 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी । आज 22 फीसदी लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन संख्या के तौर पर इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है गरीबी एक अभिशाप है ।

शिक्षा का अभाव

आज के आधुनिक समय में भी गरीब लोगों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए सरकारें अपने विभिन्न प्रकार के विद्यालय चलाती हैं । सभी लोग शिक्षा की इस सरकारी व्यवस्था के बारे में नहीं जानते हैं । इसी कारण से उचित प्रकार की शिक्षा गरीबों को मिल नहीं पाती है । शिक्षा के अभाव में गरीब लोग जिन्दगी में मिलने वाले मौके नहीं पाते हैं और न ही कोई नया मौका खुद बना पाते हैं । उनको ये पता ही नहीं चलता कि किस तरह से एक या दो पीढ़ी में गरीब अपनी ग़रीबी के कुचक्र को तोड़ सकते हैं ।

कुछ गरीब शिक्षा को महत्वहीन मानते हैं । वह अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाए उनसे काम करवा कर परिवार की आमदनी बढ़ाना पसंद करते हैं । ये बात कुछ हद तक कम गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों के लिए भी लागू होती है । ये लोग प्रारम्भिक और आगे की शिक्षा तो पा जाते हैं लेकिन विशेषज्ञता वाली शिक्षा जो कि या तो सरकारी सरकारी क्षेत्र में सीमित है या फिर बहुत ही महंगी है । कई प्रकार के आगे बढ़ने के अवसर उचित शिक्षा के अभाव में लोगों के हाथ से निकल जाते हैं ।

भारत की बढ़ती जनसंख्या

देखा जाए तो जनसंख्या हमारे देश में गरीबी की जड़ है । इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य सुविधाएं और वित्तीय संसाधनों की कमी भी बढ़ती जाती है। इसके अलावा उच्च जनसंख्या दर से प्रति व्यक्ति आय भी प्रभावित होती है और प्रति व्यक्ति आय घटती है । एक अनुमान के अनुसार के भारत पूरी दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की ओर अग्रसर है । भारत की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है उस रफ्तार से भारत की अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ रही है ।

अब तो भारत की सड़कों पर बढ़ती हुई जनसंख्या महसूस होने लगी है । भारत में जनसंख्या इस गति से बढ़ रही है कि कुल उत्पादन बढ़ने पर प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में अधिक धन नहीं हो पाता, जिससे जीवन-स्तर ऊंचा नहीं हो पाता । इसी वजह से बेरोजगारी बढ़ती है । बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाने के लिये कठोर कदम उठाने का समय आ गया है ताकि गरीबी को भी काबू में किया जा सके ।

सामाजिक परिस्थितियाँ

भारत में गरीबी का एक और बहुत बड़ा कारण है सामाजिक परिस्थितियां और सामाजिक रूप से विभेद भी है । सामाजिक विभेद को तो राजनैतिक रूप से भारत में विभिन्न स्वरूपों में के आरक्षण और गरीबी हटाओ योजनाओं के द्वारा दूर किया गया है । लेकिन सामाजिक स्थितियों पर अभी भी कुछ नहीं किया गया है ।

भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल सामाजिक आधार आज तक भी पुरानी सामाजिक संस्थाएं तथा रूढ़ियां हैं । यह वर्तमान समय के अनुकूल नहीं है । ये संस्थाएं हैं – जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा और उत्तराधिकार के नियम आदि । ये सभी भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से होने वाले परिवर्तनों में बाधा उपस्थित करते हैं । चाहे तड़क भड़क भरी शादी में होने वाला खर्चा हो, शादी में दिये जाना वाला दहेज हो, मृत्यु भोज हो या फिर आये दिन आने वाले तीज-त्यौहार हों, सब पर समाज में अपना मुंह दिखाने और अपनी हैसियत बताने के नाम पर बहुत खर्चा होता है । बहुत से लोगों को तो हमने इन सब खर्चो के लिये लोन लेते हुए देखा है ।

गरीबी का कुचक्र इसी प्रकार के खर्चो के कारण बना रहता है । इन खर्चो में मध्यम आय वर्ग भी शामिल है । मध्यम आय वर्ग में तो आजकल अपनी सामाजिक हैसियत में दिखावा करने के लिये अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च करके बच्चों को महंगी शिक्षा, कार खरीदना, विदेश यात्रा करना इत्यादि भी शामिल हो गये हैं । उधार चुकाते- चुकाते अपनी मेहनत की कमाई लोग ऐसे ही कामों में लगा देते हैं और गरीबी में आ जाते हैं ।

भारत में गरीबी का मुख्य कारण आर्थिक विषमता एवं राष्ट्रीय आय का असमान वितरण है करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है । ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों का सर्वा था अभाव है । अधिकांश मजदूर खेतों में काम करते है । उनके पास अपनी भूमि का अभाव है । भूमिहीन मजदूरों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर है । भू स्वामी उन्हें काम के बदले उचित मजदूरी भी नहीं देते है ।

महानगरों में कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के पास रहने के लिए अपना घर नहीं है । मजदूरों के बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा एवम् शिक्षा की कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है । उन्हें रोजगार से किसी भी समय निकाला जा सकता है । असंगठित क्षेत्र के 37 करोड़ों मजदूरों कि स्थिति अत्यंत ही सोचनीय है। दैनिक मजदूरी के द्वारा उनके परिवार का भरण पोषण होता है । सरकार ने स्वतंत्रता के बाद योजना आयोग का गठन किया। जिसके द्वारा योजना बुद्ध तरीके से योजना बनाकर देश से गरीबी दूर करने का प्रयास प्रारंभ किया । लेकिन अभी तक सरकार को वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई है ।

मोदी सरकार ने योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग का गठन किया है। नीति आयोग देश से गरीबी दूर करने के लिए नई योजनाएं बना रही है। इसके अंतर्गत मुद्रा बैंक के द्वारा गरीबों एवं बेरोजगारों को अपना रोजगार शुरू करने के लिए लोन दिया जा रहा है। इसमें महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है।

सरकारी योजनाएं भी लोगों को गरीब बना रही हैं ।

भारत की केन्द्रीय सरकार हो या फिर राज्यों की सरकारें, सब गरीबों के लिए दम भरते हैं और गरीबों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं को चलाते रहते हैं । इन सब योजनाओं से थोड़ा बहुत लाभ गरीबों का होता है और बहुत सारा फायदा बीच के दलालों, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और नेताओं को होता है ।

इन योजनाओं को चलाने के लिए अनेक कंपनियां, स्वयं सेवी संस्थाएं और कर्मचारी लगते हैं और वे ही इसके वास्तविक लाभार्थी बनते हैं । दूसरी तरफ गरीब लोगों के लिए जो ये कल्याणकारी योजनाएं चलती हैं इनमें गरीबों को गरीब ही रहने का पुरस्कार मिलता है । अधिकांश सरकारी गरीबी को योजनाओं में गरीब के किसी न किसी पैमाने के अन्दर होने के कारण लाभार्थियों को तरह-तरह की राशन, घर, पढ़ाई इत्यादि की सुविधाएं मिलती हैं । अगर कोई गरीब अपनी मेहनत से गरीबी के पैमाने से ऊपर आ गया तो उसको मिलने वाली सारी सुविधाएँ बंद हो जाती हैं ।

गरीबी के पैमाने से ऊपर आने पर भी गरीब आदमी कोई अमीर व्यक्ति नहीं बन जाता है । लेकिन सरकार उसकी फ्री मिलने वाली सुविधाएं बन्द कर देती है । इसलिए भी गरीब अपने आप को गरीब बनाये रखने में ठीक महसूस करता है । दूसरी बात ये कि जब सब कुछ सरकार दे ही रही है तो गरीब लोग सोचते हैं फिर गरीबी से ऊपर उठ कर मेहनत कर के कमाने की व्यवस्था करने से क्या फायदा ? क्या आपने कोई ऐसी सरकारी योजना देखी है जो लोगों से कहती हो कि यदि आप अपनी मेहनत और सरकारी सहायता से अपनी गरीबी से निकल कर कम से कम अल्प आय वर्ग में आ जाओगे तो आपको कई प्रकार की विशेष सुविधाएं मिलेंगी ? नहीं न ।

सरकार द्वारा बनाई गई गलत नीतियां

भारत की धरती जिस पर भगवान ने इतने प्राकृतिक संसाधन जिसमें लंबे मैदानी क्षेत्र, नदियां, जिनमें एक अच्छी जलवायु और ढेर सारे प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं, दिए हैं कि अगर ढंग से सरकारी नीतियां रहें तो ये देश वापस प्राचीन काल की तरह सोने की चिड़िया बन सकता है । फिर भी सवाल यह है कि आज़ादी के इतने साल बाद भी भारत एक बेहद गरीब देश क्यों है ? दरअसल भारत में मेहनत करके गरीबी से ऊपर आने को कभी प्रोत्साहित नहीं किया गया । लोगों को उत्पादकता के कामों में लगने के बजाय केवल नौकरी करने को ही रोजगार का माध्यम बना दिया ।

सरकारों ने सोशलिस्ट समाजवादी नीतियां बना कर ऐसे श्रम कानून और नीतियां बनाईं कि लोगों के लिये मेहनत करके अपना काम करना मुश्किल हो गया । इस दौरान अच्छे पढ़े लिखे लोग उचित अवसरों की तलाश में भारत से बाहर जाते रहे । मानव संपदा जो कि भारत को आगे लो जाती वह दूसरे देशों के विकास में काम आती रही ।

भारत में अधिकांश लोगों खास कर व्यवसायियों पर इतने प्रकार के टैक्स (कर) लगा दिए गए हैं कि लोग कर बचाने के लिए बड़े पैमाने पर काला धन बनाने लगे । और इस प्रकार जो धन भारत में लगता और देश को आगे ले जाता वह विदेशी बैंकों में जमा होने लगा । इस प्रकार भारत की सरकारी नीतियों के कारण भी लोग गरीब होते जाते हैं।

कीमतों में वृद्धि और विकास की धीमी गति

उत्पादन में कमी तथा जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण भारत जैसे अल्प विकसित देशों में कीमतों में वृद्धि हो जाती है। जिसके कारण गरीब व्यक्ति और गरीब हो जाता है । पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि में औसत वार्षिक दर में वृद्धि बहुत कम रही GDP की विकास दर 4 प्रतिशत होने पर भी यह लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि करने में असफल रही।

जनसंख्या में 2 प्रतिशत की वृद्धि होने पर प्रति व्यक्ति आय मात्र 2.4 प्रतिशत रही । प्रति व्यक्ति आय में कमी गरीबी का मुख्य कारण है। बुनियादी वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतें भी गरीबी का एक प्रमुख कारण हैं । गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति के लिए जीवित रहना ही एक चुनौती है । भारत में गरीबी का एक अन्य कारण जाति व्यवस्था और आय के संसाधनों का असमान वितरण भी है।

औद्योगीकरण और कृषि का पिछड़ापन

उत्पादन के परंपरागत साधनों का स्थान मशीनों ने लिया तो फैक्ट्री प्रणाली अस्तित्व में आई। बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हुए, ग्रामीण कुटीर उद्योग प्रायः नष्ट हो गए हैं। परिणामस्वरूप जो लोग कार्य करके आर्थिक उत्पादन कर रहे थे, उनके सामने संकट खड़ा हो गया। भारत में कृषि मोटे तौर पर मानसून पर आधारित है। कभी मानसून अति सक्रिय तो अभी अति निष्क्रिय होने पर कृषि उत्पादन पर असर पड़ता है। कृषि की गिरी हुई दशा, संसाधनों की कमी, उन्नत खाद, बीजों तथा सिंचाई सुविधाओं के अभाव भी ग़रीबी को बढ़ाते हैं।

राष्ट्रीय उत्पादन की धीमी वृद्धि

भारत का कुल राष्ट्रीय उत्पाद जनसंख्या की तुलना में काफी कम है। इस कारण भी प्रति व्यक्ति आय में कमी के कारण ग़रीबी बढ़ी है।

प्राकृतिक आपदाएँ

भारत में ग़रीबी के अनेक कारणों में से एक भारत के विभिन्न भागों में किसी न किसी समय आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ भी कहीं न कहीं दोषी हैं। कहीं अत्यधिक ठंड का मौसम रहता और वर्ष के अधिकांश समय बर्फ़ रहती है, कहीं ज्यादा बारिश से बाढ़ रहती है, कहीं सूखा रहता, कहीं जमीन रेगिस्तानी है, कहीं जंगल हैं । कभी-कभी भूकंप भी आ जाता है । इन सब प्राकृतिक कारणों से बड़ी जनसंख्या प्रभावित होती है । जब काम करने का मौका प्राकृतिक आपदाओं की वजह से चला जाता है तो लोगों की आय भी गिर जाती हैं अतः ग़रीबी बनी रहती है ।

उपसंहार

भारत में गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है । गरीब बहुत गरीब होते जा रहे है, और अमीर और अमीर बनते जा रहे है । जनसंख्या बढ़ने के कारण गरीबी बढ़ती ही जा रही है । लोगों के पास रहने के लिए जगह नहीं रही है । हम सब को भारत की ग़रीबी को हटाने के लिए एक साथ जुट होकर प्रयत्न करना चाहिए ।


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निबंध

स्वावलंबन का महत्व

 

प्रस्तावना

स्वावलंबन की एक झलक पर न्योछावर कुबेर कोष है। स्वावलंबन से मनुष्य को उज्ज्वल जीवन मिलता है । यदि कोई मुझसे सुखी और सफल जीवन का एक मात्र आधार पूछे तो मैं निःसंदेह ही स्वावलंबन की ओर इशारा करूंगी । स्वावलंबन का सीधा सा अर्थ है – अपनी क्षमता पर, अपने प्रयत्नों पर आश्रित रहते हुए जीवन के संघर्ष में कूदना ।स्वावलंबन जीवन में सीखना पड़ता है । इसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति, कठोर परिश्रम, और निर्भीकता की आवश्यकता होती है । स्वावलंबन ना तो पुस्तकों को पढ़ कर सीखा जाता है और ना ही किसी के उपदेश सुनकर आता है।

स्वावलंबन का महत्व

स्वावलंबन तो जीवन की अन्य आवश्यकताओं की तरह धीरे–धीरे विकसित किया जाता है। स्वावलंबन की ही तरह दूसरों पर आश्रित रहना भी अभ्यास से ही आता है। जिस बच्चे को बचपन से ही काम करने की आदत नहीं डाली गई, जिसका बस्ता तक नौकर स्कूल तक छोड़ कर आते है, जिसका गृह कार्य भी उसके भाई–बहन या फिर माता- पिता करते हैं , जो बच्चा ट्यूशन पढ़ कर पास होता रहा, ऐसे बच्चे से आत्मनिर्भर होने की उम्मीद करना बेकार है । जिस व्यक्ति को अपना काम स्वयं करने की आदत नहीं होती है वह व्यक्ति सदा ही परेशान रहता है । उसमें ना तो आत्मसम्मान विकसित हो पाता है और ना ही आत्म विश्वास । दूसरों के सहारे अपने जीवन में उन्नति की आशा करने वाला व्यक्ति बैसाखियों के सहारे चलने वाला अपाहिज ही होता है जोकि विश्व चैम्पीयन बनने का सपना देख रहा है । यदि कभी सौभाग्य से वह उन्नति कर भी लेता है तो वह अधिक देर तक स्थिर नहीं रह पाता है । उसका पतन अवश्य ही होता है । पराश्रित या परावलम्बी होने का अर्थ होता है गुलाम होना, हीनता को स्वीकार करना ।

स्वावलंबन के फायदे

स्वाबलंबी होने के बहुत से फायदे है, इससे आत्मविश्वास बढ़ता है : स्वावलंबन से हमारे अंदर कई गुना आत्मविश्वास बढ़ता है । दुनिया के सामने खड़े होने की हिम्मत बढ़ती है, किसी भी परेशानी को देख मन घबराता नहीं है, बल्कि गहरे विश्वास के सहारे हम हर मुसीबत का डट कर सामना कर कर सकते हैं।

जीवन के फैसले खुद ले सकता है : सच ही कहा है, जीवन किसी जंग से कम नहीं है । हर रोज यहाँ हमें मानसिक व शारीरिक तनाव वाले युद्ध का सामना करना पड़ता है । हमारे सामने कई बार ऐसी बातें सामने आ जाती है, कि हमें बड़े से बड़े फैसले खुद लेने पड़ते है, वह भी कम समय पर । अगर हम स्वावलंबी नहीं होंगे तो हर बार हम जीवन के इन फैसलों को लेने के लिए दूसरों का दरवाजा खटखटाएंगे । जीवन में हमें दोस्त, जीवनसाथी, भाई-बहन, माँ बाप तो मिलते है, जिनसे हम जब चाहें मदद ले सकते है, लेकिन जीवन का कोई भरोसा नहीं होता है, ये कब तक आपके साथ है, आप नहीं जानते है । तो इससे बेहतर है, आपको इस काबिल होना चाहिए कि खुद फैसले ले सकें । हम अपना अच्छा बुरा खुद समझेंगे, साथ ही अपने परिवारों की भलाई को समझ कर काम करेंगे । स्वावलंबी इनसान अपने कर्तव्य को भली भांति जानता है, जीवन के किसी भी मोड़ पर वह अपने कर्तव्य से नहीं भागेगा । अपने कर्तव्य को वह रिश्तों से भी ज्यादा अहमियत देता है ।

मन प्रसन्न रहता है : स्वावलंबी के जीवन में सुख सुविधा हो न हो, लेकिन उसके मन में शांति जरूर रहती है. उसे पता होता है, उसके जीवन में जो कुछ भी है, वह उसी की मेहनत का फल है, अपने जीवन के लिए वह किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराता है । स्वावलंबी अपने जीवन के दुखों में भी सुख का एहसास करता है. वह हमेशा समझदारी से काम करता है ।

समाज व देश का विकास होता है : देश व समाज के विकास के लिए, स्वावलंबी होना मुख्य बात है । स्वावलंबी न होने पर हम किसी के पराधीन होते है, हम स्वतंत्र होकर कोई भी काम नहीं पाते है । देश की आजादी के पहले ऐसा ही था, भारत देश ब्रिटिश सरकार के अधीन था, वह उन्हें स्वावलंबी बनने ही देना चाहती थी ।क्योंकि ब्रिटिश सरकार को पता था, अगर देश की जनता स्वावलंबी हो जाएगी तो उनकी कोई नहीं सुनेगा । आज भारत देश की जनता स्वावलंबी है, इसलिए देश तेजी से विकास कर रहा है । हमारा समूचे दुनिया में नाम है । स्वावलंबी मनुष्य को ही आज के समय में सम्मान दिया जाता है । मनुष्य को सिर्फ अपनी आत्मनिर्भरता के बारे में नहीं सोचना चाहिए । हम सब इस देश, समाज के अभिन्न अंग है, हमें इसे आगे बढ़ाने के लिए साथ में काम करना होगा । स्वावलंबन को अपने तक सीमित न रखें, इसे समूचे देश के विकास का हिस्सा बनायें।

बड़ा आदमी बनाता है : आज जो देश विदेश के बड़े-बड़े अमीर, कामयाब इनसान है, उन्होंने ने भी स्वावलंबन का हाथ थामा। जब इन लोगों ने अपने काम की शुरुआत की, तब इनके पास अपनी मेहनत, लगन थी, जिसके सहारे ये लोग अपने आप को कामयाब बना पाये है। यह बड़े बड़े आदमी आज हजारों को स्वावलंबी बना रहें है । इनकी सफलता की पहली सीढ़ी परिश्रम होती है।

औरतें आत्मनिर्भर होती है : आज के समय में महिलाओं को सशक्त बनाने की बात कही जाती है। अब पहले जैसा नहीं रह गया है कि घर के लड़कों को ही शिक्षा दी जाये, उन्हें ही घर से बाहर काम करने की इजाजत है। आज समय बदल चूका है, लड़कियां, महिलाएं बाकी लोगों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रही है। ऐसा कोई काम या क्षेत्र नहीं है, जहाँ लड़कियों से अपना लोहा नहीं मनवाया है। महिलाएं शादी के बाद अपने घर, बच्चे व ऑफिस का काम बखूबी संभाल लेती है। महिलाओं के स्वावलंबी होने से उनमें आत्मविश्वास तो आता ही है, इसके साथ ही वे जीवन की हर लड़ाई से लड़ने के लिए तैयार भी होती है। कब कैसी समस्याएं आ जाये, हम नहीं जानते । महिलाओं पर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी होती है, धन संबंधी समस्या आने पर स्वावलंबी औरतें अपने दम पर इसे हल कर लेती है ।

अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि “God helps those who help them अर्थात भगवान उनकी सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करता है । स्वावलंबी व्यक्ति अवसर का गुलाम नहीं होता है । अपने जीवन में आने वाले हर अवसर को पकड़ लेता है। राष्ट्रीय स्तर पर जो राष्ट्र अपनी सहायता स्वयं नहीं कर सकता, स्वावलंबी नहीं बनते । अन्ततः उनकी आजादी समाप्त हो जाती है ।

नन्हा सा जापान अमेरिका के औद्योगिक साम्राज्य को चुनौती दे रहा है क्योंकि उन्होंने स्वावलम्बन का पाठ पढ़ लिया है। भारत ने खाद्यान्नों में स्वावलंबन होने में सफलता प्राप्त कर ली है। 2004 में सुनामी समुद्री तूफान से भारत में भयंकर विनाश हुआ, परंतु भारत सरकार ने अमरीकी सहायता लेने से इनकार करके स्वावलम्बन का परिचय दिया है। विश्व इतिहास के पन्नों पर जिन महापुरुषों के चरणों की छाप लगी है, वे सभी स्वावलंबी थे। अब्राहम लिंकन एक झोंपड़ी से निकलकर व्हाइट हाऊस मे जा पहुंचे। नेपोलियन एक निर्धन परिवार से निकलकर फ्रांस का ही नहीं, आधे विश्व का सम्राट बन गया ।

उपसंहार

इस तरह स्वावलंबन के महत्व को हमने जाना। स्वाबलंबी होकर जीने से जो अपार सुख और संतोष मिलता है, वो परालंबी होकर अर्थात दूसरों पर निर्भर रहने से नही मिलता है। स्वालंबन से व्यक्ति के जीवन में जो आत्म विश्वास आता है, वो उसके जीवन को उच्चता की ओर ले जाता है, और उसके चरित्र को उज्जवल बनाता है। इसलिए स्वावलंबी बनकर जीना सीखें।


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समाज में फैली बुराइयों का उल्लेख करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए​।

अनुच्छेद लेखन

समाज में फैलती जा रही बुराई

 

आज हमारा समाज निरंतर पतन की ओर अग्रसर होता जा रहा है। समाज में अनेक बुराइयां फैलती जा रही हैं, जोकि चिंता का विषय है। समाज में भाईचारा खत्म होता जा रहा है। धर्म जाति के आधार पर लोग एक दूसरे से लड़ने लगे हैं। इसके अलावा आज समाज में दिखावा और प्रदर्शन का बहुत अधिक जोर हो गया है। लोग अधिक स्वार्थी हो गए हैं। समाज के लोग आत्मकेंद्रित हो गए हैं, और स्वयं के स्वार्थ तक सिमट कर रह गए हैं। हमारे समाज में भ्रष्टाचार भी एक प्रमुख समस्या बन गई है। लोग अपने लाभ के लिए कोई भी गलत कार्य करने से भी नही चूकते। जिसको मौका मिल जाता है वह सब कुछ हासिल कर लेना चाहता है। रिश्तो की अहमियत खत्म होती जा रही है। नई पीढ़ी तो रिश्तों की अहमियत बिल्कुल भी नही समझती। नई पीढ़ी को न तो अपने पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों की परवाह है और न ही अपनी संस्कृति पर गर्व है। नई पीढ़ी बस पश्चिम सभ्यता का अंधानुकरण करने में ही लगी है। समाज में नैतिक मूल्यों को पतन की से समाज गलत दिशा मे जाता जा रहा है। स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के नाम लोग कुछ भी उल्टे सीधे आचरण को करने लगे हैं, उनके अंदर सदाचरण और नैतिकता का बिल्कुल अभाव हो गया है। इसलिए समाज में फैलती ये बुराइयां समाज के लिए एक चिंता का विषय हैं।


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कक्षा में मेरा पहला दिन (अनुच्छेद लेखन)

‘हास्य का जीवन में महत्व’ पर 100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

मोबाइल का बच्चों द्वारा अधिक प्रयोग ना किया जाए इसके बढ़ते प्रयोग पर रोकथाम के लिए संपादक के नाम जन-जागृति पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

मोबाइल के उपयोग के संबंध में संपादक के नाम जन-जागृति पत्र

 

दिनांक : 30 अप्रेल 2024

सेवा में,
श्रीमान संपादक महोदय,
प्रभात खबर, दिल्ली

माननीय संपादक महोदय,

आजकल बच्चों द्वारा मोबाइल के उपयोग की प्रवृत्ति दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। बच्चों द्वारा निरंतर मोबाइल का उपयोग करने की यह प्रवृत्ति बेहद नुकसानदायक है, और एक चिंतनीय समस्या है। आज मोबाइल की पैठ हर व्यक्ति के जीवन में हो चुकी है। हर व्यक्ति को मोबाइल की आवश्यकता महसूस होने लगी है और लगभग हर किसी व्यक्ति के पास मोबाइल है। बच्चे भी इससे अछूते नहीं रहे हैं।

बच्चे थोड़ा सा बड़ा होते ही माँ-बाप से अपनी मोबाइल दिलाने के लिए जिद करते हैं और मोबाइल लेकर ही मानते हैं। मोबाइल लेकर वे इसका दुरुपयोग करने लगते हैं। बच्चे लोग दिनभर या तो मोबाइल में सोशल मीडिया पर बिजी रहते हैं या मोबाइल पर गेम खेलते रहते हैं, इससे उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। मोबाइल पर गेम खेलने अथवा मोबाइल पर सोशल मीडिया पर व्यस्त रहने के कारण वह अपनी पढ़ाई से विमुख होते जा रहे हैं और जीवन में उन्हें उनकी जो प्राथमिकता शिक्षा हासिल करने की है, वह उससे ध्यान भटका कर मोबाइल पर व्यर्थ की बातों में अपना समय गवां रहे हैं।

मेरे विचार के अनुसार सरकार को तथा समाज के जागरूक नागरिकों को इस संबंध में कोई पहल करनी आवश्यक है। मेरे सुझाव के अनुसार एक निश्चित उम्र सीमा तक बच्चों द्वारा मोबाइल को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। किसी भी जगह पर बच्चों द्वारा मोबाइल का प्रयोग पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। माँ-बाप को भी इस संबंध में निर्देश करना चाहिए अपने बच्चों को मोबाइल देने की जल्दी ना करें। बच्चे के पूरी तरह समझदार होने तक शिक्षा अच्छी तरह हासिल करने के बाद ही मोबाइल दें।

बच्चों द्वारा मोबाइल का अत्याधिक उपयोग करने बढ़ रही प्रवृत्ति पर से शीघ्र ही अंकुश लगाना होगा नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ी मोबाइल के भंवर जाल में फंसकर अपने भविष्य को चौपट कर लेगी।

एक पाठक,
राकेश सैनी,
राजेंद्र नगर, दिल्ली ।


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नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन की जाँच मशीन पर एक यात्री के भूलवश छूटे एक लाख रुपए के बैग को पुलिस ने उसे लौटा दिया। इस समाचार को पढ़ कर जो विचार आपके मन में आते हैं, उन्हें किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र के रूप में लिखिए।

समाज में व्याप्त आपराधिक प्रवृत्तियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए जनसत्ता के सम्पादक को एक पत्र लिखिए।

नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन की जाँच मशीन पर एक यात्री के भूलवश छूटे एक लाख रुपए के बैग को पुलिस ने उसे लौटा दिया। इस समाचार को पढ़ कर जो विचार आपके मन में आते हैं, उन्हें किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र के रूप में लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

समाचार पत्र के संपादक को पत्र

 

दिनांक : 15 मई 2024

सेवा में,
श्रीमान संपादक महोदय,
प्रभात दर्शन,
नई दिल्ली

माननीय संपादक महोदय,

पिछले दिनों समाचार पत्र में मैंने एक समाचार पढ़ा, जिसमें यह बताया गया था कि दिल्ली के कनॉट प्लेस मेट्रो स्टेशन पर एक यात्री जांच मशीन के पास भूलवश अपना एक बैग छोड़ गया था, जिसमें लगभग एक लाख रुपए नकद थे। पुलिस को वह बैग मिला। यात्री जब बैग को ढूंढते हुए वापस उस जगह पर आया तो पुलिसवालों ने वह वह उसे वापस कर दिया। यह समाचार पढ़कर बड़े ही हर्ष का अनुभव हुआ।

हम अक्सर पुलिस और सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की बातें करते रहते हैं, लेकिन आज भी पुलिस तथा अन्य सरकारी विभागों में ईमानदार कर्मचारी भी काम करते हैं, यह घटना उस बात का सबूत है। पुलिस ने जिस तरह ईमानदारी का परिचय देते हुए यात्री को उसका बैग वापस लौटाया, वह एक सराहनीय कार्य है।

आजकल नकद पैसे देकर हर किसी की नियत खराब हो जाती है। पुलिस वाले चाहे तो वो बैग रख लेते और यात्री को गोलमोल बातें बना सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और अपने कर्तव्य परायणता सिद्ध करते हुए ईमानदारी का परिचय दिया।

ऐसे अच्छे कार्यों के कारण ही समाज में अभी तक अच्छाइयां जीवित है। काश सभी सरकारी विभागों के कर्मचारी ऐसे ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ बन जाए तो हमारे देश को एक आदर्श देश बनते देर नहीं लगेगी।

धन्यवाद,

एक पाठक,
सुभाष मेहता,
करावल नगर, नई दिल्ली ।


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सुमित बजाज, सिद्धार्थ नगर गोरे गाँव (पश्चिम) से बरसात के दिनों में सड़कों की दुर्दशा के बारे में शिकायत करते हुए महानगरपालिका के अध्यक्ष को शिकायती पत्र लिखता है।

सार्वजनिक गणेशोत्सव के समय 24 घंटे ऊँची आवाज में लाउडस्पीकर बजने के कारण पुणे में रहने वाले अजय/अनीता के अध्ययन में बाधा पड़ती है। इस संदर्भ में वह शहर कोतवाल, शहर विभाग, पुणे को एक शिकायत पत्र लिखता/लिखती है।

व्याकरण क्या है? व्याकरण की परिभाषा और व्याकरण के क्या कार्य हैं?

