‘छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। |
स्पष्टीकरण :
इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ है, क्योंकि इस पंक्ति में ‘क’ वर्ण और ‘र’ वर्ण इन दोनों की एक से अधिक बार आवृत्ति हो रही है। ‘र’ की इस पंक्ति में दो बार आवृत्ति हुई है तथा ‘क’ वर्ण की तीन बार आवृत्ति हुई है।
‘अनुप्रास अलंकार’ किसी काव्य में वहां पर प्रकट होता है, जब उस काव्य में किसी शब्द के प्रथम वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हो अथवा कोई पूरा शब्द उस काव्य में एक से अधिक बार प्रयुक्त हो। अगर एक से अधिक बार कोई शब्द समान आवृत्ति लगातार प्रयुक्त किया जा रहा है, तो वहां पर अनुप्रास अलंकार नहीं बल्कि पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होगा। जैसे – धीरे-धीरे. धन-धन, छन-छन ये शब्द लगातार प्रयुक्त किए जा रहें है तो तो यहाँ पर अनुप्रास अलंकार नही बल्कि पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होगा। यही शब्द अगर काव्य में अलग-अलग स्थान पर प्रयुक्त किये जाते तो अनुप्रास अलंकार होता।
ऊपर दी गई पंक्ति राम लक्ष्मण परशुराम संवाद प्रसंग से ली गई है, जो कि तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के बालकांड का प्रसंग है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि… ‘
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू।
मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू’
अर्थात श्रीराम द्वारा सीता स्वयंवर में शिवजी का धनुष तोड़े जाने पर जब परशुराम सीता स्वयंवर में आकर क्रोधित होते हैं तो लक्ष्मण परशुराम को समझाते हुए कहते हैं कि इसमें श्रीराम का कोई दोष नहीं। उन्होंने तो बस धनुष को छुआ था और छूते ही धनुष टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं। उन्होंने जानबूझकर धनुष नहीं तोड़ा। आप व्यर्थ ही क्रोधित हो रहे हैं।
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