बस यात्रा का अनुभव
यात्रा कोई भी हो उसमें कोई ना कोई रोचक अनुभव अवश्य होता है। मुझे ट्रेन यात्रा करने में बहुत मजा आता है। लेकिन ट्रेन यात्रा के अलावा बस यात्रा का भी एक अलग अनुभव है। मुझे बस में एक ऐसी ही यात्रा करने का रोचक अनुभव मिला।
एक बार मुझे अपने मामा जी से मिलने दूसरे शहर जाना था मेरे मामा जी का घर जिस शहर में था वह शहर हमारे शहर से 200 किलोमीटर की दूरी पर था। उस शहर में जाने के लिए बस ही एकमात्र यातायात का साधन थी। मेरी बस सुबह 7 बजे की थी और मैं 6 बजे बस स्टैंड पहुंच गया। फटाफट बस का टिकट लिया और बस में बैठ गया बस तैयार खड़ी थी। बस में सबसे पहले उसने वाले यात्रियों में मैं ही था। लगभग 7 बजे बस चल पड़ी। बस की हालत ठीक-ठाक थी। ना तो बस में बहुत अधिक सुविधा थी और ना ही बस एकदम खटारा था। बस को देख कर मुझे लगा कि मेरी यात्रा ठीक-ठाक पूरी हो जाएगी। लेकिन ऐसा न हो सका।
50 किलोमीटर जाने के बाद बस यकायक रुक गई। मुझे लगा शायद कोई स्टैंड आ गया होगा, लेकिन जब खिड़की से बाहर जाता तो देखा चारों तरफ जंगल ही जंगल था। यह देखकर मुझे हैरत हुई कि ड्राइवर ने बस जंगल में क्यों रोक दी। पूछने पर पता चला कि बस के इंजन में कुछ खराबी आ गई है, ठीक होने में कम से कम एक घंटा लगेगा।
ड्राइवर और कंडक्टर ने कहा कि यात्री लोग अगर चाहे तो 1 घंटे तक बस से बाहर निकल का आसपास घूम सकते हैं। मैं भी बस से उतर कर कुछ यात्रियों के साथ जंगल में चला गया। हमें डर था कि नहीं कोई हिंसक जानवर ना आ जाए। हम लोग एक छोटी सी पहाड़ी पर चढ़ गए और बस की तरफ देखा तो ड्राइवर कंडक्टर दोनों बस की मरम्मत में लगे हुए थे। पहाड़ी के दूसरी तरफ देखने पर हमें एक नदी नजर आई और वहीं पर कुछ भालू घूम रहे थे। यह देख कर हम सब घबरा गए। हम लोग तुरंत पहाड़ी से उतरकर अपनी बस की तरफ दौड़े आए। हमने सभी यात्रियों के बताया कि वहाँ पर कुछ जानवर हैं, हमे सावधान रहना होगा। अधिकतर यात्री बस में जाकर बैठ गए।
हम कुछ लोग बाहर ही रहे। हमने आसपास के पेड़ों की टहनियों को तोड़कर उनसे डंडा बना लिया कि यदि कोई जानवर आया तो अपना बचाव कर सकें। शुक्र है कि लेकिन कोई जानवर बस की तरफ नहीं आया। एक घंटे की कोशिश के बाद बस ठीक हो गई और बस चल पड़ी। लेकिन अभी 50 किलोमीटर बस और चली थी कि फिर रुक गई। इस बार पता चला कि बस के टायर की हवा निकल गई है। बस का टायर बदलना पड़ेगा।
इस कार्य में भी आधा घंटा लग गया। इस बार शुक्र की बात यह थी कि बस एक ढाबे के पास रुकी थी, इसीलिए सभी यात्री ढाबे पर खाना खाने लगे। ढाबे का खाना बेहद स्वादिष्ट था जिसे खाकर मजा आ गया। बस का टायर बदलने के बाद बस फिर चल पड़ी। अभी 20-30 किलोमीटर चली थी कि बस फिर रुक गई अब हम सभी यात्रियों को गुस्सा आया कि अब क्या हो गया। पता चला कि बस का डीजल खत्म हो गया है। टंकी में छेद हो गया था, जिससे डीजल गिरता रहा और पता नहीं चला।
लगभग 1 किलोमीटर की दूरी एक पेट्रोल पंप था ऐसा ड्राइवर ने कहा। बस के कंडक्टर ने बस की छत पर रखी साइकिल उतारी और एक कैन लेकर लीटर डीजल लाने निकल पड़ा। लगभग 15 मिनट बाद कंडक्टर डीजल वापस लेकर आया। बस की टंकी में डीजल डाला और टंकी में जहां पर छेद हो गया था, वहाँ पर ड्राइवर कुछ लगाकर छेद बंद कर दिया। कंडक्टर इतना डीजल ले आया था कि बस आराम से अपने गंतव्य तक पहुंच जाए। बस फिर चल पड़ी। हम सब दुआ करने लगे कि अब कोई मुसीबत न हो।
इस बार शुक्र था कि बस रास्ते में फिर नहीं रुकी। मेरे मामा का शहर आ गया, वहीं पर जाकर बस रुकी। यह मेरे बस की ऐसी पहली यात्रा थी, जहाँ पर तीन बार बस अलग-अलग कारणों से खराब हुई और रुकी। यह रोचक यात्रा हमेशा याद रहेगी।
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