व्याकरण की परिभाषा

व्याकरण से तात्पर्य किसी भाषा को नियमों समुच्चय में बांध कर उसे एक सुव्यवस्थित और मानक रूप देने की व्यवस्था से होता है। व्याकरण किसी भाषा को एक मानक रूप प्रदान करने की एक व्यवस्था है। व्याकरण के अंतर्गत नियमों का एक समुच्चय तैयार किया जाता है। जिसमें शब्दों के आधार पर नियमों का एक समुच्चय तैयार किया जाता है और व्याकरण के अलग-अलग अंग बनाए जाते हैं। व्याकरण में कर्ता, कर्म, क्रिया, लिंग, वचन आदि का महत्व होता है, जिनके आधार पर शब्द एवं वाक्यों की संरचना की जाती है।

किसी भाषा में नियमों का समुच्चय जो भाषा को व्यवस्थित रूप प्रदान करता हो, व्याकरण कहलाता है।’

व्याकरण का कार्य

व्याकरण का मुख्य कार्य भाषा को सुव्यवस्थित और मानक रूप प्रदान करना होता है। व्याकरण के द्वारा भाषा को एक मान्य रूप प्रदान किया जाता है, जिससे भाषा एक मानक भाषा बन पाती है। भाषा के विकास के चरण में जब कोई बोली भाषा का रूप धारण कर रही होती है तो भाषा लिखित रूप में कागजों पर उतारी जाती है तो सबसे पहले व्याकरण की ही आवश्यकता पड़ती है। बिना व्याकरण के किसी भी भाषा को लिखित रूप में नहीं लिखा जा सकता। भाषा को लिखित रूप में सुव्यवस्थित रूप से लिखने के लिए व्याकरण के नियमों की आवश्यकता पड़ती है। जब कोई भी बोली व्याकरण के नियमों से बंध जाती है तो वह एक मानक भाषा बन जाती है और लिखित रूप आसानी से उपयोग में लाई जा सकती है। सरल अर्थों में कहें तो व्याकरण का मुख्य कार्य भाषा को एक ढांचागत संरचना प्रदान करना और भाषा को एक आधार देना है।

 


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भाषा किसे कहते हैं? भाषा के कितने रूप है? लिखित भाषा किसे कहते हैं? मौखिक भाषा किसे कहते हैं?

मुहावरे का भाषा पर क्या प्रभाव पड़ता है​?

दिन-प्रतिदिन बढ़ती गर्मी को लेकर रोहन और सोहन के बीच संवाद को लिखें।

संवाद

बढ़ती गर्मी को लेकर रोहन और सोहन के बीच संवाद

 

रोहन ⦂ सोहन, गर्मी देखो कितनी बढ़ गई है।

सोहन ⦂ सही कह रहे हो। गर्मी के कारण, बहुत हालत खराब है। इस बार सच में बहुत गर्मी पड़ रही है।

रोहन ⦂ यह सब बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है। हम मनुष्य लोगों ने विकास के नाम पर जिस तरह प्रकृति से छेड़छाड़ की है, उसका नतीजा अब बढ़ती गर्मी और बढ़ती सर्दी के रूप में मिलने लगा है।

सोहन ⦂ ऐसी गर्मी मैंने पहले कभी नहीं देखी। इस बार सच में बहुत अधिक गर्मी पड़ रही है। मुझे तो गर्मी के कारण रात भर नींद नहीं आती। हमारे घर में एसी भी नहीं लगा है।

रोहन ⦂ ए.सी. तो अमीर लोगों की विलासिता है। हम मध्यमवर्गीय लोग तो ए.सी. का खर्चा वहन नहीं कर सकते।

सोहन ⦂ मैं तो गर्मी से बचने के लिए अपने घर की छत पर सोता हूँ। ठंडी हवा में सोने का मजा ही अलग है।

रोहन ⦂ मेरे साथ यह समस्या है कि मेरा घर एक बड़ी बिल्डिंग में है, जहाँ पर छत पर सोना मना है, हमें तो अपने फ्लैट में ही गर्मी में दिन बिताना पड़ता है।

सोहन ⦂ भगवान करे, बारिश जल्दी से आ जाए और गर्मी से राहत मिले।

रोहन ⦂ उम्मीद तो यही है।


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वर्षा ऋतु और ग्रीष्म ऋतु को मानव-रूप देकर उनके बीच कल्पित वार्तालाप को संवाद रूप में ​लिखिए।

यशोधर बाबू और उनके बच्चों के सोच-विचार और व्यवहार की तुलना कीजिए और बताइए कि कौन सही था और कौन गलत?

यशोधर बाबू और उनके बच्चों के सोच-विचार और व्यवहार की तुलना की जाए जो हमें कुछ बिंदुओं पर दोनों का व्यवहार आधा सही और आधा गलत लगा तो कुछ बिंदुओं पर उनके बच्चों का व्यवहार गलत लगा।

पुरानी पीढ़ी अपने पुरानी सोच विचार के हिसाब से चलती है और नई पूरी अपने नए विचारों के हिसाब से जीना चाहती है। इस बिंदु पर अगर गौर किया जाए तो दोनों पीढ़ियां अर्थात यशोधर बाबू और उनके बच्चे अपनी अपनी जगह सही हैं। लेकिन अगर सामाजिक मूल्य और पारिवारिक मूल्यों को ध्यान में रखा जाए और उसकी कसौटी पर कसा जाए तो उनके यशोधर बाबू के बच्चे कुछ बिंदुओं पर गलत सिद्ध होते हैं।

यशोधर बाबू अगर अपनी सोच विचार के हिसाब से जीना चाहते हैं और फिजूलखर्ची उन्हें पसंद नहीं है तो इसमें वह गलत नहीं ।है वहीं उनकी नई पीढ़ी अपने नए विचारों और नए फैशन के हिसाब से जीना चाहती है तो वह भी गलत नहीं है। लेकिन पारिवारिक मूल्य और सामाजिक मूल्य का अपना अलग महत्व होता है। नए विचारों और नई सोच का मतलब यह नहीं होता कि पारिवारिक मूल्य और सामाजिक मूल्य बदल गए हैं।

पाश्चात्य संस्कृति और आधुनिकता का अनुकरण करने का मतलब यह नहीं होता कि हम अपने बुजुर्गों, अपने बड़े की भावनाओं का सम्मान करना छोड़ दें। यहाँ पर यशोधर बाबू के बच्चे गलत सिद्ध होते है। उन्हें अपने सामाजिक स्टेटस और दिखावे की अधिक चिंता है ना कि अपने पिता के भावनाओं की नही। इसी कारण उन्हें अपने पिता का साइकिल पर जाना अथवा बिना गाऊन पहने दूध लाने जाना पसंद नहीं है। यह उनके पारिवारिक मूल्यों के पतन को दर्शाता है।

माता-पिता का अपना महत्व होता है चाहे पीढ़ी का समय कितना भी बदल जाए। यशोधर बाबू को भी समय के अनुसार थोड़ा को बदलना चाहिए था और ये बात को स्वीकार करना चाहिए कि हर बार उनके अनुरूप नहीं हो सकती। कुल मिलाकर सभी बिंदुओं पर गौर किया जाए तो यशोधर बाबू के बच्चे अधिक गलत हैं।

संदर्भ पाठ

सिल्वर वेडिंग, लेखक – मनोहर श्याम जोशी (कक्षा-12 पाठ-1 हिंदी वितान)


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हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को क्यों कहा जाता है? निम्न की ओर क्यों नहीं?

यदि बारिश न हो तो हमें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। सोचकर अपने मित्रों को बताइए।

हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को क्यों कहा जाता है? निम्न की ओर क्यों नहीं?

हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उच्च शिखर की ओर बढ़ना विकास का प्रतीक होता है, वह उत्थान का प्रतीक है। जबकि निम्न की ओर जाना पतन का प्रतीक है, वह असफलता का प्रतीक है। इसीलिए हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को कहा जाता है।

उच्च शिखर यानी नीचे से ऊपर की ओर जाना अर्थात अपने कमजोरियों और कमियों को दूर कर अपना विकास करना, निरंतर प्रगति करते जाना, अपने जीवन में उच्चता हासिल करना और सफलता अर्जित करना। यदि हम निम्न की ओर जाने को कहेंगे तो इसका मतलब है कि हम ऊँचाई से नीचे की ओर जा रहे हैं अर्थात हमारा पतन हो रहा है, हम असफलता की ओर जा हो रहे हैं, हमारे जीवन में न्यूनता आ गई है। जीवन में न्यूनता नहीं उच्चता होनी चाहिए।

इसीलिए हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को कहा जाता है, निम्न की ओर नहीं। उच्च शिखर उत्थान एवं विकास का प्रतीक है, सफलता का मापदंड है। वही निम्न पतन और असफलता का प्रतीक है, इसीलिए हमेशा उच्च शिखर की ओर बढ़ने को कहा जाता है निम्न की ओर नहीं।


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हमारे देश को भारत या भारतवर्ष क्यों कहा जाता है?

भारत सरकार की कमाई का स्रोत क्या है? ये कैसे होती है?

यदि बारिश न हो तो हमें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। सोचकर अपने मित्रों को बताइए।

मित्रों, आज मैं तुम्हे बारिश न होने का होने के नुकसान बताता हूँ।

यदि बारिश न हो तो हमें अपने जीवन में अनेक तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। यदि बारिश ना हो तो हमें सबसे पहले जिस परेशानी का सामना करना पड़ेगा वह है, पीने के पानी की समस्या।

मित्रों, हम जानते हैं कि भूमि पर उपलब्ध मीठा पानी ही पीने योग्य होता है। समुद्र का खारा जल पीने योग्य नहीं होता और समुद्र हर जगह पाया भी नहीं जाता केवल तटीय इलाकों क्षेत्रों के निवासी ही समुद्र का जल का उपयोग कर सकते हैं। तालाब, झील, नदी आदि मीठे पानी के स्रोत हैं। यह सभी जल स्रोत बारिश के कारण ही जल से समृद्ध हो पाते हैं। यदि बारिश ना हो तो तालाब, झीलें, नदियां सूख जाएंगीं। इस तरह पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच जाएगी और पीने के पानी की विकट समस्या का सामना करना पड़ेगा।

यदि हम भूमिगत जल की बात करें तो वह पीने के पानी का एक स्रोत है। लेकिन भूमिगत जलभी बारिश के पानी से ही समृद्ध होता है। जब बारिश होती है तो वह बारिश का जल भूमि में समा जाता है और भूमिगत जल का स्तर बना रहता है। यदि बारिश नहीं होगी तो भूमिगत जल का स्तर बेहद कम हो जाएगा और हमें भूमि से पानी नहीं प्राप्त होगा।

यदि बारिश ना हो तो हम कृषि कार्य भी नहीं कर पाएंगे। ऐसी स्थिति में जब कृषि नही होगी तो खाने-पीने की वस्तुएं कहाँ से आएगी?तब खाद्य पदार्थों का संकट हो जाएगा। बारिश होने से गर्मी से राहत मिलती है। यदि बारिश नहीं होगी तो गर्मी से लोग त्राहि-त्राहि कर उठेंगे।

संक्षेप में कहा जाए तो बारिश ना होने से इस पृथ्वी पर हम सभी का जीवन संकट में पड़ जाएगा। बारिश हमारे जीवन का आधार है हमारे जीवन का आधार है और बारिश जल की आपूर्ति का एक सबसे बड़ा स्रोत है। बारिश ना होने पर हमें जल नहीं मिलेगा और हम सभी प्राणियों का जीवन संकट में पड़ सकता है।


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जूलिया का अपने गृहस्वामी की हाँ में हाँ मिलाना सही था क्या? इस पर अपने विचार प्रकट कीजिए ।

हमारे देश को भारत या भारतवर्ष क्यों कहा जाता है?

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हमारे देश को भारत या भारतवर्ष क्यों कहा जाता है, इसके संबंध में अनेक मत प्रचलित है। कुछ मतों के अनुसार हस्तिनापुर के प्राचीन राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भरत पड़ा, जबकि एक अन्य मत के अनुसार ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।

हमारे देश भारत के अनेक नाम प्रचलित हैं, इन प्राचीन नामों में अजनाभवर्ष, जम्बूद्वीप, भारतखंड, आर्यावर्त आदि कहा जाता है। इसके अलावा भारत को  हिंद, हिंदुस्तान या हिंदुस्थान तथा इंडिया भी कहा जाता है।

हमारे देश भारत का नाम भारत या भारतवर्ष पड़ने का सबसे सटीक मान्यता यह है कि ऋषभदेव के जेष्ठ यानी बड़े पुत्र ‘भरत’ के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष’ पड़ा। भरत का पूरा नाम ‘भरत चक्रवर्ती’ था, जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र थे। वह एक चक्रवर्ती सम्राट थे। उन्होंने  वर्तमान भारत के समस्त भूखंड पर राज किया था। इसी कारण उनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।

एक अन्य मान्यता इस बात की पुष्टि करती है कि द्वापर युग में राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। भरत महाभारत काल में कौरव और पांडवों के पूर्वज थे। वे भी एक चक्रवर्ती सम्राट थे।

हमारे देश भारत को भारत के अलावा जम्बूद्वीप, अजनाभवर्ष, आर्यावर्त भी कहा जाता है। अजनाभवर्ष भारत का प्राचीन नाम है, जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में लिया जाता है। ये नाम भारतवर्ष नाम प्रचलित होने से पहले प्रचलन में था। इसका वर्णन भी अनेक प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

भारत का आर्यावर्त नाम यहाँ पर आर्य लोगों द्वारा शासन करने के कारण पड़ा।

जम्बूद्वीप नाम भी भारत का एक प्राचीन नाम है जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में लिया जात है। जम्बूद्वीप नाम का उल्लेख अनेक धर्मग्रंथों में उल्लेखित है।

अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में मंत्रोच्चारण करते समय जम्बूद्वीप का उल्लेख भारतीय क्षेत्र के संदर्भ लिया जाता है। आधुनिक संदर्भ में विदेशी शक्तियों के आगमन के बाद भारत को दो नये नाम मिले। हिंदुस्तान (हिंदुस्थान) और इंडिया। भारत को हिंद, हिंदुस्तान और इंडिया कहा जाने लगा।  पर्शिया से आई विदेशी शक्तियों ने भारत को सिंधु नदी के कारण सिंधु देश कहती थी जो सिंधु से हिंदू में बदल गया।

यूनानी लोगों ने सिंधु नदी को इंडो या इंडस नदी कहना शुरू किया और इंडो या इंडस से कालान्तर भारत का नाम इंडिया नाम पड़ा। इस तरह सिंधु नदी के पार का क्षेत्र हिंदुस्तान और इंडिया कहलाने लगा। विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश है, जिसके प्राचीन काल से अब तक इतने नाम हों। आज भी भारत, हिंदुस्तान और इंडिया ये तीन नाम काफी प्रचलन में हैं।


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भारत सरकार की कमाई का स्रोत क्या है? ये कैसे होती है?

भारत में करेंसी नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई कहाँ होती है?

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भारत सरकार की कमाई का स्रोत

हर वर्ष फरवरी के महीने में भारत सरकार का वार्षिक बजट प्रस्तुत किया जाता है। सरकार द्वारा हर वर्ष पेश किया जाने वाला वार्षिक बजट भारत सरकार के खर्चों का वित्तीय विवरण होता है। भारत सरकार देश के विकास तथा अन्य कार्यों पर कितना खर्च करती है तथा भारत सरकार को कितनी आय हुई यह सब बजट से पता चलता है। ऐसी स्थिति में यह जानने की उत्सुकता होती है कि भारत सरकार की आय कैसे होती है उसकी आय के प्रमुख स्रोत क्या हैं, आइए जानते हैं।

मान लेते हैं कि ₹1 को मानक मानकर भारत सरकार की आय का आकलन करते हैं।

माना कि भारत की वार्षिक आय ₹1 है तो भारत की कुल ₹1 रुपए की आय में अलग-अलग स्रोतों से उसकी आय होती है, जिसमें उधार और अन्य देनदारियां, गुड्स एवं सर्विस (GST), कारपोरेट टैक्स, आयकर (Income Tax), एक्साइज ड्यूटी (Excise duty), कस्टम ड्यूटी (Custom duty),  गैर कर राजस्व (Non-tax revenue), गैर ऋण पूंजी (Non-debt revenue) यह सभी स्रोतों से भारत को कुल आय ₹1 प्राप्त होती है।

भारत सरकार को अलग-अलग स्रोतों से होने वाली आय की हिस्सेदारी इस प्रकार है…

उधार और अन्य देनदारियों से प्राप्त आय :  35 पैसे

गुड एवं सर्विस टैक्स (GST) से आय : 16 पैसे

व्यापार कर टैक्स से प्राप्त आय : 15 पैसे

आयकर (Income tax) : 15 पैसे

एक्साइज ड्यूटी (Union excise duty) : 7 पैसे

कस्टम (Custom) : 5 पैसे

गैर-कर राजस्व (Non-tax revenue) : 5 पैसे

वहीं गैर-ऋण पूंजी (Non-debt capital receipt) : 2 पैसे

कुल पैसे                                                       = 100 पैसे (₹1)

इस तरह भारत सरकार की कुल 1 रुपये की कमाई ऊपर दिए गए स्रोतों से होती है।

 


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भारत में करेंसी नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई कहाँ होती है?

भारत में करेंसी नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई कहाँ होती है?

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भारत में करेंसी नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई भारत सरकार प्रिंटिंग प्रेसों और मिंटों द्वारा किया जाता है।

नोट की छपाई

भारत में नोट की छपाई और सिक्कों की ढलाई की बात की जाए तो भारत में नोटों की छपाई की चार प्रिंटिंग प्रेस हैं, जो भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से नोटों की छपाई करती हैं। यह चार प्रेस इस प्रकार हैं…

  1. नासिक प्रेस (महाराष्ट्र)
  2. देवास (मध्य प्रदेश)
  3. मैसूर (कर्नाटक)
  4. सलबोनी (पश्चिम बंगाल)

यह चारों प्रिंटिंग प्रेस भारत में नोटों की छपाई का कार्य करती है।

  • जब भारत 1947 में आजाद हुआ था, तब भारत में नोटों की छपाई की केवल एक प्रेस की थी जो कि नासिक में स्थित थी।
  • 1975 में भारत में नोटों की छपाई के लिए दूसरी मध्यप्रदेश के देवास नामक स्थान पर शुरू की गई।
  • 1997 तक नासिक प्रेस तथा देवास प्रेस यह दोनों प्रेस ही भारत में सारे नोटों की छपाई करती थीं।
  • 1999 में कर्नाटक के मैसूर में और सन 2000 में पश्चिम बंगाल के सलबोनी नामक स्थान पर भी नोट प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई। जिसमें नोटों की छपाई की जाने लगी।
  • इस तरह भारत में नोटों की छपाई की चार प्रेसें हैं, जो आधिकारिक तौर पर भारत में नोटों की छपाई का कार्य करती हैं।
  • नासिक प्रेस (महाराष्ट्र) की करेंसी नोट प्रेस और देवास (मध्यप्रदेश) की करेंसी नोट प्रेस भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया’ के नेतृत्व में कार्य करती है।
  • मैसूर (कर्नाटक) की करेंसी नोट प्रेस और सलबोनी (पश्चिम बंगाल) भारतीय रिजर्व बैंक की सब्सिडियरी कंपनी ‘भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड’ के अंतर्गत कार्य करती है।

सिक्कों की ढलाई

भारत में सिक्कों की ढलाई 4 मिंटों के द्वारा की जाती है। यह 4 मिंट इस प्रकार हैं…

  1. बांबे मिंट
  2. हैदराबाद मिंट
  3. कोलकाता मिंट
  4. नोएडा मिंट
  • इन चारों मिंटों में भारत में जारी होने वाले सभी मुद्रा सिक्कों की ढलाई की जाती है। इसके अलावा भारत सरकार के कई सरकारी मेडल तथा अवार्ड आदि भी इन मिंटों में बनाए जाते हैं।
  • यह मिंटें भारत सरकार के अंतर्गत काम करती हैं। यह चारों मिंटे मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता और नोएडा में स्थित है।
  • भारत में जारी होने वाले सारे सिक्के और कई तरह के सरकारी मेडल और अवार्ड आदि भी इन मिंटों में ही ढाले जाते हैं।
  • भारत में नोटों की छपाई के लिए पेपर की बात की जाए तो भारत में नोटों की छपाई की एक पेपर मिल है, जो मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित है।
  • यह पेपर मिल भारत सरकार के लिए नोट और कई तरह सरकारी स्टॉम्प के लिए पेपर बनाती है।
  • इसके अलावा भारत सरकार विदेश से भी पेपर आयात करती है, जिनमें इंग्लैंड, जर्मनी और जापान जैसे देश प्रमुख हैं।
  • भारत अभी तक अधिक संख्या में नोटों के लिए पेपर विदेश से ही आयात करती है।
  • भारत में नोटों पर प्रिटिंग के लिए लगने वाली स्याही स्विट्जरलैंड से आयात की जाती है।

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देश के लिए हमारे मन में प्यार का भाव क्यों आता है?

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विचार/अभिमत

देश के लिए हमारे मन में प्यार का भाव

देश के लिए हमारे मन में प्यार का भाव इसलिए आता है, क्योंकि हम इसी देश में जन्म लेते हैं। इसी देश की मिट्टी में पलते हैं और बड़े होते हैं। देश ने हमें बहुत कुछ दिया होता है, इसीलिए हमारे मन में देश के प्रति एक प्रेम एवं स्नेह का भाव उत्पन्न हो जाता है। कोई भी सच्चा नागरिक अपनी मातृभूमि से प्रेम अवश्य करेगा। देश हमारी मातृभूमि है और अपनी मातृभूमि से प्रेम करना हर मनुष्य का कर्तव्य है। देश के प्रति हमारे मन में प्यार का भाव हमारी अपने देश के प्रति देशभक्ति के कारण आता है। एक सच्चा नागरिक अपने देश से सदैव प्रेम करता है और वह सदैव अपने देश का हित सोचता है। हम अपने देश से प्यार करते हैं तो कभी अपने देश के साथ गलत नहीं कर सकते और सदैव देश को आगे बढ़ाने का ही कार्य करेंगे। देश के लिए हमारे मन में प्यार का भाव लिए भी आता है, क्योंकि देश हमारी माँ के समान है। जिस तरह हमें अपनी माँ के प्रति प्रेम का भाव उत्पन्न होता है, उसी तरह हमें अपने देश के लिए भी प्यार का भाव आता है क्योंकि देश हमारी मातृभूमि होती है।


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वीर पुरुष जो देश पर बलिदान हो जाते हैं, वे दुख-सुख को समान भाव से क्यों देखते हैं?

पशु-प्रेम मानवता का प्रतीक (लघु निबंध)

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लघु निबंध

पशु-प्रेम मानवता का प्रतीक

 

पशु प्रेम पूरी तरह मानवता का प्रतीक है। इस बात में कोई भी संदेह वाली बात नहीं है। पशु भी प्राणी है, वह भी मनुष्य की तरह ही प्राणी होते हैं। उनके अंदर भी रक्त, मांस, मज्जा आदि होती है। उन्हे भी दर्द, कष्ट, संवेदना इत्यादि होती है। उन्हें भी चोट लगने पर दर्द होता है। पशुओं के प्रति प्रेम भाव अपनाना पूरी तरह मानवता है। सच्ची मानवता वही है जहां पर दया का भाव हो। दूसरों के प्रति करुणा एवं दया का भाव मानवता का सबसे सर्वोत्तम गुण है। यदि हम पशुओं के प्रति दया एवं करुणा का भाव रखते हैं तो हम मानवता के सर्वोत्तम गुण का ही पालन करते हैं।

पशुओं के प्रति हिंसा करना उन्हें मारना तथा उन्हें मार कर खाना यह सभी अमानवीय कृत्य हैं। प्रकृति ने हमें अनेक तरह के फल, सब्जियां, अनाज आदि खाद्य पदार्थों के रूप में प्रदान किए हैं, फिर भी हम इन सुंदर खाद्य पदार्थों को छोड़कर पशुओं को मारते हैं, उन्हें खाते हैं अथवा उनके प्रति हिंसा का भाव अपनाते हैं। यह पूरी अमानवीय है।

आजकल पशु के द्वारा मनोरंजन के नाम पर अनेक तरह के खेल एवं प्रतिस्पर्धायें आयोजित की जाती है, जिनमें पशुओं को बेहद निर्दयी परिस्थितियों में रखा जाता है और उनसे अनेक तरह की अमानवीय क्रियाएं कराया जाती है। इससे उन्हें भले ही तकलीफ होती है लेकिन मानव को बड़ा आनंद आता है। यह मानवता का परिचायक नहीं है।

हमें पशु को भी अपने जैसा भी प्राणी मान कर और यह मानकर कि उन्हें भी हमारी तरह ही दर्द होता है, उन्हें भी चोट लगने पर तकलीफ होती है, पशुओं के प्रति प्रेम भाव अपनाना चाहिए, तभी हम मानवता के सच्चे रूप को प्रदर्शित कर सकते हैं।


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तानाशाही और राजशाही (राजतंत्र) में क्या अंतर है?

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तानाशाही और राजशाही यानी राजतंत्र में मुख्य अंतर केवल निरंकुशता का है। जब कोई राजा निरंकुश बन जाता है तो वह तानाशाह कहलाता है। यदि राजा विधि सम्मत नियमों का पालन करते हुए जनता हितैषी शासन स्थापित करता है तो वह तानाशाह नहीं है।

तानाशाही हमेशा बुरी ही होती है और वह नकारात्मकता को लिए होती है, जबकि राजा जरूरी नहीं कि निरंकुश हो, वह नकारात्मक हो, या बुरा ही हो। इतिहास में ऐसे अनेक अच्छे राजाओं का भी उदाहरण है, जिन्होंने अपनी उत्तम और जनहितैषी शासन व्यवस्था से उदाहरण प्रस्तुत किया।

इसके विपरीत तानाशाहों का इतिहास हमेशा रक्तरंजित और खराब ही रहा है। इसलिए तानाशाही और राजशाही में केवल अंतर निरंकुशता का ही होता है। तानाशाह हमेशा निरंकुश होता है वह केवल अपने बने-बनाए नियमों को ही थोपना चाहता है।

तानाशाह को सत्ता जरूरी नहीं विरासत में ही मिली हो। तानाशाह अपनी शक्ति के बल पर भी सत्ता हासिल कर लेता है। तानाशाह एक व्यक्ति नहीं कल बल्कि कई व्यक्तियों का समूह भी हो सकता है, जबकि राजा के संदर्भ में यह बातें पूरी तरह सच लागू नहीं होतीं। राजा को सत्ता विरासत में मिलती है, क्योंकि उसके पिता या दादा आदि राजा थे। राजा शक्ति के बल पर नहीं बल्कि वंशानुगत व्यवस्था के आधार पर सत्ता प्राप्त करता है। राजा सहृदय और विनम्र भी हो सकता है। वह अपनी प्रजा का हितैषी भी हो सकता है, लेकिन तानाशाह केवल स्वहितैषी ही होता है।

लेकिन इतिहास में अनेक राजा हुए हैं, जो अत्याचार, शोषण और दमन का प्रतीक थे, वे सभी राजा एक प्रकार के तानाशाह ही थे। राजा कभी भी तानाशाह बन सकता है। तानाशाह बनने के लिए उसे निरंकुश होना होगा।

हालाँकि वर्तमान समय में राजतंत्र यानि राजशाही विश्व से लगभग समाप्त हो चुकी है। अब पहले जैसे राजा नहीं रहे जिन्हें वंश के आधार पर सत्ता प्राप्त होती थी। कुछ देशों में राजशाही (जैसे ब्रिटेन, जापान) आदि में है भी तो भी ये नाममात्र का राजतंत्र है। इनके हाथ में नाममात्र की शक्ति है।

जबकि तानाशाही आज के समय में कई देशों में धड़ल्ले से चल रही है, जैसे चीन, उत्तरी कोरिया, अफगानिस्तान आदि।


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‘तानाशाह’ को हिंदी में क्या कहते हैं?

