वीर पुरुष जो देश पर बलिदान हो जाते हैं, वह दुख-सुख को समान भाव से इसलिए देखते हैं क्योंकि उनका यही गुण उनके लिए वीर बनने की राह प्रशस्त करता है। जो मनुष्य सुख एवं दुख को समान भाव से देखता है, वह सुख एवं दुख में समान भाव से रहता है, वह ही वास्तव में सच्चा वीर पुरुष बन पाता है। वीर पुरुष दुख की घड़ी में विचलित नहीं होते और सुख की घड़ी में आत्ममुग्ध नहीं होते। वह दोनों ही स्थितियों को समान भाव से ग्रहण करते हैं और दोनों ही स्थितियों में समान भाव से रहते हैं। इसी कारण उनके अंदर उनकी इच्छाशक्ति, उनकी संकल्प शक्ति अधिक मजबूत होती है, जो उनके अंदर वीरता का गुण भरती है। वीर बनने के लिए संकल्प शक्ति मजबूत होनी चाहिए, अपना आत्मबल मजबूत होना चाहिए। जो व्यक्ति सुख एवं दुख जैसी स्थिति हो दोनों स्थितियों समान भाव से रहने का ग्रहण करने का गुण विकसित कर लेता है। उसकी संकल्प शक्ति उसका आत्मबल निश्चित रूप से मजबूत होता है और वही सही अर्थों में वीर पुरुष बन पाता है। इसलिए जो पुरुष जो देश पर बलिदान हो जाते हैं, वह दुख-सुख को समान भाव से देखते हैं।
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