‘चीफ की दावत’ कहानी में शामनाथ तथा उनकी पत्नी ने चीफ को दावत पर बुलाने के लिए अनेक तरह की तैयारियाँ की थी। शामनाथ और उनकी पत्नी ने अपने पूरे घर को करीने से सजाया था। घर की सारी कुर्सियों, मेजों, तिपाइयों आदि को व्यवस्थित रूप से घर के बरामदे में लगा दिया। इन सभी फूल, नैपकिन आदि करीने से सजाकर रख दिए थे। घर के सभी सोफा और कुर्सियों आदि के कवर भी बदल दिए गए थे। घर के सभी परदे भी बदल दिए गए थे। घर का जो भी फालतू सामान था, जो देखने में अच्छा नहीं लगता था, वह सारा सामान उन्होंने अलमारियों के पीछे अथवा पलंग के नीचे छुपा दिया था। इसके अलावा खाने-पीने का अच्छा प्रबंध कर रखा था। आने वाले मेहमानों के लिए घर में मांस पका तथा ड्रिंक्स का भी इंतजाम किया गया था। ड्रिंक्स का इंतजाम बैठक में किया गया था, जबकि खाने का इंतजाम बरामदे में कुर्सी-मेज लगाकर किया गया था।
‘चीफ़ की दावत’ कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखित सामाजिक मूल्यों वाला कहानी है, जिसमें एक अफसर बेटे द्वारा अपनी अनपढ़ और ग्रामीण माँ की उपेक्षा का वर्णन किया गया है। ये कहानी बताती है कि लोग दिखावे के चक्कर में अपने रिश्तों के मर्यादा तक भूल जातें है। संतान बड़े होने अपने माँ-बाप उपकारों को भूल जाती है और उनकी उपेक्षा करती है।
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