‘तानाशाह’ को हिंदी में क्या कहते हैं?

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‘तानाशाह’ को हिंदी में ‘अधिनायक’ कहते हैं।

तानाशाह शब्द मूलतः विदेशज शब्द है, जो हिंदी में अरबी-फारसी जैसी भाषाओं से आया है। शुद्ध हिंदी में तानाशाह को ‘अधिनायक’ कहा जाएगा।

तानाशाह या अधिनायक अंग्रेजी के डिक्टेटर (Dictator) शब्द का रूपांतरण  है। तानाशाह जिस शासन व्यवस्था को चलाता है उसे तानाशाही कहा जाता है। हिंदी में से ‘तानाशाही’ को ‘अधिनायकवाद’ कहते हैं।

तानाशाह या अधिनायक से तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है जो प्रचलित शासन के सिद्धांतों से ऊपर जाकर अपनी मनमर्जी के मुताबिक शासन करना चाहता है या करता है। इसके लिए वह शक्ति अर्थात डंडे के आधार पर शासन चलने का प्रयास करता है।

तानाशाह केवल अपनी इच्छा और अपने बनाए नियम कानून ही अपनी प्रजा यानी जनता पर थोपना चाहता है। यदि संबंधित राज्य में पहले से संविधान और कानून हैं और तानाशाह के सत्ता में आने के बाद उसे वह कानून अपने अनुरूप नही लगते तो वह उन कानूनों को नहीं मानता है और उन्हें बदलकर अपने नियम-कानून स्थापित करता है।

तानाशाह जरूरी नहीं कि केवल विशेष व्यक्ति ही हो। थोड़े सा लोगों का समूह भी अपना इतना वर्चस्व स्थापित कर लेता है कि वह अपने बनाए नियम-कानूनों के अनुसार ही शासन चलाना चाहता है।

अफगानिस्तान में तालिबान का शासन इसी तरह का एक उदाहरण है। तालिबान में केवल एक व्यक्ति ही सर्वेसर्वा नही है बल्कि कई लोगों को समूह अफगानिस्तान पर तानाशाह के रूप में कार्य  कर रहा है।

तानाशाही का इतिहास काफी पुराना है। तानाशाही राजतंत्र से लेकर लोकतंत्र दोनों व्यवस्थाओं में प्रचलित रही है। पुराने समय में राजतंत्र में कई ऐसे राजा होते थे जो केवल अपनी मनमर्जी के मुताबिक ही शासन करते थे। वह अपनी प्रजा पर अत्याचार करते थे। अपनी मर्जी के मुताबिक नियम-कानून बनाते थे।  इस तरह की शासन प्रणाली भी एक तरह की तानाशाही ही। थी।

वर्तमान समय में कई देशों में लोकतंत्र होने के बावजूद और लोकतांत्रिक व्यवस्था के द्वारा चुने गए शासक कभी-कभी अपना इतना अधिक वर्चस्व स्थापित कर लेते हैं कि वह इस स्वयं को सर्वे-सर्वा समझने लगते हैं और अपनी मनमर्जी के मुताबिक शासन स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं, तब वह तानाशाह बन जाते हैं


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गीतिनाट्य से क्या तात्पर्य है? इसके कितने भाग होते हैं? विस्तार से बताएं।

गीतिनाट्य से तात्पर्य नाट्य की विधा से है, जिसके अंतर्गत किसी नाटक को गीत गाकर गीतात्मक अर्थात काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। गीत एक ऐसा नाटक होता है, जिसमें काव्य की प्रधानता होती है। ऐसे नाटक में गीतों को गाकर अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। गीतिनाट्य नाटक का संगीतात्मक संस्करण है अर्थात किसी नाटक की संगीतमय प्रस्तुति ही गीतनाट्य कहलाती है। गीतात्मक काव्य एक प्राचीन विधा है और यह विधा सैकड़ों सालों से प्रचलन में रही है। गीतकाव्य को प्रस्तुत करने के 5 अंग होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं…

1.   प्रस्तावना
2.   कथा
3.   संवाद एवं अभिनय
4.   गीत
5.   नृत्य

प्रस्तावना : प्रस्तावना के अंतर्गत नाटक की भूमिका तैयार की जाती है, जो नाटक की प्रस्तुतिकरण की आधारशिला होती है।

कथा : इसके अंतर्गत नाटक को प्रस्तुत करने के लिए किसी कथा को आधार बनाया जाता है। उसी कथा के आधार पर पूरे नाटक की संरचना की जाती है।

संवाद एवं अभिनय : संवाद एवं अभिनय के अंतर्गत नाटक को प्रस्तुत करते समय पात्रों के बीच होने वाले संवाद तथा उनका अभिनय गी गीतनाट्य के प्रमुख अंग है।

गीत : जब नाटक प्रस्तुत किया जा रहा होता है तो नाटक प्रस्तुत करते समय गीत गाया जाना ही गीत गीत नाट्य की एक विशेष विधा है।

नृत्य : नृत्य भी गीतनाट्य की एक प्रमुख प्रस्तुति है। गीत नाट्य की दो शैली होती हैं।

मूक एवं अभिनयात्कम शैली : इस शैली के अंतर्गत पात्र स्वयं गाते नही बल्कि मूक रूप से अभिनय के द्वारा प्रस्तुति करते हैं और अपने हाव-भाव द्वारा करते हुए किसी कथा को कहने का प्रयास करते हैं। नेपथ्य में गीत-संगीत बज रहा होता है। इसमें पात्र के द्वारा गीत गाकर प्रस्तुत नही किया जाता बल्कि नेपथ्य में गीत-संंगीत होता है और पात्र केवल मूक अभिनय करता है।

संवादात्मक शैली : इस शैली के अंतर्गत पात्र स्वयं गीत गाते हैं और अभिनय करते हैं। वे आपस में संवाद भी करते हैं। इस शैली में संवाद एवं काव्य का मिश्रण होता है। जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ती जाती है, पात्र गीत गाते हैं फिर अगला गीत गाने से संवाद करते है जोकि कथा को प्रवाहमय बनाये रखता है, फिर गीत गाते है। संवाद एवं गीत का ये क्रम चलता रहता है।


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कवि को खुले आकाश की तलाश है, वह पक्षी की तरह उड़ना चाहते हैं। दुनिया देखना चाहते हैं। आपको किस चीज की तलाश है और क्यों ? स्पष्ट करें। ‘

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कवि को खुले आकाश की तलाश है, वह पक्षी की तरह उड़ना चाहते हैं और दुनिया देखना चाहते हैं। हमें भी खुले आकाश की तलाश है, लेकिन हमें पक्षी की तरह नहीं उड़ना है। हमें अपने विचारों का खुला आकाश चाहिए। स्वतंत्रता का खुला आकाश चाहिए। अपनी अभिव्यक्ति का खुला आकाश चाहिए। हमें मन की स्वतंत्रता चाहिए, ताकि हम अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकें। जिस समाज में विचारों को अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है, वह समाज अधिक प्रगतिशील बनता है। हमें वह सामाजिक बंधन नहीं चाहिए, जो बात बात पर हम पर सामाजिक नियमों और सामाजिक रीति-रिवाजों के नाम पर हम पर अंकुश लगाएं। हमें अच्छे विचारों को बिना किसी रोक-टोक प्रसारित करना है। हमें अपने विचारों का पंख लगा कर मन की गति से उड़ना है।


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कबीर निराकार ईश्वर के उपासक थे। निराकार ईश्वर की उपासना से क्या तात्पर्य है​?

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निराकार ईश्वर के उपासक थे। वह ईश्वर के निराकार रूप को मानते थे। निराकार ईश्वर की उपासना से तात्पर्य यह है कि जब हम ईश्वर का कोई स्वरूप ना माने और उसे निराकर मानें। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है। वह कण-कण में व्याप्त है, उसको मूर्ति अथवा विग्रह के रूप में ना पूज कर उसे एक आलौकिक मानसिक रूप से उसकी आराधना करें तो ऐसी उपासना निराकार ईश्वर की उपासना कहलाती है।

निराकार ईश्वर की उपासना में ईश्वर का कोई भी भौतिक स्वरूप नहीं माना जाता। ईश्वर अलौकिक शक्ति माना जाता है, जिसका कोई आकार नहीं होता। ईश्वर एक भाव है, ईश्वर एक चिंतन है और इसी निराकार स्वरूप को आराध्य मानकर उसकी उपासना की जाती है। इसके विपरीत साकार ईश्वर की उपासना में ईश्वर का एक निश्चित भौतिक स्वरूप बना लिया जाता है और उस भौतिक स्वरूप की विग्रह के रूप में की जाती है। उस भौतिक स्वरूप के साथ कोई कथा, आख्यान आदि जुड़ जाते हैं।

जैसे हिंदू धर्म में ईश्वर के निराकार व साकार दोनो रूप से पूजा की जाती है। वैदिक धर्म में ईश्वर के साकार रूप में भगवान शिव का शिवलिंग अथवा उनके विग्रह की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु, भगवान गणेश, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, राम, कृष्ण, हनुमान आदि ये सभी देवी देवताओं के साकार रूप हैं। यह आराधना ईश्वर की सरकार ईश्वर की उपासना की जाती है।

निराकार ईश्वरकी उपासना में ईश्वर ऐसा कोई भी भौतिक स्वरूप नही माना जाता है। बल्कि ईश्वर को एक चिंतन, एक आलौकिक शक्ति मानकर उसकी आराधना की जाती है।


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कक्षा में मेरा पहला दिन (अनुच्छेद लेखन)

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कक्षा में मेरा पहला दिन

कक्षा में पहला दिन हर किसी छात्र के जीवन में एक बेहद रोमांचक दिन होता है। मेरे पिताजी का ट्रांसफर दूसरे शहर में हुआ था और मेरा नए विद्यालय में एडमिशन हुआ था। विद्यालय जिस दिन से आरंभ हुआ, वह दिन कक्षा में मेरा पहला दिन था। नई कक्षा नए विद्यालय की अनुभूति अलग ही थी।

नए वातावरण में मुझे कुछ घबराहट सी हो रही थी। मेरे मन में तरह-तरह के विचार कर रहे थे कि पता नहीं कक्षा में कैसे विद्यार्थी होंगे। कोई मेरा अच्छा दोस्त बन पाएगा या नहीं। सही समय पर मैं विद्यालय पहुंच गया। जैसे ही मैं अपनी कक्षा में घुसा, सभी विद्यार्थियों ने मेरा तेज आवाज में स्वागतम कहकर स्वागत किया। मैं कक्षा का सबसे नया विद्यार्थी था। मुझे सबसे आगे की ही बेंच मिली। मेरी बगल वाली सीट पर एक और विद्यार्थी बैठा था जो उस विद्यालय में कई साल से पढ़ रहा था।

पहला पीरियड आरंभ हुआ और हमारे कक्षा अध्यापक का प्रवेश हुआ। उन्होंने सबसे पहले मेरा नाम पूछा और कहां से आए हो? यह पूछा मैंने अपने सारा विवरण बता दिया उन्होंने बेहद प्यार भरे विनम्र और स्वर में मुझसे बातें की जिससे मेरी घबराहट कम हुई। मेरे साथ जो विद्यार्थी बैठा था, उसने मध्यांतर में उससे मेरी बहुत अधिक बातें हुई। पहले दिन ही वह मेरा अच्छा दोस्त बन गया था।

उसकी काफी रुचियां मेरी ओर से मिलती जुलती थीं। कक्षा में अन्य चार पांच विद्यार्थियों से भी मेरी बातचीत हुई और उन सब से बातचीत करके मेरे मन की झिझक खत्म हो गई और मुझे ऐसा महसूस ही नहीं हो रहा था कि यह कक्षा में मेरा पहला दिन है। सारे विद्यार्थी हंसमुख स्वभाव के थे। शाम को जब विद्यालय समाप्त होने के बाद मैं अपनी कक्षा से बाहर निकला तो मेरे मुझको ऐसा अनुभव ही नहीं हो रहा था कि आज इस कक्षा में मेरा पहला दिन था। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं बहुत समय से यहाँ पर पढ़ रहा हूँ। कुल मिलाकर कक्षा में पहले दिन का मेरा अनुभव बेहद अच्छा रहा।


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‘एकता में बल’ इस बात पर एक लघु कथा लिखिए।

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लघु कथा

एकता में बल

 

एकता में बड़ा ही बल होता है, इस बात में कोई संदेह नहीं है। इस संबंध में एक लघु कथा इस प्रकार है…

सेठ राम लाल के 3 पुत्र थे, रमेश, महेश और सुरेश। तीनों अपने पिता के साथ व्यापार में सहयोग करते थे और सारा परिवार मिलजुल कर रहता था। जब तक सेठ रामलाल जिंदा रहे, उनके पुत्र मिलजुल कर रहे। लेकिन सेठ रामलाल की मृत्यु के बाद तीनों पुत्रों में मनमुटाव होने लगा। आपसी झगड़ों और मनमुटाव के कारण तीनों भाइयों ने अपना व्यापार अलग-अलग कर लिया।

तीनों एक ही घर में रहते थे लेकिन तीनों ने अब घर का बंटवारा कर लिया और घर के बीच दीवारें लग गईं। नौबत यहाँ तक आ गई कि तीनों में बातचीत तक बंद हो गई। तीनों ने व्यापार अलग-अलग कर लिया। इस कारण व्यापार भी कमजोर पड़ गया और बाजार पर उनकी पकड़ ढीली पड़ गई क्योंकि तीनो भाई एक-दूसरे के प्रति होड़ रखने लगे इसी का फायदा उठाते हुए प्रतिद्वंदी व्यापारियों ने बाजार पर अधिकार स्थापित करना शुरू कर दिया।’

तीनो भाई व्यापार पर अपनी पकड़ ढीली करती चले गए और उनके प्रतिद्वंदी बाजार पर छा गए। एक बार बड़े पुत्र रमेश का किन्ही दबंग लोगों विवाद हो गया और उसके घर पर दबंगों ने हमला कर दिया। दबंग रमेश और उसके परिवार को मार-पीटकर चले गए और उसके धन आदि लूट ले गए। दोनों छोटे भाई महेश और सुरेश देखते रहे, लेकिन अपने बड़े भाई की मदद करने नहीं आए। यह देख कर दबंगों का हौसला और बढ़ गया।

अगली बार उन्होंने महेश के घर पर हमला कर दिया और वहाँ से सब लूट कर ले जाए। रमेश और सुरेश भी उनकी मदद करने नहीं आए। दबंग लोग सुरेश को भी मारपीट कर और लूट कर चले गए। रामलाल के छोटे भाई श्यामलाल के यह सब पता चला तो उन्होंने तीनों भतीजों को बुलाकर कहा, तुम तीनों आपसी झगड़े के कारण अपनी एकता खो चुके हो। यदि तुम तीनों मिलकर रहो, तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मेरी सलाह मानो अपना मनमुटाव भुलाकर मिलकर रहो और मिलकर काम करो, तब देखना कोई भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, मेरी बात आजमा कर देखो।

तीनों भाइयों ने श्यामलाल की बात को ध्यान से सुना। वह भी रोज-रोज के झगड़ों से तंग आ गए थे। कुछ दिनों बाद इस बार दबंगों ने इस बार सुरेश के घर को निशाना बनाया। वे सबसे छोटे भाई सुरेश के अंदर घुसे तो रमेश और महेश को पता चल गया। रमेश और महेश सहित सभी लोगों ने मिलकर दबंगों का मुकाबला किया। यह देखकर बदमाश घबरा गए। कुछ भाग खड़े हुए और कुछ पकड़ लिए गए।

इस तरह जब तक तीनों भाई अलग-अलग थे तब तक दबंग उनकी फूट का फायदा उठाते रहे, लेकिन जब तीनों मिल गए तो बदमाश कुछ नहीं कर पाए। अब तीनों भाइयों को एकता का मतलब समझ में आ गया था। तीनों भाइयों ने अपने मकान की दीवारें गिरा कर पूरा मकान पुनः एक कर लिया और व्यापार भी एक कर लिया। अब वे वापस अपनी पुरानी स्थिति पा चुके थे। अब कोई भी बदमाश उनके घर पर हमला करने की हिम्मत नहीं कर पाता था, इसीलिए एकता में बल होता है। हमेशा मिल जुल कर रहना चाहिए।


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उदार मनुष्य की यह उपलब्धियां होती हैं कि उदारता के कारण उन्होंने जो कार्य किए उन कार्यों से किसी ना किसी का भला अवश्य हुआ। सामान्य अर्थों में कहें तो उदार व्यक्ति की सबसे बड़ी उपलब्धि यही होती है कि लोग उन्हें याद रखते हैं और उनका सम्मान करते हैं। मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है? ऐसे उदार मनुष्य देश और समाज को बहुत कुछ देकर गए। इसी कारण ऐसे उधार मनुष्यों का नाम आज भी लिया जाता है। वह सम्मानपूर्वक याद किए जाते हैं। लोग सदियों तक उनका नाम याद रखते हैं। वह लोगों के हृदय में एक विशिष्ट स्थान बना लेते हैं। उदार मनुष्यों की यही सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। उदार व्यक्ति की क्या पहचान होती है? मनुष्यता पाठ के आधार पर लिखिए। हमारे समाज में ऐसे अनेक उदाहरण परोपकारी व्यक्ति रहे हैं, जिन्होंने देश एवं समाज के भलाई के लिए अपने जीवन को अर्पित कर दिया। आज उन्हीं के द्वारा किए गए कार्यों के कारण वह आज भी लोगों के दिलों में अपना स्थान बनाए हुए हैं। ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर कहें तो यह बात बिल्कुल सत्य सिद्ध होती है। महर्षि दधीचि, महाराजा रंतिदेव, कर्ण, राजा हरिश्चंद्र जैसे अनेक उदार व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने कार्यों से ऐसा इतिहास लिखा कि लोग आज भी हमें याद करते हैं। यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। यही उपलब्धि किसी भी उदार मनुष्य की उपलब्धि होती है।

संदर्भ पाठ
मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2)


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आज का भारत-डिजिटल इंडिया (निबंध)

निबंध

आज का भारत-डिजिटल इंडिया

 

डिजिटल इंडिया बदलते वैश्विक एवं सामाजिक परिवेश तथा समय की माँग को देखते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में डिजिटल इंडिया अभियान का शुरू किया गया।

डिजिटल इंडिया का उद्देश्य

डिजिटल इंडिया का उद्देश्य भारत के नागरिकों को आसान ऑनलाइन सरकारी सेवाएँ प्रदान करना तथा देश में इण्टरनेट को सशक्त करके भारत के तकनीकी पहलू में सुधार करना है । डिजिटल बुनियादी ढांचे में सुधार, डिजिटल रूप में सेवाएँ प्रदान करना और डिजिटल साक्षरता, इस अभियान के तीन प्रमुख पहलू हैं। यद्यपि ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता का अभाव, इण्टरनेट कनेक्टिविटी तथा डिजिटल अवसंरचना के रूप में इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं तथापि सरकार द्वारा इस क्षेत्र में राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन, भारत नेट आदि कार्यक्रम के द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाया जा सके ।

डिजिटल इंडिया की शुरुआत

इस कार्यक्रम का शुरुआत दिल्ली के इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम टाटा ग्रुप के चेयरमैन साइरस मिस्त्री और आर आई एल के चेयरमैन तथा मुकेश अंबानी, आदि जैसे उद्योगपतियों की उपस्थिति में 1 जुलाई सन 2015 को डिजिटल इंडिया अभियान का शुरू किया गया था । भारत देश को डिजिटल रूप में विकास करने के लिए और देश की आईडी संस्थान में सुधार करने के लिए, डिजिटल इंडिया महत्वपूर्ण शुरुआत है, डिजिटल इंडिया अभियान के विभिन्न योजनाएं हैं जैसे डिजिटल लॉकर, ई स्वास्थ्य, ई शिक्षा, राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल खाद्य को शुरू करके इस कार्यक्रम का अनावरण किया गया ।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का विजन

भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था को परिवर्तित करने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत तीन प्रमुख क्षेत्र केन्द्रित हैं
1.   प्रत्येक नागरिक तक एक मूल सुविधा के रूप में डिजिटल अवसरचना की पहुँच अर्थात् उच्च गति की इण्टरनेट सुविधा, सुरक्षित साइबर स्पेस इत्यादि की सुविधा प्रदान करना ।
2.   प्रशासन एवं उसकी सेवाओं को जनता की माँग पर उसके घर तक पहुँचाना अर्थात् डिजिटल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराकर लोगों को नकद-रहित वित्तीय लेन-देन आदि सेवाओं को उपलब्ध कराना ।
3.   नागरिकों का डिजिटल सशक्तिकरण अर्थात् सभी नागरिकों को डिजिटल साक्षरता प्रदान करना, नागरिकों को सरकारी दस्तावेजों को डिजिटल माध्यम से जमा करवाने की सुविधा उपलब्ध कराना ।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की प्रमुख पहल

प्रत्यक्ष लाभ अन्तरण : इसके अंतर्गत सरकार की ओर से मिलने वाले लाभों/सहायता को सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में अन्तरित किया जाता है । इसमें लगभग 440 कार्यक्रमों को शामिल किया गया है, जिससे आज करोड़ों की बचत होती है ।
डिजिलॉकर : यह नागरिकों को उनके सार्वजनिक और निजी दस्तावेज को पब्लिक क्लाउड में सुरक्षित रखने के लिए निजी जगह उपलब्ध कराकर कागजविहीन अभिशासन उपलब्ध कराता है । उमंग : यह अनेक सरकारी सेवाओं को उपलब्ध कराने वाला सम्पूर्ण मोबाइल एप्प है ।

मेरी सरकार (MY GOV) : यह साझा डिजिटल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराता है, जिसमें नागरिक सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में अपने विचार साझा करते हैं । यह विदेशों में भी लोगों को विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने को प्रोत्साहित करता है ।

डिजिटल भुगतान : इस कार्यक्रम के अन्तर्गत डिजिटल भुगतान केन्द्र; जैसे – भीम एप्प, भीम आधार, भारत क्यू.आर कोड आदि शुरू किए गए हैं, जिससे समय की भी बचत होती है ।

जीवन प्रमाण : इसमें पेन्शन भोगियों को अपना जीवन प्रमाण-पत्र किसी भी समय और किसी भी स्थान पर डिजिटल तरीके से भेजने या प्रस्तुत करने में मदद मिलती है ।

जीईएम : यह आम प्रयोग की वस्तुओं और सेवाओं की सरकारी खरीद का ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म है ।

राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल : इस एकल ऑनलाइन पोर्टल के द्वारा अनेक छात्रवृत्ति योजनाओं की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है ।

ई-कोर्ट्स मिशन मोड परियोजना : इसके अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय में केस स्टेट्स, कोर्ट ऑर्डर आदि कई सेवाएँ शामिल हैं । इसके अंतर्गत नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड भी प्रारम्भ किया गया है, जिसमें कई अदालतों से एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है और डैशबोर्ड के माध्यम से अखिल भारतीय आँकड़ों को प्रदर्शित किया जाता है ।

ई-मेल सेवाएँ : डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम के अन्तर्गत सरकार सभी आधिकारिक संवाद के लिए सुरक्षित ई-मेल सेवा उपलब्ध कराती है ।

ई-हॉस्पिटल : यह ऑनलाइन पंजीकरण फ्रेमवर्क मरीजों को सरकारी अस्पतालों के साथ ऑनलाइन ओपीडी जाँच कराने की सुविधा प्रदान करने की एक पहल है ।

ई-साइन : ई-केवाईसी सेवा के माध्यम से आधार धारक के प्रमाणीकरण का उपयोग करके ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर सेवा की सुविधा प्रदान करता है ।

डिजिटल शिक्षा : इसके अन्तर्गत स्वयं (SWAYAM), स्वयंप्रभा तथा राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी प्रमुख हैं, जो शिक्षा के प्रमुख पाठ्यक्रम उपलब्ध कराते हैं । डिजिटल इण्डिया के अन्तर्गत ई – पुलिस, वर्चुअल लैब, ई-यन्त्र, ई-गवर्नेस जैसे प्रमुख कार्यक्रम संचालित हैं ।

कोविड-19 के दौरान भी सरकार द्वारा कई डिजिटल प्रोग्राम अपनाए गए हैं 

जैसे-
आरोग्य सेतु ऐप :- यह एक कोरोना वायरस ट्रैकिंग ऐप है, जो जीपीएस एवं ब्लूटूथ के माध्यम से ट्रैक करता है ।

चैटबॉट :- प्रधानमंत्री ने लोगों के कोरोना सम्बन्धी प्रश्नों के समाधान हेतु व्हाट्सएप चैटबोट से जुड़ने की घोषणा की थी ।

GOK Direct: – यह ऐप केरल सरकार द्वारा लोगों को कोरोना वायरस महामारी से जागरूक करने हेतु लॉन्च किया गया था ।

आपूर्ति सुविधा ऐप :- नोएडा प्राधिकरण ने लोगों तक आवश्यक वस्तुओं को पहुंचाने के लिए आपूर्ति सुविधा ऐप लॉन्च किया था ।

लोकेटर  COVA :- गोवा सरकार ने कोविड-19 लोकेटर ऐप तथा पंजाब सरकार ने COVA ऐप लॉन्च किया था । कोरोना वायरस में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में लोगों को जागरूक करने हेतु कोरोना महामारी के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में नवीन क्रांति आई। बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित किया गया । वीडियो क्लासेज, प्री रिकॉर्डेड वीडियो क्लासेज, स्लाइड्स, ऑनलाइन टेस्ट, पीडीएफ आधारित ऑनलाइन शिक्षा का बहुत स्तर पर प्रयोग किया जाने लगा । कोरोना के दौरान इस रोग के प्रसार को रोकने तथा इससे बचने हेतु तरह-तरह के उपाय डिजिटल माध्यमों की मदद से लोगों तक पहुँचाए गए । देश भर से डाटा एकत्रीकरण में डिजिटलाइजेशन का बखूबी उपयोग किया गया । कोरोना के दौर में लेन-देन एवं क्रय-विक्रय में नकदी के प्रयोग पर रोक लगी तथा लोगों द्वारा ऑनलाइन पेमेंट को व्यापक पैमाने पर अपनाया गया ।

डिजिटल इंडिया का परिणाम

डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम के माध्यम से आज डिजिटली तरीके से सेवाएँ उपलब्ध हो रही हैं । आज भारत नवाचार का केन्द्र बन चुका है । डिजिटल लॉकर, ई-साइन, डिजिटल भुगतान आदि के कारण लोगों को सरकारी सेवा घर बैठे अपने फोन पर उपलब्ध हो रही है, जिस कारण इन्हें विभिन्न सरकारी कार्यालयों का चक्कर नहीं काटना पड़ता है अर्थात समय व ऊर्जा दोनों की बचत हो रही है । डिजिटल अर्थव्यवस्था से आम लोगों का जीवन सरल हो रहा है, साथ ही इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिल रहा है, क्योंकि डिजिटल अर्थव्यवस्था अपनाने से रोजगार सृजन को बढ़ावा मिला है ।

डिजिटल इंडिया में आने वाली चुनौतियाँ

विश्व बैंक के अनुसार, यदि डिजिटल तकनीक का लाभ विश्व भर के लोगों तक पहुँचाना है, तो जहाँ कहीं भी डिजिटल डिवाइड है, उसे समाप्त करना होगा अर्थात जिन लोगों के पास यह तकनीक उपलब्ध नहीं है, उन्हें भी इसका लाभ पहुँचाना होगा । यह कथन भारत पर भी लागू होता है, क्योंकि भारत में भी डिजिटल डिवाइड काफी ज्यादा है, जिस कारण इसका पूर्ण अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा है। संक्षेप में, भारत में डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम के मार्ग में निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं । डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की सफलता के मार्ग में आज सबसे बड़ी चुनौती आवश्यक अवसंरचना का अभाव है । आज भी भारत में बिजली, इण्टरनेट आदि बुनियादी सुविधाओं का अभाव है ।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को बेहतर इण्टरनेट कनेक्टिविटी के लिए 80 लाख से अधिक बाई-फाई, हॉट-स्पॉट की जरूरत है, जबकि वर्तमान में इसकी उपलब्धता काफी कम है । डिजिटल इण्डिया का मूल आधार सूचना-संचार एवं प्रौद्योगिकी है, लेकिन सूचना-संचार प्रौद्योगिकी क्रान्ति का प्रभाव मुख्यतः भारत के शहरों में पड़ा, जबकि भारत के ग्रामीण निर्धन परिवार पर इसका व्यापक प्रभाव नहीं देखा जा सकता है । फिर शैक्षणिक पिछड़ापन व जागरूकता में कमी भी इस मार्ग में बाधा है । इन सब कारणों से भारत में डिजिटल विभाजन की उपस्थिति बनी हुई है, जोकि एक प्रमुख चुनौती है । नीतिगत बाधाएँ भी डिजिटल इण्डिया को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं । कर सम्बन्धी व अन्य नियामकीय दिशा-निर्देश, एफडीआई नीतियों में अस्पष्टता आदि इसके मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है ।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इण्टरनेट की गति अन्य प्रमुख देशों की तुलना में काफी कम है । यहाँ तक कि श्रीलंका एवं पाकिस्तान में भी 4G की औसत स्पीड भारत से ज्यादा है । डिजिटल इण्डिया की सफलता में साइबर सुरक्षा व डेटा सुरक्षा का मुद्दा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, लेकिन भारत में साइबर खतरा व डेटा लीक की समस्या ज्यादा देखी जा रही है तथा इस सन्दर्भ में अभी कोई कानून नहीं है, जिस कारण डिजिटल इण्डिया को अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है ।

चुनौतियों से निपटने हेतु सरकारी प्रयास

भारत सरकार डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की चुनौतियों से निपटने हेतु निम्न प्रयास कर रही हैं । राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन इसके माध्यम से पूरे देश में 52.5 लाख लोगों को डिजिटल प्रशिक्षण देने के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके अन्तर्गत सभी राज्यों / केन्द्रशासित क्षेत्रों में अधिकृत राशन डीलरों सहित आँगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को सामान्य सूचना प्रौद्योगिकी का ज्ञान और प्रशिक्षण दिया जाता है । इससे ये लोग सरकार की ई-सेवाओं से जुड़कर स्वयं लाभ उठाते हैं, साथ ही अन्य लोगों को इससे जोड़ते हैं । प्रधानमन्त्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता मिशन इस मिशन का मुख्य उद्देश्य वर्ष 2019 तक समस्त राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में 6 करोड़ व्यक्तियों को डिजिटल साक्षर बनाना तथा प्रत्येक उपयुक्त परिवार के एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर कर 40% ग्रामीण परिवारों को इस योजना से जोड़ना था, जो वर्तमान में भी जारी है । भारतनेट इस योजना में वर्ष 2018 तक देश में 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को 100 Mbps की स्पीड पर ब्रॉडबैण्ड कनेक्टिविटी कराने का लक्ष्य रखा गया था । यह विश्व की सबसे बड़ी डिजिटल कनेक्टिविटी परियोजना है, जो वर्तमान में भी जारी है । इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेण्ट फण्ड वर्ष 2020 तक नेट जीरो आयात प्राप्त करने के उद्देश्य से फण्ड ऑफ फण्ड के रूप में इस फण्ड की स्थापना की गई है । डिजिटाइज इण्डिया प्लेटफार्म यह किसी भी संगठन के लिए स्केन किए गए दस्तावेज छवियों के लिए डिजिटलीकरण की सेवाएं प्रदान करता है ।

निष्कर्ष

इस प्रकार, सरकार के सफल प्रयास से डिजिटल क्षेत्र की चुनौतियों के विद्यमान होते हुए भी कार्यों में पारदर्शिता, सरलता, गुणवत्ता में सुधार हुआ है । इससे दूर-दराज के गाँव में भी विभिन्न सेवाओं से लोग लाभान्वित हुए हैं । साथ ही सरकार अब छोटे शहरों में बीपीओ उद्योग स्थापित करने पर बल दे रही है । इससे एक तरफ रोजगार के अवसर सृजित होंगे, दूसरी तरफ सूचना प्रौद्योगिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवा उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा । डिजिटल इंडिया की सफलता के लिए देश की बड़े-बड़े कंपनियों ने काफी खर्च किया है अब तक इसमें तो 4.5 लाख करोड़ खर्च कर चुके हैं । इससे 18 लाख लोगों को नौकरी मिलेगी यह भारत सरकार की बहुत ही अच्छी योजना है इसे भारत की एक अलग पहचान होगी । डिजिटल इंडिया गांव से लेकर शहर तक हर क्षेत्र में जुड़ेगा और हमारे देश का नाम रोशन करेगा । हमारा देश दूसरे देशों से मदद लेता था और अब मदद देने वाला देश बनेगा । इसे भारत की एक अलग ही पहचान होगी ।


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अयोगवाह किसे कहते हैं?

