गीतिनाट्य से तात्पर्य नाट्य की विधा से है, जिसके अंतर्गत किसी नाटक को गीत गाकर गीतात्मक अर्थात काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। गीत एक ऐसा नाटक होता है, जिसमें काव्य की प्रधानता होती है। ऐसे नाटक में गीतों को गाकर अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। गीतिनाट्य नाटक का संगीतात्मक संस्करण है अर्थात किसी नाटक की संगीतमय प्रस्तुति ही गीतनाट्य कहलाती है। गीतात्मक काव्य एक प्राचीन विधा है और यह विधा सैकड़ों सालों से प्रचलन में रही है। गीतकाव्य को प्रस्तुत करने के 5 अंग होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं…
1. प्रस्तावना
2. कथा
3. संवाद एवं अभिनय
4. गीत
5. नृत्य
प्रस्तावना : प्रस्तावना के अंतर्गत नाटक की भूमिका तैयार की जाती है, जो नाटक की प्रस्तुतिकरण की आधारशिला होती है।
कथा : इसके अंतर्गत नाटक को प्रस्तुत करने के लिए किसी कथा को आधार बनाया जाता है। उसी कथा के आधार पर पूरे नाटक की संरचना की जाती है।
संवाद एवं अभिनय : संवाद एवं अभिनय के अंतर्गत नाटक को प्रस्तुत करते समय पात्रों के बीच होने वाले संवाद तथा उनका अभिनय गी गीतनाट्य के प्रमुख अंग है।
गीत : जब नाटक प्रस्तुत किया जा रहा होता है तो नाटक प्रस्तुत करते समय गीत गाया जाना ही गीत गीत नाट्य की एक विशेष विधा है।
नृत्य : नृत्य भी गीतनाट्य की एक प्रमुख प्रस्तुति है। गीत नाट्य की दो शैली होती हैं।
मूक एवं अभिनयात्कम शैली : इस शैली के अंतर्गत पात्र स्वयं गाते नही बल्कि मूक रूप से अभिनय के द्वारा प्रस्तुति करते हैं और अपने हाव-भाव द्वारा करते हुए किसी कथा को कहने का प्रयास करते हैं। नेपथ्य में गीत-संगीत बज रहा होता है। इसमें पात्र के द्वारा गीत गाकर प्रस्तुत नही किया जाता बल्कि नेपथ्य में गीत-संंगीत होता है और पात्र केवल मूक अभिनय करता है।
संवादात्मक शैली : इस शैली के अंतर्गत पात्र स्वयं गीत गाते हैं और अभिनय करते हैं। वे आपस में संवाद भी करते हैं। इस शैली में संवाद एवं काव्य का मिश्रण होता है। जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ती जाती है, पात्र गीत गाते हैं फिर अगला गीत गाने से संवाद करते है जोकि कथा को प्रवाहमय बनाये रखता है, फिर गीत गाते है। संवाद एवं गीत का ये क्रम चलता रहता है।
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