‘प्रकृति हमारी शिक्षक है।’ स्पष्ट कीजिए।​

विचार

प्रकृति हमारी शिक्षक है।

 

प्रकृति हमारी शिक्षक है क्योंकि हम प्रकृति से हर पल कुछ ना कुछ सिखाती रहती हैं। जीवन के हर क्षण में प्रकृति से हम कुछ ना कुछ सीखते रहते हैं।

सहनशीलता का संदेश

प्रकृति हमें सहनशीलता सिखाती है। प्रकृति हमेश सहनशील बनी रहती है। प्रकृति के प्राणी प्रकृति के साथ लगातार छेड़छाड़ करते रहते हैं लेकिन प्रकृति हमेशा सहनशील बनी रहती है।

सबकुछ प्रदान करने का संदेश

प्रकृति हमारे लिए माँ के समान है। एक माँ अपनी संतान को सब कुछ देने के लिए तत्पर पर रहती है। वह अपनी सभी संतानों  को  बिना किसी भेदभाव के अपना सब कुछ देने के लिए हमेशा तैयार रहती है। उसी तरह प्रकृति भी पृथ्वी पर रहने वाले हर प्राणी को सब कुछ प्रदान करती है और हमेशा प्रदान करने के लिए तत्पर रहती है। प्रकृति का मूल भाव भी देना है। माँ अपनी संतान से कुछ पाने की आकांक्षा नहीं रखती है और हमेशा देना जानती है। उसी तरह प्रकृति भी हमसे कुछ पाने की आकांक्षा नही रखती वह केवल देना जानती है

मिलजुल कर रहने का संदेश

प्रकृति हमें मिल बांटकर हर चीज का उपयोग करना सिखाती है। प्रकृति हमें सिखाती है कि हमारे पास जो संसाधन है, वह सारे संसाधन सीमित मात्रा में नहीं हैं, इसलिए संसाधनों का अपव्यय नहीं करना चाहिए। वह हमें सभी प्राकृकित संसाधनों का उपयोग मिलजुल कर करने की सीख देती है।

समानता का संदेश

प्रकृति समानता का भाव सिखाती है, जो प्राकृतिक तत्व हैं वह सभी प्रकृति बिना किसी भेदभाव प्रकृति सब को प्रदान करती है। प्रकति वायु, जल, प्रकाश, मिट्टी, पर्वत, नदी आदि को बिना किसी जाति-धर्म-लिंग-नस्ल के भेदभाव के सबको समान रूप से प्रदान करती है। प्रकृति अपनी नदी जल प्रदान करते  यह नहीं देखती कि उसे पीने वाला किस धर्म का है, वह किस जाति का है। नदी के जल को हर कोई पी सकता है। इस घरती पर जो जो भी वायु है, वह सब के लिए उपलब्ध है। प्रकृति की मूल अवधारणा ही समानता और समरसता की अवधारणा है। इसके संसाधनों का उपयोग हर प्राणी कर सकता है। इस तरह प्रकृति बिना किसी भेदभाव के हमें समानता से रहना सिखाती है।

संयम से रहने का संदेश

प्रकृति हमें संयम और मितव्ययता से रहना भी सिखाती है। प्रकृति कहती है कि तुम अपनी सीमा से बाहर जाओगे और संसाधनों का उपयोग करने की अति कर दोगे तो उसका परिणाम भी भोगना पड़ेगा। इसीलिए प्रकृति अपनी प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से यदा-कदा अपना क्रोध प्रकट करती रहती है। वह हमें ये संदेश देती कि न तो प्राकृतिक तत्वों के साथ छेड़छाड़ करो और न ही संसाधनों का अत्याधिक दोहन करो। इस तह प्रकृति हमें संयम से रहना भी सिखती है।

कर्मशील रहने का संदेश

प्रकृति हमें बिना रुके लगातार काम करते रहने की सीख भी देती है। प्रकृति निरंतर अपने कर्मों में लगी रहती है। निश्चित समय पर बारिश होती है। निश्चित समय पर मौसम बदलते रहते हैं, प्रकृति का चक्र नियमित रूप से चलता रहता है। प्रकृति निरंतर क्रमशील रहती है। वह ये संदेश देती है कि बिना किसी लाग-लेपट के अपने कर्मों में निरंतर लगे। रहो प्रकृति कभी नहीं रुकती इस तरह प्रति हमें अभी भी ना रुकने का संदेश देती है

प्राकृतिक जीवन शैली संदेश

प्रकृति हमें अपने निकट होने का भी संदेश देती है ।मानव जीवन आज के भौतिक संसाधनों की दौड़ में प्रकृति से दूर होता जा रहा है। इससे उसे अनके स्वास्थ संबंधी समस्याओं की स्ख्या में बढॉत्ररी से जितना अधिक प्राकृतिक जीवन शैली से दूर होगा उसके स्वास्थ्य और जीवन को इतना ही अधिक खतरा होगा प्रकृति हमें संदेश देती है कि अधिक से अधिक प्रकृति के निकट रहो. प्रकृति से जुड़ो। प्राकृतिक जीवन को अपनाओ। इसीलिए प्रकृति हमें प्राकृतिक बने रहने का संदेश देती है।

निष्कर्ष

यदि हम प्रकृति के व्यवहार का गहराई से अवलोकन करें तो हम पाएंगे की प्रकृति के हर पलस हर क्षण में कुछ ना कुछ संदेश छुपा है। हम प्रकृति से बहुत कुछ सीख सकते हैं। वह हमारे लिए एक बेहतरीन शिक्षक है इस बात में कोई संदेह नही  है।


Other questions

प्रकृति और मनुष्य के बीच हुए एक संवाद को लिखें।

‘प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है।’ इसका आशय है- (i) मौसम बदलते रहते हैं (iii) पृथ्वी परिक्रमा कर रही है। (ii) परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है। (iv) जलवायु सुहानी हो रही है।​

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