अयोगवाह से तात्पर्य ऐसे वर्णों से होता है जिनमें स्वर एवं व्यंजन दोनों के गुण पाए जाते हैं।

हिंदी वर्णमाला में अनुस्वार तथा विसर्ग ‘अयोगवाह वर्ण’ कहे जाते हैं इन वर्णों में स्वर एवं व्यंजन दोनों के गुण पाए जाते हैं जैसे कि ‘अं’ एवं ‘अः’ यह अयोगवाह वर्ण हैं। हिंदी वर्णमाला में अयोगवाह की संख्या मात्र 2 होती है। ‘अं’ एवं ”अः’ में कहें तो अयोगवाह ना तो पूर्ण रूप से स्वर कहे जाते हैं और ना ही पूर्ण रूप से व्यंजन कहलाते हैं। उनमें स्वर एवं व्यंजन दोनों के गुण पाए जाते हैं।

अयोगवाह का प्रयोग अनुस्वार के रूप में भी होता है तथा अनुनासिक के रूप में भी होता है। हम जानते हैं कि अनुस्वार व्यंजन के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं तथा अनुनासिक स्वर के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। अयोगवाह का पूरी तरह स्वर अथवा व्यंजन ना होने का मुख्य कारण यह भी है कि स्वर का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से भी किया जा सकता है, लेकिन अयोगवाह जोकि अनुस्वार एवं विसर्ग के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, उनका उच्चारण किसी अन्य वर्ण की सहायता के बिना नहीं किया जा सकता इसीलिए अयोगवाह स्वर एवं व्यंजन के बीच की कड़ी हैं।


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अपने मित्र को “प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना” के लाभ और इस लाभ को कैसे प्राप्त करें? इसकी जानकारी देते हुए एक पत्र हिंदी में लिखें।

मित्र को प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के लाभ के संबंध में पत्र

 

दिनांक : 13 मई 2024

 

प्रिय मित्र संकल्प,

तुम्हारा पत्र मिला। तुमने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के बारे में पूछा तो मैं तुम्हें प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के बारे में जानकारी दे रहा हूँ। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना महिलाओं के लिए शुरू की गई योजना है। इस योजना के अंतर्गत महिलाओं के लिए मुक्त गैस कनेक्शन सिलेंडर सहित प्रदान किया जाता है। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक लाभकारी है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं चूल्हे पर खाना बनाती है। उन्हें लकड़ी जलाकर चूल्हे पर खाना बनाने तथा उससे उत्पन्न धुएं से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री उज्जवला गैस योजना शुरू की गई। इस योजना के अंतर्गत 18 वर्ष से ऊपर की कोई भी महिला मुफ्त गैस सिलेंडर कनेक्शन सहित पा सकती है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का लाभ लेने के लिए आवश्यक योग्यताएँ इस प्रकार हैं।

  • लाभार्थी के पास अपनी पहचान का पूर्ण प्रमाण पत्र होना चाहिए तथा अपने घर के पते का प्रमाण पत्र होना चाहिए।
  • आधार कार्ड और पैन कार्ड आवश्यक है।
  • राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया राशन कार्ड भी आवश्यक दस्तावेजों में दस्तावेजों में शामिल है।
  • लाभार्थी भारतीय महिला के नाम एक बैंक अकाउंट ही होना चाहिए तथा इसका उल्लेख उज्जवला योजना के लाभ के लिए फॉर्म भरते समय किया जाना आवश्यक होगा।
  • लाभार्थी महिला ग्रामीण पृष्ठभूमि और आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आती हो, तभी उसको इस योजना का लाभ मिलेगा।
आशा है तुम इस योजना के लाभ के बारे में जान चुके होगे। अधिक जानकारी के लिए तुम नीचे दी गई इस वेबसाइट पर विजिट कर सकते हो, जहाँ से तुम्हें प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के बारे में जानकारी प्राप्त होगी और वहीं पर इसका ऑनलाइन आवेदन भी किया जा सकता है।
तुम यदि तुम्हें अपनी माताजी के लिए गैस कनेक्शन चाहिए तो तुम आज ही आवेदन कर दो अथवा तुम्हें किसी अपने पहचान वाले को जानकारी देनी है तो उन्हे भी सारी जानकारी दे देना।
तुम्हारा मित्र,
विनोद ।

अपनी नानी माँ या दादी माँ को पत्र लिखकर सूचित करें कि इन गर्मी की छुट्टियों में आप उनके पास आ रहे हैं​।

दादी माँ को पत्र

 

दिनांक : 7 मई 2024

 

आदरणीय नानी माँ/दादी माँ
सादर चरण स्पर्श

दादी माँ, यहाँ पर सब कुशल मैं आपकी एवं दादाजी की कुशलता की कामना करता हूँ। दादी माँ मेरी परीक्षाएं कल ही समाप्त हुई हैं। अगले हफ्ते हम सभी लोग यानी मैं, पापा-मम्मी और छोटी बहन पूजा, हम चारों लोग आपके पास गर्मियों की छुट्टियां बिताने के लिए आ रहे हैं। आपके पास आने का जब से हमारा कार्यक्रम बना है, तब से मुझे बहुत खुशी हो रही है। मुझे आपके पास आने की बेहद खुशी है। अब मैं आपके पास रहकर 15 दिन खूब मस्ती करूंगा और आपके हाथों से बने स्वादिष्ट व्यंजन खाऊंगा। दादी माँ, आपको पता है कि मुझे आम बहुत पसंद हैं। आप मेरे लिए रसीले आम मंगवा कर रखना।

दादी माँ मैंने आपके लिए एक सुंदर सी साड़ी और दादा जी के लिए एक कुर्ता लिया है। हम लोग अगले हफ्ते शुक्रवार तक आपके पास आ जाएंगे। मम्मी-पापा ने आपको प्रणाम कहा है, और मेरी तथा पूजा की तरह से आपको और दादा जी क दादा जी को चरण स्पर्श।

आपका पोता,
वैभव ।


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अपने चाचाजी को पत्र लिखकर विद्यालय के वार्षिक उत्सव में आमंत्रित कीजिए।

अपने घर के बड़े-बुजुर्गों से दुर्गापूजा के संबंध में किसी कहानी को सुनकर वर्तमान समय में उसकी समीक्षा करते हुए मित्र के पास पत्र लिखें ।

अपनी किसी यादगार यात्रा के विषय में लगभग 200 शब्दों में लिखिए।

मेरी यादगार यात्रा

 

यूँ तो अधिकतर यात्राएं यादगार ही होती हैं। यात्रा में कुछ ना कुछ ऐसा अवश्य घटित हो जाता है जो हमें याद रहता है। लेकिन कुछ यादें ऐसी होती हैं, जो बेहद यादगार यात्रा बन जाती हैं। उनमें कुछ ऐसी विशेष घटना घट जाती है जो हमारे मन पर एक अमिट छाप छोड़ छोड़ देती है, और हमें जीवन भर उसकी स्मृति रहती है। ऐसी ही एक यादगार यात्रा मेरे जीवन में भी हुई।

एक बार मुझे अपने ऑफिस के किसी कार्य से अचानक दिल्ली से नैनीताल जाना पड़ गया। कार्यक्रम एकदम अचानक ही बना था। मैंने सुबह दिल्ली से नैनीताल की बस पकड़ी और बस में सवार हो गया। कड़ाके की सर्दी का मौसम चल रहा था और मुझे नैनीताल की सर्दी के विषय में काफी कुछ सुन रखा था। इस कड़ाके की ठंड में होने वाली परेशानियों से मैं परिचित था। मुझे चिंता हो रही थी कि नैनीताल में कहाँ ठहरूंगा।

बस में मेरी बगल वाली सीट पर एक परिवार यात्रा कर रहा था। वह पति-पत्नी और उनके दो बच्चे थे। वह परिवार काफी मिलनसार और हंसमुख स्वभाव का था। बस में यात्रा के दौरान उनसे मेरी पहचान हो गई। बातचीत में मैंने उन्हें नैनीताल के बारे में बताया कि मैं दिल्ली से नैनीताल किसी कार्य से जा रहा हूँ। उन सज्जन ने कहा कि वे नैनीताल के ही रहने वाले हैं और दिल्ली घूमने आए थे। अब वापस जा रहे हैं।

मैंने उन्हें किसी होटल के विषय में पूछा तो उन्होंने कहा कि नैनीताल में इस समय टूरिस्ट सीजन चल रहा है। इस समय होटल में जगह मिलना मुश्किल है। आप चाहे तो हमारे घर ठहर सकते हैं। मुझे जैसे अनजान व्यक्ति को अपने घर रहने का आमंत्रण देकर उन्होंने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। मैंने उनके अनुरोध को विनम्रता पूर्वक मना करते हुए कहा कि होटल में कहीं ना कहीं जगह मिल ही जाएगी। उन्होंने कहा, आप कोशिश कर लो, यदि आपको जगह नहीं मिले तो आप हमसे संपर्क कर लेना।

नैनीताल पहुंच कर मैंने कई होटलों में ठहरने के लिए पता किया, लेकिन उन सज्जन की बात सच निकली। मुझे कहीं पर भी जगह नहीं मिली। मुझे उनकी याद आई। मैंने उनको फोन किया उन्होंने कहा तुरंत आप हमारे घर चले आओ। उनके घर पहुंच कर उन्होंने मेरा अद्भुत आतिथ्य सत्कार किया। जिस कार्य हेतु मैं आया था, उन्होंने अगले दिन वह कार्य के लिए संबंधित जगह तक पहुंचने में न केवल मदद की बल्कि नैनीताल के कई दर्शनीय स्थलों पर भी घुमाया। दो दिन उनके घर जाकर उन्होंने मुझे एक पल भी यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं किसी अनजान व्यक्ति के घर पर हूँ।

नैनीताल में मेरा कार्य हो गया था और मै नैनीताल भी घूम लिया। मैंने उन्हे दिल्ली आने और दिल्ली आने पर मेरे घर ठहरने का निमंत्रण देकर उनसे विदा ली। उस सज्जन परिवार के अतिथि सत्कार से मै अनुगृहित हो गया था। वास्तव में वह यात्रा एक यादगार यात्रा के रूप में जीवन की स्मृतियों में अंकित हो गई।


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दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है।’ इस बात का आशय यह है कि जीवन में हमें जो भी दुख प्राप्त होते हैं, उनसे हम कुछ ना कुछ सीख लेते हैं। जीवन में मिलने वाले दुखों से हमारे अंदर संघर्ष करने की क्षमता विकसित होती है। इन संघर्षों से जूझ कर हमारे अंदर एक हुनर पैदा होता है, जो हमें जीवन में निरंतर आगे बढ़ने देता है। दुखों में मिलने वाले संघर्ष हमें और अधिक मजबूत बनाते हैं। दुखों से प्राप्त अनुभव हमें शिक्षा देकर जाते हैं और हम अपनी गलतियों तथा कमियों को भी जान पाते हैं, जिससे जीवन में हमें आगे बढ़ने में मदद मिलती है। दुख ही हमें मजबूत बनाते हैं और मजबूत व्यक्ति ही अपने जीवन में आगे बढ़ता है। इसीलिए दुख जीवन को माँजता है और उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है।

संदर्भ पाठ

‘लहासा की ओर’ लेखक – राहुल सांकृत्यायन


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‘चीफ की दावत’ कहानी में ‘माँ’ के चरित्र की विशेषता लिखिए।

‘चीफ की दावत’ कहानी में ‘माँ’ के चरित्र की विशेषताएं

‘चीफ की दावत’ कहानी भीष्म साहनी द्वारा रचित एक मार्मिक कहानी है, जिसमें ‘माँ’ कहानी की सबसे प्रमुख पात्र है। उसके अलावा उनका पुत्र शामनाथ कहानी का एक अन्य प्रमुख पात्र है। चीफ की दावत कहानी में शामनाथ की ‘माँ’ के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं हैं…

  • ‘चीफ की दावत’ कहानी में श्यामनाथ की माँ एक ग्रामीण घरेलू महिला हैं, जो स्वभाव से बेहद सीधी-सादी हैं। अपना अधिकतर जीवन गाँव में बिताने के कारण उनका स्वभाव सीधा एवं सरल है। शहर में अपने बेटे के अफसर बन जाने के बाद वह अपने अफसर बेटे श्यामनाथ के घर रहने को आई हैं।
  • ‘चीफ की दावत’ कहानी में माँ एक बेहद जुझारू महिला के रूप में चित्रित की गई है। जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपने बेटे श्यामनाथ को पढ़ा लिखा कर इस योग्य बनाया कि वह एक बड़ा अफसर बन गया।
  • माँ ग्रामीण पृष्ठभूमि की सीधी-सादी महिलाएं हैं, इसलिए उन्हें अपने अफसर बेटे श्यामनाथ की आधुनिक पाश्चात्य युक्त जीवन शैली बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसी कारण जब वह अपने बेटे के घर जाती हैं तो वह बेटे के परिवार की जीवन शैली के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाती हैं।
  • माँ एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिलाएं हैं और वह सात्विक भोजन खाने वाली महिला हैं। उन्हें अपने बेटे के घर में मांस आदि पकना बिल्कुल भी अच्छा नही लगता है। वह मांसाहारी भोजन को हाथ तक नहीं लगातीं।
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  • चीफ की दावत कहानी की माँ हस्तशिल्प कला में निपुण महिला और फुलकारी की कढ़ाई करने में माहिर हैंं। उनकी यही हस्तशिल्प कला शैली शामनाथ के चीफ अफसर को पसंद आ गई थी।
  • माँ बेहद सहृदय महिला भी हैं। उनकी बेटा निरंतर उनकी उपेक्षा करता रहता है लेकिन उसके बावजूद जब बेटा अपनी जरूरत पड़ने पर फुलकारी बनाने के लिए माँ की खुशामद करता है, तो वह पिछली सारी बातें भुलाकर अपनी बेटे की बात को मान लेती हैं।

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शामनाथ तथा उनकी पत्नी ने चीफ़ को दावत पर बुलाने के लिए कौन-कौन-सी तैयारियाँ की? (चीफ़ की दावत)

सब्जियों का राजा आलू को कहा जाता है, तो सब्जियों की रानी किसे कहा जाता है?

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हम सब जानते हैं कि सब्जियों का राजा ‘आलू’ को कहा जाता है। आलू एक ऐसी सब्जी है जो हर सब्जी के साथ प्रयोग में लाई जाती है। यह हर सब्जी के साथ आसानी से घुल-मिल जाती है। इसे हर सब्जी के साथ बनाया जा सकता है। आलू की सब्जी ऐसी सब्जी है जो लगभग हर किसी को पसंद आती है। आलू हर किसी को पसंद होता है। इसीलिए आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। लेकिन क्या हम जानते हैं कि सब्जियों की रानी की किसे कहा जाता है?

सब्जियों की रानी मिर्च ‘हरी मिर्च’ को कहा जाता है

‘हरी मिर्ची’ को सब्जियों की रानी इसलिए कहा जाता है क्योंकि हरी मिर्च हर सब्जी में प्रयोग की जाती है। हरी मिर्च हर घर में पाई जाती है। दाल हो या किसी भी तरह की सब्जी हो हरी मिर्च का प्रयोग जरूर किया जाता है। बहुत से लोग ऐसे हैं जो लाल मिर्च पाउडर का प्रयोग नहीं करते उसकी जगह हरी मिर्च का प्रयोग ही करते हैं। इसीलिए सब्जियों की रानी ‘हरी मिर्च’ को कहा जाता है।

सब्जियों का राजा : आलू
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सोवियत संघ का उत्तराधिकारी किसे बनाया गया ?

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सोवियत संघ का उत्तराधिकारी ‘रूस’ को बनाया गया, जो कि 1991 में सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।

विस्तार से समझें…

सोवियत संघ की स्थापना का दौर बेहद लंबा रहा है। इसकी स्थापना 1922 में हुई थी और 1991 में सोवियत संध टूटकर बिखऱ गया। सोवियत संघ 15 राष्ट्रों का एक संघ था। इसमें जो सबसे बड़ा राष्ट्र था, वो ‘रूस’ था। सोवियत संघ 1991 में टूटकर अलग अलग राष्ट्रों में बिखर गया और रूस जो कि सबसे बड़ा देश था, उसको सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दे दी गई। 26 दिसंबर 1991 को ‘रूस’ सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना और रूसी सरकार ने सोवियत संघ के कार्यालय को संभाल लिया। इसके पहले 25 दिसंबर 1991 को ‘मिखाइल गौर्बाच्योव’ में सोवियत संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।

सोवियत संघ स्थापना 1918 की रूस की क्रांति के बाद 1922 में हो गई थी। जब लेनिन के नेतृत्व में रूस में अपने सीमा विस्तार किया और आसपास के पूर्वी यूरोप के अनेक छोटे-बड़े राष्ट्रों को अपनी सीमा में शामिल कर लिया। सोवियत संघ का आधिकारिक नाम ‘यूनाइटेड सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक’ (USSR) था। ये यूरोप और एशिया के एक बड़े भूभाग पर एक विस्तृत राष्ट्र संघ था। सोवियत संघ में 15 स्वायत्त राष्ट्र शामिल थे। कहने को ये स्वायत्त राष्ट्र थे लेकिन इन पर एक केंद्र सरकार का नियंत्रण था। इन 15 राष्ट्रों के नाम हैं…


समय का ध्यान रखना जरूरी क्यों होता है, अपने विचार लिखिए |

एक बार महात्मा गांधी जी से किसी ने पूछा कि “जीवन की सफलता का श्रेय आप किसे देते हैं – शिक्षा, शक्ति अथवा धन को” उन्होंने उत्तर दिया कि यह सब वस्तुएँ जीवन को सफल बनाने में सहायक अवश्य हैं, परंतु महत्वपूर्ण है –समय की परख । जिसने समय की परख करना सीख लिया उसने जीने की कला सीख ली । जो लोग उचित समय पर उचित कार्य करने की योजना बनाते है, वे ही समय के महत्व को समझते हैं। जो व्यक्ति समय को नष्ट करता है समय उसे नष्ट कर देता है ।

इस संसार में सभी वस्तुओं को घटाया बढ़ाया जा सकता है , पर समय को नहीं । न तो समय रुकता है और ना ही किसी की प्रतीक्षा करता है।

कबीर जी के अनुसार जो लोग दिन खा-पीकर रात सो कर गुज़ार’ ‘देते हैं वे अपने जीवन को बर्बाद कर देते है । समय एक ऐसा देवता है जो यदि प्रसन्न हो जाए तो इंसान को उन्नति के शिखर पर पहुँचा देता है और यदि नाराज़ हो जाए तो उसका पतन कर देता है।

धरती, चाँद, सितारे, यहाँ तक की प्रकृति भी समय का पालन करती है तो मनुष्य को भी समय का अनुसरण करना चाहिए । इस संसार में सबसे अमूल्य है समय। अतः इस मूल्यवान समय का हमें हमेशा सदुपयोग करना चाहिए ।


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‘हास्य का जीवन में महत्व’ पर 100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

अनुच्छेद

हास्य का जीवन में महत्व

 

हास्य का जीवन में बहुत महत्व है । जीवन में हमेशा मुसकुराते रहना चाहिए । चेहरे में मुस्कुराहट हमेशा खुशियाँ लाती है । हास्य वाले मुख को देखकर दुःख खुद ही भाग जाते है । जीवन में कोई शपरेशानी आए, हमें हमेशा उसे हँसते हुए उसका समाधान निकालना चाहिए । यदि हम परेशानी को देखकर रोने बैठ जाएंगे, तो हमारा दिमाग चलना बंद हो जाएगा । हम कुछ भी अच्छा नहीं सोच पाएंगे । हमारे दिमाग में गलत विचार आते जाएंगे । जब हम हंसी के साथ सोचना शुरू करेंगे, हमारे मन बहुत अच्छे विचार आएंगे । हम हर समस्या का हल आसानी से निकाल लेंगे । जब हमारा जीवन हास्य से भरा हुआ होता है, तभी हम दूसरों के जीवन खुशियाँ ला सकते है। खुश रहने से जीवन से सारे दुःख चले जाते है । खुश जीवन व्यतीत करने के लिए हास्य हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है ।


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जूलिया का अपनी गृह स्वामी की हाँ में हाँ मिलाना बिल्कुल उचित नहीं था, क्योंकि ऐसा करके उसने गृह स्वामी को मनमानी करने की छूट दे दी थी।

इस संसार में बहुत अधिक सीधे बनकर रहने से भी कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि लोग उसका अनुचित फायदा उठाने लगते हैं। ज्यादा सीधे बनकर यदि हर बात को स्वीकार कर लो कोई विरोध न करो तो लोग और अधिक दबाने लगते हैं। जूलिया ने भी ऐसा ही किया, उसने अपने गृह स्वामी की हर बात पर विश्वास किया और गृहस्वामी जो कहता था उसकी बात जूलिया मान लेती थी। इस तरह गृहस्वामी ने धोखे से उसके वेतन में से 10 रुपये काट लिए, क्योंकि उसके गृह स्वामी को पता था कि जूलिया कुछ नहीं बोलेगी। वह 2 महीने 5 दिन का काम कराके उसे केवल 2 महीने का वेतन देता है और रविवार की छुट्टियों के भी पैसे काट लेता है, लेकिन जूलिया कुछ नहीं कहती। यदि जूलिया गलत बात का विरोध करती तो गृहस्वामी की अपनी मनमानी करने की हिम्मत नहीं होता। किसी भी तरह की गलत बात को सहन करना उस गलत बात को बढ़ावा देना है। इसलिए जूलिया ने अपने गृहस्वामी की हाँ में हाँ मिलाकर सही नहीं किया। उसने अपने ऊपर हो रहे अन्याय और अत्याचार को बढ़ावा दिया।

संदर्भ पाठ
‘जूलिया’ (अंतोन चेखव) (कक्षा-9, पाठ-5)


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अनौपचारिक पत्र

चाचाजी को वार्षिक समारोह में आने के लिए आमंत्रण पत्र

 

दिनाँक – 30 अप्रेल 2024

मकान न. 24,
ग्रीन पार्क कॉलोनी,
खलिनी, शिमला-171002,

विषय: चाचा जी को वार्षिक उत्सव आमंत्रण हेतु पत्र।

पूज्यनीय चाचा जी,
चरण स्पर्श!

आशा करता हूँ कि आप अपने स्थान पर कुशलता से होंगे । अगले महीने की 10 तारीख को हमारे विद्यालय में वार्षिक महोत्सव मनाया जाएगा । वार्षिक महोत्सव में संगीत कला, नृत्य कला, कविता, चित्रकला, योग, भाषण तथा विभिन्न प्रकार के खेलों की प्रदर्शनी होगी तथा प्रतियोगिता में जीतने वाले छात्रों को मुख्य अतिथि द्वारा पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा । मैंने भी संगीत कला में भाग लिया है। चाचा जी मैं जानता हूँ कि आपको भी संगीत में बहुत रुचि है इसलिए मेरी तमन्ना है कि आप मेरे विद्यालय के वार्षिक महोत्सव में जरूर आएं । आपके इंतज़ार में ।

आपका भतीजा,
अरिंदम ।


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अनौपचारिक पत्र

दुर्गापूजा का उल्लेख करते हुए मित्र को पत्र

 

दिनाँक – 24 अक्टूबर 2024

 

लक्ष्मी निवास,
कनलोग,
शिमला- 171 001,

प्रिय मित्र सुमेश,
नमस्कार

मित्र आशा करता हूँ तुम अपने घर पर परिवार संग स्वस्थ होंगे। आप सब को दुर्गा पूजा की बहुत-बहुत बधाई। इस बार दुर्गा पूजा में मेरे दादा-दादी हमारे साथ ही थे और इस उपलक्ष्य में हमारे घर पर दुर्गा पूजा का विशेष आयोजन किया गया। दादा जी को तो सारी आध्यात्मिक कथाएँ कंठस्थ हैं, इसलिए दुर्गा पूजा और कथा का पाठ भी दादा जी ने खुद ही किया।

मित्र, दादा जी ने दुर्गा पूजा के दौरान एक कथा सुनाई, जिसे सुनकर मैं स्तब्ध रह गया क्योंकि वह कथा वर्तमान समय से भी सीधा मेल खा रही थी।

दादा जी ने बताया कि महिषासुर नाम का जो राक्षस था, उसने कई वर्षों की तपस्या की और ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांग लिया। ब्रह्मा जी ने भी उसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर उसे अमरत्व की जगह वरदान दिया कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों ही होगी अन्यथा तुझे कोई मार ना सकेगा। यह वरदान पाकर उसने असुरों को साथ लेकर देवों के विरुद्ध ही युद्ध छेड़ दिया और उन्हें हरा दिया। ऐसा देख सभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु जी ने अपनी शक्ति से देवी दुर्गा को जन्म दिया जिसने बाद में राक्षस महिषासुर को मौत के घाट उतारा और देवताओं को उसके आतंक से छुटकारा दिलाया।

मित्र, आज भी ऐसे महिषासुर भ्रष्टाचार रूपी राक्षस के रूप में गली-गली में घूम रहें है और हमारे देश की जड़ों को खोखला कर रहे हैं। गरीब दिन प्रति दिन गरीब होता जा रहा है और यह अपनी तिजोरियाँ भर रहे हैं क्योंकि इन भ्रष्टाचार रूपी राक्षसों ने बड़े-बड़े नेताओं के तलवे चाटकर बस वरदान ले रखा है और इसी वरदान के कारण बस वह इस देश का बर्बाद कर रहे हैं। आज इन राक्षसों की वजह से हमारे देश के नौजवान, पढ़ लिख कर भी घरों में बैठे हैं क्योंकि नौकरियाँ तो वह महिषासुर रूपी राक्षस भ्रष्टाचार कर हड़प रहे हैं।
अब तो बस एक ही उम्मीद करते हैं कि कोई दुर्गा रूपी शक्ति/व्यक्तित्व आए और इस भ्रष्टाचार रूपी राक्षस से इस देश को बचा ले, वरना यह हमारे समाज और देश का नामो निशान नहीं छोड़ेंगे।

बाकी सब ठीक है, तुम अपना ध्यान रखना और छुट्टियों में हो सके तो शिमला आ जाना।

तुम्हारा प्रिय मित्र,
विजेश,
खलिनी,
शिमला ।


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अपने गाँव के बारे में बताते हुए अपने मित्र के नाम पत्र

 

दिनांक : 08/05/2024

 

प्राप्तकर्ता – आरती वर्मा
वर्मा निवास, मकान नंबर -22/4,
पहाडगंज, दिल्ली

हैलो आरती

कैसी हो? आशा करती हूँ, तुम अपने घर में ठीक होगी। मैंने तुम्हें अपने गाँव बुलाया था। कोरोना महामारी के कारण तुम नहीं आ पाई। उसके बाद तुम्हारा यहाँ आने कोई प्रोग्राम नहीं बना। मुझे इस बात का बहुत अफ़सोस है। इस पत्र में मैं तुम्हें अपने गाँव के बारे में बताना चाहती हूँ।

मेरा गाँव हिमाचल प्रदेश में है । मेरे गाँव का नाम पालमपुर है । मेरा गाँव बहुत सुंदर है । यहाँ पर बहुत सुंदर-सुन्दर जगह घूमने के लिए है। सबसे अच्छी बात यहाँ पर बहुत सुन्दर चाय के बगीचे है । चाय के बगीचों में घूमने का बहुत मज़ा आता है। मेरे गाँव काँगड़ा जिले में पड़ता है। यहाँ पर खाने के में बहुत-बहुत अच्छी चीज़ें मिलती है । यहाँ की शादियों की धाम बहुत प्रसिद्ध है । यहाँ का पहनावा भी बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ और घूमने के लिए बहुत-बहुत प्रसिद्ध मंदिर है । मेरे गाँव के सभी लोग बहुत मिलनसार है। पढ़ाई में भी मेरा गाँव सबसे आगे है । यहाँ के सभी लोग पढ़े लिखे है।

आशा है कि मेरे गाँव के बारे में जानकर तुम्हे मेरे गाँव आने का जरूर मन कर रहा होगा। मेरे गाँव  तुम जल्दी आने की कोशिश करना। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी । अपना ध्यान रखना।

तुम्हारी सहेली,
कनिका।


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यदि मेरे मामा का घर चाँद पर होता तो…

 

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भ्रमण का महत्व बताते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।

कवि को प्रकृति के किन-किन रूपों को देख कर ईश्वर की याद आती है। (‘जब याद तुम्हारी आती है’ कविता)

‘जब याद तुम्हारी आती है’ कविता में प्रकृति के अनेक रूपों को देखकर कवि को ईश्वर की याद आती है। कवि के अनुसार जब सुबह-सुबह चिडियाँ उठकर खुशी के गीत गाती है, फूलों की कलियां अपने पंखुड़ी रूपी दरवाजे खोल खोल अपनी मंद-मंद मुस्कान बिखेरती हैं, और कलियों की वह खुशबू जब घरों में फैल जाती है, तब प्रकृति के इन रूपों को देखकर कवि को ईश्वर की याद आती है।

कवि के अनुसार जब बारिश की बूंदे छम-छम कर धरती पर गिरती हैं। आकाश में बिजली चमचम होकर चमकती है। मैदानों में, वनों में, बागों में, चारों तरफ हरियाली दिखाई पड़ती है। वातावरण में ठंडी-ठंडी हवा मंद-मंद मस्त होकर चलती है, तो प्रकृति के इन रूपों को देखकर कवि को ईश्वर की याद आती है।

‘जब याद तुम्हारी आती है।’ कविता कवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित कविता है। इस लघु कविता के माध्यम से उन्होंने प्रकृति की सुंदरता का बखान करते हुए इतनी सुंदर प्रकृति बनाने के लिए ईश्वर का धन्यवाद किया है।


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‘प्रकृति हमारी शिक्षक है।’ स्पष्ट कीजिए।​

प्रकृति का महत्व (निबंध)

‘समय के साथ तोप की स्थिति में बदलाव आ गया’ इस कथन की पुष्टि कीजिए।

‘समय के साथ तोप की स्थिति में बदलाव आ गया।’ समय के साथ-साथ तोप की प्रासंगिकता बिल्कुल खत्म होती गई। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजी सेना द्वारा इस तोप का उपयोग किया जाता था, तब यह तोप की गर्जना लोगों को थर्रा देती थी। इस तोप ने भारत के असंख्य के शूरवीरों को मौत के घाट उतारा था। उस समय तोप की गर्जना से लोग कांप जाते थे, परंतु समय के साथ बदलाव होता गया। अब इस तोप की कोई उपयोगिता नहीं रह गई। अब तो ये तोप कंपनी बाग में प्रदर्शन की वस्तु बनाकर पड़ी रहती है। अब इस तोप से कोई नहीं डरता। तोप पर अू बच्चे खेलते हैं, उस पर सवारी करते हैं। चिड़ियाएं और गौरैयाएं आदि इसके भीतर अपना घोंसला बनाए हुए हैं।

तोप की बदली हुई स्थिति से हमें यह पता चलता है कि शक्तिशाली से शक्तिशाली व्यक्ति को एक न एक कमजोर पड़ना ही होता है, उसकी एक न एक दिन दुर्दशा होनी है।

संदर्भ पाठ
तोप – वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श)


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यदि सरदार पटेल ने रियासतों को भारतीय संघ में न मिलाया होता तो क्या होता?

‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ इस उक्ति का पल्लवन कीजिए।

प्रधानाचार्य द्वारा छात्रों को छुट्टी दे दी गई (कर्तृवाच्य में बदलिए)

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प्रधानाचार्य द्वारा छात्रों को छुट्टी दे दी गई

कर्तृवाच्य : प्रधानाचार्य ने छात्रों को छुट्टी दे दी।

वाच्य क्या होते हैं?

वाच्य की परिभाषा :- क्रिया के उस परिवर्तन को वाच्य कहते हैं, जिसके द्वारा हमें इस बात का ज्ञान हो कि वाक्य में कर्ता, कर्म या भाव मे से किसकी प्रधानता है।

वाच्य के भेद –
1. कर्तृवाच्य : जिस वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध होता है।
2. कर्मवाच्य : जिस वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो।
3. भाववाच्य : जिस वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो।


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दिए गए वाक्यों का वाच्य परिवर्तन करें। 1. माँ द्वारा परंपरा से हट कर सीख दी जा रही है । (कर्तृवाच्या) 2. आओ पेड़ की छाया में बैठें। (भाववाच्य) 3. मैंने तुम्हारी समस्याओं को लेखन का विषय बनाया है। (कर्मवाच्य)

‘आज आचार्य को सुन्दर भाषण देना पड़ा।’ इस वाक्य में कौन सा वाच्य है?

‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ इस उक्ति का पल्लवन कीजिए।

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पल्लवन

होनहार बिरवान के होत चीकने पात

 

‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ यह एक कहावत है, जिसका अर्थ यह है, जो बच्चा आगे बड़ा होकर कोई प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा, बड़ा काम करेगा, तो उसके पांव बचपन में ही चिकने दिखाई देते हैं। अर्थात चिकने पाव वाला बच्चा होनहार होता है, जो बड़ा होकर कोई बड़ा कार्य करेगा, कोई प्रसिद्ध व्यक्ति बनता है।

पल्लवन

स्वामी विवेकानंद भारत के प्रसिद्ध आध्यात्मिक संत थे, लेकिन संत बनने के उनके लक्षण उनके बचपन से ही दिखाई पड़ने लगे थे। उनके घर में आध्यात्मिक वातावरण का प्रभाव था। उनकी मां धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी और पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों का अध्ययन करती रहती थीं। यही आध्यात्मिक वातावरण के संस्कार स्वामी विवेकानंद के मन पर भी पड़े। उनमें बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार विकसित हो गए थे। उनके मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गई थी। इसी कारण वह अपने माता-पिता तथा अन्य बड़े जनों से ईश्वर के बारे में जिज्ञासा संबंधी प्रश्न पूछते रहते थे। ज्यों-ज्यों स्वामी विवेकानंद बड़े होते गए, उनमें में आध्यात्मिकता और अधिक गहरी होती गई। शीघ्र ही उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा प्राप्त कर ली और उनके शिष्य बन कर एक बड़े महान संत बने।


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सुमित बजाज, सिद्धार्थ नगर गोरे गाँव (पश्चिम) से बरसात के दिनों में सड़कों की दुर्दशा के बारे में शिकायत करते हुए महानगरपालिका के अध्यक्ष को शिकायती पत्र लिखता है।

औपचारिक पत्र

महानगर पालिका अध्यक्ष को पत्र

दिनाँक – 15 मई 2024

 

सेवा में,
महापौर,
महानगर पालिका,
मुंबई, महाराष्ट्र ।

विषय : बरसात के कारण हुई क्षेत्र की दुर्दशा के बारे में ।

महोदय,

मैं सुमित बजाज, सिद्धार्थ नगर, गोरेगाँव (पश्चिम), मुंबई का स्थायी निवासी हूँ। महोदय, इस पत्र के माध्यम से मैं आपको इस बार भारी बरसात के कारण हुई तबाही के बारे में अवगत करवाना चाहता हूँ।

जैसा कि आप जानते हैं कि इस बार बरसात पिछले साल के मुक़ाबले बहुत ज्यादा हुई है और इस बार जान-माल का नुकसान भी बहुत हुआ है। वैसे तो बरसात के पहले महानगर नगरपालिका अधिकारी ताल ठोक कर कह रहे थे कि इस बार बरसात से नुकसान से बचने के लिए सभी इंतजाम कर लिए गए हैं और इस बार मुंबई वासियों को कोई परेशानी नहीं होगी लेकिन बरसात आते ही सारे दावे खोखले नज़र आते दिख रहे हैं।

हमारे गोरेगाँव में नालों में पानी भर गया है और अब यही गंदा पानी वहाँ के घरों और बस्तियों में भी भरने लगा है और इस कारण हमारे क्षेत्र के लोगों का यहाँ रहना बहुत मुश्किल हो गया है।

गंदा पानी इकट्ठा होने के कारण अब यहाँ पर मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ भी पनपने लगी हैं और अभी तक 10-15 लोग इन बीमारियों के शिकार हो चुके हैं।

गोरेगाँव में वृद्धाश्रम की बिल्डिंग के ढांचे को भी बहुत नुकसान पहुंचा है और यह बिल्डिंग अब रहने के लायक नहीं है क्योंकि कभी भी यहाँ की पुरानी दीवारें गिर सकती हैं। अगर सड़कों की बात करें तो इतने बड़े-बड़े गड्ढे सड़कों में हो गए हैं कि कोई भी इन में गिर कर अपनी जान गंवा सकता है।

कई जगह तो भूस्खलन के कारण सड़क अपनी जगह से अपदस्थ हो गयी है और एक जगह से दूसरी जगह के लिए आवाजाही भी बुरी तरह बाधित हो गयी है। हमने इस बाबत पहले भी कई बार इस परेशानी के बारे में महानगर पालिका के अधिकारियों को बताया था, लेकिन किसी के कान में जूं तक नहीं रेंगी।

इसलिए आप से अनुरोध है कि कृपया यह सारी बातें अपने संज्ञान में लें और गोरेगाँव की इस व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करने की कृपा करें ताकि यहाँ रहने वाले एक सामान्य जीवन जी सकें और अगर पाँच दिनों के भीतर इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो मजबूरन हमें जन आंदोलन करना पड़ेगा और उसके ज़िम्मेवार महानगर पालिका के अधिकारी होंगे।

धन्यवाद।


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आप दिल्ली के निवासी हैं। आप नगर निगम के सफाई कर्मचारियों की शिकायत करते हुए प्रशासनिक अधिकारी को एक पत्र लिखें।

‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर यह बताओ कि आप देश के संवेदनशील युवा नागरिक होने के कारण देश की सुरक्षा हेतु सीमाओं पर खड़े हमारे नौजवानों के प्रति आपके क्या उत्तरदायित्व है?

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‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर अगर हम कहें तो देश के संवेदनशील युवा नागरिक होने के नाते देश की सुरक्षा हेतु सीमाओं पर खड़े हमारे नौजवानों के प्रति हमारा उत्तर दायित्व यह है कि हम उन नौजवानों के प्रति अपना सम्मान प्रकट करें, जो अपना घर परिवार छोड़कर, सर्दी गर्मी की चिंता ना करते हुए देश के सीमा की रक्षा हेतु खड़े रहते हैं। उन्हीं के कारण हम अपने देश में चैन की नींद ले पाते हैं। ऐसे नौजवानों के प्रति हमें अपना श्रद्धा भाव प्रकट करना चाहिए और हमेशा उनका आभार व्यक्त करना चाहिए।

एक युवा नागरिक होने के नाते हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम सभी युवा सैनिकों प्रेरणादायी जीवन गाथा को आने वाली पीढ़ी को भी प्रेरित करें ताकि आने वाली पीढ़ी भी देश की रक्षा के लिए प्रेरित हो। देश की सीमा में सुरक्षा में लगे सभी सैनिकों के प्रति हमारा दायित्व बनता है कि हम सभी सैनिकों के परिवार की उचित ध्यान दें और किसी सैनिक आदि के साथ कोई अप्रत्याशित घटना घटने पर उनके परिवार के लिए हर तरह का सहयोग करें।

संदर्भ पाठ
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ – मधु कांकरिया (कक्षा – 10, पाठ – 3)


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किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि जितना भोजन में नमक का महत्व होता है, उतना ही परिवार में बड़ों का महत्व होता है। वह परिवार भाग्यशाली होता है,जहां बड़े रहते हैं | वह घर मंदिर के समान होता है। ऐसे परिवार की कोई कीमत नहीं जहां बड़े बुजुर्गों को अपमानित किया जाता है। परिवार में बड़ों का बहुत महत्व होता है, घर के जो रीति–रिवाज़ बड़ों से अच्छा कोई नहीं जानता। जिस घर में बड़े होते हैं वह घर संस्कारों से भर जाता है। बड़े बुजुर्ग हमें मर्यादा में रहना सीखते है। परिवार के बड़े संस्कारों की धरोहर होते हैं। सब के प्रती प्रेम, सम्मान और अपने की भावना हमें अपने परिवार के बुजुर्गों से ही मिलती है। बड़े बुजुर्ग हमें प्रोत्साहन व प्रेरणा देते हैं। वह हमारे जीवन का आधार हैं और पहले गुरु भी इसलिए हमें अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिए। बड़े अपने जीवन के अनुभव से हम छोटों को सही रास्ता दिखाते है। हमें हमेशा उनका सम्मान करना चाहिए।


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बहन के विवाह में शामिल होने को जाने हेतु पाँच दिन की छुट्टी लेने के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए

औपचारिक पत्र

बहन के विवाह के लिए  प्रधानाचार्य को छुट्टी हेतु प्रार्थना पत्र

दिनाँक – 18 मई 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य,
डी. ए. वी. विद्यालय,
न्यू शिमला

विषय – बहन के विवाह हेतु छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र

महोदय,

मेरा नाम सचिन है। मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि मेरी बड़ी बहन का विवाह 22 मई 2024 की तारीख को तय हुआ है। विवाह की तैयारी के लिए मुझे अपने पिताजी का सहयोग करना है। घर में बहुत काम हैं, इस वजह से अगले पाँच दिनों तक स्कूल आने में असमर्थ हूँ । अतः मेरी आपसे विनती है कि आप मुझे 22 मई 2024 से 24 मई 2024 तक की छुट्टी देने की कृपा करें। मैं आपका बहुत आभारी रहूँगा।

धन्यवाद सहित,

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
सचिन कंवर,
कक्षा – दसवीं,
अनुक्रमांक 34 ।


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आपके आसपास में गंदगी होने पर सफाई के लिए नगरपालिका अध्यक्ष को प्रार्थना पत्र लिखिए।

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जब हालदार साहब ने मूर्ति के नीचे मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल पढ़ा, तब उन्होंने सोचा कि कस्बे के अध्यापक मास्टर मोतीलाल को मूर्ति बनाने का जिम्मा सौंपा गया होगा और उसे 1 महीने में मूर्ति बनाने के लिए कहा गया था, इसलिए उसने आनन-फानन में मूर्ति बनाकर पटक दी होगी। मूर्ति बनाने के बाद मूर्ति पर पारदर्शी काँच का चश्मा कैसे लगाया जाए, यह समझ में नहीं आ रहा होगा। चश्मा बनाने वाले ने कोशिश की होगी, लेकिन उससे काँच का चश्मा नहीं बन पाया होगा अथवा उसने पत्थर का चश्मा बनाकर फिट किया होगा जो बाद में निकल गया होगा। इस तरह की अनेक बातें हालदार साहब ने तब सोची जब उन्होंने मूर्ति के नीचे मास्टर मोतीलाल लिखा देखा था।

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ स्वतंत्र प्रकाश द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने एक ऐसी छोटी से कस्बे का वर्णन किया है, जहाँ पर चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्थर की एक प्रतिमा वहाँ की नगर पालिका द्वारा लगवाई गई थी। लेकिन उस प्रतिमा पर पत्थर का चश्मा नहीं बना था, बल्कि उस प्रतिमा पर बाहर से चश्मा चढ़ा दिया जाता था जो कि प्लास्टिक के प्रेम का बना होता था। यह चश्मा कैप्टन नामक चश्मे बेचने वाला एक व्यक्ति लगाता था।

संदर्भ पाठ
‘नेताजी का चश्मा’ – स्वतंत्र प्रकाश (कक्षा-10, पाठ-10)


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स्वयं अनुभव किया हुआ आतिथ्य’

 

अतिथि सत्कार करना हमारे भारत की परंपरा रही है और हमारे भारत में ‘अतिथि देवो भव:’ मानने की परंपरा रही है, लेकिन कभी-कभी अतिथि देव नहीं जाना भी बन जाते हैं। अब चूँकि अतिथि का अर्थ है, जो किसी भी तिथि को आ जाए यानि जिसके आने की कोई तिथि ना हो। ऐसा ही हमारे साथ हुआ।

हमारे एक दूर के मौसा जी बिना किसी सूचना के हमारे घर आ धमके। हमने सोचा तो दो-चार दिन रहेंगे और चले जाएंगे, कोई बात नहीं, अतिथि सत्कार हो जाएगा। लेकिन मौसा जी लगता है पूरा लंबा प्रोग्राम बना कर आए थे। जब 4 दिन बाद जब हमने बातों-बातों में ही उनके वापस जाने का इरादे जानने हेतु इनसे उनके मन की बात जाननी चाही तो पता चला कि वह कम से कम एक महीना यहां से हिलने वाले नही हैं। फिर हमने 1 महीने की जगह पौने दो महीने तक उनको जो झेला, तब से अतिथि शब्द से ही डर लगने लगा है। महानगरों के इस व्यस्त जीवन में अतिथि का आवभगत करना किसी भी पहाड़ पर चढ़ने से दुष्कर कार्य है।


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समाज में व्याप्त आपराधिक प्रवृत्तियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए जनसत्ता के सम्पादक को एक पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

जनसत्ता के सम्पादक को एक पत्र

 

दिनांक : 04 मई 2024

 

सेवा में,
सम्पादक महोदय,
जनसत्ता, नई दिल्ली – 110001

सम्पादक महोदय, मेरा नाम सुनील अरोड़ा है। मैं आपके समाचार पत्र जनसंख्या का नियमित पाठक हूँ और आपके समाचार पत्र की समाचार शैली से प्रभावित हूँ। मैं आपके समाचार पत्र के माध्यम से अपने कुछ विचार व्यक्त करना चाहता हूँ।

आजकल हमारी समाज में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। लोग अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए किसी भी तरह के अपराध करने से नहीं चूक रहे हैं। समाज में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है।

आपराधिक प्रवृत्ति ना केवल सामाजिक मूल्यों के पतन की ओर संकेत करती है, बल्कि भविष्य के लिए भी एक चिंता पैदा करती है। हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है, यह बेहद चिंतनीय है। जिधर देखो सबमें जल्दी से जल्दी अमीर बनने और पैसा कमाने की होड़ लगी हुई है। इसके लिए वह किसी का भी नुकसान करने से नहीं चूकते और ना ही कोई अपराध करने में संकोच करते हैं।

आज समाज के प्रबुद्ध और विचारशील वर्ग के लोगों को यह बैठकर चिंतन करना चाहिए और समाज की आपराधिक प्रवृत्ति को दूर करने के लिए कोई ठोस उपाय करना चाहिए। लोगों में जागरूकता पैदा करना चाहिए। धन ही सब कुछ नहीं आचार, विचार, आचरण, स्वभाव, ईमानदारी भी जीवन के महत्वपूर्ण गुण है, यह संस्कार डालने चाहिए ताकि लोगों में अपराधिक प्रवृत्ति विकसित ना हो।

धन्यवाद,

एक पाठक,
सुनील अरोड़ा,
ए-41, निर्मल विहार,
दिल्ली – 110056 ।


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अपने गाँव में डॉ. भीमराव अम्बेडकर पार्क की स्थापना के लिए जिला अधिकारी को पत्र लिखिए l

 

समाचार पत्र का महत्व समझाते हुए अनुज तथा अग्रज में हुआ संवाद लिखो।

संवाद

अनुज तथा अग्रज के बीच समाचार पत्र के महत्व पर संवाद

 

अग्रज ⦂ (छोटे भाई के सर पर हाथ फेरते हुए) प्रिय अनुज ! क्या कर रहे हो ?

अनुज ⦂ (बड़े ही आदर के साथ) नमस्ते ! बड़े भाई , बस पढ़ाई कर रहा हूँ ।

अग्रज ⦂ शाबाश ! मुझे बहुत खुशी है कि तुम बहुत मेहनत कर रहे हो ।

अनुज ⦂ जी भाई , मुझे बारहवीं कक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने है ताकि मुझे मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल जाए ।

अग्रज ⦂ क्या तुम जानते हो कि आपको बारहवीं कक्षा के बाद अगर किसी भी कॉलेज में दाखिला लेना है तो आपको उसके लिए प्रतियोगी परीक्षा में पास होना होगा ।प्रतियोगी परीक्षाओं में सामान्य ज्ञान से जुडे सवाल पूछे जाते हैं जिसकी जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है जो तुम्हें सिर्फ किताबों से प्राप्त नहीं हो सकती।

अनुज ⦂ तो फिर मैं यह सामान्य ज्ञान की जानकारी कहाँ से प्राप्त कर सकता हूँ ?

अग्रज ⦂ सामान्य ज्ञान की जानकारी पाने का सबसे आसान तरीका है समाचार पत्र क्योंकि समाचार पत्रों में सामाजिक मुद्दों, अभिनेताओं, दवाइयों, शिक्षा, विज्ञान, अंतर्राष्ट्रीय समाचार, मेलों, त्योहारों आदि की जानकारी हमें देता है और प्रतियोगी परीक्षाओं में जो सवाल पूछे जाते हैं वह इन्हीं विषयों पर होते है।

अनुज ⦂ (उत्सुकता के साथ) भाई , तो मैं यह समाचार पत्र कहाँ से प्राप्त कर सकता हूँ और इसकी कितनी कीमत है ?

अग्रज ⦂ यह बाज़ार में लगभग सभी भाषाओं में उपलब्ध है। यह हमें खेल,नीतियों धर्म अर्थव्यवस्था, फिल्म उद्योग, रोजगार आदि की सटीक जानकारी देता है।

अनुज ⦂ ठीक है बड़े भाई मैं अब हर रोज़ समाचार पत्र पढूंगा।


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वर्षा ऋतु और ग्रीष्म ऋतु को मानव-रूप देकर उनके बीच कल्पित वार्तालाप को संवाद रूप में ​लिखिए।

घर में चोरी के बाद पुलिस अफसर और पीड़ित महिला के बीच में संवाद लिखिए​।

कौन सी चीज है, जो सूखने पर तो 2 किलो होती है लेकिन भीगने पर 1 किलो और जल जाने पर 3 किलो हो जाती है।

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अजब-गजब सवाल

यहाँ पर पूछा जा रहा है कि ऐसा कौन सी चीज है, जो सूखी है तो उसका वजन 2 किलो है, वह गीली है तो उसका वजन 1 किलो है और जब वह जल जाती है तो उसका वजन 3 किलो हो जाता है।

है ना मजेदार सवाल ! हम सब अक्सर यह सुनते हैं कि कोई भी पदार्थ या वस्तु का वजन सूखी अवस्था में जितना होता है, गीली अवस्था में उसका वजन बढ़ जाता है। यदि कोई कपड़ा सूखा है तो वह उसका वजन जितना होगा, भीगे कपड़े का वजन उससे ज्यादा होगा। यदि इस कपड़े को जला दिया जाए तो वह राख बन जाएगा यानि उसका वजन बेहद कम हो जाएगा। ऐसा हर वस्तु या पदार्थ के साथ होता है। लेकिन यहाँ पर यह सवाल बिल्कुल अजब है, यहाँ पर तो उल्टी गंगा ही बह रही है। यहाँ पर तो पूरा सवाल ही उल्टा है। जिस चीज का सूखी होने पर जो वजन है, वह गीला होने पर तो बढ़ना चाहिए, लेकिन यहाँ पर कम हो रहा है और जल जाने पर तो बढ़ने की जगह कम होना चाहिए. लेकिन यहां पर तीन गुना वजन बढ़ रहा है। है ना कितना अजब सवाल ! तो जवाब भी उतना गजब है। दरअसल वह चीज यानि पदार्थ कहें तो है__

सल्फर

सल्फर एक ऐसा पदार्थ है कि सूखी अवस्था जिसका वजन 2 किलो होता है, उसी 2 किलो सल्फर का गीली अवस्था में वजन 1 किलो रह जाता है। यदि सल्फर को जला दिया जाए तो उसका वजन बढ़ कर 3 किलो हो जाता है।

समझते हैं ऐसा क्यों होता है।

सल्फर एक रसायनिक पदार्थ है।  जब हम 2 किलो सूखी सल्फर लेते हैं तो उसका वजन 2 किलो होगा। यही 2 किलो सल्फर जब हम पानी में मिलाते हैं तो सल्फर पानी में घुलनशील नहीं होती और ना ही पानी में अंदर डूबती है, बल्कि वह पानी में तैरनी लगती है। इसका मुख्य कारण  सल्फर का घनत्व है।

सल्फर का घनत्व पानी से कम होता है, वो पानी में डूबती नही है। इसी कारण पानी में 2 किलो सल्फर का वजन 1 किलो ही रह जाता है। यानि 2 किलो सूखी सल्फर गीली होने पर 1 किलो ही रह जाती है। अब हम यदि 1 किलो सल्फर को जलाएं तो सल्फर का वजन 3 किलो हो जाएगा। किसी भी पदार्थ को जलाने में ऑक्सीजन अपना महत्वपूर्ण रोल अदा करती है।

जब सल्फर को जलाते हैं, तो उसका ये गुण होता है कि वो जलाने पर रसायनिक क्रिया में उत्पन्न होने वाली ऑक्सीजन को सोख लेती है, जिस कारण उसका वजन तीन गुना हो जाता है। इस तरह 1 किलो सल्फर जलाने पर वह 3 किलो हो जाएगी।

तो है अजब सवाल का गजब जवाब !


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2 पिता और 2 पुत्र एक साथ मछली पकड़ने के लिए नदी किनारे गए और सभी ने एक-एक मछली पकड़ी फिर भी उन लोगों के पास कुल 3 मछलियां पकड़ी ऐसा क्यों हुआ?

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2 पिता और 2 पुत्र एक साथ मछली पकड़ने के लिए नदी किनारे गए, और सभी ने एक-एक मछली पकड़ी फिर भी तीनों के पास तीन ही मछली थी जबकि उनके पास चार मछली होनी चाहिए है, ना हैरान करने वाला सवाल?

आपको लग रहा है 2 पिता और 2 पुत्र नदी किनारे मछली पकड़ने गए तो कुल 4 लोग मछली पकड़ने के लिए गए होंगे और सभी ने जब एक-एक मछली पकड़ी होगी तो कुल 4 मछलियां होनी चाहिए।

लेकिन प्रश्न में तो यह बता रहे हैं कि उनके पास कुल 3 मछलियां ही थीं।

पड़ गए न चक्कर में…?

तो चलिए हम आपकी उलझन को समाप्त कर देते हैं।

दरअसल आपको लग रहा है कि यहाँ पर 2 पिता और 2 पुत्र यानि 4 लोग मछली पकड़ने गए, जबकि ऐसा नहीं है।

असल बात यह है कि 2 पिता और 2 पुत्र तो मछली पकड़ने गए लेकिन वह 4 लोग नहीं थे बल्कि तीन लोग थे। अब आप यह सोचेंगे कि ऐसा कैसे दो और दो चार होता है तीन नहीं होता। तो आपको बता दें कि नदी किनारे पर 2 पिता और 2 पुत्र तो गए लेकिन गए 3 लोग ही,  क्योंकि उन लोगों में से 2 पिता थे और 2 पुत्र थे। यानी कुल 3 लोग जो मछली पकड़ने गए वह तीन पीढ़ियों से संबंध रखने वाले लोग थे।

कैसे ? आइए समझते हैं।

उनमें से एक व्यक्ति, उसके पिता और उसका पुत्र 3 लोग मछली पकड़ने गए। अब आप समझ लें एक व्यक्ति गया, उसके पिता उसके साथ गए और उसका पुत्र उसके साथ गया तो उसके पिता उस व्यक्ति के पिता हुए और वह अपने पुत्र का पिता हुआ। इस तरह कुल 2 पिता हो गए उसी तरह वह व्यक्ति अपने पिता का पुत्र हुआ और उस व्यक्ति का पुत्र उसका पुत्र हुआ यानी कुल 2 पुत्र हो गए।

तो इस तरह उन तीनों व्यक्तियों में 2 पिता और 2 पुत्र थे। अब समझ गए ना आप सारा माजरा क्या था। गए तो 3 लोग ही थे। तीनों में 2 पिता थे, 2 पुत्र थे और तीनों ने एक-एक मछली पकड़ी। इसी कारण तीनों के पास एक तीन मछलियां की थी।


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ये कुछ अंग्रेजी के शब्द हैं, इनको हिंदी में लिखने पर एक मिठाई का नाम बन जाएगा। बताओ, कौन-कौन सी मिठाई है? 1) Moon Art 2) Black Rose Berry 3) Mr. Division 4) Royal Piece 5) Art Root 6) Sand Monarch 7) Message 8) Hair Sweet 9) Tree Come 10) Crushed Pearl 11) Twinkle Twinkle 12) Scratch 13) Droplets 14) Holy Mysore 15) Like husband​

अनुस्वार व अनुनासिक में अंतर बताइए।

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अनुस्वार व अनुनासिक में मुख्य अंतर यह है कि अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन होते हैं, जबकि अनुनासिक मूल रूप से स्वर हैं।

अनुस्वार की ध्वनि उच्चारण करते समय नाक से निकलती है, इसीलिए यह नासिक्य व्यंजन हैं। अनुस्वार पंचम वर्ण अर्थात ‘ङ्, ञ़्, ण्, न्, म्’ के जगह पर प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुस्वरा को व्यक्त करने के लिए स्वर अथवा व्यंजन के ऊपर ‘बिंदु’ (ं) का प्रयोग किया जाता है।

अनुनासिक वह स्वर होते हैं, जिनकी ध्वनि नाक की अपेक्षा मुँह से निकलती है। अनुनासिक को प्रयोग करने के लिए चंद्रबिंदु का प्रयोग किया जाता है। अनुनासिक वर्ण जैसे… दाँत, साँप, पाँच, हँस, काँच, आँच आदि।

सरल रूप में कहें तो अनुस्वार एवं अनुनासिक में अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन होते हैं, जबकि अनुनासिक मूल रूप से स्वर होते हैं।

अनुस्वार अथवा अनुनासिक का प्रयोग किसी भी शब्द के अर्थ को पूरी तरह परिवर्तित कर सकता है।

उदाहरण के लिए…

हंस में ‘ह’ से साथ बिंदु का अनुस्वार के रूप में प्रयोग किया गया है। एक शब्द एक पक्षी को संदर्भित करता है।

हंस : एक सफेद पक्षी। यदि ‘ह’ के साथ अनुनासिक के रूप में चंद्र बिंदु (ँ) का प्रयोग किया जाए तो शब्द का अर्थ पूरी तरह बंदल जाएगा और ये एक क्रिया को संदर्भित करेगा।

हँस : एक क्रिया, मुस्कुराने का क्रिया, हर्ष का भाव।


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लघु निबंध लिखिए : जब मैं पाठशाला देरी से पहुँचा।

लघु निबंध

जब मैं पाठशाला देरी से पहुँचा

 

पाठशाला देरी से पहुंचना बहुत शर्मिंदगी का कारण बन जाता है जब विद्यालय में सख्त अनुशासन हो और अपने कक्षाध्यापक बेहद अनुशासन प्रिय हों तथा समय के बेहद पाबंद हो। मेरे कक्षा अध्यापक भी समय के बेहद पाबंद थे। वह कक्षा में 1 मिनट की भी देरी बर्दाश्त नहीं करते थे और यदि कोई छात्र कक्षा में देरी से पहुंचा तो वह उसे कक्षा में प्रवेश नहीं देते और उसे पूरे पीरियड बाहर रखते थे। मैं हमेशा अपनी पाठशाला नियत समय पर पहुंच जाता था, लेकिन एक दिन ऐसी घटना हो गई कि मुझे पाठशाला पहुंचने में देर हो गई।

हुआ यूँ कि कि पिछली रात को हम सभी परिवार के लोग किसी पारिवारिक समारोह में बाहर गए थे। वापस आते आते रात के 2 बज गए। अगले दिन पाठशाला जाना था। मैं रात के 3 बजे सोया। मैं आमतौर पर सुबह 6 बजे उठ जाता हूँ और 8 बजे तक रेडी होकर पाठशाला के लिए निकल पड़ता हूँ। मेरी पाठशाला का समय 8:30 बजे है। मैं 20 मिनट में पाठशाला पहुँच जाता हूँ। इस तरह मैं हमेशा अपनी पाठशाल 10 मिनट पहले पहुँच जाता था। लेकिन उस दिन मुझे उठने बहुत देरी हो गई। यदि मुझे उठने में कभी देरी हो जाती है, तो मेरी माँ मुझे उठा देती हैं लेकिन उस दिन मेरी माँ भी बहुत देर से उठी थीं, इसलिए वह भी मुझे समय पर नही उठा पाईं। जब उनकी आँख खुली तो सुबह के 7:30 बज रहे थे। उन्होंने फटाफट मुझे उठाया।

समय बहुत हो चुका था। उन्होंने बोला कि आज पाठशाला मत जाओ और छुट्टी की अर्जी लगा दो, लेकिन मैं बोला नहीं मैं कोशिश करता हूँ जाने की। मैं फटाफट तैयार होकर चला जाऊंगा। मैं उस दिन नहाया भी नहीं और फटाफट कपड़े बदल कर तुरंत पाठशाला के लिए चला गया। घर से निकलते निकलते मुझे 8:15 बज चुके थे। घर से पाठशाला तक जाने में लगभग 20 मिनट लग जाते हैं, इसी कारण में 8:35 पर पाठशाला पहुंच पायाष नहीं तो मैं अक्सर 10 मिनट पहले ही पाठशाला पहुंच जाता हूँ। पहला पीरियड शुरू हो चुका। कक्षाध्यापक तक पढ़ा रहे थे। पहले तो मुझे विद्यालय में गार्ड ने रोक फिर बहुत रिक्वेस्ट करने पर जब उसने अंदर प्रवेश करने दिया।

जब मैं अपनी कक्षा पहुंचा तो मेरे कक्षा अध्यापक मुझे देखकर हैरान रहे उन्हें पता था कि मैं कभी नहीं आता हूँ हमेशा समय पर आ जाता हूँ। उन्होंने मुझे देर से आने का कारण पूछा। मैंने उन्हें कारण बता दिया। मेरी ईमानदारी से कही बात और इससे पहले कभी देर से ना आने के कारण मेरी पहली गलती जानकर मुझे कक्षा में प्रवेश दे दिया और कहा, आइंदा कभी दोबारा कभी देर से आए तो तुम्हें कक्षा में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। इस तरह मुझे उस दिन कक्षा में प्रवेश मिल गया। उसके बाद मैं कभी पाठशाला देरी से नहीं पहुंचा और यदि कभी में मुझे उठने में देर हो भी जाती है तो मैं उस दिन छुट्टी की अर्जी लगा देता हूँ।


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वर्षा ऋतु और ग्रीष्म ऋतु को मानव-रूप देकर उनके बीच कल्पित वार्तालाप को संवाद रूप में ​लिखिए।

संवाद

वर्षा ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के बीच संवाद

 

वर्षा ⦂ ग्रीष्म बहन, मैं आने वाली हूँ और तुम्हारे जाने का समय आ गया है। धरती वाले मुझे पुकार रहे हैं। वह कह रहे हैं कि तुम ने उन्हें त्रस्त कर दिया है। तुमने अपने प्रकोप से उनका हाल बेहाल कर दिया है। अब तो वह बस मेरे ही इंतजार में हैं कि कब मैं आऊं और कब उन्हें तुम से राहत मिले।

ग्रीष्म ⦂ स्वागत है तुम्हारा वर्षा बहन। तुम आओगी तो मैं खुद ही चली जाऊंगी।

वर्षा ⦂ बहन, मैंने तुमसे अभी जो कहा उस बात का बुरा मत मानना। धरती वाले मुझसे शिकायत करते हुए मुझे पुकारते रहते हैं वही बात मैंने तुमको बता दी।

ग्रीष्म ⦂ नहीं बहन मैंने तुम्हारी बात का कुछ बुरा नहीं माना। प्रकृति ने हम लोगों के लिए अलग-अलग कार्य निर्धारित किए हैं। मेरा काम ही है गर्म वातावरण पैदा करना। अब इसके कारण धरती वासियों को तकलीफ हो जाती है तो मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकती। उस तकलीफ से निजात दिलाने के लिए फिर तुम आती हो। फिर तुम जब अधिक बरसने लगती हो तो तुम से भी लोग परेशान हो जाते हैं चारों तरफ कीचड़ कीचड़ और बीमारियों के फैलने की प्रकोप होने पर लोग दूसरी रितु का इंतजार करते हैं तब शरद ऋतु आती है। शरद ऋतु में भी अत्याधिक ठंड पड़ने पर जब लोग परेशान हो जाते हैं जब वह चाहते हैं कि मैं आऊं।

वर्षा ⦂ तुम बिल्कुल सही कह रही हो बहन। हम अपने लिए दिए गए कार्य को ही पूरा करते हैं। दरअसल एक कहावत है कि अति हर चीज की बुरी होती है। हम अपने सामान्य रूप में रहते हैं, तो सबको ठीक लगते हैं लेकिन जब हम अपना प्रचंड रूप धारण कर लेते हैं, जो लोगों को तकलीफ होने लगती है। तब सब हमारे जाने की कामना करते हैं। हम सभी ऋतुओं के साथ यही बात है।

ग्रीष्म ⦂ यही बात मैं तुमसे कहना चाह रही थी। तुम मेरी बात मतलब अच्छी तरह समझ गईं। ठीक है अब तुम जल्दी से आओ और इस धरती वासियों को अपनी शीतल बूंदों से राहत दो। तुम किसानों की प्रिय ऋतु हो। उनके मन को बरसाओ। तुम आओगी तो मुझे छुट्टी मिलेगी। फिर मैं आराम करूंगी और अगले साल आने की तैयारी करूंगी।

वर्षा ⦂ हाँ, बहन मैं जल्दी ही आने वाली हूँ।


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अनुच्छेद

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन भाई और बहन के बीच प्रेम के प्रतीक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यह हिंदू धर्म मानने वाले अनुयायियों का एक प्रमुख त्योहार है। रक्षाबंधन के दिन बहन भाई की हाथ पर यह राखी बांधती है। रक्षाबंधन के दिन बहन भाई के हाथ पर राखी बांधती है और उससे जीवन भर अपनी रक्षा का वचन लेती है। भाई भी अपनी बहन को किसी भी संकट की स्थिति में उसकी रक्षा करने का वचन देता है। रक्षाबंधन का त्योहार भाई एवं बहन के बीच प्रेम एवं स्नेह का त्योहार है। बहन द्वारा भाई की रक्षा करने वचन लेना एक प्रतीक के रूप में परंपरा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन के त्योहार के साथ अनेक कथाएं जुड़ी हैं, जिसमें बहन ने भाई की कलाई पर एक धागा बांधकर उससे अपनी रक्षा का वचन लिया था और भाई ने अपनी बहन की रक्षा वचन दिया था। तभी से रक्षाबंधन का त्योहार मनाने की परंपरा चल पड़ी। रक्षाबंधन के दिन सुबह बहन-भाई तैयार हो जाते हैं। उसके बाद बहन भाई को तिलक लगाती है, उसकी कलाई पर राखी बांधती है, उसे मिठाई खिलाती है। भाई भी बहन को कोई उपहार देता है।


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अनौपचारिक पत्र

मोबाईल की उपयोगिता और अनुपयोगिता के बारे में भाई को पत्र

 

दिनांक : 4 जून 2024

प्रिय भाई रोहित,
सदा खुश रहो

मैं कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि तुम मोबाइल का अत्याधिक उपयोग करने लगे हो। तुम मोबाइल पर बहुत अधिक समय बिताने लगे हो और अपनी पढ़ाई तथा अन्य कार्यों पर कम ध्यान देते हो। इससे मुझे बेहद चिंता हो रही है।

प्रिय भाई, मैं तुम्हें मोबाइल की उपयोगिता और अनुपयोगिता के बारे में अवगत कराना चाहता हूँ। ताकि तुम मोबाइल के लाभ और हानि दोनों को जानकर मोबाइल का सदुपयोग कर सको। प्रिय भाई, आज के आधुनिक डिजिटल युग में मोबाइल एक ऐसा यंत्र है जो अब हर किसी के जीवन की आवश्यकता बन गया है। मोबाइल के उपयोग से आज कोई नहीं बच सकता। लेकिन जहाँ मोबाइल के कुछ कई लाभ हैं, वहीं इसके बहुत सी हानियाँ भी हैं।

डिजिटल यंत्र हमारे जीवन को सुगम बना रहे हैं, लेकिन इन पर हमारी अत्याधिक निर्भरता और हर समय डिजिटल यंत्रों पर लगे रहना हमारे लिए सही नहीं है। यह हमारे मानसिक तनाव का कारण बन सकते हैं तथा हमारी क्रियाशीलता को भी कम कर सकते हैं। हम कहीं बाहर जाते हैं तो अपने मित्र एवं परिजनों से संपर्क करने के लिए मोबाइल एक बेहद उपयोगी यंत्र है। आजकल ऑनलाइन परीक्षा के दौर में छात्र मोबाइल के माध्यम से ना केवल ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं बल्कि उन्हें यदि अपनी पढ़ाई के संबंध में कोई शंका होती है, तो वह गूगल आदि करके तुरंत उसका सलूशन पा लेते हैं। यह मोबाइल की उपयोगिता हो गई।

छात्र यहाँ तक मोबाइल का उपयोग करें, वह ठीक है। लेकिन बहुत से छात्र, जिसमें तुम भी शामिल हो, वह मोबाइल का दुरुपयोग करने लगे हैं। वह मोबाइल पर या तो गेम खेलते रहते हैं, अथवा सोशल मीडिया पर बिजी रहते है। ये बिल्कुल भी ठीक नही है। इससे तुम्हारा अपनी पढ़ाई से ध्यान भटकेगा जो तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक नही है। तुम्हे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। मोबाइल से जो जानकारी पानी है उसे पाकर अपनी पढ़ाई और पुस्तकों पर भी ध्यान देना चाहिए।

मेरा तो सुझाव है तुम मोबाइल का उपयोग उतना ही किया करो, जितनी तुम्हें आवश्यकता है। तुम मोबाइल पर गेम खेलना, सोशल मीडिया पर बिजी रहना छोड़ दो। खाली समय में थोड़ा बाहर घूमने जाओ। अपने मित्रों से मिलो। सभी घरवालों से बातें करो। इससे तुम्हारी सामाजिक संपर्क बढ़ेगा। मोबाइल का यदि तुम सीमित उपयोग करेंगे तो वह तुम्हारे लिए एक बेहद उपयोगी यंत्र है। यदि तुम उसका अत्याधिक असीमित उपयोग करेंगे तो वह तुम्हारे लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

आशा है तुम मेरे सुझाव पर गौर करते हुए आज ही मोबाइल की उपयोगिता को सीमित करोगे तथा अन्य स्वभाविक कार्यों पर भी ध्यान दोगे।

तुम्हारा बड़ा भाई,

मोहित ।


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मेरा प्रिय त्योहार – दिवाली (निबंध)

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निबंध

मेरा प्रिय त्योहार – दिवाली

 

भारत त्योहारो का देश हैं, जितने अधिक त्योहार भारत में मनाये जातें हैं, उतने दुनिया में किसी और देश में नही मनाये जाते हैं। भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं, और यहाँ पर त्योहारों की भरमार हैं। हर किसी का कोई न कोई प्रिय त्योहार होता है। प्रिय त्योहारों की बात की जाये तो मैं अपने प्रिय त्योहार के बारे में आपको बताती हूँ।

प्रस्तावना

जैसा कि हम सब जानते हैं भारत त्योहारों वाला देश है, और भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी देशों में सारा साल विभिन्न प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं। भारत एक विविधता वाला देश है, जहां अलग-अलग धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं । सभी धर्मों के अलग-अलग त्योहार होते हैं, जिन्हें वे अपने अपने तरीके से मनाते हैं। भारत में त्योहारों को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बांटा गया है– राष्ट्रीय त्योहार, धार्मिक त्योहार और मौसमी त्योहार।

राष्ट्रीय त्योहार : राष्ट्रीय त्योहारों को राष्ट्रीय स्तर पर सभी धर्मों के लोग आपसी मतभेद भुलाकर मनाते हैं ,जैसे –26 जनवरी को गणतंत्र दिवस, 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस, 2 अक्टूबर को गांधी जयंती आदि।

धार्मिक त्योहार : जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, अलग-अलग धर्मों के लोग अपने-अपने त्यौहार मनाते हैं। जैसे कि दिवाली, होली, दशहरा, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी आदि हिंदुओं के त्योहार हैं । ईद–उल–फितर और मुहर्रम आदि मुसलमानों के त्योहार हैं। क्रिसमस, ईस्टर, गुड फ्राइडे, आदि ईसाइयों के त्यौहार हैं। गुरु पर्व, गुरु नानक जयंती आदि सिखों के त्यौहार हैं।

मौसमी त्योहार : यह त्यौहार अलग-अलग मौसमों में फसलों के स्वागत के लिए मनाए जाते हैं। जैसे असम में बिहू, तमिलनाडु में पोंगल, उत्तर भारत और पश्चिम बंगाल में बसंत पंचमी, हिमाचल में मिंजर आदि। भारत में अनेकों त्योहार मनाए जाते हैं। और हर त्यौहार का अपना अपना महत्व है। भारत में मनाए जाने वाले हर त्योहार के पीछे कोई ना कोई कहानी छुपी होती है।

मेरा प्रिय त्योहार

इन सब त्योहारों में दिवाली मेरा सबसे प्रिय त्योहार है और इस त्यौहार को पूरा देश बड़े ही हर्षोल्लास से मनाता है। दिवाली को दीपावली भी कहा जाता है जिसका अर्थ है “दीपों की पंक्ति”। इसलिए दिवाली को रोशनी का त्योहार भी कहा जाता है। दिवाली का त्यौहार अक्टूबर या नवंबर के महीने में आता है।हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को पड़ता है।

भारत में दिवाली को बड़े व्यवसायिक लोगों द्वारा वित्तीय नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। दिवाली भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। दिवाली का यह भव्य उत्सव पाँच दिनों तक चलता है।

दिवाली का पहला दिन धनतेरस होता है। इस दिन धन के देवी देवता की पूजा की जाती है, इस धातु की खरीदारी विशेषकर सोना-चाँदी की खरीदारी को बेहद शुभ माना जाता है। सोना-चाँदी न खरीद पाने की स्थिति में लोग अन्य धातुओं की वस्तुओं की खरीदारी शगुन के रूप में करते हैं।

उत्सव के दूसरे दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली मनाई जाती है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करने से पहले अपने सभी पापों को मिटाने के लिए सुगंध वाले तेल का इस्तेमाल करते हैं।
तीसरा दिन इस उत्सव का मुख्य दिन है । “दिवाली” का दिन। इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दिये और मोमबत्तियां आदि जलाए जाते हैं। कुछ लोग पटाखे भी जलाते हैं।

दिवाली उत्सव के चौथे दिन गोवर्धन पूजा या पाड़वा मनाया जाता है। कहते हैं इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाकर देवराज इंद्र को पराजित किया था। इस दिन लोग गाय के गोबर से एक छोटी सी पहाड़ी बनाकर इसकी पूजा करते हैं।
उत्सव का पाँचवां और आखिरी दिन भाई दूज का होता है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर, उनके लंबे और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं, और भाई भी अपनी बहनों को कीमती उपहार देते हैं।

इस प्रकार दिवाली का यह उत्सव मनाया जाता है। दिवाली को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार भगवान श्रीराम के सम्मान में मनाया जाता है। इस दिन श्रीराम अपने 14 वर्षों का वनवास काटकर और लंका के राजा रावण को मारकर अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वापस अयोध्या लौटे थे। राम के वापस अयोध्या लौटने के स्वागत और उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए अयोध्या के लोगों ने घी के दिए जलाए थे। तब से लेकर आज तक हर साल इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

दिवाली एक ऐसा त्यौहार है जिसे सब लोग बड़े ही उत्साह और खुशी के साथ मनाते हैं। दिवाली की तैयारियां दिवाली के कई दिन पहले ही शुरू हो जाती हैं। लोग अपने घरों और कार्यालयों, दुकानों आदि की साफ सफाई करते हैं । उन्हें नया जैसा दिखने के लिए उनकी मरम्मत और रंग आदि करवाते हैं। सभी भवनों को रंग-बिरंगी रोशनी से नई दुल्हन की तरह सजाया जाता है। दिवाली आते ही बाजारों में बाहर सी आ जाती है । सारे बाजार रंग बिरंगी रोशनी से चमक उठते हैं। सब लोग खरीदारी में जुट जाते हैं। लोग नए नए कपड़े, किताबें, घरों के लिए विभिन्न चीजें खरीदते हैं।

दिवाली के दिन लोग मिठाइयां पटाखे आदि खरीदते हैं। इस दिन लोग स्वादिष्ट पकवान और मिठाइयाँ आदि बनाते हैं। अपने मित्रों और सगे संबंधियों को आमंत्रित करते हैं, और एक दूसरे को उपहार देते हैं। लोग घरों और आंगन में रंगोली बनाते हैं । और दिये और मोमबत्तियां जलाकर घरों को रोशन करते हैं। तो कुछ लोग पटाखे फुलझड़ियां आदि जलाते हैं। रात को माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी माता घरों और कार्यालयों आदि में आती हैं, और सब को अपना आशीर्वाद देती है। इसलिए इस दिन घरों और कार्यस्थलों को साफ करके मंदिर की तरह सजाया जाता है। घरों से दूर रहकर नौकरी पेशा करने वाले लोग सब अपने घरों को लौटते हैं, ताकि अपने परिवारों के साथ दिवाली का त्योहार मना सकें।

दिवाली का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जिसे सभी धर्मों के लोग धूमधाम से मनाते हैं। यह त्योहार हम सबके जीवन में खुशियों के रंग भर कर हमारे जीवन को रोशन कर देता है। लोग आपसी मतभेद भूलकर एक दूसरे को गले लगाकर और उपहार और मिठाइयां देकर खुशियां बांटते हैं। दिवाली के त्यौहार को बच्चों से लेकर बड़ों तक अमीर से लेकर गरीब तक हर कोई बड़े ही उत्साह से मनाता है। इसलिए दिवाली मेरा सबसे प्रिय त्यौहार है। परंतु इस उत्सव के बीच हम अपने पर्यावरण का ख्याल रखना भूल जाते हैं। लोग पटाखे आदि जलाते हैं जो कि कुछ हानिकारक सामग्रियों से बने होते हैं। जिससे हमारा पर्यावरण प्रदूषित होता है। पटाखों से वायु और ध्वनि प्रदूषण होता है। कई बार आपने सुना भी होगा, पटाखों के कारण कई बड़े हादसे भी हो जाते हैं। कई बार पटाखे चलाते हुए बच्चों को चोट लग जाती है तो कई बार घरों में आग भी लग सकती है ।

पटाखों की ध्वनि जानवरों के लिए भी नुकसानदायक होती है। इसलिए हमें दिवाली में अपनी खुशियों के साथ-साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखना चाहिए अर्थात पटाखे आदि नहीं जलाने चाहिए। दिवाली रोशनी का त्योहार है। इसलिए हमें अपने जीवन को पटाखों के धुएं में धुंधला नहीं बल्कि दिये जलाकर रोशन करना चाहिए। इस प्रकार दिवाली का त्योहार बेहद हर्षोल्लास से मनाया जाता है

उपसंहार

हमारे जीवन में त्योहारों का बहुत महत्व है, जो हमारे जीवन को खुशियों से भर देते हैं। अपने परिवार के साथ समय बिताने का त्यौहार सबसे अच्छा मौका होते हैं। त्योहार हम सबके दिलों से नफरत मिटाकर हम सब को एक दूसरे के करीब लाते हैं इसलिए लोगों को सारा साल त्यौहारों का इंतजार रहता है।


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भ्रमण का महत्व बताते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।

अनुच्छेद

भ्रमण का महत्व

 

भ्रमण का जीवन में बहुत महत्व होता है। भ्रमण से हमें ना केवल अलग-अलग जानकारी मिलती है बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों के इतिहास और संस्कृति को जानने का अवसर मिलता है। भ्रमण केवल मनोरंजन और मौज मस्ती का ही नाम नहीं बल्कि यह ज्ञानवर्द्धन करने का भी एक माध्यम है। भ्रमण करने से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह लाभदायक है। भ्रमण करने से शरीर स्वस्थ बना रहता है, जब हम जगह-जगह घूमते है, चलते-फिरते हैं, अलग-अलग शारीरिक गतिविधियां करते हैं, तो इससे शरीर की क्रियाशीलता बढ़ती है और शरीर फिट रहता है। जब अलग-अलग जगहों पर घूमते हैं, और हमें जानकारियां मिलती है, तो हमारा ज्ञानवर्द्धन होता है, जिससे हमारी मानसिक भूख भी शांत होती है। हर किसी व्यक्ति को अपने जीवन में अलग-अलग ऐतिहासिक जगहों, अपने-अपने धर्म के अनुसार धार्मिक जगहों तथा अन्य प्रसिद्ध जगहों का भ्रमण अवश्य करना चाहिए। यह दुनिया बेहद विशाल है इसमें विभिन्न देश हैं, राज्य है, संस्कृतियां हैं, सभ्यताएं हैं, खान-पान, वेशभूषा है। हमें इन सभी को जानने का लाभ उठाने से चूकना नहीं चाहिए। भ्रमण हमें यही सुविधा प्रदान करता है। इसलिए भ्रमण का अपना ही महत्व है।


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‘भूख से मरने वाले व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ और महत्व नही’, ये किसने कहा था?

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भूख से मरने वाले व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ और महत्व नहीं है’, यह कथन प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक ‘जे. ए. हाब्सन’ ने कहा था।

‘जे ए हाब्सन’ राजनीति शास्त्र के एक प्रसिद्ध पाश्चात्य विचारक थे। उन्होंने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए अनेक तरह की व्याख्या दी थीं। उन्होंने लोकतंत्र और व्यक्ति से संदर्भ में यह कथन व्यक्त किया था कि ‘भूख से मरने वाले व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ व महत्व नहीं है।’ मानव की सबसे मूलभूत आवश्यकता उसके लिए अपना पेट को भरना है, यानि अपनी भूख मिटाना है। जब व्यक्ति भूख से पीड़ित हो तो वह लोकतंत्र में है या राजतंत्र ने इस बात का उसे कोई महत्व नहीं रह जाता।

‘जे ए हाब्सन’ ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए अनेक व्याख्यायें दी हैं, जिनके अनुसार एक न्यायसंगत समाज और उत्तम सामाजिक व्यवस्था का ही नाम लोकतंत्र है। जे ए हाब्सन के अनुसार जब किसी व्यक्ति को अपना पेट भरने के लिए भोजन तथा जीवन की अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए जूझना पड़ता हो और फिर भी वह अपनी भूख नही मिटा पाता हो, वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नही कर पाता हो तो वहाँ पर लोकतंत्र की कोई सार्थकता नही रहती है।

लोकतंत्र का असली उद्देश्य तब तक पूरा नहीं होता, जब तक लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं सहज रूप से उपलब्ध नही होतीं। एक भूखा व्यक्ति जो भूख से पीड़ित है, जिसे अपनी पेट की भूख मिटाने की चिंता हो, वह यह नहीं देखता कि वह लोकतंत्र में है अथवा राजतंत्र में है। उसे तो पहले अपने पेट को भरने की चिंता रहेगी।

जे ए हॉब्सन’ जिनका पूरा नाम ‘जॉन एटकिंसन हॉब्सन’ था, वह इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री और अर्थशास्त्री थे,।

जे ए हॉब्सन का जन्म 6 जुलाई 1858 को इंग्लैंड के डर्बी शहर में हुआ था। वह प्रसिद्ध गणितज्ञ अर्नेस्ट विलियम हॉब्सन के भाई भी थे। हॉब्सन को साम्राज्यवाद तथा समाजवाद पर अपने लेखन कार्यों के लिए जाना जाता है।

हॉब्सन ने अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र के संबंध में अनेक विचारों का प्रतिपादन किया था।

उसी के अंतर्गत हॉब्सन ने यह कहा था कि ‘भूख से मरने वाले व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ और कोई महत्व नहीं है।’ उसे उस समय केवल अपने पेट की भूख मिटाने की चिंता होगी ना कि यह कि वह लोकतंत्र में है अथवा राजतंत्र में।

जे ए हॉब्सन की मृत्यु 1 अप्रैल 1940 को 81 वर्ष की आयु में हुई।


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निबंध

भारत के बदलते गाँव

 

परिवर्तन सृष्टि का नियम है। समय बीतने के साथ परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन के इस प्रभाव से कोई अछूता नहीं रह पाता। भारत के गाँव भी परिवर्तन के प्रभाव से अछूते नहीं है। समय के साथ भारत के गाँव भी बदलते जा रहे हैं। भारत के गाँव भी अब शहरों के साथ होड़ करने लगे हैं। पहले भारत के गाँव का स्वरूप अलग होता था। भारत के गाँव प्रकृति से जुड़े होते थे और उनका जीवन पूरी तरह प्राकृतिक होता था। भारत के गाँव तकनीकी रूप से इतने संपन्न नहीं थे। यहाँ तक कि बहुत से गाँवों में बिजली तक नहीं होती थी।

विकास की प्रक्रिया ने भारत के गाँव के स्वरूप को भी बदलना शुरू कर दिया है। भारत के गाँव भी अब बदलते जा रहे हैं। भारत के किसी गाँव चले जाएं तो गाँव जैसा अनुभव नहीं होता। ऐसा लगता है किसी छोटे शहर में आ गए हैं। इंटरनेट की पहुंच ने भारत के गाँव का स्वरूप बदल दिया है। विकास की प्रक्रिया में भारत के गाँव सड़कों से जुड़ गए हैं। अब वहाँ जाने के लिए कच्चे मार्ग नहीं बल्कि पक्की सड़कें हैं। इसीलिए गाँव और शहर के बीच आना-जाना आसान हो गया है। विकास का असर भारत के गाँव के जीवन शैली पर भी पड़ा है।

इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में भारत के गाँव अछूते कैसे रह सकते हैं? इसीलिए भारत के गाँव भी शहरों के साथ कदमताल मिलाकर चलने लगे हैं। आज भारत के गाँव में डीजे बजना आम है। इंटरनेट की पहुंच भी भारत के गांव में हो चुकी है। सोशल मीडिया पर वीडियो और कंटेंट बनाने में भारत के ग्रामीण युवा पीछे नहीं हैं। इंस्टाग्राम पर रील हो अथवा यूट्यूब वीडियो हर जगह भारत के गाँव के युवा माहिर होते जा रहे हैं और वह शहर के युवाओं को भी मात देने लगे हैं।

अब भारत के गाँवों का स्वरूप ऐसा नहीं रहा, जहाँ पर कच्चे मकान होते थे। मिट्टी के चूल्हे पर सोंधी-सोंधी खुशबू वाली रोटी बनती थी। गाँव में चौपाल आदि लगती थी। ग्रामीण लोक-संगीत के कार्यक्रम होते थे। अब भारत के गाँव में डीजे बजते हैं। मिट्टी के चूल्हे की जगह गैस और सिलेंडर पहुंच चुका है। मकान भी पक्के हो गए हैं। गाँव में बिजली आ गई है, अब भारत के गाँव अब गाँव नहीं बल्कि एक छोटे से शहर का अनुभव कराते हैं। भारत के गाँवों में खेती भी अब आधुनिक तरीके से होने लगी है। यह सब बातें भारत के बदलते गाँव के स्वरूपों को स्पष्ट करती हैं।


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बारहमासा कविता का संदेश

‘बारहमासा’ कविता नारायण लाल परमार द्वारा लिखित रचित एक कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने ऋतुओं के आने और ऋतुओं के साथ आने वाली खुशियों तथा उत्सवों का संदेश दिया है। कवि के अनुसार 1 वर्ष में 12 महीने होते हैं। कवि ने देसी महीनों को आधार बनाकर हर माह के साथ कुछ ना कुछ कुछ उत्सव और खुशियां जोड़ी हैं तथा सभी महीनों और उनमें आने वाले उत्सव-त्योहारों की विशेषता बताने का प्रयास किया है। कवि के अनुसार पूरे वर्ष में अलग-अलग महीनों में आने वाले यह व्रत-उत्सव त्योहार हमारे जीवन में खुशी एवं उल्लास बढ़ते हैं। कवि ने 12 देसी महीनों को आधार बनाया है, जिनमें चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माह, फाल्गुन इन 12 महीनों तथा उनमें आने वाले उत्सव त्योहारों की विशेषताओं को प्रकट करके मानव जीवन में उल्लास एवं खुशी के महत्व का संदेश प्रकट किया है।

नारायण लाल परमार द्वारा रचित बारहमासा कविता इस प्रकार है :
चैत महीने का प्यारा सुंदर रूप अनूप है,
गर्म हवा चलने लगती, खटमिट्ठी सी धूप है।
आते ही बैसाख के, छुट्टी हुई मदरसों की,
लगा गूंजने घर-आंगन, किलकारी से बच्चों की।

कोई लगातार हारा, लेकिन कोई जीत रहा,
तरह-तरह के खेलों में, जेठ महीना बीत रहा।
काले-काले बादल भी, नभ में चले दहाड़ के,
आंधी इतराने लगी, लगते ही आषाढ़ के।

सावन की शोभा न्यारी, हरियाली के ठाठ हैं,
नदी सरोवर छलक रहे, डूब गए सब घाट हैं।
पता ना चलता तारों का, जाने कहाँ मयंक है,
झांक नहीं पाता सूरज, भादो का आतंक है।

भैया क्वार महीने में, निर्मल होती जलधारा,
मौसम कर देता सारी, हँसी-खुशी का बंटवारा।
कार्तिक में जाड़ा आता, साथ पटाखे फुलझड़ियाँ,
फबती सबके चेहरों पर, मुस्कानों की मधु लड़ियाँ।

अगहन नाच नचा देता, बर्फ़ तरीका है पानी,
चलो नहा लो माँ कहती, नहीं चलेगी मनमानी।
उड़ी पतंगें पौष में, बाज़ी लगती जोर से,
गली, मोहल्ले, अटारियाँ, भर जाते जब शोर से।

माघ महीना भर देता, मन में नई उमंग है,
कहीं मजीरे, झांझ कहीं, बजता मृदंग है।
लोग वह आ पहुंचा फागुन, रस की फुहार है,
रंगों के कारण लगता, यह जीवन त्योहार है।

 

 

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वीर पुरुष जो देश पर बलिदान हो जाते हैं, वे दुख-सुख को समान भाव से क्यों देखते हैं?

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वीर पुरुष जो देश पर बलिदान हो जाते हैं, वह दुख-सुख को समान भाव से इसलिए देखते हैं क्योंकि उनका यही गुण उनके लिए वीर बनने की राह प्रशस्त करता है। जो मनुष्य सुख एवं दुख को समान भाव से देखता है, वह सुख एवं दुख में समान भाव से रहता है, वह ही वास्तव में सच्चा वीर पुरुष बन पाता है। वीर पुरुष दुख की घड़ी में विचलित नहीं होते और सुख की घड़ी में आत्ममुग्ध नहीं होते। वह दोनों ही स्थितियों को समान भाव से ग्रहण करते हैं और दोनों ही स्थितियों में समान भाव से रहते हैं। इसी कारण उनके अंदर उनकी इच्छाशक्ति, उनकी संकल्प शक्ति अधिक मजबूत होती है, जो उनके अंदर वीरता का गुण भरती है। वीर बनने के लिए संकल्प शक्ति मजबूत होनी चाहिए, अपना आत्मबल मजबूत होना चाहिए। जो व्यक्ति सुख एवं दुख जैसी स्थिति हो दोनों स्थितियों समान भाव से रहने का ग्रहण करने का गुण विकसित कर लेता है। उसकी संकल्प शक्ति उसका आत्मबल निश्चित रूप से मजबूत होता है और वही सही अर्थों में वीर पुरुष बन पाता है। इसलिए जो पुरुष जो देश पर बलिदान हो जाते हैं, वह दुख-सुख को समान भाव से देखते हैं।


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‘शहरीकरण तथा पर्यावरण’ पर अनुच्छेद लिखिए।

अनुच्छेद

शहरीकरण तथा पर्यावरण

 

शहरीकरण व पर्यावरण एक दूसरे के विरोधाभासी बनते जा रहे हैं। ज्यों-ज्यों शहरीकरण बढ़ता जा रहा है, पर्यावरण को उतना ही अधिक नुकसान पहुँचता जा रहा है। शहरीकरण का मतलब है, अत्याधिक विकास बड़ी-बड़ी इमारतें, चौड़ी-चौड़ी सड़कें तथा अन्यगत ढाचागत संरचनाएं। शहरीकरण का मतलब है, कंक्रीटकरण यानी सीमेंट की ढांचागत संरचनाओं का निर्माण। इस कारण पेड़ों को काटना पड़ता है, हरी-भरी भूमि को कंक्रीट की भूमि में बदल दिया जाता है। यह सारे कृत्य पर्यावरण के लिए बेहद घातक सिद्ध हो रहे हैं। वृक्ष पर्यावरण का सबसे प्रमुख आधार हैं और शहरीकरण वृक्षों के लिए विनाशकारी साबित होता है। अत्यधिक शहरीकरण के कारण वृक्षों की बड़ी संख्या में कटाई होती है।

शहरीकरण के कारण हरे-भरे जंगल खत्म होते जा रहे हैं, और कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। शहरीकरण पर्यावरण के लिए विनाश का केंद्र बनता जा रहा है। ज्यों-ज्यों शहरीकरण बढ़ रहा है, उद्योग-धंधों की संख्या बढ़ रही है। शहर में जनसंख्या बढ़ती जा रही है। जिस कारण अधिक जनसंख्या के लिए अधिक जन-सुविधाओं का निर्माण करना पड़ रहा है। इसीलिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अधिक हो रहा है, जो पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। शहरों में शहरों में वाहनों के धुएँ से हवा प्रदूषित होती जा रही है। बस्तियों, इमारतों में रहने वाले लोगों द्वारा निष्कासित कचरे तथा अपशिष्ट पदार्थों निष्पादन एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। शहरीकरण के कारण नगरों को नियोजन करने के लिए पर्यावरण मानकों के साथ खिलवाड़ करना पड़ता है। यह बात स्पष्ट है कि शहरों में गाँव के जैसी शुद्ध वायु और स्वच्छ पर्यावरण मिलना असंभव है। शहरीकरण प्रदूषण के पर्याय बनते जा रहे हैं, इसलिए बढ़ते हुए शहरीकरण के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, इसमें कोई दो राय नही है।


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‘चीफ़ की दावत’ कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखित सामाजिक मूल्यों वाला कहानी है, जिसमें एक अफसर बेटे द्वारा अपनी अनपढ़ और ग्रामीण माँ की उपेक्षा का वर्णन किया गया है। ये कहानी बताती है कि लोग दिखावे के चक्कर में अपने रिश्तों के मर्यादा तक भूल जातें है। संतान बड़े होने अपने माँ-बाप उपकारों को भूल जाती है और उनकी उपेक्षा करती है।


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हिंदी का अब तक का सबसे लंबा उपन्यास का नाम ‘कृष्ण की आत्मकथा’ है।

‘कृष्ण की आत्मकथा’ इस उपन्यास की रचना हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यास लेखक ‘मनु शर्मा’ ने की थी। ये उपन्यास सबसे पहले सन 2004 में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास आठ खंडों में प्रकाशित हुआ था। ‘कृष्ण की आत्मकथा’ इस उपन्यास के इन आठ खंडों के नाम हैं :

1.   नारद की भविष्यवाणी
2.   दुराभिसंध
3.   द्वारका की स्थापना
4.   लाक्षागृह
5.   खांडव दाह
6.   राजसूय यज्ञ
7.   संघर्ष
8.   प्रलय

इस तरह 8 खंडों में प्रकाशित उपन्यास की रचना मनु शर्मा ने की थी।

मनु शर्मा

मनु शर्मा हिंदी में मनु शर्मा के अलावा अपने आरंभिक दौर में हनुमान प्रसाद शर्मा के नाम से भी लेखन कार्य करते थे। उन्होंने ‘कृष्ण की आत्मकथा’ इस उपन्यास के अलावा और लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखे थे। उनके द्वारा लिखे गए कई उपन्यासों में द्रोण की आत्मकथा, ‘कर्ण की आत्मकथा’, ‘दौपदी की आत्मकथा’, ‘गांधारी की आत्मकथा’, ‘अभिशप्त कथा’, ‘गाँधी लौटे’, ‘छत्रपति’ ‘तीन प्रश्‍न’ ‘मरीचिका’, ‘के बोले माँ तुमि अबले’, ‘विवशिता’ एवं ‘लक्ष्मणरेखा’ आदि के नाम प्रमुख हैं। उन्होंने दो सौ के लगभग कहानियाँ भी लिखीं। उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह का नाम है, ‘पोस्टर उखड़ गया’। मनु शर्मा उर्फ हनुमान प्रसाद शर्मा ने हिंदी साहित्य की हर विधा में लेखन कार्य किया है। उन्होंने कहानियों और उपन्यासों के अलावा अनेक निबंध भी लिखे। मनु शर्मा जन्म सन् 1928 में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद (अब अयोध्या), के अकबर पुर (अब अंबेडकर नगर) में हुआ था। उनका निधन 2017 में हुआ। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार का हिंदी साहित्य सम्मान ‘यश भारती’ भी मिल चुका है। उसके अलावा उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी समिति द्वारा ‘साहित्य भूषण’ का सम्मान भी प्राप्त हुआ।


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स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से धूम्रपान से होने वाली हानियों के प्रति सचेत करते हुए विज्ञापन लिखें।

विज्ञापन लेखन

धूम्रपान से होने वाली हानियों के प्रति विज्ञापन

 

धूम्रपान करता जीवन का नाश,
देता हमको केवल विनाश,
धूम्रपान का न अपनाएं,
अपने जीवन को स्वस्थ बनाएं

यदि आप धूम्रपान करते है तो ध्यान दें…

  • धूम्रपान आपकी सेहत के लिए बहुत घातक है।
  • एक बार सिगरेट पीने से आप अपने जीवन के कई घंटे कम कर लेते हैं।
  • धूम्रपान आपके फेफड़ों पर बुरा असर डालता है।
  • ये कैंसर, सांस संबंधी रोगों का कारण बनता है।
  • इससे केवल आपका जीवन ही नही बल्कि आपके परिवार का जीवन भी प्रभावित होता है।
  • इसलिए आज ही धूम्रपान को त्यागने का संकल्प लें और एक अच्छा स्वस्थ जीवन जिएं।
  • खुद भी जिएं और लोगों को भी जीनें दें

धूम्रपान से होने वाले नुकसानों के बारे में और अधिक जानने तथा धूम्रपान की आदत को छुड़ाने के लिए भारत सरकार के इन टोल फ्री नंबरों पर संपर्क करें…

1800-000-000-00
011-2002012020

स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जनहित में जारी…


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प्राकृतिक संसाधन क्या हैं? प्राकृतिक संसाधनों की विशेषताएँ लिखिए।

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प्राकृतिक संसाधन क्या होते हैं, वह किस तरह से लाभादायक है, इनकी क्या विशेषताएं हैं, ये जानने से पहले प्राकृतिक संसाधन के बारे में जानते हैं।

प्राकृतिक संसाधन क्या हैं?

प्राकृतिक संसाधनों से तात्पर्य उन संसाधनों से होता है, जो प्रकृति में रहने वाले प्राणियों विशेषकर मनुष्य के लिए उपयोगी एवं लाभकारी होते हैं। प्रकृति में पाए जाने वाले वह संसाधन जो किसी ना किसी दृष्टि से प्रकृति के प्राणियों के लिए लाभकारी सिद्ध होते हैं, और किसी तरह का लाभ प्रदान करते हैं, जो मनुष्य द्वारा तथा अन्य प्राणियों द्वारा अपने हित के लिए उपयोग में लाए जाते हैं, वह संसाधन प्राकृतिक संसाधन कहे जाते हैं। प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में निशुल्क पाए जाते हैं। यह प्रकृति की तरफ से पृथ्वी के सभी प्राणियों के लिए निःशुल्क वरदान के समान हैं। प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में दो रूपों में पाए जाते हैं।

  • नवीकृत प्राकृतिक संसाधन
  • अनवीकृत प्राकृतिक संसाधन

नवीकृत प्राकृतिक संसाधन 

नवीकरण प्राकृतिक संसाधन वह संसाधन होते हैं जो प्रकृति में अक्षुण्ण रूप में पाए जाते हैं अर्थात वह कभी भी समाप्त नहीं होते ऐसे संसाधन और असमाप्त प्राकृतिक संसाधन भी कहे जाते हैं। मनुष्य तथा अन्य प्राणियों द्वारा निरंतर इनका उपयोग किए जाने के बावजूद यह संसाधन पुनः नवीकृत होते रहते हैं और कभी भी समाप्त नहीं होते।

उदाहरण के लिए सूर्य के प्रकाश के रूप में सौर ऊर्जा, जल, वायु, मिट्टी आदि। ये संसाधन नवीकृत संसाधन है, ये संसाधन उपयोग किए के जाने के बाद भी लगातार नवीकृत होते है, रहते है और कभी भी समाप्त नही होते। जैसे जल उपयोग किए जाने के बाद भाप बनकर वायुमंडल में विलीन हो  जाता है, और वर्षा के रूप नवीकृत होकर पुनः पृथ्वी पर आ जाता है।

अनवीकृत प्राकृतिक संसाधन 

अनवीकरण प्राकृतिक संसाधन संसाधन होते हैं, जो प्रकृति में सीमित मात्रा में पाए जाते हैं और मनुष्य तथा प्रकृति के द्वारा इनका उपयोग करते रहना। ये संसाधन एक निश्चित समय-सीमा के बाद यह समाप्त हो जाते हैं या समाप्त होने वाले होते हैं।

उदाहरण के लिए जीवाश्म ईंधन, खनिज, प्राकृति गैस आदि। यह सभी संसाधन और नवीकरण प्राकृतिक संसाधन है जो प्रकृति में एक निश्चित मात्रा में उपलब्ध नहीं है। मनुष्यों द्वारा निरंतर उपयोग किए जाने के बाद एक समय ऐसा आता है कि यह समाप्त हो जाते है। अनवीकृत प्राकृतिक संसाधनों के बनने की प्रक्रिया लाखो वर्ष लंबी होती है। यह एक लंबी एवं सतत प्रक्रिया द्वारा बनते हैं। इसी कारण यह है एक बार समाप्त हो जाने के बाद पृथ्वी पर कई लाखों वर्षों बाद दोबारा उपलब्ध हो पाते हैं।

प्राकृतिक संसाधनों की विशेषताएं इस प्रकार हैं :

  • प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्राणियों के लिए प्रकृति की तरफ से निःशुल्क उपहार के समान है।
  • प्राकृतिक संसाधन निःशुल्क होते हैं, लेकिन सारे संसाधन अपनी प्रारंभिक अवस्था में उपयोग योग्य नही होते।  मनुष्य अपने श्रम एवं प्रयासों द्वारा इनका इनको उपयोगी पदार्थ के रूप में परिवर्तित कर लेता है।
  • प्राकृतिक संसाधन हित कारक होते और उपयोगी होते हैं। यह किसी ना किसी दृष्टि से मनुष्य तथा अन्य प्राणियों के लिए कोई ना कोई लाभ अवश्य प्रदान करते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में निष्क्रिय अवस्था में पाए जाते हैं, लेकिन जब यह पृथ्वी के प्राणियों द्वारा उपयोग में लाए जाते हैं तो यह सक्रिय हो जाते हैं और उपयोगी बन जाते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर विविध रूपों में पाए जाते हैं। यह नवीकृत रूप में पाए जाते हैं, ये अनवीकृत रूप में पाए जाते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधन ठोस रूप में पाए जाते हैं, जैसे कि खनिज के रूप में लोहा, कोयला, तांबा आदि।
  • प्राकृतिक संसाधन तरल रूप में पाए जाते हैं, जैसे कि जल अथवा जीवाश्म ईधन के रूप पेट्रोल, डीजल आदि।
  • प्राकृतिक संसाधन गैस रूप में पाए जाते हैं जैसे कि वायु, प्राकृतिक गैस आदि।

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‘वह भी क्या कवि है’ इस पंक्ति के माध्यम से लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कवि की किन विशेषताओं को उभारा है।

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‘शिरीष’ नामक निबंध में लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘वह भी क्या कवि है’ इस पंक्ति के माध्यम से एक कवि की विशेषताओं के बारे में ये बताया है कि वह कवि नही हो सकता है जिसमें अनासक्ति का भाव नही हो। जो सांसारिक विषय-वासनाओं  में उलझकर रह गया हो, जो सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति रखता हो, जिसमें फक्कड़पन नहीं आया हो, वह भी क्या कवि है? अर्थात वह कवि नहीं हो सकता।

लेखक इस निबंध में कहते हैं कि कवि बनने के लिए पहले अनासक्त बनना पड़ता है। सांसारिक लेखा-जोखा अर्थात सांसारिक कर्मों के आकर्षण से खुद को बचाए रखना होता है। जीवन की सभी परिस्थितियों मे एक समान भाव बनाए रखना होता है। कवि के विचारों में निरंतरता और समानता होनी चाहिए। उसे हर परिस्थिति को समान भाव से परखने के सामर्थ्य होनी चाहिए।

लेखक के अनुसार कवि को शिरीष के फूल की तरह अवधूत होना चाहिए। शिरीष का फूल भी विपरीत परिस्थितियों में भी विचलित नही होता। ऐसा ही गुण कवि में भी होगा तो वह सुंदर कविता की रचना कर सकता है।

लेखक के अनुसार केवल छंदों की रचना करके उन्हें जोड़ लेने से कवि नही बना जाता बल्कि कविता में भाव भी डालना पड़ता है।

‘शिरीष के फूल’ नामक निबंध हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध है जिसमें उन्होंने शिरीष के फूल की विशेषताओं का वर्णन किया है। इस निबंध में लेखक ने बताया है कि शिरीष का फूल कठिन और दुर्गम परिस्थितियों में भी किस तरह स्वयं को बचाए रखता है। इसका मुख्य कारण उसके अंदर अनासक्ति का भाव होना है। शिरीष के फूल की विशेषताओं के बारे में बताते हुए लेखक ने कवि होने की विशेषताओं को भी रेखांकित किया है।


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बस यात्रा का अनुभव बताते हुए एक रोचक लेख लिखिए।

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बस यात्रा का अनुभव

यात्रा कोई भी हो उसमें कोई ना कोई रोचक अनुभव अवश्य होता है। मुझे ट्रेन यात्रा करने में बहुत मजा आता है। लेकिन ट्रेन यात्रा के अलावा बस यात्रा का भी एक अलग अनुभव है। मुझे बस में एक ऐसी ही यात्रा करने का रोचक अनुभव मिला।

एक बार मुझे अपने मामा जी से मिलने दूसरे शहर जाना था मेरे मामा जी का घर जिस शहर में था वह शहर हमारे शहर से 200 किलोमीटर की दूरी पर था। उस शहर में जाने के लिए बस ही एकमात्र यातायात का साधन थी। मेरी बस सुबह 7 बजे की थी और मैं 6 बजे बस स्टैंड पहुंच गया। फटाफट बस का टिकट लिया और बस में बैठ गया बस तैयार खड़ी थी। बस में सबसे पहले उसने वाले यात्रियों में मैं ही था। लगभग 7 बजे बस चल पड़ी। बस की हालत ठीक-ठाक थी। ना तो बस में बहुत अधिक सुविधा थी और ना ही बस एकदम खटारा था। बस को देख कर मुझे लगा कि मेरी यात्रा ठीक-ठाक पूरी हो जाएगी। लेकिन ऐसा न हो सका।

50 किलोमीटर जाने के बाद बस यकायक रुक गई। मुझे लगा शायद कोई स्टैंड आ गया होगा, लेकिन जब खिड़की से बाहर जाता तो देखा चारों तरफ जंगल ही जंगल था। यह देखकर मुझे हैरत हुई कि ड्राइवर ने बस जंगल में क्यों रोक दी। पूछने पर पता चला कि बस के इंजन में कुछ खराबी आ गई है, ठीक होने में कम से कम एक घंटा लगेगा।

ड्राइवर और कंडक्टर ने कहा कि यात्री लोग अगर चाहे तो 1 घंटे तक बस से बाहर निकल का आसपास घूम सकते हैं। मैं भी बस से उतर कर कुछ यात्रियों के साथ जंगल में चला गया। हमें डर था कि नहीं कोई हिंसक जानवर ना आ जाए। हम लोग एक छोटी सी पहाड़ी पर चढ़ गए और बस की तरफ देखा तो ड्राइवर कंडक्टर दोनों बस की मरम्मत में लगे हुए थे। पहाड़ी के दूसरी तरफ देखने पर हमें एक नदी नजर आई और वहीं पर कुछ भालू घूम रहे थे। यह देख कर हम सब घबरा गए। हम लोग तुरंत पहाड़ी से उतरकर अपनी बस की तरफ दौड़े आए। हमने सभी यात्रियों के बताया कि वहाँ पर कुछ जानवर हैं, हमे सावधान रहना होगा। अधिकतर यात्री बस में जाकर बैठ गए।
हम कुछ लोग बाहर ही रहे। हमने आसपास के पेड़ों की टहनियों को तोड़कर उनसे डंडा बना लिया कि यदि कोई जानवर आया तो अपना बचाव कर सकें। शुक्र है कि लेकिन कोई जानवर बस की तरफ नहीं आया। एक घंटे की कोशिश के बाद बस ठीक हो गई और बस चल पड़ी। लेकिन अभी 50 किलोमीटर बस और चली थी कि फिर रुक गई। इस बार पता चला कि बस के टायर की हवा निकल गई है। बस का टायर बदलना पड़ेगा।

इस कार्य में भी आधा घंटा लग गया। इस बार शुक्र की बात यह थी कि बस एक ढाबे के पास रुकी थी, इसीलिए सभी यात्री ढाबे पर खाना खाने लगे। ढाबे का खाना बेहद स्वादिष्ट था जिसे खाकर मजा आ गया। बस का टायर बदलने के बाद बस फिर चल पड़ी। अभी 20-30 किलोमीटर चली थी कि बस फिर रुक गई अब हम सभी यात्रियों को गुस्सा आया कि अब क्या हो गया। पता चला कि बस का डीजल खत्म हो गया है। टंकी में छेद हो गया था, जिससे डीजल गिरता रहा और पता नहीं चला।

लगभग 1 किलोमीटर की दूरी एक पेट्रोल पंप था ऐसा ड्राइवर ने कहा। बस के कंडक्टर ने बस की छत पर रखी साइकिल उतारी और एक कैन लेकर लीटर डीजल लाने निकल पड़ा। लगभग 15 मिनट बाद कंडक्टर डीजल वापस लेकर आया। बस की टंकी में डीजल डाला और टंकी में जहां पर छेद हो गया था, वहाँ पर ड्राइवर कुछ लगाकर छेद बंद कर दिया। कंडक्टर इतना डीजल ले आया था कि बस आराम से अपने गंतव्य तक पहुंच जाए। बस फिर चल पड़ी। हम सब दुआ करने लगे कि अब कोई मुसीबत न हो।

इस बार शुक्र था कि बस रास्ते में फिर नहीं रुकी। मेरे मामा का शहर आ गया, वहीं पर जाकर बस रुकी। यह मेरे बस की ऐसी पहली यात्रा थी, जहाँ पर तीन बार बस अलग-अलग कारणों से खराब हुई और रुकी। यह रोचक यात्रा हमेशा याद रहेगी।


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  • अब उनमें जमींदारों वाले ठाठ बाट नहीं थे। उनका अधिकतर समय और संपत्ति मुकदमा और कचहरी में अलग-अलग वाद-विवादों में खर्च होता।
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  • बेनी माधव का स्वभाव मध्यम स्तर का था। ना तो वे बेहद अधिक तीखे या क्रोधी स्वभाव के थे और ना ही बहुत अधिक विनम्र स्वभाव के थे।
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समास का नाम : द्विगु समास

(घ) त्रिवेणी : तीन वेणियो का समाहार
समास का नाम : द्विगु समास

(ङ) कमलनयन : कमल जैसे नयन
समास का नाम : कर्मधारण्य समास

(च) लाभ-हानि : लाभ और हानि
समास का नाम : द्वंद्व समास

(छ) नवग्रह : नौ ग्रहो का समूह
समास का नाम : द्विगु समास

(ज) तुलसीकृत : तुलसी द्वारा कृत (रचित)
समास का नाम : तत्पुरुष समास

(झ) राजीवलोचन : राजीव (कमल) के समान नयन
समास का नाम : कर्मधारण्य समास

(ञ) बैलगाड़ी : बैलों वाली गाड़ी
समास का नाम : तत्पुरुष समास

(ट) यथासंभव : जहाँ तक संभव
समास का नाम : अव्ययीभाव समास

(ठ) घुड़सवार : घोड़ों का सवार
समास का नाम : तत्पुरुष समास

(ड) लंबोदर​ : लंबा है उदर जिसका अर्थात भगवान गणेश
समास का नाम : कर्मधारण्य समास


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निम्नलिखित के समस्त पद बनाकर समास का नाम लिखिए: (1) मरण तक (2)नीला है जो कमल (3) देवता का आलय (4) एक है दांत जिसका (5) विष को धारण करने वाला (6) रेल पर चलने वाली गाड़ी (7) चार भुजाओं का समूह (8) महान है जो काव्य (9) घोड़ों की दौड़ (10) गंगा का तट

निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह कर समास भेद बताइए: सत्याग्रह, लोकप्रिय, दशानन, चंद्रमुख, त्रिकोण, षट्कोण, नीलांबर, देहलता, राजकुमारी, रात-दिन, तुलसीकृत, वनवासी, देशभक्ति, यथाशक्ति, नीलकंठ, रसोईघर।

निम्नलिखित के समस्त पद बनाकर समास का नाम लिखिए: (1) मरण तक (2)नीला है जो कमल (3) देवता का आलय (4) एक है दांत जिसका (5) विष को धारण करने वाला (6) रेल पर चलने वाली गाड़ी (7) चार भुजाओं का समूह (8) महान है जो काव्य (9) घोड़ों की दौड़ (10) गंगा का तट

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समस्त पद और समास का नाम

(1) मरण तक : आमरण
समास का नाम : अव्ययीभाव समास

(२) नीला है जो कमल : नीलकमल
समास का नाम : कर्मधारण्य समास

(3) देवता का आलय : देवालय
समास का नाम : तत्पुरुष समास

(4) एक है दांत जिसका : एकदंत अर्थात भगवान गणेश
समास का नाम : बहुव्रीहि समास

(5) विष को धारण करने वाला : विषधर
समास का नाम : बहुव्रीहि

(6) रेल पर चलने वाली गाड़ी : रेलगाड़ी
समास का नाम : तत्पुरुष समास

(7) चार भुजाओं का समूह : चतुर्भुज
समास का नाम : द्विगु समास

(8) महान है जो काव्य : महाकाव्य
समास का नाम : कर्मधारण्य समास

(9) घोड़ों की दौड़ : घुड़दौड़
समास का नाम : तत्पुरुष समास

(10) गंगा का तट : गंगातट
समास का नाम : तत्पुरुष समास


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निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह कर समास भेद बताइए: सत्याग्रह, लोकप्रिय, दशानन, चंद्रमुख, त्रिकोण, षट्कोण, नीलांबर, देहलता, राजकुमारी, रात-दिन, तुलसीकृत, वनवासी, देशभक्ति, यथाशक्ति, नीलकंठ, रसोईघर।

‘हिमयुग’ शब्द में कौन सा समास है?

नन्हे कंधो पर बढ़ता बस्ते का बोझ​। (इस विषय पर अनुच्छेद लिखिए)

अनुच्छेद

नन्हे कंधो पर बढ़ता बस्ते का बोझ

नन्हे कंधों पर बढ़ता बस्ते का बोझ आज के विद्यार्थियों की विडंबना बन चुकी है। बस्ते का यह बोझ विद्यार्थियों से उनका स्वाभाविक बचपन खेल रहा है। बस्ते के बोझ बढ़ने का मतलब है, ज्यादा किताबें, ज्यादा विद्यालय कार्य, पढ़ाई का ज्यादा बोझ। ऐसी स्थिति में बच्चे बस्तों के बोझ के तले दबे हुए अपने बचपन की चंचलता को खो रहे हैं। बच्चों को शिक्षा इस प्रकार दी जानी चाहिए कि शिक्षा उन्हें बोझ नहीं लगे वह शिक्षा को स्वाभाविक रूप से ग्रहण करें ना कि उसे औपचारिकता निभाते हुए ग्रहण करें। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षा को बोझ की तरह बनाकर प्रस्तुत नहीं किया जाए। शिक्षा को इस तरह सरल सहज रूप में देना चाहिए कि बच्चा उसे खुशी-खुशी सीखने के लिए तैयार हो। किताबों की बढ़ती हुई संख्या तथा बस्ते के बढ़ता हुआ बोझ के कारण यह सब संभव नहीं हो पा रहा है। अपने घर से विद्यालय के लिए स्कूल जाते बच्चे या विद्यालय से लौटते हुए बच्चों को देखकर तथा उनके पीछे पीठ पर भारी-भरकम बस्ता लदा हुआ देखकर मन को बड़ी पीड़ा होती है। यह देख कर मन को बड़ा ही दुख होता है कि पढ़ाई के नाम पर बच्चों को शिक्षा के बोझ चले दबाया जा रहा है और उनकी चंचलता और बचपन को छीना जा रहा है। इस विषय में सोचने की आवश्यकता है कि बच्चों का बचपन बस्ते के बोझ के तले दबकर गुम न हो जाए।


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धृतराष्ट्र ने विदुर को किसे लौटा लाने के लिए पांचाल देश भेजा?

धृतराष्ट्र ने विदुर को कुंती, पांचो पांडव तथा द्रौपदी को बुला लाने के लिए पांचाल देश भेजा था।

जब कौरव और पांडवों का विवाद चल रहा था। तब भीष्म पितामह ने धृतराष्ट्र को सुझाव दिया कि पांडवों के साथ समझौता करके उन्हें आधा राज्य दे दिया जाएय़ यद्यपि दुर्योधन और कर्ण इस सुझाव से सहमत नहीं थे। कर्ण ने धृतराष्ट्र को इस संबंध में भड़काने का भी प्रयत्न किया। उसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने भी यही सुझाव दिया।

अंत में धृतराष्ट्र ने विदुर से विचार-विमर्श किया। तब विदुर ने कहा कि भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य गुरु द्रोणाचार्य ने जो सलाह दी है, वह उचित है। सारी बातें का अंत में यह निष्कर्ष तय हुआ कि धृतराष्ट्र ने विदुर को पांचो पांडव और कुंती को बुलाने के लिए पांचाल देश भेजने का निर्णय लिया और उन्हें पांडवों को वापस बुलाने के लिए पांचाल देश भेजा। विदुर धृतराष्ट्र की ओर से पांचाल देश के नरेश राजा द्रुपद के लिए अनेकों उपहार लेकर पांचाल देश की ओर प्रस्थान कर गए।


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घर में चोरी के बाद पुलिस अफसर और पीड़ित महिला के बीच में संवाद लिखिए​।

संवाद लेखन

घर में चोरी के बाद पुलिस अफसर और पीड़ित महिला के बीच में संवाद

पुलिस ⦂ पहले यह बताइए, आपको कब पता चला कि आपके घर में चोरी हो गई है?

महिला ⦂ इंस्पेक्टर साहब, सुबह जब हम लोग सोकर उठे तो हमने देखा कि हमारा घर की एक खिड़की टूटी हुई है। हमने तुरंत कमरे में जाकर देखा तो हमारे कबर्ड का लॉकर टूटा हुआ है और कबर्ड में रखे सारा कीमती सामान कबर्ड से गायब है।

पुलिस ⦂ क्या आप लोगों को रात में खटपट की कोई आवाज नहीं सुनाई दी?

महिला ⦂ नहीं इस्पेक्टर साहब। हम लोग कल शाम को बाहर गए थे और रात 11 बजे वापस आए थे। इसलिए हम बेहद थके हुए थे और गहरी नींद सो गए।

पुलिस ⦂ क्या आपको अपने किसी पहचान वाले या पड़ोसी आदि पर शक है?

महिला ⦂ इंस्पेक्टर साहब इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती। मैं किस पर शक करूं।

पुलिस ⦂ आपके घर में और कौन-कौन आता जाता था?

महिला ⦂ हमारे घर में रोज दूध वाला दूध देने आता है। उसके अलावा हमारे घर का खाना बनाने के लिए एक कुक है, जो रोज सुबह-शाम खाना बनाने को आता है। एक कामवाली बाई भी रोज झाड़ू-पोंछा लगाने आती है।

पुलिस ⦂ क्या आपको इन लोगों में से किसी पर शक है? जिस कमरे में आपका कबर्ड रखा है, उस कमरे तक इनमें से कोई जाता था?

महिला ⦂ यह तीनों लोग मेरे घर कई सालों से आ रहे हैं और तीनों बेहद ईमानदार हैं। दूध वाला केवल बाहर से दूध देकर चला जाता है। कुक भी केवल रसोई तक ही सीमित रहता है। हाँ, कामवाली बाई जरूर घर के सभी कमरों में झाड़ू पोछा लगाने जाती है।

पुलिस ⦂ मेरे विचार से आपके किसी पहचान वाले को पता था कि कबर्ड में आपका कीमती सामान रखा हुआ है, क्योंकि कबर्ड को देखने से पता चलता है कि उसमें से केवल उसी हिस्से को तोड़ा गया है, जहाँ पर कीमती सामान रखा है, बाकी पूरे कबर्ड का सामान ज्यों का त्यों रखा है।

महिला ⦂ हाँ, यह बात तो मुझे भी आश्चर्यचकित करती है मुझे भी लगता है मेरी किसी पहचान वाले ने या तो चोरों को यह बात बताई है या उसने ही ऐसा कार्य किया है।

पुलिस ⦂ ठीक है, हम लोग जांच कर रहे हैं। हमें आपके कुछ पहचान वालों से पूछताछ करनी पड़ेगी। उसके लिए हम बारी-बारी से उन्हें थाने में बुलाएंगे। इसी के आधार पर हम अपनी जांच बढ़ाएंगे। आप हमारी जांच में पूरा सहयोग दें। यदि आपको और किसी पर कोई शक हो तो बेहिचक हमें उसका नाम बता देना। हमें अपने स्तर से उससे पूछताछ कर लेंगे।

महिला ⦂ मैं पूरा सहयोग देने के लिए तैयार हूँ। बस मुझे मेरा सामान वापस मिल जाए।

पुलिस ⦂ हम कोशिश करते हैं। आप निश्चिंत रहिए। जल्दी ही चोरों का पता चल जाएगा।


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गर्मियों की छुट्टियों का सदुपयोग करने हेतु पिता और बेटी के बीच संवाद​ लिखिए।

ग्रीष्मावकाश में घूमने के लिए जाने की योजना बनाने हेतु हो रही अपने परिवार या मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

क्या हमें अपने मित्रों से ईर्ष्या करनी चाहिए? यदि नहीं करनी चाहिए, तो क्यों?

हमें अपने मित्रों  से ईर्ष्या कभी भी नही करनी चाहिए।

हमें अपने मित्रों से ईर्ष्या कभी नहीं करनी चाहिए। हमें केवल अपने मित्रों से ही नहीं किसी से भी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। मित्रों की बात करें तो मित्र ईर्ष्या करने के लिए नहीं होते। मित्र सदैव प्रेम करने के लिए होते हैं।

मित्रता प्रेम का ही दूसरा नाम है। एक दूसरे के प्रति प्रेम-स्नेह होने पर ही मित्रता होती है। इस तरह मित्रता प्रेम का एक रूप है। यदि हम किसी को अपना मित्र मानते हैं और उससे ईर्ष्या भी करते हैं तो दोनों बाते सत्य नही हो सकती है। या तो हम उसे अपना सच्चा मित्र नही मानते, इसी कारण उसके प्रति हमारे मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। अगर हम उसे अपना सच्चा मित्र मानते होते तो हमारे मन में ईर्ष्या उत्पन्न ही नही हो सकती थी।

मित्रता ईर्ष्या का नाम नही है। मित्रता प्रेम का नाम है। मित्र ईर्ष्या करने के लिए नही होते। अच्छे और सच्चे मित्र से एक अच्छा और सच्चा मित्र ईर्ष्या नही कर सकता। इसलिए हमें अपने मित्र से ईर्ष्या नही करनी चाहिए। बल्कि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हम अपने मित्र से ईर्ष्या कर ही नहीं सकते।


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बड़े भाई साहब पाठ में कनकौए की तुलना किससे की गई है?

आपके आसपास में गंदगी होने पर सफाई के लिए नगरपालिका अध्यक्ष को प्रार्थना पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

गंदगी के विषय में नगरपालिका अध्यक्ष को प्रार्थना पत्र

 

दिनांक : 6 मई 2024

 

सेवा में,
श्रीमान नगरपालिका अध्यक्ष,
गाजियाबाद नगरनिगम,
गाजियाबाद (उ.प्र.)

विषय : गंदगी की सफाई हेतु प्रार्थना पत्र

 

माननीय नगरपालिका अध्यक्ष महोदय,

मैं गाजियाबाद के सुंदर नगर से मानव शर्मा हमारे क्षेत्र में फैली गंदगी के विषय में आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। हमारे सुंदर नगर इलाके में जगह-जगह गंदगी का ढेर लगा हुआ है, जिसके कारण हमारी कॉलोनी के निवासी बेहद परेशान हैं। गंदगी के कारण हमारी कालोनी में बदबू फैली रहती है तथा मच्छरों और कीड़ों मकोड़ों का आतंक रहता है। नगरपालिका नगर पालिका की तरफ से कचरा उठाने वाली गाड़ी नियमित रूप से हमारी कॉलोनी में नहीं आती है। इस संबंध में हमने कई बार शिकायतें की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया हमारी कालोनी में फैली गंदगी के संबंध संज्ञान लेते हुए तुरंत ही कार्रवाई का आदेश दें, ताकि हमारी कालोनी गंदगी मुक्त हो सके। आशा है कि कि आप शीघ्र ही उचित कार्रवाई करेंगे।

धन्यवाद,

भवदीय,
मानव शर्मा,
निवासी – सुंदर नगर, गाजियाबाद ।


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अपने विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति के लिए विद्यालय प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।।

स्कूल में साफ-सफाई करवाने हेतु प्रधानाचार्य जी को प्रार्थना-पत्र लिखिए​।

अपने पिताजी को पत्र लिखकर बताएं कि आपके विद्यालय में खेल दिवस का आयोजन किस प्रकार किया गया।

अनौपचारिक पत्र

विद्यालय में खेल दिवस का आयोजन

 

दिनांक : 15 अप्रेल 2024

 

आदरणीय पिताजी
चरण स्पर्श,

मैं यहाँ पर ठीक प्रकार से हूँ और मैं कामना करता हूँ कि वहाँ घर पर भी सभी आप सभी लोग अच्छे होंगे। पिताजी, कल हमारे विद्यालय में खेल दिवस समारोह सम्पन्न हुआ। यह खेल दिवस 3 दिन का खेल आयोजन था, जिस आरंभ 12 अप्रेल को हुआ था। इस खेल दिवस में अनेक खेल प्रतियोगिता आयोजित की गईं।

विद्यालय की अलग-अलग कक्षा के विभिन्न खेल स्पर्धाओं में भाग लिया। पिताजी, आपको पता है कि मुझे क्रिकेट के खेल में बहुत रुचि है। मैंने भी क्रिकेट के खेल में अपने कक्षा की टीम की तरफ से प्रतिनिधित्व किया। मुझे टीम का कप्तान भी बनाया गया।

विद्यालय में कुल 8 टीमों का टूर्नामेंट था। हमारी टीम फाइनल में पहुंची और स्पर्धा जीतने में भी सफल रही। यह मेरे लिए बेहद खुशी का अवसर था कि मेरी कप्तानी में हमारे विद्यालय हमारी टीम ने विद्यालय में क्रिकेट का खिताब जीता। हम सभी विजेता खिलाड़ियों को विद्यालय की तरफ से प्रत्येक विद्यार्थी को ₹1100 का पुरस्कार प्राप्त हुआ।

पिताजी, हमारे विद्यालय में अन्य कई खेल प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया था। इन तीन दिनों में बहुत आनंद आ गया। मैं सुबह 8 बजे ही अपने हॉस्टल से निकल जाता था और शाम को 6 बजे हॉस्टल में प्रवेश कर पाता था। 3 दिन बहुत व्यस्तता वाले दिन रहे। अब कल से हमारे विद्यालय में नियमित पढ़ाई शुरू होगी।

पिताजी, यहाँ विद्यालय में मेरी पढ़ाई ठीक-ठाक चल रही है और हॉस्टल में भी मुझे किसी प्रकार की परेशानी नहीं है। मुझे ₹1100 का पुरस्कार प्राप्त हुआ है, इसलिए आप अगले महीने खर्चे के पैसे नहीं भेजना क्योंकि पुरुस्कार के पैसों से मैं अपने खर्चों का प्रबंध कर लूंगा।

माँ को मेरी तरफ से चरण और छोटी बहन को स्नेह।

आपका बेटा,
वरुण ।


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‘प्रवाद-पर्व’ कविता की मूल संवेदना का रेखांकन कीजिए।

‘प्रवाद-पर्व’ काव्य एक खंडकाव्य है जो नरेश मेहता द्वारा लिखा गया खंडकाव्य है। यह खंडकाव्य रामकथा पर आधारित खंडकाव्य है।

इस खंड काव्य की मूल संवेदना राम कथा के उस प्रसंग के लोक पक्ष को प्रस्तुत करने की है, जिसमें सीता के लंका प्रवास के बाद रामराज्य के समय एक धोबी द्वारा दोषारोपण करने पर राम किस तरह का निर्णय लेते हैं। जहाँ लक्ष्मण राम से कहते हैं कि एक धोबी द्वारा सीता पर इस तरह का दोषारोपण करना एक द्वेषपूर्ण कार्य है, वहीं राम का सोचना अलग है। वह एक पति की दृष्टि से नहीं सोचते बल्कि एक राजा की दृष्टि से सोचते हैं, जिनके राज्य में सबको अपनी-अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। चाहे वह व्यक्ति परिवार के सदस्य पर ही क्यों न दोषारोपण करें। उसकी अभिव्यक्ति का भी सम्मान किया जाना चाहिए।

इस खंडकाव्य के माध्यम से कवि ने उसी लोकपक्ष को समझाने का प्रयत्न किया है। इस खंड काव्य की मूल संवेदना यह है कि सत्ताधीश को निरंकुश ना होकर शासक को अपनी जनता के प्रति मधुर संबंध बनाए रखने तथा उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने जैसे सामाजिक मूल्यों पर आधारित है। राम ने अपनी प्रजा में छोटे से धोबी की बातों को भी गंभीरता से लिया और उसकी अभिव्यक्ति का भी पूर्ण सम्मान किया। इसके लिए भले ही उन्हें अपनी पत्नी का त्याग क्यों ना करना पड़ा।

यहाँ पर उन्होंने अपनी निजी हित को त्यागकर, एक राजा के कर्तव्य का पालन किया। कवि ने कविता के माध्यम राम के अपनी प्रजा के प्रति निष्ठावान पक्ष को उभारा है कि राम अपनी प्रजा के हित से बढ़कर कुछ नही सोचते थे।


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तताँरा-वामीरो की कथा’ कहानी ‘लीलाधर मंडलोई’ द्वारा लिखी गई कथा है, जिसमें उन्होंने तताँरा-वामीरो नामक एक प्रेमी युगल के बीच उपजे प्रेम तथा उन दोनों के मिलन ना होने के कारण दोनों के द्वारा अपनी जान गवां देने की मार्मिक कथा का वर्णन किया है। यह कथा तताँरा और वामीरो पर आधारित है। तताँरा एवं वामीरो इस कहानी के मुख्य पात्र हैं। तताँरा-वामीरो का चरित्र चित्रण इस प्रकार है :

तताँरा का चरित्र-चित्रण

तताँरा एक वीर एवं साहसी युवक है। वह बेहद परिश्रमी युवक था और सदैव हर किसी की मदद के लिए तैयार रहता था। उसका व्यक्तित्व एवं उसका स्वभाव बेहद आत्मीय था। अपने इसी विनम्र एवं आत्मीय स्वभाव के कारण उसके गाँव तथा आसपास के गाँव के सभी लोग उससे मिलना चाहते थे और उसके निकट रहना चाहते थे। तताँरा के बारे में यह मान्यता प्रचलित थी कि वह दैवीय शक्ति से युक्त युवक है। वह अपनी कमर में सदैव लकड़ी की तलवार बांधे रखता था। इसके बारे में लोगों का मत यह था कि यह लकड़ी की तलवार कोई अद्भुत दैवीय शक्ति युक्त है। तताँरा के कारनामों और उसकी दैवीय शक्ति से युक्त तलवार के कारण वह गाँव में एक लोकप्रिय युवक था। उसके अंदर प्रेम की भावना भी कूट-कूट कर भरी थी। इसी कारण वामीरो को पहली नजर में देखने पर ही उसे वामीरों से तुरंत प्रेम हो गया था। वह वामीरो की मधुर आवाज और सुरीले गायन का दीवाना हो गया था। वामीरो से प्रेम की खातिर उसने प्राण तक त्याग दिए।

वामीरो का चरित्र-चित्रण

वामीरो और एक बेहद सुंदर युवती थी। वह बहुत मधुर गाना गाती थी। वह अक्सर समुद्र के किनारे जाकर वहाँ बैठकर गाया गाया करती थी। उसके अंदर भी प्रेम की भावना थी इसी कारण पहली मुलाकात में उसका मन भी तताँरा की ओर खिंचा चला गया था। हालाँकि अपने मन की भावना उसने तुरंत प्रकट नही की और ऊपरी तौर पर तताँरा के प्रति रुखा व्यवहार प्रकट किया था। लेकिन वह मन ही मन तताँरा से प्रेम करने लगी थी। जब तताँरा द्वारा उसके न मिल पाने के दुख में अपने प्राण त्याग दिए तो वामीरो भी तताँरा के दुख में पागल हो गई। उसने तताँरा के गम में खाना-पीना सब त्याग दिया और एक दिन कहीं गुम हो गई। इस तरह ‘तताँरा-वामीरो की कथा’ कहानी में तताँरा और वामीरो दोनो एक-दूसरे से बेहद प्यार करने वाला युवक-युवती थे।

संदर्भ पाठ

“तताँरा वामीरो की कथा”, लेखक – लीलाधर मंडलोई

‘तताँरा वामीरो की कथा’ नामक पाठ लीलाधर मंडलोई द्वारा लिखित कहानी है। ये कहानी निकोबार द्वीप समूह के अलग-अलग गाँवों में रहने वाले दो युवक-युवती ‘तताँरा’ और ‘वामीरो’ के प्रेम और त्याग पर आधारित कहानी है। एक दूसरे से प्रेम होने के बावजूद दोनों का विवाह नहीं हो सका क्योंकि दोनों अलग-अलग गाँवों के रहने वाले थे। निकोबार द्वीप समूह के गाँवों में उस समय ये प्रथा प्रचलित थी कि अलग-अलग गाँवों के युवक-युवती आपस में विवाह नही कर सकते। एक दूसरे से मिलन न होने पाने के दुख में दोनों ने अपने प्राण त्याग दिए। ये उनके त्यागमयी  बलिदान की प्रेमकथा है।


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‘दो बैलों की कथा’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक ऐसी कहानी है, जिसके माध्यम से उन्होंने पशुओं के प्रेम और उनकी संवेदनाओं व्यक्त किया है। इस कहानी से पता चलता है कि पशुओं में भी संवेदनाएं एवं भावनाएं होती हैं। यह कहानी हीरा एवं मोती नाम के दो बैलों पर आधारित है। दोनों बैलों की चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  • हीरा मोती की अपेक्षा शांत स्वभाव का बैल है। वह बैलों के जन्म को अपनी नियति मानता है। गया द्वारा पीटे जाने पर वह इसे अपना नियति यानी भाग्य मानकर चुपचाप पिटाई सह लेता है, वह तुरंत आक्रोश नहीं दिखाता।
  • मोती हीरा के विपरीत गुस्सैल स्वभाव का बैल है। वह किसी भी तरह के अन्याय अत्याचार के प्रति तुरंत प्रतिक्रिया करता है। जब उसे गया के आदमी पीटने के लिए आते हैं तो वह उनसे लड़ने के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन हीरा उसे रोक लेता है।
  • हीरा के अंदर हिम्मत है। कांजी हाउस में बंद पड़े रहने पर वह हिम्मत दिखाता है, और आजाद होने के लिए कांजी हाउस की दीवार को तोड़ने का प्रयास करता है। उसकी अपेक्षा मोती उतनी हिम्मत नही दिखा पाता।
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  • हीरा शांत स्वभाव का था। मोती चंचल स्वभाव का स्वभाव का बैल था। जब दोनों गया के घर से भाग निकले थे तब रास्ते में मटर का खेत आने पर मोती उसमें घुसकर फसल को खाने को घुस गया। हीरा ने उसे मना किया लेकिन वह नहीं माना।
  • इस तरह हीरा एवं मोती दोनों के स्वभाव में भिन्नता थी। जहाँ हीरा शांत स्वभाव का सीधा साधा बैल था और हर बात को चुपचाप सह लेता था, वहीं मोती क्रोधी स्वभाव का था। उसे जल्दी गुस्सा आ जाता था और वह किसी भी बात को तुरंत नहीं सहता था और प्रतिक्रिया देता था।

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‘पुस्तकालय की आत्मकथा’ पर निबंध लिखिए।

निबंध

पुस्तकालय की आत्मकथा

 

मैं पुस्तकालय हूँ। डिजिटल युग में आज भले ही मेरा महत्व थोड़ा कम हो गया हो, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब मैं बुद्धिजीवियों का, पुस्तक प्रेमियों का, विद्यार्थियों का, विद्वानों का, ज्ञान चाह रखने वालों का, जिज्ञासुओं का सबसे प्रिय स्थल होता था।

मैं पुस्तकालय हूँ। मैं ज्ञान का भंडार हूँ। मैं अपने अंदर ढेरों सारी पुस्तकें समेटे हुए हूँ। मेरी पुस्तकें मेरी बेटियों के समान है। क्योंकि मैंने ही इन्हें अपने वजूद में संभाल कर रखा है। मेरी सारी पुस्तकें मुझे बेहद प्रिय हैं। मैं इनसे अपना वैसा ही संबंध स्थापित करता हूं जो एक पिता एवं पुत्री के बीच होता है। भले ही मैंने इन पुस्तकों को जन्म नहीं दिया हूं यानी इन पुस्तकों की रचना किसी दूसरे व्यक्ति ने की, किसी तीसरे व्यक्ति ने छापा, लेकिन यह पूरी तरह तैयार होकर मेरे यहाँ ही आती हैं और मेरे यहाँ से लोग इनका लाभ उठाकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह सारी पुस्तकें मेरी दत्तक पुत्री के समान है, क्योंकि मैंने इन्हें गोद लिया है।

यूँ तो सदैव मैंने स्वयं पर गर्व किया है, क्योंकि ज्ञान संग्रह और ज्ञान बांटने के स्रोत के रूप में मैंने सदियों से अपनी भूमिका निभाई है लेकिन आज मैं स्वयं को उपेक्षित महसूस करता हूँ, क्योंकि आज डिजिटल क्रांति की इस आंधी में पुस्तकों का महत्व कम हुआ है। लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति कम हुई है। पहले मेरे पास शोध करने वाले, अनुसंधान करने वाले, खोजबीन करने वाले, किसी विषय पर लिखने वाले, हर तरह के लोगों का आना जाना लगा रहता था। जब किसी को कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी चाहिए होती थी तो वह मेरी ही शरण लेता था। लेकिन अब मोबाइल नाम के एक छोटे से यंत्र के कारण उसे वह जानकारी घर बैठे ही चंद सेकंड में मिल जाती है, इसलिए लोग मेरे पास आने का कष्ट नहीं करते। भले ही मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त जानकारी एकदम सटीक एवं प्रमाणिक ना हो लेकिन लोग फिर भी उसी पर विश्वास करते हैं क्योंकि वह उन्हें बेहद आसानी से मिल जाती है। इसी कारण आज मेरा उपयोग कम हुआ है।

अब मेरे यहाँ इतनी भीड़ नहीं दिखाई देती, जितनी पहले दिखाई देती थी। पहले में इस बात पर गर्व महसूस करता था क्योंकि मेरे यहां विद्वानों का जमावड़ा लगा रहता था, लेखकों का जमावड़ा लगा रहता था, शोधार्थियों और विद्यार्थियों का जमावड़ा लगा रहता था। आज मेरे पास लोग कम आते हैं। समय ही परिवर्तन का नियम है, शायद अब मैंने मान लिया है कि मेरा समय निकल चुका है और डिजिटल युग आ चुका है। अब मेरा स्थान किसी और ने ले लिया है।

लेकिन ऐसा नहीं है कि मैं तो पूरी तरह अप्रासंगिक हो गया हूँ। जिन्हें वास्तव में सटीक एवं प्रमाणिक ज्ञान की आवश्यकता होती है, वह मेरे पास अवश्य आते हैं। जो पुस्तक प्रेमी हैं, वह आज भी मेरे पास अवश्य आते हैं। अपने उन पुस्तक प्रेमियों को देखकर ही सुकून पा लेता हूँ।

मैं पुस्तकालय हूँ। मैं पहले भी ज्ञान का घर और आज भी ज्ञान का घर हूँ। मेरी पुस्कतें मेरी बेटियों के समान हैं। शायद समय फिर बदले, डिजिटल माध्यमों से प्राप्त जानकारी से लोग उकता जाएं। शायद लोगों में पुस्तकों के प्रति पहले जैसा प्रेम फिर उत्पन्न हो। शायद पुस्तकों का युग फिर वापस आए। मैं उस समय के इंतजार में हूँ। मैं पुस्तकालय हूँ, यही मेरी आत्मकथा है।


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